शनिवार, 25 मई 2019

क्या भाजपा की जीत को ‘भारत की जीत’ कहा जा सकता है?

भारत राजनीति 
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क्या भाजपा की जीत को ‘भारत की जीत’ कहा जा सकता है? 
-सिद्धार्थ वरदराजन
May 25, 2019 |

नरेंद्र मोदी की जीत का भारत के लिए क्या अर्थ निकलता है? एक हद तक यह उन्हें और भाजपा को दावा करने का मौका देता है कि पिछले पांच सालों में उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके प्रति जनता ने अपना विश्वास जताया है. पर क्या यह सच है?नई दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)300 सीट और 2014 में भारतीय जनता पार्टी को मिले मतों से ज्यादा मत प्रतिशत के साथ नरेंद्र मोदी के पास 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से संतुष्ट होने की तमाम वजहें हैं. किसी भी दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा वे बेहतर जानते हैं कि यह नतीजे कैसे आए हैं.अकूत धनबल के सहारे चलाए गए उनके चुनाव अभियान में बहुत होशियारी से पांच साल पहले 2014 में उनके किए गए विकास के वादों का कोई जिक्र नहीं किया गया. इसकी जगह उनका भरोसा हिंदुओं के दिमाग में मुसलमानों को लेकर भय पैदा करने और खुद को आतंकवाद को हराने में सक्षम एकमात्र भारतीय नेता के तौर पर पेश करने पर ज्यादा था.मोदी ने खुले तौर पर पुलवामा आत्मघाती हमले में शहीद हुए अर्धसैनिक बलों के जवानों का इस्तेमाल एक चुनावी हथियार के तौर पर किया और मर्यादाओं को तार-तार करते हुए उनके नाम पर वोट मांगने से भी नहीं चूके. उन्हें इस बात से भी मदद मिली कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास इस सनकी रणनीति का कोई तोड़ नहीं था.वर्धा में मोदी ने यह दावा करते हुए खुलेआम धर्म के नाम पर हिंदू मतदाताओं से वोट मांगा कि आतंक फैलाने के आरोप में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ मुकदमा चलाकर उनके धर्म को बदनाम किया गया. उन्होंने वायनाड सीट से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने का मजाक बनाया, ‘वहां अल्पसंख्यक बहुमत में है’, मानो मुस्लिम इस देश के बराबरी के नागरिक नहीं हैं. More in भारत : सीवेज साफ़ करने के दौरान हो रहीं मौतें समाज के लिए अभिशाप: मानवाधिकार आयोगबड़गाम हेलीकॉप्टर हादसा: शहीद के परिवार ने कहा- अंधेरे में रखकर हमें धोखा दिया गयाराहुल गांधी का इस्तीफ़ा मांगने वालों से कुछ सवालगुजरातः वडोदरा में फेसबुक पोस्ट को लेकर दलित दंपति पर हमलारिकॉर्ड मतों से जीतने वाले बढ़े, पहली बार चार प्रत्याशी छह लाख से ज़्यादा मतों से जीतेमध्य प्रदेश: गोमांस के शक़ में तीन की बेरहमी से पिटाई, जय श्री राम के नारे भी लगवाए ध्रुवीकरण करने वाले ये बयान टेलीविजन पर लाइव दिखाए गए और पूरे देश में भाजपा के प्रोपगैंडा तंत्र द्वारा इन्हें फैलाया गया, जिसने यह सुनिश्चित किया कि यह जहर दूर-दूर तक चारों तरफ फैल जाए. असम और पश्चिम बंगाल में इसने बांग्लादेश से आनेवाले अप्रवासियों के लिए धर्म आधारित नागरिकता के भाजपा के प्रस्ताव को खाद- पानी देने का काम किया.जब चुनाव आयोग ने यह जतला दिया कि वह आदर्श आचार संहिता के इतने खुलेआम उल्लंघनों के लिए मोदी पर किसी तरह की कोई कार्रवाई या उन्हें चेतावनी तक देने तक के लिए तैयार नहीं है, तब मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा कर दिया.उनकी उम्मीदवारी न सिर्फ हिंदू कट्टरता बल्कि हिंसा और मुस्लिमों के खिलाफ आतंक को बढ़ावा देने का प्रतीक था. उम्मीदवार बनाए जाने के बाद प्रज्ञा ठाकुर का पहला बयान 2008 में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की (पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा) हत्या के समर्थन का था, क्योंकि उन्होंने उन पर (प्रज्ञा ठाकुर पर) मुस्लिमों को मारने के लिए बम रखने का आरोपी बनाया था.