महिषासुर (एक बहुजन नायक )

महिषासुर ; एक बहुजन नायक की यह कथा श्री महेंद्र यादव की फेसबुक वाल से उद्धृत है जिसका लिंक यह है -https://www.facebook.com/mahendra.yadav.399

लोकोपकारी और बेहद लोकप्रिय राजा महिषासुर बहुत पराक्रमी था। वह कभी किसी से नहीं हारा।‌‌‌‌ जो फर्जी लोग खुद को देवी देवता कहलाते हुए महिषासुर से लड़ने आए, सबको उसने बंदी बनाया और दंडस्वरूप एक दूसरे को पीटने का हुकुम दिया था।‌

इस तरह सारे फर्जी लड़ाके, वेश्याएं एक दूसरे का जीवन खत्म कर बैठे थे।

जैसे जैसे ये भ्रष्ट और पतित लोग मरते जाते थे, उन्हें नदी में फेंक दिया जाता था। इस परंपरा को कुछ रूप बदलकर आज भी निभाते हैं, और मूर्तियां नदी में फेंकी जाती हैं।

महिषासुर पर क्रूर होने का आरोप काफी हद तक सही है।

दरअसल, समाज का एक कामचोर तबका ऐसा था जो किसी तरह का उत्पादक काम करने को तैयार नहीं था। ये लोग पूरे कपड़े भी नहीं पहनते थे और नंगे-अधनंगे रहते थे। अक्सर ये लोग अपने घर परिवार की महिलाओं-बच्चियों, बेटियों बहनों का यौन शोषण करते थे। ऐसे लोगों के साथ महिषासुर बहुत क्रूरता से पेश आता था।

इनमें से अनेक की चमड़ी इसलिए भी उधेड़ी गई और सिर मूंडकर सिर पर पुराने जूते-चप्पलों से भरी टोकरी लदवाकर बाजार में घुमाया गया क्योंकि ये अपने को स्वर्ग से आया देवता बताते थे। अपनी मातृभाषा संस्कृत बताते थे जबकि संस्कृत का ये एक भी वाक्य नहीं बोल पाते थे।

किसी भी युद्ध या षड्यंत्र में जननायक महिषासुर के मारे जाने की कहानी ही सिरे से अतार्किक‌ और झूठी है।

सारे विरोधी जब ताकतवर थे तब महिषासुर का कुछ न बिगाड़ पाए थे तो पराजित और निष्कासित अवस्था में तो उन आलसियों के बस का कुछ था ही नहीं।

हमेशा की तरह सत्ता की निकटता पाने के लिए इन कामचोरों ने अपनी बहनों बेटियों के सहारे राजा की निकटता हासिल करने की कोशिश की लेकिन महिषासुर इस मामले में बेहद न्यायपूर्ण था।

उसने कामचोरों की बहनों और बेटियों का शोषण करने से इन्कार कर दिया। 

हालांकि, इन महिलाओं में से कई ऐसी भी निकलीं जिन्होंने महिषासुर के खिलाफ साजिश में साथ दिया और इस बात पर गौर नहीं किया कि महिषासुर वास्तव में उनका हितैषी ही था।

इन लोगों में से ज्यादातर नि: संतान होते थे क्योंकि नपुंसकता भी इनमें व्याप्त थी। इसी आत्मविश्वास हीनता और  कुंठा के कारण ये लोग अक्सर छोटी बच्चियों को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते थे। इसलिए भी ये महिषासुर के दंड के भागी होते थे।

इनकी नारियों को संतानोत्पत्ति के लिए अक्सर परपुरुषों से संबंध बनाने पड़ते थे लेकिन ये लोग कहानियां गढ़ देते थे कि खीर खाने से, फल खाने से, पसीने से और मल आदि से संतान पैदा हुई। इस अंधविश्वास के कारण एक समय तो महिषासुर ने सबको खुली छूट दे दी थी कि कोई भी ऐसी मनगढ़ंत कहानियां सुनाता मिले तो उसे तुरंत जूते मारे जाएं।

