डॉ.मनराज शास्त्री

चन्द्रभूषण सिंह यादव जी की कलम से !
" आकस्मिक दुखद खबर "
सामाजिक न्याय के सजग प्रहरी और बहुजन समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक नेता का असमय चला जाना।
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डॉ. मनराज शास्त्री जी का जन्म 01 जुलाई 1941 को जौनपुर जनपद के बटाऊबीर के पास सराय गुंजा गांव में हुआ । इनका निधन वाराणसी में एक प्राइवेट अस्पताल के icu में दिनांक 16 अप्रैल 2021 को शाम 5:00 बजे हो गया। 
इनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा पास के प्राइमरी स्कूल से शुरू होकर सल्तनत बहादुर इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा के उपरांत इन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई बदलापुर डिग्री कॉलेज से करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये और वहीं से इन्होंने संस्कृत विषय में एम ए और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 
तदुपरांत यह राजकीय महाविद्यालय की सेवा में इसलिए आ गए कि विश्वविद्यालयों में उस समय भी तमाम नियुक्तियों को लेकर के काबिलियत की वजाय अन्य बहुत सारे कारण, कारण बन जाते थे। 
राजकीय महाविद्यालय से जब शाहगंज डिग्री कॉलेज के लिए प्रिंसिपल की पोस्ट विज्ञापित हुई तो उसके लिए इन्होंने विज्ञापन भरा और इनका चयन हो गया लम्बे समय तक इन्होंने गन्ना कृषक महाविद्यालय शाहगंज में प्रिंसपल के रूप में कार्य किये। 
ज्ञातव्य है कि शास्त्री जी जब विद्यार्थी थे तभी यह सामाजिक विचारधारा को लेकर के बहुत सशक्त और आने वाले दिनों में चौधरी चरण जैसे किसान नेता के संपर्क में आए और उनके सिद्धांतों को इन्होंने अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया। 
इसी समय वह श्री रामस्वरूप वर्मा के संपर्क में आए। बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा के संपर्क में आए। इन सब के संपर्क में आने की वजह से वह अर्जक संघ के प्रचारक के रूप में भी कार्य करने लगे। संस्कृत के विद्वान होने के नाते पाखंड अंधविश्वास और चमत्कार के खिलाफ तमाम शादी विवाह वज्ह अर्जक पद्धति से संपन्न कराए।
इसके साथ लंबे समय तक अखिल भारतीय यादव महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रहे और समाज के लिए बहुत बड़ा काम किया । 
सेवा निवृत्ति के उपरांत वह निरंतर शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगे रहे और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ अभियान में बढ़-चढ़कर सहयोग ही नहीं करते रहे पूरे देश में चल रहे आंदोलन में आगे बढ़कर हिस्सेदारी करते रहे।
दिनांक 16 अप्रैल 2021को एकाएक वह है करोना की चपेट से बच नहीं पाए और सायं 5:00 बजे उनका देहावसान हो गया।
विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक के रूप में शोषित और दलितों और पिछड़ों के हित की हमेशा बात करते रहे।
माननीय मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में शुरुआत कर रहे थे तो उन दिनों यह सारे लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय और शिक्षा जगत में समाजवादी आंदोलन को गति दे रहे थे जिससे माननीय मुलायम सिंह जी की विचारधारा के समर्थक होने के साथ-साथ उनके राजनीतिक आंदोलन में अनेकों तरह से सहयोग किए।
हालांकि इनके बहुत सारे साथी सपा सरकार के विभिन्न पदों पर विराजमान रहे लेकिन इन्होंने कभी भी किसी पद को हासिल करने की इच्छा जाहिर नहीं की और वह निरंतर निरपेक्ष भाव से समाजवादी आंदोलन के हिमायती बने रहे यहां तक की जब से श्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं तो उनके कामों की प्रशंसा और उसके प्रचार-प्रसार की हमेशा बात करते रहते रहे हैं, श्री अखिलेश यादव से भविष्य की राजनीति की उन्हें बहुत बड़ी उम्मीद रही है उम्मीद है कि आने वाले दिनों में उनकी उम्मीद फलीभूत होगी।
यद्यपि राजनीतिक रूप से उन्होंने लंबे समय से किसी खास दल के प्रति वह लगाव नहीं था । 
लेकिन भाजपा के प्रति उनका बहुत बड़ा प्रतिकार था और वह निरंतर इस बात से बहुजन समाज को समझाने की कोशिश करते रहते थे कि यह दल और इसका मूलभूत संगठन बहुजन समाज के विनाश का बहुत बड़ा जहर अपने अंदर पाले हुए हैं। जिसका प्रभाव दिखाई भी दे रहा है लेकिन बहुजन समाज के भक्त संप्रदाय के लोगों से निरंतर वह अपनी बात कहते रहे अंतिम समय तक यह बात मानी जब तक यह भक्तों भाजपा नहीं त्यागेंगे तब तक उनका उद्धार नहीं होना है।
- डॉ लाल रत्नाकर 
अपूरणीय क्षति।
सांस्कृतिक सरोकारों और समाज के पुरोधा डॉ. मनराज शास्त्री जी का असामयिक निधन न जाने कितनों को विस्मृत कर गया। चंद दिनों पहले की बात है वह हम लोगों के बीच में समाज के लिए जिस तरह से चिंतित थे और उनका हर पल समाज निर्माण के लिए बीत रहा था जैसा कि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी लिखा था कि थोड़े दिनों से वह जुकाम से परेशान हैं और स्वस्थ होते ही फिर से वह सक्रिय हो जाएंगे।
परसों सुबह से ही मैं यह जानने में लगा था कि वह स्वस्थ क्यों नहीं हो रहे हैं मेरी उनके पुत्र श्री राजेश जी से बात हुई और यह पता चला कि ऑक्सीजन मीटर से उनकी ऑक्सीजन की जो माप हुई है वह बहुत कम हो गई है 75/76 पर वह ऑक्सीजन सैचुरेशन आ गया है उन्हें सांस लेने की दिक्कत बढ़ती जा रही थी यह स्थिति हमने अपने son-in-law डॉ. वीरेंद्र को बताया उन्होंने कहा कि तुरंत उन्हें आईसीयू में ले जाना चाहिए।
