शुक्रवार, 14 मई 2021

एक बार भी "श्मशान" की बात नहीं कर रहा है ?


                                                          (कार्टून बीबीसी से साभार) 

बीबीसी के कार्टूनिस्ट कीर्तीश ने इसमें सब कुछ तो कह दिया है, लेकिन दिक्कत यह है कि पिछले 7 सालों से कलाओं के विविध रूपों पर जितना बड़ा हमला हुआ है उसकी वजह से कार्टून में भी अब भक्ति ही दिखती है। शायद भक्तों को यह समझ में नहीं आ रहा हो कि जो व्यक्ति देश की संपदा को उपहार के रूप में भिक्षा स्वरूप किसानों को ₹2000 उनके खातों में ट्रांसफर करके किसान सम्मान निधि की बात कर रहा है। अब वह एक बार भी "श्मशान" की बात नहीं कर रहा है, दुश्मन को अदृश्य बता रहा है और जबकि सबको यह दिख रहा है कि असली दुश्मन कौन है! और वही ऐसा बोल रहा है।

सरकार में आने से पहले जिस तरह से लच्छेदार भाषणों से जनता को गुमराह कर रहा था उस समय भी मैं यही कहा करता था कि यह लोग देश संभालने की सामर्थ्य नहीं रखते। बल्कि देश को बर्बाद करने के लिए अवाम को गुमराह किया जा रहा है। लेकिन हमारे घरों में भी बैठे हुए लोग इस तरह से इन जाहीलों की तरह उसकी बातों पर भरोसा कर रहे थे ? करते भी क्यों न पंद्रह पंद्रह लाख उनके खतों में आ रहे थे ! जैसे उसके पास जादू की छड़ी है और वह उस जादुई छड़ी से सारी समस्याओं को छू कर के फुर्र कर देगा।

आपदा में अवसर एक ऐसा मुहावरा है जिसने इस पूरी सरकार की सोच और चरित्र को उजागर कर दिया, नफरत के नारे गढ़ गढ़ करके इन्होंने पूरी आवाम में जहर बो दिया, वही जहर आज मन मस्तिष्क में समा गया है। जिस प्रकृति को शुद्ध और अशुद्ध को ठीक कर उसमें जीवन भरने की जो क्षमता थी ,उसे भी इन्होंने ऐसे बदलने की कोशिश की जिससे एक छोटे से उदाहरण से आपको समझाया जा सकता है। मैंने इस बीच देश में हजारों विद्यालय महाविद्यालय और विश्वविद्यालय देखें उनके भीतर जो शिक्षा की सामग्री थी उसको चूस करके नई शिक्षा सामग्री भरने की कोशिश की गई। और वह शिक्षा सामग्री क्या होगी इसका कोई खुलासा नहीं किया गया। उल्टे उन संस्थानों की दीवारों को लुभावने लुभावने नारों से रंगवा दिया गया, अब यह रंग रोगन किस काम के लिए हुआ है। इसका खुलासा कौन करेगा ? कौन इनकी इस मानसिकता को समझेगा कि जो गैस तीन साढे ₹300 में बिक रही थी, उस गैस की कीमत हजार रुपए पहुंचा दिया। और उज्जवला योजना का नारा दे दिया। जो पेट्रोल ₹65 से ऊपर जाने पर यह कनस्तर और बोतल लेकर सड़क पर निकल आते थे आज वह 100 के पार हो गया है। खाने पीने की चीजें आसमान छू रही हैं। किसान सड़कों पर बैठा हुआ है जिसको यह भगवान बना करके उसकी कीमत दुगनी करने वाले थे।

मैंने कल भी कहा था कि जो तकनीकी रूप से व्यापार की कूटनीति जानता है उसने राष्ट्र भक्त होने के नाम पर राष्ट्र को बर्बाद करके रख दिया है। और यहां तक की इन राष्ट्र भक्तों की नियत आपकी जेब ही नहीं आपकी जमीर तक पहुंच गई है। मुझे याद है बचपन में स्कूल के दौर में एक हलवाई का बेटा हम लोगों का साथी हुआ करता था, साथ ही पढ़ता था लेकिन उसका मन पढ़ने में कभी नहीं लगता था। क्योंकि उसके मोटे बाप की जो मिठाई के दुकान थी, उस पर उसे गुमान था। कि हमें पढ़ने लिखने से क्या काम ?

