दलित दर्शन की वैचारिकी

अध्याय 2 : मिथकीय धुंध में छिपा इतिहास का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : विडियो - दो

दलित दर्शन की वैचारिकी : बी.आर.विप्लवी
********
आज के युग में व्यक्ति के पास पढ़ने के लिए निश्चित तौर पर समय की कमी है लेकिन आधुनिक सुविधाओं के चलते वह कहीं भी अपने सोशल मीडिया के माध्यम से किसी अच्छी चीज को सुन सकता है जब नाना प्रकार के प्रसंग आज हमारे सोशल मीडिया अकाउंट पर उपलब्ध हैं तो क्यों ना हम अच्छे साहित्य को इसके माध्यम से सुनने का संकल्प लें।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए श्री विपलवी साहब के साथ यह निश्चित हुआ कि यह प्रयोग किया जाए, स्वाभाविक है कि यह प्रयोग बहुत सारी गलतियों को समाहित किए हुए होगा लेकिन इसको हम लोगों ने सीधे आरंभ करने का संकल्प लिया और इसे पूरा करने में जो समय लगा उसके हिसाब से कह सकते हैं कि जब दृढ़ संकल्प कर लिया जाता है तो कोई चीज मुश्किल नहीं होती । अभी तो यह शुरुआत है हम लोगों की कोशिश है कि आपके भीतर जो सवाल खड़े हैं उन पर काम किया जाए और यह निश्चित है कि हमें आपका पूरा सहयोग मिलेगा।
पाठन की प्रक्रिया की सामाजिक जरुरत है जिसके प्रत्येक अध्याय का पाठ करेंगे जिसमें कुल 14 अध्याय हैं 1 अध्याय की छोटे-छोटे वीडियो बनाने की पहल की गई है जिसमें हर अध्याय के हर वीडियो की संख्या लिखी हुई है आरंभ में थोड़ी दिक्कत हुई होगी लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार हुआ और अंत तक जाते-जाते काफी छोटे वीडियो बनाकर के सुनने की दृष्टि से इसे सरल करने की कोशिश की गई है। नीचे मै चित्र में सारे अध्याययों को दे रहा हूं जिससे आपको सुविधा हो।
सादर।
पाठकर्ता :
डॉ लाल रत्नाकर
विप्लवी जु कहीं गई भूमिका;
रू-ब-रू...............
दलित दर्शन की वैचारिकी के भिन्न आयामों पर लिखे निबन्धों को पुस्तकाकार संकलन के रूप में प्रकाशित करने के पीछे मंशा यही रही है कि इसके भिन्न पक्षों पर चर्चा द्वारा भविष्य में आम सहमति के लिए एक सम्यक पृष्ठभूमि तैयार की जा सके । केन्द्रीय विषय-वस्तु को भिन्न संदर्भों में देखना-समझना; विषय से जुड़े तमाम सवालों का समुचित तथा संतोषजनक हल ढूढ़ने के लिए एक समग्र दृष्टि देने वाला हो सकता है। समय के साथ बदलते जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में दियों से सताई गई दलित-दमित तथा पीड़ित जनता के वर्तमान सामाजिक समीकरणों की पड़ताल, उसकी गतिशीलता का भविष्य तय करने में मददगार हो सकती है। इसीलिए समय सापेक्ष वैचारिकी के लिए इतिहास की स्थापनाओं के साथ-साथ, आधुनिक बदलावों की जरूरतों को चिन्हित करना वाज़िब लगता है। इस संकलन के आलेखों में भारतीय जीवन-पद्धति की प्राचीन परम्पराओं को वर्तमान धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक सच्चाइयों से जोड़कर देखने की कोशिश की गई है। यूँ तो दलित-विमर्श के भिन्न आयामों का विचार-क्षेत्रा इतना विशद है कि सबको एक साथ ले आने का दावा करना ही बेमानी है। विषय के हज़ारों पहलू भारतीय जीवन-जगत में क़दम-क़दम पर दिखाई दे जाते हैं। यही नहीं इन्हें देखने और परखने की भिन्न संवेदना-दृष्टि भी इसकी तीव्रता और परिमाण में ज़मीन आसमान का अन्तर पैदा कर देती है। लेकिन यह अन्तर दलित जीवन के यथार्थ को अपने-अपने तर्कों और कुतर्कों पर मीमांशा के कारण है जिसमें जीवन-मूल्यों को नापने-परखने के अलग-अलग पैरामीटर लिए जाते हैं। ऐसे भिन्न आदर्शों एवं मान्यताओं की बहस के बीच यदि सामन्जस्य की कहीं कोई
