मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

सामंतवादी मानसिकता का प्रतीक : विपक्ष

उत्तर प्रदेश के अफसरों स्वाभिमान और  ईमानदारी के साथ खेल बंद करो तुम्हारी करतूतें जनता देख रही है , कहीं तुम्हारी भी यही दशा न हो जाय कि 'फलाँ का तहरीर चौक पर होस्नी मुबारक हो गया' यह याद रहे ?
(डॉ.लाल रत्नाकर)
एक छोटा सा विवाद सत्ता नहीं बदला करता, भाजपा, कांग्रेस और सपा के लोगों को एक डी वाई एस पी के मुख्यमंत्री के सैंडल (जूता) साफ करने पर उन्हें उखड फेंकने का मुद्दा पा लिए हैं अगर इनसे कोई पूंछे की यही काम कर कर के आप की जगह अपने अपने दलों में है. जो भी हुआ है उसमे बेइज्जती मुख्यमंत्री की तो है नहीं यदि डी वाई एस पी श्री पदम् सिंह एसा 'न' करते तो उनकी नौकरी वहां रहती क्या ? अब पूरे सचिवों को सफाई देनी पड़ रही है की मुख्यमंत्री का जूता साफ करना भी सुरक्षा का हिस्सा ही है,"कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह, प्रमुख सचिव सूचना विजय शंकर पांडे, गृह सचिव दीपक कुमार, लखनऊ के आईजी सुबेश कुमार के साथ मीडिया से रूबरू हुए। प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहने के लिए पद्म सिंह को भी बुलाया गया। कैबिनेट सचिव ने कहा, 'सैंडिल साफ करके पद्म सिंह ने कुछ भी गलत नहीं किया किया है।'
सचिव शशांक शेखर सिंह ने कहा है कि मुख्यमंत्री की सैंडिल में कीचड़ लगा था, जिससे वह फिसल सकती थी। इसे ध्यान में रखते हुए पद्म सिंह ने रुमाल से उनकी सैंडिल मे लगे कीचड़ को साफ किया था। पद्म सिंह का यह कृत्य मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिहाज से उचित था और यह उनकी जिम्मेदारी भी थी।" सो पदम् सिंह क्या कोई भी होगा तो वही करता यानि खुद ये भी -
पर अब कहाँ गया पाण्डेय जी का स्वाभिमान ईमानदार अफसर होने का गुरुर .