इसके बाद उनके द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारे की प्रशंसा ने ऐसी शर्मिंदगी भरी स्थिति पैदा कर दी कि मोदी को उनसे दूरी बनाने की कोशिश करनी पड़ी. लेकिन मोदी ने यहां भी काफी सचेत तरीके से उस राजनीति की कोई आलोचना नहीं की, जिसकी नुमाइंदगी नाथूराम गोडसे करता था.प्रज्ञा की तरह ही उनके पास भी गांधी या उनके सिद्धांतों के लिए वक्त नहीं है; लेकिन उनकी रणनीति गांधी को हथियाने और जहां संभव हो उनका इस्तेमाल करने की है, न कि उनकी हत्या को सही ठहाने की कोशिश करने की.अगर मोदी नियमों के दायरे में रहते हुए, पूरी तरह से अपनी ‘उपलब्धियों’ और उनको लेकर जनता की धारणा और विपक्ष के नेताओं पर जनता के विश्वास के न होने पर पर भरोसा करते हुए यह चुनाव जीतते तो बात अलग होती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि शायद वे जानते थे कि यह काफी नहीं होगा और अन्य बातों की भी जरूरत होगी.किसी के लिए चुनाव में भाजपा की जीत को ‘विजयी भारत’ कहना कैसे संभव है- जैसा कि मोदी चाहते हैं- जबकि इसका मतलब भोपाल से प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जीत को ‘भारत की जीत’ के तौर पर स्वीकार करना है?भाजपा का बचाव करनेवाले अब यह अनुमान लगा रहे हैं कि मोदी अब चुनाव के आखिरी चरण से पहले की गई अपनी कोशिश से भी ज्यादा शिद्दत से प्रज्ञा ठाकुर से दूरी बनाएंगे. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.ठाकुर को भी उसी तरह से दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर कर दिया जा सकता है, जैसे प्रवीण तोगड़िया को गुजरात में किया गया था. हो सकता है कि वे मंत्री भी बन जाएं. मोदी का उद्देश्य इस देश की रगों में एक वायरस घोलने का है, एक बार उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद व्यक्ति का कोई महत्व नहीं रह जाता है.मोदी की अचंभित कर देने वाली जीत के तीन और पहलू हैं, जिनसे हमें चिंतित होना चाहिए. पहला, धनबल का अब तक न सुना गया इस्तेमाल, जिसमें उनकी मदद उनके ही द्वारा बनाए गए कानून ने की, जो जनता को प्रधानमंत्री के धनवान और शक्तिशाली दोस्तों की पहचान जानने से रोकता है.इन कॉरपोरेट मित्रों ने ही भाजपा के बेहद खर्चीले चुनाव अभियान और विज्ञापन बजट का खर्चा उठाया. इस विज्ञापन बजट में एक 24 घंटे का प्रोपगैंडा चैनल भी था जो रहस्यमय तरीके से टीवी के पर्दे पर आया और गायब हो गया और चुनाव आयोग हाथ पर हाथ रखकर नियमों की धज्जियां उड़ते देखता रहा.चूंकि हमें यह नहीं मालूम है कि भाजपा के अभियान का खर्चा किसने उठाया था, इसलिए इसके बदले में नीतियों के रूप में क्या दिया जाएगा, यह समझ पाना मुश्किल है.दूसरी बात, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा मोदी की महापुरुष की छवि गढ़ने और उसे फैलाने में साथ देने और विभिन्न ‘योजनाओं’ के आधार पर सरकार का स्तुतिगान करने के लिए तैयार है. निजी टीवी चैनलों द्वारा मोदी और शाह की रैलियों को बाकियों की तुलना में बहुत ज्यादा समय दिया गया.इसके अलावा, पिछले पांच सालों में मीडिया के बड़े वर्ग ने भाजपा के बांटने और भटकाने वाले एजेंडा को आगे बढ़ाने, सार्वजनिक क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने और सरकार की असफल नीतियों के आलोचनात्मक मूल्यांकन को भोथरा करने में सक्रिय तरीके से मदद की है.पिछले कुछ वर्षों में मीडिया के इस धड़े ने संघ परिवार के सांप्रदायिक संदेश- ‘लव जिहाद’ से लेकर अयोध्या तक- और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भाजपा के बढ़ा-चढ़ाकर किए जाने वाले दावों को आगे बढ़ाने के रास्ते के तौर पर काम किया है.मंत्रियों द्वारा बोले जाने वाले सफेद झूठों- जैसे निर्मला सीतारमण का यह दावा कि मोदी के कार्यकाल में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ- पर किसी ने कोई सवाल उठाना मुनासिब नहीं समझा.