मैंने यह बात उनके बेटे को कहा उनके नाती को कहा वह लोग शाहगंज में जितना कर सकते थे तुरंत आरंभ किए एक्सरे कराया डॉक्टर को दिखाया और अब यह नौबत आई कि उन्हें किस तरह से किसी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया जाए जिला अस्पताल में बिना कोरोनावायरस के टेस्ट के प्रवेश संभव नहीं था मैंने सुनीता हॉस्पिटल के मालिक डॉ आरपी यादव साहब से बात की उन्होंने सहर्ष उन्हें ले आने की राय दी और मैंने कहा कि आप ले करके उन्हें सुनीता अस्पताल पहुंचो, रात्रि में लगभग 10:00 बजे सुनीता हॉस्पिटल पहुंचे यह सारी घटना 14 अप्रैल के रात्रि की है। सुनीता हॉस्पिटल में उन्हें जो सुविधाएं दी जा सकती थी दी गई डॉ साहब ने आक्सीजन इत्यादि की व्यवस्था की और इस पूरी प्रक्रिया में मैंने अपने मित्र और मुंबई में अपने व्यापार में संलग्न भाई श्री अजय यादव जी जो आज ही गांव आ गए थे मैंने उनसे भी डॉ साहब के इलाज में सहयोग करने की अपील की जिसको उन्होंने प्राथमिकता पर लेकर अपना दायित्व समझा और जितनी कोशिश हो सकती थी निरन्तर इतनी कोशिश करके यह निरंतर प्रयास होता रहा कि कैसे उनको बेहतर से बेहतर इलाज दिलाया जा सके। जिसमें वह बीएचयू की मदद के लिए डॉ विनीत को लगाए।
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था मुझे भी बच्चे वापस गाजियाबाद ला रहे थे और मैं रास्ते भर निरंतर प्रयास करता रहा कि किस तरह से डॉ साहब से बातचीत हो सके क्योंकि कई दिनों से उनका फोन बंद मिल रहा था। नीरज के फोन से मैंने बात की, तब भी वह कहते रहे कि थोड़ा आराम हो रहा है।
जबकि उन्हें जरूरत थी आईसीयू की जो शाहगंज में उपलब्ध नहीं था और जौनपुर में भी उसकी समुचित व्यवस्था नहीं थी फिर भी जितना हो सकता था वह किया गया उनके अनुज मित्र श्री सीताराम यादव जी भी इस समय हिंदुस्तान में हैं और शाहगंज और मेरे गांव में मिलकर हम लोग साथ-साथ रहे सब की यही चिंता थी कि उनका बेहतर इलाज कैसे हो जाए।
डॉ विनीत निरंतर प्रयास करते रहे कि उन्हें बीएचयू के आईसीयू में कैसे ले आया जाए जब सफलता मिली तब तक वह बनारस के ही प्राइवेट फोर्ड अस्पताल में भर्ती हो गए थे और आराम मिलना शुरू हो गया था फिर भी हम चाहते थे कि उन्हें बीएचयू में ट्रांसफर कर दिया जाए लेकिन यह संभव नहीं हो पाया कारण जो भी रहा। डॉ विनीत के प्रयास पर यदि हम उन्हें बीएचयू के आईसीयू में भर्ती करा पाते तो बात कुछ और ही हो जाती।
इस कार्य के लिए श्री अजय यादव जी का जितना भी धन्यवाद किया जाए वह कम होगा क्योंकि उन्होंने सारे काम एक तरफ रख कर किस तरह से उन्हें अच्छी सुविधा इलाज की मिल सके प्रयत्न करते रहे और वह संभव भी हुआ तो उसका लाभ उन्हें नहीं मिल पाया और अंततः जो कुछ हुआ वह पूरे समाज के लिए एक अनहोनी है । वह केवल अपने परिवार के नहीं थे उनका परिवार पूरे भारतवर्ष भर में फैला है चारों तरफ से लोगों को उनका आकस्मिक रूप से चला जाना बहुत कष्टकारी लग रहा है। हम ऐसे समय में असहाय महसूस कर रहे हैं ऐसे व्यक्ति का जो ज्ञान और विज्ञान के अथाह समुद्र थे जिन्हें मापा नहीं जा सकता था । जो हर संकट में खड़े रहते थे हम कितने कमजोर साबित हुए यह अफसोस जीवन भर बना रहेगा।
नमन।
स्तब्धकारी सूचना-
16 अप्रैल 2021 निधन-सामाजिक न्याय के अनन्यतम प्रहरी डॉ मनराज शास्त्री जी नही रहे......
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     शिक्षाविद,सामाजिक न्याय के अनन्यतम प्रहरी,"यादव शक्ति" पत्रिका के व्यवस्थापक मण्डल के मार्गदर्शक, उत्तरप्रदेश यादव महासभा के लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रह चुके एवं वीपीएसएस के जन्मदाताओं में से एक डॉ मनराज शास्त्री जी के निधन की बेहद स्तब्धकारी सूचना प्राप्त हुई है।
      मैं डॉ मनराज शास्त्री जी को अपना आदर्श,प्रेरणास्रोतव व अपने विचारधारा का मजबूत स्तम्भ मानता रहा हूँ।उनकी मृत्यु ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया है।अभी कुछ ही दिनों पूर्व शास्त्री जी की पत्नी का निधन हुआ था जिसके बाद उन्होंने सारे पाखण्ड आदि का परित्याग कर जौनपुर जनपद के शाहगंज स्थित अपने आवास पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था।शास्त्री जी ने किसी तरह के मनुवादी टोटकों को करने की बजाय अपने पत्नी का चित्र रख बिना मृत्युभोज किये श्रद्धांजलि सभा कर एक नई राह समाज को दिखाई थी।
      डॉ मनराज शास्त्री जी "यादव" पत्रिका के सम्पादक व यादव महासभा के संस्थापक रहे "यादव गांधी" राजित बाबू के अति निकटस्थ लोगों में से एक थे।लम्बी अवधि तक यादव महासभा का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुये डॉ मनराज शास्त्री जी ने पिछड़े समाज को जगाने व उन्हें एक जुट करने में महती भूमिका निभाई थी।चौधरी चरण सिंह जी से लेकर मुलायम सिंह यादव जी तक के अति निकट रहे डॉ मनराज शास्त्री जी का यूं चले जाना अत्यंत दुखदायी है।
      1989-90 के दौर में मैं डॉ मनराज शास्त्री जी जुड़ा था जब मण्डल आंदोलन अपने शबाब पर था।   मण्डल आंदोलन के बाद सामाजिक जागृति के अभियान में हम डॉ मनराज शास्त्री जी के साथ हो गए थे और उन्हें मेरे क्रियाकलापों से इतनी न  प्रसन्नता होती थी कि वे अक्सर कह दिया करते थे कि चन्द्रभूषण के आ जाने से मैं निश्चिंत हूँ कि हम लोगो के कारवां को ये आगे ले जाने मे कोई कोताही नही बरतेंगे। दिल्ली,लखनऊ,आगरा,हैदराबाद,नांदेड़,पटना सहित देश भर के विभिन्न तरह की वैचारिक गोष्ठियों में डॉ मनराज शास्त्री जी का उद्बोधन प्रेरणादायी तो "यादव शक्ति" में आपका लेखन मनुवाद पर अति मारक होता था।"यादव शक्ति" पत्रिका के तेवर व कलेवर को सजाने-संवारने में डॉ मनराज शास्त्री जी के योगदान को भुलाया नही जा सकता है।
      संस्कृत से पीएचडी डॉ मनराज शास्त्री जी ताखा डिग्री कालेज के प्रिंसिपल रहे व जौनपुर जनपद में सामाजिक न्याय,सेक्युलरिज्म,रुढ़िवादी संस्कारो,वंचितों के सामाजिक उन्नयन आदि के लिए जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे।मुझे जब से आदरणीय शास्त्री जी के निधन की सूचना मिली है मैं स्तब्ध हूँ,निःशब्द हूँ क्योंकि वे मेरे मन-मस्तिष्क में बसते थे।मृत्यु सबकी होनी है,यह अटल सत्य है जिसे स्वीकार करते हुये हम सबको दुनिया में अपने ऐसे प्रियजनों के विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना होगा,यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।डॉ मनराज शास्त्री जी के निधन पर मैं हृदय की गहराइयों से शोक जताते हुये उनके वैचारिक कारवां को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हुये श्रद्धासुमन समर्पित करता हूँ।

