समानांतर संस्कृति



समानांतर संस्कृति
सांस्कृतिक साम्राजयवाद के खिलाफ आंदोलन।
डॉ.लाल रत्नाकर
दिशानिर्देशन मंडल  : डॉ.मनराज शास्त्री, डॉ.मोतीलाल वर्मा, श्री सातवजी माचनवार

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद क्या है ? 
सबसे पहले तो हमें देखना होगा कि सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का मतलब क्या है ? सीधे-सीधे कहा जाए तो पाखंड और ब्राह्मणवाद है। जिसने भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से हथिया लिया है और अपने को श्रेष्ठ और श्रेष्ठ पुरुष के रूप में स्थापित करके मानवों के मध्य कथित / अज्ञात ईश्वर का प्रतिनिधि बन बैठा है। जिसने हज़ारों देवी देवताओं को बनाकर एक पाखंडी साम्राज्य खड़ा किया और उसका मुखिया बन बैठा। इसने हज़ारों ग्रंथों की रचना की जिसकी चाभी के रूप में मनुस्मृति की रचना करके पूरे मानव समाज को ऊंच नीच और छुआ-छूत के अमानवीय कर्मकांड में फसाकर सर्वश्रेष्ठ बन बैठा है ।  

हमारे बीच से ही हमें चुनौती :
सबसे दुःखद है हमारे बहुजन समाज में पसरा हुआ पाखण्ड और ब्राह्मणवाद अब जैसे ही हम पाखंड की बात करते हैं तो एक बहुजन सांस्कृतिक तंत्र हमारे सामने उठकर खड़ा हो जाता है. वही सबसे ज्यादा बहस करके इसके केंद्र में केंद्रित हो जाता  हैं कि यह पाखंड कैसे है यह तो हमारा धर्म है परम्परा से हम इसे मानते आये हैं। यह गलत कैसे हो सकता है ?

साथियों मेरे मन में जो निजी सूझ-बूझ से बात समझ में आती है उसके हिसाब से मैं कह सकता हूं कि जितने भी सांस्कृतिक सरोकार हैं वह हमारे परंपरागत सांस्कृतिक पर्व हो सकते है जब हम सब वैज्ञानिक तरीके से उनका मूल्याङ्कन करें या कुछ प्रबुद्ध जनों द्वारा इसपर विचार किया जाय।  यदि वह सब वैज्ञानिक तरीके से हमें  प्रभावित नहीं करते हैं  तो हमें उसमें फसाया गया है। क्या किया गया है इन सब के पीछे ब्राह्मणवादियों का बहुत शातिर दिमाग काम करता है जिससे हमें जन्म से मृत्यु तक वह ऐसे ऐसे हज़ारों संस्कारों से बाँध  देते हैं कि पूरा बहुजन समाज उसके पीछे पागलों की तरह दीवाना रहता है। 

अलौकिक और लौकिक अवधारणाओं से वह फसा रहता है जिससे आगे बढ़कर सोचने का वह सहस ही नहीं कर पाता है।  