पुलवामा में सुरक्षा और इंटेलिजेंस की नाकामी या बालाकोट में भारत की सवाल उठाने वाली जवाबी कार्रवाई, जिसमें भारत का एक मिग विमान मार गिराया गया, एक कैप्टन पकड़ा गया और भारतीय पक्ष द्वारा अपने ही एक हेलीकॉप्टर को मार गिराया गया, जिसमें वायु सेना के छह जवान और एक आम नागरिक की मौत हो गई, को लेकर किसी ने कोई कड़ा सवाल पूछना जरूरी नहीं समझा.मीडिया के जिस धड़े ने मोदी सरकार के एजेंडा को आगे बढ़ाने का इंजन बनने से इनकार कर दिया, उसे मानहानि के मुकदमों, सीबीआई या टैक्स पड़ताल या ऐसी ही किसी कार्रवाई का सामना करना पड़ा. कई पत्रकारों और संपादकों को अपनी नौकरियों से हाथ गंवाना पड़ा.सोशल मीडिया पर, जो आलोचना का एक स्रोत है, पर एक डर का माहौल बनाने के लिए और उस पर पहरेदारी बैठाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं और दंडवत पुलिसकर्मियों द्वारा देश के साइबर कानूनों का नियमित तौर पर और गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया.तीसरा, हाल के इतिहास में इस बार चुनाव आयोग का कामकाज सबसे ज्यादा पक्षपातपूर्ण रहा. चुनाव आयोग न सिर्फ मोदी और भाजपा द्वारा जन-प्रतिनिधि कानून और आदर्श आचार संहिता के खुलेआम उल्लंघनों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहा, बल्कि इसने कई ऐसे फैसले भी लिए, जो सीधे तौर पर पार्टी को फायदा पहुंचानेवाले थे.मसलन, पश्चिम बंगाल में कानून और व्यवस्था पर आपातकालीन संकट के आधार पर चुनाव प्रचार को पहले बंद करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 का इस्तेमाल, लेकिन इसकी मियाद को इस तरह से तय करना कि राज्य में प्रधानमंत्री की रैलियों में कोई व्यवधान न आए.इन सबको मिलाकर देखा जाए तो इस तरह की जीत का भारत के लिए क्या अर्थ निकलता है? एक सीमा तक यह मोदी और भाजपा को यह दावा करने का मौका देता है कि पिछले पांच वर्षों में उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके प्रति जनता ने अपना विश्वास जताया है.ऐसे में यह देश के ज्यादा सांप्रदायीकरण, निर्णय लेने के ज्यादा केंद्रीकरण, ज्यादा मनमानेपन से भरे नीति-निर्माण, कॉरपोरेटों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए ज्यादा गुंजाइश, आजाद मीडिया के प्रति ज्यादा दुश्मनी भरा भाव और निश्चित तौर पर विरोध के प्रति ज्यादा असहिष्णुता के लिए मंच तैयार करनेवाला है.मिसाल के लिए चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राजद्रोह के लिए और ज्यादा कठोर कानून बनाने की बात की थी. यह भी साफ है कि संस्थानों के खिलाफ मोदी सरकार की लड़ाई को अब अगले स्तर पर ले जाया जाएगा.पिछले पांच वर्षों में मोदी की यथासंभव कोशिशों के बावजूद दो किले अभी तक किसी तरह से खुद को ध्वस्त होने से बचाए हुए हैं- उच्च न्यायपालिका और केंद्र-राज्य संबंध. अब ये निशाने पर होंगे. अर्थशास्त्री नितिन देसाई का अंदेशा है कि अपने नए बहुमत का इस्तेमाल मोदी राज्य के विषयों में नीतियों को ‘लागू करने’ के मामले में केंद्र को ज्यादा शक्ति देने की कोशिश करने के लिए करेंगे. वे शायद इसके लिए वित्त आयोग का इस्तेमाल करें.जहां तक न्यायपालिका का सवाल है, यह तय है कि भाजपा नियुक्तियों पर प्रभाव डालकर इस पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करेगी. इस विनाशकारी एजेंडा के खिलाफ विपक्ष का अनमने ढंग से चलाया जाना अभियान कारगर नहीं होगा.अमित शाह ने जिस चुनावी मशीन को तैयार किया है, उससे रणनीतिक स्तर पर जाति आधारित या दल आधारित गठजोड़ों के सहारे नहीं लड़ा जा सकता. भाजपा की रणनीति जातिगत वफादारियों को तोड़ना और सभी जातियों के सदस्यों को ‘हिंदू’ में बदल देने की है.पहले की मंडल राजनीति अपने चतुर जाति समीकरणों के बल पर इस कमंडल राजनीति को रोकने में कामयाब रही थी, लेकिन आज यह संभव नहीं है. अगर भाजपा मतदाताओं को हिंदू (और मुसलमान) के तौर पर देखती है, तो शायद विपक्ष को उन्हें उनके भीतर के कामगार या स्त्री या किसान या युवा के तौर पर के तौर पर संबोधित करना होगा. लेकिन यह बहस किसी और दिन के लिए सही.
(साभार दि वायर हिंदी से)