-चंद्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"






(इस पेज पर शास्त्री जी के लिखे गए उनके फेसबुक पर वक्तव्य यहाँ क्रम से लगाए जा रहे हैं - जिससे उनको एक साथ पढ़ा जा सके)











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कविता -4


मर्यादाओं का कर लोप
अनैतिकता की लगा कर तोप
झूठे वादों का भर गोला -बारूद
जनता के सपनों पर भरपूर
हमला कर करता चकनाचूर
रुई न कपास
पर हो रही
जोल्हन से मटकौवल
बाजी लेवै की झटकौवल
कोविड टिकिया कब अइहैं
लोगन के न बतइहै
लेकिन मुफ्त में बटवइहैं
बिहारी जनता भुलवइहैं
ऐसन स्वांग रचइहैं
एनकर करा इलाज
सुंदर बनिहैं समाज।

- डॉ मनराज शास्त्री

कविता -3


आसपास देखिये
मिलते हैं चेहरे
हजारों हजार
हर चेहरे पर
मुखौटे हजार
जिनकेअंदर होती हैं
जिह्वायें भी हजार
मधुर,कर्कश,भेदक
मर्मांतक,उत्पीड़क
उनके वाणी विलास
करते हैं आपको
कभी प्रसन्न,कभी उदास
याद आते हैं
तुलसीदास अनायास
प्रभुता पाइ
काहि मद नाहीं
ऐसे ही और भी
प्यादे से फर्जी भयो
टेड़ों,टेढ़ो जाय
यह अजीब दुनिया
जिस सीढ़ी से चढ़ें
उसे दें तुरंत गिराय
चढ़ने का करें
दूसरे और उपाय
न कोई सिद्धांत
न कोई प्रतिबद्धता
इसको छोड़ उसके पास
छोड़ने पकड़ने में
लगती नहीं क्षणभर की देर
विचारों को करते ढेर
ऊपर- ऊपर चढ़ने को
चापलूसी,चाटुकारिता
अवसर,अनवसर
करते चरणवंदना
खो चुके संवेदना।

- डॉ मनराज शास्त्री



कविता -2


मेरे जीवन में
एक ऐसा इंसान आया
जीसने मुझे आदर दिया
बहुत सम्मान दिया
मना करने पर भी
मेरे पैर छूने लगा
लेकिन आज अचानक
मैं उसे लगने‌ लगा
केवल फ्रस्टेटेड
और भी
मुझमें उसे नजर
आने लगा लकड़बग्घा
मैं ने उसका
कोई भी अहित नहीं किया
न उसकी भैंस खुलवाई
न उसकी फसल कटाई
न उसकी नौकरी छुड़वाई
न उसकी जमीन कब्जाई
न उसकी लुगाई भगवाई
हां,नहीं कर सका
उसकी एक सहायता
उसकी बहन की
शादी करवाने की बात थी
पूरी जानकारी न थी
उस युवती के संबंध में
जो दी नहीं गई थी
दूल्हा खोजने मैं
एकदम असफल रहा
यह मेरी नाकामी थी
वह मेरे ऊपर
करने लगा चुटील
मर्मभेदी व्यंग्य
मैं सहन करता रहा
पर एक दिन ऊब कर
उसका फोन काट दिया
और उसे कह दिया
फिर मुझे कभी
भूल कर भी फोन न करना
और मैं हो गया
"फ्रस्टेटेड,लकड़बग्घा"।

- डॉ मनराज शास्त्री

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कविता -1


एक था पत्रकार
बहुत प्रगतिशील
संघियों पर करता था
बहुत चुटीला व्यंग्य
उसे मिल गया
एक चापलूस
अवसर खोजी मित्र
दोनों करने लगे
एक संघी की परिक्रमा
धनलिप्सा थी प्रबल
प्रचार को बनाया संबल
उनका खेल चलता रहा
आखिर एक‌ दिन आया
प्रचार काम न आया
चली न कोई माया
ऐसे में किसी ने
पूछ लिया उनका हाल
नोचने लगे वे अपना बाल
पूछने वाले पर
हो गये दोनों अगिया बैताल।

- डॉ मनराज शास्त्री

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* मोदी सरकार कोरोना के नाम पर तानाशाही पर उतारू हैं। आज जिस तरह राज्यसभा में किसान संबंधी दो बिल पारित कराये गये हैं ,वह संख्याबल पर भरोसा न करके तानाशाही का नमूना बन गया और उपसभापति गुलाम।

* संसद् बनी सनक पूरी करने का हथियार।किसान और‌ श्रमिक संबंधी क्रमश: तीन- तीन बिल पारित होते ही कोरोना के कारण संसद्  का सत्र  समाप्त । जैसे कोरोना ने इसके लिये सांसदों को अभयदान दिया हो।

* प्रस्ताव बहुत अच्छे हैं,कांग्रेस ने अतीत में जो पाप किया है,जो धोखा दिया है,उसे धोने और पाश्चत्ताप करने लायक हैं। निजीकरण कांग्रेस की देन है।जातिवार जनगणना को प्रकाशित न करने के पाप की भागीदार कांग्रेस भी है।उसके रास्ते में बांधा डालने‌वालों में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा दुनिया छोड़ चले।लेकिन अभी भी पी. चिदंबरम,कपिल सिब्बल,आनंद शर्मा जैसे कुछ लोग हैं जो सवर्णवादी/ उच्च‌वर्गवादी चश्में से चीजों को देखते हैं।जब तक का़ग्रेस जाति वार जनगणना के लिये और निजीकरण के विरोध में मुखर/ सक्रिय/ सचेत आंदोलन नहीं चलायेगी ये सभी प्रस्ताव निर्गुण ही रह‌ जाये़गे। प्रस्ताव के प्रति प्रतिबद्धता आवश्यक है,अन्यथा मोदी सरकार की जुमलेवाजी की तरह बेमतलब हो जायेंगे,सस्ती लोकप्रियता जनता के किसी काम नहीं आती।ये प्रस्ताव सत्ता के साधन न बन कर साध्य बने यही मैं अपेक्षा करता हूं।

* मोदी सरकार का लक्ष्य है,कोरोना को अवसर में बदलना।किसान संबंधी तीन बिल राज्यसभा में पारित होते ही सरकार संसद् सत्र को समाप्त कर सकती है।सरकार उद्योगपतियों के हित को संबर्धित करने के लक्ष्य को पूरा करने में तीन कदम आगे बढ़ चुकी होगी। मोगैंबो को खुश होने के लिये यह बहुत काफी है।

* वाराणसी,पाखंड,अंधविश्वास,चमत्कार ,अवतारवाद की कथाओं से भरपूर नगरी है,गंगा से पुणृय की गगरी भरती है।मूर्दे जलते हैं,मुर्दे रहते हैं,उससे केही उम्मीद।

* पांच साल के लिये संविदा पर नौकरी देने का खंडन स्टूलधारी द्वारा। योगी जी ने खबरों का खंडन क्यों नहीं किया? स्टूल और कुर्सी में कौन बड़ा?

* राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस मनाने का असर।यू. पी. में योगी जी की निद्रा और तंद्रा टूटीं,भर्तियों की तड़ातड़ घोषणा।

* बचपन में मैं जब समझने लायक हो रहा था तो मेरा परिवार छोटा था।दादी थीं,दादा नहीं थे,कब छोड़ गये थे मालूम नहीं था। पिताजी, माता जी और हम चार भाई,यही मेरा परिवार था। दादी का निधन हो गया,उसकी याद नहीं। पिता जी मुझे स्कूलभेजने के कुछ दिनों बाद ही कालरा के शिकार हो गये।मेरी पढ़ाई पूरी हुई,संघर्षों के बाद सरकारी कालेज में नौकरी मिली।घर से बाहर रहना पड़ा।मेरे बाहर रहने के दौरान मेरे बड़े भाई की और उनसे छोटे दूसरे नंबर के भाई की एक एक संतान  शैशवावस्था में संसार छोड़ चले।कुछ दिन बाद मेरी दूसरे नंबर की भाभी का निधन हुआ।जब मैं अल्मोड़ा में था,तब मेरी मां का निधन हो गया।फिर कुछ दिनों बाद एक शिशु और मेरे दो बड़े भाइयों का थोड़े- थोड़े दिन बाद निधन होता रहा।छोटा भाई भी साथ छोड़ गया।अभी लगभग साल भर पहले बड़े भाई के तीसरे नंबर के बेटे का कैंसर के चलते निधन हो गया। कल मेरे सबसे बड़े भतीजे की पत्नी किडनी फेल होने से चल बसी। इतनी सारी मौतें मैं ने अपने परिवार में देखीं। सब में मुत्यूपरांत होने वाले कर्मकांड होते रहे।मेरे घर में१९६९ से ही शादी में ब्राहृमण का बहिष्कार होता रहा‌परिवार साथ रहा। कल जब मैं ने तेरहवीं केन करने की बात की तो वहीं घर- गांव के एतराज और तंज कसने की बात रखी गई। अब मेरे लिये सोच का विषय होगया है कि इससे कैसे निपटूं?

