शनिवार, 6 अगस्त 2022

07 अगस्त मण्डल दिवस

(भाई श्री चंद्र भूषण सिंह की फेसबुक पोस्ट से साभार :) 

7 अगस्त मण्डल दिवस

श्री अखिलेश यादव जी के नाम खुली चिट्ठी.......
"आरक्षण वंचितों का प्राण तो तीसरी धारा की राजनीति करने वाले दलों का मूलाधार है।"......
चन्द्रभूषण सिंह यादव

आदरणीय श्री अखिलेश यादव जी,
सादर जय भीम!
जय मण्डल!!
परमादरणीय श्री अखिलेश यादव जी! 

आरक्षण पर लम्बी प्रतीक्षा के बाद आपके इस बयान को पढ़कर कि "आबादी के आधार पर सभी जातियों को मिले आरक्षण",खुशी हुई कि चलो देर से ही सही समाजवादी पार्टी ने आरक्षण पर मुंह तो खोला।हमारे पुरखो ने आरक्षण के बाबत यही नारा लगाया है कि "जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी" ,जिसे आपने बोलकर अभिनन्दनीय कार्य किया है।


मेरे जैसे असंख्य समाजवादियों को तब बड़ी निराशा हुई थी जब आपके नेतृत्व में गठित पिछ्डों की सरकार ने त्रिस्तरीय आरक्षण वापस लिया था,पदोन्नति में आरक्षण का डंके की चोट पर विरोध किया था,ठेको में दलितों के आरक्षण को खत्म किया था तथा मण्डल कमीशन को तिलांजलि दे आरक्षण विरोध की तरफ कदम बढ़ा दिया था।मुझे तब और भी घनघोर निराशा हुई थी जब आपने 2017 विधानसभा का चुनाव घोषणा पत्र जारी किया था।इस घोषणा पत्र में बहुसंख्य जन कल्याणकारी बातें लिखी थी पर आरक्षण एवं पिछड़ा वर्ग नदारद था।चुनाव का समय होने के कारण मैंने कलम तोड़कर सोशल मीडिया से लेकर सोशलिस्ट फैक्टर सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपके पक्ष में लिखा था क्योकि कुल के बावजूद उम्मीद भी आप या आप की तरह की जमातों से ही है इसलिए लाख कमियों के बावजूद उम्मीद की किरण जहाँ दिखती है,व्यक्ति वहीं रहता है।हमने भी तमाम विसंगतियों के बावजूद आपकी तरफ सदैव आशा भरी उम्मीद रखी है कि कभी तो आप अपने असली लाइन-लेंथ पर बालिंग/बैटिंग करेंगे?

अखिलेश जी!भारतीय राजनीति के संदर्भ में जाति और धर्म शाश्वत सत्य हैं।यह अमेरिका या ब्रिटेन नही है कि विकास,काम,योग्यता,अच्छाई, नेकी और सहृदयता पर वोट मिल जाएगा।यहां लोग डिबेट सुनकर वोट वोट नही करते।यह भारत है जहां अच्छाई और काम का कोई मतलब नही,यहां जाति और धर्म की राजनीति प्रभावशाली है।हम जिस वेद,पुराण,महाभारत,रामायण,गीता,मनुस्मृति आदि को आदर्श मानते हैं वहां जाति, धर्म,लिंग आदि के आधार पर जबर्दश्त भेदभाव हुवा है और उसी के मुताविक इंतजाम का आदेश/निर्देश है।पुरातन काल मे यही शास्त्र राजनीति को दिशा निर्देश देते थे।हमारे धर्मशास्त्र नीति की जो बात करते हैं वहां क्या है,यदि हम तार्किक दृष्टि से विवेचना करेंगे तो पाएंगे कि इन नीति निर्देशो में केवल और केवल अनीति ही भरी पड़ी है जिसके द्वारा सत्ता हाँकी गयी है।राजसत्ता के लिए कैसे-कैसे पाप नही किये गए हैं?छल से एकलब्य का अंगूठा काटना,निर्दोष शम्बूक का वध करना, सत्यवादी युधिष्टिर से "नरो वा कुंजरो" कहलवाक़े मरने को विवश करना,सूर्य को ढककर शाम का मंजर बनाके जयद्रथ को मरवाना,शिखंडी का प्रयोग करके भीष्म को साधना,गर्भवती सीता को जंगल छोड़ना,अकेली और निर्दोष सूर्पनखा का नाक-कान काटना आदि अन्यान्य दृष्टांत केवल और केवल यही दर्शाते हैं कि जाति, लिंग,वर्ण आदि के आधार पर अन्याय करके ही यहां राजसत्ता पर काबिज हुवा जाता रहा है।अखिलेश जी! जहां राजसत्ता लेने या चलाने का आधार अन्याय आ अनीति रही हो वहां आप नीति,काम,शुचिता की बात करेंगे तो वह बेमानी होगा।

अखिलेश जी!आप स्वयं देख चुके हैं कि आप चाहे जितनी तरक्की कर जांय,जितने बड़े पद पर चले जांय,भले ही बड़ी जातियों से शादी-विवाह कर लें और उनकी संगत व पंगत में उठने-बैठने लगें पर जाति पीछा नही छोड़ती है।जाति इतनी क्रूर है कि मां के गर्भ में जाने के साथ ही और कुछ निर्धारित हो या न हो पर जाति जरूर निर्धारित हो जाती है।अखिलेश जी! आप देख चुके है कि इस प्रगतिशील युग मे भी आप द्वारा 5 कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास छोड़ने पर गंगाजल व गोमूत्र से उसके शुद्धिकरण के बाद ही नए मुख्यमंत्री योगी जी उसमे रहना शुरू किए।अब आप सोचिए कि मुलायम सिंह यादव जी,मायावती जी व आपके लगातार दशक भर उस मुख्यमंत्री आवास में रहने से उसे अशुद्ध मानने वाले लोग किस तरह की सोच के हैं और हम कौन हैं,हमे किनके लिए आवाज उठानी चाहिए,हमारे सँघर्ष का विंदु क्या होना चाहिए,हमे किनके विकास व तरक्की की बात करनी चाहिए?इस दृष्टांत के बाद हम सभी की आंखे जरूर खुल जानी चाहिए।

अखिलेश जी!राजनीति का क्षेत्र बहुत पेचीदा होता है।यहां हम सीधा-सीधा चलकर विजय हासिल नही कर सकते हैं।हमारी सादगी,सच्चरित्रता,सज्जनता आदि की लोग तारीफ तो करेंगे लेकिन वोट के वक्त लोगो के दिमाग मे धर्म,जाति, क्षेत्रीयता आदि प्रभावी हो जाता है।आप अपराधी मुक्त राजनीति के हिमायती हैं,यह अच्छी बात है लेकिन आप ने पौराणिक कथाओं में पढ़ा है कि सत्ता हासिल करने के लिए बाहुबल और कल-छल सब कुछ अपनाया गया है।भाजपा शुचिता की बात करती है लेकिन उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी पर कितने आपराधिक मुकदमे हैं,आप जान रहे हैं।भाजपा के यूपी प्रदेश अध्यक्ष श्री केशव मौर्य जी के ऊपर या उनके वर्तमान मुख्यमंत्री योगी जी पर कितने आपराधिक मुकदमे हैं यह भी आप बखूबी जान रहे है लेकिन ये सभी भाजपा और भाजपा समर्थकों के लिए स्तुत्य हैं।अखिलेश जी !आपने मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद को ठुकरा करके बहुत बड़ी रणनीतिक व राजनैतिक भूल की।इनकी अपने-अपने क्षेत्र और समाज में पकड़ और लोकप्रियता है।इन्हें वैसे ही तमाम आलोचनाएं झेलते हुए नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी अपने साथ नही रखते थे।पिछड़े,दलित या अल्पसंख्यक समाज के लोगो को थोड़ा सा बढ़ने पर यह जातिवादी क्रूर समाज कैसे डिस्क्रेडिट करता है,यह लालू जी के प्रकरण में आप देख रहे हैं।ऐसे ही मुख्तार व अतीक के साथ है।यदि कोई मुसलमान थोड़ा दबंग हो जाय तो उसे अपराधी,आतंकवादी करार दे दिया जाएगा।


अखिलेश जी!आपने देखा है कि भाजपा ने आपको परास्त करने के लिए आपके लोगो को ही आपके बिरुद्ध कैसे आगे किया?जातियों का प्रयोग उसने कितनी चालाकी से किया? जिन्हें आपके पाले में होना चाहिए उन्हें उसने कैसे खुद के पाले में करके आपको शिकस्त दे डाला।यदि आपने थोड़ा सा प्रयास किया होता तो भाजपा की सेना में खड़े ओमप्रकाश राजभर जी,स्वामी प्रसाद मौर्य जी,आर के चौधरी जी,धर्म सिंह सैनी जी,दारा सिंह चौहान जी,फागू चौहान जी,अनुप्रिया पटेल जी,युगल किशोर जी,अनिल राजभर जी,एस पी सिंह बघेल जी जैसे लोग भाजपा की तरफ न जाकर आपको प्रीफर किये होते लेकिन तब आपके सिपहसालार रंजना बाजपेयी जी,अभिषेक मिश्र जी,अशोक बाजपेयी जी थे जिनकी बदौलत आप क्या पाए,क्या खोए इसकी समीक्षा आप को करनी चाहिए।

अखिलेश जी!नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी यूपी जैसे जातिवादी व धार्मिक उन्माद में जीने वाले प्रदेश में क्या कुछ नही कहलाये लेकिन अंगद की पांव की तरह जमे रहने के लिए फूलन देवी निषाद को बीहड़ो की दुनिया से निकलने के बाद सन्सद में भेज दिया,अपढ़ सुभावती पासवान जी को सांसद बना दिया।अपने मंच पर बेनी प्रसाद वर्मा जी,रामआसरे विश्वकर्मा जी,दयाराम प्रजापति जी,नानक दीन भुर्जी जी,युगलकिशोर बाल्मीकि जी,रामआसरे कुशवाहा जी,विशम्भर प्रसाद निषाद जी,धनीराम वर्मा जी,रामशरण दास गुर्जर जी,अवधेश प्रसाद जी,रामकरण आर्य जी आदि को प्रभावशाली तरीके से स्थान दिया तो वहीं जनेश्वर मिश्र जी, मोहन सिंह जी,बृजभूषण तिवारी जी आदि को भी प्रभावशाली भूमिका में रखा।एक अद्भुत जातिगत व सामाजिक सामंजस्य स्थापित कर नेताजी यूपी की राजनीति में सदैव प्रभावशाली रहे लेकिन 2012 से 2017 के बीच आप प्रभावशाली होने के बाद सामाजिक समीकरणों पर बिलकुल ध्यान नही दिए जिस नाते भाजपा को दांव चलने में आसानी मिल गयी।
अखिलेश जी!"जैसा देश वैसा भेष" का सिद्धांत अपनाना होगा।जो समाजवादी सोच और तरीका है उसे आत्मसात करना होगा।समाजवादी पार्टी से पिछ्डों, दलितों और अल्पसंख्यको को जोड़ना होगा।इसके लिए इन वर्गों के अंदर नेतृत्व पैदा करना होगा।नरेश उत्तम पटेल जी,रामआसरे विश्वकर्मा जी,रामपूजन पटेल जी,रामआसरे कुशवाहा जी,दयाराम प्रजापति जी,युगल किशोर बाल्मीकि जी,अनीस अहमद जी,पूर्णवासी देहाती गोंड जी,रमाशंकर राजभर विद्यार्थी जी,धर्मराज सिंह पटेल जी या ऐसे ही दूसरे पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक समाज के नेताओ को सामने लाकर उन्हें तवज्जो देना पड़ेगा।