इस आलेख के साथ कुछ और आलेख संलग्न करा रहे हैं जो "नवजीवन" से लिए गए हैं। 













रविवार, 21 अप्रैल 2019

बहुजन राजनीति और बहुजन समाज पार्टी की आर्थिक संरचना ।


इस बात को समझने के लिये हमें अलग अलग वैचारिक आलेखों का अध्ययन ही स्पष्ट करेगा ?

दुसाध की अपील 
बेगुसराय से कन्हैया को ख़ारिज कर तनवीर साहब को ही संसद में भेंजे! 
                                          -एच.एल दुसाध
डियर सर/मैडम , 
संयोग से कल बेगुसराय के जिस भूमिहार लौंडे के पीछे वर्षों से एनजीओ और प्रगतिशील गैंग दीवाना है, उससे जुड़ा मेरा 3 साल पुराना एक पोस्ट दिख गया, जिसे मैंने यह सोचकर अपनी टाइमलाइन पर शेयर कर दिया कि 17 वीं लोकसभा के निर्णायक चुनाव में लोगों को उसे जानने-समझने तथा उसपर राय बनाने के लिए कुछ नयी सामग्री मिल जाएगी. खैर !अपनी टाइम लाइन पर डालने के बाद मैं एक खास आर्टिकल लिखने में व्यस्त हो गया.  
पिछले पांच-छह महीनों से सिगरेट छोड़ने के बाद लिखने के लिए कंसेन्ट्रेशन बनाने हेतु मैंने टीवी का सहारा लेना शुरू किया है. अब मैं लो वॉल्यूम में टीवी चलाकर लिखता हूँ. लिखते-लिखते मैं टीवी स्क्रीन पर नजर दौड़ा लेता हूँ.इससे विषय पर कांसेंट्रेट करने में सहूलियत होती है. बहरहाल आज भी लो वॉल्यूम में टीवी चलाकर एक आर्टिकल लिख रहा था कि अचानक मेरी नजर एक जाने-पहचाने दृश्य पर टिक गयी. वह दृश्य कल टीवी पर देखा था. इसी दृश्य को देखकर कल मैंने फेसबुक दो पोस्ट डाला था.एक,’भूमिहार लौंडे के गाँव में उसका मीडिया फादर,देखे मजा आएगा!’ दूसरा,’watch battle of begusarai through eye of rubbish !’.जी हाँ,आपने सही पकड़ा. वह दृश्य कल कन्हैया की गरीबी को राष्ट्र के समक्ष लाने के रबिश कुमार के उपक्रम से जुड़ा था. गोदी मीडिया के आविष्कारक रबिश कुमार ने कल बेगुसराय पहुंचकर जिस तरह भूमिहार लौंडे को हाईलाइट किया, वह देखकर मैं चकित था. उसके अभियान का मजा लेने के लिए कल शायद आधा घंटा लगातार एनडीटीवी देखता रहा. लेकिन आज जो देखा शायद कल नहीं देख पाया.

कन्हैया से मोहित : बड़े-बड़े बहुजन लेखक और एक्टिविस्ट !

आज रबिश ने उसके चुनावी राजनीति में उतरने का मकसद जानने के लिए उससे कुछ सवाल किये थे. जिसके जवाब में उसने जो कुछ कहा था, उसका अर्थ यह था कि वह संसद में पहुंचकर मोदी की आंख में आँख डालकर सवाल करेगा. वह पूछना चाहेगा कि देश में इतने बेरोजगार लोग क्यों हैं..आदि आदि? मुझे ऐसा लगा यह प्रोजेक्टेड सवाल था. रबिश उसके मुंह से वह कहलवाकर सन्देश देना चाहता था कि लोगों देखो आपके बीच एक ऐसा नौजवान है जो मोदी से सवाल कर सकता है अर्थात इस देश में मोदी से सवाल करने की कूवत और किसी में नहीं है. यह एक अजीब संयोग है कि बेगुसराय के लौंडे की हिमायत करने वाले असंख्य लोगों का यही तर्क है कि वह मोदी की आंख में आँख डालकर सवाल कर सकता है.ऐसा तर्क देने वालों में बहुजन समाज के बड़े-बड़े स्वनाम-धन्य लेखक से लेकर एक्टिविस्ट तक शामिल हैं. बहरहाल अगर लोगों के जेहन में उसकी यह छवि बनी है तो निश्चय उसमें सबसे बड़ा योगदान रबिश का है.

आम भारतीयों की नजर में : भाषणबाजी कर सकने वाला ही नेता!  

मेरा बहुत ही गहरा अध्ययन है कि भारत में जो लोग खुलकर भाषण दे लेते हैं, लोग उनको नेता मान लेते हैं. लोगों के ऐसा मानने से बकैती करने वाला भी खुद को नेता मानने लगता है. बेगुसराय  के लौंडे के साथ भी यही सुखद संयोग है. मैं शायद पहला वह व्यक्ति हूँ जिसने इस लड़के और इसके गॉडफादर रबिश को लेकर तीन साल पहले से ही सवाल उठाना शुरू किया. मैंने शायद पचासों बार फेसबुक पर उसके समर्थकों को ललकारा कि देश की बुनियादी समस्यायों पर उसकी राय क्या है, बताएं ? पर,कोई भी सामने नहीं आया. मेरी धारणा थी कि यह लौंडा, जो जेएनयू से पीएचडी होल्डर है, कभी कोई आलेख लिखेगा तो जान पाऊंगा सामाजिक परिवर्तन एवं गुलामी से आजादी पर उसकी राय जान पाऊंगा. पर मुझे ताज्जुब है इसका कोई लेख आजतक पढने को नहीं मिला,जिससे पता चले कि देश की बेसिक समस्यायों को लेकर उसकी राय क्या है? अब जहाँ तक उसकी भाषणबाजी का सवाल है, मैंने नोट किया है कि प्रगतिशील बुद्धिजीवी देश के जिन तीन युवाओं में भगत सिंह की छवि देखते हैं, वे तीनो - कन्हैया, उमर खालिद और जिग्नेश मेवानी- अपने सतही भाषणों से यदि कुछ किये हैं, तो सिर्फ और सिर्फ हिन्दू ध्रुवीकरण! इसलिए दुसाध बेगुसराय के लौंडे के साथ उमर और जिग्नेश को कभी गंभीरता से नहीं लिया. इन तीनो लौंडों के साथ मैंने इनके मीडिया फादर ,रवीश को भी इनके ही जैसा पाया. 