डिप्टी एसपी ने साफ की मायावती की सैंडिल

 
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। रविवार को मुख्यमंत्री मायावती जिस वक्त औरैया में विकास कार्यो के निरीक्षण में मशगूल थी, डिप्टी एसपी स्तर के उनके प्रमुख सुरक्षा अधिकारी अधिकारी पद्म सिंह ने जेब से रूमाल निकाल कर उनकी सैंडिल साफ करनी शुरू कर दी। यह दृश्य मंगलवार को टीवी चैनलों पर चला तो राजनीतिक मुद्दा बन गया। विपक्ष के लोग मैदान में कूद पड़े।
कई रिटायर्ड अधिकारियों ने भी इस मुद्दे पर खूब लानत-मलानत की तो कैबिनेट सचिव को रात साढ़े नौ बजे प्रेस कांफ्रेंस करने को मजबूर होना पड़ा। कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह, प्रमुख सचिव सूचना विजय शंकर पांडे, गृह सचिव दीपक कुमार, लखनऊ के आईजी सुबेश कुमार के साथ मीडिया से रूबरू हुए। प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहने के लिए पद्म सिंह को भी बुलाया गया। कैबिनेट सचिव ने कहा, 'सैंडिल साफ करके पद्म सिंह ने कुछ भी गलत नहीं किया किया है।'
सचिव शशांक शेखर सिंह ने कहा है कि मुख्यमंत्री की सैंडिल में कीचड़ लगा था, जिससे वह फिसल सकती थी। इसे ध्यान में रखते हुए पद्म सिंह ने रुमाल से उनकी सैंडिल मे लगे कीचड़ को साफ किया था। पद्म सिंह का यह कृत्य मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिहाज से उचित था और यह उनकी जिम्मेदारी भी थी।
कैबिनेट सचिव ने कहा कि वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री मायावती के साथ कांशीराम भी विदेश दौरे पर गए थे। प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री के रूप पीएल पुनिया भी दौरे में उनके साथ थे। कांशीराम को जूते पहनने में दिक्कत हो रही थी, तो पीएल पुनिया ने उन्हें जूता पहनाया था। कैबिनेट सचिव ने कहा जब मानवता के नाते जब पीएल पुनिया का कांशीराम को जूतें पहनाने में मदद करना उचित था, तो पद्म सिंह का ऐसा ही कृत्य अनुचित कैसे हो सकता है, जबकि मुख्यमंत्री का पीएसओ होने के नाते पदम सिंह की यह जिम्मेदारी है कि वह मुख्यमंत्री की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखे।
कैबिनेट सचिव का कहना है कि पदम सिंह से सैंडिल साफ करने के लिए मुख्यमंत्री ने नहीं कहा था। उन्होंने खुद ही मुख्यमंत्री की सैड़िल में कीचड़ लगा देख उसके साफ किया था।
सामंतवादी मानसिकता का प्रतीक : विपक्ष
सुरक्षा अधिकारी द्वारा मुख्यमंत्री के जूते साफ करने को लेकर विपक्ष को सरकार पर हमला बोलने का एक और मौका मिल गया है। विपक्षी दलों ने इस घटना को शर्मनाक तथा मुख्यमंत्री की सामंतवादी सोच का नतीजा बताया है।
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि एक सुरक्षाकर्मी द्वारा मुख्यमंत्री के जूते साफ करना दुखद है और यह उनकी सामंती सोच को प्रदर्शित करता है। उन्होंने सवाल उठाया कि जिस व्यक्ति पर सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वह जूते साफ कर रहा है? इससे पूरी व्यवस्था प्रभावित हो रही है। अगर यह सरकार चलती रही तो वरिष्ठ अधिकारियों को भी मायावती के जूते साफ करने पड़ सकते है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मायावती की यह शर्मनाक हरकत उजागर होने से सरकार कठघरे में खड़ी हो गयी है। उत्तर प्रदेश काग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि मायावती गाव-गरीबी और गुरबत से ऊपर उठकर और सामंती व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाकर सत्ताशीर्ष तक पहुंची हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने खुद उसी व्यवस्था को अपना लिया है। उन्होंने कहा कि इस घटना से ही अंदाज लगाया जा सकता है कि सत्ता के मद में चूर मायावती किस कदर बदल गई हैं। मुख्यमंत्री को अब गरीब और असहाय लोगों का दर्द नजर नहीं आता।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने भी इस घटना को शर्मनाक करार देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को अपने कृत्यों की खुद समीक्षा करनी चाहिये। इस घटना से उनकी सामंती सोच से जन जन वाकिफ हुआ है।
(दैनिक जागरण से साभार)

पीएसओ ने साफ किए मायावती के जूते
औरैया।
Story Update : Wednesday, February 09, 2011    12:45 AM
एक निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) द्वारा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के जूते साफ करने की घटना की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की है। यह घटना रविवार को हुई, जब मायावती औरैया जिले में नौनीपुर गांव के दौरे पर थीं। विपक्षी आलोचना को हालांकि बसपा ने खारिज कर दिया है। पार्टी का कहना है कि जूते साफ करने की घटना कोई मुद्दा नहीं है।

घटना की विपक्षी दलों ने की तीखी आलोचना
टीवी चैनलों पर एक फुटेज में दिखाया जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो के एक हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद उनके पीएसओ ने तुरंत अपनी जेब से रुमाल निकाला और नीचे बैठकर उनके जूतों पर लगी धूल साफ की। मुख्यमंत्री इस दौरान अधिकारियों से बातचीत में मशगूल दिख रही हैं। अधिकारी उनके स्वागत के लिए हेलीपैड पर जुटे थे। सूत्रों के मुताबिक यह पीएसओ पदम सिंह कई साल से मायावती के साथ ही है और वह बसपा संस्थापक कांशीराम का भी करीबी था। सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी सिंह फिलहाल सेवा विस्तार पर है। मायावती की निजी सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी उसी के पास है। सिंह ने भी हालांकि आलोचना को दरकिनार करते हुए कहा कि जो उसने किया वह उसके काम का ही हिस्सा है।

