मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020
प्रो.ईश्वरी प्रसाद जी का पूरा वैचारिक आधार बहुजन उत्थान का रहा है.
रविवार, 11 अक्टूबर 2020
रविवार, 20 सितंबर 2020
गुजरात से भारत
गुरुवार, 27 अगस्त 2020
डा मनराज शास्त्री जी के विचार :
डा मनराज शास्त्री जी के विचार :
Economically weaker sectionको १०% आरक्षण दिया गया।मैं इन शब्दों को संविधान की किताब में ढ़ूढ़ रहा था। मुझे नीति निदेशक सिद्धांतों वाले संविधान के चतुर्थ भाग में अनुच्छेद ४६ में weaker section मिला,लेकिन उसके विशेषण के रूप में प्रयुक्तeconomically शब्द नहीं मिला,यद्यपि इस अनु्च्छेद में economic शब्द अवश्य मिला। क्या है अनुच्छेद४६ ।" promotion of educational and economic interest of Scheduledcastes, scheduled Tribes and other weaker sections".लगता है कि खींचतान कर इसी अनुच्छेद से " economically weaker section" को गढ़ा गया है और संविधान सभा में भी की गई आर्थिक आधार और संविधान लागू होने के बाद भी सवर्णों तथा संघी मनोवृत्ति कै लोगों की मांग को बलात्कर,संविधान की मर्यादा का उल्लंघन करते हुयेEWS को १०% आरक्षण आनन- फानन में दे दिया गया।इस अनुच्छेद में weaker section की परिभाषा नहीं की गई है। पहली बात तो यह है कि इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
आरक्षण/ प्रतिनिधित्वशासन- प्रशासन में भागीदारी का मामला है,आर्थिकibterst का नहीं। और वह भी जिनका प्रतिनिधित्व प्रर्याप्त नहीं है। लेकिन यहां आरक्षण किसी भी तरह अभिप्रेत नहीं है।जब इसweakwr section का प्रयोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ किया गया है तो इससे अभिप्रेत अर्थ भी इन्हीं के समकक्ष ढ़ूढ़ना चाहिये कि weaker section of peopleकौन हो सकते हैं। इसी अनुच्छेद में आगे लिखा है कि" shall protect them from social injustice and from all the forms of exploitation".यहां देखना यह चाहिये कि SC/ ST की तरहsocial injustice किसके साथ होती है? क्या सवर्णों के साथ वैसा ही सामाजिक अन्याय होता है। समाज में गरीब और अपढ़ भी ब्राह्मण इनकी अपेक्षा कहीं अधिक सम्मान पाता है,कभी कभी इनके बहुत पढ़े-लिखों से भी अधिक। अन्य द्विजों के साथ भी यही होता है। और यह भी कहा गया है कि weaker section में वही आयेंगे जो किसी तरह के आरक्षण से आच्छादित नहीं होंगे ।इसका मतलब सवर्ण से ही होगा,क्रीमीलेयर वाले भी। लेकिन दूसरी बात जो कहीं गयी है ,वह भी यही साबित करती है किweaker section की शासन की यह मान्यता ठीक नहीं है।all forms of exploitation में सामाजिक,शैक्षिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनीतिक शोषण भी आयेगा ,जो सवर्णों का नहीं होता,अशराफ मुसलमानों का भी नहीं होता,धर्मांरित बड़ी जातियों का भी।इस लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ जो इन मानदंडों--:social injustice and all forms of exploitation की सांसत जिन्हें झेलनी पड़ती हो ,उन्हीं को weaker section of people मेंशामिल करना चाहिये,न कि सवर्णों को। अब देखना होगा कि क्या वे ओबीसी हैं या ओबीसी की कुछ कमजोर जातियां जिनका शैक्षिक और आर्थिक हित सरकार को special careके साथ देखना चाहिये,विशेष रूप से अजा और अजजा का। माननीय सुप्रीम कोर्ट को १०% आरक्षण पर निर्णय देते समय इस अनुच्छेद का भी पोस्टमार्टम करना चाहिये। यह देखना चाहिये कि संविधान की मंशा को तोड़ामरोड़ा न जाय।
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सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशगण! विगत २ फरवरी,२०१९ को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कै लिये नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में १० % आरक्षण दिया गया। आप सब को विदित है कि आरक्षण के लिये आर्थिक आधार का संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है। इसलिेए यह प्रावधान असंवैधानिक है।इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।आज तक न तो " स्टे" दिया गया और न सुनवाई हुई,कोई तारीख भी नहीं पडी।क्या इससे यह न मान लिया जाय कि इस पर चुप्पी साध कर सुप्रीम कोर्ट ने इसे लागू करने का अबाध अवसर प्रदान कर दिया है? संविधान में आरक्षण का जो प्रावधान है,वह उन लोगों के लिये है ,जिनका सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।यद्यपि आर्थिक कमजोर वर्ग के अन्तर्गत जाति- धर्म का विचार न करने का दावा संसद् में किया गया है,लेकिन व्यवहार में यह सवर्णों के लिये होगा,जिनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त से कहीं अधिक है,लगभग७०- ८०%] फिर इनके लिये १०% आरक्षण का क्या मतलब है?weaker section कौन हैं,इसको इस तरह से व्याख्यायित किया जा रहा है कि जो ओबीसी/ एससी/ एसटी/ एमबीसी( तमिलनाडु में) से आच्छादित न हो रहे हों। जो आर्थिक आधार दिया जा रहा है,उससे लगभग९५% सवर्ण( सामान्य) आ जायेंगे! फिर इसका औचित्य क्या रह जायेगा। मा० न्यायमूर्ति गण! सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा ५०% तय की है।इसी कारण बहुत सी राज्य सरकारों द्वारा कुछ जातियों को दिये गये आरक्षण को निरस्त कर दिया गया ।क्या यह १०% का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की इस सीमा के साथ बलात्कार नहीं है? क्याआप लोगों का यह मौन संविधान,लोकतंत्र,जनकल्याणकारी राज्य,जनहित का खुला अपमान न समझा जाय।
मंगलवार, 21 जुलाई 2020
अशोक गहलोअशोक गहलोत सरकार के इन फैसलों से सशंकित हैं सवर्ण ???
