रविवार, 11 अक्तूबर 2020

जाटों में यदि यह स्वाभिमान, जग गया तो निश्चित तौर पर एक तूफान खड़ा होगा,


 मैंने
उसी दिन कहा था कि यह जाटों के स्वाभिमान पर हमला है। जाटों में यदि यह स्वाभिमान, जग गया तो निश्चित तौर पर एक तूफान खड़ा होगा, यह सब निर्भर करेगा कि जाट स्वाभिमान किस हद तक आगे बना रहता है। जैसा कि जाहिर है कि भाजपा ने जाटों के गढ़ में सेंध लगाकर अपने सांसद और मंत्री बना रखे हैं जो जाट स्वाभिमान के बजाय पाखंड और हिंदुत्व के मुद्दे और अपनी संघीय स्वाभिमान की छुपी हुयी निति पर अपनी रोटी सेक रहे हैं।

जहां तक चौधरी चरण सिंह का सवाल है चौधरी साहब किसान को भगवान मानते थे। उन्हें राष्ट्र की रीढ़ मानते थे, जिसे संघियों और आधुनिक आर्य समाजियो ने धर्मभीरु बना दिया है। मेरा मानना है कि चौ चरण सिंह जी जैसा व्यक्ति जो धर्म के मर्म को समझते थे और पाखंड के खिलाफ बोलते भी थे, परंतु उनके बाद के राजनेताओं में इस तरह की कोई समझ दिखाई नहीं देती जिससे जनता के अंदर फैलाए जा रहे हिंदू मुसलमान के बंटवारे का विरोध हो सके.जो लोग चौ चरण सिंह की राजनीति को जानते हैं वह अच्छी तरह जानते हैं कि चरण सिंह के साथ मुसलमान कंधे से कंधा मिला कर खड़ा था और आज भाजपा ने उसी समीकरण को तोड़ दिया है और मुसलमानों के खिलाफ जाटों और किसानों को करने में कामयाब हो गई है.यही है भाजपा की बंटवारे की नीति जब तक इस नीति को जाट समझेगा तब तक जाटों का मोहभंग नहीं होगा. क्योंकि जाटों को ऐसा लगता है कि सत्ता में उनकी भागीदारी है और यह भागीदारी किस तरह से पूरे समुदाय के लिए खतरनाक है यह संसद में किसी जाट नेता को बोलते हुए कम से कम हम लोगों ने अभी तक नहीं सुना .
जब तक अजीत सिंह जी संसद में होते थे तो वह तकनीकी तौर पर किसानों की बात रखते थे इसी के साथ चौधरी चरण सिंह के मानने वाले तमाम वरिष्ठ नेता जो धीरे धीरे धीरे धीरे अलग होते गए और आज संसद किसानों की आवाज से महरूम हो गई है जिस तरह की नीतियां संसद और संविधान को किनारे करके बनाई जा रही हैं उसकी वजह से बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि संघ और भाजपा की नियति देश की सारी संपत्ति पर उनके कुछ व्यापारियों का कब्जा हो जाए! और इसीलिए भाजपा 2014 में आते ही देश की जमीन हड़पने का कानून ले करके आई थी जिससे वह अपने पूजीपतियों को उनकी मनचाही धरती उनके हवाले करना चाह रही थी. यह बात उस समय के किसानों को कुछ समझ में नहीं आई अब उसी काम को धीरे धीरे अलग-अलग तरह के कानूनों से, पूरा करके भाजपा किसानों को बर्बाद करने पर लगी हुई है. और यह बात अभी तक बहुत कम किसान समझ पा रहे हैं उनको यह दिखाई दे रहा है कि जैसा जुमले में कहा जा रहा है कि इन कानूनों से किसानों को बहुत लाभ होगा। यह लाभ उसी तरह का होगा जिस तरह का लाभ इस सरकार की अन्य योजनाओं से जनता को हो रहा है।
आश्चर्य है चौधरी चरण सिंह को करीब से जानने वाले और उनकी पुस्तक भारतीय अर्थशास्त्र की काली रात के सहयोगी प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद आजकल भाजपा के जुमलेबाजी को भारत की विकास नीतियों से जुड़ने लगे हैं चाहे वह विदेश नीति हो चाहे वह सामाजिक नीति हो चाहे वह राजनीतिक नीति हो और चाहे वह उसकी धार्मिक नीति हो. मैंने उनसे कई बार की बातचीत में यह जाने की कोशिश किया है कि क्या सचमुच वह संघ के विचारों को महत्व देने लगे हैं इस बात को नकारते हुए वह आजकल मोदी की प्रशंसक बने हुए हैं उनकी यही सज्जनता उनकी विद्वता को उनके जीवन में कई बार कमजोर करती आई है हालांकि उनकी, वैचारिकी के पीछे कांग्रेस के जमाने की ब्रह्मणवादी नीतियां और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उनके साथ हुए भेदभाव को माना जा सकता है उनका कहना है कि "नेहरूजी देश को जिस रास्ते पर लेकर गए उससे जिस तरह का विकास हुआ वह विकास आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया और कांग्रेस को समूल हटा करके यह सरकार कम से कम भारतीयता को बढ़ा रही है"!
प्रोफ़ेसर साहब तब मौन हो जाते हैं जब उनसे यह सवाल किया जाता है कि संविधान को तोड़ मरोड़ करके सारी संवैधानिक संस्थाओं को व्यापारियों के हित में खड़ा करके कौन सा काम यह सरकार कर रही है। इस सरकार ने रोजगार और सरकारी उपक्रमों को अपने व्यापारियों को बेच करके किस तरह का देश बनाने जा रही है। जब देश पर चीन के द्वारा इतने बड़े बड़े हमले किए जा रहे हो और मौजूदा सरकार चुप हो तो वह यह बात कह कर के अपनी जानकारी को जिस तरह से ठोकते हैं। उसमें रक्षा मामलों का , हवाला देते हुए यह बताते हैं कि इतनी तोपें कितने लड़ाकू हवाई जहाज इस सरकार में खरीदे गए हैं। जिससे देश की सैन्य शक्ति बहुत मजबूत हुई है। प्रोफ़ेसर साहब को कौन बताए की जिस तरह से यह सरकार जुमले और नफरत फैलाकर एक विशेष तरह का आडंबर फैला रही है उससे निश्चित तौर पर वह प्रभावित और दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं है।