बसपा बोली, यह कोई मुद्दा नहीं
लेकिन विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री के रुख को सामंतवादी करार दिया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अधिकारियों को अपना स्तर इस तरह नहीं गिराना चाहिए। यूपी में कोई कानून व्यवस्था नहीं रह गई है। वहीं, सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जिस तरह मुख्यमंत्री का व्यवहार और काम, दोनों ही शर्मनाक हैं। अगर यह सरकार जारी रहती है तो आने वाले दिनों में अधिकारियों को भी मुख्यमंत्री के जूते साफ करने पड़ सकते हैं। वह राजनीति में नई परंपरा शुरू कर रही हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि सामंती प्रथा के खिलाफ लड़ने का दावा कर सत्ता में आईं मायावती अब मुख्यमंत्री बनने के बाद वही संस्कृति अपना रही हैं।
(अमर उजाला से साभार)
डिप्टी एसपी ने साफ की मायावती की सैंडिल
आनन्द कुशवाहा/हिमांशु गुप्ता, औरैया
First Published:08-02-11 10:42 PM
Last Updated:09-02-11 01:02 AM
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डिप्टी एसपी पद्म सिंह ने पद की गरिमा को ताक पर रख अपने रुमाल से मुख्यमंत्री मायावती की जूतियां साफ की। राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पद्म सिंह ने यह सेवाभाव रविवार को मायावती के औरैया दौरे के समय प्रदर्शित किया।
हुआ यूं कि अंबेडकर गांव नौनकपुर का निरीक्षण कर वापस लौटते समय मुख्यमंत्री की जूतियों पर धूल की परत चढ़ गई थी। मुख्यमंत्री हेलीपैड पर खड़ीं थी और अधिकारियों से विचार-विमर्श कर रही थीं उसी समय पद्म सिंह ने रूमाल निकाली और जूतियों पर पड़ी धूल साफ की। पद्म सिंह कानपुर में श्यामनगर के निवासी हैं और डिप्टी एसपी पद से रिटायर होने के बाद अपनी कार्यनिष्ठा की बदौलत दो साल के सेवा विस्तार पर हैं। इनकी गिनती शासन सत्ता के कुछ गिने चुने महत्वपूर्ण अफसरों में की जाती है। कानपुर में तो बड़े-बड़े आईएएस-आईपीएस इनकी सेवा में तत्पर नजर आते हैं।
रविवार को मायावती ने इटावा-औरैया का तूफानी दौरा किया था। बिना धूल मिट्टी की परवाह किए वह अछल्दा विकास खंड के अंबेडकर गांव नैनीपुर पहुंच गईं। वहां से उन्हें हेलीकॉप्टर द्वारा औरैया थाना व तहसील का निरीक्षण करने जाना था। ब्लैक कैट से घिरी मुख्यमंत्री वहां रुक कर डीएम से विकास रिपोर्ट पर पूछताछ करने लगीं तभी पद्म सिंह की नजर उनकी जूतियों की तरफ गई।
जूतियां साफ करने के बाद उन्होंने अपने हाथ धोए। खास यह कि मायावती ने उन पर ध्यान भी नहीं दिया, वह डीएम व साथ में खड़े अफसरों से मुखातिब रहीं।
इस वाकये पर विपक्षी दल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद अखिलेश यादव ने इसे शर्मनाक व राजनीतिक मर्यादाओं के खिलाफ बताते हुए कहा कि बसपा सरकार बनी रही तो सुरक्षा अधिकारी ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े अधिकारी मायावती की जूती साफ करेंगे। अखिलेश यादव ने कहा कि मायावती वैसे तो सामंतवाद के खिलाफ लड़ने की बात करती हैं लेकिन खुद उन्हीं परंपराओं का पालन कर रही हैं। सुरक्षा अधिकारी को भी पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए था। बसपा विधायक नवाब सैयद काजिम अली ने कहा कि वास्तव में यह कोई मुद्दा नहीं है। मैं नहीं मानता कि मुख्यमंत्री ने सुरक्षा अधिकारी से जूते साफ करने को कहा होगा, मामले को बेवजह तूल देना ठीक नहीं।
इधर, कानपुर में जानने वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारी होने के नाते पद्म सिंह का प्रताप पूरे सूबे में है। पिछले 17-18 सालों से वह मायवती के सुरक्षा में तैनात हैं। कांसी राम के समय भी सुरक्षा अधिकारी वही थे। श्यामनगर में उनका बंगला है और इलाके के लोग बसपा में उनके प्रभाव के कायल हैं। अभी हाल में उनके परिवार ने शहर में एक बड़ा सौदा किया है।
(हिंदुस्तान से साभार)
  

रविवार, 23 जनवरी 2011

सोची-समझी साजिश !

