शनिवार, 16 सितंबर 2023

शिक्षक अंधविश्वास मिटाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में भागीदारी निभाएँ

 शिक्षक अंधविश्वास मिटाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में भागीदारी निभाएँ

 - किशन सहाय

Kisan Sahai Meena IPS


टोक ( सच्चा सागर ) शिक्षक दिवस पर बधाई देने के साथ विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ आईपीएस किशन सहाय ने कहा कि बच्चों की परवरिश में शिक्षकों की अहम भूमिका रहती है। परवरिश का जीवन भर असर रहता है। लोगों को शिक्षक व्यवस्था और धर्मगुरु / आध्यात्मिकगुरु व्यवस्था में फर्क समझना है। वर्तमान युग को शिक्षक व्यवस्था की जरूरत है धर्मगुरु / आध्यात्मिकगुरु व्यवस्था की नहीं। भारत में, आमतौर पर लोग शिक्षकों को गुरुजी कह देते हैं तथा धर्मगुरु / आध्यात्मिक गुरु को भी गुरुजी कह देते हैं जबकि इन दोनों के कार्य में कोई समानता नहीं है। शिक्षक हमको पहली कक्षा से लेकर एमए, एमकॉम, एमएसी, एमटेक, एम.बी.ए आदि तक पढ़ाई करवाते हैं। ये हमे गणित, विज्ञान, भूगोल, भाषा, वाणिज्य आदि का ज्ञान देते हैं। इस पढाई में कहीं भी अंधविश्वास की बात नहीं आती है यानि सारी पढ़ाई वास्तविकता या वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। जबकि धर्मगुरु / आध्यात्मिक गुरु हमें ईश्वर / अल्लाह, आत्मा, स्वर्ग नर्क आदि काल्पनिक बातों की शिक्षा देते हैं। ये बातें सिर्फ मानने पर हैं वास्तव में इनका कोई अस्तित्व है। इनकी बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के खिलाफ हैं। विज्ञान और तकनीकी के युग में, छात्र जीवन के दौरान, शिक्षा के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण व नैतिक मूल्य पैदा करना शिक्षकों का मुख्य दायित्व होना चाहिए। वर्तमान समय में जीवन के चार पुरुषार्थ नैतिकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, काम और अर्थ में से प्रथम दो का विकास काफी हद तक छात्र जीवन में ही होता है। शिक्षा के साथ-साथ शिक्षकों को अंधविश्वास मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त, परम्परागत धर्म विहीन, जातिविहीन, नस्लभेद मुक्त, साहस और उच्च नैतिक मूल्यों वाले गुणों को छात्रों के जीवन में उतारने का प्रयास करते रहना चाहिए, जिससे, मानवतावादी विश्व समाज का निर्माण हो सके।

प्रस्तुतकर्ता:

- रामबिलास लांगड़ी


"सनातन"

सबका सनातन है वह चाहे मुस्लिम हो क्रिश्चियन हो बौद्ध हो जैन हो सिख हो या हिंदू..... 

"सनातन"

पर वरिष्ठ पत्रकार आरफा खानम ने बहुत अच्छी बहस का कार्यक्रम रखा, जिसमें पुनियानी से लेकर उर्मिलेश जी को इस बहस में रखकर इस बहस के और इस विषय के दोनों तथ्यों को बहुत स्पष्ट तौर पर मुखरित करने में जो भूमिका अदा की है वह निश्चित रूप से इस समय का सबसे अहम पहलू है।

पत्रकारिता के जगत में भी लोग सनातन और वर्णव्यवस्था के कितने पोषक हैं, यह बात साफ तौर पर सामने आई बहस में उर्मिलेश जी ने इस ओर भी बहुत सावधानी से उंगली उठाई, लेकिन कुछ बात है कि वह मानते ही नहीं अपने आगे किसी को आप मानिए ना अपना धर्म कौन मना कर रहा है आपको लेकिन दूसरों पर क्यों थोप रहे हैं।.......

सबका सनातन है वह चाहे मुस्लिम हो क्रिश्चियन हो बौद्ध हो जैन हो सिख हो या हिंदू.....