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की पृष्ठभूमि और समानांतर संस्कृति का दर्शन:
देखिए यह आसान काम नहीं है कि इतना साहित्य लिखा जाए और निरंतर उसमें गैर बराबरी और असमानता को स्थान दिया जाता रहे और यही किया गया है हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने में जिसको तोड़ना आसान नहीं है।
क्योंकि यह प्रक्रिया इतनी लंबी चली है कि दिखावे में अगर कहीं कमजोर पड़ जाए लेकिन रक्त में मस्तिष्क में और अंतर्मन में गहरे तक वह जड़ जमाए बैठी है और यही कारण है कि पिछले दिनों देश में जाति और संप्रदाय के नाम पर हजारों हजार लोगों को मार दिया गया और उनको कहीं नोटिस तक में नहीं लिया गया।
इसलिए हम यह मान सकते हैं कि आज जब आवाम बदलाव का मन बना रही है तो उसके पास बराबरी का साहित्य कहां है। और अगर आपके पास साहित्य नहीं है तो थोड़े दिनों में आपको फिर से वहीं धकेल दिया जाएगा जहां से आप उठ कर के आए हैं । जो साहित्य उपलब्ध है उस में मुख्य रूप से अंबेडकर रामास्वामी पेरियार और ज्योतिबा फुले जिनके मिशन को आगे ले जाने वाले लोगों में रामस्वरूप वर्मा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ललई सिंह यादव मैं जिस सच्ची रामायण का हिंदी अनुवाद किया है उन्होंने भी बहुत कुछ सैद्धांतिक काम किया है लेकिन जिस तरह से उसको जनता में स्वीकार किया जाना चाहिए था वह स्वीकारोक्ति या मान्यता जनता में नहीं मिली है।
अब देखिए धीरे धीरे उन साहित्य की बात हो रही है जिनमें गैर बराबरी और भेदभाव कूट कूट कर के भरा हुआ है। जिस संविधान के चलते लोग चुनकर के आए हैं उसी संविधान को नहीं मान रहे हैं अगर इनसे कोई पूछे कि अगर संविधान ना होता तो क्या चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री बन जाता राजतंत्र में ऐसा कोई उदाहरण मिलता है और अगर फिर से राजतंत्र आ गया तो क्या कोई भी सामान्य व्यक्ति देश में उस सत्ता पर पहुंच सकता है।
आश्चर्य तो इस बात से हो रहा है कि जिस संविधान के चलते जो चाय वाला प्रधानमंत्री हुआ है (यहां चायवाला कहने का मतलब है कि खुद प्रधान सेवक अपने को चाय बेचने वाला कहते हैं) और वही व्यक्ति उसी संविधान को तहस-नहस करने पर आमादा है जो संवैधानिक जनता के अधिकार है उनको समाप्त किया जा रहा है और विशेष प्रकार का संविधान या उनके मूल संगठन जिसको संघ कहते हैं की मान्यताओं को थोपा जा रहा है जो ना उनके चुनाव मेनिफेस्टो में है और ना ही संवैधानिक है।


इरोड वेंकट नायकर रामासामी(17 सितम्बर, 1879-24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था। हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होंने घोर विरोध किया। भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है।

बचपन[संपादित करें]

इनका जन्म 17 सितम्बर 1879 को पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न, परम्परावादी हिन्दू (धनगर[1]) परिवार में हुआ था। १८८५ में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लिया। पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। उनके घर पर भजन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे इन उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे। हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बेतुकी बातों का माखौल भी वे उड़ाते रहते थे। बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे। उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया। १९ वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की १३ वर्षीया स्त्री से हुई। उन्होंने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया।

काशी यात्रा और परिणाम[संपादित करें]

१९०४ में पेरियार ने एक ब्राह्मण, जिसका कि उनके पिता बहुत आदर करते थे, के भाई को गिरफ़्तार किया जा सके, इस हेतु न्यायालय के अधिकारियों की मदद की। इसके लिए उनके पिता ने उन्हें लोगों के सामने पीटा। इसके कारण कुछ दिनों के लिए पेरियार को घर छोड़ना पड़ा। पेरियार काशी चले गए। वहां निःशुल्क भोज में जाने की इच्छा होने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था। ब्राह्मण नहीं होने के कारण उन्हे इस बात का बहुत दुःख हुआ और उन्होने हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली। इसके लिए उन्होने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वे हमेशा नास्तिक रहे। इसके बाद उन्होने एक मन्दिर के न्यासी का पदभार संभाला तथा जल्द ही वे अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर १९१९ में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली। इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए। केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था। उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया।

कांग्रेस का परित्याग[संपादित करें]