रबिश : सोशलाईट ब्राह्मण ! 

मैंने रवीश को लेकर भी पचासों बार सवाल उठाये, किन्तु कोई भी मुझे भ्रांत प्रमाणित नहीं कर पाया: रवीश को लेकर उठाये गए मेरे हर सवाल का समर्थन करने के लिए लोग विवश रहे .किसी ज़माने में ‘दलित व्वाईस ’ के संपादक वी.टी. राजशेखर कहा करते थे,’बहुजनों के लिए सोशलाईट ब्राह्मण की तुलना में कट्टर ब्राह्मण कम खतरनाक होता है.’ रबीश खतरनाक ब्राह्मणों की श्रेणी में आता है.

मोदी की आँख में आंख डालकर कन्हैया क्या उखाड़ लेगा!

कन्हैया के भक्त उसमे भगत सिंह की छवि देखते है./क्या दक्षिण अफ्रीका की आर्थिक-सामाजिक हालात पर पीएचडी करने वाले इक्कीसवीं सदी के भगत सिंह ने यह बताया कि दक्षिण अफ्रीका में भारत के सवर्णों सादृश्य जिन गोरों का वहां शक्ति के स्रोतों-आर्थिक,राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षिक -80-90 प्रतिशत कब्ज़ा रहा, उन्हें मंडेला के लोगों ने तानाशाही सत्ता के जोर से इस हालात में पहुंचा दिया है कि गोरे अब दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भागने लगे हैं! इक्कीसवीं सदी के इस भगत सिंह ने क्या कभी यही बताया कि दक्षिण अफ्रीका के संसद ने वर्ष 2018 के फरवरी में एक निर्णय लेकर जिन 9-10 प्रतिशत गोरों का भूमि पर 72 प्रतिशत कब्ज़ा था, उसे बिना मुवावजा दिए मूलनिवासियों के मध्य बांटने का काम अंजाम दे दिया है? क्या कन्हैया ने कभी यह बताया कि दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसे अल्पजन सवर्णों ने धर्म और ज्ञान सत्ता के साथ अर्थ और राज-सत्ता पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा जमा कर भारत में विषमता का बेनजीर साम्राज्य कायम कर दिया है और सांसद बनकर वह इसके खिलाफ संग्राम चलाएगा? नहीं ! अतः जो कन्हैया सांसद बनकर जैकब जुमा की भांति जन्मजात शोषकों(सवर्णों) के खिलाफ संग्राम चला

बुधवार, 20 मार्च 2019

होलिका दहन !