पिछले दिनों कुछ लोगों की डिग्रियों को लेकर बहुत सारी हाय तौबा मची हुई थी। मीडिया भी इनकी नकली नकली डिग्रियां उजागर कर रहा था, पर कमाल की बात इन्होंने अपने पहले ही मंत्रिमंडल में एक अपढ महिला को हायर एजुकेशन का मंत्री बना दिया था। अब यहीं से आप इनकी सोच का अंदाजा लगा सकते हैं। कि इनकी शिक्षा के प्रति और विज्ञान के प्रति क्या सोच और समझ होगी। उसी समय की बात है शिक्षा के क्षेत्र में जितने भी तरह के प्रोग्राम चल रहे थे। रिसर्च और वैज्ञानिक अध्ययन से संबंधित उन पर रोक लगा कर के न जाने किस नई शिक्षा की बात की जा रही थी। धीरे धीरे विश्वविद्यालयों को गुरुकुल बनाने पर उतर आए थे। इनके गोबर भक्त गुंडे जे एन यू जैसे संस्थानों पर हमला कर रहे थे वहां के विद्यार्थियों को देशद्रोही साबित करने पर लगे हुए थे क्या प्रधान सेवक जी इन सब बातों से अनभिज्ञ थे ? और इस बीच इन के जितने भी शिक्षा मंत्री आए अपढ से अज्ञान की तरफ ही बढ़ते गए। इनके कुल (संघ) के ही एक हमारे साथी बार-बार कहा करते हैं कि इन्हे ज्ञान नहीं होता यह रट्टू तोते होते हैं। इन्हें जितना पढ़ा दिया गया है बस उसी को बार-बार यह रटते रहते हैं। यानी इनका नागपुर जो कहता है उसी को ही यह अपना पाठ्यक्रम मानते हैं और उसी पर चलते हैं।

आइए हम झूठ के महाअभियान की ओर चलते हैं जिनको इन्होंने गढकर राष्ट्र गौरव बढ़ाने का प्रयास किया है। अब आप इस कार्टून पर चलिए और जो मैसेज दिया गया है कि दुश्मन भले नहीं दिखाई दे रहा हो लेकिन जिस पर हमला हो रहा है उसको तो देखिए? यदि वह दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास में बैठकर न दिखाई दे रहा हो तो किसी भी नदी के किनारे या दिल्ली के किसी "श्मशानघाट" पर चले जाइए, और वैसे ही वहां धूनी रमा लीजिए जैसे 2019 के चुनाव परिणाम के समय आप किसी कंदरा में जाकर बैठ गए थे। निश्चित रूप से आपकी अंधभक्ति, अंधविश्वास, चमत्कार और अखंड पाखंड टीम इस काम के लिए लग गई होगी कि कैसे इस अवस्था में पहुंचे थे इसको नेहरू या विपक्ष पर थोप कर। फिर से विश्वास दिलाया जाए कि बगैर आपके यह देश नहीं चलेगा, जिस अमरत्व की दवा से आप उम्मीद करते हैं कि आप इतनी बड़ी महामारी में भी सुरक्षित रहेंगे ? उसकी कुछ खुराक आम आदमी तक पहुंचा दीजिए ? दुश्मन की नजर से जिसे उसे बचाया जा सके जिनसे कल आप ताली थाली और घंटे घड़ियाल बजवा रहे थे, उन्हें भी अपने अमरत्व की कुछ बूंदे भिजवाईए ना।

हम अब भी जानते हैं, आप जिस पद पर विराजमान हो ! उसके लायक ना आप पहले थे ? ना आज हैं ! लेकिन बहुरूपीये के भेष में जिसको आप ने खुद कहा है कि मौजूदा समय का दुश्मन भी बहुरूपीया के रूप में भेश बदल बदल कर आ रहा है ? सचमुच क्या वह यह सब आप से ही सीखा है ? या उसको सिखाने वाला कोई और है जो आपका अदृश्य दुश्मन से मिला हुआ है ? यहाँ हमें हमारे बहादुर सैनिकों की याद आती है ? यद् आती है 2002 के गुजरात के नरसंहार की और यद् आती है बाबरी विध्वंश की ? हज़ारों की संख्या में मारे गए दलित पिछड़े मुस्लिम नवजवानों और महिलाओ की ? आपके मोब्लिंंचिंग प्रोग्राम की ? क्योंकि इन्हे आपने रोकने का नहीं बढ़ने का पूरा प्रयास किया था आपकी सोसल मिडिया टीम ने ?

