बुधवार, 28 अप्रैल 2021

निरंतर हो रही मृत्यु पर सरकार मौन है ?

निरंतर हो रही मृत्यु पर सरकार मौन है ? 

मौत, बेहाली और मातम के इस भयावह दौर में भी क्रिकेट के IPL मेले पर बेतहाशा खर्च करने वाली भारतीय कंपनियों और सरकार के शर्मनाक सोच में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी Andrew Tye का यह बड़ा सवाल क्या कुछ तब्दीली लायेगा?
भारत के ज्यादातर बड़े अमीरों और ज्यादातर सरकारों के पास क्या सचमुच जमीर होता है? अपने लोगों के प्रति प्रेम, संवेदना और करुणा होती है?
आईपीएल छोड़कर अपने देश आस्ट्रेलिया लौटने वाले एन्ड्रिव टाय ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा: जिस देश के अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए जगह नहीं मिल रही है, वहां की कंपनियां IPL के प्रायोजन पर इतना खर्च कैसे कर रही हैं? उन्होंने यहां की सरकार पर भी सवाल उठाया है.
अच्छा है, वह विदेशी खिलाड़ी हैं वरना यहां का कोई खिलाड़ी यह सवाल उठाता तो उसे शासन 'देशद्रोही' घोषित करता और प्रायोजक कंपनियां उस पर आजीवन प्रतिबंध लगा देतीं!
"अपने आलोचकों की मैं कद्र करता हूं. उनकी आलोचना, सुझाव या परामर्श की रोशनी में अपने को जांचने-परखने की कोशिश करता हूं. यह सिलसिला मैने 'राज्यसभा टीवी' के अपने संक्षिप्त कार्यकाल से शुरू किया था जो अभी भी जारी है. 'न्यूजक्लिक' के अपने हर कार्यक्रम के वीडियो या सोशल मीडिया की अपनी टिप्पणियों पर आने वाली ज्यादातर प्रतिक्रियायों को पढ़ने की कोशिश करता हूं. कई बार वे टिप्पणियां बहुत ज्यादा होती हैं तो सबको पढ़ना संभव नही होता.
अपना निजी अनुभव बताऊं. अपनी कई आलोचनाओं से मुझे काफी शक्ति और समझ मिली है. कई बार अपनी ऐसी कमियों पर नज़र गई, जिनकी तरफ कुछ आलोचकों ने इशारा किया था. कुछ आलोचनाएँ यूँ ही होती हैं, लेकिन उनमें भी ज्यादातर को भी पढ़ने की कोशिश करता हूं. उदाहरण के लिए न्यूजक्लिक पर मेरे एक कार्यक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया में एक दर्शक ने लिखा: 'उर्मिलेश जी, कभी-कभी आप कोई शब्द बोलकर फिर उसका अंग्रेजी पर्यायवाची बोलते रहते हैं, ऐसा क्यों? आपके दर्शकों को उस शब्द के मायने मालूम हैं, फिर अंग्रेजी में उसका बेवजह तर्जुमा क्यों?' यह आलोचना इतनी सटीक थी कि मैं तुरंत सहमत हो गया और उसी दिन से अपने को सुधारने की कोशिश करने लगा. अब काफी सुधार है पर वह आदत अब भी पूरी तरह गयी नहीं! कभी-कभी गलती कर बैठता हूं.
कुछ लोग मेरे ऊपर नफ़रत की बौछार करते रहते हैं. इनमें तरह-तरह के लोग होते हैं. स्वाभाविक तौर पर इनमें ज्यादातर तो 'वही' होते हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने को 'प्रगतिवादी' घोषित किये होते हैं. ऐसे लोगों की नफ़रत के कभी निजी कारण होते हैं तो कभी 'समाजशास्त्रीय' भी!
ऐसे तमाम निंदको और नफ़रत करने वालों के प्रति भी मैं कत्तई कटु नही होता. शुरू में ऐसे लोगों पर गुस्सा आता था. अब बिल्कुल नहीं. उन पर सिर्फ दया आती है. इनकी बिल्कुल परवाह नही करता! मेरा मानना है, नफ़रत बेहद नकरात्मक भाव है, इसे सिरे से ख़ारिज किया जाना चाहिये. इसकी परवाह भी नहीं करनी चाहिए.