(कौशलेन्द्र यादव का यह लेख दैनिक भास्कर में छपा है -)
(कांग्रेस दरअसल आज़ादी क्या अनंतकाल से पिछड़े हुए समुदाय की दुश्मन है, इसके कहे किये का सारा मकसद पिछड़ों को पिछड़ा बनाये रखना है, पहले जाटों को शरीक किया फिर गुजरों को अलग करने का आन्दोलन खड़ा किया है अब मुसलमानों को इसमें शरीक करने का नाटक रच कर उन्हें गुमराह कर रही है-डॉ.लाल रत्नाकर)

केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल ही में कहा कि दलित-पिछड़े मुसलमान जिन्हें पसमांदा कहा जाता है, उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा और यह आरक्षण पिछड़े वर्ग को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण में से ही दिया जाएगा। पसमांदा एक फारसी लफ्ज है जिसका अर्थ है- जो पीछे छूट गया। इस प्रकार भारत के 85 फीसदी मुसलमान जो अंसारी, कुरैशी, सैफी, मंसूरी, शक्का, सलमानी, उस्मानी, घोषी आदि फिरकों में बंटे हैं, उन्हें संयुक्त रूप से पसमांदा कहा गया। एक तरह से यह शब्द कांशीराम के बहुजन शब्द के समानांतर है।


बहरहाल, जब मुल्क में इस्लामी हुकूमत कायम हुई तो कुछ लोग जबरन मुुसलमान बने और कुछ ने स्वेच्छा से इस्लाम कबूल किया। स्वेच्छा से इस्लाम कबूल करने वालों में हिंदू धर्म की दलित-पिछड़ी जातियां थीं जिनके साथ हिंदू धर्म में इंसान तो क्या जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता था। बेहतर सम्मान और समान अवसर की उम्मीद में इन लोगों ने इस्लाम अख्तियार किया क्योंकि इस्लाम अख्तियार करने के बाद बकौल कुरान-ए-पाक खुदा के आगे सब बराबर हो जाते हैं। लेकिन यहां भी पसमांदा मुसलमानों के साथ साजिश कर दी गई। 



इस्लाम ग्रहण करने के बाद उनका मजहब तो बदल गया, लेकिन उनके पेशे में कोई तब्दीली नहीं आई। मसलन, ग्वाला जब मुसलमान बना तो उसे वहां घोषी कहा गया, लेकिन वह गाय-भैंस के दूध का व्यापार हिंदू होने पर भी करता था और यह काम उसे घोषी होने पर भी करना पड़ा। हिंदू जुलाहा अंसारी बनने के बावजूद कपड़े बुनता रहा, लोहार सैफी बनकर भी हथौड़ा पीटता रहा, हिंदू धुनिया को मंसूरी बनने के बाद भी रूई धुनने से फुरसत न मिली। इसी प्रकार नाई सलमानी बन गया लेकिन उस्तरा न छूटा, तेली उस्मानी बन गया लेकिन तेल पेरने से पिंड न छूटा। न तो इनका पेशा बदला और न ही इनकी सामाजिक हैसियत में कोई तब्दीली आई।



इसके उलट जब सवर्णों ने इस्लाम कबूल किया तो अपनी पूरी शानो-शौकत के साथ। बादशाहों और आलिमों ने एक कूटनीति के जरिए इनको इस बात का वचन भी दिया क्योंकि भारत में बहुत थोड़े से मुसलमान बाहर से आए थे और हिंदुस्तान पर हुकूमत करने के लिए उन्हें स्थानीय प्रतिष्ठित लोगों और वर्चस्व वाली जातियों का समर्थन भी चाहिए था। बादशाह अकबर के सामने 1605 में तो कुछ ब्राह्मणों ने बाकायदा एक दरख्वास्त दी कि हम इस्लाम कबूल करने को तैयार हैं, बशर्ते हमें वहां शेख लिखने की इजाजत दी जाए। बादशाह की तरफ से बाकायदा उनको ये इजाजत दी भी गई। इस प्रकार हमारे यहां के शेख-सैयद धर्म परिवर्तित सवर्ण हैं। जो विशेषाधिकार इनको यहां हासिल थे, वही इनको इस्लाम में भी मिले और देखते ही देखते ये बादशाहों के सिपहसालार बन गए। 