अक्सर कहा जाता है कि जो व्यक्ति जिस माहौल में रहता है,उसी तरह की भाषा बोलता है। मेरे ख्याल से आपकी भाषा में आपका परिवेश निरंतर प्रभावी हो गया है। बहुरूपिया शब्द हो सकता है गलती से निकल आया हो जैसे देश की आबादी के बारे में आप का पिछले दिनों का बयान काफी लोगों के बीच चर्चा का विषय बना था। उसी तरह ज्ञान और अज्ञान का समंदर आपको निरंतर इस बात के लिए झकझोर रहा होगा कि जो कुछ आप कर रहे हैं वह राष्ट्रहित में नहीं है। राष्ट्र के लोगों के हित में नहीं है। आपके कारपोरेट अस्पताल आयुष्मान योजना,आपदा में अवसर, क्रूरता में करुणा, सबका साथ सबका विकास, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, किसानों की दुगनी आमदनी, बेरोजगारों को प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियां, नोटबंदी, जीएसटी, लाकडाउन, पुलवामा और कश्मीर चीन और पाकिस्तान, अमेरिका और इजरायल सब की पोल खोल कर के रख दिया है।

आपके दो प्रमुख मित्र जिन्हें आपने इस समय देश की अधिकांश संपदा दे चुके हैं हम आपके छोटे मोटे रिश्तेदारों की बात नहीं करते क्योंकि आपने अपने प्रचार में इस तरह से लोगों को दीवाना बना रखा है कि उसके पास ना तो बेटा है ना तो बेटी है किसके लिए बेईमानी करेगा। आपके मित्र व्यापारीगण आपके परिवार और जिनके पास बेटी बेटा हैं उनसे भी ज्यादा करीबी हैं। क्योंकि अन्य सरकारों में यह व्यापारी थे और इन पर टैक्स चोरी आदि के तमाम मामले लंबित थे जिसको इन्होंने आपका सहयोग कर और सहयोग पा करके अच्छी तरह अपने को मजबूत करने में लगाया है। गलती से नहीं सही सही से आपने राष्ट्र की संपदा और राष्ट्र की फायदा पहुंचाने वाली तमाम सरकारी संपत्तियों को इन्ही मित्रों को औने पौने भाव में घुमाफिराकर उन्हें देने में कोई कोर कसर की है क्या ? अगर इन सब की समीक्षा जबी भी संविधान समझने वाले और पढ़ी-लिखी जनता करेगी तो निश्चित तौर पर आपकी इतने कम समय में इतनी बड़ी धांधली भ्रष्टाचार अराजकता और देशद्रोह तक का मामला बनता हुआ नजर आता है उसपर गंभीरता से न्यायालय भी जरूर निर्णय लेंगे ?

मगर हमारे देश की भक्त जनता को इन सब बातों पर विमर्श करने के लिए आपने छोड़ा ही नहीं है। क्योंकि उन्हें आपने धर्म की अफीम पिलाई हुयी है, उन्हें आपने हिंदू और मुसलमान का भेद समझाया है। जिस भेद को धीरे धीरे हमारे देश में कम किया जा रहा था। आपने उसको बढाया है। आपने 1-1 जाति को बांटकर और पकड़कर उसको फुशलाया है? उसको उसके बड़े आंदोलनों से काटा है, यही एक प्रचारक के रूप में आपकी क्षमता की उपलब्धि रही है। जिसमें झूठ और नकारेपन का, अज्ञानता का समावेश कूट-कूट करके आपको कराया गया है, झूठ को इस तरह से बोलना है कि उसको लोग सच मान ले? चीजों को इस तरह से हड़पना है कि लोग उसे आपका अधिकार समझ ले?