आज के इन भयावह दिनों में प्रेम, संवेदना, सह्रदयता और करुणा की बहुत जरूरत है."

आज के दौर में भी उच्च न्यायालयों से कई बार न्याय की बहुत बुलंद आवाज उभरती है. कोई खास बात नहीं, न्याय करना न्यायालयों का काम है.
पर न्याय की आवाजें आज जहां कहीं से उठती हैं उन्हें सलाम तो बोलना ही चाहिए!
और मद्रास हाईकोर्ट को तो ज़रूर! न्याय की बहुत ताज़ा और बुलंद आवाज है!

कोई व्यक्ति किसी धर्म को माने, किसी विचार का समर्थन करे, किसी नस्ल या क्षेत्र का हो; इससे किसी को क्या फ़र्क पड़ता है! फ़र्क तब पड़ता है, जब धर्म, विचार, नस्ल या क्षेत्र के नाम पर लोग एक दूसरे से भेदभाव, नफ़रत या संघर्ष करना शुरू कर दें! अच्छे-अच्छे भाषणों में या उदार विचार वाली किताबों में जो भी कहा गया हो, पर सच यही है कि हमारी दुनिया में अब तक सबसे ज्यादा टकराव, नफरत और हिंसा के पीछे धर्म या पंथ के मसले रहे हैं. यह बात मैं पहली बार नहीं कह रहा हूं, दुनिया भर के बड़े विचारक पहले ही कह चुके हैं. धर्म का यह चेहरा उसके (शुरुआती दौर या बाद के) कुछ सकारात्मक पक्षों को भी पीछे ढकेल देता है.
देश-दुनिया के ऐसे असंख्य उदाहरणों को देख और पढकर ही मैने अपने छात्र-जीवन में धर्म और धार्मिक कर्मकांडो से किनारा कर लिया था. जब तक माँ-पिता रहे, उनकी जीवन-चर्या में शामिल कुछेक धार्मिक कर्मकांडो को (अपनी नापसंदगी के बावजूद) जीवन में कुल तीन बार मानना और तद्नुरूप आचरण करना पड़ा. जबकि मेरे माँ-पिता बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के लोग नहीं थे. हमारे समाज और हमारे आसपास के लोगों में धर्म या धर्माचार की भूमिका भले ही इन दिनों काफी बढ़ी हो पर मेरे अपने जीवन में धर्म की कोई भूमिका नही है. मेरे अपने परिवार के चार में तीन सदस्यों के साथ भी यही स्थिति है.
आज के इन बेहद भयावह दिनों में बहुत कुछ कहने का मन करता है. अपनी बहुत सारी अनकही बातें भी! इनमें एक बात आज शेयर करता हूं. कृपया इसे अन्यथा न लें. यह मेरी निजी धारणा है. लेकिन इसका सामाजिक संदर्भ जरूर है. इसलिए खुलकर अपनी बात रखने में कोई बुराई नहीं.
मेरे अधार्मिक होने के बावजूद अगर आप मेरी धारणा के आधार पर मुझे चिन्हित करना चाहें तो मुझे मानववादी कह सकते हैं. प्रकृति और मनुष्य से इतर किसी अन्य के वजूद को मैं नहीं मानता. लेकिन मैं अपने समाज और समूची दुनिया के महान् विचारकों, समाज सुधारको और बदलाव के प्रेरक व्यक्तियों के समक्ष सर नवाता हूं. पर मैं किसी का भक्त नहीं हूं कि उनकी पूजा करूं. उन महान् विचारकों ने भी अपने जीवन में किसी की कर्मकांडी ढंग से पूजा नहीं की. ऐसे लोगों की सूची बहुत लंबी है. मैं अपने पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करता हूं. बुजुर्गों से सुनी उनकी कहानियां मुझे प्रेरित करती हैं. अन्याय और अत्याचार से जूझने की शक्ति देती हैं.