*🔥होलिकादहन एक अपराधबोध उत्सव🔥*
- शूद्र यस यस सिंह  यादव 
       ब्राह्मणवादियो की मूर्खतापूर्ण, छल-कपट की हजारो कहानियो मे एक कहानी यह भी है कि ---
   *नास्तिक, महाबली, अनार्य राजा का नालायक पुत्र प्रह्लाद नशेड़ी, गजेडी, भोलेनाथ का भक्त था। स्वभाविक है पिता -पुत्र मे खणयंत्र कर आपसी दुश्मनी पैदा कर दी गई होगी, जो आजकल भी कुछ परिवार मे देखने को मिल रही है।* 
   धोखेबाजी कहावत है, होलिका को बरदान था कि, वह आग से नही जलेगी और यदि प्रह्लाद भगवान् का सच्चा भक्त होगा तो उसे भी कोई नुकसान नही होगा। होलिका प्रह्लाद को गोद मे लेकर बैठ गई, आग लगाई गई, प्रहलाद बच गया और होलिका जल मरी। यहा बरदान को भी गलत साबित किया गया, आखिर क्यो? क्यो नही आजकल होलिका दहन के दिन कोई भगवान् का सच्चा भक्त, किसी नास्तिक को गोदी मे बैठाकर, आग लगाकर सच्चा भक्त होने की हिम्मत करता है? 
   *यह मनगढ़ंत कहानी सिर्फ और सिर्फ भगवान् के अस्तित्व को सही साबित करने के लिए रची गई थी।* 
 क्या हमलोग इस वैज्ञानिक युग मे इतने मूर्ख और जाहिल है कि इस कहानी को सत्य मान बैठे है और एक मां, बहन , बेटी को जिन्दा जलाने का जश्न त्योहार के रूप मे मनाते है।
   *आप पता लगाइए विश्व मे कही भी किसी को भी जिन्दा जलाने का जश्न नही मनाया जाता है। यहा तक की आतंकवादियो के मरने का भी नही। अमेरिका मे भी बिन लादेन के मारे जाने का जश्न नही मनाया जाता है।* 
 ठीक है चलो, होलिका दहन के कारण ही,  कुछ पागल गधो की बात मान लेते है और आज भी देखने को मिल रहा है जैसे - - 
असफल बलात्कार या बलात्कार के बाद सबूत मिटाने के लिए लडक़ी को जिन्दा जला दिया। पति ने पत्नी को जला कर मार डाला - - आदि कई तरह की घटनाए देखने को मिलती है  और अपराध छिपाने के लिए मनगढ़ंत  दुर्घटनाए बता दी जाती है।
  थोड़े समय के लिए मानता हूं कि पागलपन मे जलाने वाला खुशिया मनायेगा, क्या पूरा समाज - - ?
   *अरे लानत है! ऐसे खुशी मनाने और एक-दूसरे को बधाई देने वाले मूर्ख, नासमझ और सम्बेदनहीन समाज पर !* 
  क्या आज भी यदि आप की बहन, बेटी, मां जलाई जाती है तो आप खुशी मनाते है? क्या होलिका किसी की भी मां, बहन, बेटी थी , या नही थी , यदि थी तो ,वह वेशर्म जिसकी थी, वह क्यो , खुशी मना रहा है?
   होलिका दहन के समय मैने किसी, एक को भी, कही भी रोते नही देखा? 
   *कुछ नासमझ, मूर्ख पूछने पर जबाब देते है, यह बुराई पर अच्छाई के जीत का जश्न मनाने का त्योहार है। सबसे पहली बात की तुम्हे नारी होलिका  के अन्दर बुराई देखने का अधिकार किसने दिया? क्या तुमने अपने अन्दर की बुराई को खुद जला दिया है? नही, तो फिर ऐसी सोच क्यो? वही, जब कभी शसुराल वाले तुम्हारी बेटी को बुरा जानकर या बताकर जिन्दा जला देते है, तब तुम्हे बुराई पर अच्छाई की जीत नजर क्यो नही आती है, तब घड़ियाली आसू बहाते हुए पोलिस और कोर्ट का दरवाजा क्यो खटखटाते हो?* 
 अब आप तय कीजिए कि होलिका सच मे एक भारतीय हिन्दू नारी थी या कुछ और ? थोडे समय के लिए मान लीजिए कि यही त्योहार या होलिका दहन  सिर्फ मुसलमान मनाता, तो आप की क्या प्रतिक्रिया होती? गाय (जानवर) को माता मानने वालो की होलिका के बारे मे क्या सोच होती? एक बार आत्म मंथन करे कि सिर्फ परिस्थिति के बदलने से विचार मे बदलाव क्यो और कैसे आता है?
 यदि सच मे होलिका एक हिन्दू मां, बहन,बेटी है तो क्या, हम इतने पागल है कि, अपनी मूर्खता का ऐहसास तक भी नही होता है। 
  *कम से कम, इन्सानियत व मानवता को बचाने के लिए तथा नारी के सम्मान मे, होलिका दहन की बधाई देने वाले मूर्खो के ऊपर थूकने का अधिकार तो बनता ही है।* 
    यह मैसेज मां, बहन, बेटी के मान-सम्मान के लिए हर नागरिक तक होलिका दहन से पहले  पहुंचा कर, एक नेक काम करने मे सहयोग करे तथा आप से तहे दिल से उम्मीद की जाती है कि होलिका दहन मे सहयोग न करते हुए बिरोध के लिए भी साहस करे। धन्यवाद।
  आप का! होलिका का दुखी भाई!

अज्ञानता का अंधकारयुग !

साथियों !
हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं वह आपके सामने है हालात यह है कि वे जातियॉ जो मुट्ठी भर है सजग हैं और अफवाहबाज हैं । साथ ही साथ यैसे आर्गूमेण्ट करती है जो बहुजन जातियों को केवल गुमराह ही नहीं करती हैं बल्कि उन्हें भक्त और अपने असत्य की मुखबिर बना लेती हैं । यही कारण है कि उनके जीवन में सत्य और असत्य के मायने ही बदल जाते हैं ।

