शनिवार, 21 सितंबर 2019

बहुजन राजनीति के काले दिन

आलेख एवं चित्र : डॉ.लाल रत्नाकर 

सवाल यह नहीं है कि आज की राजनीति में क्या हो रहा है , सवाल यह है कि आज की राजनीति में वे क्या कर रहे हैं जिन्हें अवाम अपने सर पर बैठायी हुई है। यानि वह जो राज्यों की राजनीति में बहुजन समाज की राजनीतिक विरासत हो संभालने का दावा करते हैं।
2019 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में एक गठबंधन बना था उस गठबंधन से जनता को बहुत उम्मीदें थीं लेकिन वह उम्मीदें चुनाव होते ही चकनाचूर हो गई, इसके लिए कोई और नहीं वही लोग दोषी थे जिन्होंने यह गठबंधन बनाया था। जनता को लगा कि यह क्या हो गया लेकिन जो राजनीति के जानकार (पंडित) हैं उन्हें यह पता था कि इसका यही हश्र होना है जो हुआ।
इस बीच लगातार कई घटनाएं घटी उन घटनाओं में जो सबसे महत्वपूर्ण हो रहा है कि उत्तर प्रदेश के गठबंधन के दलों ने निरंतर ऐसे काम जारी रखे हैं जिससे देश और प्रदेश की मौजूदा सत्ता हमेशा फायदे में रहे । समाजवादी पार्टी के तमाम सांसद बीजेपी में शरीक हो गए और यह क्रम निरंतर जारी है आए दिन खबरें मिलती रहती हैं की फला फलां एमएलसी और तमाम ऐसे लोग जो समाजवादी सरकार के समय बड़े दुलारे और प्यारे थे जिनकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री ने न जाने कितने पुराने समाजवादियों को किनारे लगा दिया आज वे वर्तमान सरकार की तरफ खिंचे चले जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से बाहर भी बसपा के बहुत सारे जनप्रतिनिधि कांग्रेस के सदस्य हो गए हैं यही नहीं राजस्थान में तो पूरे के पूरे 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं जो बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते थे । अब बीएसपी के टिकट लेने देने का क्या तरीका है ? उस पर ना जाते हुए बीएसपी की राजनीति पर बात करना जरूरी है।
मान्यवर कांशी राम ने जो सपना देखा था उस सपने को देश की बहुजन आवाम भी बहुत ही संजीदगी से देख रही थी ? लेकिन जब मान्यवर कांशी राम जी कैद हुए और उनको लंबे समय तक इलाज के नाम पर अस्पताल में बंदी की तरह कुछ खास सुरक्षा में रखा गया क्योंकि यह जगजाहिर है कि उनके परिवार के लोग भी उनसे अस्पताल में नहीं मिलने पाते थे जिसके लिए उन्हें न्यायालय भी जाना पड़ा। उन्हीं दिनों बहुजन की जातियों के अलग-अलग संगठन खड़े होने लगे जो कभी विपक्ष की ताकत हुआ करते थे ।
अब क्या था जो बहुजन समाज का विरोधी था वह निरंतर इस पर नजर बनाए हुआ था कि वह किन किन जातियों को आपस में लड़ा सकता है । लेकिन इस बात की चिंता उन लोगों को नहीं थी जिन्हें कांशी राम की विरासत या समाजवादी धारा में बहुजन के हित की राजनीति करनी थी। यही कारण है कि मान्यवर कांशी राम के उपरांत बहुजन समाज पार्टी में ऐसे ऐसे लोग शरीक हुए जो मौजूदा बहुजन समाज पार्टी की नेत्री मायावती जी को बहुजन विनाश की सलाह देते रहे । ऐसा नहीं है कि कु मायावती जी इन बातों को नहीं समझती होगी।
लेकिन लंबे समय तक उनके जो कार्य रहे वह बहुजन विनाश के ज्यादा रहे और उसके उत्थान की बजाए निजी उत्थान व अपार धन संग्रह का उन पर निरंतर आरोप लगता रहता है। लोगों का यह भी मानना है कि उन्हें अपार संपदा का लोभ है और यही कारण है कि बहन मायावती की राजनीत आज अपने को सुरक्षित रखने की राजनीति हो गई है। जिसमें लोगों का मानना है कि अपने और अपने परिवार के बड़े घोटालों को बचाने के लिए वह केंद्र के इशारे पर नाच रही हैं।
जिस संगठन को मान्यवर कांशी राम ने ऐसा रूप दिया था जिससे भविष्य में देश की बागडोर बहुजन समाज के किसी व्यक्ति को संभालने की उम्मीद की जा सकती थी? विडंबना देखिए कि मान्यवर कांशी राम जी के सपनों के विपरीत काम करके उस उद्देश्य के लिए जिसकी उनकी परिकल्पना थी। उसके लिए बहन मायावती जी ने 2019 के चुनाव के पहले ही अपनी तैयारी कर ली थी कि वह देश की प्रधानमंत्री बनेगी ।
लेकिन मौजूदा सरकार ने इनकी इस चाल को समझा और बहुत अच्छी तरह से इन्हें बता दिया कि अब यह दौर उस तरह का दौर नहीं है जिसमें लोकतंत्र की ताकत मजबूत हो।
अंततः मौजूदा सरकार पिछले बहुमत से ज्यादा बहुमत से केंद्र में काबिज हुई और जो बहन जी ईवीएम के खिलाफ कोर्ट जाने की बात करती थी वह चुपचाप समाजवादी पार्टी के साथ अपने गठबंधन को समाप्त कर ली और यह कहते हुए की समाजवादी पार्टी के मतदाताओं ने उनके प्रत्याशियों को वोट नहीं किया। उत्तर प्रदेश के गठबंधन से अपना नाता तोड़ लिया और जिन उपचुनाव में वह अपने प्रत्याशी नहीं उतारती थी भाजपा के इशारे पर वहां भी अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी।
मेरा मानना इससे बहुत अलग है कि उनका यह कहना उस समय जब चुनाव हो चुके हैं तो कितना गलत है। यह वह दौर था जब इस बात को बुलंद करना चाहिए था कि मौजूदा सत्ता ने सत्ता का दुरुपयोग किया है और अनेकों तरह के षड्यंत्र करके हमारे वोटरों का अधिकार छीन लिया है । जो असंवैधानिक है क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह लगता ही नहीं था कि भाजपा को 2/4 सीटें भी मिलेंगी । लेकिन जितनी सीटें भाजपा को आई वह कहीं से भी तार्किक नहीं थी।
इन सब परिणामों के बाद बहन जी ने जो कदम उठाया उससे कम से कम उत्तर प्रदेश की जनता को बहुत बड़ा धक्का लगा और यह धक्का बहुजन समाज के उस वर्ग को ज्यादा लगा जो बहन जी का समर्थक था लेकिन भारतीय राजनीति में जिस तरह का चलन है उसके चलते एक वर्ग विशेष का मतदाता संभव है उनके साथ खड़ा हो लेकिन वैचारिक रूप से उसे भी बहुत धक्का लगा है।
ऐसे समय में निश्चित तौर पर उस वैचारिक वर्ग को अखिलेश यादव से अपेक्षाएं जगी थी कि वह प्रदेश की राजनीति में इस गठबंधन के परिणाम स्वरूप जो कुर्बानी देकर के अपनी इमेज खड़ी किए हैं उसका लाभ लेने के लिए वह आगे आएंगे लेकिन एक ठगे हुए योद्धा की तरह विमर्श की बजाए वे अज्ञातवास में जाकर के पूरी उर्जा को, जो बहुजन समाज में उभरी थी उसको ठंडा करने का काम किया है। बीच में उनके कई बयान आए जिनमें मौजूदा सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का कोई भी कार्यक्रम नहीं था।
इस बीच उनके कार्यकर्ताओं को निरंतर उत्पीड़ित और प्रताड़ित किया जाता रहा लेकिन किन कारणों से वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ भी खड़े नजर नहीं आए जिनके साथ इस तरह के अत्याचार हो रहे थे इसी क्रम में प्रदेश के कद्दावर नेता जो लंबे समय से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समाजवादी चेहरे के रूप में अपनी पहचान रखते हैं इस बार रामपुर से सांसद होकर जब संसद में अपना बयान दिए जिसे यहां सुना जा सकता है:
https://youtu.be/w9g8L3GzgWo
से सत्ताधारी दल के कान खड़े हो गए और उसने उनको संस्थानिक और प्रशासनिक तौर पर परेशान करने का हर हथकंडा अख्तियार किया है और संभव है कि आने वाले दिनों में उन्हें कैद भी करने का काम भी किया जाएगा।