अगर मैं तनिक भी धार्मिक भाव का व्यक्ति होता तो भारत में जितने भी धर्म हैं, उनके बीच मैं अपने लिए सिख धर्म का चयन करता और बहुत पहले सिख बन गया होता. मैं सिख परिवार में पैदा हुआ होता तो अच्छा लगता पर मैं वर्णाश्रम-व्यवस्था आधारित 'हिन्दू धर्म' के दायरे में आने वाले शूद्र वर्ण(आधुनिक संवैधानिक भाषा में-ओबीसी) के एक किसान परिवार में जन्मा. बहरहाल, मुझे अपने जन्म के परिवार, खासतौर पर माँ-पिता पर गर्व है. कमाल के लोग थे, जिन्होंने एक निरक्षर-अशिक्षित खानदान में पहली बार अपने दोनों बच्चों को शिक्षित करने की ठानी.
मेरे खानदान में हर साल एक बार अपने आठ इष्ट देवों/पूर्वजों/ पशु प्रतीकों की पूजा होती थी(गांव में आज भी होती है ). संभवतः इनमें कुछ हमारे पूर्वज हैं तो कुछ निश्चय ही पशुओं के प्रतीक हैं. ऐसे पशु,जो किसान-जीवन के लिए जरूरी और उपयोगी रहे हैं. पूजा के बाद इन्हें जो खीर अर्पित की जाती है, उसमें भैंस का दूध इस्तेमाल किया जाता रहा है. इस पूजा में कभी कोई पंडित या पुजारी नहीं आता था (आज भी नहीं!) पूजा के बाद पूरा खानदान जुलूस लेकर गांव के बाहर तक जाता. पारम्परिक वाद्य बजते, झंडा भी होता और आगे-आगे वे लोग चलते, जिन्हें अपने पूर्वजों के मूल स्थल की यात्रा पर निकलना होता था.
हमारे बुजुर्ग बताते थे कि एक बड़े हमले में खानदान के कई लोग मारे गये थे. हमलावरों ने घरों में आग लगा दी. बचे हुए लोग अपने बाल बच्चों और मवेशियों के साथ उसी रात पलायित कर गये और फिर गाजीपुर(पूर्वांचल) के इस गांव में आकर बसे. वहां से वे कब विस्थापित हुए, बस अनुमान ही लगाया जा सकता है. मेरा अनुमान है, यह घटना अंग्रेजों की हुकूमत(ईस्ट इंडिया कंपनी )के शुरुआती दौर की होगी. लंबे समय से मेरा इरादा रहा है कि मैं उस क्षेत्र में जाकर अपने पूर्वजों की कहानी लिखूं. पर अब तक यह काम नही हो पाया. अगर सबकुछ ठीक रहा तो अपने जीवन में यह काम मैं जरूर करना चाहता हूँ .
बचपन में मैने देखा, मेरे खानदान में मरे बड़े भाई के अलावा सभी अशिक्षित थे. कोई साक्षर भी नही था. अपने खानदान में हम दोनों भाई और हमारे एक काका के बड़े बेटे ही पहली दफा साक्षर और शिक्षित हुए. लेकिन हमारे ठेठ किसान परिवार में शायद ही कोई मंदिर जाकर पूजा करता था. मेरे पिता घर पर ही सुबह-सुबह ईश्वर को याद किया करते थे. माता जी, घर के सामने वाले पीपल की जड़ों पर जल ढारती थीं. वहां से लौटने पर गुड़ और चावल हमें प्रसाद के तौर पर देतीं. अगर गुड़ पानी से गीला होता तो मैं उसे चुपके से फेक देता था. हमारे घर में आम हिन्दुओं की तरह दीवाली, होली, जन्माष्टमी, रामनवमी और मकर संक्रांति जैसे पर्व मनाये जाते. एक निरक्षर किस्म का 'पंडित' भी यदा-कदा किसी खास पूजा या 'होम'(हवन) के नाम पर आता था. बड़े भाई जब शिक्षित हुए तो उसका आना बंद करा दिया गया. इस तरह हमारा घर होम और यदा-कदा होने वाली पूजा के उस संक्षिप्त कर्मकांड से पूरी तरह मुक्त हो गया. बस अपने पूर्वजों और कुछ पारिवारिक इष्ट देवों की पूजा का सिलसिला जारी रहा. हमारे पड़ोस में एक मुस्लिम परिवार भी था-कलाम अंसारी का, जो बहुत विनम्र और कुशल कारीगर थे. मकान आदि बनाने में उस्ताद. हम दोनों भाई उनके यहां आयोजित मुस्लिम पर्व का भोज्य पदार्थ भी यदा-कदा ज़रूर ग्रहण करते थे. मां-पिता तो उससे दूर रहते थे लेकिन हम दोनों को खाने से वह रोकते नही थे. उनके एक आयोजन में हमारा पूरा परिवार शामिल होता, वो था-मुहर्रम! मेरी मां सुबह ही सुबह मलीदा बना देतीं और उसे एक बडे बर्तन में रखकर हम लोग या स्वयं मेरी मां ताजिया के पास ले जाकर रखती थीं. उस प्रसाद को हम सब चाव से खाते थे. बचपन में ताजिया के जुलूस में कलाम मियां के बेटों के साथ मैं भी छाती पीटते हुए शामिल होता था. लेकिन ज्यादा आगे नहीं जाता क्योंकि कभी-कभी बहुत भीड़ और ठेलमठेल हो जाती. सिर्फ मैं ही नही, मेरे मोहल्ले के यादव, नोनिया, लोहार, कहार परिवारों के और लड़के भी उसमें हिस्सा लेते. संभवतः एकाध ब्राह्मण लडके भी.
