मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन : एक विश्लेषण - पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध विहारों का विनाश : एक ऐतिहासिक विश्लेषण

 बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन: एक विश्लेषण

- डॉ ओम शंकर 
(वरिष्ठ ह्रदय रोग विशेषज्ञ हैं जो BHU में पोस्टेड है)

भारत में बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस अनेक चरणों में कई शताब्दियों तक फैला रहा, जो राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से प्रेरित था।
प्रारंभिक शत्रुता का सबसे पहला उल्लेख पुष्यमित्र शुंग (ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी) के शासनकाल में मिलता है, जहाँ दिव्यावदान ग्रंथ के अनुसार उन्होंने सांची आदि क्षेत्रों में स्तूपों को नष्ट किया और बौद्ध भिक्षुओं का वध कराया। 
हालाँकि कुछ आधुनिक इतिहासकार इन विवरणों की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाते हैं, फिर भी यह बौद्ध धर्म के प्रारंभिक राजनीतिक दमन की ओर संकेत करते हैं।
गुप्त काल (चौथी–छठी सदी ईस्वी) में ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान हुआ। बौद्ध विहारों को राजकीय संरक्षण मिलना बंद हो गया, और कई बौद्ध स्थलों को हिंदू मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया। 
सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत यात्रा के दौरान उल्लेख किया कि कई बौद्ध केंद्र जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे और कई पर हिंदू नियंत्रण स्थापित हो चुका था।
सारनाथ, नालंदा, सांची और अमरावती जैसे स्थलों पर पुरातात्त्विक खुदाई में संगठित विनाश के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं — जैसे टूटे हुए स्तूप, विकृत मूर्तियाँ, आग से जले हुए अवशेष और बौद्ध सामग्री का हिंदू स्थापत्य में पुनः उपयोग।
स्कन्द पुराण जैसे मध्यकालीन हिंदू ग्रंथों में बुद्ध को असुरों को भ्रमित करने के लिए विष्णु का अवतार बताया गया, जिससे ब्रह्मणवादी शक्तियों द्वारा बौद्ध धर्म के धार्मिक अपमान का संकेत मिलता है। 
आधुनिक इतिहासकार जैसे डी.डी. कोसांबी, आर.एस. शर्मा और रोमिला थापर ने तर्क दिया है कि बौद्ध धर्म के पतन का कारण धार्मिक-राजनीतिक शत्रुता, और आर्थिक बदलाव का संयोजन था।
इस प्रकार, 13वीं सदी तक भारत में संगठित बौद्ध धर्म का लगभग पूर्णतः लोप राजनीतिक दमन, धार्मिक उपेक्षा, आर्थिक विस्थापन, और हिंसक विध्वंस के संयुक्त प्रभावों का परिणाम था।
बौद्ध मंदिरों के विध्वंस के कारणों का थीमैटिक (विषयगत) सारांश
A. राजनीतिक कारण
पुष्यमित्र शुंग का दमन (बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान में वर्णित)।
गुप्त शासकों की ब्राह्मणवादी नीति, जिसने बौद्ध संस्थाओं को हाशिए पर डाल दिया।
भूमिदान प्रणाली के माध्यम से ब्राह्मणों को भूमि हस्तांतरित कर बौद्ध विहारों को भूमिहीन कर दिया गया।
B. धार्मिक कारण
ब्राह्मण ग्रंथों जैसे स्कन्द पुराण में बुद्ध को मायावी और असुरों को भ्रमित करने वाला अवतार बताया गया।
बौद्ध तीर्थस्थलों का हिंदू मंदिरों में पुनर्परिभाषित करना (उदाहरण: महाबोधि मंदिर, बोधगया)।
C. आर्थिक कारण
बौद्ध विहारों को दान और भूमि से प्राप्त आर्थिक सहायता का पतन। ब्राह्मणवादी मंदिर-आधारित अर्थव्यवस्था का उदय।
ब्राह्मणिक शक्तियों द्वारा बौद्ध स्थलों/विहारों/मंदिरों के विध्वंस का पुरातात्विक साक्ष्य और कालानुक्रमिक विवरण:
1. सांची (मध्य प्रदेश) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
शुंग वंश के समय (पुष्यमित्र शुंग के काल में) सांची के कई बौद्ध स्तूपों और विहारों के विध्वंस के प्रमाण।
खुदाई में स्तूप-1 के पास अनेक बिखरी और पुनर्निर्मित संरचनाएँ मिलीं, जो दर्शाती हैं कि मूल संरचना को ध्वस्त किया गया था।
कुछ स्तंभों और रेलिंगों पर कटाव के चिह्न (defacement marks) स्पष्ट पाए गए हैं।
स्रोत: "Archaeological Survey of India Reports" और "Alexander Cunningham's Sanchi Report (1854)".
2. भारहुत (मध्य प्रदेश) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
भारहुत स्तूप के भग्नावशेषों से स्पष्ट होता है कि इसे भी शुंग वंश के बाद नष्ट किया गया था।
खुदाई में टूटी हुई रेलिंगें, छिन्न-भिन्न मूर्तियाँ, और स्तूप संरचनाओं के विखंडित टुकड़े मिले।
बाद में कुछ भागों पर ब्राह्मणिक मूर्तिकला के संकेत पाए गए (हिंदू देवताओं के चित्र)।
स्रोत: Cunningham's "Bharhut Stupa Excavation Report" (1870s).
3. विद्याधर (सांची क्षेत्र) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
विद्याधर क्षेत्र में छोटे बौद्ध विहारों के भग्नावशेष पाए गए, जो दर्शाते हैं कि जानबूझकर तोड़फोड़ की गई थी।
मूर्तियों के सिर तोड़े गए और चक्र के चिह्न खंडित मिले।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Bhopal Circle Reports.
4. कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) — 1वीं सदी ईस्वी
खुदाई में बौद्ध विहारों के ऊपर ब्राह्मणिक मंदिरों के अवशेष मिले, जो दिखाते हैं कि बौद्ध ढाँचों को नष्ट कर उनके स्थान पर मंदिर बनाए गए।