गुंज़ाइश शेष रह जाती है तो वह केवल मनुष्य जीवन में शान्ति स्थापना के आदर्शों को लेकर है। अन्यथा जंगली जीवन की मार-काट और कोलाहल भरे उथल-पुथल के जीवन को स्वीकार कर लेने के बाद ऐसे किसी विमर्श की आवश्यकता ही शेष नहीं रह जाती है। इन चौदह निबन्धों की भिन्न-भिन्न विषय-वस्तु होते हुए भी इनमें व्यक्त सामाजिक सरोकार दलित-पीड़ित मानवता की शोषण-मुक्ति तक सीमित हैं। सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक कारकों को ऐतिहासिक गलियारों में खोजने की कोशिश, बहुसंख्यक जनता को आर्थिक-सामाजिक शोषण से नजात दिलाने की ही एक और कोशिश है।8 : दलित दर्शन की वैचारिकी ‘बेचत फिरै कपूर’ शीर्षक के अन्तर्गत शोषक वर्ग के दोहरे चरित्र के उस पहलू को सामने लाने की कोशिश की गयी है जिसके बल पर वह मान-मर्यादा तथा रीति-नीति के दो मानदण्ड अख़्तियार करता है - अपने लिए अलग तथा रियाया के लिए अलग। ‘मिथकीय धुंध में छुपा इतिहास’ के अन्तर्गत वेदों, शास्त्रों और महाकाव्यों के ज़रिए गढ़े गये झूठे मिथकीय चरित्रों की रचना का ज़िक्र है। ये मिथकीय चरित्र अशिक्षा के अंधेरे से इतिहास की सच्चाइयों को ढाँपे हुए हैं। झूठ को सच दिखाने का यह नायाब नुस्खा भोली-भाली जनता पर सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करने का कारण बना है। लम्बे समय से भारतीय इतिहास के वास्तविक चरित्रा आम-जन से प्रायः अपरिचित रहे हैं तथा इन्हीं नकली चरित्रों को ही अपना हीरो मानकर एक खास वर्ग
कोशिश की जाती रही है। धार्मिक शोषण को चुनौती देते इन सन्तों की वाणी को मूल रूप में उनकी अपनी जनता तक न पहुँचने देने के षड्यन्त्रा का भंडाफोड़ करना ज़रूरी जान पड़ता है। ‘योग्यता का अवसर या अवसर की योग्यता’ के अन्तर्गत योग्यता के नाम पर श्रम-दोहन के छद्म-पाश पर चर्चा की गयी है। एक ख़ास वर्ग द्वारा गढ़े हुए योग्यता और अयोग्यता के पैमाने उनकी अपनी सुविधा के अनुसार निर्मित किए जाते रहे हैं। ऐसे में श्रम का अवमूल्यन तथा शोषण के बल पर परजीवी समाज का ऐशो-आराम प्रगति का प्रतिगामी चिन्ता का विषय है। यही नहीं बल्कि शोषक वर्ग की सहूलत के पैमाने पर खरा उतरना ही सबसे बड़ी योग्यता तय की गयी लगती है। संवैधानिक दायरे में योग्यता और श्रेष्ठता के सवालों पर भ्रम-धारणाओं का खुलासा करने की कोशिश की गयी है। ‘भाषाई वर्चस्ववाद का वैदिक संस्करण’ के अन्तर्गत भाषाई वर्चस्ववाद की ऐतिहासिक पड़ताल करने की कोशिश की गयी है। अल्प भाषा-भाषी लोगों की भाषाई श्रेष्ठता आम-जन की नज़र से कभी भी फलदायी और सर्वलाभकारीदलित दर्शन की वैचारिकी : 9 नहीं हो सकती। फिर ऐसा क्यों है कि एक बड़ी भाषा-भाषी जनता की भाषा को भी हीन बताया जाता रहा है। ‘स्त्रा और दलित प्रश्नों के कठघरे में हिन्दी कविता’ के अन्तर्गत हिन्दी साहित्य में दलित और स्त्रा प्रश्नों की लगातार