याद आ रहा है, अंडे का पहला स्वाद मैने उसी अंसारी परिवार या भैया के पूरब टोल स्थित किसी मुस्लिम-दोस्त परिवार में चखा था. मैं बहुत दुबला-पतला और कमजोर था, इसलिए मेरे माँ-पिता मेरे किसी मुस्लिम परिवार में पके मांसाहारी भोजन या अंडे आदि के खाने पर कभी रोक नही लगाते थे. इसके उलट वे प्रेरित करते थे.जहां तक याद है, एक बार तो मेरी मां पड़ोस के कलाम मियां की पत्नी को चार-पांच सेर अनाज देने गईं कि मेरे छोटे बेटे को वह यदा-कदा मुर्गी का अंडा खिलाती रहें.
लेकिन आज हमारे जैसे गांवों और पिछड़ी बिरादरियों के किसान परिवारों मे भी धर्म के कर्मकांडी स्वरूप की जबर्दस्त घुसपैठ हो चुकी है. एक तरफ आर्थिक सुधारों के जरिये देश में नवउदारवादी-कारपोरेटी अर्थतंत्र उभरा है तो उसके समानांतर कारपोरेट-हिंदुत्व का दायरा भी! यह 'हिन्दुत्व' उस पारम्परिक हिन्दू धर्म या समाज से बिल्कुल जुदा चीज है, जो हमने अपने बचपन में देखा था. दरअसल, यह 'राजनीतिक हिन्दूवाद' है, जिसके कनेक्शन कारपोरेट-तंत्र से हैं. कुछ दल, कुछ संगठन और भारतीय टेलिविजन चैनल इसके सबसे बडे प्रचारक और प्रसारक हैं.
इससे न तो मेरा गांव अछूता है और न समाज! खेती-किसानी में जुटी रहने वाली बिरादरियों को भी इसने डंसा है. अगर इसके दंश से एक हद तक कोई अब तक बचा है तो वे सिख-किसान और मजदूर हैं! किसान आंदोलन का नेतृत्व यही किसान कर रहे हैं.
मुझे लगता है, भारत का भला आज इसी बात में निहित है कि उसके यहां धर्म का मानववादी चेहरा उभरे, कट्टरवादी और कर्मकांडी नहीं. यह काम सिर्फ किसान और मजदूर श्रेणियों के लोग कर सकते हैं, जिनके लिए धर्म का मतलब हमेशा मानववाद रहा है.
निज़ाम ने अवाम को उसके हाल पर छोड़ दिया है! उससे उम्मीद करना व्यर्थ है. उसकी प्राथमिकताए कुछ और हैं. लोगों को बचाने और उनकी सहायता के लिए समाज को स्वयं आगे आना होगा. एक दौर में ज्योति बा फुले और सावित्रीबाई फुले ने राह दिखाई थी. वे पीड़ित मनुष्यता को बचाने के लिए आगे आए थे. ऐसा ही कुछ वो दौर भी था. वे अपने साथियो, समर्थकों और शुभचिंतकों को लेकर सेवा और सहायता में जुट गये.