माननीय मुलायम सिंह यादव जी आजम खान के समर्थन में खड़े नजर आते हैं लेकिन आज के दौर में उनकी कौन सुन रहा है।
क्योंकि वर्तमान संसद में ऐसे लोग जो मौजूदा सत्ता की आलोचना कर सकें या करेंगे । ऐसे लोगों को हर तरह से संसद में न पहुंचने का पूरा इंतजाम किया गया प्रतीत होता है।

यही कारण है कि बहुत सारे ऐसे लोग जो राजनीति में तो हैं लेकिन उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है केवल राजनीतिक को शोभा की वस्तु समझते हैं। और उसके लिए किसी भी सीमा तक जाकर वे अपनी उपस्थिति बनाए रखना चाहते हैं । ऐसे लोगों से वर्तमान सत्ता को कोई भय नहीं है। भय उससे है जो उनके खिलाफ खड़े होकर उनकी नीतियों की समीक्षा कर सके।
इसका जिक्र यहां इसलिए जरूरी है कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रदेश है जहां से सबसे ज्यादा संसद सदस्य चुन करके देश की संसद में जाते हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी बनती है कि उससे ऐसी राजनीति की जाए जिसमें संविधान की रक्षा हो साथ ही रच्छा करने का मनोबल भी हो और धर्मनिरपेक्षता एवं सामाजिक न्याय पर काम करने की इच्छा शक्ति हो।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी से अपेक्षा की जाती है कि वह मौजूदा दौर में अपनी भूमिका को बहुत ही पारदर्शी रखते हुए अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ तालमेल तो करे ही साथ ही साथ बहुजनबाद के समर्थकों का जमावड़ा कर सके।

देश और प्रदेश की भावी राजनीति में यदि राजनीतिक सजगता के लोग नए सिरे से सक्रिय नहीं होंगे तो प्रदेश की दोनों प्रमुख विरोधी पार्टियां जिस तरह से भयभीत हैं उससे आम आदमी की राजनीतिक समझ मात्र हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की जुमलों में उलझ करके रह जाएगी।
जिससे संविधान विरोधी शक्तियों से लड़ा जा सके लेकिन जब ऐसे दलों की मुखिया सामंतों जैसा व्यवहार करेंगे तो स्वाभाविक है कि उनके साथ खड़े होने वाले लोग दरबारी या चाटुकार होंगे कोई भी सम्मान चाहने वाला व्यक्ति उनके करीब नहीं जाएगा ऐसा मेरा मानना है।

हां सचमुच बहुजन समाज को साथ लेकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने का माद्दा दिखाने पर निश्चित तौर पर जनता उसके साथ खड़ी होगी जिसमें यह मुद्दा शामिल होगा और उसके लिए संघर्ष करने की इच्छा शक्ति होगी ।

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