बुधवार, 19 सितंबर 2018

बहुजन नेताओं को द्विज प्रवक्ता ही रास आते हैं।

भाई दिलीप जी!
दुर्भाग्य ही है कि बहुजन नेताओं को द्विज प्रवक्ता ही रास आते हैं।
जबकि जिस लड़ाई की उपज यह लोग हैं वह लड़ाई ही द्विज विरोध की रही है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जो छिनरा वही डोली के संग।
बिहार में लालू ने यह असावधानी की थी और आज वह जिस जगह हैं वास्तव में उनकी वह जगह नहीं है । लेकिन ऐसी ही कुसंगति के लोगों के कारण उनकी दुर्दशा हो रही है।
जो समाज बाहुबली हो जनबली हो उस समाज को किस तरह से ऐसे अपराधीनुमा लोग घेरकर के उसका सत्यानाश कर देते हैं ।
ऐसा वातावरण सैफई परिवार के इर्द-गिर्द नजर आने लगा है। रही बात नेताजी की तो वह इतने चतुर थे की लंबे समय तक इस तरह के लंपटों से बचते रहे लेकिन वे नुकसान तो उनका भी नुकसान तो किया ही है।
सारी पिछड़ी जातियों को अलग-थलग करके सब लोग इस परिवार को इस तरह से घेर लिया कि जैसे यहीं से ब्राह्मण विनाश का रास्ता यहीँ से निकलता हो ।
अब तो ऐसा लगने लगा है कि बहुजन विनाश के सारे रास्ते इन परिवारों की ही देन है।जबतक बहुजन इनका सहारा नहीं छोड़ेंगे तब तक बहुजन विनाश रूकने वाला नहीं है।
जैसा भाई दिलीप कह रहे हैं उसके अनुसार तो पवन पांडेय और दीपक मिश्रा ने BJP का रास्ता बहुत आसान कर दिया है और इन दोनों लोगों को लालू जैसा बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान होगा और जिसके लिए BJP इन्हें पुरस्कृत भी करेगी।
डा.लाल रत्नाकर


शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

धर्म की आलोचना की आलोचना → राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : बीस प्रश्न

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : बीस प्रश्न

संघ के बारे में कई ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर हम सब ढूंढेंगे तो सच का पता चल सकता है कि आरएसएस की हकीकत क्या है?
1. संघ परिवार के संगठन ईसाई या इस्लाम विरोधी प्रचार-प्रसार करते रहते हैं, तो संघ की स्थापना मुस्लिम शासन के दौरान क्यों नहीं हुई? अंग्रेजी शासन मे क्यों हुई?
2. 1817 मे पेशवा शासन की समाप्ति और ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के प्रारम्भ से ले कर 19वीं सदी तक ईसाई धर्मान्तरण होते रहे फिर भी संघ की स्थापना क्यों नहीं हुई? 1925 से 1947 तक ईसाई धर्मान्तरण पर संघ ने आवाज क्यों नहीं उठाया ?
3. 1925 से 1947 तक ब्रिटिशकाल में ईसाई धर्मांतरण के विरूद्ध कोई आंदोलन संघ ने क्यों नहीं किया ? 
4. आरएसएस की स्थापना महाराष्ट्र में ही क्यों हुई ? संघ का उदेश्य मुस्लिम या अंग्रेजी शासन का विरोध क्यों नहीं था ?
5. 1925 से 1947 तक चलते रहे आजादी के आंदोलन में संघ या संघ के किसी स्वयंसेवक ने भाग क्यों नहीं लिया ?
6. 1925 से 1947 तक गौहत्या बंद कराने का कोई आंदोलन संघ ने क्यों नहीं चलाया ?
7. हिन्दुओ में 96 फ़ीसदी गैरब्राह्मण हैं. संघ के अब तक हुए सरसंघचालकों में से कितने ब्राह्मण और कितने गैरब्राह्मण सरसंघचालक हुए हैं ?
8. संघ के राजकीय संगठन जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष से लेकर वर्तमान में भाजपा तक कितने अध्यक्ष किस जाति के हुए हैं ?
9. संघ शूद्र अर्थात् ओबीसी और अतिशूद्र-अवर्ण अर्थात् एससी-एसटी को क्या हिंदू मानता है ? अगर मानता है तो संघ के राष्ट्रीय नेताओं में इनमें से किसी एक को भी स्थान क्यों नहीं मिला है ?
10. 1925 में महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के दो गुट थे, एक उदारवादी और दूसरा कट्टर जातिवादी. उदारवादी ब्राह्मण तब भी संघ से नहीं जुड़े और आज भी नहीं जुडते हैं, सिर्फ कट्टर जातिवादी ब्राह्मण ही संघ से क्यों जुडते रहे हैं ?
11. संघ में और संघ परिवार के संगठनों के नेताओ में ब्राह्मण और गैरब्राह्मण की भागीदारी का प्रतिशत क्या है ?
12. संघ के प्रथम सर संघचालक, विहिप के प्रथम अध्यक्ष, एबीवीपी के प्रथम अध्यक्ष, भारतीय मज़दूर संघ के प्रथम अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेविका संघ की प्रथम अध्यक्षा कौन सी जाति की थीं और आज इन पदों पर कौन सी जाति के लोग हैं?
13. 20वीं सदी के श्रेष्ठ हिंदू महात्मा गाँधी की हत्या, संघ-हिंदू महासभा से जुड़े महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने क्यों की ?
14. अछूत माना गया समुदाय अगर हिंदू है और संघ भी हिन्दूवादी संगठन है, तो नासिक के कालाराम मंदिर-प्रवेश के डॉ.बाबासाहेब आम्बेडकर के आंदोलन को संघ ने समर्थन क्यों नहीं किया?
15. 1925 से 1947 तक अछूत समुदाय या आदिवासी समुदाय के सामाजिक अधिकार के लिए या असमानता के विरुद्ध संघ ने कोई आंदोलन चलाया क्या ?
16. संघ के नेता या स्वयंसेवकों में से किसी ने 1925-1947 के दरम्यान क्या ‘वन्देमातरम’ का नारा लगाया था ? 1925 से 1950 तक लिखे गए संघ के किसी साहित्य में ‘वंदेमातरम’ का कोई उल्लेख क्यों नहीं मिलता है ?
17. 1925 से 1947 तक क्या संघ को पता था कि बाबरी मस्जिद ही राम की जन्मभूमि है ? अगर हाँ तो आंदोलन क्यों नहीं चलाया ? क्या 1947 से 1984 तक संघ को पता था कि बाबरी मस्जिद ही राम जन्मभूमि है ? अगर हाँ तो कोई आंदोलन क्यों नहीं चलाया ?
18. 1980 मे देश के 52% ओबीसी समुदाय के संवैधानिक अधिकारो के दस्तावेज मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद और 1981-84 तक मंडल रिपोर्ट को लागू करने के लिए आवाज उठनी शुरू होने के बाद संघ ने बाबरी मस्जिद के विवाद को हवा क्यों दी ?
19. संघ ने अंग्रेजी शासन में 1925-47 तक गौहत्या के लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं चलाया ? स्वदेशी शासन में 1950 के बाद गौहत्या की बात क्यों उठाई गई ?
20. संघ राष्ट्रवादी और हिन्दूवादी संगठन है या जातिवादी संगठन है ? संघ भारतीय राष्ट्र का समर्थक या विरोधी संगठन है ?
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर जानने वालों को संघ के बारे में कभी भ्रम नहीं हो सकता.
-जयंतीभाई मनानी
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बहुजन पर हमला