दूसरी तरफ उनका यह भी मानना है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी को देश का कौन सा ज्ञान है। एक तो विदेशी है जो इस देश की आत्मा को समझती ही नहीं है और दूसरे उसका बेटा है जो कठिनाइयां देखा ही नहीं है उसके हाथ इस देश को कैसे सौंपा जा सकता है उनकी यह बात उनकी यह पीड़ा समझ में जरूर आती है लेकिन जींस विचारधारा और तौर-तरीकों से मौजूदा सरकार देश को पूजी पतियों के हाथों में सौंप रही है उस पर प्रोफेसर साहब चुप हो जाते हैं.
यह घालमेल का माहौल बार-बार उन्हें झकझोरता है और वह टेलीफोन पर, जितनी बात करते हैं उसमें मौजूदा सरकार के प्रति उनका आकर्षण और उसकी कमियों पर चुप हो जाना अक्सर बहुत खटकता है.
उनके इस बदले हुए रूप के साक्षी डॉ मनराज शास्त्री जी भी हैं पिछले दिनों जब वह दिल्ली आए थे और शास्त्री जी भी दिल्ली में थे तो मैं उनके साथ प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद जी के घर गया था। यहां पर उनसे बातचीत हुई तो शास्त्री जी भी आश्चर्यचकित थे कि सरकार के द्वारा संविधान और सामाजिक न्याय के ऊपर कुठाराघात हो रहा हो उसके इतने पक्षधर प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी हो जाएंगे यह बात आश्चर्यचकित करने वाली थी। मैं चाहूंगा कि डॉ शास्त्री उनके उस बातचीत के छोटे से समय को किस रूप में देखते हैं उससे एक स्वतंत्र रूप से अपने किसी लेख में लिखें जिससे प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद जी जो एक जमाने में सामाजिक न्याय और दलित चेतनाओं पर पुस्तके लिखे हैं उन्हें इस सरकार में क्या ऐसी खूबी दिखाई दे रही है जबकि चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है।
अब हम फिर आते हैं जाट आंदोलन पर जाट आंदोलन खड़ा करना समय की मांग है। क्योंकि जाटों का जो दबाव क्षेत्र है वह दिल्ली के इर्द गिर्द फैला हुआ है। यदि जाटों और गुर्जरों में यह चेतना आ जाए की मौजूदा सरकार उनके अधिकारों पर हमला कर रही है। और जिसे उन्हें बचाना है तो निश्चित तौर पर एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है और उस आंदोलन को नेतृत्व देने के लिए भक्तों की नहीं सजग और चेतना युक्त समाज से निकलकर के लोग आगे आएं। जो इन आंदोलनों को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी उठाएं। तो मैं समझ सकता हूं कि हम अभी भी इस निरंकुश सरकार को रोकने में कामयाब हो सकते हैं। ऐसा नहीं है की धरती वीरों से खाली हो गई है। बहुत सारे ऐसे नेताओं को मैं जानता हूं जो यदि नए सिरे से इस सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़े हो तो जनता उनकी सुनेगी।
लेकिन जो सबसे बड़ा डर है, वह यह है कि जो छोटे-छोटे छत्रप अनेक राज्यों में यह समझते हैं कि यदि नए लोग आ गए तो उनके राजपाट का क्या होगा। यह वही लोग हैं असली दुश्मन हैं किसानों के और सामाजिक न्याय की नीतियों के इसलिए नए नेतृत्व की खिलाफ वह दुश्मन के साथ होंगे और भीतर से इस नए आंदोलन को कमजोर करने की पुरजोर कोशिश करेंगे क्योंकि मौजूदा राजनीतिक ताकत हर तरह से उसके खिलाफ कोई विरोध न खड़ा हो उसके लिए तमाम ऐसी ताकतों को कमजोर करके रखती है। या विरोधियों को द्वारा रखा है। जो विरोध में खड़े होने का साहस भी करते ऐसे में जनता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। और उसे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं आगे आने की हिमाकत करनी होगी। और अपने बीच से ईमानदार और चरित्रवान नेतृत्व को विकसित करना होगा ऐसे अवसर पर उन तमाम युवाओं को जो बेरोजगार हो चुके हैं या जिन्हें रोजगार मिलने की उम्मीद नहीं है। झूठ और जुल्मों से उन्हें भरमा करके ऐसी स्थिति में छोड़ा जाएगा। जब वह किसी लायक नहीं होंगे मैंने देखा है पढ़े लिखे लोगों में किस तरह से वह भक्त हो करके अपनी सोच और समझ को गिरवी रख चुके हैं। और उन मूर्खों के गुलाम बन गए जो उन्हें सदियों से मूर्ख बना करके गुलामी कराते आए हैं।
उम्मीद है की किसान जातियों में एक नई चेतना जागेगी और वह ऐसी जुमलेबाजी और झूठ की व्यवस्था को तोड़ने के लिए कमर कस कर आगे आएंगे और उम्मीद है ईमानदारी और जिम्मेदारी से आगे बढ़ेंगे तो ऐसे लोग जो देश को लूट रहे हैं उनसे देश को बचाया जा सकेगा.
- डा लाल रत्नाकर

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