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संघियो! जब सब हिन्दू हैं, तब जाति और वर्ण क्यों और कैसे,कहां से आये।बनाने वाला बुद्धिहीन था क्या? अगर ईश्वर था बनाने वाला तोअन्य देशों के लोग हिन्दू क्यों नहीं हुये और वहां वर्ण-जाति क्योंनहीं? जवाब चाहिये।
-(13 जून 2020)

ईश्वर की भाषा क्या है?
-(13 जून 2020)

हिन्दुत्व के नाम पर पिछड़ों के राजनीतिक उभार पर धार्मिक मुद्दे उछाल कर कुन्द करने का प्रहार१९८० से जोरदार ढंग से संचालित। १९६४ में गठित विश्व हिन्दू परिषद् को सक्रिय किया गया। १९७७ के चुनाव में पिछड़े वर्ग के सांसदों की प्रभावशाली भूमिका,मंडल आयोग का गठन,मोरार जी देसाई की सरकार गिराकर किसान नेता चौ० चरण सिंह का प्रधान मंत्री बनना,पिछड़ों का उनके साथ आना,संघ के‌ लिये,उसके ब्राह्मणवर्चस्व के लिये चुनौतीभरी परिघटना थी। इसके लिये पिछड़ों का ध्यान भटकाना जरूरी था। इसके लिये पिछड़ों की धार्मिक आस्था को हथियार बनाया गया।ब्राह्मणवाद को खाद-पानी देनेवाला वर्ग यही था। इसीलिये अशोक सिंघल को राम मंदिर को लेकर रणनीति बनाने और आंदोलन की भूमिका तय करने की जिम्मेदारी दी गई।बजरंग दल की भूमिका विनय कटियार को दी गई। पिछड़ों में फूट डालने के लिये उसी वर्ग के नेताओं को आगे किया गया,जो आपने को गौरवान्वित महसूस करने लगे और संघियों की चाल नहीं समझ पाये। इनमें साध्वी उमा भारती,कल्याण सिंह,विनय कटियार,प्रवीण तोगड़िया आदि प्रमुख थे।संघ की यह भूमिका १९९० में मंडल आयोग की संस्तुतियों के लागू किये‌जाने की घोषणा पर वीपी सिंह की सरकार गिराने और कमंडल यात्रा निकालने पर स्पष्ट,बेनकाब हुई। श्रीमती इंदिरा गांधी को भी पिछड़ों का राजनीतिक वर्चस्व कबूल नहीं था।उन्होंने भी विहिप की मुहिम का स्वागत किया। दिल्ली में सिंहल के आगमन पर माला पहना कर उनकी अगवानी की। संघ ने भी इंदिरा जी का समर्थन किया,क्योंकि संघ को वह सभी स्वीकार्य हैं जो पिछड़ों की प्रगति रोक सकें। संघ का पिछड़ों कोबरगलाने,भटकाने,बहलाने,फुसलाने,आपस में लड़ाने का हर हथकंडा अपनाने का प्रयास१९८० से तीब्र से तीब्रतर होता गया।
-(13 जून 2020)

संघ यह प्रस्ताव क्यों नहीं लाता कि आर्थिक संकट और श्रमिकों कीआर्थिक तबाही के मद्देनजर मंदिरों में संग्रहीत अरबों की भगवान् की संपत्ति भगवान् के भक्त हिन्दुओं के कल्याणार्थ बांट दी जाय शेष राशि राजकोष में जमा कर दी जाय।आखिर भगवान् को धन की क्या जरूरत है।
-(13 जून 2020)

संघ को क्या चाहिये? मनुवादी व्यवस्था अर्थात् ब्राह्मण वर्चस्व

उसे कौन सा दल प्रिय है? जो इस इच्छित व्यवस्था को लागू कर सके-- जनसंघ/ भाजपा। अगर यह कमजोर हो जाय तो कांग्रेस से भी परहेज नहीं,क्यों कि वह भी यही चाहती है। संघ का चरित्र,कांग्रेस कमजोर हो तो भाजपा।आज यही हो रहा‌है। इसलिये लगभग समूचा ब्राह्मण समुदाय मोदी- मोदी कहता फिरता‌है।


-(13 जून 2020)

आज ही " अमर उजाला" समाचार पत्र सेमालूम हुआ कि संत/ पुजारी आदि ने कोर्ट मेंकेस दायर किया है कि " places of worship,Act 1991" के section 4 को रद्द किया जाय।न्यायिक समीक्षा हो।इस ऐक्ट के तहत १५ अगस्त १९४७ से पहले जिस धार्मिक स्थल पर जिस संप्रदाय का अधिकार होगा,वह भविष्य में भी उसी के अधिकार में रहेगा,अयोध्या प्रकरण को छोड़कर। अयोध्या का मसला हल हो जाने के बाद बनवासियों और पिछड़ों को धार्मिक मामलों में किस प्रकार उलझाकर वोट बैंक बढ़ाया जाय,इस चिंता को दूर करने का उपाय रचा जा रहा है । अनुसूचित वर्ग बहुत हद तक इस बात को समझता है। पिछड़ों और बनवासियों को इस कुचक्र से दूर रहना चाहिये। मंदिर केवल ब्राह्मणों को भगवान् का एजेंट बना कर उनके ऐशो आराम की व्यवस्था का षड्यंत्र है।
-(13 जून 2020)
अपने दुश्मनों को नकारो,भले ही वे अपने जाति- धर्म कै हों,विधायिका पर कब्जा करो,२०२२,२०२४ हाथ से जाने न पाये।
-(14 जून 2020)
सरकार को ऐसा कानूनबनाना चाहिये,जिससे मठों की तीन चौथाई संपत्ति जनता के उपयोग में आये!
-(14 जून 2020)
जे पी नड्ढ़ा ने कहा कि। भाजपा आरक्षण का समर्थन करती है।पर कौन से आरक्षण का,यह आपको समझना होगा। एक आरक्षण मनुवादी है और दूसरा आंबेडकरवादी अंर्थात् संविधानिक। दोनों साथ नहीं चल सकते,एक को मिटाकर ही दूसरा चल सकता है। अब देखना होगा कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप कौन है,जो होगा वहीं चलेगा ।तब तो आ़बेडकरवादी- सांविधानिक को ही मिटाना होगा,मनुवादी को बनाये रखना होगा,भाजपा उसके पक्ष में रही है और रहेगी। अगर मेरी समझ गलत है तो भाजपा निजीकरण वापस लेकर सांविधानिक व्यवस्था लागू करें।
-(14 जून 2020)

१९८० में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ।केन्द्र में इंदिरा गांधी की सरकार बन गई थी।किसी मजबूरी में अटल जी की पहल पर गांधीवादी समाजवाद पार्टी का सिद्धांत रखा गया। इंदिरा जी की हत्या हुई,राजीव गांधी प्रधानमंत्री बना दिये गये।

