रविवार, 2 जून 2019

सवाल तो बहुत हैं।

बहुत ही खेद के साथ कहना है कि जब यादवो का राज्य आता है तो उन्हें अति पिछड़ा दलित और अति दलित नजर नहीं आता जो सामाजिक रूप से सोचता हो और ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष करने का माद्दा रखता हो। यही सबसे बड़ी विडंबना है कि उसके यहां प्रमुख सलाहकार भी ब्राह्मण होता है और ब्राह्मण अपने अनुसार उसके कामकाज को प्रभावित करता है और थोड़े दिनों के बाद वह परास्त हो जाता है।।
दूसरी तरफ भाजपा नकली ओबीसी लाती है ऐसा ओबीसी जो कहीं पाया नहीं जाता और जरूरत पड़ने पर वह अपने को दलित भी बना लेता है अफसोस है कि आप लोग अखिलेश यादव अखिलेश यादव बार-बार कर रहे हो अखिलेश यादव अपने को पिछड़ा तब मानते हैं जब उन्हें भाजपा बताती है।
यह दौर देखा जाए तो मूलतः संक्रमण काल का दौर है। पिछड़ों में एक ऐसे नेता का नाम बताइए जो ज्योतिबा फुले रामास्वामी पेरियार या बाबा साहब अंबेडकर को ठीक से पढ़ा हो बाकी रही ललई सिंह यादव रामस्वरूप वर्मा या जगदेव प्रसाद कुशवाहा उनकी नीतियों पर चलने का कभी प्रयास मात्र भी किया हो।
वास्तविकता तो यही है कि हमारे महापुरुषों के संघर्ष को इन अपढ़ अग्यानी राजनेता अपहर्ताओं, नेताओं या नेतपुत्रों ने अपहृत कर लिया है। जिन्हें मौजूदा संविधान विरोधी सरकारें अपने संरक्षण में राजनीति करवा रही हैं।

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