महिषासुर का जोर जनता में वैज्ञानिक चेतना जागृत करने पर था और इस बात से कई षडयंत्रकारी उसके खिलाफ रहते थे।

#वैज्ञानिक चेतना के प्रचारक #महिषासुर के राज में कुछ लोग लगातार अंधविश्वास को बढ़ावा देते थे और महिलाओं को दोयम दर्जे का समझते थे।

महिषासुर के राज में कुछ नंग-धड़ंग फिरने वाले लोगों में पति के मर जाने पर पत्नी को उसकी चिता में जिंदा जलाने का भी चलन था क्योंकि इन्हें पता था कि विधवा का घर में कितना शोषण होता है। कालांतर में इनके वंशजों ने ये प्रचारित करने का कुकर्म किया कि सती प्रथा हर समाज में चलती थी।

महिषासुर ने विधवा विवाह का चलन अपनाने का इनको सुझाव दिया, लेकिन इनकी महिलाओं ने ही इस सुझाव को नकार दिया। 

कड़े दंड का प्रावधान करने पर भी महिषासुर सती प्रथा पर रोक नहीं लगा पाया। इसे उसकी असफलता भी कहा जा सकता है। हालांकि एक छोटे तबके को छोड़कर, बाकी किसी में सती प्रथा नहीं थी। 

महिषासुर के काल में #छोले_ओझा नाम का आदमी सती प्रथा का बड़ा समर्थक था। कई विधवाओं को जिंदा जलवाने में उसकी भूमिका थी। ऐसी घटनाएं सामने आने पर महिषासुर ने उन महिलाओं के परिजनों को तो दंड दिया ही, पर सबसे कड़ा दण्ड छोले ओझा को दिया।

छोले ने एक‌ महिला को जलवाया लेकिन घटना के तुरंत बाद वह गिरफ्तार कर लिया गया। छोले ने राजा के सामने सती होने को पुण्य से जोड़ कर बताया और तभी खबर आई कि छोले की पत्नी की मौत हो गई है। महिषासुर ने छोले ओझा से कहा कि अब तुम भी पत्नी की चिता में जलकर पुण्य कमाओ। छोले जिंदा जला दिया गया।

#महिषासुर के लाख चाहने पर भी कुछ परिवारों में बच्चियों से वेश्यावृत्ति कराने पर भी शत- प्रतिशत पाबंदी नहीं लग पाई। दबे छिपे एक तबका इस कुप्रथा को अपनाए रहा।

मंदिरों के नाम पर कामचोरी पर रोक थी, लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने घरों और प्रांगणों में मंदिर बना लेते थे। इनका मकसद मंदिर में आने वाली महिलाओं का शोषण करना और चढ़ावा जुटाना था। 

महिषासुर का कहना था कि मंदिर के पुजारी को भी आजीविका के लिए मेहनत मजदूरी करनी होगी।

ऐसा ही एक आदमी बिल्व पंडित उर्फ #बेलापंडित था जिसके खिलाफ एक नाबालिग लड़की ने बलात्कार की शिकायत की थी।

 महिषासुर ने बेला पंडित का यौनांग विच्छेदन कराया था और साधारण आबादी से दूर हिजड़ों के साथ रहने का आदेश दिया था। बेला का बाकी जीवन नाचने गाने में ही व्यतीत हुआ। उसके परिजन तक उससे नफरत करते थे।

रंभ और करंभ नाम के दो प्रतापी और उत्कृष्ट वैज्ञानिक भाई थे। वो प्राकृतिक संसाधनों के सहारे अपने राज्य का विकास करना चाहते थे। 

करंभ की रुचि वैज्ञानिक खोजों में थी और रंभ राजकाज में निपुण था और बेहद जनहितैषी था।

करंभ एक बार जब गहन वैज्ञानिक अनुसंधान में लीन था, तब वैज्ञानिक सोच के विरोधी और नकारात्मक सोच के लोगों ने विदेशी घुसपैटियों के साथ मिलकर उसके अनुसंधान में बाधा पहुंचाने की साजिश की। 