१९८४ में लोकसभा का चुनाव हुआ,सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस को चार सौ से अधिक सीट मिलीं,भाजपा सिकुड़ कर दो सीट पर आ गई।संघ और विहिप को भी निराशा लगी।इस बीच संघ का झुकाव राजीव की तरफ हुआ,राजीव गांधी भी,जैसा कि कांग्रेस का हमेशा प्रयासरहा नरम र्हिन्दुत्व का प्रदर्शन-- जवाहर लाल नेहरू भी कभी- कभी जनेऊ का सार्वजनिक प्रदर्शन करते थे-- अयोध्या में बाबरी के गेट का ताला खुलवा दिया- एक स्थानीय अदालत के आदेश प१९८६ में।विहिप का आंदोलन बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक से गर्माया जा रहा था।१९८३- ८४ में जोर बढ़ रहा था।उसमें राजीव गांधी का आदेश काम आ गया,लेकिन जैसा पहले कहा भाजपा दो पर ही रह गई। फिर संघ और विहिप की सक्रियता और बढ़ने लगी।बजरंग दल और दूर्गा वाहिनी का गठन हुआ।भाजपा को आगे बढ़ने के लिये कुछ घटनायें घटीं जिसका उसने भरपूर लाभ उठाया।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके ही मंत्री राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स तोप सौदे की खरीददारी में घूस लिये जाने यानी भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया और स्वयं राजीव गांधी की संलिप्तता भी जाहिर की। मिस्टर क्लीन के नाम से चर्चित राजीव गांधी की छवि धूमिल होने लगी। वी. पी। सि़ह कांग्रेस से बाहर आये।"जन मोर्चा" का गठन हुआ। कांग्रेस विरोधी सभी विषक्षी दल उनसे जुड़ने लगे।National Frontका गठन हुआ। वी. पी. सिंह ने भाजपा से गठजोड़ किया और उसे संभवतः: १४० सीट पर लड़ने का अवसर मिला। इस सहयोग से भाजपा ८६ सीट जीत गई और उसकी ताकत सरकार गठन में महत्त्व पूर्ण हो गई। भाजपा के बाहरी समर्थन से वी. पी. सिंह की सरकार सत्ता में आई। इसी घटनाक्रम के बीच ५ दिसं० १९८९ को चौ० अजीत सिंह को हराकर मुला्म सिंह यादव की सरकार उत्तर प्रदेश में और १० मार्च१९९० को बिहार में राम सुन्दर दास और रघुनाथ जा को पीछे छोड़ कर लालू प्रसाद यादव की सरकार‌ बन गयी। सिंह कीकेन्द्रीय सरकार में शरद यादव तथा राम विलास पासवान कद्दावर मंत्री थे,सभी के संरक्षक चौ० देवी लाल उप प्रधानमंत्री। कहने का मतलब यह है कि नवें दशक के प्रारंभ में भी पिछड़ों का जलवा कायम था।संघ के लिये यह एक चुनौती भरा परिदृश्य था,जिसकी काट उसे और उसकेआनुषंगिक संगठनों को निकालनी थी।1990 में वी. पी. सिंह और उनके लिये पी. एम. पद छोड़कर सौंपने वाले चौ० देवीलाल में अनबन हो गई।उन्होंने चौ० देवी लाल को मंत्रिमंडल से निकाल दिया( या निकालने वाले थै- ठीक से याद नहीं)। चौ० देवीलाल ने अपने समर्थन में ९ अगस्त,१९९० को दिल्ली में किसान रैली का आयोजन किया,स्थिति ठीक वही थी जो देसाई जी के समय चौ० चरण सिंह की थी। रैली के मुद्दों में मंडल आयोग की रिपोर्ट भी थी।९ अगस्त से पहले ही चौ० देवीलाल की रैली को निष्प्रभावी बनाने के लिये शरद जी और राम विलास जी पासवान ने वी. पी. सिंह को मंडल आयोग की संस्तुतियों को लागू करने के लिये मना लिया/ मजबुर कर दिया।सरकार बचाने के लिये उन्होंने ७ अगस्त, १९९० को मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा कर दी और सरकारी नौकरियों मे़- कुछ को छोड़कर- २७% आकर्षण लागू हो गया। इससे सवर्णों में खलबली मच गई,क्योंकि दूसरों का हक मारने का उनका अवसर संकुचित होने वाला था।
संघ को पिछड़ों की मजबूती से परेशानी कर्मों होती है? १९६९ का उत्तर प्रदेश का एक उदाहरण देना चाहता हूं।१९६७ में यहां संविदा की सरकार बनी थी।चौ० चरण सिंह मुख्यमंत्रीबनाये गये।थे। पहले भी मैं लिख चुका हूं कि पहली बार सरकार में पिछड़े वर्ग की जातियों को कैबिनेट मंत्री बनने का अवसर मिला था। संविद् सरकार लगभग आठ महीने चली थी।राष्ट्रपति शासन लगा। १९६९ में मध्यावधि चुनाव हुआ। संविद् सरकार में शामिल जनसंघ को९६ की जगह ४८ विधायक ही जीते और कम्यूनिष्ट पार्टी के १६ की जगह ४ ही जीत सके। यह नुकसान पिछड़ी जातियों और मुसलमानों का चौ० साहब को समर्थन देने के कारण हुआ। चौ० साहब ने भारतीय क्रांति दल (बीके डी) का गठन करके चुनाव लड़ा था। यादवों का तो नाम ही बीकेडी पड़ गया था,क्यैंकि उनका पूरा समर्थन बीकेडी को था।यह पिछड़ों की राजनीतिक एकजुटता थी जिससे जनसंघ आधे पर आ गई थी।१९९० में भी संघ और भाजपा को लगा कि पिछड़े वी. पी. सिंह के साथ चले जायेंगे तोउनका राजनीतिक आधार बहुत ही कमजोर हो जायेगा,क्योंकि १९८९ की उनकी जीत में गठबंधन के कारण पिछड़ों का भी मत मिला था,अन्यथा अपने बाभन- बनिया और सामंतवादियों के बल पर उनको सफलता न मिल पाती।मंडल आयोग के लागू होने से उन्हें अपने खिसकते जनाधार की चिंता स्वाभाविक थी। इसीलिये ७ अगस्त को मंडल आयोग के लागू किये जाने की घोषणा होते ही विश्व हिन्दू परिषद् के आंदोलन में भाजपा भी कूद पड़ी,नैशनल फ्रंट की सरकार गिरा दीऔर २५ सितंबर१९९० - पं० दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन- को लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रासोमनाथ से प्रारंभ हो गई।धुर दक्षिण के राज्यों को छोड़कर अन्य‌राज्यों का दौरा,भाषण करते हुये आडवाणी जी को ३० अक्टूबर को पहुंचना था। इधर अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा होने‌लगा,पैदल,गली कूचे,मेड़ से,निजी साधन से लोग पहुंच रहे थे। प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कारसेवकों को रोकने का प्रबंध कर रखा था।पुलिस की तैनिती थी।स्कूल कालेज जेल बना दिये ग्रे थे।कारसेवकों को पकड़ कर आस्थायी जेलों में बंद किया जा रहा था। फिर भी अयोध्या में लाखों की भीड़ जमा हो गाई। आडवाणी जी कानपुर होते हुते बिहार होकर अयोध्या पहुंचना चाहते थे। रउरा में उनको गिरफ्तार करने की योजना थी ,लेकिन। केन्द्रीय के निर्देश पर उन्हें आगे जाने दिया गया और लालू जी ने आडवाणी जी को गिरफ्तार कर सीतामढ़ी में रखा। इधर अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने की कोशिश हुई,पुलिस ने गोली चलाई और मस्जिद बच गई,दर्जन भर से अधिक लोग मारे गये ।अयोध्या में जुटी भीड़ में देश भर के आदिवासी और पिछड़े इकट्ठा हुते। इसका लाभ भाजपा को चुनाव मैं मिला।१९९२ में यू० पी० में उसकी सरकार बनी।यह सब पोस्टर करने का मतलब है कि संघ और भाजपा पिछड़ों को बरगला कर अपना पिछलग्गू बनाकर अपना वोटबैंक मजबूत करना चाहती है और सत्ता उनके हाथ में‌नहीं जाने देना चाहती।

-(14 जून 2020)

देश में दो चीजें दिनानुदिन बढ़ रही हैं,एक कोरोना संक्रमित और दो पेट्रोल- डीजल के दाम।सरकार का क्या काम?
-(15 जून 2020)


