मंगलवार, 18 जून 2019

संसदीय मर्यादाओं का खुला ऊलंघन।

भारत के संविधान के अनुच्छेद-99 में संसद के नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथग्रहण का उल्लेख है। अनुच्छेद कहता है: 'संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले  राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा!'

हमारे संविधान का यह खास अनुच्छेद और तीसरी अनुसूची में दर्ज शपथ का प्रारूप बहुत महत्वपूर्ण और जरुरी संवैधानिक प्रक्रिया को रेखांकित करते हैं!

आमतौर पर शपथग्रहण की यह औपचारिक संवैधानिक प्रक्रिया शांत, संजीदा और गरिमापूर्ण माहौल में पूरी होती रही है! शपथ लेने और रजिस्टर पर हस्ताक्षर के अलावा इस दरम्यान सदन में और कुछ भी नहीं होना चाहिए! लेकिन इस बार नवनिर्वाचित माननीय सदस्यों के शपथग्रहण के दोनों दिन सदन में खूब आवाज़ें, विवादास्पद नारेबाजी और टिप्पणियां हुईं!

हमारे लोकतंत्र के महान् स्वप्नदर्शियों और संविधान-निर्माताओं ने लोकसभा में ऐसी आवाजों, ऐसी नारेबाजियों, ऐसे माहौल की शायद ही कभी कल्पना की होगी! ये शुरुआती दो दिन संसदीय मर्यादा, लोकतांत्रिक-प्रौढ़ता और बौद्धिक-सहिष्णुता के हिसाब से बहुत सुखद और आशाप्रद नहीं रहे!

 35 साल के अपने पत्रकारिता जीवन में मैंने विधानमंडलों (बिहार, पंजाब, हरियाणा) और संसद की कार्यवाही को तकरीबन दो दशक कवर किया! शपथ ग्रहण के दौरान सदन के अंदर ऐसे नारे, ऐसी आवाज़ें और ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा(जैसा सोमवार और मंगलवार को टीवी चैनलों के लाइव-प्रसारण में देखा)! इसे क्या माना जाये?

(साभार : श्री उर्मिलेश जी की फ़ेसबुक पोस्ट से।)

सोमवार, 3 जून 2019

प्रधानमंत्री बनने के एक सपने का जन्म।

बहन जी के सपने का दरक जाना।
........….................
प्रधानमंत्री ?
- डॉ लाल रत्नाकर

2019 लोकसभा चुनाव के लिए हुए गठबंधन में मनोवांछित परिणाम न मिलने के कारणों का सही मूल्यांकन करने पर या सही मूल्यांकन किए जाने के डर से ऐसा कह करके अपने को अलग कर ली हैं।
जिससे आने वाले दिनों में यह न कहना पड़े कि इनके सम्मीलन का जादू फेल कैसे हो गया।

अब जो मूल बात है कि सपा बसपा के रिश्ते तो खराब हो ही रहे हैं । लेकिन ग्राउंड लेवल पर जो समझ बनी थी या बन रही थी वह कितनी बनी रहेगी। मूलतः चिंता इस बात की हो रही है।

क्योंकि यह गठबंधन केवल नेताओं का गठबंधन नहीं था यह दोनों समाज के बुद्धिजीवियों और मतदाताओं के दबाव का गठबंधन था। जिसको इन्होने राजनीतिक रूप से अंगीकृत किया था लेकिन मायावती जी इसका गलत विश्लेषण करेंगी यह उम्मीद नहीं थी ।

हालांकि हर व्यक्ति यही कह रहा था कि जैसे ही मायावती को कोई ऐसा अवसर मिलेगा तब वह इस बंधन को तोड़ देंगी। वही हुआ जो लोगों को आशंका थी और दूसरी तरफ भाजपा रोज कह रही थी कि यह गठबंधन अवसरवादी गठबंधन है जो 23 मई 2019 के बाद टूट जाएगा।

