गुरुवार, 13 मई 2021

महामारी और हमारा समाज - डॉ लाल रत्नाकर


 इस बीच हमारे बीच से बहुत सारे ऐसे लोग चले गए हैं जिनका योगदान समाज के लिए निरंतर जारी था ऐसे लोगों का चला जाना निश्चित तौर पर एक तरह की निराशा उत्पन्न करता है और यही निराशा हमें कमजोर करती है क्योंकि जीवन में अनुभव और संघर्षशील विचारवान लोगों की जरूरत अब और है जब पाखंड अपने चरम पर थी और आधिकारिक रूप से प्रसारित किया जा रहा है ऐसे ऐसे नियम और आपराधिक सोच को आम आदमी पर थोपा जा रहा है जैसे बाकी लोग गुलाम की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाए।

हमारे एक राजनीति विज्ञान के साथी फेसबुक की अपनी पोस्ट पर पिछले दिनों संविधान प्रदत्त कुछ मौलिक अधिकारों का जिक्र किया था जिसमें व्यक्ति का स्वास्थ्य और उसका भोजन राज्य की जिम्मेदारी बनती है।
हम जिस तरह के नारों से आज खुश हो लेते हैं वह नारे दर असल आपको ठगने के लिए गढे गए हैं। इन्हीं नारों का असर हमारे समाज पर पड़ रहा है जिसका प्रभाव हमारे समाज में निरंतर दिखाई देने लगा है।

जिस तरह से बेरोजगारी महामारी और अव्यवस्था हमारे सामने मुंह फैलाकर खड़ी है निश्चित तौर पर समाज इससे डरा हुआ और अनेकों तरह से भयाक्रांत है। सरकारों का मतलब इन्हीं सारी समस्याओं से आवाम को निकालना उसके मूल कर्तव्यों में आता है जो सरकार इस तरह की अव्यवस्था फैला रही हो और मानव मात्र के अधिकारों पर कुठाराघात कर रही हो और कुछ लंपट साधु संतों द्वारा तैयार किए गए प्राचीन कालीन शास्त्रों के माध्यम से एक नए समाज के निर्माण की परिकल्पना करते हुए नए भारत के निर्माण का नारा दे रही हो निश्चित तौर पर यह आपराधिक काम है क्योंकि जिन कानूनों के तहत लोगों को राष्ट्रद्रोही करार किया जा रहा है उन्हें कानूनों के चलते उन्हें राष्ट्रद्रोही क्यों नहीं कहा जा सकता ?
अब सवाल यह है कि यह सवाल उठाए कौन? भारतीय राजनीति में बहुत पुराना एक नाम श्री सुब्रह्मण्यम स्वामी जी का है वह रह रह कर के कई ऐसे मसले उठाते रहते हैं जिनमें निश्चित तौर पर कानून की अनदेखी की जा रही होती है लेकिन उनकी खास बात यह है कि वह उस ब्रह्मणवादी मानसिकता से निकलने का नाम नहीं लेते जिसकी वजह से सारा संकट है। आजकल यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था विभिन्न तरह से उन लोगों में भी आ गई है जिनके पास सत्ता या संसाधन इकट्ठा हो गया है. और इन्हीं धूर्त नीतियों की वजह से जिसकी पहचान ब्राह्मणवाद के रूप में होती है वह सदियों से भाई भाई में भेद पैदा करता आया है और ऐसा भेद जिसको स्थानीय स्तर पर निपटाया जा सकता है यदि लोगों में मानवीय मूल्यों का संचार किया जाए अन्यथा बेईमान किस्म के और धूर्त लोग घर-घर में इस तरह के आपराधिक काम करके देश में चल रहे मुकदमों जिन का अंत निश्चित तौर पर बहुत लंबा समय लेता है लेकिन उसके बीच में न जाने कितने परिवार तबाह हो जाते हैं और वह इस स्थिति में पहुंच जाते हैं कि उन्हें अपनी जन्मभूमि भी त्यागनी पड़ती है।

