रविवार, 16 मई 2021

सकारात्मकता की दुहाई।

सकारात्मकता की दुहाई।


भारत का लोकतांत्रिक स्वरूप भारत के संविधान से बनता है। लेकिन इधर निरंतर देखने को मिला है कि भारत के संविधान पर जिस तरह से नकारात्मक सोच रखने वाले लोग नकारात्मक तरीके से काबिज होकर विनाश की पराकाष्ठा पर पहुंचाकर आज सकारात्मक सोच की बात कर रहे हैं।

जबकि संविधान की मंशा देश को समतामूलक और गैर बराबरी को समाप्त कर एक संपन्न राष्ट्र बनाने की परिकल्पना पर आधारित है। लेकिन लंबे समय से चले आ रहे एक खास सोच के लोगों के बहुत सारे विवादों के चलते यहां की बहुसंख्यक आबादी अपने मौलिक अधिकारों से वंचित रही है। उसके विविध कारण रहे हैं. उसमें राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक कारण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन सब कारणों के साथ-साथ जो एक गैर महत्वपूर्ण कारण है वह है धार्मिक कारण।

जैसे ही हम धार्मिक कारण पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि धर्म एक ऐसा निरंकुश हथियार है जो आतंकवादियों की तरह उन लोगों के हाथों में है जो लोग संविधान नहीं मानते।  मानवता का अर्थ नहीं समझते। निश्चित तौर पर इस तरह का धर्म मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा होता है। और इसी तरह का धार्मिक षड्यंत्र इस लोकतांत्रिक देश को अपने मजबूत पंजो से निकलने नहीं दे रहा है। जिसकी वजह से आज देश त्राहिमाम कर रहा है। यही कारण है कि हमारी पूरी आबादी इस धार्मिक षड्यंत्र के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। उसे संवैधानिक स्वरूप की समझ ही नहीं होने दी जाती। हमारे संविधान में धर्म को मानने और ना मानने का कोई प्रतिबंध नहीं है। धार्मिक रूप से सभी लोग स्वतंत्र हैं और वह किसी भी धर्म को मानने के लिए अपनी अपनी तरह से आजाद हैं। जब से यहां धर्म को हथियार बनाया गया है। इसी धर्म रूपी हथियार के माध्यम से प्राचीन काल से चले आ रहे धर्म को "धार्मिक पाखंड" को धार्मिक आतंकवाद की तरह की उद्घोषणा से जोड़ दिया गया है।  जिसकी वजह से तमाम तरह के लोगों को जो भी उन आतंकवादियों के पाखंडी उदघोषणाओं का विरोध करते हैं। उन्हें निशाना बनाया जा रहा है या जाता रहा है।  और उसी तरह से आज भी बनाया जा रहा है।

अब इस धर्म में यह देखना होगा कि इसमें नकारात्मकता का कितना बोलबाला है। यदि हम एक एक बिंदु पर विचार करें तो पाएंगे कि जितना समय हम अपने अधिकारों के लिए या उनको जानने के लिए नहीं देते उससे ज्यादा समय हम धार्मिक अंधविश्वास और पाखंड के कार्यक्रम एवं उन पर चलने के लिए कथित रूप से आस्था के नाम पर भयभीत होकर शामिल होने में बाध्य हो जाते हैं। जिन घरों में लाइब्रेरी बनाए जाने की जगह मंदिर या पूजा गृह बनाए जाते हैं उसके साथ ही हर एक ऐसी जगह किसी देवी देवता को लगा दिया जाता है। जिसकी वजह से वहां यह धर्म विराजमान रहे इसकी व्यवस्था स्वतः हो जाती है। इस धर्म में जिस तरह की अलौकिक संरचनाएं की गई हैं जो किसी भी तरह से वैज्ञानिक नहीं है ? किसी को आठ दश मुंह किसी को 15-20 भुजाएं, और न जाने कितने प्रकार के कपोल कल्पित निर्माण से ऐसा निर्माण किया जाता है जिससे प्रामाणिक रूप से पाखंड से लगभग 33 लाख देवी देवताओं की रचना की गई है।