बहन मायावती ने अपनी कला दिखा दी है और यह साबित कर दिया है कि वह लंबे समय तक किसी के साथ रिश्ता नहीं रख सकती हैं। इसका निहितार्थ क्या है उसको तो वह स्वयं अच्छी तरह समझती होगी । लेकिन लोगों को जो कुछ समझ में आ रहा है । वह यही आ रहा है कि आगे जो लड़ाई लड़नी है । ऐसे लोगों से जैसे लोगों से कभी : ज्योतिबा फुले रामास्वामी पेरियार और साहू जी महाराज ललई सिंह यादव और रामस्वरूप वर्मा एवं जगदेव प्रसाद कुशवाहा ने लड़ी थी।

मैं तो अखिलेश यादव की आदूरदर्शिता पर हमेशा लिखता रहा हूं । लेकिन इस बार लगा था कि उन्होंने एक अच्छा काम किया है जिससे जमीन पर कुछ बड़ा काम हो पाएगा । लेकिन इस गठबंधन की आयु इतनी कम होगी इसका अंदाजा नहीं था, कुछ बड़े नेताओं की राय में यह गठबंधन अवसरवादी गठबंधन नजर आ रहा था। जिसमें अंतर यही साबित हुआ था कि सब कुछ गवा देंगे मगर गठबंधन नहीं तोड़ेंगे। परीक्षार्थी भी यही थे और परीक्षक भी यही थे।

कहते हैं जिंदा कौम में 5 वर्ष तक इंतजार नहीं करती लेकिन इन दो कौमों के नेताओं ने 5 साल के लिए अपनी आवाम को बंधक बना दिया। अपने स्वार्थ और अपनी गलत नीतियों से राजनीति करने वाले का दिल हमेशा बड़ा होना चाहिए । और अकेले यह नहीं सोच लेना चाहिए कि वह सब कुछ फतह कर लेगा। जबकि यहां पर यही हुआ है, इस सौदे में बहन जी की आमदनी ज्यादा भले ही हुई हो लेकिन दलितों की भावी राजनीति को जितना उन्होंने नुकसान किया है । उसका खामियाजा भी उन्हें ही भोगना पड़ेगा।

अखिलेश यादव को भी चाहिए कि कुछ ऐसे लोगों से विमर्श करें जिससे उनका भविष्य का मार्ग सशक्त हो सके अन्यथा बहन मायावती जी का जो है सन 2014 में हुआ था वह आगे भी होना है । और अखिलेश जी को कितने समझौते करने पड़ेंगे इसका अंदाजा भी उन्हें अभी नहीं है।

मैंने पिछले चुनाव में देखा है कि उनकी पार्टी में कितने महत्वाकांक्षी लोग हैं जो अपने लोगों को ही गाली गलौज और अनेकों प्रकार से नीचा दिखाने का प्रयत्न करते रहते हैं । और यह बात खुलेआम जनता के बीच भी उन्हीं के जरिए जाती है । एक दूसरे को नीचा दिखाने के साथ साथ कीचड़ उछालना और आस्तीन में सांप पालना उनकी एक बहुत बड़ी भयावह फौज वहां खड़ी दिखाई दी । जो आपका कहां पर किस तरह से विनाश करेगी उसका आकलन मैंने पहली बार जौनपुर जनपद में कथित रूप से सपायियो और बसपाइयों में देखा।

निश्चित तौर पर बसपा की 10 सांसदों की बडी फौज इस लड़ाई को लड़ने में कामयाब होगी यह बात बहन जी को अच्छी तरह समझ में आ गई होगी। 2014 में शून्य पर रही बसपा सपा के कंधे पर बैठकर 10 सांसदों की फौज खड़ी कर ली है। अब कह रही है कि यादवों ने वोट ट्रांसफर नहीं किया। बहन जी को भले ही यह लगता हो की यादवों ने वोट ट्रांसफर नहीं किया है, हो सकता है कहीं न भी किया हो ? लेकिन जिन्होंने नोट ट्रांसफर किया है उन्हें पता होगा कि किसके वोट से वह लोग जीते हैं?