कई बौद्ध मूर्तियों के चेहरे और चिह्न जानबूझकर मिटाए गए।
स्रोत: G. R. Sharma's "Excavations at Kaushambi" (1950s).
5. अमरावती (आंध्र प्रदेश) — 3वीं–4वीं सदी ईस्वी
अमरावती स्तूप के चारों ओर की रेलिंगों को तोड़कर बाद में हिंदू मंदिर निर्माण में उपयोग किया गया।
खुदाई से बौद्ध धर्म के ह्रास और ब्राह्मणिक प्रतीकों के उद्भव के संकेत मिले।
बौद्ध मूर्तिकला के कई टुकड़े जानबूझकर विखंडित पाए गए।
स्रोत: James Burgess's "Amaravati Stupa Report" (1882).
6. नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) — 4वीं सदी ईस्वी
ब्राह्मणिक पुनरुत्थान के दौरान कई बौद्ध विहारों को छोड़ दिया गया और नष्ट किया गया।
खुदाई में बौद्ध संरचनाओं के पतन और कुछ स्थानों पर हिंदू मंदिरों के अवशेष मिले।
मूर्तियों पर जानबूझकर की गई क्षति के चिह्न (deliberate defacement) मिले हैं।
स्रोत: A.H. Longhurst's "Excavations at Nagarjunakonda" (1930s).
7. उदयगिरि (मध्य प्रदेश) — गुप्त काल (4वीं–5वीं सदी ईस्वी)
उदयगिरि गुफाओं में ब्राह्मणिक शक्ति के प्रसार के बाद, पुराने बौद्ध अवशेषों पर हिंदू मूर्तियों और मंदिर स्थापत्य का अतिक्रमण।
पुरानी बौद्ध गुफाओं को ब्राह्मणिक देवताओं की मूर्तियों से भर दिया गया।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Udayagiri Excavation Notes.
8. अजंता (महाराष्ट्र) — 5वीं–6वीं सदी ईस्वी
प्रारंभिक अजंता गुफाएँ विशुद्ध बौद्ध थीं, लेकिन बाद में ब्राह्मणिक हस्तक्षेप से कई गुफाओं के प्रयोग में परिवर्तन हुआ।
कुछ बौद्ध चित्रों को जानबूझकर विकृत किया गया।
स्रोत: Walter Spink's "Ajanta: History and Development".
9. कनheri (महाराष्ट्र) — 5वीं–7वीं सदी ईस्वी
प्रारंभ में पूर्ण बौद्ध विहार रहा, लेकिन ब्राह्मणिक पुनरुत्थान के साथ कई कक्षों का अपवित्र किया जाना और प्रतीकों का विनाश प्रमाणित हुआ।
कई मूर्तियों के सिर और हथेलियाँ जानबूझकर तोड़ी गईं।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Kanheri Excavation Reports.
संदर्भ सूची (पादटिप्पणियों अथवा ग्रंथसूची हेतु)
1. दिव्यावदान (अनुवाद: ए. स्ट्रॉन्ग) — पुष्यमित्र शुंग द्वारा बौद्धों के दमन का विवरण।
2. ह्वेनसांग की यात्रा-वृत्तांत ग्रेट तांग रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन (अनुवाद: सैमुअल बील)।
3. आर.एस. शर्मा, भारत में बौद्ध धर्म का पतन।
4. डी.डी. कोसांबी, भारतीय इतिहास का अध्ययन परिचय।
5. रोमिला थापर, प्राचीन भारत: उद्गम से 1300 ईस्वी तक।
6. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के उत्खनन प्रतिवेदन (सारनाथ, नालंदा, विक्रमशिला, रत्नगिरि)।
7. कनाईलाल हाजरा, दक्षिण-पूर्व एशिया में थेरवाद बौद्ध धर्म का इतिहास।
8. स्कन्द पुराण (अनुवाद: जी.पी. भट्ट, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन)।


पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध विहारों का विनाश : एक ऐतिहासिक विश्लेषण
भारत के इतिहास में मौर्य वंश के पतन और शुंग वंश के उदय का काल एक बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक संक्रमण का प्रतीक है। मौर्य काल में बौद्ध धर्म को व्यापक राज्याश्रय प्राप्त था। अशोक जैसे सम्राट ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को एक वैश्विक आंदोलन का रूप दे दिया था। किंतु पुष्यमित्र शुंग (ई.पू. 185–149) के शासनकाल में बौद्ध धर्म को न केवल राजकीय संरक्षण से वंचित होना पड़ा, बल्कि उसे दमन और विहारों के विनाश का भी सामना करना पड़ा।
पुष्यमित्र शुंग: राजनीतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
पुष्यमित्र, जो स्वयं एक ब्राह्मण था, ने बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर सत्ता प्राप्त की। उसने वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए कई यज्ञों का आयोजन किया, जिसमें विशेष रूप से अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख मिलता है। इसका तात्पर्य था कि शासक वैदिक ब्राह्मणवादी धार्मिक आदर्शों को पुनर्स्थापित करना चाहता था। बौद्ध धर्म, जो यज्ञ और ब्राह्मण प्रभुत्व का विरोधी था, स्वाभाविक रूप से पुष्यमित्र की नीति और सोच के विरुद्ध था।
बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र का चित्रण
दिव्यावदान, एक प्रमुख बौद्ध ग्रंथ, पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का शत्रु बताता है।
इसके अनुसार, पुष्यमित्र ने बौद्ध भिक्षुओं के वध के आदेश दिए और बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया।
उसने घोषणा की थी कि जो कोई भी एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाएगा, उसे इनाम मिलेगा।
विशेष रूप से कौशाम्बी, विदिशा और मथुरा जैसे स्थानों पर बौद्ध विहारों को नुकसान पहुँचाए जाने का उल्लेख मिलता है।
उद्धरण (दिव्यावदान से):

 "पुष्यमित्र ने बौद्ध भिक्षुओं का वध कराया और उनके विहारों को नष्ट कर दिया।"
इतिहासकारों की दृष्टि:
राधाकमल मुखर्जी, के.ए. नीलकंठ शास्त्री जैसे इतिहासकार मानते हैं कि पुष्यमित्र ने निश्चित रूप से बौद्धों के प्रति असहिष्णुता दिखाई थी, किंतु व्यापक हत्याकांड या विनाश की घटनाएँ अतिरंजित भी हो सकती हैं।
रोमिला थापर जैसे आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के कारण बौद्ध धर्म के राजकीय संरक्षण में कमी आई, परंतु सामाजिक स्तर पर बौद्ध धर्म जीवित रहा।
संभवतः पुष्यमित्र ने बौद्ध संस्थाओं के विरुद्ध कुछ दमनात्मक नीतियाँ अपनाई, लेकिन स्थानीय स्तर पर बौद्ध धर्म जारी रहा।
अर्थात पुष्यमित्र का उदय एक ब्राह्मणवादी प्रतिक्रिया का संकेतक था, जो मौर्य-कालीन धम्म आधारित राज्य नीति के विपरीत था।
बौद्ध धर्म का विरोध मुख्यतः इस कारण भी था कि यह ब्राह्मणीय विशेषाधिकारों, यज्ञ परंपरा और वर्ण व्यवस्था को चुनौती देता था।
पुष्यमित्र की धार्मिक नीतियाँ एक प्रकार के सांस्कृतिक पुनरुद्धार का प्रयास थीं, जिसमें बौद्ध धर्म को पीछे धकेलना आवश्यक समझा गया।
इसके साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे क्षय भी शुरू हुआ, जो बाद के गुप्तकाल में और अधिक स्पष्ट हो गया।
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल बौद्ध धर्म के इतिहास में एक मोड़ था।
जहाँ एक ओर सत्ता संरचना में ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान हुआ, वहीं बौद्ध धर्म को राज्याश्रय से वंचित कर दिया गया।
यद्यपि संपूर्ण विनाश के प्रमाण नहीं मिलते, परंतु बौद्ध विहारों और भिक्षु समुदायों पर स्थानीय स्तर पर आक्रमण और उत्पीड़न की घटनाएँ पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की सच्चाई का हिस्सा रहीं।
बौद्ध धर्म के राजनीतिक संरक्षण के समाप्त होने ने अंततः उसे भारत की मुख्यधारा से धीरे-धीरे हटा दिया, और यही परिघटना भारतीय इतिहास के धार्मिक स्वरूप को भी गहरे रूप से प्रभावित करती है।

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