हिन्दू- मुस्लिम एजैंडे को मंद न होने देने के लिये एक और संगठन---" विश्व भद्र पुजारी- पुरोहित महासंघ " अस्तित्व में आया,कोर्ट पहुंचा,जमायतेउलमाये हिन्द ने कूद कर आग में घी डाला। संघ की बांछे खिल उठी होंगी। अयोध्या फतह के बाद काशी- मथुरा प्रकरण में घुसने का मौका। अयोध्या प्रकरण निर्मोही अखाडा और हिन्दू महासभा ने उठाया और वोट की फसल काटने के लिये संघ,विहिप,बजरंग दल,दुर्गा वाहिनी,भाजपा ने उस मुद्दै को लपक लिया। काशी- मथुरा के लिये भी इनके लिये द्वार खुल गया।अयोध्या पर निर्णय आने केबाद संघ की ओर से कहा गया था कि काशी- मथुरा संघ के एजेंडे में नहीं है।लेकिन पलटने में कोई हर्ज नहीं,हिन्दू समाज की मांग का बहाना तो मिल ही जायेगा। देश में बहुत से स्थान मिल जायेंगे जहां मुस्लिम अत्याचार का इतिहास गढ़ कर इस मुद्दे को चुनावी सफलता का हथियार बनाया जा सकेगा।ऐसे थोड़ें न ५० साल तक शासन करने का दावा किया गया है।
-(15 जून 2020)
fb की महिमा,लिखिये कुछ,टाइप कुछ और ही हो जाता है,रहस्य समझ में नहीं आता है।
-(15 जून 2020)
५६" सीने वाले बाहुबली किस खोह में हैं?बांहसमेटन रक्षामनत्री किस किले में है? एक के बदवे१०० वाले मठी की सुरंग किधर है? लद्दाख बार्डर पर सेना का एक अफसर और दो जवान‌ चीनी सैनिकों से झड़प में शहीद।स्वाभिमान की रक्षा और चुनाव के लिये बाला कोट जैसा क्यों नहीं?
-(16 जून 2020)

अगर यह गलती पाकिस्तान ने की होती तो

दूसरा बालाकोट लहरा रहा होता। चुनाव में अभी देरी है,चीन ने नजर फेरी है,पी.एम. के बोलने में अभी देरी है,चुनाव आते ही बजेगी रणभेरी,सत्ता को बनाकर रखना है चेरी,होनी है मन की बातें बहुतेरी,नागपुर की राय नहीं है घनेरी,देखना है जनता की आंख तरेरीं।

-(17 जून 2020)
अभी सरकार का ध्यान राज्यसभा के मोर्चे पर है,चीन को वाक ओवर दिया गया है। मध्यम प्रदेश में बसपा- सपा विधायक भाजपा में,कांग्रेस के भी दो या तीन।
-(17 जून 2020)
मोदी जी,घुस कर मारो,सर्वदलीय बैठक बेकार है,कहीं लोग शांत रहने की बात न करने‌ लगें। यह नेहरू का नहीं आप का भारत है,घुस कर मारता है,बैरन लैंड में तो बहुत ही सफल है।
-(17 जून 2020)
कहां हो बाबा भोलेनाथ,क्या आप भी ३६ घंटे बाद जागते हो? आप के हिमालय क्षेत्र में भारत के वीर जवान लाठी-डंडे,पत्थर से मारे जा रहे हैं,आप के सामने शहीद हो रहे हैं और आप अपना तीसरा नेत्र बंद किये हैं । आप को किस चुनाव की प्रतीक्षा है कि कुछ नहीं कर रहे हैं? आप के क्षेत्र में अतिक्रमण और आप को कोई चिंता नहीं ? कम से कय्म अपने जैविक पुत्र हनूमान् को ही सतर्क कर दिये होते,वे तो पत्थर युद्ध में परम निपुण हैं,चीनियों को भगा देते। ये कैसा प्रमाद है प्रभु?जागिये,जागिये! ४८ घंटे बाद ही सही,सजा दीजिये,यह स्वाभिमान और एक- एक इंच जमीन का सवाल है।देश की नाक कट रही है और आप....... !!
-(18 जून 2020)
देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने से हमें कौन रोक रहा है,यह हमारे सामर्थ्य और कर्तव्य की बात है। किसी अन्य देश को हस्तक्षेप का अधिकार और औचित्य नहीं है।
-(18 जून 2020)
"त्याग" और "तितिक्षा", "विक्रम" और "वीरता" के साथ समाज की हकीकत भी देखनी चाहिते कि यहां कितनी "घृणा" और "अन्याय", "क्रूरता" और "कायरता" रही है। ९०% लोग कायल बनाये गये और १०% क्रूर।
-(18 जून 2020)
भारत के जवानों का बलिदान‌ व्यर्थ नहीं जायेगा,हम उसका चुनाव में उपयोग करेंगे।राष्ट्रवाद का प्रसाद ले जाकर नागपुर के चरणों में सश्रद्ध समर्पित कर देंगे।
-(18 जून 2020)
निहत्थे सैनिक शहादत के लिये भेजने वाले राष्ट्रप्रेमी और निहत्थे क्योंऔर किसनेभेजा,यह पूछने वाले देशद्रोही।वाह भाई वाह सरकार बहादुर।साजिश बेनकाब होनी चाहिये।
-(18 जून 2020)
निहत्थे सैनिकों की शहादत पुलवामा जैसी,वोट लूटने की तैयारी भी है वैसी।
-(18 जून 2020)
छोटे से छोटे या बड़े से बड़े चुनाव जीतने हेतु राष्ट्रवाद की आंधी चलाने के लिये कब तक सैनिकों की बलि चढ़ाई जायेगी? क्या वीर सपूतों को सेना में इसीलिये भर्ती किया जाता है? क्या उनकी जान की कीमत किसी प्रधानमंत्री की जान की कीमत से कम होती है?
-(18 जून 2020)
पुलवामा पर सवाल करो तो देशद्रोही,गलवां घाटी/ चीन पर सवाल करो तो देशद्रोही,सरकार से कोरोना पर सवाल करो तो देशद्रोही,चुप बैठें तो जनता कहे कायर,दब्बू,पप्पू,आखिर राहुल करें तो क्या करें मोदीराग गायें,जेसा तोता प्रसाद करते हैं!
-(18 जून 2020)
मीडिया ने२०१४ से मल्हार राग की तरह एक नये राग का ईजाद किया है,जिसे " मोदीराग " कहते हैं। सभी चैनलों के एंकर तानसेन के प्रतिरूप हैं।गाते ही वोटों की झमाझम बारिश शुरू हो जाती है।
-(18 जून 2020)
गजब भइल हो भइया,एतना सब हो गइल,तबौ आंख न खुलल।मंदिरन मां ताला लग गइल,देवता केवाड़ी बंद कइलन ,पुजारी पाज़िटिव हो गइलन,कोरोना भारी पड़ल,फिरौ लोगन मंदिरन की ओर दौड़त- भागत लइकन खातिर आशीर्वाद लेवै को जूझल बा।
-(19 जून 2020) 
हम झूठ नहीं बोलते,पर उसे खाते हैं,पीते हैं,ओढ़ते हैं, बिछाते हैं,बगल में दबा कर सो जाते हैं,हम झूठ नहीं बोलते हैं।
-(20 जून 2020)
जब बहुत से कोरोना मरीजों में लक्षण नहीं दिखते तो उनकी भर्ती पर रोक क्यों?
-(20 जून 2020)
जब कोई घुसा नहीं,कोई कब्जा नहीं हुआ, तब २० सैनिक शहीद कैसे हुये? झूठ दर झूठ।
-(20 जून 2020)
सर्वदलीय बैठक में P.M. के misleadingभाषण परpmoकी सफाई पर भी सवाल उठेगा। झूठ को छिपाने के लिये झूठ! मुठभेड़ से घुसपैठ,क्या तर्क है,निर्माण को रोकने को मुठभेड़। शंका दर शंका।
-(20 जून 2020)
पाकिस्तान आंख उठा कर नहीं,गिराकर सीजफायर का बार- बार उल्लंघन करता है,आंख उठाकर करता तो उसका अस्तित्व मिटा देते,हम भारत के शासक हैं !!
-(20 जून 2020)