अखिलेश यादव जी!भारतीय सन्दर्भ में आप आस्ट्रेलिया,जर्मनी,अमेरिका या जहां आप अक्सर जन्मदिन मनाने जाते हैं ब्रिटेन का मापदंड अपनाएंगे तो सफलता क्या असफलता के आखिरी पायदान पर रहना पड़ेगा।बहुत सोच-समझ के समाजवादी पुरखो ने जो सभी के सभी बड़ी जातियों के थे मसलन लोहिया,जयप्रकाश,नरेन्द्रदेव,एस एम जोशी,मधु लिमये,मधु दण्डवते,राजनारायण,अच्युत पटवर्धन आदि ने "सोशलिस्टों ने बांधी गांठ,पिछड़े पावें सौ में साठ" का नारा लगाया था।वे सभी के सभी बड़ी जाति के समाजवादी लोग यूं ही नही यह नारा दिए थे,इस नारे को देने के पीछे बहुत बड़ा सामाजिक,राजनैतिक कारण था।वे जानते थे कि नेहरू को गांधी का वरदान प्राप्त है ऐसे में इस देश के वंचितों की बात करके ही हम खड़े हो सकते हैं तो समाजवाद का यही तकाजा भी है कि उस विपुल आबादी को सामाजिक आजादी मिले जिसे हजार वर्ष से सामाजिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक एवं आर्थिक रूप से जाति और धर्म के आवरण में बांध करके दास या गुलाम बना के रखा गया है।

अखिलेश जी ! इन सवर्ण समाजवादी पुरखों के पिछड़ा परस्ती के पीछे दो बातें थीं,पहला इन वंचित तबकों को हजारो वर्ष बाद न्याय मिले तो दूसरा इन सत्ता से वंचित समाजवादियों को मजबूत आधार। भारतीय राजनीति में पिछड़ा वर्ग और समाजवादी पार्टी एक दूसरे के पूरक बने और लम्बे समय से समाजवादी धारा और पिछड़ा वर्ग साथ-साथ रहे जिसकी परिणति 7 अगस्त 1990 को मण्डल कमीशन की घोषणा के रूप में सामने है।


अखिलेश जी! मुलायम सिंह यादव जी,शरद यादव जी,चन्द्रजीत यादव जी,लालू प्रसाद यादव जी,रामविलास पासवान जी आदि नेताओ को जब पत्र लिखा जाता रहा है तो वे लोग उसे पढ़ते और फिर जबाब देते रहे हैं पर मैंने तमाम अवसरों पर बिन मांगे आपको राय देने की हिमाकत करते हुए फोकट का रायदाता बनने का कार्य किया है लेकिन मुझे लगता है कि आपने मेरे पत्रों या सुझावों को इस लायक नही समझा कि उसे फॉलो किया जाय या उनका क्रियान्वयन किया जाय।आप शायद उन्हें पढ़ने की जहमत ही नही उठाये होंगे वरना निश्चय ही वे क्रियान्वित हुए होते तथा जबाब आया होता।खैर मेरे जैसे लोग विचारधारा के स्तर पर थेथर कहे जाएंगे क्योकि इतने के बावजूद हम फिर लिख रहे हैं परंतु तरीका बदल गया है।इस बार हम सोशल मीडिया पर आपके नाम खुला पत्र डाल रहे है क्योकि हमे उम्मीद है कि सोशल मीडिया पर लिखे गए मेरे खुले पत्र पर और भी कुछ नए विचार या संशोधन आ पाएंगे जो समाजवादी या पिछड़ा वादी राजनीति के लिए मील का पत्थर साबित होगे।

अखिलेश जी!मुझे इस बात का इल्म है कि आप ऑस्ट्रेलिया में पढ़े,डिम्पल जी से जातितोड़ शादी किये,मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव जी के बेटे के रूप में सामाजिक मान्यता पाए तथा होश संभालते ही जय-जयकार के नारों के साथ मुख्यमंत्री बन गए इसलिए जाति और धर्म के जमीनी हकीकत से रूबरू नही हुए अस्तु आपको अपने काम पर वोट मांगने में विश्वास रहा।मैं आपको बहुत दोष नही दूंगा कि आपने जाति,धर्म,बाहुबल आदि का प्रयोग क्यो नही किया?आप तिकड़म,इन विविध किस्म के जाल-बट्टों से इतर स्वच्छ और पारदर्शी राजनीति करने के हिमायती बनकर यूपी में पांव जमाना चाहते थे लेकिन यह जो हजार वर्ष की सामाजिक विद्रूप राजनीति है वह आपके मंसूबो को धराशायी कर दी,जिसे शायद अब आप महसूस कर रहे हैं।

अखिलेश जी! देखिये न आप कह रहे हैं कि "जिसके हर जाति में दो-चार मित्र नही वह समाजवादी नही",आप कह रहे हैं कि "काशी नही बना क्योटो,बुलेट ट्रेन का पता नही" और अमित शाह जी कह रहे हैं कि "यादव-जाटव जोड़ो।"अमित शाह यह समझ गए हैं कि जातियों की राजनीति किये बगैर भारत मे सत्ता हासिल नही की जा सकती है इसी नाते भाजपा ने पहले गैर यादव पिछडो औऱ गैर जाटव दलितों को साधा जबकि अब वे पिछडो की बिपुल आबादी यादव एवं दलितों की बिपुल आबादी जाटव को साधने की फिराक में हैं।दलित मतों को साधने हेतु भाजपा रामदास अठावले,उदित राज एवं रामविलास पासवान आदि को पहले ही अपने खेमे ले ले चुकी है जबकि अब वह जाटव को अपनाने की युगत में है इसी तरह उसका पाशा यादव पर फेंका जाने वाला है जिसके तहत सोनू यादव के घर सहभोज किया जा चुका है।


अखिलेश जी! जाति की ताकत देखिये कि देश के प्रधानमंत्री मोदी जी गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए "घांची" जाति जो मारवाड़ी की उप जाति थी,को पिछड़ी जाति में अध्यादेश ला शामिल कर खुद की कलम से खुद ही पिछड़ी जाति में शामिल हो गए।प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद खुद को नीच जाति बता करके वे वंचितों की विपुल आबादी में यह संदेश दे बैठे कि मोदी इस देश का एक नीच पिछड़ा है जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर इन छोटी जातियों का स्वाभिमान बढ़ाएगा जबकि उस वक्त आप और आपके पिताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी सवर्ण परस्त बनने के लिए सन्सद में पदोन्नति आरक्षण बिल फाड़ रहे थे तो सभाओं में इसके बिरुद्ध ललकार रहे थे।अखिलेश जी!सोचिए कि आपका पाशा कैसे उल्टा पड़ा कि सवर्ण आपके पाले में आया नही और पिछड़े को आपका नारा व कार्य भाया नही जबकि दलित को आपका आचरण सुहाया नही और आप लोकसभा में 5 तो विधानसभा में 47 पर अटक गए जबकि मोदी पिछड़े की बात कर आपको गटक गए।

अखिलेश जी! मैंने जय भीम कहा है वह इस नाते कि आप मुख्यमंत्री बने,नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी व मायावती जी मुख्यमंत्री बनी या इस देश मे वंचित समाज का कोई व्यक्ति कुछ भी बना तो उसमें भीम राव अम्बेडकर जी का बहुत बड़ा योगदान है।सोचिए कि अम्बेडकर साहब ने कितने तिरस्कार के बाद हम सबको सत्ता,सम्पत्ति,सम्मान,शिक्षा,आरक्षण आदि का अधिकार भारतीय संविधान में दिलवाया है।अम्बेडकर साहब द्वारा संविधान के अनुच्छेद 340,341,342,16(4),15(4) आदि में हमे जो संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं उन्ही की बदौलत मनु का आचार-व्यवहार सुसुप्त हुवा है और हम सम्मान की जिंदगी जी पा रहे हैं।

अखिलेश जी! हमने जय मण्डल भी कहा है जो पिछडो के लिए आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री विंदेश्वरी प्रसाद मण्डल जी ने 1 जनवरी 1979 को मण्डल आयोग गठित होने के बाद दो वर्ष अनवरत कार्य करने के उपरांत 31 दिसम्बर 1980 को अपनी रिपोर्ट प्रेषित करने के बाद सिफारिश किया कि पिछडो को 27 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाय,पदोन्नति में आरक्षण को ग्राह्य बनाया जाय,न भरे गए पदों को 3 वर्ष तक आरक्षित रखा जाय,sc/st वर्ग की तरह पिछडो को आयु सीमा में छूट दी जाय,पदों के प्रत्येक वर्ग के लिए sc/st की तरह रोस्टर प्रणाली अपनायी जाय,राष्ट्रीयकृत बैंकों,केंद्र व राज्य सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमो में आरक्षण दिया जाय,वित्तीय सहायता प्राप्त निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में आरक्षण लागू किया जाय,सभी कॉलेजों/विश्वविद्यालयो में आरक्षण प्रभावी बनाया जाय,पिछड़े वर्ग के छात्रों को ट्यूशन फ़ी फ्री किया जाय,किताब,वस्त्र,दोपहर का भोजन,छात्रावास,वजीफा एवं अन्य शैक्षणिक रियायते दी जाय,सभी वैज्ञानिक,तकनीकी एवं व्यवसायिक संस्थानों में पिछडो को आरक्षण दिया जाय,तकनीकी व व्यवसायिक संस्थानों में विशेष कोचिंग का इंतजाम किया जाय,लघु उद्योग लगाने हेतु पिछडो को समुचित वित्तीय व तकनीकी सहायता दी जाय,बंजर/ऊसर/बेकार भूमि का एक हिस्सा पिछडो को दिया जाय,पिछड़ा वर्ग विकास निगम बनाया जाय,राज्य व केंद्र स्तर पर पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय गठित किया जाय एवं केंद्र सरकार द्वारा पिछडो को समुचित धन देकर मदद किया जाय।