युवाओं के लिए कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतते देख उनके मन में कांग्रेस के प्रति विरक्ति आ गई। उन्होने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष दलितों तथा पीड़ितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भा रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी। अंततः उन्होने कांग्रेस छोड़ दिया। दलितों के समर्थन में १९२५ में उन्होने एक आंदोलन भी चलाया। सोवियत रूस के दौरे पर जाने पर उन्हें साम्यवाद की सफलता ने बहुत प्रभावित किया। वापस आकर उन्होने आर्थिक नीति को साम्यवादी बनाने की घोषणा की। पर बाद में अपना विचार बदल लिया।
फिर इन्होने जस्टिस पार्टी, जिसकी स्थापना कुछ गैर ब्राह्मणों ने की थी, का नेतृत्व संभाला। १९४४ में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविदर कड़गम कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्होने अपने से कोई २० साल छोटी स्त्री से शादी की जिससे उनके समर्थकों में दरार आ गई और इसके फलस्वरूप डी एम के (द्रविड़ मुनेत्र कळगम) पार्टी का उदय हुआ। १९३७ में राजाजी द्वारा तमिलनाडु में आरोपित हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का उन्होने घोर विरोध किया और बहुत लोकप्रिय हुए। उन्होने अपने को सत्ता की राजनीति से अलग रखा तथा आजीवन दलितों तथा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए प्रयास किया।




मूलनिवासी बहुजन नायक ” पेरियार” का जीवन परिचय-


मूलनिवासी बहुजन नायक ” पेरियार” का जीवन परिचय-
1)दक्षिण भारत में मूलनिवासी बहुजनो के हकों की रक्षा के लिए जूझने वाले पेरियार का जन्म 17 सितम्बर, 1879 को पश्चिमी तमिलनाडु स्थित इरोड में एक सम्पन्न, ओबीसी में हुआ था ।
2)इनका पूरा नाम इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर(e.v रामस्वामी नायकर) था । प्यार से लोग उन्हें लोग “पेरियार” कह के बुलाते थे जिसका अर्थ था पवित्र आत्मा ।

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3)1885 में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लिया । पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा ।
4)उनके घर पर भजन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था । बचपन से ही वे इन उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे । हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बेतुकी बातों का माखौल भी वे उड़ाते रहते थे ।
5) बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरूद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा मूलनिवासी बहुजनो के शोषण के पूर्ण विरोधी थे । उन्होने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया ।
6)उनकी बढ़ती सामाजिकता से चिंतित उनके पिता ने 19 वर्ष की अल्पायु में ही नागअम्भाल नामक 14 वर्षीय लड़की से इनका विवाह कर दिया । उन्होने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया । लेकिन वैवाहिक बंधन भी नायकर को ब्राह्मण विरोध से न रोक सका । अध्ययन पूरा करते ही पेरियार जी जान से सामाजिक सुधारों में जुट गये ।
7)अपार वैभव में पले रामास्वामी को किसी तरह की कमी नहीं थी । परंतु कट्टरता के भयानक परिणामों को देख कर बचपन से ही नायकर के मन में हिन्दू रूढ़िवाद के प्रति अक्रोश उत्पन्न होने लगा । तमिल बहुजनो की पीड़ा का अहसास कर वह क्षुब्ध हो जाते थे । उन्हें लगता था कि उत्तर भारतीय ब्राह्मणों का सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक वर्चस्व ही मूलनिवासी बहुजनो की पीड़ा का मुख्य कारण है । इन बातों से दुःखी होकर पेरियार ने यह संकल्प लिया कि वह इस अन्याय को मिटा कर रहेंगे । पेरियार के इस निश्चय से ब्राह्मणों के एक बड़े वर्ग में खलबली मच गयी और उन्होंने पेरियार को ब्राह्मण विरोधी व नास्तिक करार दिया
 |
8) 1923 ई. में वायकोम मन्दिरों में अछूतों[ के प्रवेश को लेकर इन्होंने ‘आत्म सम्मान’ आन्दोलन चलाया । इन्होंने सामाजिक समानता पर बल दिया |

9)मनुस्मृति को जलाया तथा ब्राह्मणों के बिना विवाह करवाए ।

10) इन्होंने ‘कुदी अरासु’ नामक ग्रंथ लिखा ।

11)ईश्वर विरोधी समिति के निमंत्रण पर वे रूस गए तथा लौटने के बाद वे काँग्रेस से अलग हो गए एवं द्रविड़ मुनेत्र कडगम की स्थापना की । इस पार्टी के माध्यम से उन्होंने गैर-ब्राह्मणों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की ।
12)रामास्‍वामी पेरियार बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे । इन्होने जस्टिस पार्टी का गठन किया, जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था । हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया । भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग को लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है । 1973 ई. में इनकी मृत्यु हो गई । जाति भेद के विरोध में इनका संघर्ष उल्लेखनीय रहा ।