पसमांदा मुसलमानों ने जंगे-आजादी में जो कुरबानी दी, उसका भी उन्हें प्रतिदान न मिला। मुस्लिम लीग के खिलाफ मोमिन पार्टी और जमीयतुल मंसूर जैसे संगठन खड़ा करके पसमांदा मुसलमानों ने जोरदार आंदोलन चलाया। अब्दुल कयूम अंसारी और मौलाना अतीकुर्रहमान मंसूरी इस तंजीम के बड़े नेता बने। इन्होंने कहा कि पसमांदा मुसलमान भारत के मूल निवासी हैं, न कि गोरी-गजनवी की औलाद, अत: उन्हें देश का बंटवारा कतई मंजूर नहीं है। जिन्ना ने जब पाकिस्तान के गवर्नर जनरल पद की शपथ ली तो उनका यह दर्द छलका भी। उन्होंने कहा कि अगर पसमांदा मुसलमानों ने हमारा साथ दिया होता तो पाकिस्तान की सरहदें दिल्ली तक होतीं।



लेकिन आज तक कोई भी राज्यपाल पसमांदा नहीं बना। सलमान खुर्शीद जिस कांग्रेस में है, उसका एक भी मंत्री पसमांदा नहीं है। उपराष्ट्रपति अंसारी लिखते जरूर हैं लेकिन वह भी अशराफ मुसलमान हैं। संविधान सभा में अशराफ मुसलमानों ने मौलाना अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में पसमांदा मुसलमानों को मिलने वाले आरक्षण का विरोध किया था। मुसलमानों के जितने भी मसलक हैं-बरेलवी, देवबंदी, अहले हदीस, इन सब में अशराफ मुसलमानों का वर्चस्व है और पसमांदा मुसलमानों को नुमांइदगी न देने के मसले पर सब एक रहते हैं।



दरअसल, पिछड़े वर्ग के कोटे से आरक्षण देने का निर्णय कांग्रेस ने बहुत सोची-समझी साजिश के तहत किया है। इसमें पिछड़ों और पसमांदा मुसलमानों को लड़ाने की साजिश शामिल है। अभी तक पिछड़े वर्ग के लोग ही पसमांदा मुसलमानों के साथ उनके हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। अब ये आपस में लड़ेंगे। पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी कोटे के बाहर भी आरक्षण दिया जा सकता है। तमिलनाडु में लोगों को इसी संविधान के तहत 69 फीसदी आरक्षण मिला है। पसमांदा मुसलमानों को भी आरक्षण इसी फॉर्मूले के तहत दिया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस आरक्षण की सीमा पचास फीसदी से आगे नहीं बढ़ाना चाहती। इन समस्याओं का एक ही समाधान है कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का फॉर्मूला लागू किया जाए। 

yadavkaushalendra@yahoo.in

बुधवार, 19 जनवरी 2011

मायावती ने मंत्री को बर्ख़ास्त किया


रामदत्त त्रिपाठी

मायावती पार्टी अनुशासन पर विशेष ध्यान देती हैं
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भूमि विकास एवं जल संसाधन मंत्री अशोक कुमार दोहरे को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है. उन्हें पार्टी से भी निलंबित कर दिया गया है.
मायावती की बहुजन समाज पार्टी(बीएसपी) की एक विज्ञप्ति के अनुसार राज्यपाल बी एल जोशी ने मुख्यमंत्री की सिफ़ारिश पर दोहरे को पदमुक्त कर दिया है.
विज्ञप्ति में ये ब्योरा नहीं है कि किस आधार पर दोहरे के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है. सिर्फ़ इतना कहा गया है कि दोहरे 'मंत्री पद की गरिमा के प्रतिकूल आचरण कर रहे थे.'
उल्लेखनीय है कि दोहरे बीएसपी के संस्थापक कांशी राम द्वारा शुरू किए गए संगठन बामसेफ के नेता थे.
पिछले चुनाव में निर्वाचित होकर वह विधायक हुए और मंत्री बने.
लेकिन हाल ही में बीएसपी ने उनके निर्वाचन क्षेत्र औरैया से उनका टिकट काट कर एक अन्य पार्टी नेता आलोक वर्मा को उम्मीदवार घोषित कर दिया था.

'बग़ावत'

औरैया से एक स्थानीय पत्रकार के अनुसार टिकट काटने से दोहरे बग़ावत पर उतर आए थे. उनके समर्थक रोज़-रोज़ बीएसपी के ख़िलाफ़ बयान दे रहे थे.
बीएसपी नेतृत्व ने पहले उनके चाचा मुलायम सिंह दोहरे एवं अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं को दल से निकाला . लेकिन इससे औरैया में पार्टी के ख़िलाफ़ बग़ावत थमी नहीं.
समझा जाता है कि इसीलिए दोहरे को मंत्रिमंडल से बर्खास्त और फिर पार्टी से भी निलंबित कर दिया गया.
दोहरे का फ़ोन बंद है, इसलिए उनकी प्रतिक्रिया नही मिल सकी.