करंभ एक ऐसा वैज्ञानिक उपकरण बनाने जा रहा था जिसकी सहायता से दुश्मनों पर दूर से नजर रखी जा सके। मौका पाकर, कुछ दुष्ट लोगों ने करंभ की प्रयोगशाला में विस्फोट कर दिया जिससे करंभ की मृत्यु हो गई। 

करंभ से रंभ बहुत स्नेह करता था। उसे बहुत दुख हुआ। रंभ के पुत्र महिषासुर ने दुनिया को आतंकवादियों से मुक्त कराने का संकल्प लिया। पशुपालन और खेती को उसने अर्थव्यवस्था के विकास का मुख्य आधार बनाया था। दुग्ध उत्पादन के लिए भैंस-पालन को उसने बहुत प्रोत्साहित किया। उसने अपने राज्य का राजकीय पशु भैंस को घोषित किया।

महिषी अर्थात रानी की संतान होने के नाते उसे महिषासुर कहा जाता था, लेकिन महिष का अर्थ भैंस भी होता है और भैंस ही उसका राजकीय पशु था, इसलिए कालांतर में विदेशी घुसपैटियों और विरोधियों ने महिषासुर को पुरुष और भैंस की संतान बताना शुरू कर दिया और चित्रों में उसका सिर भैंस की तरह और शेष धड़ इंसान की तरह बताने लगे।

रंभ ने अपने पुत्र महिषासुर को बचपन से ही देश और समाज के लिए खतरा बन सकने वाले दुष्ट लोगों और विदेशी घुसपैटियों की पहचान करने की शिक्षा दी और उसे समझाया कि उसके प्रतिभाशाली वैज्ञानिक चाचा करंभ की किस तरह से दुष्टों ने धोखे से हत्या की थी।

रंभ ने अपने पुत्र को आगाह किया कि एक तबका ऐसा है जो हर नई खोज, हर नए आविष्कार से चिढ़ता है और प्रतिभा को निखरने से पहले ही खत्म करने में जुट जाता है। रंभ ने समझाया कि प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का मौका सुनिश्चित करना शासक का कर्त्तव्य है।

महिषासुर को बचपन से ही ये बात समझ आ गई थी कि समाज में एकदम निठल्ले लोगों की मौजूदगी पूरे राज्य के विनाश का कारण बन सकती है क्योंकि ऐसे लोग अनुत्पादक तो होते ही हैं, साथ ही खाली समय में पूरी तरह से केवल षडयंत्र ही करते रहते हैं। महिषासुर ने अपने पिता से वादा किया था कि वह उनकी दी हुई सीख को हमेशा याद रखेगा और उस पर अमल करेगा।

महिषासुर ने शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जगह-जगह शिक्षा केंद्र खुलवाने शुरू कर दिए। आश्रमों में केवल जातिगत आधार पर चयनित बच्चों को पढ़ाने और पढ़ाई के दौरान उनसे बेगार कराने की परंपरा पर उसने रोक लगाई और ऐसे आश्रम चलाने वाले शिक्षा माफिया को वनों में सूखी लकड़ियाँ बीनने के कार्य में लगा दिया।

हालाँकि, कुछ समय बाद इस काम पर रोक लगानी पड़ी क्योंकि ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें वनों में लकड़ियाँ बीन रहे ठरकी और पूर्व शिक्षा माफियाओं ने वनवासी लड़कियों और महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुर्व्यवहार किया।

इसके बाद ऐसे लोगों को पकड़कर शहर और गांवों की सफाई के काम में लगाया गया। कुछ नियत घंटे इन्हें एक प्रयोगशाला में व्यतीत करने का भी मौका दिया जाने लगा क्योंकि इनका दावा था कि ये मंत्रशक्ति से गौमूत्र और गोबर से कई औषधियाँ बना सकते हैं, और राज्य की सुरक्षा में काम आ सकने वाले मजबूत कवच और बंकर बना सकते हैं।

कुछ माह बाद ऐसे 17 शिक्षा माफिया के दल ने राजा महिषासुर से कहा कि उनकी गोबरीय उपलब्धियां सफलता के छोर पर ही हैं, इसलिए उन्हें कुछ अधिक समय प्रयोगशाला में देना होगा। इन लोगों ने सफाई कार्य से हटाने का अनुरोध किया।