13) काशी यात्रा और परिणाम –
 1904 में पेरियार ने एक ब्राह्मण, जिसका कि उनके पिता बहुत आदर करते थे, के भाई को गिरफ़्तार किया जा सके न्यायालय के अधिकारियों की मदद की । इसके लिए उनके पिता ने उन्हें लोगों के सामने पीटा । इसके कारण कुछ दिनों के लिए पेरियार को घर छोड़ना पड़ा । पेरियार काशी चले गए । वहां निःशुल्क भोज में जाने की इच्छा होने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था । हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली । चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर 1919 में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली । इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए । केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर अछूतों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था । उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया ।
14) कांग्रेस का परित्याग – युवाओं के लिए कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतते देख उनके मन में कांग्रेस के प्रति विरक्ति आ गई । उन्होने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष मूलनिवासी बहुजनो के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भी रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी । अंततः उन्होने कांग्रेस छोड़ दिया ।

15) सोवियत रूस के दौरे पर जाने पर उन्हें साम्यवाद की सफलता ने बहुत प्रभावित किया । वापस आकर उन्होने आर्थिक नीति को साम्यवादी बनाने की घोषणा की । पर बाद में अपना विचार बदल लिया । फिर इन्होने जस्टिस पार्टी, जिसकी स्थापना कुछ गैर ब्राह्मणों ने की थी, का नेतृत्व संभाला ।1944 में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविदर कड़गम कर दिया गया ।

16)पेरियार ने मूलनिवासी बहुजनो को ब्राह्मणों के धार्मिक षड्यंत्र से निकालने में बहुत मेहनत की और ”सच्ची रामायण” नाम की किताब लिख ,ब्राह्मणों के ग्रंथो की पोल भी खोली !! उन्होने हमेशा अपने को सत्ता की राजनीति से अलग रखा तथा आजीवन मूलनिवासी बहुजनो तथा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए प्रयास किया । मूलनिवासी बहुजन समाज पेरियार का सदैव आभारी रहेगा !! image   📢 पेरियार वाणी 📢
1. ब्राहमण आपको भगवान के नाम पर मुर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है | ओर स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है | देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है | मै इस दलाली की निदा करता हू | ओर आपको भी सावधान करता हू की ऐसे ब्राहमणों का विस्वास मत करो |
2. उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हे शुद्र कहे , उन पुराणों ओर इतिहास को ध्वस्त कर दो , जो देवता को शक्ति प्रदान करते है | उस देवता कि पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला ओर बौद्धगम्य है |
3. ब्राहमणों के पैरों में क्यों गिरना ? क्या ये मंदिर है ? क्या ये त्यौहार है ? नही , ये सब कुछ भी नही है | हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है |
4. अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |

5. संसार का अवलोकन करने पर पता चलता है की भारत जितने धर्म ओर मत मतान्तर कही भी नही है | ओर यही नही , बल्कि इतने धर्मांतरण (धर्म परिवर्तन ) दूसरी जगह कही भी नही हुए है ? इसका मूल कारण भारतीयों का निरक्षर ओर गुलामी प्रवृति के कारन उनका धार्मिक शोसन करना आसान है |

6. आर्यो ने हमारे ऊपर अपना धर्म थोपकर ,असंगत,निर्थक ओर अविश्नीय बातों में हमें फांसा | अब हमें इन्हें छोड़कर ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक सिद्ध हो |

7. ब्राहमणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है | ओर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर , ईश्वर,ओर देवि -देवताओं की रचना की |
8. सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए है , तों फिर अकेले ब्रहमान उंच व् अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है |

9. संसार के सभी धर्म अच्छे समाज की रचना के लिए बताए जाते है , परन्तु हिंदू -आर्य , वैदिक धर्म में हम यह अंतर पाते है कि यह धर्म एकता ओर मैत्री के लिए नही है |

10. आप ब्राह्मणों के जल में फसे हो. ब्राह्मण आपको मंदिरों में खुसने नदी देते ! ओर आप इन मंदिरों में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई लूटाते हो ! क्या कभी ब्राहमणों ने इन मंदिरों, तालाबो या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया ????