अखिलेश जी! अम्बेडकर साहब द्वारा रचित संविधान में अनुच्छेद 340,341,342,15(4),16(4) आदि की बदौलत sc/st/obc आज आरक्षण पाकर उन्नति की सीढ़ियां चढ़ रहा है तो मण्डल साहब की सिफारिशों की बदौलत पिछड़ा देर से ही सही चपरासी से लेकर कलक्टर तक बन रहा है,ऐसे में ये हमारे समाज और हमारी पार्टियों के लिए आदर्श हैं।अखिलेश जी!देश का सँविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ लेकिन पिछडो को उनका संवैधानिक अधिकार मण्डल कमीशन 7 अगस्त 1990 को घोषित हुवा,13 अगस्त 1990 को अधिसूचित हुवा तो कोर्ट द्वारा क्रीमी लेयर के साथ 16 नवम्बर 1992 को लागू हुआ।अखिलेश जी! देश की 52 प्रतिशत आबादी जो पिछड़ा वर्ग मानी गयी है उसमें 43 प्रतिशत हिन्दू आबादी तो 9 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।हिंदुओ में ब्राह्मण,क्षत्रिय,मारवाड़ी,कायस्थ,भूमिहार व sc/st को छोड़कर सभी पिछड़े कहे गए तो मुस्लिम में शेख,सैयद,पठान को छोड़कर सभी पिछड़े माने गए हैं।इन पिछड़े हिन्दू व मुसलमानों को जिनकी आबादी मण्डल साहब ने 52 प्रतिशत मानी 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश किया।

अखिलेश जी ! देश के संविधान के अनुसार प्राप्त अधिकार के तहत पिछडो को आरक्षण के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं। सवर्ण लोगो ने देश के रेल,बस को फूंक कर इस सांवैधानिक प्राविधान को रोकने का भरपूर प्रयास किया है जिसमे जाने-अनजाने आप भी 2012 से 2017 के अपने सरकार में रहते हुए शामिल रहे हैं।मायावती जी ने भी पिछडो के त्रिस्तरीय आरक्षण का विरोध कर अपने सर्वजनवादी मुखौटे को सामने लाकर आरक्षण की अवधारणा को धूल धूसरित किया है।अखिलेश जी!आपने पदोन्नति में आरक्षण का प्रत्यक्ष विरोध करके जहाँ आरक्षण को कमजोर बनाया है और खुद भी कमजोर हुए हैं तो वहीं मायावती जी ने सत्ता में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वंचित तबकों के समुचित भागीदारी की गणना कराने की बजाय सतीश चंद्र मिश्र जी को खुश करने व अपने सर्वजनवादी स्वभाव को एक्सपोज करने के लिए पुनः सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को निष्प्रभावी बनाने का अपराध किया है।


अखिलेश जी ! 
आप और मायावती जी सवर्ण तुष्टिकरण में इतने तल्लीन हो गए कि आपलोगो का मूल आधार ही खिसक गया। जिस आधार को बनाने में लोहिया से लेकर रामसेवक यादव, कर्पूरी ठाकुर,रामनरेश यादव, वीपी सिंह ने अनगिनत गालियां सुनी,कांशीराम साहब ने फजीहत झेली और आप को एवं मायावती जी को एक ठोस आधार दिया उसे आप दोनों लोगों ने सर्वजनवादी नीति अपनाके खुद ही दरका डाला है।अब आप लोगो को खुद की नीति में सुधार व प्रायश्चित करना है वरना न आप लोगो का अस्तित्व बचेगा और न बहुजन वाद/समाजवाद जीवित रह पाएगा।

अखिलेश जी!आपने यूपी के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी का बयान जरूर पढा होगा जिसमें उन्होंने कहा है कि "अब समाजवाद नही,राष्ट्रवाद की जरूरत है।"भाजपा का मनुवादी स्वरूप अब धीरे-धीरे सामने आता जा रहा है।वे अब राष्ट्रवाद मतलब मनुवाद पर खुलकर बोलने लगे हैं।स्पष्ट है कि वे बोलें भी क्यों नही,क्योकि अब उनका प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,राज्यसभा,लोकसभा,देश की सूबाई सरकारों में बहुमत जो हो गया है।अब तो उन्हें अपने एजेंडे को लागू करने में कोई कठिनाई नही दिख रही है क्योंकि विपक्ष अत्यंत कमजोर व दिशाहीन स्थिति में लकवा ग्रस्त खड़ा है।

अखिलेश जी!आपने भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी जी का भी बयान पढ़ लिया होगा जिसमे उन्होंने कहा है कि "भाजपा आरक्षण को वहां पंहुचा देगी जहां आरक्षण का होना और न होना बराबर होगा।"अखिलेश जी!यह वक्त अत्यंत सोचनीय है।देश अजीब तरह की खाई में जा रहा है जिसे हमलोग खुद खोदे हुए हैं।इस स्थिति से देश व वंचित समाज को बचाना होगा जिसके लिए आपको अब खुलकर सामने आना होगा।
अखिलेश जी! आपका आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की मांग वाला यह बयान बुझ रहे सामाजिक न्याय के दीपक में तेल डालकर जलाने के प्रयास वाला बयान है जिसे सुनकर हमारे जैसे तमाम लोगों को खुशी हुई है लेकिन इसे मैं नाकाफी मानता हूं।

अखिलेश जी!आरक्षण पर अब आरपार के जंग की जरूरत है।यदि आप चूक गए तो दुनिया की कोई ताकत नही है जो यूपी के यादवो को भाजपाई होने से रोक दे क्योकि आप देख ही रहे हैं कि कितने बड़े-बड़े सेक्युलर लोग और यादव भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट कर गए है?कैसे भाजपा सरकार की यादव नेतृत्व द्वारा आपको नीचा दिखाने के लिए तारीफ की जा रही है?भाजपा कैसे यादवो को जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है।बिहार में लालू जी और युवा तेजश्वी यादव जी के कारण यादवो का भाजपाईकरण नही हो पा रहा है लेकिन यूपी उनके टारगेट पर है क्योकि यहां अब तक उन्हें सामाजिक न्याय का एजेंडा सपा-बसपा द्वारा अपनाया जाता हुवा दिख नही रहा है।


अखिलेश जी! मुझे अंदेशा है कि भाजपा यूपी के यादवो को साधने के लिए श्री भूपेंद्र यादव जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है तो संविधान संशोधन कर अहीर रेजिमेंट का निर्माण भी कर सकती है।भाजपा ऐसा कर एक तीर से दो निशाने कर डालेगी।एक यूपी के यादव नेतृत्व को हड़प लेगी तो दूसरे अहीर रेजिमेंट बना मण्डल को निगल जाएगी।अखिलेश यादव जी!सतर्कता जरूरी है।आप मण्डल कमीशन पूर्ण रूप से लागू करने की मुहिम शुरू करें।आपने आबादी के अनुपात में आरक्षण की जो बात की है उसके लिए जातिवार जनगड़ना की जरूरत पड़ेगी इसलिए समाजवादी पार्टी को दूसरे सारे एजेंडों को छोड़ करके सीधे-सीधे सामाजिक न्याय के एजेंडे को अख्तियार करना चाहिए।समाजवादी पार्टी को जातिवार जन गड़ना कराने, आबादी के अनुपात में आरक्षण देने,प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण को प्रभावी बनाने,न्यायपालिका में आरक्षण को लागू करने,मण्डल कमीशन की समस्त संस्तुतियों को लागू करने का अभियान छेड़ना चाहिए।

अखिलेश जी!वक्त बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है।फासिस्ट ताकतें फन फैलाने लगी हैं,फैलाएं भी क्यो नही,उनकी एक छत्र सत्ता जो कायम हो गयी है।राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,उपराष्ट्रपति,देश के बहुसंख्य राज्यो में सरकारे भाजपा की हो चली हैं।अब वक्त भाजपा के पाले में है।वे संविधान बदलें,आरक्षण खत्म करें,मनु विधान लागूं करें,उनकी मर्जी क्योकि विपक्ष सुस्त और दिशाहीन हो चुका है।अखिलेश जी! भाजपा और उसके हिंदुत्व का एक मात्र काट मण्डल,आरक्षण,भागीदारी है।

अखिलेश यादव जी! हो सकता है कि आपको मेरी बात बुरी लगे लेकिन मैं आपका शुभेच्छु हूँ।कुछ लोग हैं जो आपके चेहरे पर लगे दाग को यह कहकर सराह सकते हैं कि "दाग है तो क्या अच्छा है" लेकिन मैं आपके समक्ष पूर्व में भी आईना रखता रहा हूँ और अब भी रखूंगा क्योकि मुझे आपसे और अपने वर्गीय हित से स्नेह और लगाव है।

अखिलेश जी! मैं आपका कोई प्रतिद्वंदी नही हूँ,मैं एक छोटा सा सामाजिक कार्यकर्ता हूँ लेकिन मुझे अपने समाज और वंचित तबके की फिक्र है,समाजवादी पुरखो की ललकार का इल्म है और मुद्दों का ज्ञान है इसलिए मैं आपको आगाह करूँगा क्योकि यह समय बहुत नाजुक है,चूक गए तो खत्म होने की शुरुवात हो जाएगी।


अखिलेश जी! पुल, सड़क,मेट्रो,रिवर फ्रंट,एक्सप्रेस वे जरूरी हैं लेकिन इनसे जरूरी वंचित तबकों की तरक्की है।इस देश के पिछ्डों,अल्पसंख्यको व दलितों के शिक्षा,सम्मान,सुरक्षा,रोजगार की आवश्यकता सबसे महत्वपूर्ण है।इन सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से वंचित तबकों की कीमत पर मेट्रो,रिवर फ्रंट,एक्सप्रेस वे का कोई मोल नही है।यदि ये तरक्की किये तो आप,आपकी पार्टी,प्रदेश एवं देश तरक्की करेगा इसलिए अखिलेश जी! आरक्षण,संविधान,भागीदारी,पिछड़ापरस्ती,दलित हित, अल्पसंख्यक सुरक्षा समाजवादियों का एजेंडा था और रहना चाहिए,यदि आप इससे विरत हुए तो भाजपा का हिंदुत्व,छद्म राष्ट्रवाद और मनुवाद मजबूत हो जाएगा।