मेरे ख्याल से जनता ने बहुत ईमानदारी से गठबंधन के प्रत्याशियों के प्रति अपनी राजनीतिक जिम्मेदारी का निर्वहन किया है । जिसमें आर्थिक लुटेरों को छोड़ दिया जाए तो निश्चित तौर पर जमीन पर एक ऐसा मतदाता समूह बन रहा था जो आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर बहुजन समाज के सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने में सफल होता।

सबसे दुखद तो यह है कि बसपा अपने प्रत्याशी प्रतिनिधि को अपने लोगों का वोट बेचती है। खरीददार कोई भी हो सकता है जिसकी टेट में पूंजी हो? मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि इस पार्टी से कोई वैचारिक संघर्षशील व्यक्ति चुनाव कैसे लड़ सकता है ? मैंने पिछले चुनाव में देखा है कि जिस तरह से बसपा का कैडर प्रत्याशियों को चूसता है उससे तो यह नहीं दिखाई देता कि भविष्य में भी इस पार्टी का कोई कार्यकर्ता जो ईमानदार होगा संघर्षशील होगा और नैतिक होगा वह संसद में या विधानसभा में पहुंच पाएगा। क्या कांशी राम जी ने यही सपना देखा था और इसी तरह से बसपा की टिकट बेचने की योजना बनाई थी।

अब वक्त आ गया है जब यह विचार करना है कि बहुजन राजनीति का नायक कौन होगा और कौन उसको दूर तक ले चलने का साहस और नैतिक जिम्मेदारी महसूस करेगा उन्हीं लोगों के मध्य से नए नेतृत्व की तलाश करनी होगी जैसी कांशी राम जी ने महात्मा फुले और बाबासाहेब आंबेडकर के बाद परिकल्पना की थी।

निश्चित तौर पर इस काम में बहन मायावती नाकाम हुई है और उन्होंने पूरी बहुजन वैचारिकी को व्यवसायिक प्रतिष्ठान के रूप में बदलकर के निजी लाभ के लिए पूरे समाज को अंधकार में धकेल रही है। यह काल बहुजन इतिहास का बहुत ही अंधकारमय काल होगा यह तो तय हो चुका है।

दूसरी तरफ अखिलेश यादव विशेष रूप से जितने कमजोर साबित हुए हैं । यह खामियाजा पूरे पिछड़े समाज को उठाना पड़ रहा है। यह वही पिछड़ा समाज है जो हमेशा अपनी उपस्थिति विपक्ष के रूप में दर्ज कराता रहा है। लेकिन इनकी राजनीति के चलते आज अधिकांश पिछड़े वर्ग का व्यक्ति उस दल की ओर चला गया है । जो दल उसके विनाश का काम करता है । इसकी जानकारी जब किसी से बात की जाती है। तो वह यही कहता है कि सैफई परिवार तो केवल अपने और अपने जाति के लिए सोचता है । उसके आगे उसका कोई विजन ही नहीं है। जबकि सच्चाई इससे भी आगे की यह है कि वह अपनी जात के लिए भी नहीं सोचता । और इस बार तो यह भी तय हो गया कि वह केवल अपने लिए सोचता है।

राजनीतिक निराशा का यह सबसे अंधकार का दौर है। अंधकार में पडा यह बहुजन समाज कैसे आगे बढ़ेगा इस पर विचार करना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। निश्चित तौर पर वह वर्ग इसके लिए सोचने को तैयार नहीं है । जिसके पास राजनीति का छोटा-मोटा उपहार पड़ा हुआ है। उसकी संघर्ष की क्षमता विरोधियों ने समाप्त कर दी है । चाहे वह शैक्षणिक,आर्थिक क्षेत्र हो चाहे प्रशासनिक क्षेत्र हो यह संघर्षशील समाज जिसको उसने गुंडे और मवाली के रूप में प्रचारित कर दिया है।

बहुजन नेताओं को टुकड़े-टुकड़े में बांट दिया है । और मुसलमानों को तो देश के प्रति संदेह के घेरे में डाल दिया है। कुल मिलाकर ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दिया है जिससे बर्तमान सत्ता के खिलाफ बोलने वाला या तो देशद्रोही करार कर दिया जाए या उसे आधार्मिक बता दिया जाएगा।