11.ब्राहमणों ने अपना पेट भरने हेतु अस्तित्व , गुण ,कार्य, ज्ञान,ओर शक्ति के बिना ही देवताओं की रचना करके ओर स्वयभू *भुदेवता * बनकर हंसी मजाक का विषय बना दिया है |
12. सभी मानव एक है हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए , हम किसी को प्रचलित सामाजिक भेदभाव के कारन अलग नही कर सकते |
13. हमारे देश को आजादी तभी मिल गई समझाना चाहिए जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म , जाति ओर अंधविस्वास से छुटकारा पा जायेंगे |

14. आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश ओर अंतरिक्ष यान भेज रहे है ओर हम ब्राहमणों के द्वारा श्राद्धो में परलोक में बसे अपने पूर्वजो को चावल ओर खीर भेज रहे है | क्या ये बुद्धिमानी है ???
15. ब्राहमणों से मेरी यह विनती है कि अगर आप हमारे साथ मिलकर नही रहना चाहते तों आप भले ही जहन्नुम में जाए| कम से कम हमारी एकता के रास्ते में मुसीबते खड़ी करने से तों दूर जाओ | . ब्राहमण सदैव ही उच्च एवं श्रेष्ट बने रहने का दावा कैसे कर सकता है ?? समय बदल गया है उन्हें निचे आना होगा , तभी वे आदर से रह पायेंगे नही तों एक दिन उन्हें बलपूर्वक ओर देशाचार के अनुसार ठीक होना होगा |
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👉 #नास्तिकता मनुष्य के लिए कोई सरल स्तिथि नहीं है, कोई भी मुर्ख अपने आप को आस्तिक कह सकता है, ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है, यह स्तिथि उन्ही लोगो के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो !….. :- E V रामास्वामी नायकर(पेरियार)
👉”अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |” :- रामास्वामी पेरियार
👉ब्राहमण आपको भगवान के नाम पर मुर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है |ओर स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है | देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है | मै इस दलाली की निदा करता हू | ओर आपको भी सावधान करता हू की ऐसे ब्राहमणों का विस्वास मत करो | :- e.v. रामास्वामी पेरियार
👉# विदेशी लोग दुसरे ग्रहों पर ‘संदेश’ भेज रहे हैं और हम ‘ब्राह्मणों’ के द्वारा ‘श्राधों’ में अपने पूर्वजों को ‘चावल तथा खीर’ भेज रहे हैं | क्या ‘यक’ बुद्धिमानी है ?? ” :- पेरियार
👉29 मार्च 1931 को तमिल साप्ताहिक कुडियारासु के सम्पादकीय में पेरियार ने भगत सिंह और गाँधी की तुलना करते हुए भगत सिंह के विचारों के साथ अपनी सहमति जतायी थी. उन्होंने लिखा -“जिस दिन गाँधी ने कहा कि केवल ईश्वर ही उनका मार्गदर्शन करता है, दुनिया को चलाने में वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था ही उचित है और हर काम भगवान की इच्छा के अनुसार ही होता है, उसी दिन हम इस निष्कर्ष पर पहुँच गये की गाँधीवाद और ब्राह्मणवाद में कोई अंतर नहीं है. हम इस नतीजे पर भी पहुंचे की अगर ऐसे दर्शन को मानने वाली कांग्रेस पार्टी का खात्मा नहीं होता तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा और अब यही सच्चाई कम से कम कुछ लोगों को हासिल हो गयी है. उन्होंने गांधीवाद के पतन का आह्वान करने का विवेक और साहस हासिल कर लिया है. यह हमारे उद्देश्य की बहुत बड़ी जीत है.
👉# ईश्वर को धुर्तों ने बनाया,गुण्डों ने लागू किया ,मुर्ख उसमें आस्था रखते हैं | :- पेरियार
👉भगवान को नही मानने वाले पेरियार रामास्वामी 94 साल जिए थे ।
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