अखिलेश जी!समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर आपको अपना एजेंडा स्पष्ट कर देना चाहिए।अपनी भूलों को सुधारने व इसके लिए अपने समाज से खेद जताने में हमे कोई दिक्कत नही होनी चाहिए।अब समाजवादी पार्टी को स्पष्ट लाइन खींच करके दलित,पिछड़े एवं अल्पसंख्यक हित की बात करनी चाहिए।जातिवार जनगड़ना करवाने,पूर्ण मण्डल लागू करने,पिछड़ा वर्ग आरक्षण से क्रीमी लेयर के आर्थिक आधार वाले व्यवस्था को खत्म करने,संख्या के अनुपात में भगीदारी तय करने,महिला आरक्षण में पिछड़े,दलित महिलाओ को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने जैसे ज्वलन्त मुद्दों को पार्टी को अपना मुख्य एजेंडा बना करके प्रदेश और देश भर में अभियान छेड़ देना चाहिए।अखिलेश जी!एक अनुरोध और करूँगा कि आपके नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी में समाजवाद का ककहरा तक न जानने वालों की लंबी फौज जमा हो गयी है जिन्हें समाजवाद के प्रशिक्षण की नितांत आवश्यकता है।नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी औपचारिक ही सही पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते रहते थे लेकिन वर्तमान में ऐसा कोई आयोजन नही हो रहा है जिससे पदलोलुप एवं ठेकेदार किस्म की एक ग़ैरसमाजवादी जमात अंकुरित हो रही है।प्रशिक्षण शिविर लगाकर नई पीढ़ी को ट्रेंड करने की परम आवश्यकता है।


अखिलेश जी ! 
मैं इस उम्मीद के साथ 7 अगस्त की क्रांतिकारी बेला में आपसे अनुरोध करता हूँ कि मण्डल कमीशन पूर्णतः लागू करने का अभियान शुरू करना चाहिए। वीपी मण्डल की जयंती,पुण्य तिथि मनायी जानी चाहिए,समस्त पिछड़े /दलित महापुरुषों के चिंतन को आत्मसात करना चाहिए, निर्भय होकर पिछडो की बात उठानी चाहिये क्योकि यही आपकी मूल पूंजी हैं,जब आपकी मूल पूंजी मजबूत रहेगी तो ब्याज तो वैसे ही मिलता रहेगा इसलिए ब्याज के चक्कर मे अपनी मूल पूंजी गंवाने की गलती दुहराने की बजाय आप मजबूती से सामाजिक न्याय की अवधारणा को बलवती बनाएंगे यही उम्मीद है।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
सादर,

भवदीय-
चन्द्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक-"यादव शक्ति" त्रैमासिक पत्रिका
06 अगस्त 2017

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

उत्तर प्रदेश राजनीती के समकालीन समीकरण -2024 में मोदी को रोकना है तो 2022 में उत्तर प्रदेश में योगी को रोकना ही होगा।


2024 में मोदी को रोकना है तो 2022 में उत्तर प्रदेश में योगी को रोकना ही होगा। अमित शाह की इस बात से जिस आशंका का एहसास उनको हो रहा है वह सही है पर अमितशाह की माणसा को परिपूर्ण करने के लिए उनके रचाये गए हथकंडे उत्तर प्रदेश की जनता को अच्छी तरह समझ में आ गयी है।
आधुनिक युग में फुट डालो और राजयकारो की निति दरअसल मनुस्मृति की रही है, जिसे आज पुनः ब्राह्मणवादी और बनियों ने पुनः आक्खतियार की हुयी है। धर्म और राष्ट्र के नाम की राजनीती करने वाले न धर्म से कोई सरोकार रखते हैं और न ही राष्ट्र से ही क्योंकि धर्म का इस्तेमाल सत्ता के लिए और राष्ट्र पूंजीपतियों को दे रहे हैं जनता को नंगा करके आत्मनिर्भर करने की मनुवादी योजना पर चल रहे है।



ठोक दो ! 
धर्म के नाम पर लिंचिंग 
अस्पतालों की कॉर्पोरेटिंग 
ब्राह्मणों की हत्या 
जातिवादी राजनीती 
जुमलेबाजी 
झूठ 
आपदा में अवसर 
क्रूरता में करुणा 
खेमचंद शर्मा जैसे झूठे आदमी को ही देख लीजिये !
वैक्सीन भाजपा की नहीं सरकार की है जो हमारे टैक्स का है पी एम केयर फंड का हिसाब देना चाहिए। 
उज्जवला योजना में गैस की कीमत  रु.300 से रु.900 
पेट्रोल डीजल की कीमतें दोगुनी !
रेल बेच दिया 
हवाई अड्डे बेच दिया 
LIC बेच दिया 
पूंजीपतियों के गुलाम  
दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न। 
विशेष : सपा के प्रवक्ता के पास आंकड़े तो हैं लेकिन क्रम से शालीनता से क्रमवार उठाना चाहिए ममता त्रिपाठी से सबक लेना चाहिए। 
रूफी ज़ैदी जी ;
श्री अखिलेश जी को जनता चाहती है कि फिर से मुख्यमंत्री बने और यह बात उनको कहीं से समझ में आ गई है। जिसकी वजह से वह निरंतर मुख्यमंत्री के रूप में अपनी योजना पर काम कर रहे हैं।
अब यह दुनिया में जाहिर हो चुका है कि भाजपा धूर्तता और असंवैधानिक तरीके से इस देश की आवाम को बेवकूफ बनाकर अपने पक्ष में करने का निरंतर प्रयास कर रही है जिस तरह से बंगाल की चुनाव में देश का प्रधानमंत्री अपनी हर तरह की चाल से बाज नहीं आया क्या आप अपेक्षा करते हैं कि उत्तर प्रदेश में उस तरह का तांडव यह लोग नहीं करेंगे।
अब यहां सवाल बनता है कि क्या श्री अखिलेश यादव के पास उनके इस छल का माकूल जवाब है।
आज की ही बहस में देखिए भाजपा के प्रवक्ता के रूप में खेमचंद शर्मा जिस तरह से आतंकी की तरह बातें कर रहा है, उसके सामने मनोज जैसे लोग रीरिआते आते हुए नजर आ रहे हैं। बहुत शालीन और तर्कों के साथ सपा के प्रवक्ताओं को अपनी बात रखनी होगी ममता जी से सीख सकते हैं लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे जहां बहस करनी है वहां वहस ही चाहिए जहां लट्ठ चाहिए वहां लाठी निकालना चाहिए।
मुझे भरोसा है कि आप जैसे पत्रकार भाजपा के दोगले चरित्र के लोगों को जनता के सामने उजागर करने में कामयाब हो सकेगी।
बहुत-बहुत बधाई आपको।
 

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

स्मृति शेष

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

समाजवाद और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद


 







सुप्रभात!

https://fb.watch/7KuaxTCuQ5/

आपकी बातचीत और आपके पूरे प्रसारण से ऐसा प्रतीत होता है कि आप समाजवादी पार्टी के के लिए काम कर रही हो, बहुत अफसोस के साथ यह बात कहनी पड़ रही है कि आपके जितने भी आमंत्रित सदस्य होते हैं, वह मन से भाजपा के समर्थक होते हैं। अपने निजी खुन्नस के कारण आपके संवाद में आते जरूर हैं अखिलेश जी की प्रशंसा भी करते हैं लेकिन मानसिक रूप से वह सब कहीं ना कहीं आपके इस अभियान को चूना लगा रहे बहुत अच्छा होता यदि आप आम आदमी को आम आदमी के बीच से पकड़कर लाते और उनसे बातचीत करती, तो उसका असर होता अब देखिए आपने अमिताभ ठाकुर जी को इतना महत्व दिया और अंततः उनको सरकार उठा ले गई यह बात निश्चित तौर पर गौर करने योग्य है कि श्री यस पी सिंह साहब भी योगी जी से बुरी तरह से खिन्न हैं लेकिन अखिलेश यादव को वह मन से स्वीकार नहीं करते हैं। आज वह जो कुछ भी बोल रहे हो, लेकिन जब वह मुख्यमंत्री थे तो यह किस तरह की भाषा बोल रहे थे जिससे किसी भी मुख्यमंत्री का महत्त्व कितना कम हो जाता है।

आजकल आपके अतिथियों के वक्तव्य में योगी और मोदी की चर्चा ज्यादा होती है कि किस तरह से योगी जी मोदी जी को चैलेंज कर रहे हैं और योगी जी अंतरराष्ट्रीय स्तर के हिंदुत्व के पोषक हैं।
मैं एक स्पष्ट तौर पर सवाल करता हूं कि क्या आपका एक भी अतिथि यह नहीं जानता कि गोरखपुर पीठ गोरखनाथ मिशन के नाम पर सबसे अधिक जिसका विरोध करने के लिए बना था वह था ब्राह्मणवादी हिंदुत्व एक वत्ता भी यह नहीं कहता की मूलतः योगी जी भी ब्राह्मणवाद के विरोधी हैं और ब्राह्मणवाद के विरोधी होने की जो छवि है आज वह भले कबीर जैसी ना हो लेकिन वह ऐसी संस्था से आते हैं जो नाथ संप्रदाय का केंद्र है यदि वह अपने संप्रदाय की उद्देश्य से विचलित होकर समाज में सत्ता के माध्यम से मुसलमान और बहुजन को सबक सिखाना चाहते हैं तो यह कोई नहीं बताता की मूलतः नाथ संप्रदाय मुसलमानों और पिछड़ों के हित के लिए अपना केंद्र स्थापित किया था जिस में सर्वाधिक सहयोग मुसलमानों का और वहां की पिछड़ी जातियों का रहा है।
1974 से लेकर 1976 तक मेरी शिक्षा गोरखपुर में हुई है और इन 2 वर्षों में मैं अनेकों बार गोरखनाथ मंदिर गया हूं तब इससे पहले के जो मठाधीश थे उनके समय तक जिस तरह के पाखंड और हिंदू मंदिरों में ब्राह्मणों का वर्चस्व होता है वह गोरखनाथ मंदिर में कम से कम नहीं था और वहां पर जो अवाम होती थी वह दबी कुचली मजलूम किस्म की आवाम होती थी, जबकि मैंने अपने वाराणसी अध्ययन काल के प्रवास के तहत देखा था कि देश भर की समृद्धि साली अवाम वाराणसी के मंदिरों में प्रवेश करती थी जहां पर दलित या बहुजन समाज से कोई आ गया तो वह अंदर तक जाने की हिम्मत जुटा नहीं पाता था।