इस गठबंधन से जो बहुत खतरनाक काम हुआ है। वह यह कि मायावती जी को देश का प्रधानमंत्री घोषित करके सवर्ण समाज को तो चौकन्ना और एकजुट करने का काम इन्होंने किया ही था। जिसमें अति दलितों और अति पिछड़े भी शरीक हो गए हैं। यह सब अज्ञानता भरा काम है । क्योंकि गठबंधन की कोई ऐसी तैयारी ही नहीं थी जिसमें बहन जी प्रधानमंत्री होने की लाइन में भी खड़ी हो पाती।

श्री अखिलेश जी को उत्तर प्रदेश में एक छत्र मुख्यमंत्री के रूप में बहुजन समाज स्वीकार कर लेगा । इस प्रत्याशा में उन्होंने भी बहन जी को प्रधानमंत्री बनाने का बिना योजना के घोषणा करके वह सारा काम किया को कम दुश्मन करता है। यह सब तो ऐसे ही लग रहा था जैसे कोई संत महात्मा ने कह दिया हो कि आप लोग एक साथ आ जाओगे तो बहन जी प्रधानमंत्री और आप निर्विवाद रूप से मुख्यमंत्री बन जाओगे।

जबकि ऐसा है नहीं इसके लिए पार्टियों की और जनता की टीम के साथ साथ बुद्धिजीवियों बहुत जबरदस्त समर्थन चाहिए होता है।

रविवार, 2 जून 2019

सवाल तो बहुत हैं।

बहुत ही खेद के साथ कहना है कि जब यादवो का राज्य आता है तो उन्हें अति पिछड़ा दलित और अति दलित नजर नहीं आता जो सामाजिक रूप से सोचता हो और ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष करने का माद्दा रखता हो। यही सबसे बड़ी विडंबना है कि उसके यहां प्रमुख सलाहकार भी ब्राह्मण होता है और ब्राह्मण अपने अनुसार उसके कामकाज को प्रभावित करता है और थोड़े दिनों के बाद वह परास्त हो जाता है।।
दूसरी तरफ भाजपा नकली ओबीसी लाती है ऐसा ओबीसी जो कहीं पाया नहीं जाता और जरूरत पड़ने पर वह अपने को दलित भी बना लेता है अफसोस है कि आप लोग अखिलेश यादव अखिलेश यादव बार-बार कर रहे हो अखिलेश यादव अपने को पिछड़ा तब मानते हैं जब उन्हें भाजपा बताती है।
यह दौर देखा जाए तो मूलतः संक्रमण काल का दौर है। पिछड़ों में एक ऐसे नेता का नाम बताइए जो ज्योतिबा फुले रामास्वामी पेरियार या बाबा साहब अंबेडकर को ठीक से पढ़ा हो बाकी रही ललई सिंह यादव रामस्वरूप वर्मा या जगदेव प्रसाद कुशवाहा उनकी नीतियों पर चलने का कभी प्रयास मात्र भी किया हो।
वास्तविकता तो यही है कि हमारे महापुरुषों के संघर्ष को इन अपढ़ अग्यानी राजनेता अपहर्ताओं, नेताओं या नेतपुत्रों ने अपहृत कर लिया है। जिन्हें मौजूदा संविधान विरोधी सरकारें अपने संरक्षण में राजनीति करवा रही हैं।

खुला पत्र अखिलेश के नाम

अभिषेक सिंह, 
पूर्व अध्यक्ष, मुलायम सिंह यादव, यूथ ब्रिगेड-

भावनाओं का बलात्कार हुवा है ,इस हार से दुखी हूँ, दिनरात निःस्वार्थ पार्टी के लिए एक छोटे से कार्यकर्ता की हैशियत से पार्टी के लिए मोबाइल और लैपटॉप पे  आँखे फोड़ी है मोहल्ले ,दोस्तों और मोदी भक्तो से गालिया खायी है, इसलिए आज लिखने पे मजबूर हूँ ,कोई ज्ञान नहीं बांटेगा..........