पिछले दिनों मैंने जौनपुर प्रवास के दौर में देखा कि कई युवा जो बहुत ही कर्मठ हैं और ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई करके आज दुनिया में घूम कर के देश का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन वही जब अपनी जमीन पर आते हैं तो वहां पर धूर्त और बेईमान किस्म के लोगों से उनका मुकाबला होता है और यह धूर्त ऐसे होते हैं जो उनकी संपत्ति उनकी जायदाद आदि पर अनाधिकृत रूप से काबिज हो जाते हैं। अब वही युवा रात दिन कचहरी के चक्कर काट रहा होता है छोटे न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक से उसके पक्ष में फैसले होते हैं। लेकिन जिस तरह की अपराधिक मानसिकता के लोग उस पर विराजमान होते हैं और मौजूदा सत्ता के वरदहस्त उन पर होते हैं उनसे लड़ने के लिए कौन से न्यायालय की शरण लेनी पड़ेगी।

अंत में ऐसे मामलों में ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे देश की सीमा के निर्धारण के लिए सेना काम करती है और अपनी जिम्मेदारी निभाती है यह सारा काम अपनी संपदा बचाने के लिए लोगों को उसी तरह से आगे आना होगा और ऐसे लोग जिन्हें ना धर्म ना कानून ना नैतिकता का ज्ञान है उनको ताकत से ही बताया जा सकता है और उनसे बचाया जा सकता है।

अब हमारी सरकारों का नजरिया भी कुछ इसी तरह का हो गया है जैसे अपराधिक प्रवृत्ति के लोग एन केन प्रकारेण अपने ही देश और अपने ही लोगों की दुर्दशा करने पर अमादा होते हैं हमने ऐसे हजारों लोगों को देखा है जो इसी तरह के अज्ञानतापूर्ण मानसिकता के शिकार हैं और प्राकृतिक व्यवस्था को तहस-नहस करने पर आमादा हैं आज विज्ञान हमें जितनी शक्ति दिया हुआ है उसका उपयोग ना करते हुए पिछले दिनों जिस तरह से पाखंड का प्रचार किया गया यह काम वही व्यक्ति कर सकता है जो मानसिक रूप से निकृष्ट और पाखंडी हो।

जब भी आप ऐसे लोगों से बातचीत करते हैं तो वह लोग अपने पक्ष को घुमा फिरा कर बार-बार रखते हैं जिससे उनकी नियति साफ-साफ उजागर हो जाती है। यह कुछ उसी तरह से हो रहा है जब एक अदना सा आदमी भारतीय संविधान के चलते देश की सर्वोच्च गद्दी पर बैठता है। और उससे पूर्व जितने भी लोग इस देश निर्माण में अपना योगदान दिए हैं उन पर हंसता है और उनका मजाक बनाता है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह काम कोई बुद्धिमान व्यक्ति नहीं कर सकता यह अज्ञानी और मूर्ख ही यह काम कर सकता है। इसी का असर आने वाली नई पीढ़ी पर भी हो रहा है जो निरंतर इस बात को अपनी जेहन में बैठा लिया है कि जो कुछ उसे दिखाई दे रहा है वह उसकी अनुकंपा से है।

हम यहां जो बात कहना चाह रहे हैं वह यह है कि यह देश जिसके लिए हमारे तमाम लोगों ने ऐसा सपना देखा जिसमें इसका विकास और उत्थान अंतर्निहित था, उनको आज आवारा और मवाली किस्म के लोग अपनी अयोग्यता को छुपाने के लिए नाना प्रकार के उद्यम कर रहे हैं। इतिहास को मिटा कर के लिखने की बात एक बार उत्तर प्रदेश में जब भाजपा की सरकार आई थी तो शुरू किया गया था और उस पर कई ऐसे वरिष्ठ लोगों से वार्ता करने का मौका मिला जिन्हें हम समझते थे कि यह मनुष्य हैं और इनका पेसा लोगों के उपकार के लिए है चाहे वह अध्यापक हों डॉक्टर, वकील, धर्माधिकारी हो सामाजिक और सांस्कृतिक विचार रखने वाले विद्यार्थी युवा और प्रौढ़ हो बस उनकी जेहन में एक ही बात थी की इतिहास से मुसलमानों को बाहर किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा इतिहास पढ़ने से हमें गुलामी की अनुभूति होती है।

