इस बात को समझने के लिये हमें अलग अलग वैचारिक आलेखों का अध्ययन ही स्पष्ट करेगा ?
दुसाध की अपील
बेगुसराय से कन्हैया को ख़ारिज कर तनवीर साहब को ही संसद में भेंजे!
-एच.एल दुसाध
डियर सर/मैडम ,
संयोग से कल बेगुसराय के जिस भूमिहार लौंडे के पीछे वर्षों से एनजीओ और प्रगतिशील गैंग दीवाना है, उससे जुड़ा मेरा 3 साल पुराना एक पोस्ट दिख गया, जिसे मैंने यह सोचकर अपनी टाइमलाइन पर शेयर कर दिया कि 17 वीं लोकसभा के निर्णायक चुनाव में लोगों को उसे जानने-समझने तथा उसपर राय बनाने के लिए कुछ नयी सामग्री मिल जाएगी. खैर !अपनी टाइम लाइन पर डालने के बाद मैं एक खास आर्टिकल लिखने में व्यस्त हो गया.
पिछले पांच-छह महीनों से सिगरेट छोड़ने के बाद लिखने के लिए कंसेन्ट्रेशन बनाने हेतु मैंने टीवी का सहारा लेना शुरू किया है. अब मैं लो वॉल्यूम में टीवी चलाकर लिखता हूँ. लिखते-लिखते मैं टीवी स्क्रीन पर नजर दौड़ा लेता हूँ.इससे विषय पर कांसेंट्रेट करने में सहूलियत होती है. बहरहाल आज भी लो वॉल्यूम में टीवी चलाकर एक आर्टिकल लिख रहा था कि अचानक मेरी नजर एक जाने-पहचाने दृश्य पर टिक गयी. वह दृश्य कल टीवी पर देखा था. इसी दृश्य को देखकर कल मैंने फेसबुक दो पोस्ट डाला था.एक,’भूमिहार लौंडे के गाँव में उसका मीडिया फादर,देखे मजा आएगा!’ दूसरा,’watch battle of begusarai through eye of rubbish !’.जी हाँ,आपने सही पकड़ा. वह दृश्य कल कन्हैया की गरीबी को राष्ट्र के समक्ष लाने के रबिश कुमार के उपक्रम से जुड़ा था. गोदी मीडिया के आविष्कारक रबिश कुमार ने कल बेगुसराय पहुंचकर जिस तरह भूमिहार लौंडे को हाईलाइट किया, वह देखकर मैं चकित था. उसके अभियान का मजा लेने के लिए कल शायद आधा घंटा लगातार एनडीटीवी देखता रहा. लेकिन आज जो देखा शायद कल नहीं देख पाया.
कन्हैया से मोहित : बड़े-बड़े बहुजन लेखक और एक्टिविस्ट !
आज रबिश ने उसके चुनावी राजनीति में उतरने का मकसद जानने के लिए उससे कुछ सवाल किये थे. जिसके जवाब में उसने जो कुछ कहा था, उसका अर्थ यह था कि वह संसद में पहुंचकर मोदी की आंख में आँख डालकर सवाल करेगा. वह पूछना चाहेगा कि देश में इतने बेरोजगार लोग क्यों हैं..आदि आदि? मुझे ऐसा लगा यह प्रोजेक्टेड सवाल था. रबिश उसके मुंह से वह कहलवाकर सन्देश देना चाहता था कि लोगों देखो आपके बीच एक ऐसा नौजवान है जो मोदी से सवाल कर सकता है अर्थात इस देश में मोदी से सवाल करने की कूवत और किसी में नहीं है. यह एक अजीब संयोग है कि बेगुसराय के लौंडे की हिमायत करने वाले असंख्य लोगों का यही तर्क है कि वह मोदी की आंख में आँख डालकर सवाल कर सकता है.ऐसा तर्क देने वालों में बहुजन समाज के बड़े-बड़े स्वनाम-धन्य लेखक से लेकर एक्टिविस्ट तक शामिल हैं. बहरहाल अगर लोगों के जेहन में उसकी यह छवि बनी है तो निश्चय उसमें सबसे बड़ा योगदान रबिश का है.
आम भारतीयों की नजर में : भाषणबाजी कर सकने वाला ही नेता!