महिषासुर ने उनका अनुरोध मान लिया। अब ये शिक्षा माफिया दिन रात अनुसंधान और तंत्र-मंत्र के नाम पर प्रयोगशाला में ही रहने लगे। काफी दिन इंतजार करने के बाद, आखिर एक दिन महिषासुर का धैर्य जवाब दे गया। उसने सबको बुला भेजा और अपने-अपने प्रयोगों के नतीजे बताने और साबित करने का आदेश दिया।

ये आदेश सुनकर गोबरभक्तों के हाथ-पैर फूल गए। वो तरह-तरह के बहाने बनाने लगे। इस पर महिषासुर अपने राज्य के कुछ उत्कृष्ट वैज्ञानिकों को साथ लेकर प्रयोगशाला पहुंच गया। वहाँ जाकर पता लगा कि न तो कोई प्रयोग हो रहा था, न तंत्र-मंत्र। सारे माफिया आराम से दिन भर पड़े रहते थे और आराम करते रहते थे।

महिषासुर के साथ गए वैज्ञानिक तो आरंभ से ही इनको कोई मौका देने के विरोध में थे। यह स्थिति देखकर वैज्ञानिकों ने महिषासुर के निर्णय पर भी सवाल उठाए और उससे कहा कि पिता रंभ के आगाह किए जाने के बावजूद आपने इन पर यकीन करने की चूक की।

महिषासुर ने अपनी गलती स्वीकार की और सभी शिक्षा माफियाओं को हथकड़ी पहनाकर अगले दिन दरबार में पेश करने का हुक्म सुनाया।

गौमूत्र और गोबर से वैज्ञानिक आविष्कार करने और औषधियाँ बनाने में असफल रहने वाले धूर्त शिक्षा माफिया को अगले दिन महिषासुर के दरबार में पेश किया गया और उनसे पूछा गया कि वे ये धोखाधड़ी के काम क्यों करते हैं।

इस पर इन शिक्षा माफिया ने अपनी गलती मानी और राजा से माफी माँगने लगे। राजा ने अन्य मंत्रियों से सलाह के बाद इन्हें माफ कर दिया। इस पर ये माफिया एक और अनुरोध करने लगे और कहने लगे कि उन्हें ‘वेद-कलंक’ जैसे अपमानजनक शब्दों से न पुकारा जाए। इन्होंने यह भी कहा कि वे लोग तपस्वी हैं और अक्सर मौन रहते हैं, इसलिए उन्हें ऋषि-मुनि कहा जाए।

यह सुनकर दरबार में आए कुछ ऋषियों ने घोर आपत्ति की और महिषासुर से कहा कि ये लोग धूर्त, कामी, पर्यावरण के शत्रु और व्यभिचारी हैं, इसलिए इन्हें ऋषि-मुनि माना जाना वास्तविक तपस्वियों और ज्ञानी जनों का अपमान होगा।

ऐसे धूर्तों का क्या किया जाए, इस पर दरबार में मंत्रणा होने लगी। महिषासुर के सांख्यिकीय सलाहकार ने आँकड़े पेश करके बताया कि इन धूर्तों, व्यभिचारों और पर्यावरण-विरोधियों की संख्या राज्य की कुल आबादी की 3 प्रतिशत है। इनसे मेल-जोल रखने वाले और इनकी कुत्सित परंपराओं का पालन करने वाले अन्य लोगों की आबादी शामिल करें तो ऐसे लोग करीब 12 प्रतिशत से अधिक नहीं हैं। इनमें से भी राज्य की प्रेरणा और किसानों की संगत के कारण 4 प्रतिशत लोग किसी न किसी उत्पादक काम में लग चुके हैं। इस तरह करीब 8 प्रतिशत लोग ही निकम्मे, और पर्यावरण के नाशक हैं।

महिषासुर ने राज्य के सभी विद्वजनों से सुझाव माँगे कि इन 8 प्रतिशत लोगों का क्या किया जाए।