माननीय वित्त मंत्री जब इस बार का बजट प्रस्तुत कर रही थी तो उन्होंने बजट में जो सबसे महत्वपूर्ण चीज दी थी वह था "विनिवेश" कितने लोग भी विनिवेश समझते हैं प्रभुवर ! आपकी इस चालाकी का असर गली - गली में सब्जी बेचने वाले तक पर पड़ा है। आपकी इस चालाकी का असर और न जाने कितने कितने लोगों पर पड़ा है। जिसकी वजह से आज देश त्राहिमाम कर रहा है। एक भी सरकारी अस्पताल को आपने ऊंच्चीकृत नहीं किया होगा ? बल्कि, उसे बेचने और रोकने का काम किया होगा। यही था आपका नया भारत बनाने का सपना ? आज नया भारत आत्मनिर्भर होकर श्मसान घाट तक जा रहा है। और कई घरों तक तो श्मशान घाट चल करके आ जा रहा है।

आपके विकास का यह मॉडल विनाश की जिस लीला को शुरू किया है इसके पीछे आपकी मानसिकता का एहसास होता है। आज इस महामारी पर दुनिया भर में काम हो रहा है, आपके मित्र देश जहां प्रचार करने गए थे वहां पर मास्क हटा दिया गया है। आप की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है। आप उससे भी तो कुछ सीखते आप भारत को अमेरिका बनाने चले थे ? क्या आपने पढ़ा था अमेरिका कैसे बनता है या बना है ? और अमेरिका बनाने वाले लोग कौन हैं ? नहीं वहां पर व्यापार और आविष्कार दोनों साथ साथ चलते हैं। जुमले नहीं चलते ? वहां केवल व्यापार का मतलब अपनी व्यापारियों को देश सौंप देना नहीं होता ? पिछले दिनों जिस विचारधारा के राष्ट्रपति को जिताने के लिए आप अमेरिका गए थे उसी आपके राष्ट्रपति ने जाते जाते जो जहर दिया है जब आप उसे बाइब्रेन्ट गुजरात दिखने लाये थे। उसे अब आपने गांव गांव तक पहुंचा दिया है। यही लेने गए थे आप मोदी हावडी ट्रंप क्या खेल कर रहे थे भारत में क्या ऐसी स्थितियां नहीं थी। जिनकी वजह से आप इस देश के शिक्षा संस्थानों को इस देश के प्रतिष्ठानों को विकसित करते मान्यवर ! दुनिया भर में विकास के जो मानदंड हैं उन्होंने आपको चकाचौंध तो किया ?
लेकिन आप पागलपन के दंश से निकल नहीं पाए ?

क्योंकि जरूरी नहीं है कि सभी लोग हिंदू बनकर के हिंदू धर्म की विकृतियों को ओढ़कर आम आवाम अंँधा बना रहे और थोड़े से लोग आनंद लेते रहे ? अगर इन्ही के कारनामों को जन जन तक ठीक से फैलाए होते आप तो शायद आपको एक अलग तरह का भारत मिलता। जिसका पूरा मौका देश ने आपको दिया था। अगर आपको यह गलतफहमी है कि आपने अपने उस कथित धर्मवाद से लिया था तो दोनों तरह से आपकी जिम्मेदारी बनती है कि यह देश सुरक्षित रहता?

क्या सचमुच यह कार्टून यह नहीं कह रहा है कि आपको सत्य नहीं दिखाई दे रहा है ? सत्य देखिए ! देश कराह रहा है और यहां पर जीवन रक्षक दवाओं, ऑक्सीजन, विस्तर, अस्पताल नहीं है जिसकी वजह से जनमानस को अपना जीवन बचाने की जो हालत बनकर खड़ी है ? यह महामारी निक्कम्मी सरकार की अनुभवहीनता और संघी मानसिकता की वजह से है जो पूंजीवादी विचारों की है और समाजवादी सोच के पतन की वजह से आ गई है जो बहुत भयावह है।

इसीलिए जरुरी है की यह देश और लोकतंत्र समाजवादी समतामूलक और पाखण्ड मुक्त नीतियों से चलेगा जिसमें सबका विकास सन्निहित होगा।

डॉ. लाल रत्नाकर

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