अच्छी बात है कि आज सियासत और समाज में चाहे जितनी गिरावट आई हो, हमारे यहां आज भी कुछ समूह, संस्थाएं और लोग जितना संभव है, करने की कोशिश कर रहे हैं. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि इस दिशा में गुरुद्वारों, सिख समुदाय के कुछ स्वयंसेवी संगठनों और व्यक्ति-समूहों ने उल्लेखनीय काम किया है और लगातार कर रहे हैं. संभवतः उनसे प्रेरित होकर कुछ अन्य धार्मिक संस्थाओं ने भी दिल्ली सहित कुछ जगहों पर सेवा या राहत का काम शुरू किया है.
अच्छी बात है कि इधर कुछ राजनीतिक दलों के युवा संगठनों और प्रकोष्ठो ने इस दिशा में सकारात्मक पहल की है. इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली से बाहर के राज्यों में भी ले जाने की जरूरत है.
हमारी जानकारी के मुताबिक केरल में राज्य प्रशासन द्वारा स्थापित कई समूह बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. लोगों को पका हुआ भोजन, खाद्यान्न, फल सब्जी और दवाओं की आपूर्ति भी कर रहे हैं. तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में भी ऐसे काम हो रहे हैं. अन्य जगहों की ज्यादा जानकारी नही मिली है. शासन-प्रशासन का सबसे बुरा हाल हिंदी-भाषी राज्यों में है. इसलिए यहां गैर सरकारी संगठनों को ज्यादा पहल करने की जरुरत है. जिन घरों में लोग बीमार पड़े हैं, उन्हें पके भोजन, आवश्यक दवाएं और उपकरण आदि की जरुरत है.
गुरु नानक, कबीर, ज्योति बा फुले, सावित्री बाई फुले, श्रीनारायण गुरु और अय्यंकाली जैसे महान् समाज-सुधारकों के मुल्क को बचाने की जिम्मेदारी अब सिर्फ और सिर्फ जनता के बीच काम करने वाले संगठनों और समूहों की है.
वाहे गुरु दा खालसा
वाहे गुरु दी फतह!


साभार ; उर्मिलेश जी के फेसबुक पेज से

रविवार, 18 अप्रैल 2021

" डॉ. मनराज शास्त्री " बहुजन समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक नेता का असमय चला जाना।


 सामाजिक न्याय के सजग प्रहरी और बहुजन समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक नेता का असमय चला जाना।
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डॉ. मनराज शास्त्री जी का जन्म 01 जुलाई 1941 को जौनपुर जनपद के बटाऊबीर के पास सराय गुंजा गांव में हुआ । इनका निधन वाराणसी में एक प्राइवेट अस्पताल के icu में दिनांक 16 अप्रैल 2021 को शाम 5:00 बजे हो गया। 
इनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा पास के प्राइमरी स्कूल से शुरू होकर सल्तनत बहादुर इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा के उपरांत इन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई बदलापुर डिग्री कॉलेज से करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये और वहीं से इन्होंने संस्कृत विषय में एम ए और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 
तदुपरांत यह राजकीय महाविद्यालय की सेवा में इसलिए आ गए कि विश्वविद्यालयों में उस समय भी तमाम नियुक्तियों को लेकर के काबिलियत की वजाय अन्य बहुत सारे कारण, कारण बन जाते थे। 
राजकीय महाविद्यालय से जब शाहगंज डिग्री कॉलेज के लिए प्रिंसिपल की पोस्ट विज्ञापित हुई तो उसके लिए इन्होंने विज्ञापन भरा और इनका चयन हो गया लम्बे समय तक इन्होंने गन्ना कृषक महाविद्यालय शाहगंज में प्रिंसपल के रूप में कार्य किये। 
ज्ञातव्य है कि शास्त्री जी जब विद्यार्थी थे तभी यह सामाजिक विचारधारा को लेकर के बहुत सशक्त और आने वाले दिनों में चौधरी चरण जैसे किसान नेता के संपर्क में आए और उनके सिद्धांतों को इन्होंने अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया। 