इस फर्क को बताने से श्री योगी आदित्यनाथ जी पिछड़ों के बहुत करीब आते हैं और मुसलमानों द्वारा किया गया सहयोग बिल्कुल भूल जाते हैं यह जिस तरह से पिछले पौने 5 वर्षों तक उत्तर प्रदेश का संचालन किए हैं उसके चलते भ्रष्टाचार तो अपनी जगह सांस्कृतिक सरोकारों को जितना बड़ा झटका इनके चलते लगा है उसको रोकने के लिए पिछड़ी जातियों की बहुत सारी उपजातियां अपने आप में इनसे बहुत दुखी हैं इनका शासन उनके लिए बिल्कुल ग्राह्य नहीं है, पिछड़े वर्ग के नेताओं का जो हाल हुआ है उसको सब लोगों ने बहुत अच्छी तरह देखा है।
पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ जिस तरह का अत्याचार और उनके अधिकारों पर कुठाराघात करके इन्होंने विभिन्न संस्थानों में केवल राजपूतों की बहाली की है वह किस से छुपी हुई है उस पर एक बार भी आप के कार्यक्रम में चर्चा नहीं होती।
जबकि समझदार वक्ता यह कह सकता था कि श्री अखिलेश यादव के समय में भी बस्ती के विश्वविद्यालय में ब्राह्मणों का जिस तरह से खुला खेल श्री माता प्रसाद पांडेय द्वारा किया गया था, जिस पर श्री अखिलेश यादव किसी तरह का भी अंकुश नहीं लगा पाए थे और जिस पांडे को वहां कुलपति बनाया गया था वह मूलतः बिहार का रहने वाला और घोर ब्राह्मणवादी सोच का व्यक्ति था या है मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानता हूं उसके बड़े भाई को मैंने किस तरह से राजपूतों के प्रकोप से बचाया है वह उससे पूछा जा सकता है।
श्री अखिलेश यादव के लिए बनाया गया आपका राजनैतिक शो वह सेप नहीं ले पा रहा है जिसकी आज जरूरत है।
मुझे नहीं पता है कि श्री अखिलेश यादव या इनके जैसे नेताओं के साथ मीडिया में बैठे हुए लोग किस तरह का षड्यंत्र करते हैं उसे रोक पाने में आप कितना कामयाब हो रही हैं लेकिन नेताजी की बात करें तो उन्होंने अपने जमाने में मीडिया के लोगों को जितना उपकृत किया है उसके चौथाई में ही नेताजी का बहुजन मीडिया शुरू हो सकता था।
लेकिन बहुतजनों पर इनको विश्वास ही नहीं है, फ्रैंक हुजूर सोशलिस्ट निकालते रहे और जब तक यह मुख्यमंत्री थे वह सोशलिस्ट पत्र अंग्रेजी में निकलता था अंग्रेजी में सोशियलिस्ट पढ़ने वाला नेताजी का

या श्री अखिलेश यादव का कौन सा समर्थक है जो उसे समझ सकता है।
इस प्रयोग के पीछे निश्चित तौर पर फ्रैंक हुजूर की विचारधारा रही होगी और आपको यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आपके इस तरह के कार्यक्रम से वह लोग भी जुड़ सकते थे जो इनके हित के बारे में सोचते हैं।
दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग इन लोगों की सामाजिक न्याय की सोच और ब्राह्मणवाद का जो महा जाल इनके इर्द-गिर्द फैला हुआ है, उससे भयभीत रहता है और जानता है कि यह उस समाजवादी सोच के लोगों के साथ खड़े होने में न जाने क्यों घबराहट महसूस करते हैं।
वहीं पर भाजपा धड़ल्ले से संघ के प्रोग्रामों को लागू कर रही है और बहुजन और दलितों के लोगों को लाली पाप देकर गुमराह भी कर रही है। क्योंकि यह सब उसका उद्देश्य है जब देश में बहुजन समाज के राजनेताओं की बाढ़ आ रही थी उसी समय भाजपा ने संघ के इशारे पर एक गैर ओबीसी को ओबीसी बनाया जो घांची जाति बाकायदा वैश्य समूह में आती है उसे शुद्र समूह में डालते हुए पिछड़ी जाति में डाल देना संघ की सोची समझी चाल थी। यही कारण है कि वह दौर जो पिछड़ी जाति के नेता राष्ट्रीय स्तर पर समझ बूझ दिखाकर देश पर शासन कर सकते थे उसकी उन्होंने विश्वसनीय चेष्टा नहीं की।
इसके लिए समय-समय पर जिन नेताओं ने प्रयास किया उनमें श्री शरद यादव श्री राम विलास पासवान और दक्षिण के कुछ नेताओं को छोड़ दिया जाए तो श्री लालू प्रसाद जी और माननीय मुलायम सिंह जी ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी सोच के नेताओं से निरंतर घिरते चले गए, उत्तर प्रदेश में अमर सिंह बिहार में गुप्ता जी यह सब ऐसे लोग थे जो सामाजिक न्याय की विचारधारा से कोई संबंध नहीं रखते इनका उद्देश्य और इनकी नियत दोनों बहुजन विरोधी रही है दुर्भाग्य है कि यही इन के सबसे बड़े सिपहसालार और सलाहकार बने।
अन्ततः यही कहना चाहता हूं कि यह सब बहुजन समाज में प्रबुद्धजनों को तलाशने में नाकाम रहे हैं, जो इनके लिए राजनीतिक सामाजिक आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बहस करके संविधान सम्मत तरीके से नए परिवर्तनों के लिए सुझाव दे सकें।
संघ के लंबे समय से किए गए कार्यों और भारत की गुलामी की तमाम हथकंडे को इस्तेमाल करते हुए आज की वर्तमान सत्ता जिस तरह से संपूर्ण सामाजिक न्याय की लड़ाई और बहुजन विचारकों के आंदोलन को तहस-नहस करके खंड खंड में बांटने का काम किया है उसके लिए भाजपा की बजाय हमारे वह समाजवादी नेता हैं जिन्होंने अपने अपने तरीके से अपने अपने साम्राज्य करने के चक्कर में सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को न समझने की बहुत बड़ी भूल की है।
यही कारण है कि जिस देश को संविधान से चलना चाहिए वह देश सांस्कृतिक पाखंड और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का गुलाम होता चला जा रहा है। हमें हिंदू और हिंदुत्व के देवी देवताओं को महिमामंडित करने की बजाय संविधान धर्म को महिमामंडित करने की जरूरत है और जब तक संविधान धर्म महिमामंडित नहीं होगा तब तक यहां का बहुजन समाज सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की गुलामी से निजात नहीं पा सकता।
बहस बहुत लंबी है इस पर विमर्श के लिए निश्चित तौर पर आपको ऐसे लोगों को तलाशना होगा जो सांस्कृतिक समाजवाद की अवधारणा पर अपनी बात रख सकते हो।
= डॉ लाल रत्नाकर

मंगलवार, 18 मई 2021

सकारात्मकता

 सकारात्मकता

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हालांकी इससे पहले मैंने सकारात्मकता पर काफी कुछ लिखा है, लेकिन सकारात्मकता है कि समझ में नहीं आती। क्या सचमुच इस सरकार ने सकारात्मक होने की मनसा बना ली है और अगर बना ली है तो उसके प्रति व्यक्ति ईमानदार है. यह बात नीचे संलग्न उर्मिलेश जी की चंद लाइनों में स्पष्ट हो जाता है।
"अपने जैसे देश में लोक-तंत्र भी क्या चीज़ है! बेचारा 'लोक' समझ भी नहीं पाता कि उसके नाम से चलने वाले 'तंत्र' को कुछ मुट्ठी भर लोग चलाते हैं! अपना सारा इंतजाम राजाओं जैसा करते हैं और लोक(की हर श्रेणियां) की मेहनत 'लोक' के काम भी नहीं आती! बेमौत मरने को मुक्ति कह दिया जाता है।

संविधान के सुंदर अनुच्छेद 'तंत्र' की समयबद्ध शोभायात्रा निकालते हैं! असमानता के आकाश से पुष्प-वर्षा होती है. 'तंत्र' के सारे निकाय अपने अपने निर्देशित-काम में लग जाते हैं. 'लोक' ढोल पीटता है और 'तंत्र' निहाल हो जाता है!
डाक्टर बी आर अम्बेडकर की सारी आशंकाएं(25 नवम्बर, 1949) सही साबित हो रही हैं."

जैसे अब तक आपदा में अवसर, क्रूरता में करुणा और आत्मनिर्भर भारत के चलते माननीय मौजूदा प्रधान सेवक के बेबाक जुमलों ने किस तरह से देश को खोखला किया है, भक्तों के सिवा सबको पता है, शायद अब भक्तों को भी पता हो ही गया होगा। ऐसी धूर्तता जब किसी राष्ट्र का प्रमुख व्यक्ति करता है तो निश्चित तौर पर बाबा साहब अंबेडकर की चिंता की आशंका जायज रही होगी कि यह संविधान किसके हाथों संचालित और संरक्षित होगा या रहेगा । आज उनकी कही गई बातों को हमारे मौजूदा शासकों ने प्रमाणित करके दिखा दिया है।

संविधान की मूलभूत अवधारणाओं को बदल कर के पूंजीवादी और तानाशाही तंत्र स्थापित करके यह जो कुछ करना चाह रहे थे उसके लिए आज इनको सकारात्मक होने की सुधि आई है। जिसे यह पिछले 7 सालों से पूरी नकारात्मकता के साथ क्रियान्वित कर रहे थे ? क्या सचमुच इनके मन में कोई सकारात्मक भाव उत्पन्न हुआ है या केवल अपनी नकारात्मकता को छुपाने के लिए सकारात्मकता का स्लोगन लेकर के आ रहे हैं। जैसा की आपदा में अवसर का नारा दिया और जितनी मनमानी करनी थी वह सब कर डाले। क्रूरता से करुणा का परिचय तो इन्होंने आते ही देना शुरू कर दिया था मॉब लिंचिंग, दलित उत्पीड़न, साहित्यकारों, बुद्धिजीविओं और कलाकारों को जेल में डालना यह सब काम इन्होंने बखूबी अपनी नकारात्मक सोच की वजह से संपन्न किया। फिर आया इनका नारा आत्मनिर्भर भारत ? अब आत्मनिर्भर बनाने के चक्कर में इन्होंने नए सिरे से भारतीय लोगों की पहचान करनी शुरू की। उसके लिए कानून लाए। जिसके खिलाफ बड़ा आंदोलन चला और इसके बाद इन्होंने दिल्ली में एक संप्रदाय और जाति विशेष के लोगों को जानबूझकर के मरवाया। और अपने अपराधियों को बचाया ? निरपराध लोगों को जेल में घुसाया/डलवाया । यह सब चल ही रहा था कि कोरोना का कहर आ गया और अब तक की इनकी सारी नकारात्मकता को पाखंड के सहारे लोगों में छुपाने का एक और खेल आरम्भ किया।