संत और ऋषि-मुनि होने का फर्जी दावा करने वाले बाबा, महिषासुर के राज में मुसीबत बन चुके थे। आखिर उनसे कहा गया कि या तो वो उत्पादक कार्यों में हाथ बँटाएँ, या फिर राज्य से निकलने या कोई अपमानजनक दंड भुगतने को तैयार रहें।

इस पर उन बाबाओं ने महिषासुर से कहा कि उन्हें राज्य में शांति से रहने दिया जाए और वे बस पूजा-पाठ करते रहेंगे तथा अन्य किसी तरह के सामाजिक या राजनीतिक जीवन में दखलंदाजी नहीं करेंगे।

इस पर महिषासुर ने पूछा कि उनकी आजीविका कैसे चलेगी। वो अपने लिए भोजन-पानी का इंतजाम कहाँ से करेंगे।

इस पर बाबाओं ने कहा कि वो नगर में भिक्षा माँगकर गुजारा करेंगे। महिषासुर यह सुनते ही गुस्से में आ गया। उसने सभी बाबाओं से कहा- “मेरे राज्य में भिक्षावृत्ति से गुजारा करने की अनुमति नहीं है। हर सक्षम व्यक्ति को अपनी आजीविका उद्यम या परिश्रम से ही कमानी होगी।”

बाबाओं के लिए यही दिक्कत थी। न तो वो शारीरिक श्रम करना चाहते थे, और न ही अन्य किसी तरह का उत्पादक कार्य।

उन लोगों ने ऐसे में महिषासुर के सामने प्रस्ताव रखा-“हम आपके राज्य में धर्म की स्थापना के लिए कार्य करेंगे। लोगों का ध्यान पूजा-पाठ से हटता जा रहा है। हम उन्हें फिर से पूजा-पाठ और कर्मकांड की ओर मोड़ने का प्रयास करेंगे।”

ये सुनते ही महिषासुर उन बाबाओं को मारने के लिए दौड़ा। महिषासुर को गुस्से में अपनी ओर झपटते देख, बाबाओं की जान सूख गई। वो उसके पैरों में लोट गए और क्षमा माँगने लगे। 


जब सारे बाबा एकदम से महिषासुर के पैरों में लोट गए तो उसका क्रोध कुछ शांत हुआ तो एक घाघ बाबा ने कहा- महाराज, हम राजकाज में परामर्श देने का काम भी कर सकते हैं। हम जानते हैं कि आपको हमारी क्षमता से अधिक, हमारी नेक नीयति पर शक है, लेकिन आप चाहें तो कुछ दिन हम में से कुछ को परिवीक्षा पर रखकर देख सकते हैं।
अन्य अमात्यों ने भी इस प्रस्ताव पर सहमति जताई। आखिरकार महिषासुर ने 5 बाबाओं की एक तदर्थ समिति बना दी और उनसे एक सप्ताह के अंदर शासन और समाज को बेहतर बनाने के लिए सुझाव देने को कहा।
बाबाओं को लगा कि अब उनकी चाल सफल हो सकती है। मेहनत से बचने, और राजा की निकटता पाने का एक उत्कृष्ट अवसर उनके हाथ लगा था जिसका वे पूरा लाभ उठाना चाहते थे। हालाँकि इसमें एक अड़चन ये थी कि उनकी नियुक्ति केवल अंतरिम या तदर्थ ही थी और उन्हें अपनी योग्यता साबित करना शेष था।
ऐसे में बाबाओं ने आपस में गहन मंत्रणा की। उन्होंने कुछ ऐसे प्रस्ताव देने का निर्णय किया जिससे महिषासुर को प्रसन्न किया जा सके। उनकी समझ में यही आया कि राजकाज के लिए श्रेष्ठ उपाय सुझाने में उतना लाभ नहीं है जितना कि महिषासुर के निजी लाभ और सुख के लिए सुझाव देने में है।
कुछ बाबाओं ने राय दी कि महिषासुर को सलाह देनी चाहिए कि वो आसपास के सारे पहाड़ खुदवा डाले, जिससे उसे खनिज पदार्थ मिलेंगे। कुछ ने राय दी कि जंगलों के पेड़ों को कटवाने की सलाह दी जाए, जिन्हें बेचकर राजकोष में धन आ सकता है। एक ने राय दी कि खेती के लिए स्वदेशी तरीकों के बजाय, विदेशों से बीज मँगवाए जाएँ, और कृत्रिम खाद का इस्तेमाल किया जाए जिससे उपज बढ़ सके। एक मोटे बाबा ने कहा कि राजा को जनता पर कर बढ़ाने की सलाह देंगे तो वह प्रसन्न होगा।
सप्ताह पूरा होते ही महिषासुर ने बाबाओं की तदर्थ समिति को बुला भेजा और उनसे अपने सुझाव सबके सामने प्रस्तुत करने को कहा।
बाकी अमात्य और सलाहकार भी ये जानने को उत्सुक थे कि आखिर ये बाबा क्या सुझाव देने वाले हैं।