इसी समय वह श्री रामस्वरूप वर्मा के संपर्क में आए। बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा के संपर्क में आए। इन सब के संपर्क में आने की वजह से वह अर्जक संघ के प्रचारक के रूप में भी कार्य करने लगे। संस्कृत के विद्वान होने के नाते पाखंड अंधविश्वास और चमत्कार के खिलाफ तमाम शादी विवाह वज्ह अर्जक पद्धति से संपन्न कराए।
इसके साथ लंबे समय तक अखिल भारतीय यादव महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रहे और समाज के लिए बहुत बड़ा काम किया । 
सेवा निवृत्ति के उपरांत वह निरंतर शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगे रहे और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ अभियान में बढ़-चढ़कर सहयोग ही नहीं करते रहे पूरे देश में चल रहे आंदोलन में आगे बढ़कर हिस्सेदारी करते रहे।
दिनांक 16 अप्रैल 2021को एकाएक वह है करोना की चपेट से बच नहीं पाए और सायं 5:00 बजे उनका देहावसान हो गया।
विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक के रूप में शोषित और दलितों और पिछड़ों के हित की हमेशा बात करते रहे।
माननीय मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में शुरुआत कर रहे थे तो उन दिनों यह सारे लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय और शिक्षा जगत में समाजवादी आंदोलन को गति दे रहे थे जिससे माननीय मुलायम सिंह जी की विचारधारा के समर्थक होने के साथ-साथ उनके राजनीतिक आंदोलन में अनेकों तरह से सहयोग किए।
हालांकि इनके बहुत सारे साथी सपा सरकार के विभिन्न पदों पर विराजमान रहे लेकिन इन्होंने कभी भी किसी पद को हासिल करने की इच्छा जाहिर नहीं की और वह निरंतर निरपेक्ष भाव से समाजवादी आंदोलन के हिमायती बने रहे यहां तक की जब से श्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं तो उनके कामों की प्रशंसा और उसके प्रचार-प्रसार की हमेशा बात करते रहते रहे हैं, श्री अखिलेश यादव से भविष्य की राजनीति की उन्हें बहुत बड़ी उम्मीद रही है उम्मीद है कि आने वाले दिनों में उनकी उम्मीद फलीभूत होगी।
यद्यपि राजनीतिक रूप से उन्होंने लंबे समय से किसी खास दल के प्रति वह लगाव नहीं था । 
लेकिन भाजपा के प्रति उनका बहुत बड़ा प्रतिकार था और वह निरंतर इस बात से बहुजन समाज को समझाने की कोशिश करते रहते थे कि यह दल और इसका मूलभूत संगठन बहुजन समाज के विनाश का बहुत बड़ा जहर अपने अंदर पाले हुए हैं। जिसका प्रभाव दिखाई भी दे रहा है लेकिन बहुजन समाज के भक्त संप्रदाय के लोगों से निरंतर वह अपनी बात कहते रहे अंतिम समय तक यह बात मानी जब तक यह भक्तों भाजपा नहीं त्यागेंगे तब तक उनका उद्धार नहीं होना है।
- डॉ लाल रत्नाकर 
अपूरणीय क्षति।
सांस्कृतिक सरोकारों और समाज के पुरोधा डॉ. मनराज शास्त्री जी का असामयिक निधन न जाने कितनों को विस्मृत कर गया। चंद दिनों पहले की बात है वह हम लोगों के बीच में समाज के लिए जिस तरह से चिंतित थे और उनका हर पल समाज निर्माण के लिए बीत रहा था जैसा कि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी लिखा था कि थोड़े दिनों से वह जुकाम से परेशान हैं और स्वस्थ होते ही फिर से वह सक्रिय हो जाएंगे।
परसों सुबह से ही मैं यह जानने में लगा था कि वह स्वस्थ क्यों नहीं हो रहे हैं मेरी उनके पुत्र श्री राजेश जी से बात हुई और यह पता चला कि ऑक्सीजन मीटर से उनकी ऑक्सीजन की जो माप हुई है वह बहुत कम हो गई है 75/76 पर वह ऑक्सीजन सैचुरेशन आ गया है उन्हें सांस लेने की दिक्कत बढ़ती जा रही थी यह स्थिति हमने अपने son-in-law डॉ. वीरेंद्र को बताया उन्होंने कहा कि तुरंत उन्हें आईसीयू में ले जाना चाहिए।