पाखंड का नाटक वायरस के खिलाफ इन्होंने हल्ला बोला जिसमें ताली पिटवाकर, थाली पीटवाकर, घंटे बजवाकर और शंख बजाकर मोमबत्ती और दिया जलाकर, समय से अँधेरा कराकर जो पाखंड रचा था उसी समय लग गया था की बड़ा अनर्थ होने वाला है । परंतु वायरस था कि जाने का नाम नहीं लिया। तब्लिगिओं और कुछ मुश्लिम संस्थानो को इंगित करते हुए इन्होंने पूरी दुनिया में हल्ला किया की इनकी वजह से कोरोना आया। जिसकी दुनिया भर में निंदा हुई। जब इसके लिए वैक्सीन बनाने की बात आई तो खुद जा जा करके वैक्सीन का निरीक्षण करने लगे और इनका फोटो चारों तरफ कोरोना वायरस की गति से तेज, तेजी से बढ़ने लगा। अब इनकी वैक्सीन बन गई। जिसका श्रेय यहाँ के वैज्ञानिकों को जाना चाहिए था जनाब खुद लूटने लगे ! पर हुआ क्या ? वैक्सीन हिंदुस्तान के लोगों को लगाने की बजाय उसका भी व्यापार करने पर उतर आए। आज के हालात यह हैं की वैक्सीन उत्सव का आयोजन किया गया और वैक्सीन ही नहीं है ?यह अपनी नकारात्मकता छुपाने के लिए सकारात्मकता का एक नया जुमला लेकर अवतरित हुए हैं। कहीं मुहँ नहीं दिख रहा है इनका चरों तरफ लाशें ही लाशें नज़र आ रही हैं और न जाने कितनी हस्तियां चली जा रही हैं आम आदमी की तो छोड़िये।

इनके वैचारिक मुखिया का विचार चारों तरफ प्रसारित हो रहा है कि "जो चले गए वह मुक्त हो गए"। प्रभुवर यदि आप चले जाते तो देश मुक्त हो जाता। यह विचार सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से फैल रहा है।
सकारात्मकता लगे पप्पू यादव के साथ इन्होंने क्या किया है उस के संदर्भ में सकारात्मकता का मतलब समझा जाना चाहिए।

...... डा लाल रत्नाकर

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डा मनराज शास्त्री जी के विचार :




रविवार, 16 मई 2021

सकारात्मकता की दुहाई।

सकारात्मकता की दुहाई।


भारत का लोकतांत्रिक स्वरूप भारत के संविधान से बनता है। लेकिन इधर निरंतर देखने को मिला है कि भारत के संविधान पर जिस तरह से नकारात्मक सोच रखने वाले लोग नकारात्मक तरीके से काबिज होकर विनाश की पराकाष्ठा पर पहुंचाकर आज सकारात्मक सोच की बात कर रहे हैं।

जबकि संविधान की मंशा देश को समतामूलक और गैर बराबरी को समाप्त कर एक संपन्न राष्ट्र बनाने की परिकल्पना पर आधारित है। लेकिन लंबे समय से चले आ रहे एक खास सोच के लोगों के बहुत सारे विवादों के चलते यहां की बहुसंख्यक आबादी अपने मौलिक अधिकारों से वंचित रही है। उसके विविध कारण रहे हैं. उसमें राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक कारण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन सब कारणों के साथ-साथ जो एक गैर महत्वपूर्ण कारण है वह है धार्मिक कारण।

जैसे ही हम धार्मिक कारण पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि धर्म एक ऐसा निरंकुश हथियार है जो आतंकवादियों की तरह उन लोगों के हाथों में है जो लोग संविधान नहीं मानते।  मानवता का अर्थ नहीं समझते। निश्चित तौर पर इस तरह का धर्म मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा होता है। और इसी तरह का धार्मिक षड्यंत्र इस लोकतांत्रिक देश को अपने मजबूत पंजो से निकलने नहीं दे रहा है। जिसकी वजह से आज देश त्राहिमाम कर रहा है। यही कारण है कि हमारी पूरी आबादी इस धार्मिक षड्यंत्र के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। उसे संवैधानिक स्वरूप की समझ ही नहीं होने दी जाती। हमारे संविधान में धर्म को मानने और ना मानने का कोई प्रतिबंध नहीं है। धार्मिक रूप से सभी लोग स्वतंत्र हैं और वह किसी भी धर्म को मानने के लिए अपनी अपनी तरह से आजाद हैं। जब से यहां धर्म को हथियार बनाया गया है। इसी धर्म रूपी हथियार के माध्यम से प्राचीन काल से चले आ रहे धर्म को "धार्मिक पाखंड" को धार्मिक आतंकवाद की तरह की उद्घोषणा से जोड़ दिया गया है।  जिसकी वजह से तमाम तरह के लोगों को जो भी उन आतंकवादियों के पाखंडी उदघोषणाओं का विरोध करते हैं। उन्हें निशाना बनाया जा रहा है या जाता रहा है।  और उसी तरह से आज भी बनाया जा रहा है।

अब इस धर्म में यह देखना होगा कि इसमें नकारात्मकता का कितना बोलबाला है। यदि हम एक एक बिंदु पर विचार करें तो पाएंगे कि जितना समय हम अपने अधिकारों के लिए या उनको जानने के लिए नहीं देते उससे ज्यादा समय हम धार्मिक अंधविश्वास और पाखंड के कार्यक्रम एवं उन पर चलने के लिए कथित रूप से आस्था के नाम पर भयभीत होकर शामिल होने में बाध्य हो जाते हैं। जिन घरों में लाइब्रेरी बनाए जाने की जगह मंदिर या पूजा गृह बनाए जाते हैं उसके साथ ही हर एक ऐसी जगह किसी देवी देवता को लगा दिया जाता है। जिसकी वजह से वहां यह धर्म विराजमान रहे इसकी व्यवस्था स्वतः हो जाती है। इस धर्म में जिस तरह की अलौकिक संरचनाएं की गई हैं जो किसी भी तरह से वैज्ञानिक नहीं है ? किसी को आठ दश मुंह किसी को 15-20 भुजाएं, और न जाने कितने प्रकार के कपोल कल्पित निर्माण से ऐसा निर्माण किया जाता है जिससे प्रामाणिक रूप से पाखंड से लगभग 33 लाख देवी देवताओं की रचना की गई है।

यह तो तय है की निश्चित रूप से प्राचीन काल से चतुर लोगों ने जिस तरह से षड्यंत्र करके  इस तरह के धर्म की संरचना की होगी उससे ही सारी संपत्ति को एक तरह से अपने लिए सुरक्षित करने हेतु इस प्रकार के नाना प्रकार के षड्यंत्र कर ऐसे ऐसे ग्रंथ बना रखे हैं, जिसमें समता समानता और बराबरी का कोई पक्ष ही नहीं है। इसी तरह से कालांतर में हमारे समाज में भी नैतिक रूप से समता समानता और बराबरी का अधिकार ना मिलने पाए इसके निरंतर उपक्रम करते रहे गए हैं और किए जा रहे हैं। हम देखते हैं कि जिन जगहों पर लोगों को ज्ञान के लिए अध्ययन का केंद्र बनाया जाना चाहिए था वहां पर बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण किया गया और इन्हीं मंदिरों के माध्यम से धर्म का नियंत्रण रखा जाने लगा जहां इस तरह की भावनाओं का प्रचार प्रसार किया गया कि व्यक्ति अंधा होकर उस केंद्र की तरफ स्वत: आकर्षित होता हुआ प्रस्थान करता रहा।

*आज यह हालात है कि कल तक जिनको उन मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी और ना ही उन मंदिरों में शासन करने वाले लोगों से उठने बैठने और स्पर्श करने की आजादी थी आज उन्हें बड़े-बड़े अभियान चलाकर धार्मिक बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है।

इसका ताजा उदाहरण ले तो हम पाएंगे कि दुनिया की सबसे चालाक कॉम जिसे यहूदी कहा जाता है हिटलर ने उसे गैस चैंबर में डाल डाल कर मारा था लेकिन आज उसी चतुर कौम ने पूरी दुनिया पर अपना एकाधिकार जमाया हुआ है। मूल रूप से फिलिस्तीनीओं पर हमलावर है। 

वैज्ञानिक आधार पर जिन चीजों का विकास हो सकता था और जिनके माध्यम से दुनिया को खूबसूरत बनाया जा सकता था।  उसको लंबे समय से दुनिया के बहुत ऐसे मुल्क जहां धर्म का आधिपत्य है प्रभावी नहीं होने दिया।  हालांकि जब यूरोप के बारे में अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने पूरी दुनिया के लिए धर्म छोड़कर जिस तरह से वैज्ञानिक आविष्कार किए उसका परिणाम यह हुआ कि आज वह पूरी दुनिया में विज्ञान की वजह से सर्वोच्च स्थान पर हैं ना कि धर्म की वजह से।

हम बात कर रहे हैं नकारात्मकता कि जिसकी वजह से उन लोगों को जिनकी नकारात्मक सोच है सकारात्मक सोच की बात करने की साजिश करनी पड़ी है।

हम यह हमेशा जानते हैं कि किसी भी तरह का आतंकवाद, किसी भी तरह से मानववादी या मानवतावादी कदम नहीं हो सकता ? लेकिन हम धार्मिक आतंकवाद अनैतिक आतंकवाद और धूर्तता के विविध रूपों में जब आतंकवाद की खोज करते हैं। तब पाते हैं कि जिसको अभी तक हमने संत समझा हुआ था वह मूल रूप से अपराधी और आतंकवादी प्रवृत्ति का व्यक्ति है। इसके हजारों उदाहरण आपको रोज मिलेंगे जब आप इस पर विचार करेंगे या विमर्श करेंगे, धार्मिक आतंकवाद हमेशा मानवतावाद को कमजोर करता है और ऐसे झूठ फरेब अंधविश्वास चमत्कार को परोसता है जिससे अज्ञानता का प्रसार बढ़ता जाता है। तब तब धार्मिक आतंकवादी अपना आतंक निरंतर फैलाता जाता है। 

अब यहां पर आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल धर्म के साथ करने से मेरा तात्पर्य वही है जो किसी भी आतंकवाद का संबंध किसी व्यवस्था के साथ होता है। धर्म लगाते ही अधर्म पर वह चलने के लिए एक तरह का अधिकार प्राप्त कर लेता है क्योंकि उसके हाथ में धर्म है वह जो कुछ भी करेगा उसे माना जाएगा कि यही धर्म है। जबकि धर्म और अधर्म का निर्धारण जब वैज्ञानिक आधार पर लिया जाता है तब सही और गलत से उसका मतलब होता है और लोक में इसी तरह की मान्यता रही है।