यह तो तय है की निश्चित रूप से प्राचीन काल से चतुर लोगों ने जिस तरह से षड्यंत्र करके  इस तरह के धर्म की संरचना की होगी उससे ही सारी संपत्ति को एक तरह से अपने लिए सुरक्षित करने हेतु इस प्रकार के नाना प्रकार के षड्यंत्र कर ऐसे ऐसे ग्रंथ बना रखे हैं, जिसमें समता समानता और बराबरी का कोई पक्ष ही नहीं है। इसी तरह से कालांतर में हमारे समाज में भी नैतिक रूप से समता समानता और बराबरी का अधिकार ना मिलने पाए इसके निरंतर उपक्रम करते रहे गए हैं और किए जा रहे हैं। हम देखते हैं कि जिन जगहों पर लोगों को ज्ञान के लिए अध्ययन का केंद्र बनाया जाना चाहिए था वहां पर बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण किया गया और इन्हीं मंदिरों के माध्यम से धर्म का नियंत्रण रखा जाने लगा जहां इस तरह की भावनाओं का प्रचार प्रसार किया गया कि व्यक्ति अंधा होकर उस केंद्र की तरफ स्वत: आकर्षित होता हुआ प्रस्थान करता रहा।

*आज यह हालात है कि कल तक जिनको उन मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी और ना ही उन मंदिरों में शासन करने वाले लोगों से उठने बैठने और स्पर्श करने की आजादी थी आज उन्हें बड़े-बड़े अभियान चलाकर धार्मिक बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है।

इसका ताजा उदाहरण ले तो हम पाएंगे कि दुनिया की सबसे चालाक कॉम जिसे यहूदी कहा जाता है हिटलर ने उसे गैस चैंबर में डाल डाल कर मारा था लेकिन आज उसी चतुर कौम ने पूरी दुनिया पर अपना एकाधिकार जमाया हुआ है। मूल रूप से फिलिस्तीनीओं पर हमलावर है। 

वैज्ञानिक आधार पर जिन चीजों का विकास हो सकता था और जिनके माध्यम से दुनिया को खूबसूरत बनाया जा सकता था।  उसको लंबे समय से दुनिया के बहुत ऐसे मुल्क जहां धर्म का आधिपत्य है प्रभावी नहीं होने दिया।  हालांकि जब यूरोप के बारे में अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने पूरी दुनिया के लिए धर्म छोड़कर जिस तरह से वैज्ञानिक आविष्कार किए उसका परिणाम यह हुआ कि आज वह पूरी दुनिया में विज्ञान की वजह से सर्वोच्च स्थान पर हैं ना कि धर्म की वजह से।

हम बात कर रहे हैं नकारात्मकता कि जिसकी वजह से उन लोगों को जिनकी नकारात्मक सोच है सकारात्मक सोच की बात करने की साजिश करनी पड़ी है।

हम यह हमेशा जानते हैं कि किसी भी तरह का आतंकवाद, किसी भी तरह से मानववादी या मानवतावादी कदम नहीं हो सकता ? लेकिन हम धार्मिक आतंकवाद अनैतिक आतंकवाद और धूर्तता के विविध रूपों में जब आतंकवाद की खोज करते हैं। तब पाते हैं कि जिसको अभी तक हमने संत समझा हुआ था वह मूल रूप से अपराधी और आतंकवादी प्रवृत्ति का व्यक्ति है। इसके हजारों उदाहरण आपको रोज मिलेंगे जब आप इस पर विचार करेंगे या विमर्श करेंगे, धार्मिक आतंकवाद हमेशा मानवतावाद को कमजोर करता है और ऐसे झूठ फरेब अंधविश्वास चमत्कार को परोसता है जिससे अज्ञानता का प्रसार बढ़ता जाता है। तब तब धार्मिक आतंकवादी अपना आतंक निरंतर फैलाता जाता है। 

अब यहां पर आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल धर्म के साथ करने से मेरा तात्पर्य वही है जो किसी भी आतंकवाद का संबंध किसी व्यवस्था के साथ होता है। धर्म लगाते ही अधर्म पर वह चलने के लिए एक तरह का अधिकार प्राप्त कर लेता है क्योंकि उसके हाथ में धर्म है वह जो कुछ भी करेगा उसे माना जाएगा कि यही धर्म है। जबकि धर्म और अधर्म का निर्धारण जब वैज्ञानिक आधार पर लिया जाता है तब सही और गलत से उसका मतलब होता है और लोक में इसी तरह की मान्यता रही है।

लोक में व्याप्त मान्यताओं के आधार पर उनके प्राकृतिक उपादान निरंतर धर्म का स्थान लेते रहे हैं। और धार्मिक शब्द उनके लिए उत्पादन से जुड़ा होता था। जिसकी वजह से वह नाना प्रकार के आयोजन करते थे, और अपने उत्पाद पर प्रसन्नता जाहिर करते रहे होंगे।  यथा फसलों का फलों का दूध दही का या पुत्र पुत्रियां और उपयोगी पशुओं के संवर्धन और खुशहाली को हमेशा उन्होंने पर्व के रूप में मनाया होगा। ऐसी परंपरा का आज भी हमारे लोक और कबिलाई समूहों में वह स्वरूप बचा हुआ है।