मैंने यह बात उनके बेटे को कहा उनके नाती को कहा वह लोग शाहगंज में जितना कर सकते थे तुरंत आरंभ किए एक्सरे कराया डॉक्टर को दिखाया और अब यह नौबत आई कि उन्हें किस तरह से किसी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया जाए जिला अस्पताल में बिना कोरोनावायरस के टेस्ट के प्रवेश संभव नहीं था मैंने सुनीता हॉस्पिटल के मालिक डॉ आरपी यादव साहब से बात की उन्होंने सहर्ष उन्हें ले आने की राय दी और मैंने कहा कि आप ले करके उन्हें सुनीता अस्पताल पहुंचो, रात्रि में लगभग 10:00 बजे सुनीता हॉस्पिटल पहुंचे यह सारी घटना 14 अप्रैल के रात्रि की है। सुनीता हॉस्पिटल में उन्हें जो सुविधाएं दी जा सकती थी दी गई डॉ साहब ने आक्सीजन इत्यादि की व्यवस्था की और इस पूरी प्रक्रिया में मैंने अपने मित्र और मुंबई में अपने व्यापार में संलग्न भाई श्री अजय यादव जी जो आज ही गांव आ गए थे मैंने उनसे भी डॉ साहब के इलाज में सहयोग करने की अपील की जिसको उन्होंने प्राथमिकता पर लेकर अपना दायित्व समझा और जितनी कोशिश हो सकती थी निरन्तर इतनी कोशिश करके यह निरंतर प्रयास होता रहा कि कैसे उनको बेहतर से बेहतर इलाज दिलाया जा सके। जिसमें वह बीएचयू की मदद के लिए डॉ विनीत को लगाए।
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था मुझे भी बच्चे वापस गाजियाबाद ला रहे थे और मैं रास्ते भर निरंतर प्रयास करता रहा कि किस तरह से डॉ साहब से बातचीत हो सके क्योंकि कई दिनों से उनका फोन बंद मिल रहा था। नीरज के फोन से मैंने बात की, तब भी वह कहते रहे कि थोड़ा आराम हो रहा है।
जबकि उन्हें जरूरत थी आईसीयू की जो शाहगंज में उपलब्ध नहीं था और जौनपुर में भी उसकी समुचित व्यवस्था नहीं थी फिर भी जितना हो सकता था वह किया गया उनके अनुज मित्र श्री सीताराम यादव जी भी इस समय हिंदुस्तान में हैं और शाहगंज और मेरे गांव में मिलकर हम लोग साथ-साथ रहे सब की यही चिंता थी कि उनका बेहतर इलाज कैसे हो जाए।
डॉ विनीत निरंतर प्रयास करते रहे कि उन्हें बीएचयू के आईसीयू में कैसे ले आया जाए जब सफलता मिली तब तक वह बनारस के ही प्राइवेट फोर्ड अस्पताल में भर्ती हो गए थे और आराम मिलना शुरू हो गया था फिर भी हम चाहते थे कि उन्हें बीएचयू में ट्रांसफर कर दिया जाए लेकिन यह संभव नहीं हो पाया कारण जो भी रहा। डॉ विनीत के प्रयास पर यदि हम उन्हें बीएचयू के आईसीयू में भर्ती करा पाते तो बात कुछ और ही हो जाती।
इस कार्य के लिए श्री अजय यादव जी का जितना भी धन्यवाद किया जाए वह कम होगा क्योंकि उन्होंने सारे काम एक तरफ रख कर किस तरह से उन्हें अच्छी सुविधा इलाज की मिल सके प्रयत्न करते रहे और वह संभव भी हुआ तो उसका लाभ उन्हें नहीं मिल पाया और अंततः जो कुछ हुआ वह पूरे समाज के लिए एक अनहोनी है । वह केवल अपने परिवार के नहीं थे उनका परिवार पूरे भारतवर्ष भर में फैला है चारों तरफ से लोगों को उनका आकस्मिक रूप से चला जाना बहुत कष्टकारी लग रहा है। हम ऐसे समय में असहाय महसूस कर रहे हैं ऐसे व्यक्ति का जो ज्ञान और विज्ञान के अथाह समुद्र थे जिन्हें मापा नहीं जा सकता था । जो हर संकट में खड़े रहते थे हम कितने कमजोर साबित हुए यह अफसोस जीवन भर बना रहेगा।
नमन।
स्तब्धकारी सूचना-
16 अप्रैल 2021 निधन-सामाजिक न्याय के अनन्यतम प्रहरी डॉ मनराज शास्त्री जी नही रहे......