मजेदार विमर्श है इसे सुना जाना चाहिए, गुना जाना चाहिए और इस पर विचार करना चाहिए की दयानिधि स्टालिन ने पूरे देश के सामने आज एक उदाहरण दिया है !जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

उत्तर भारत में सनातन पर हमले को लेकर यदि कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि अब यहां की आवाम बेवकूफ है तो उन्हें यह समझना चाहिए की उत्तर भारत का युवा मुख्य रूप से पेरियार, ज्योतिबा फुले, अंबेडकर, कबीर आदि के वर्ण व्यवस्था पोषित सनातन के खिलाफ आंदोलन चला चुके हैं । और वह आंदोलन बहुत तेजी से जमीनी स्तर पर खड़ा हो रहा है। इसलिए यह बहुत स्पष्ट तौर से माना जा सकता है कि बीजेपी जितना ही इस पर हमला करेगी उतना ही "इंडिया" के समर्थक दलों को इसका लाभ मिलेगा ! इसलिए पत्रकार बंधुओ आप लोग सत्य को सत्य की ही तरह समझिए।

भाजपा धर्म की राजनीति करके किसका नुकसान कर रही है। कभी-कभी उसका भी आकलन करिए उन्होंने पिछड़ी जातियों का दलितों का जो नुकसान किया है सामाजिक न्याय के लिए लोग सामाजिक आंदोलनों से आगे आ रहे थे। उसे इसने बहुत चालाकी से रोका है, धर्म को हथियार बनाया है और राजनीति में उसका भरपूर प्रयोग किया है फिर सनातन के माध्यम से इस घोड़े को दौड़ना चाह रहे हैं जो जनता को भलीभांति समझ में आ गया है वह उत्तर हो पूर्व हो पश्चिम हो दक्षिण हो चारों तरफ जिस हाहाकार का प्रकोप है वह क्या है?

आशुतोष जी ! आप यह बात क्यों कर रहे हैं जब समाज में शिक्षा नहीं थी लोगों को अंबेडकर और पेरियार की जानकारी नहीं थी ज्योतिबा फुले को नहीं जानते थे सावित्रीबाई फुले की जानकारी नहीं थी और सब कुछ भाग्य को मानकर चल रहे थे।

वही सनातन जो सती प्रथा को बढ़ावा दिया था वही महिलाओं को उनके पुरुषों के साथ जला दे रहा था। सनातन में ही वर्ण व्यवस्था है ऊंच नीच है छुआछूत है, इस सबसे समाज उब गया है। 

अफसोस है इस देश का प्रधानमंत्री सनातन की बात कर रहा है, संविधान की नहीं ?इसलिए संविधान और सनातन में कोई सामंजस्य आज नहीं है। 

आप सनातनी बने रहिए लेकिन दूसरों को सनातनी बनाकर उनको अपमानित मत करिए।

उम्मीद है कि आप उर्मिलेश जी को समझने की कोशिश करेंगे।

भाजपा के कार्यकर्ता की तरह श्री राहुल देव जी बात कर रहे हैं । शायद उनको इस बात का अध्ययन नहीं है कि इस बीच कांचाइल्लैया की पुस्तक हिंदुत्व मुक्त भारत कितनी अधिक मात्रा में बिकी है, शायद जितना आपका रामायण और अन्य ग्रंथ नहीं बिका होगा।

अंबेडकर की बहुत सारी किताबें को लोग पढ़ रहे हैं।

दलित और बहुजन साहित्य की स्थिति वह नहीं रह गई है लोग इन विषयों पर बोल रहे हैं।लिख रहे हैं नीरज पटेल हैं, अंबेडकरनामा के डॉ रतन लाल है, वायर, न्यूजलॉन्ड्री और बीबीसी आदि समय-समय पर ऐसी परिचर्चा करता ही रहता है।

कम से कम राहुल देव जी जैसे लोगों को दोहरे चरित्र से पत्रकारिता करने का जो अवसर मिला रहा है वह यहां साफ साफ दिखाई दे रहा है।

वह अपना धर्म माने सनातन माने कौन उन्हें मना कर रहा है लेकिन उसकी जो खूबियां है उसे तो लोग गिनवाएंगे ही इसके लिए नुकसानदेह है वह भी लोग बताएंगे।

पूरी बहस को सुनिए यही कहूंगा।


(932) सनातन पर अब तक की सबसे बड़ी बहस: INDIA ने चारों ओर से घेरा मोदी को, अब सिर्फ़ ‘सनातन का सहारा’ - YouTube



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