लोक में व्याप्त मान्यताओं के आधार पर उनके प्राकृतिक उपादान निरंतर धर्म का स्थान लेते रहे हैं। और धार्मिक शब्द उनके लिए उत्पादन से जुड़ा होता था। जिसकी वजह से वह नाना प्रकार के आयोजन करते थे, और अपने उत्पाद पर प्रसन्नता जाहिर करते रहे होंगे।  यथा फसलों का फलों का दूध दही का या पुत्र पुत्रियां और उपयोगी पशुओं के संवर्धन और खुशहाली को हमेशा उन्होंने पर्व के रूप में मनाया होगा। ऐसी परंपरा का आज भी हमारे लोक और कबिलाई समूहों में वह स्वरूप बचा हुआ है।

लेकिन जिस तरह के आतंकवाद का चेहरा धर्म के पीछे छुपा हुआ नजर आता है। उससे यहां की प्राकृतिक मान्यताओं का दोहन करके उन्हें ठगने का स्वरूप तैयार किया गया।  वही स्वरूप धीरे धीरे धीरे धीरे 33 लाख देवी देवताओं के रूप में परिवर्तित हो गया। इसका केंद्र किसी एक धर्म के नाम पर सुरक्षित कर दिया गया। और वह धर्म जो सबसे ज्यादा खतरे में बताया जाता है। वह न जाने कितने लोगों की जिंदगी को हजारों हजार साल से तबाह किए हुए बैठा है।

ज्ञातव्य है कि उस धर्म से समय-समय पर तमाम लोगों ने विद्रोह करके अपने अलग-अलग धर्म बनाए। लेकिन कालांतर में उन धर्मों में भी इसी तरह का आतंकवादी पहुंच करके उस पूरे धर्म को या तो कब्जा कर लिया या तो नष्ट कर दिया। हालांकि जो धर्म अभी दिखाई देते हैं और उन में समता समानता और बंधुत्व का संदर्भ महत्वपूर्ण है उसे भी धीरे-धीरे इन्हीं आतंकवादियों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से उसी तरह का बना दिया है। जैसा यह धर्म के नाम पर करते आए हैं।

सकारात्मक सोच की जरूरत तभी पड़ती है जब नकारात्मक सोच अपना आधिपत्य जमा लेती है नकारात्मक तरीके से धार्मिक आतंकवाद का सहारा लेकर जब साम्राज्य बनाया जा रहा था। तो उस साम्राज्य को बनाए रखने के लिए सकारात्मक सोच की जरूरत तो पड़ेगी ही। अन्यथा उस साम्राज्य के स्थापना और अवस्थापन को लेकर जब नकारात्मक सोच उसमें छिद्रान्वेषण करेगी, तब पता चलेगा कि किस तरह से धार्मिक आतंकवाद संवैधानिक अधिकारों को भी कमजोर करने में सफलता प्राप्त कर लेता है।

आइए हम सकारात्मक सोच पर विमर्श जारी रखें ? क्या जो आज इस सकारात्मक सोच की बात कर रहे हैं उन्होंने अब तक कौन सी सकारात्मक सोच अख्तियार की है। उदाहरण आपके सामने हैं, प्रमाण आपके सामने हैं, देश की व्यवस्था आपके सामने है, जरा इन सब का मूल्यांकन संवैधानिक तरीके से करिए तो इनकी सकारात्मकता का पूरा ताना-बाना आपकी समझ में आ जाएगा। यह एक नए तरह का एजेंडा है जिसके सहारे अपने ही सारे अपराधियों और अपराधों को आवरण पहनाकर उन्हें सकारात्मक करने की साजिश है। जिसे सही साबित करने का अभियान चलाया जा रहा है। जिसे किसी महत्वपूर्ण संगठन ने जो उसका मुखिया है, उसके बयान से अच्छी तरह से देखा जा सकता है।  कि "जो चले गए वह मुक्त हो गए" ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के आतंकवादी को पहचानने की जरूरत है। .क्योंकि संविधान जीवन और जीवन की सुरक्षा के लिए सरकार का दायित्व सुनिश्चित करता है। और यहां पर जाने के लिए जिस बेरहमी और अव्यवस्था की वजह से लाखों की संख्या में लोग चले गए अपने पीछे उन तमाम लोगों को छोड़ गए जो आज बेसहारा हो गए हैं। उनके लिए किसी संगठन के मुखिया का यह संबोधन कितना उचित है ? कि जो चले गए वह मुक्त हो गए।


"जो चले गए वह मुक्त हो गए" ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के आतंकवादी को पहचानने की जरूरत है।

इस लेख के अंत में यही कहना चाहूंगा कि इस व्यक्ति को जो इस तरह का उच्चारण कर रहा है अब उसको चला जाना चाहिए और अपने आतंकवाद से लोगों को मुक्त कर देना चाहिए।

-डॉ लाल रत्नाकर 




 

शुक्रवार, 14 मई 2021

एक बार भी "श्मशान" की बात नहीं कर रहा है ?


                                                          (कार्टून बीबीसी से साभार) 

बीबीसी के कार्टूनिस्ट कीर्तीश ने इसमें सब कुछ तो कह दिया है, लेकिन दिक्कत यह है कि पिछले 7 सालों से कलाओं के विविध रूपों पर जितना बड़ा हमला हुआ है उसकी वजह से कार्टून में भी अब भक्ति ही दिखती है। शायद भक्तों को यह समझ में नहीं आ रहा हो कि जो व्यक्ति देश की संपदा को उपहार के रूप में भिक्षा स्वरूप किसानों को ₹2000 उनके खातों में ट्रांसफर करके किसान सम्मान निधि की बात कर रहा है। अब वह एक बार भी "श्मशान" की बात नहीं कर रहा है, दुश्मन को अदृश्य बता रहा है और जबकि सबको यह दिख रहा है कि असली दुश्मन कौन है! और वही ऐसा बोल रहा है।

सरकार में आने से पहले जिस तरह से लच्छेदार भाषणों से जनता को गुमराह कर रहा था उस समय भी मैं यही कहा करता था कि यह लोग देश संभालने की सामर्थ्य नहीं रखते। बल्कि देश को बर्बाद करने के लिए अवाम को गुमराह किया जा रहा है। लेकिन हमारे घरों में भी बैठे हुए लोग इस तरह से इन जाहीलों की तरह उसकी बातों पर भरोसा कर रहे थे ? करते भी क्यों न पंद्रह पंद्रह लाख उनके खतों में आ रहे थे ! जैसे उसके पास जादू की छड़ी है और वह उस जादुई छड़ी से सारी समस्याओं को छू कर के फुर्र कर देगा।

आपदा में अवसर एक ऐसा मुहावरा है जिसने इस पूरी सरकार की सोच और चरित्र को उजागर कर दिया, नफरत के नारे गढ़ गढ़ करके इन्होंने पूरी आवाम में जहर बो दिया, वही जहर आज मन मस्तिष्क में समा गया है। जिस प्रकृति को शुद्ध और अशुद्ध को ठीक कर उसमें जीवन भरने की जो क्षमता थी ,उसे भी इन्होंने ऐसे बदलने की कोशिश की जिससे एक छोटे से उदाहरण से आपको समझाया जा सकता है। मैंने इस बीच देश में हजारों विद्यालय महाविद्यालय और विश्वविद्यालय देखें उनके भीतर जो शिक्षा की सामग्री थी उसको चूस करके नई शिक्षा सामग्री भरने की कोशिश की गई। और वह शिक्षा सामग्री क्या होगी इसका कोई खुलासा नहीं किया गया। उल्टे उन संस्थानों की दीवारों को लुभावने लुभावने नारों से रंगवा दिया गया, अब यह रंग रोगन किस काम के लिए हुआ है। इसका खुलासा कौन करेगा ? कौन इनकी इस मानसिकता को समझेगा कि जो गैस तीन साढे ₹300 में बिक रही थी, उस गैस की कीमत हजार रुपए पहुंचा दिया। और उज्जवला योजना का नारा दे दिया। जो पेट्रोल ₹65 से ऊपर जाने पर यह कनस्तर और बोतल लेकर सड़क पर निकल आते थे आज वह 100 के पार हो गया है। खाने पीने की चीजें आसमान छू रही हैं। किसान सड़कों पर बैठा हुआ है जिसको यह भगवान बना करके उसकी कीमत दुगनी करने वाले थे।

मैंने कल भी कहा था कि जो तकनीकी रूप से व्यापार की कूटनीति जानता है उसने राष्ट्र भक्त होने के नाम पर राष्ट्र को बर्बाद करके रख दिया है। और यहां तक की इन राष्ट्र भक्तों की नियत आपकी जेब ही नहीं आपकी जमीर तक पहुंच गई है। मुझे याद है बचपन में स्कूल के दौर में एक हलवाई का बेटा हम लोगों का साथी हुआ करता था, साथ ही पढ़ता था लेकिन उसका मन पढ़ने में कभी नहीं लगता था। क्योंकि उसके मोटे बाप की जो मिठाई के दुकान थी, उस पर उसे गुमान था। कि हमें पढ़ने लिखने से क्या काम ?