अनदेखी पर सवाल उठाये गये हैं। ‘अम्बेडकरी मिशन के सामाजिक रूपान्तरकार : मान्वयर कांशीराम’ शीर्षक के अन्तर्गत बाबा साहेब डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर की वैचारिकी को सामाजिक परिवर्तन के लिए ज़मीनी हक़ीक़त में बदलने वाले मान्यवर कांशीराम की सामाजिक चिन्ताओं और उसके निदान के बारे में चर्चा की गयी है। ‘बुद्ध-कबीर-अम्बेडकरः वैचारिक शंकाएँ एवं समाधान’ के अन्तर्गत जाने-अनजाने फैलाई गयी कई भ्रम धारणाओं पर तर्क संगत समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है। ‘सामाजिक चुनौतियों के बरअक्स धम्म की धुरी’ के अन्तर्गत अनीश्वरवादी वैज्ञानिक धर्म को सामाजिक चुनौतियों के बरअक्स आँकने की कोशिश की गई है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में श्रमण-धम्म की पारम्परिक मान्यताओं और उसके द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक समाज के उत्थान पर प्रासंगिक चर्चा की गयी है। ‘कबीर साहित्य के सामाजिक सरोकार’ के अन्तर्गत कबीर की सामाजिक चिन्ताओं तथा उसके लिए उनके योगदान को चिन्हित करने की कोशिश की गयी है। कबीर के साहित्य को सामाजिक बदलाव की चिन्ताओं के नज़रिएसे देखने-परखने की कोशिश की गई है तथा इसमें दलित-मुक्ति के संदेशों की खोज की गयी है। ‘समान शिक्षा के ज़रिए सामाजिक न्याय’ के अन्तर्गत शिक्षा के स्तर पर व्याप्त भेद-भाव और उससे पैदा होने वाले शोषणकारी दमन-चक्र की चर्चा की गयी है। आज शिक्षा के नाम पर अशिक्षित रखने की नई तरक़ीबों को उजागर करना आवश्यक हो गया है। ‘शोषण मुक्ति का धार्मिक विकल्प’ के अन्तर्गत व्यक्ति के द्वारा उसकी धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक चुनावों के विकल्प पर चर्चा की गयी है ताकि शोषण से मुक्ति का हल ढूँढ़ा जा सके। इसके ज़रिए धार्मिक जड़ता से छूटकर मानवीय पक्ष को स्वीकार करने की वैचारिकी पर मन्तव्य रखा गया है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि दुनिया के प्रायः सभी धर्मों ने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का रास्ता अपनाया है। सामाजिक-आर्थिक शोषण का सबसे कारगर और मज़बूत हथियार धर्म रहा है। यही नहीं धार्मिक उन्माद के कारण दुनिया के बड़े-बड़े नरसंहार हुए हैं तथा एक से बढ़कर एक जघन्य कुकृत्य अंजाम दिए गये हैं।
की दासता के लिए बाध्य किया जाता रहा है। ‘दलित प्रतिरोध और कबीर की कविता’ के अन्तर्गत शोषित जनता के प्रतिरोध के स्वरों की खोज करते हुए कबीर की कविताओं और पदों में इसकी निशानदेही की गयी है। इसी प्रतिरोध के स्वर ने दलित-पीड़ित समुदाय में एकता बनाकर हिन्दू पाखंडवाद को ललकारने की ऊर्जा दी है। कबीर की कविताओं के साथ किए जाने वाले भ्रामक अर्थों के धोखे द्वारा आम-जन से उसके जुड़ाव को काटने की साजिश की पहचान की गयी है। ‘बहुजन का सर्वनाम’ के अन्तर्गत शब्दों के घालमेल द्वारा एक ऐतिहासिक दर्शन को अवपथित करने के उपक्रम को उजागर किया गया है। शोषण और शोषक के बीच के अन्तर को पहचानते हुए उन हथियारों की पहचान ज़रूरी है जो एक सांस्कृतिक आक्रमण का साधन बनकर शोषण की परम्परा को ज़बरन चलवाते हैं। ‘निर्गुण संतों की दलित वैचारिकी’ के अन्तर्गत उस सन्त-परम्परा की चर्चा है जिसके अनीश्वरवादी तथा क्रान्तिकारी मानवीय सरोकारों के स्वरों को दबाने की यहूदियों, ईसाइयों, इस्लाम एवं हिन्दुओं के अन्तर्धार्मिक युद्ध को क्रूसेड, जेहाद, धर्मयुद्ध या अन्य कोई भी नाम दें, यह मनुष्य और मनुष्य के बीच नफ़रत फैलाने का ही दूसरा नाम है। इन बिन्दुओं पर भारतीय संदर्भ में विचार करते समय हिन्दू धर्म के पुरोहितवाद और ब्राह्मणवाद का ज़िक्र किया गया है। ईश्वर और धर्म के नाम पर मनुष्यता की हत्या को रोकने के सम्भव उपायों पर चर्चा करते हुए मानवीय स्वतन्त्राता को सर्वोपरि रखा गया है। संग्रहीत आलेखों के माध्यम से मानव-मूल्यों की सार्वभौम स्वीकृति के आग्रह10 : दलित दर्शन की वैचारिकी के साथ अमन और शान्ति के लिए शोषण-मुक्ति की आवाज़ को उन लोगों तक पहुँचाने की कोशिश की गयी है जिनके विचार सामाजिक परिवर्तन के लिए निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं।
लखनऊं
मेरे अभिन्न मित्र तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कलाकार डा॰ लाल रत्नाकर ने अपनी तूलिका से केवल इस पुस्तक में ही रंग नहीं भरे हैं बल्कि मेरे सामाजिक सरोकारों पर अपनी सूक्ष्म संवेदनशील सहृदयता से विचारों का साझा भी किया है। पुस्तक की पाण्डुलिपि को पढ़कर सुधार हेतु सुझाव देने वालों में हमारे परमप्रिय मित्र और अग्रज भाई मूलचन्द सोनकर तथा भाई बसन्त जी का मुझ पर विशेष अनुग्रह रहा है। हमारे शुभकांक्षी मित्रा रामदेव सिंह, भाई दिनेश चन्द्र विशेष रूप से हमारा हौसला बढ़ाते रहे हैं। रामू सिद्धार्थ, रामजी यादव, डॉ॰ राम विलास भारती, मनोज कुमार मंजुल तथा हमारे साहित्यिक मित्रों का विशेष सहयोग तथा सदभावना रही है जिसके कारण पुस्तक के प्रकाशन का विचार बन पाया है। पुस्तक की शुरुआती परिकल्पना से लेकर अन्तिम रूप देने तक जिस एक महानुभाव ने अपना पूरा सहयोग दिया है वे हैं हमारे परम सुहृद श्री संतोष कुमार सिंह। उनकी मेहनत और लगन के कारण ही इसकी पाण्डुलिपि की टाइपिंग से लेकर मुद्रण तक का सफ़र पूरा हुआ है। मेरी पुत्रा तुल्य बीनू कबीर, बेटी डा॰ रचना, रजनीगन्धा तथा विप्लवी प्रकाशन की कर्ता-धर्ता एवं प्रोप्राइटर श्रीमती दुर्गावती विप्लवी का विमर्श एवं सुझाव इस वैचारिकी में एक सम्बल रहा है। मैं इन सभी महानुभावों का हृदय से आभारी हूँ जिनके कारण मेरे विचारों की अभिव्यक्ति इस पुस्तक के रूप सम्भव हो पाई है। पुस्तक आपके हाथों सौंपते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है। आपके सुझावों का हमेशा स्वागत करूँगा।
बी॰आर॰विप्लवी

अध्याय :1 : "बेचत फिरे कपूर" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : विडियो
अध्याय 2 : मिथकीय धुंध में छिपा इतिहास का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : विडियो - दो
अध्याय 3 : "दलित प्रतिरोध और कबीर की कविता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय 3 : "दलित प्रतिरोध और कबीर की कविता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय 4 : "बहुजन का सर्वनाम" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : सम्पूर्ण