कब्जा हो गया विदेशी गद्दार चितपावन ब्राह्मणों का भारत पर : इस देश का दुर्भाग्य देखो हमेशा विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियो ने शासन किया ।
19 Mar 2017



















जन उदय : आज से सौ दो सौ साल बाद जब भारत एक बार फिर विश्व पटल पर अपने आपको प्रस्तुत करेगा और
उस वक्त की पीडी जब अपने आपको एक अच्छे देश का निवासी होने की घोषणा करेंगे तो उस वक्त दुसरे देशो के
नागरिक हमारे देश के युवा को फटकारेंगे और कहेंगे की तुम्हारे बुजुर्ग कैसे लोग थे , ?? कितने निकम्मे और धूर्त होंगे
तुम्हारे पूर्वज , कितने मुर्ख और कितने निष्क्रिय होंगे तुम्हारे पूर्वज ,

की जब तुम्हारे देश में भगवा आतंक बढ़ रहा था , जब तुम्हारे देश में धर्म के नाम पर आतंकवादियो का एक समूह दंगे
करा करा कर राजनीती करते थे और लोगो की हत्याए करा कर अपने आपको देशभक्त कहते थे , उस वक्त तुम लोगो
के पूर्वज खामोश बैठे रहते थे , उस वक्त तुम्हारे पूर्वज चंद सिक्को की खातिर अपने देश की इज्जत से कैसा सौदा करते थे ..

ओ तुम्हारे पूर्वज शर्म से क्यों न डूब मरे जब जाति और धर्म विशेष के लोगो को सडको पर मारा जाता था , कैसे उनके
दिल में ज़रा भी मानवता का मान रखने का ख्याल न आया ??? कैसे कपटी रहे होंगे तुम लोगो के पूर्वज ???

यह सब सुन कर भारत की आगामी पीडिया कितनी शमिन्दा होंगी , उनके चेहरे ऐसे पीले पढ़ जाएंगे की जैसे शरीर में
खून ही न हो , अपने चेहरे को जमीन में गाड़ दे बस ये ही सोचा करेंगे ,
कैसे इस देश के युवा दुसरे देशो के युवाओं से आँखे मिलायंगे ??

आज देशभक्ति के नाम पर चैनल चलाने वाले , पत्रकार , बुद्धिजीवी इस देश को अपमानित करते जा रहे है इन गद्दारों
के हाथ देश को बेचने में लेगे है ये देश के गद्दार अरब देशो से आये यहूदी जो अपने आपको चितपावन ब्राह्मण कहते
है और आर एस एस नाम की शाखा चलाते है , देश में आतंकवाद ये लोग देशभक्ति के नाम से चलाते है

इस देश के इज्जतदार नागरिक को दो शर्मिंदा होना चाहिए

कुछ नुपुन्स्क्ता मानसिकता के लोग मोदी और योगी जैसे लोगो को भारत का रक्षक मानते है अरे कोई इनसे पूछे
आतंकवाद फैलाने वाले , दंगा करवाने वाले गरीबो से शिक्षा स्वास्थ छिन्न्ने वाले देशभक्त कैसे हो सकते है ??? 

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...