पिछले दिनों कुछ लोगों की डिग्रियों को लेकर बहुत सारी हाय तौबा मची हुई थी। मीडिया भी इनकी नकली नकली डिग्रियां उजागर कर रहा था, पर कमाल की बात इन्होंने अपने पहले ही मंत्रिमंडल में एक अपढ महिला को हायर एजुकेशन का मंत्री बना दिया था। अब यहीं से आप इनकी सोच का अंदाजा लगा सकते हैं। कि इनकी शिक्षा के प्रति और विज्ञान के प्रति क्या सोच और समझ होगी। उसी समय की बात है शिक्षा के क्षेत्र में जितने भी तरह के प्रोग्राम चल रहे थे। रिसर्च और वैज्ञानिक अध्ययन से संबंधित उन पर रोक लगा कर के न जाने किस नई शिक्षा की बात की जा रही थी। धीरे धीरे विश्वविद्यालयों को गुरुकुल बनाने पर उतर आए थे। इनके गोबर भक्त गुंडे जे एन यू जैसे संस्थानों पर हमला कर रहे थे वहां के विद्यार्थियों को देशद्रोही साबित करने पर लगे हुए थे क्या प्रधान सेवक जी इन सब बातों से अनभिज्ञ थे ? और इस बीच इन के जितने भी शिक्षा मंत्री आए अपढ से अज्ञान की तरफ ही बढ़ते गए। इनके कुल (संघ) के ही एक हमारे साथी बार-बार कहा करते हैं कि इन्हे ज्ञान नहीं होता यह रट्टू तोते होते हैं। इन्हें जितना पढ़ा दिया गया है बस उसी को बार-बार यह रटते रहते हैं। यानी इनका नागपुर जो कहता है उसी को ही यह अपना पाठ्यक्रम मानते हैं और उसी पर चलते हैं।

आइए हम झूठ के महाअभियान की ओर चलते हैं जिनको इन्होंने गढकर राष्ट्र गौरव बढ़ाने का प्रयास किया है। अब आप इस कार्टून पर चलिए और जो मैसेज दिया गया है कि दुश्मन भले नहीं दिखाई दे रहा हो लेकिन जिस पर हमला हो रहा है उसको तो देखिए? यदि वह दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास में बैठकर न दिखाई दे रहा हो तो किसी भी नदी के किनारे या दिल्ली के किसी "श्मशानघाट" पर चले जाइए, और वैसे ही वहां धूनी रमा लीजिए जैसे 2019 के चुनाव परिणाम के समय आप किसी कंदरा में जाकर बैठ गए थे। निश्चित रूप से आपकी अंधभक्ति, अंधविश्वास, चमत्कार और अखंड पाखंड टीम इस काम के लिए लग गई होगी कि कैसे इस अवस्था में पहुंचे थे इसको नेहरू या विपक्ष पर थोप कर। फिर से विश्वास दिलाया जाए कि बगैर आपके यह देश नहीं चलेगा, जिस अमरत्व की दवा से आप उम्मीद करते हैं कि आप इतनी बड़ी महामारी में भी सुरक्षित रहेंगे ? उसकी कुछ खुराक आम आदमी तक पहुंचा दीजिए ? दुश्मन की नजर से जिसे उसे बचाया जा सके जिनसे कल आप ताली थाली और घंटे घड़ियाल बजवा रहे थे, उन्हें भी अपने अमरत्व की कुछ बूंदे भिजवाईए ना।

हम अब भी जानते हैं, आप जिस पद पर विराजमान हो ! उसके लायक ना आप पहले थे ? ना आज हैं ! लेकिन बहुरूपीये के भेष में जिसको आप ने खुद कहा है कि मौजूदा समय का दुश्मन भी बहुरूपीया के रूप में भेश बदल बदल कर आ रहा है ? सचमुच क्या वह यह सब आप से ही सीखा है ? या उसको सिखाने वाला कोई और है जो आपका अदृश्य दुश्मन से मिला हुआ है ? यहाँ हमें हमारे बहादुर सैनिकों की याद आती है ? यद् आती है 2002 के गुजरात के नरसंहार की और यद् आती है बाबरी विध्वंश की ? हज़ारों की संख्या में मारे गए दलित पिछड़े मुस्लिम नवजवानों और महिलाओ की ? आपके मोब्लिंंचिंग प्रोग्राम की ? क्योंकि इन्हे आपने रोकने का नहीं बढ़ने का पूरा प्रयास किया था आपकी सोसल मिडिया टीम ने ?

अक्सर कहा जाता है कि जो व्यक्ति जिस माहौल में रहता है,उसी तरह की भाषा बोलता है। मेरे ख्याल से आपकी भाषा में आपका परिवेश निरंतर प्रभावी हो गया है। बहुरूपिया शब्द हो सकता है गलती से निकल आया हो जैसे देश की आबादी के बारे में आप का पिछले दिनों का बयान काफी लोगों के बीच चर्चा का विषय बना था। उसी तरह ज्ञान और अज्ञान का समंदर आपको निरंतर इस बात के लिए झकझोर रहा होगा कि जो कुछ आप कर रहे हैं वह राष्ट्रहित में नहीं है। राष्ट्र के लोगों के हित में नहीं है। आपके कारपोरेट अस्पताल आयुष्मान योजना,आपदा में अवसर, क्रूरता में करुणा, सबका साथ सबका विकास, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, किसानों की दुगनी आमदनी, बेरोजगारों को प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियां, नोटबंदी, जीएसटी, लाकडाउन, पुलवामा और कश्मीर चीन और पाकिस्तान, अमेरिका और इजरायल सब की पोल खोल कर के रख दिया है।

आपके दो प्रमुख मित्र जिन्हें आपने इस समय देश की अधिकांश संपदा दे चुके हैं हम आपके छोटे मोटे रिश्तेदारों की बात नहीं करते क्योंकि आपने अपने प्रचार में इस तरह से लोगों को दीवाना बना रखा है कि उसके पास ना तो बेटा है ना तो बेटी है किसके लिए बेईमानी करेगा। आपके मित्र व्यापारीगण आपके परिवार और जिनके पास बेटी बेटा हैं उनसे भी ज्यादा करीबी हैं। क्योंकि अन्य सरकारों में यह व्यापारी थे और इन पर टैक्स चोरी आदि के तमाम मामले लंबित थे जिसको इन्होंने आपका सहयोग कर और सहयोग पा करके अच्छी तरह अपने को मजबूत करने में लगाया है। गलती से नहीं सही सही से आपने राष्ट्र की संपदा और राष्ट्र की फायदा पहुंचाने वाली तमाम सरकारी संपत्तियों को इन्ही मित्रों को औने पौने भाव में घुमाफिराकर उन्हें देने में कोई कोर कसर की है क्या ? अगर इन सब की समीक्षा जबी भी संविधान समझने वाले और पढ़ी-लिखी जनता करेगी तो निश्चित तौर पर आपकी इतने कम समय में इतनी बड़ी धांधली भ्रष्टाचार अराजकता और देशद्रोह तक का मामला बनता हुआ नजर आता है उसपर गंभीरता से न्यायालय भी जरूर निर्णय लेंगे ?

मगर हमारे देश की भक्त जनता को इन सब बातों पर विमर्श करने के लिए आपने छोड़ा ही नहीं है। क्योंकि उन्हें आपने धर्म की अफीम पिलाई हुयी है, उन्हें आपने हिंदू और मुसलमान का भेद समझाया है। जिस भेद को धीरे धीरे हमारे देश में कम किया जा रहा था। आपने उसको बढाया है। आपने 1-1 जाति को बांटकर और पकड़कर उसको फुशलाया है? उसको उसके बड़े आंदोलनों से काटा है, यही एक प्रचारक के रूप में आपकी क्षमता की उपलब्धि रही है। जिसमें झूठ और नकारेपन का, अज्ञानता का समावेश कूट-कूट करके आपको कराया गया है, झूठ को इस तरह से बोलना है कि उसको लोग सच मान ले? चीजों को इस तरह से हड़पना है कि लोग उसे आपका अधिकार समझ ले?

माननीय वित्त मंत्री जब इस बार का बजट प्रस्तुत कर रही थी तो उन्होंने बजट में जो सबसे महत्वपूर्ण चीज दी थी वह था "विनिवेश" कितने लोग भी विनिवेश समझते हैं प्रभुवर ! आपकी इस चालाकी का असर गली - गली में सब्जी बेचने वाले तक पर पड़ा है। आपकी इस चालाकी का असर और न जाने कितने कितने लोगों पर पड़ा है। जिसकी वजह से आज देश त्राहिमाम कर रहा है। एक भी सरकारी अस्पताल को आपने ऊंच्चीकृत नहीं किया होगा ? बल्कि, उसे बेचने और रोकने का काम किया होगा। यही था आपका नया भारत बनाने का सपना ? आज नया भारत आत्मनिर्भर होकर श्मसान घाट तक जा रहा है। और कई घरों तक तो श्मशान घाट चल करके आ जा रहा है।

आपके विकास का यह मॉडल विनाश की जिस लीला को शुरू किया है इसके पीछे आपकी मानसिकता का एहसास होता है। आज इस महामारी पर दुनिया भर में काम हो रहा है, आपके मित्र देश जहां प्रचार करने गए थे वहां पर मास्क हटा दिया गया है। आप की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है। आप उससे भी तो कुछ सीखते आप भारत को अमेरिका बनाने चले थे ? क्या आपने पढ़ा था अमेरिका कैसे बनता है या बना है ? और अमेरिका बनाने वाले लोग कौन हैं ? नहीं वहां पर व्यापार और आविष्कार दोनों साथ साथ चलते हैं। जुमले नहीं चलते ? वहां केवल व्यापार का मतलब अपनी व्यापारियों को देश सौंप देना नहीं होता ? पिछले दिनों जिस विचारधारा के राष्ट्रपति को जिताने के लिए आप अमेरिका गए थे उसी आपके राष्ट्रपति ने जाते जाते जो जहर दिया है जब आप उसे बाइब्रेन्ट गुजरात दिखने लाये थे। उसे अब आपने गांव गांव तक पहुंचा दिया है। यही लेने गए थे आप मोदी हावडी ट्रंप क्या खेल कर रहे थे भारत में क्या ऐसी स्थितियां नहीं थी। जिनकी वजह से आप इस देश के शिक्षा संस्थानों को इस देश के प्रतिष्ठानों को विकसित करते मान्यवर ! दुनिया भर में विकास के जो मानदंड हैं उन्होंने आपको चकाचौंध तो किया ?
लेकिन आप पागलपन के दंश से निकल नहीं पाए ?

क्योंकि जरूरी नहीं है कि सभी लोग हिंदू बनकर के हिंदू धर्म की विकृतियों को ओढ़कर आम आवाम अंँधा बना रहे और थोड़े से लोग आनंद लेते रहे ? अगर इन्ही के कारनामों को जन जन तक ठीक से फैलाए होते आप तो शायद आपको एक अलग तरह का भारत मिलता। जिसका पूरा मौका देश ने आपको दिया था। अगर आपको यह गलतफहमी है कि आपने अपने उस कथित धर्मवाद से लिया था तो दोनों तरह से आपकी जिम्मेदारी बनती है कि यह देश सुरक्षित रहता?

क्या सचमुच यह कार्टून यह नहीं कह रहा है कि आपको सत्य नहीं दिखाई दे रहा है ? सत्य देखिए ! देश कराह रहा है और यहां पर जीवन रक्षक दवाओं, ऑक्सीजन, विस्तर, अस्पताल नहीं है जिसकी वजह से जनमानस को अपना जीवन बचाने की जो हालत बनकर खड़ी है ? यह महामारी निक्कम्मी सरकार की अनुभवहीनता और संघी मानसिकता की वजह से है जो पूंजीवादी विचारों की है और समाजवादी सोच के पतन की वजह से आ गई है जो बहुत भयावह है।

इसीलिए जरुरी है की यह देश और लोकतंत्र समाजवादी समतामूलक और पाखण्ड मुक्त नीतियों से चलेगा जिसमें सबका विकास सन्निहित होगा।

डॉ. लाल रत्नाकर

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...