सवर्ण ???
Jai Constitutions
बुधवार, 3 जून 2020
श्री अखिलेश यादव जी। विश्व साइकिल दिवस की अशेष शुभकामनाएं !
(श्री अखिलेश यादव के फेसबुक पेज पर लिखा गया मेरा कमेंट) बहुत अच्छा दिन है जिस दिन आपसे कुछ बात की जा सकती है आपके इस पेज से। हमारा ख्याल है कि राजनीति में दोस्त और दुश्मन की पहचान बहुत मुश्किल होती है यदि यही पहचान हो जाए तो फिर राजनीति में व्यक्ति हमेशा हमेशा मौजूद रहे यहां तक कि उसकी राजनीति केवल राजनीति ना होकर सत्ता की बागडोर बन जाए। यदि इसका उदाहरण देखना हो तो हमें मौजूदा राजनीति में देखना चाहिए। मेरा मानना है कि राजनीत केवल सत्ता की बागडोर नहीं है बल्कि राष्ट्र निर्माण की एक कड़ी है और इस कड़ी को जन जन तक पहुंचाने में बहुत जरूरी है कि दोस्त और दुश्मन का ध्यान बना रहना चाहिए। मैं हजारों ऐसे लोगों को जानता हूं जो राजनीति को व्यापार लूट और भ्रष्टाचार का अड्डा बना करके अपनी अपनी जागीर खड़ी करने में कामयाब हुए हैं। मैं यहां यह लिखना इसलिए जरूरी समझता हूं कि देश की आजादी और लोकतंत्र का जिंदा रहना अच्छे और बुरे सभी तरह के राजनीतिज्ञों को मौका देता है लेकिन आज देश किस तरफ बढ़ गया है वहां पर लोकतंत्र सुरक्षित है यह कहीं से भी दिखाई नहीं देता। लोकतंत्र जब लोक से निकल जाता है तब वह लोकतंत्र नहीं होता वह जुगाड़ तंत्र होता है और आज हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि जुगाड़ तंत्र लोकतंत्र को लगभग समाप्त कर चुका है। जुगाड़ कहने का मतलब केवल जुगाड़ नहीं है इसके पीछे जो प्रोडक्ट है वह नियोजित संसाधन है जो लोकतंत्र को लोकतंत्र ना रहने देने के लिए जिम्मेदार है। निश्चित तौर पर लोकतंत्र का जो मुख्य हथियार है वह है लोक का मताधिकार। जब मत देने के अधिकार पर मशीन का नियंत्रण हो तो ! साइकल में तो बहुत कम कम पुर्जे हैं लेकिन यही साइकिल जब यंत्रवत कर दी जाती है तब जनता के लिए चलना मुश्किल हो जाता जिसके लिए हमेश एक मकैनिक की जरुरत पड़ा जाती है उससे जनता का विश्वास औरअधिकार उस मकैनिक पर चले जाते हैं यानि समाप्त हो जाते हैं। जैसा कि देखने में आया है कि बहुत सारे ऐसे क्षेत्र जहां पर अमुक दल के लोग हार रहे थे वे यकायक परिणाम आने पर बहुत अधिक मतों से विजई हुए जो वहां के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों के बिल्कुल विपरीत था। इसलिए इस वैश्विक साइकल दिवस पर हम यह चिंता जाहिर कर रहे हैं कि कहीं ना कहीं हेरा फेरी का खेल किसी की ताकत की पीछे मौजूद है। और इस खेल से जीतने का एकमात्र तरीका है जन आंदोलन जब तक लोकतंत्र बचाने का जन आंदोलन नहीं होगा तब तक यंत्रवत तंत्र राजनीति में किसी को भी जीतने नहीं देगी। मैंने आज के दिन यह बात इसलिए लिखी है कि शायद यह पढ़ा जाए और इस पर वाजिब चिंतन मनन हो। साभार डॉ लाल रत्नाकर 03 जून 2020
शनिवार, 23 मई 2020
बहुजन विमर्श
श्री बी आर विप्लवी जी का मत :
सोमवार, 18 मई 2020
डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद : 10 ;03 ;2025
डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद : 10 ;03 ;2025 (श्री राहुल गांधी जी ने इनको (डॉ अनिल जैहिन्द यादव को) संविधान बचा...

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सामजिक न्याय के लिए संघर्ष ; https://www.facebook.com/AnupriyaPatelMLA "हमें खाद्य सुरक्षा कानून और लैप-टॉप नहीं चाहिये। देना ...
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जातिवादी वर्चस्व के आगे संसद की भी नहीं चलती! by Dilip Mandal on 26 नवंबर 2010 को 11:34 बजे (26 नवंबर, 2010 को जनसत्ता के संपादकीय प...