दिशा चैंबर का इस्तीफ़ा

अभी दो दिन पहले ही उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम की उपाध्यक्ष दिशा चैंबर ने अपने पद और पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था.
दिशा एक सीनियर दलित आईएएस अधिकारी जेएन चैंबर की बेटी हैं. वह कांग्रेस छोड़कर बीएसपी में आई थीं .
लेकिन एक स्थानीय अख़बार से बातचीत में दिशा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री मायावती का सम्मान करती हैं लेकिन बीएसपी पार्टी के अंदर अपनी बात कहने की बिल्कुल आज़ादी नहीं है इसलिए वह ख़ुद को पार्टी में रहने के लिए अनफ़िट मानती हैं.
दिशा का बयान छपने के बाद बीएसपी ने एक प्रेस नोट जारी करके उन्हें पद और पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त करने की घोषणा कर दी.
दलित अफ़सर और उनके परिवार बीएसपी की बुनियाद रहे हैं. लेकिन हाल ही में कई दलित अफ़सर बीएसपी के बजाए दूसरे दलों में चले गए हैं. इनमे मुख्यमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव पी एल एक प्रमुख उदाहरण हैं.
प्रेक्षकों का कहना है कि बीएसपी की बदली नीति से दलित बुद्धिजीवी पार्टी से निराश हो रहें हैं.

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

पिछड़ों के खिलाफ एक बड़ी साजिश के सूत्रधार -

(अमर सिंह का अपने को दलाल घोषित करना ही उस योजना का बड़ा हिस्सा है यह बात वह बहन जी को बताना चाह रहे है या कांग्रेस को पर जो कुछ भी ये कर रहे हैं ! वह कर रहे हैं 'पिछड़ों और दलितों के खिलाफ'-डॉ.लाल रत्नाकर)

एक बार फिर शुरू हुई 'अमर वाणी'

Source: bhaskar news   |   Last Updated 14:48(14/01/11)
   

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह लगातार पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह पर हमला कर रहे हैं। लखनऊ में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को काले झंडे दिखाए जाने पर उन्होंने फिर एक बार मुलायम सिंह और आजम खान पर निशाना साधा है। हालांकि उन्होंने मुलायम सिंह का नाम नहीं लिया, लेकिन आरोप लगाया कि राहुल गांधी पर हुए हमले में उनका हाथ है।
अपने ब्लॉग में अमर सिंह ने लिखा हाल ही में राहुल गांधी पर ‘जानलेवा हमला’ किया गया। इसके पहले जयाप्रदा की गाड़ी पर काले गुब्बारे फेंके गए। जाहिर है ये प्रदर्शन कार्यकर्ताओं ने किए, लेकिन इसके लिए निर्देश नेताओं ने दिया।
हाल ही में समाजवादी पार्टी की युवा इकाई के नेताओं ने राहुल गांधी का सुरक्षा घेरा तोड़कर विरोध प्रदर्शन किया था।
अमर सिंह ने कहा कि पार्टी नेताओं ने मेरा (अमर सिंह) का इस्तेमाल किया और फिर काम हो जाने के बाद बाहर निकाल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कोई व्यक्ति पार्टी के प्रति 14 साल तक निष्ठावान रहता है और पार्टी में नंबर दो की हैसियत तक पहुंचता है, लेकिन इसके बाद भी उसे पार्टी से बाहर कर दलाल कहा जाता है। अमर सिंह ने कहा कि मुलायम सिंह ने ऐसे विधायक को भी पार्टी में रखा, जिसने एक महिला को न केवल गर्भवती बनाया बल्कि बाद में उसकी हत्या भी की। अमर सिंह ने हालांकि नाम नहीं लिखा, लेकिन वे साफ तौर पर अमरमणि त्रिपाठी का जिक्र कर रहे हैं।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

ये है मायावती का सर्वजन 'राज'