अध्याय 5 : "निर्गुण संतों की दलित वैचारिकी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय 5 : "निर्गुण संतों की दलित वैचारिकी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय 5 : "निर्गुण संतों की दलित वैचारिकी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय 5 : "निर्गुण संतों की दलित वैचारिकी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : चार
अध्याय : 6 : "योग्यता का अवसर या अवसर की योग्यता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 6 : "योग्यता का अवसर या अवसर की योग्यता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो (पूर्ण)
अध्याय : 7 : "भाषाई वर्चस्व बाद का वैदिक संस्करण" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 7 : "भाषाई वर्चस्व बाद का वैदिक संस्करण" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 7 : "भाषाई वर्चस्व बाद का वैदिक संस्करण" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय : 8 : "अंबेडकरी मिशन का सामाजिक रूपांतरकार : मान्यवर कांशी राम" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 8 : "स्त्री और दलित प्रश्नों के कटघरे में हिन्दी कविता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 8 : "स्त्री और दलित प्रश्नों के कटघरे में हिन्दी कविता" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय : 9 : "अंबेडकरी मिशन का सामाजिक रूपांतरकार : मान्यवर कांशी राम" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 9 : "अंबेडकरी मिशन का सामाजिक रूपांतरकार : मान्यवर कांशी राम" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 9 : "अंबेडकरी मिशन का सामाजिक रूपांतरकार : मान्यवर कांशी राम" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय : 10 : "बुद्ध-कबीर-अंबेडकर - परंपरा वैचारिकी : शंकाएं एवं समाधान" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 10 : "बुद्ध-कबीर-अंबेडकर - परंपरा वैचारिकी : शंकाएं एवं समाधान" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 10 : "बुद्ध-कबीर-अंबेडकर - परंपरा वैचारिकी : शंकाएं एवं समाधान" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : तीन
अध्याय : 11 : "सामाजिक चुनौतियों के बरअक्स धम्म की धुरी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 11 : "सामाजिक चुनौतियों के बरअक्स धम्म की धुरी" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 12 : "कबीर - साहित्य के सामाजिक सरोकार" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 12 : "कबीर - साहित्य के सामाजिक सरोकार" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
अध्याय : 13 : "समान शिक्षा के ज़रिए सामाजिक न्याय" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक
अध्याय : 13 : "समान शिक्षा के ज़रिए सामाजिक न्याय" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : दो
दलित दर्शन की वैचारिकी : बी आर विप्लवी के अध्याय : 14 : "शोषण मुक्ति का धार्मिक विकल्प" का पाठ : डॉ लाल रत्नाकर द्वारा : वीडियो : एक


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...