प्रिय अखिलेश भैया पार्टी के पक्ष में कोई भी राजनितिक पोस्ट नहीं आएगी जब तक आप  सड़क पे नहीं दिखोगे ,और लखैरा टाइप के लौंडो को पार्टी कार्यलय से लात मार कर बाहर नहीं करोगे ,अपने सलाहकार बदल दीजिये ,आपने जिन जिन को पार्टी में जिम्मेदारी  दिया था ये छेत्र में या तो जाते नहीं थे और अगर जाते भी थे  तो सिर्फ उसके यंहा जिसका पार्टी कार्यलय में भौकाल होता था या उनके यंहा जाते थे जिनको ये जानते थे , जिनकी छवि खुद गाँव मोहल्ले में स्वजातीय लोगो को तंग करने की रही हो ,हालांकि मै इस बात पे घमंड करता हूँ कि मैंने आज तक न आपके साथ सेल्फी लेने की कोशिश किया न प्रदीप ,सुनील साजन,दिग्विजय ऐबाद जैसे भैया लोगो से पद के लिए सम्पर्क किया ,आपके मुर्गे कभी अंडा नहीं देंगे इनका आमजनमानस से दूर दूर तक कोई लगाव नहीं था ,पार्टी का उमीदवार का कनेक्शन वोट दिलाने वाले फर्जी ठेकेदारों से था मेहनत  करने वाले कार्यकर्ताओं से तो था ही नहीं !! और आप कृपया सादगी वाला चोला उतार ही लीजिये अगर आप मुख्तार अंसारी को पार्टी में नहीं ले सकते तो उनको चुनाव में जिताने की अपील क्यों करते रहे ?? राजनीति में इतना सभ्यता और नैतिकता उस दौर में नहीं चल सकती जिस दौर में गांधी को भला बुरा कहने वाले चुनाव में जीत दर्ज करते हो  | मुझे  राजेंद्र चौधरी ,नरेश उत्तम पटेल ,तथाकथित ज्ञानी राय साब ,डिजिटल फाॅर्स , और २-३ प्रवक्ताओं को छोड़कर बांकी के प्रवक्ताओं के फायदे भी जानना है | आज गली गली लड्डू बंट रहा था भाजपा कार्यकर्ताओं की तरफ लेकिन यही जीत अगर समाजवादी पार्टी के किसी नेता की होती तो वो सिर्फ अपने छुट भय्ये नेता के साथ जश्न मना रहा होता ,आपकी हार उस दिन हो गयी थी जब आपने मोदी जी को बनारस में वॉकओवर दिया था | आप पार्टी कार्यलय से बाहर निकलकर खुद संगठन देखिये क्योंकि पार्टी संगठन का काम तो शिवपाल चाचा जी के जाने के बाद किसी ने देखा ही नहीं ,साइकिल यात्रा की बजाय अगर कुर्बान गैंग अपने मोहल्ले के लोगो से टच रहते तो बूथ पर १०-२० वोट बढ़ते | आज तक पार्टी के नेताओं को रैली में टेंट कुर्सी की ब्यवस्था के आलावा कोई  काम ही नहीं बांटा गया , ये जो वोट मिल रहे हैं वो नेताजी ,माननीय कांशीराम के पसीने से पैदा हुए नमक की वजह से मिल रहे हैं| अब जब सब कुछ खत्म हो चूका है तो  तो कुछ बदलाव कीजिये प्रदेश संगठन ,अपने सलाहकार , ढर्रा , तो तुरंत बदलाव मांग रहे हैं ,छोटी मुँह बड़ी बात आप में एक बहुत बड़ी कमी है उस कमी का नाम ओवर कॉन्फिडेंस अगर आपको कोई मेहनती कार्यकर्त्ता कोई सलाह देता है तो आप ऐसा शो करते थे जैसे आपको सब मालूम हो इसकी वजह थी आपके अगल -बगल के फर्जी नेता ,उनकी हर बात आप सुनते रहे लेकिन वो नहीं सुना जो बहुत जरूरी था ,जंहा आपके अगल बगल चंद्रशेखर भीम आर्मी वाले युथलीडर को होना चाहिए था वंहा आपके साथ एमएलसी वाले भैया लोग थे जिन्होंने नेताजी की २०१२ वाली जीत की बहती गंगा में हाँथ धोये लेकिन १०० नए वोट न पैदा कर  पाए ना किसी को जोड़ पाए बस  जुगाड़ वाले नए नए लौंडो को गुड़ की तरह पद बांटते रहे भगा दीजिये ऐसे लोगो या तो इनसे काम लीजिये ,ऐसा नहीं है की लोगो को जोड़ा नहीं जा सकता ,आत्म मंथन कीजिये बदलाव कीजिये वही कीजिये जो सही हो ,सही तब होगा जब आप चाह लेंगे, सलाहकारों द्वारा पार्टी को चलाना सबसे बड़ी गलती रही है आपकी ,आपके सलाहकार बेकार और नकारा हैं  | 