राहुल गांधी ने सही पूछा है कि हमारे जवान कहां शहीद हुये है?
-(20 जून 2020) पलायन और रोज़गार ;

शोषितों- वंचितों की भूलने की आदत व्यथित करती है। अभी कल ही तो तमाम बाधायें झेलकर घर पहुंचे थे,प्रवासी श्रमिक बनकर,पैर के छाले ठीक भी नहीं हुते कि उनके वापस प्रवास पर लौटने की खबरें आने लगीं।सब कुछ भूल गया,याद रहा नून,तेल लकड़ी -- यह कहावत डरबन याद आ गई।
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प्रवासी कहे जा रहे श्रमिकों को अपने जिलों में ही रोजगार देने के लिये" गरीब रोजगार कल्याण योजना" का शुभारंभ खगड़िया,बिहार से मा० कालजयी प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। बिहार से ही क्यों , यह प्रश्न गौण है क्योंकि चुनाव जीतने के लिये अकेले शुभ मुहूर्त को ही नहीं देखना पड़ता,उपयुक्त स्थान भी देखना होता है। इस समय बिहार ही उपयुक्त स्थान है,क्योंकिजिन विधान सभाओं का चुनाव होना हैउसमें वह पहले नंबर पर है। कारण- कार्य संबंध जोड़ लीजिये। वैसे अभी कोई रूपरेखा नहीं आई है।अभी तो स्थिति यह है कि मनरेगा के लिये ही कार्यस्थल मिलना बहुत जगह मुश्किल हो रहा है। फिर कौशल विकास के नाम पर वही पुश्तैनी पेशे में पिसना होगा और जातियों का कौशल देखा जायेगा। किस जिले में कौन सा उद्योग लगा है,जहां रोजगार मुहैया कराया जायेगा,अभी जनता को मालूम नहीं।वैसे जनता को बेवकूफ बनाने के लियेशेखचिल्ली वाली योजना दिल बहलाने को काफी है।मुंगेरी लाल के हसीन सपने होंगे अपने।
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यदि गांवों में रोजगार मिलता,परिवार के भरण- पोषण,शादी व्याह के खर्च और कुछ मनोरंजन की व्यवस्था हो सकती,तो लोग अपना गांव,मा़- बाप,भाई- बहन ,पत्नी बच्चे छोड़कर बाहर दूसरे राज्यों में कर्मों जाते? आजादी के ७३ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं,लेकिनभरपेट खाने, पहनने का जुगाड़ अपनी इच्छा भर बहुत कम लोग ही गांव में कर पाते हैं। गांव से पलायन शहर की ओर मजबूरी में ही होता है।सरकार कितने लोगों का ख्याल कर पाती है। आज ही मैं ने देखा किऔरत- मर्द और बच्चे मिला कर लगभग २५ लोग शाहगंज स्टेशन के पास दादर पुल के नीचे बरसात में पनाह लिखते हुते थे,उनके पास अपनी छत नीचे पनाह देने के लियेनहीं है।गांवों में भी एकाध परिवार ऐसे मिल ही जायेंगे।असहाय स्थिति में वे क्या कर सकते हैं?
-(20 जून 2020)

इतिहास ;


आजादी पूर्व ही १९३७ से ब्रिटिश भारत में चुनाव होने लगे थे। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दो ही दल थे,जो चुनावों में भाग लेते थे,अन्य दलों का कोई खास अस्तित्व नहीं था,यद्यपि कम्यूनिष्ट पार्टी और हिन्दू महासभा का गठन हो चुका था। सरकार या तो कांग्रेस के नेतृत्व में बनती थी या मुस्लिम लीग के,ज्यादा कांग्रेस के। ओबीसी जैसा प्रावधान १९३५ के "Govt of India act,1935" में नहीं था,लेकिन गैर ब्राह्मण( गैरसवर्ण) जाति में आनेवालों को चुनाव लड़ाने के लिये टिकट नहीं मिलता था।लेकिन ऐसा नहीं है कि इनके मन में टिकट पाने कि इच्छा नहीं थी,इनकी इच्छा पूरी नहीं की जाती थी। कांग्रेस का नेतृत्व ब्राह्मणों/ द्विजों का था,वे इनकी सुनते ही नहीं थे।प्राय: इन नेताओं के मन में तिलक जैसों की सोच काम कर रही थी कि" तेरी,तमोली,माली कुनभट संसद् में जाकर क्या हल चलायेंगे"। क्योंकि खेतिहर,पशुपालक,शिल्पी और कामगार जातियों के बीच शिक्षा का बेहद अभाव था।बिहार में त्रिवेणी संघ,उत्तर प्रदेश में शोषित संघ,मद्रास में जस्टिस पार्टी तथा ऐसे ही देश के अन्य राज्यों में भी संभवतः: कुछ संगठन रहे होंगे जो ब्राह्मणों( सवर्णों) के वर्चस्व से आहत होकर कांग्रेस से अलग हट कर चुनाव लड़ें हों। लेकिन किसी न किसी कमजोरी की वजह से हिन्दी बेल्ट में उन्हें हार और बिखराव का सामना करना पड़ा। मद्रास में भी पहले लोग हारे थे,लेकिन१९२० के मद्रास प्रेसीडेंसी के चुनाव में जस्टिस पार्टी को सफलता मिली और उसकी सरकार बनी और१७ साल में एक बार वे पराजित हुते,१९४४ में पार्टी चुनाव से अलग हो गई,असहमत लोगों ने १९५२ का चुनाव लड़ा,हारे और वह पार्टी बंद हो गई। उत्तर भारत में कैसी कांग्रेस में गया,कैसी घर बैठ गया। आजादी के बाद भी कांग्रेस ने ओबीसी( संवैधानिक तौर पर obc एक वर्ग बन गया था)को राजनीतिक रूप से कैसी अहमियत नहीं दी।जधसंघ१९५० में गठित हो गाई थी,परंतु वह बाभन- बनियों की पार्टी थी,ओबीसी का उससे लगाव नहीं था

साम्यवादी दल जाति को महत्त्व नहीं देते थे। कांग्रेस बाभन,दलित,मुस्लिम‌ तथा‌औरतों को ही अपना वोट बैंक मानती थी। प्रजासमाज पार्टी का बहुत जोर‌नहीं था, । संसोपा बनने पर डा ० लोहिया ने पहली बार ओबीसी की वैट की ताकत को पहचाना और नारा दिया" स़सोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावैं सौ में साठ।पिछड़े वर्ग के लोगों का झुकाव संसोपा की ओर गया,कुछ साम्यवादी दल में भी गये,बहुत से अब भी कांग्रेस का दामन थामे रहे,लेकिन उन्हें बहुत तरजीह नहीं मिली।कांग्रेस ने यूं. पी. में किसी ओबीसी कै मुख्यमंत्री नहीं बनाया,बिहार में बी,. पी. मंडल के मुख्यमंत्री बने जाने के बाद किसी मजबूरी में दरोगा प्रसाद राय को कुछ दिन के रिमेक मुख्यमंत्री बनाया और राम जयपाल सिंह यादव को उपमुख्यमंत्री और सवर्ण को मुख्यम़त्री।१९६७ के पहले ओबीसी की राजनीतिक शक्ति एक वोट बैंक की के रूप में नहीं गिनी जाती थी।
-(21 जून 2020)

व्यक्तिगत ;