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     शिक्षाविद,सामाजिक न्याय के अनन्यतम प्रहरी,"यादव शक्ति" पत्रिका के व्यवस्थापक मण्डल के मार्गदर्शक, उत्तरप्रदेश यादव महासभा के लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रह चुके एवं वीपीएसएस के जन्मदाताओं में से एक डॉ मनराज शास्त्री जी के निधन की बेहद स्तब्धकारी सूचना प्राप्त हुई है।
      मैं डॉ मनराज शास्त्री जी को अपना आदर्श,प्रेरणास्रोतव व अपने विचारधारा का मजबूत स्तम्भ मानता रहा हूँ।उनकी मृत्यु ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया है।अभी कुछ ही दिनों पूर्व शास्त्री जी की पत्नी का निधन हुआ था जिसके बाद उन्होंने सारे पाखण्ड आदि का परित्याग कर जौनपुर जनपद के शाहगंज स्थित अपने आवास पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था।शास्त्री जी ने किसी तरह के मनुवादी टोटकों को करने की बजाय अपने पत्नी का चित्र रख बिना मृत्युभोज किये श्रद्धांजलि सभा कर एक नई राह समाज को दिखाई थी।
      डॉ मनराज शास्त्री जी "यादव" पत्रिका के सम्पादक व यादव महासभा के संस्थापक रहे "यादव गांधी" राजित बाबू के अति निकटस्थ लोगों में से एक थे।लम्बी अवधि तक यादव महासभा का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुये डॉ मनराज शास्त्री जी ने पिछड़े समाज को जगाने व उन्हें एक जुट करने में महती भूमिका निभाई थी।चौधरी चरण सिंह जी से लेकर मुलायम सिंह यादव जी तक के अति निकट रहे डॉ मनराज शास्त्री जी का यूं चले जाना अत्यंत दुखदायी है।
1989-90 के दौर में मैं डॉ मनराज शास्त्री जी जुड़ा था जब मण्डल आंदोलन अपने शबाब पर था।   
मण्डल आंदोलन के बाद सामाजिक जागृति के अभियान में हम डॉ मनराज शास्त्री जी के साथ हो गए थे और उन्हें मेरे क्रियाकलापों से इतनी न  प्रसन्नता होती थी कि वे अक्सर कह दिया करते थे कि चन्द्रभूषण के आ जाने से मैं निश्चिंत हूँ कि हम लोगो के कारवां को ये आगे ले जाने मे कोई कोताही नही बरतेंगे। दिल्ली,लखनऊ,आगरा,हैदराबाद,नांदेड़,पटना सहित देश भर के विभिन्न तरह की वैचारिक गोष्ठियों में डॉ मनराज शास्त्री जी का उद्बोधन प्रेरणादायी तो "यादव शक्ति" में आपका लेखन मनुवाद पर अति मारक होता था।"यादव शक्ति" पत्रिका के तेवर व कलेवर को सजाने-संवारने में डॉ मनराज शास्त्री जी के योगदान को भुलाया नही जा सकता है।
      संस्कृत से पीएचडी डॉ मनराज शास्त्री जी ताखा डिग्री कालेज के प्रिंसिपल रहे व जौनपुर जनपद में सामाजिक न्याय,सेक्युलरिज्म,रुढ़िवादी संस्कारो,वंचितों के सामाजिक उन्नयन आदि के लिए जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे।मुझे जब से आदरणीय शास्त्री जी के निधन की सूचना मिली है मैं स्तब्ध हूँ,निःशब्द हूँ क्योंकि वे मेरे मन-मस्तिष्क में बसते थे।मृत्यु सबकी होनी है,यह अटल सत्य है जिसे स्वीकार करते हुये हम सबको दुनिया में अपने ऐसे प्रियजनों के विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना होगा,यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।डॉ मनराज शास्त्री जी के निधन पर मैं हृदय की गहराइयों से शोक जताते हुये उनके वैचारिक कारवां को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हुये श्रद्धासुमन समर्पित करता हूँ।

-चंद्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...