माफ़ी चाहता हूँ ये सब लिखने के लिए लेकिन इतना तो डिजर्व करता हूँ की सच्चाई लिख सकूं जो फील किया।

शनिवार, 1 जून 2019

ईवीएम क्या हैं?

स्क्रॉल व्याख्याता: 
आप सभी को नवीनतम ईवीएम विवाद के बारे में जानने की जरूरत है
कुछ स्थानों की रिपोर्टों ने सुझाव दिया है कि ईवीएम को सुरक्षा के उचित स्तर के बिना ले जाया जा रहा है।
स्क्रॉल व्याख्याता: आप सभी को नवीनतम ईवीएम विवाद के बारे में जानने की जरूरत है
भारत के पूर्वी राज्य, पश्चिम बंगाल में 11 अप्रैल, 2019 को अलीपुरद्वार जिले में आम चुनाव के पहले चरण की समाप्ति के बाद एक मतदान केंद्र पर एक मतदान अधिकारी ने एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को सील किया। रायटर / रूपक डी चौधुरी
22 मई, 2019 · सुबह 09:33 बजे
रोहन वेंकटरामकृष्णन

भारत में चुनाव कराने के लिए जिन उपकरणों पर भरोसा किया जाता है, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें पिछले कुछ वर्षों से ख़बरों में हैं, क्योंकि राजनेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस बारे में सवाल उठाए हैं कि क्या उनके साथ छेड़छाड़ होने का खतरा है। गुरुवार को होने वाले वोटों की गिनती के साथ, समाचार चक्र पर यह मुद्दा हावी हो गया है, विशेष रूप से नए आरोपों के साथ कि बिना उचित सुरक्षा के ईवीएम को ले जाया जा रहा है।


ईवीएम क्या हैं?
भारतीय चुनाव वोट दर्ज करने के लिए इन कम लागत, सरल मशीनों पर निर्भर करते हैं। हालांकि दुनिया भर के बहुत कम देशों ने राष्ट्रीय चुनावों में पूरी तरह से पेपर बैलट से मशीनों में बदल दिया है, भारत में ईवीएम को पुराने सिस्टम के तहत होने वाले मतदाता धोखाधड़ी की मात्रा को कम करने का श्रेय दिया जाता है। इसे आमतौर पर "बैलट स्टफिंग" के रूप में जाना जाता था, क्योंकि ठगों ने मतदान केंद्रों पर कब्जा कर लिया, वास्तविक मतदाताओं को बाहर रखा और उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवार के नाम के साथ बैलट पेपर को चिह्नित किया।

मशीन के तीन भाग हैं।
पहला नियंत्रण इकाई है, जो प्रत्येक बूथ पर चुनाव अधिकारी द्वारा आयोजित किया जाता है। यह प्रत्येक वोट को इकट्ठा और रिकॉर्ड करता है, और इसमें एक बैटरी होती है ताकि मशीन काम करने के लिए अनियमित बिजली की आपूर्ति पर निर्भर न हो। दूसरा मतपत्र इकाई है, जो कि बटन की एक श्रृंखला के साथ एक पैनल है, जिसके नाम, पार्टी के प्रतीक और इस वर्ष, उम्मीदवारों की तस्वीरें हैं।

एक बार मतदाताओं ने उम्मीदवार का बटन दबाया, एक कागज़ की पर्ची बनती है और भंडारण बॉक्स में छोड़ने से पहले सात सेकंड के लिए प्रदर्शित की जाती है। यह वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन मतदाताओं को यह जांचने की अनुमति देती है कि क्या उन्होंने जिस पार्टी को चुना था, वह उसी वोट के रूप में थी जिसे ईवीएम ने पंजीकृत किया था। बाद में, इन पर्चियों को वास्तव में ईवीएम द्वारा गिना गया वोट सुनिश्चित करने के लिए वोटों के खिलाफ ऑडिट किया जा सकता है।