मेरा बहुत ही गहरा अध्ययन है कि भारत में जो लोग खुलकर भाषण दे लेते हैं, लोग उनको नेता मान लेते हैं. लोगों के ऐसा मानने से बकैती करने वाला भी खुद को नेता मानने लगता है. बेगुसराय के लौंडे के साथ भी यही सुखद संयोग है. मैं शायद पहला वह व्यक्ति हूँ जिसने इस लड़के और इसके गॉडफादर रबिश को लेकर तीन साल पहले से ही सवाल उठाना शुरू किया. मैंने शायद पचासों बार फेसबुक पर उसके समर्थकों को ललकारा कि देश की बुनियादी समस्यायों पर उसकी राय क्या है, बताएं ? पर,कोई भी सामने नहीं आया. मेरी धारणा थी कि यह लौंडा, जो जेएनयू से पीएचडी होल्डर है, कभी कोई आलेख लिखेगा तो जान पाऊंगा सामाजिक परिवर्तन एवं गुलामी से आजादी पर उसकी राय जान पाऊंगा. पर मुझे ताज्जुब है इसका कोई लेख आजतक पढने को नहीं मिला,जिससे पता चले कि देश की बेसिक समस्यायों को लेकर उसकी राय क्या है? अब जहाँ तक उसकी भाषणबाजी का सवाल है, मैंने नोट किया है कि प्रगतिशील बुद्धिजीवी देश के जिन तीन युवाओं में भगत सिंह की छवि देखते हैं, वे तीनो - कन्हैया, उमर खालिद और जिग्नेश मेवानी- अपने सतही भाषणों से यदि कुछ किये हैं, तो सिर्फ और सिर्फ हिन्दू ध्रुवीकरण! इसलिए दुसाध बेगुसराय के लौंडे के साथ उमर और जिग्नेश को कभी गंभीरता से नहीं लिया. इन तीनो लौंडों के साथ मैंने इनके मीडिया फादर ,रवीश को भी इनके ही जैसा पाया.
रबिश : सोशलाईट ब्राह्मण !
मैंने रवीश को लेकर भी पचासों बार सवाल उठाये, किन्तु कोई भी मुझे भ्रांत प्रमाणित नहीं कर पाया: रवीश को लेकर उठाये गए मेरे हर सवाल का समर्थन करने के लिए लोग विवश रहे .किसी ज़माने में ‘दलित व्वाईस ’ के संपादक वी.टी. राजशेखर कहा करते थे,’बहुजनों के लिए सोशलाईट ब्राह्मण की तुलना में कट्टर ब्राह्मण कम खतरनाक होता है.’ रबीश खतरनाक ब्राह्मणों की श्रेणी में आता है.
मोदी की आँख में आंख डालकर कन्हैया क्या उखाड़ लेगा!
कन्हैया के भक्त उसमे भगत सिंह की छवि देखते है./क्या दक्षिण अफ्रीका की आर्थिक-सामाजिक हालात पर पीएचडी करने वाले इक्कीसवीं सदी के भगत सिंह ने यह बताया कि दक्षिण अफ्रीका में भारत के सवर्णों सादृश्य जिन गोरों का वहां शक्ति के स्रोतों-आर्थिक,राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षिक -80-90 प्रतिशत कब्ज़ा रहा, उन्हें मंडेला के लोगों ने तानाशाही सत्ता के जोर से इस हालात में पहुंचा दिया है कि गोरे अब दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भागने लगे हैं! इक्कीसवीं सदी के इस भगत सिंह ने क्या कभी यही बताया कि दक्षिण अफ्रीका के संसद ने वर्ष 2018 के फरवरी में एक निर्णय लेकर जिन 9-10 प्रतिशत गोरों का भूमि पर 72 प्रतिशत कब्ज़ा था, उसे बिना मुवावजा दिए मूलनिवासियों के मध्य बांटने का काम अंजाम दे दिया है? क्या कन्हैया ने कभी यह बताया कि दक्षिण अफ्रीका के गोरों जैसे अल्पजन सवर्णों ने धर्म और ज्ञान सत्ता के साथ अर्थ और राज-सत्ता पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा जमा कर भारत में विषमता का बेनजीर साम्राज्य कायम कर दिया है और सांसद बनकर वह इसके खिलाफ संग्राम चलाएगा? नहीं ! अतः जो कन्हैया सांसद बनकर जैकब जुमा की भांति जन्मजात शोषकों(सवर्णों) के खिलाफ संग्राम चला
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