इस कठिन समय में साथी रविंद्र यादव उर्फ राय साहब का जाना तरक़्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक के लिए एक सदमा है। रविन्द्र यादव उर्फ राय साहब के जाने से जिले के प्रगतिशील और समाजवादी सांस्कृतिक आंदोलन को गहरा आघात लगा है। वे वकालत के साथ ही साथ उस समाजवादी आंदोलन की विरासत को भी आगे बढ़ाने के काम में लगातार लगे रहे।
रविंद्र नाथ यादव जिन्हें उनके लोकप्रिय नाम राय साहब से बुलाया जाता था। जीवन के विकट और विषम परिस्थितियों में उनका उत्साह और विश्वास का योगदान हमेशा कठिन से कठिन रास्ते पर चलने में सहयोगी रहा है। सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों को देखा जाए तो वह जौनपुर जनपद के एक बहुत ही सम्मानित व्यक्तित्व स्मृतिशेष चौधरी चरण सिंह व सपा के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव के सहयोगी रामदास यादव वरिष्ठ एडवोकेट के मझले पुत्र थे, परंतु यह हमेशा उस परिवार में सबसे मुखर और पिताजी के बाद उनके नक्शे कदम पर चलते रहे। जहां तक उनका ताल्लुक रहा है पिताजी की राजनीतिक और सामाजिक धरोहर को उनके साथ बहुत ही करीब से यह देखते और समझते रहे यही कारण था कि पिताजी के उपरांत इनको जौनपुर जनपद की अग्रणी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया गया उन्होंने अपने कार्यकाल में समाजवादी पार्टी को ऊंचाई तक ले जाकर एक पहचान दी थी।
कालांतर में यह अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए परिवार को परिवार के स्थापित सिद्धांतों और रास्तों पर ले चलने का अथक प्रयास करते रहे। वरिष्ठ वकील और समाज के वरिष्ठ नागरिक के नाते यह पिताजी के साथ चौधरी चरण सिंह के राजनीतिक उभार से लेकर श्री अखिलेश यादव तक के राजनीतिक अस्तित्व से वाकिफ और हर राजनीतिक हठजोड़ और गठजोड़ को समझने वाले स्पष्ट वादी श्री रविंद्र नाथ यादव जौनपुर के राजनीतिक इतिहास में अपनी तरह से हमेशा पहचाने जाएंगे जैसा कि हम जानते हैं कि यह परिवार कभी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का लोभी नहीं रहा क्योंकि चौधरी चरण सिंह से लेकर श्री मुलायम सिंह यादव और उस समय के सभी लोग जो सम्मान इस परिवार को देते थे वह विरले लोगों को प्राप्त था।
धीरे-धीरे ऐसे लोगों का छीजते जाना हमारे समाज से एक मजबूत और सामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यक्तित्व के धनी लोगों का निरंतर लोप होते जाना है।
उनके राजनीतिक सरोकारों कि मैं निश्चित रूप से दर्शक रहा हूं परंतु उनके महत्व को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता । चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो या वह सामाजिक क्षेत्र हो अथवा सांस्कृतिक विचारधारा का सवाल हो।
जब भी उनके व्यक्तित्व पर लिखा जाएगा तब यह लिखा जाएगा कि राय साहब न केवल एक अच्छे और हंसमुख इंसान थे अपितु वे अपने आसपास के लोगों को भी अपनी उपस्थिति से प्रसन्नचित रखते थे । जीवन में जितने तटस्थ व सरल परिस्थितियों में रहे उतनी ही तटस्थता और जिंदादिली के साथ मुश्किल परिस्थितियों को भी निभा ले जाते थे। समाजिक जीवन और पारिवारिक जीवन में उन्होंने गजब का तालमेल स्थापित कर रखा था । उनके हृदय और घर दोनों का ही द्वार सभी मिलने जुड़ने वाले लोगों के लिए खुला रहता था । लोगों से मेलजोल और सद्भाव उन्हें विरासत में मिली थी जिसे उन्होंने हमेशा बनाए रखा।
आमजन के साथ हमेशा उठने बैठने के आदी राय साहब कोरोना के कारण भी कहीं ना कहीं अकेले होते चले गए और शायद यही रिक्तता उनकी ऊर्जा को हरती चली गई और कभी ना हार मानने वाले और जिंदादिल रहने वाले राय साहब के लिए कोरोना काल से उपजा यह अकेलापन मारक बन गया। उनका स्वास्थ्य खराब अवश्य चल रहा था किंतु लोगों से मिलते ही वह हरे हो जाते थे। इस बीच जब भी मैं जौनपुर गया तब उनसे मिलने जरूर गया और वही संबंध उजागर हो जाता था जैसे हम लोग उन दिनों जब किसी ने किसी यात्रा में उल्लासित होकर सफर किया करते थे
उनके रहने से घर में रौनक रहती थी हर एक व्यक्ति का ध्यान कैसे रखना है सभी को उचित सम्मान कैसे देना है यह उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था । उनका व्यवहार सभी से मित्रवत रहता था चाहे वह इंसान कितना भी छोटा हो अथवा बड़ा।
उनके यूं अचानक चले जाने से जौनपुर और हमारे दिलों में जो स्थान रिक्त हो गया है उसे किसी भी प्रकार से भरा नहीं जा सकता।
राय साहब आपको अंतिम प्रणाम।
- डॉ लाल रत्नाकर
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