दुष्कर्म का आरोपी बसपा विधायक गिरफ्तार

"ये है मायावती 'राज' की कहानी"
Jan 13, 06:45 pm

बांदा [जासं]। दलित युवती के साथ दुष्कर्म के आरोपी बसपा विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को गुरुवार को स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। जाहिर हो कि इस बहुचर्चित शीलू प्रकरण को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार विपक्ष के निशाने पर थी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को बांदा जिले के नरैनी विधानसभा क्षेत्र के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी और उनके चार साथियों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर गिरफ्तारी का आदेश दिया था। बुधवार की रात से ही पुलिस ने विधायक की गिरफ्तारी के लिए छापे शुरू कर दिए थे। गुरुवार को सभी सीमाओं पर पुलिस ने नाकेबंदी कर दी।
सूत्रों ने बताया कि लखनऊ से विधायक बांदा के लिए चले। यह जानकारी यहां की पुलिस को हो गई थी। बबेरू थानांतर्गत औगासी पुल के पास फतेहगंज पुलिस लगी हुई थी। विधायक ने कार से जैसे ही पुल पार किया, पुलिस ने रोक कर गिरफ्तार कर लिया। पुलिस अधीक्षक अनिल दास ने बताया कि लगभग शाम चार बजे औगासी पुल के पास विधायक की गिरफ्तारी की गई है।
गिरफ्तार विधायक को पुलिस पहले देहात कोतवाली ले गई। देर रात्रि मेडिकल परीक्षण के बाद सीजेएम तृप्ता चौधरी के समक्ष उनके आवास पर पेश किया गया। सीजेएम ने विधायक को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने के आदेश दिए। रात्रि 9.49 बजे विधायक को मंडल कारागार में दाखिल कराया गया। शीलू के साथ दुष्कर्म के आरोप में ही पुलिस ने पथरा गांव के रघुवंशमणि द्विवेदी उर्फ सुरेश नेता व राजेंद्र शुक्ला को भी गिरफ्तार किया था। उन्हें भी जेल भेज दिया। उन दोनों को भी मुख्य दंडाधिकारी तृप्ता चौधरी ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दिया है और कहा कि अभियुक्तों को शिनाख्त होने तक बापर्दा रखा जाए।
अत्याचार की कहानी
-12/13 दिसंबर की रात शीलू विधायक के घर से भागी।
-14 दिसंबर चोरी के मामले में विधायक के पुत्र मयंक ने अतर्रा थाने में दर्ज कराया मुकदमा।
-15 दिसंबर को पुलिस ने रात आठ बजे शीलू को जेल भेजा।
-17 दिसंबर को गुलाबी गैंग की कमांडर संपत पाल ने शीलू को न्याय दिलाने की आवाज उठायी।
-19 दिसंबर को कथित प्रेमी रज्जू पटेल की मां व पिता ने जेल में शीलू से की मुलाकात।
-21 दिसंबर को शीलू को मेडिकल के लिए अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरों ने किया इंकार।
-22 दिसंबर को शीलू का भाई संतू ने जेल में मुलाकात की और बहन पर अत्याचार का आरोप लगाया।
-24 दिसंबर को शीलू को अतर्रा मुंसिफ न्यायालय में पेश किया गया। जहां बयान नहीं हुए, वहीं पर उसने पत्रकारों से विधायक के घर पर अत्याचार की बात कही।
-26 को कांग्रेस के सदर विधायक विवेक सिंह जेल में शीलू से मिले और कहा कि शीलू ने बताया है उसके साथ विधायक के घर अत्याचार हुआ।
-27 दिसंबर को शीलू के पिता अच्छेलाल ने गुलाबी गैंग की कमांडर के साथ कचहरी पहुंचकर विधायक व उसके भाई पर धमकी देने का लगाया आरोप।
-29 दिसंबर को पुलिस कप्तान जेल पहुंचकर पांच घंटे तक शीलू से की पूछताछ, रात में हुआ मेडिकल परीक्षण।
-दो जनवरी को जेल में शीलू के भाई संतू ने की मुलाकात और कहा कि बहन ने बताया कि उसके साथ विधायक समेत पांच लोगों ने किया बलात्कार।
-12 जनवरी को सीबीसीआइडी की प्रारंभिक रिपोर्ट पर विधायक सहित पांच लोगों पर मुकदमा पंजीकृत।
एसपी व थानेदार पर भी होगी कार्रवाई
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। दिव्या काड में पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के बाद बांदा के शीलू दुराचार कांड की अनदेखी करने वाले अफसरों पर शिकंजा कसने लगा है। अब उन पर भी गाज गिरनी तय है। सूत्रों के मुताबिक सीआइडी की जांच में अतर्रा के थानेदार और बांदा के एसपी अनिल दास की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। दलील है कि अगर कोई भी महिला अपने साथ दुष्कर्म की शिकायत करे तो तुरंत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए, लेकिन 12 दिसंबर को पकड़े जाने के बाद शीलू के लगातार गुहार लगाने के बावजूद पुलिस कान बंद किए रही। उल्टे चोरी का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया। उसका इलाज भी नहीं कराया गया, जबकि दुराचारियों ने उसे लहुलूहान कर दिया था।
शीलू कांड की जांच कर रही सीबीसीआइडी जैसे ही शासन को डीएफआर [ड्राफ्ट फाइनल रिपोर्ट] सौंपेगी, तुरंत कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। सूत्रों का यह भी दावा है कि शीलू भले ही कपड़े और मोबाइल लेकर गयी, लेकिन उसकी मंशा चोरी की नहीं थी, इसलिए उसके खिलाफ मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लग सकती है, लेकिन कुछ जेलकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई तय मानी जा रही है।
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बी.बी.सी.से साभार-