लेकिन जिस तरह के आतंकवाद का चेहरा धर्म के पीछे छुपा हुआ नजर आता है। उससे यहां की प्राकृतिक मान्यताओं का दोहन करके उन्हें ठगने का स्वरूप तैयार किया गया।  वही स्वरूप धीरे धीरे धीरे धीरे 33 लाख देवी देवताओं के रूप में परिवर्तित हो गया। इसका केंद्र किसी एक धर्म के नाम पर सुरक्षित कर दिया गया। और वह धर्म जो सबसे ज्यादा खतरे में बताया जाता है। वह न जाने कितने लोगों की जिंदगी को हजारों हजार साल से तबाह किए हुए बैठा है।

ज्ञातव्य है कि उस धर्म से समय-समय पर तमाम लोगों ने विद्रोह करके अपने अलग-अलग धर्म बनाए। लेकिन कालांतर में उन धर्मों में भी इसी तरह का आतंकवादी पहुंच करके उस पूरे धर्म को या तो कब्जा कर लिया या तो नष्ट कर दिया। हालांकि जो धर्म अभी दिखाई देते हैं और उन में समता समानता और बंधुत्व का संदर्भ महत्वपूर्ण है उसे भी धीरे-धीरे इन्हीं आतंकवादियों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से उसी तरह का बना दिया है। जैसा यह धर्म के नाम पर करते आए हैं।

सकारात्मक सोच की जरूरत तभी पड़ती है जब नकारात्मक सोच अपना आधिपत्य जमा लेती है नकारात्मक तरीके से धार्मिक आतंकवाद का सहारा लेकर जब साम्राज्य बनाया जा रहा था। तो उस साम्राज्य को बनाए रखने के लिए सकारात्मक सोच की जरूरत तो पड़ेगी ही। अन्यथा उस साम्राज्य के स्थापना और अवस्थापन को लेकर जब नकारात्मक सोच उसमें छिद्रान्वेषण करेगी, तब पता चलेगा कि किस तरह से धार्मिक आतंकवाद संवैधानिक अधिकारों को भी कमजोर करने में सफलता प्राप्त कर लेता है।

आइए हम सकारात्मक सोच पर विमर्श जारी रखें ? क्या जो आज इस सकारात्मक सोच की बात कर रहे हैं उन्होंने अब तक कौन सी सकारात्मक सोच अख्तियार की है। उदाहरण आपके सामने हैं, प्रमाण आपके सामने हैं, देश की व्यवस्था आपके सामने है, जरा इन सब का मूल्यांकन संवैधानिक तरीके से करिए तो इनकी सकारात्मकता का पूरा ताना-बाना आपकी समझ में आ जाएगा। यह एक नए तरह का एजेंडा है जिसके सहारे अपने ही सारे अपराधियों और अपराधों को आवरण पहनाकर उन्हें सकारात्मक करने की साजिश है। जिसे सही साबित करने का अभियान चलाया जा रहा है। जिसे किसी महत्वपूर्ण संगठन ने जो उसका मुखिया है, उसके बयान से अच्छी तरह से देखा जा सकता है।  कि "जो चले गए वह मुक्त हो गए" ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के आतंकवादी को पहचानने की जरूरत है। .क्योंकि संविधान जीवन और जीवन की सुरक्षा के लिए सरकार का दायित्व सुनिश्चित करता है। और यहां पर जाने के लिए जिस बेरहमी और अव्यवस्था की वजह से लाखों की संख्या में लोग चले गए अपने पीछे उन तमाम लोगों को छोड़ गए जो आज बेसहारा हो गए हैं। उनके लिए किसी संगठन के मुखिया का यह संबोधन कितना उचित है ? कि जो चले गए वह मुक्त हो गए।


"जो चले गए वह मुक्त हो गए" ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के आतंकवादी को पहचानने की जरूरत है।

इस लेख के अंत में यही कहना चाहूंगा कि इस व्यक्ति को जो इस तरह का उच्चारण कर रहा है अब उसको चला जाना चाहिए और अपने आतंकवाद से लोगों को मुक्त कर देना चाहिए।

-डॉ लाल रत्नाकर 




 

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