यह आश्चर्यजनक संवाद सुनकर इतना आश्चर्य होता था कि यह कैसे लोग हैं कि यह भूल जाना चाहते हैं कि यह मुगलों और अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं क्यों रहे हैं उसका कारण क्या रहा है इस पर विचार नहीं करते बल्कि इस पर विचार करते हैं कि इतिहास को बदल दिया जाए और यह लिख दिया जाए यह देश निकम्मे धूर्त और बेईमान राजाओं और साधु-संतों के अधीन था और वही ईश्वर थे उनकी अनुकंपा से ही आज इस भारतीय समाज में भाग्य पाखंड अंधविश्वास और गरीबी चरम सीमा पर विराजमान है जिसके लिए कोई उपाय करने की जरूरत नहीं है यह सब इनके कर्म का फल है।

इस तरह की विवेचना उस समय भी बहुत भयावह लगती थी और आज जब संसद भवन की बजाए एक ऐसा व्यक्ति जो जुमले झूठ और मक्कारी करके देश पर काबिज हो गया हो वह पूरी संसदीय मर्यादाओं को तहस-नहस करते हुए महामारी के इस दौर में अपनी जिद पर पडा हुआ हो कि हम सेंट्रल विस्टा बनाकर रहेंगे।

कुल मिलाकर बात आम आदमी से लेकर राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए लोगों की इस बीच जिस तरह से उजागर हुई है निश्चित तौर पर हम लोग इन बातों को समझने में या उन लोगों के बीच जो इससे पहले देश को चलाने का दायित्व संभाल रहे थे। उनके अंदर संभवतः ऐसी विचारधारा नहीं रही होगी तभी देश विकास के उस सोपान तक पहुंचा। जहां से आज सारी चीजों को रोका जा रहा है। बड़े-बड़े हवाई अड्डा रेलवे और रेलवे स्टेशन को कौड़ियों के भाव ऐसे दरिद्र व्यापारियों को दे दिया जा रहा है जिनका इतिहास ही बहुत गंदा रहा है। जिन्होंने अपनी व्यवसायिक कूटनीति के तहत टैक्स की चोरी विभिन्न प्रकार के कर की चोरी करके और बैंकों का बहुत बड़ा हिस्सा अपने आकाओं की वजह से हड़प करके देश को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने में भागीदार हैं।

हम अभिशप्त हैं ऐसे लोगों के जिनका कर्म किसी भी तरह से सराहनीय नहीं है बल्कि निंदनीय है। उनके आचरण उनकी नीति उनके क्रियाकलाप सब कुछ हमारे समाज के संस्कारों से बिल्कुल विपरीत हैं। जहां पर देश को ठगने की अनेक कथाएं हमारे समाज में प्रचलित रही हैं। लेकिन भारतीय समाज और यहां का अज्ञान इतना प्रबल है कि बहुत जल्दी बहुत बड़ी-बड़ी आपदाओं को भूल जाता है और उन्हें अपने गले लगा लेता है जो उसका गला काट रहे होते हैं।


आइए हम विचार करें कि हम किस तरह से एक ऐसे भारत ऐसे देश का निर्माण करें जिसमें बाबा साहब अंबेडकर रामास्वामी पेरियार ज्योतिबा फुले जो भगवान बुद्ध के विचारों पर देश बनाना चाहते थे, और उसके लिए आजीवन संघर्ष करते रहे जो कुछ भी आज उन पाखंडीयों से निकलकर बाहर आया है यह उन्हीं लोगों के योगदान का परिणाम है। यदि आज आप इसी तरह सोते रहे और अपने छोटे-छोटे स्वार्थ के लिए अपने लोगों से ही अलग होकर अपने ऐसे नेतृत्व को बनाने की कोशिश में समय बर्बाद करेंगे जिससे केवल आपको खरीदा जा सकेगा। आप अपनी आवश्यकताओं के लिए बिकने को मजबूर होंगे और खरीददार आपको अपना गुलाम बनाकर रखेगा। इसलिए हमारी आपसे अपेक्षा है कि आपसी भेदभाव बुलाकर एक साथ अपने पूर्वजों के बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लें जिससे आप इस तरह की विध्वंस कारी नीतियों की सत्ता से मुकाबला कर सके।

उम्मीद है आप इस पर विचार करेंगे और सक्रिय रूप से अपनी सहभागिता सुनिश्चित करेंगे।
Ashokkumar Yadav

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