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बाबाओं के सरगना ने बोलना शुरू किया, “महाराज, हमारा एकमात्र उद्देश्य राज्य का और आपका कल्याण है। धूर्त, कामुक, अत्याचारी और कामचोर होने के आरोप हम पर भ्रमवश लगाए जाते रहे हैं। आपने हम पर जो यकीन किया, उस पर पूरा खरा उतरते हुए हमने कुछ उच्चकोटि के सुझाव आपके लिए तैयार किए हैं।”
महिषासुर के सामने राजकाज के कई आवश्यक मामले लंबित थे और निपटारा किए जाने की प्रतीक्षा में थे। ऐसे में बाबाओं द्वारा समय व्यर्थ किए जाने को देखते हुए महिषासुर के विश्वस्त शुंभ ने तुरंत हिदायत दी, “तुम फालतू की बकवास बंद करो। तुम्हारी असलियत हम सब जानते हैं। तुम्हारे पास कोई सुझाव हो तो तुरंत पेश करो, वरना कड़े दंड के लिए तैयार हो जाओ।”
बाबा-प्रमुख डरकर तुरंत बोलने लगा, “महाराज, हमारा पहला सुझाव आपकी प्रसन्नता और सुख-सुविधा को लेकर है। राजा की प्रसन्नता के लिए प्रजा को सब कुछ बलिदान कर देना चाहिए। हमारा सुझाव है कि ऐसा विधान बनाया जाए कि राजा अपने राज्य की किसी भी उम्र की, और किसी भी समुदाय की युवती का भोग कर सकता है। इस पर कोई कभी भी आपत्ति न करेगा, बल्कि उस युवती के परिजन सहर्ष उसे आपके आनंदार्थ प्रस्तुत करेंगे। अगर युवती अविवाहित है तो उसके पिता और भाई यह कार्य करेंगे, और अगर विवाहित भी हो तो उसके पति का कर्तव्य होगा कि वह राजा के सुख के लिए अपनी पत्नी का परित्याग कर दे।”
ऐसा कहते ही, सारे बाबागण महिषासुर की ओर आशा भरी नजरों से देखने लगे। उन्हें विश्वास था कि इस तरह के सुझाव से राजा महिषासुर बेहद प्रसन्न हो जाएँगे और उनके तदर्थ परामर्श मंडल को स्थायी नियुक्ति मिल जाएगी।
महिषासुर ने कुछ सोचते हुए पूछा, “यह सुझाव मूल रूप से किसका है?”
बाबा-प्रमुख ने बताया, “सुझाव तो महाराज मेरा ही है क्योंकि मैं तो दिन-रात आपके सुख की कामना करता हूँ, लेकिन यह भी सही है कि समिति के सारे सदस्य इस पर सहमत हुए हैं। इसका श्रेय समूची समिति को ही देना उचित होगा।”
महिषासुर ने बाबा-प्रमुख को एक ओर आने का इशारा किया और अन्य बाबाओं से कहा कि वो अन्य सुझाव पेश करें।
Contd.
तस्वीर सौजन्य-
Dr.Lal Ratnakar
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