फादर्स डे पर मैं अपने पिता जी को कैसे याद करूं। आज मेरे पास उनका कोई चित्र नहीं है।मेरी उम्र सात साल ( लगभग) रही होगी,जब वे कालरा की बीमारी से हार गयेऔर हम चार भाइयों और मेरी माता जी को छोड़ दुनिया से विदा हो गये। मुझे उनकी सूरत भी ठीक से नहीं याद आ रही है। मैं चार भाई था, दो मुझसे बड़े और एक मुझसे छोटा। अब मैं अकेला बचा हूं।चार भाइयों में पिता जी ने मुझे ही पढ़ाने के लिये चुना और हम सब को छोड़ने से पहले मेरा प्रवेश निकट के शाहपुर बाजार स्थित प्राइमरी पाठ शाला में करा चुके थे। जिस कालरा बीमारी से उनका निधन हुआ उसमें वे और मैं दो ही बीमारी से ग्रस्त थे। मैं बच गया और इतना याद है कि उनके मरने की खबर पड़ोसियों को देने की उत्सुकता मुझे ही थी । लोग अन्त्येष्टि के लिये कहां ले गये ,याद नहीं। पिता जी को गांव वाले साधू के नाम से संबोधित करते थे और उनका बहुत अदब करते थे।परिवार छोटा था। पिता जी,माता जी और चार भाई हम। खेत उस वक्त के हिसाब से गांव में अधिक ही था।गांव पड़ोस में यदि किसी के यहां कमी पड़ जाती थी या कोई काम पड़ जाता था तो पिता जी दिल खोल कर उसकी मदद करते थे,इसके लिये गांव- जवार में उनकी ख्याति थी।गांव की औरतें लिहाज बश उनके सामने बिना घूंघट के नहीं पड़ती थीं।मुझे याद है कि मेरे घर में एक चौरी थी,जहां पिता जी हनूमान की पूजा करते थे,उनके मरने के बाद मेरे बड़े भाई वह पूजा उठा लिये थे जब तक मैं उन सब को समझाने लायक नहीं हो गया था कि यह सब बेकार है। आज पिता जी को किस तरह याद करूं,वे ओझाई भी करते थे,जब मुझे उसका कोई खास मतलब समझ में नहीं आता था। कुछ याद है,कुछ भूल गया। दु: ख इस बात का है कि आज मुझे उनका चेहरा साफ- साफ याद नहीं आ रहा है।
-(21 जून 2020)

डा मनराज शास्त्री जी के विचार : 

Economically weaker sectionको १०% आरक्षण दिया गया।मैं इन शब्दों को संविधान की किताब में ढ़ूढ़ रहा था। मुझे नीति निदेशक सिद्धांतों वाले संविधान के चतुर्थ भाग में अनुच्छेद ४६ में weaker section मिला,लेकिन उसके विशेषण के रूप में प्रयुक्तeconomically शब्द नहीं मिला,यद्यपि इस अनु्च्छेद में economic शब्द अवश्य मिला। क्या है अनुच्छेद४६ ।" promotion of educational and economic interest of Scheduledcastes, scheduled Tribes and other weaker  sections".लगता है कि खींचतान कर इसी अनुच्छेद से " economically weaker section" को गढ़ा गया है और संविधान सभा में भी की गई आर्थिक आधार और संविधान लागू होने के बाद भी सवर्णों तथा संघी मनोवृत्ति कै लोगों की मांग को बलात्कर,संविधान की मर्यादा का उल्लंघन करते हुयेEWS को १०% आरक्षण आनन- फानन में दे दिया गया।इस अनुच्छेद में weaker section की परिभाषा नहीं की गई  है।  पहली बात तो यह है कि इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

Dr.Manraj Shastree

आरक्षण/ प्रतिनिधित्वशासन- प्रशासन में भागीदारी का मामला है,आर्थिकibterst का नहीं। और वह भी जिनका प्रतिनिधित्व प्रर्याप्त नहीं है। लेकिन यहां आरक्षण किसी भी तरह अभिप्रेत नहीं है।जब इसweakwr section का प्रयोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ किया गया है तो इससे अभिप्रेत अर्थ भी इन्हीं के समकक्ष ढ़ूढ़ना चाहिये कि weaker section of peopleकौन हो सकते हैं। इसी अनुच्छेद में आगे लिखा है कि" shall protect them from social injustice and from all the forms of exploitation".यहां देखना‌ यह चाहिये  कि SC/ ST की तरहsocial injustice किसके साथ होती है? क्या सवर्णों के साथ वैसा ही सामाजिक अन्याय होता है। समाज में गरीब और अपढ़ भी ब्राह्मण इनकी अपेक्षा कहीं अधिक सम्मान पाता है,कभी कभी इनके बहुत पढ़े-लिखों से भी अधिक। अन्य द्विजों के साथ भी यही होता है। और यह भी कहा गया है कि weaker section में वही आयेंगे जो किसी तरह के आरक्षण से आच्छादित नहीं होंगे ।इसका मतलब सवर्ण से ही होगा,क्रीमीलेयर वाले भी। लेकिन दूसरी बात जो कहीं गयी है ,वह भी यही साबित करती है किweaker section की शासन की यह  मान्यता ठीक नहीं है।all forms of exploitation में सामाजिक,शैक्षिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनीतिक शोषण भी आयेगा ,जो सवर्णों का नहीं होता,अशराफ मुसलमानों का भी नहीं होता,धर्मांरित बड़ी जातियों का भी।इस लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ जो इन मानदंडों--:social injustice and all forms of exploitation  की सांसत जिन्हें झेलनी पड़ती हो ,उन्हीं को weaker section of people में‌शामिल करना चाहिये,न कि सवर्णों को। अब देखना होगा कि क्या वे ओबीसी हैं या ओबीसी की कुछ कमजोर जातियां जिनका शैक्षिक और आर्थिक हित सरकार को special careके साथ‌ देखना चाहिये,विशेष रूप से अजा और अजजा का। माननीय सुप्रीम कोर्ट को १०% आरक्षण पर निर्णय देते समय इस अनुच्छेद का भी  पोस्टमार्टम करना चाहिये। यह देखना चाहिये कि संविधान की मंशा को तोड़ामरोड़ा न जाय।

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सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशगण! विगत २ फरवरी,२०१९ को  आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कै लिये नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में १० % आरक्षण दिया गया। आप सब को विदित है कि आरक्षण के लिये आर्थिक आधार का संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है। इसलिेए यह प्रावधान असंवैधानिक है।इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।आज तक न तो " स्टे" दिया गया और न सुनवाई हुई,कोई तारीख भी नहीं पडी।क्या  इससे यह न मान लिया जाय कि इस पर चुप्पी साध कर सुप्रीम कोर्ट ने इसे लागू करने का अबाध अवसर प्रदान कर दिया है? संविधान में आरक्षण का जो प्रावधान है,वह उन लोगों के लिये है ,जिनका सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।यद्यपि आर्थिक कमजोर‌ वर्ग के अन्तर्गत जाति- धर्म का विचार न करने का दावा संसद् में किया गया है,लेकिन व्यवहार में यह सवर्णों के लिये होगा,जिनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त से कहीं अधिक है,लगभग७०- ८०%] फिर इनके‌ लिये १०% आरक्षण का क्या मतलब है?weaker section कौन हैं,इसको इस तरह से व्याख्यायित किया जा रहा है कि जो ओबीसी/ एससी/ एसटी/ एमबीसी( तमिलनाडु में) से आच्छादित न हो रहे हों। जो आर्थिक आधार दिया जा रहा है,उससे लगभग९५% सवर्ण( सामान्य) आ जायेंगे! फिर इसका औचित्य क्या रह जायेगा। मा० न्यायमूर्ति गण! सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा ५०% तय की है।इसी कारण बहुत सी राज्य सरकारों द्वारा कुछ जातियों को दिये गये आरक्षण को निरस्त कर दिया गया ।क्या यह १०% का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की इस सीमा के साथ बलात्कार नहीं है? क्याआप लोगों का यह मौन संविधान,लोकतंत्र,जनकल्याणकारी राज्य,जनहित का खुला अपमान न समझा जाय।










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