नरेश द्विवेदी
बसपा विधायक नरेश द्विवेदी ने दी गिरफ्तारी
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक नाबालिग युवती के साथ कथित बलात्कार के आरोपी सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने बृहस्पतिवार को अंततः अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया.
पीड़ित युवती शीलू निषाद विधायक के घर से चोरी के एक मुक़दमे में एक महीने से जेल में है. विपक्ष, विधायक की गिरफ्तारी से संतुष्ट नही है और वह पीड़ित युवती की रिहाई तथा मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहा है.
आरोपी विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी के परिवार के लोगों के अनुसार वह गुरुवार शाम लखनऊ से वापस बांदा पहुंचे और अपने आपको पुलिस अधीक्षक अनिल दास के हवाले कर दिया.
जानकार लोगों के अनुसार बुधवार को लखनऊ में वह सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों में मिले थे और अपने को बेगुनाह बताया था.
विधायक का कहना है कि वह लंबे अरसे से मधुमेह से पीड़ित हैं और शारीरिक रूप से सेक्स के लिए अक्षम हैं, इसलिए मामले की सही जांच के लिए उनका डीएनए टेस्ट और युवती के कपड़ों का फोरेंसिक परिक्षण कराया जाए.

राजनीतिक दबाव

लेकिन सरकार ने सीआईडी रिपोर्ट में 12 दिसंबर की रात विधायक के घर में बलात्कार की पुष्टि का हवाला देते हुए बुधवार को पुलिस को विधायक और उनके तीन सहयोगियों के ख़िलाफ बलात्कार का केस दर्ज करने के निर्देश दिए.
रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि पीड़ित युवती ने दस जनवरी को अदालत में लिखित प्रार्थना पत्र देकर विधायक और उनके सहयोगियों पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है और कानूनन उसकी अनदेखी नही की जा सकती.
पिछले चौबीस घंटों में टीवी न्यज़ चैनल बराबर यह कह रहे थे कि पुलिस जान बूझकर विधायक को गिरफ़्तार नही कर रही है.
कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह की प्रेस कांफ्रेंस में उनसे जब यही सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा "बस कुछ और समय दीजिए.''
इसके थोड़ी देर बाद बांदा से खबर आयी कि विधायक ने अपने को पुलिस के हवाले कर दिया है.

कड़ी आलोचना

विपक्षी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रीता जोशी ने एक बयान में कहा है कि सरकार ने विपक्ष और मीडिया के भारी दबाव पर विधायक को तो गिरफ़्तार किया है लेकिन पीड़ित युवती पर चोरी का झूठा मुकदमा खत्म नही किया.
इस बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात में कहा है कि एक नाबालिग और बलात्कार की शिकार युवती को जेल में बंद करना न्याय का मखौल है.
इस मामले में विपक्ष बंद के पुलिस अधीक्षक पर भी कार्यवाही मांग कर रहा है. पुलिस अधीक्षक अनिल दास पीड़ित युवती से मिलने जेल गए थे और आरोप है कि उन्होंने युवती पर बलात्कार का मामला दर्ज न कराने का दबाव डाला.
नियमानुसार पुलिस अधिकारी अदालत की अनुमति के बिना जेल में बंद अभियुक्त से नही मिल सकता.
पुलिस अधीक्षक पर यह भी आरोप है कि वह विधायक की मदद कर रहे थे इसीलिए युवती के परिवार की ओर से बलात्कार का मुकदमा दर्ज नहीं किया गया.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने एक बयान में कहा है कि विधायक का आत्मसमर्पण नाकाफी है.
पाठक का कहना है कि चूँकि इस मामले में पुलिस अधीक्षक की भूमिका संदिग्ध है इसलिए उनके ख़िलाफ भी कार्यवाही होनी चाहिए.

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