सबसे महत्वपूर्ण बात, ईवीएम का कोई भी हिस्सा "नेटवर्केड" नहीं है। ये अत्यंत सरल मशीनें हैं, जैसे पॉकेट कैलकुलेटर, इंटरनेट से कोई संबंध नहीं, कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं और मशीनों के भौतिक उपयोग के बिना किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता।

क्या ईवीएम को हैक किया जा सकता है?
सरल उत्तर हाँ है, क्योंकि किसी भी मशीन को हैक किया जा सकता है। लेकिन यह बहुत मुश्किल होगा। जैसा कि इस लेख में विस्तार से बताया गया है, क्योंकि ईवीएम को नेटवर्क नहीं किया जाता है, इसलिए उनके कामकाज में बदलाव करने के लिए खुद मशीनों तक पहुंच की आवश्यकता होगी। इसका मतलब है कि ईवीएम को हैक करने की कोशिश करने वाली संस्थाएं रिमोट एक्सेस का उपयोग नहीं कर सकती हैं, जैसे कि इंटरनेट के माध्यम से, और स्वयं या उनके केबल को मशीनों तक भौतिक पहुंच की आवश्यकता होगी, जबकि अधिकारियों (या अन्य पार्टी एजेंटों) द्वारा किसी का ध्यान नहीं जाना चाहिए।

वोट में हेरफेर करने का एक सरल तरीका है: किसी और के लिए बटन दबाना। चुनाव आयोग ने हरियाणा के फरीदाबाद में फिर से मतदान करने का आदेश दिया है क्योंकि मतदाताओं को मतदान करने से पहले एक भाजपा पोलिंग एजेंट के वोटिंग यूनिट तक जाने और वीडियो बटन दबाए जाने का वीडियो क्लिप सामने आया था। इस तरह की ज़बरदस्त धोखाधड़ी को आयोग के सूक्ष्म पर्यवेक्षकों और अन्य दलों के पोलिंग एजेंटों द्वारा रोका जाना चाहिए।

नवीनतम चिंता क्या है?
देश भर के कुछ स्थानों से वीडियो और रिपोर्ट में पाया गया है कि ईवीएम को दिशानिर्देशों के अनुसार सुरक्षा के उचित स्तर के बिना ले जाया जा रहा है। इससे यह आशंका पैदा हो गई है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने उन ईवीएम को हैक नहीं किया है जिन पर लोगों ने वोट दिया था, लेकिन किसी तरह वास्तविक ईवीएम को अन्य लोगों के साथ स्वैप करने की कोशिश कर रहा है।

 हरियाणा के फतेहाबाद में ईवीएम का एक ट्रक लोड दस्तावेजों के सत्यापन के बिना स्ट्रांग रूम में घुस गया।
चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, जब तक कि मतगणना खत्म नहीं हो जाती है, तब तक ईवीएम (किसी भी / मजबूत कमरे के लिए) का कोई भी आंदोलन राजनीतिक दल के प्रतिनिधि की उपस्थिति में होना चाहिए

@AAPBangalore
 बिहार के सारण और महराजगंज लोकसभा क्षेत्रों में ईवीएम में गड़बड़ी से भरी एक जीप, जिसे घुमक्कड़ कमरे के पास छिपाया गया था, राजद-कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा पकड़ लिया गया। इसके साथ ही सदर बीडीओ भी थे जिनका कोई जवाब नहीं है। क्या @ECISVEEP इस पर कार्रवाई करेगा?

रवि नायर
@t_d_h_nair
 यूपी का एक और ईवीएम वीडियो (झांसी से)
अधिकारियों का दावा है कि ये आरक्षित मशीनें हैं। लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं है कि उम्मीदवारों को ईवीएम के आंदोलन की सूचना क्यों नहीं दी गई।

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर  बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी : ### 2025 अक्टूबर में भारत में दलितों पर...