सोमवार, 28 नवंबर 2011

ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न निति है और न राजनीती .

वाह बहिन जी मामला फसता देख बिफर पड़ीं 'कुशवाहा आपको भ्रष्टाचारी ' नज़र आने लगा और आपका भाई और  मिश्र जी का भांजा "अंतु मिश्र" तथा अनेक जिसने सरे आम प्रदेश को लूटा और आज खुल्लम खुल्ला लूट रहे हैं, उनकी यद् आपको नहीं आ रही है |
ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न  निति है और न राजनीती है.

बाबू सिंह कुशवाहा बसपा से निष्कासित

लखनऊ/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Tuesday, November 29, 2011    1:22 AM
Babu Singh Kushwaha expelled from BSP
बसपा प्रमुख मायावती ने कभी अपने विश्वासपात्र रहे बाबू सिंह कुशवाहा को आखिरकार पार्टी से निकाल ही दिया। पूर्व मंत्री और एमएलसी कुशवाहा को पार्टी नेतृत्व के खास लोगों पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगा कर बगावती तेवर अपनाना महंगा पड़ा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने अनुशासनहीनता व पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में कुशवाहा के आजीवन निष्कासन का ऐलान किया।

उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया
प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच से बचने के लिए कांग्रेस पार्टी के लगातार संपर्क में हैं। कुशवाहा ने परिवार कल्याण मंत्री रहते अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। इस कारण उनके मंत्री रहते हुए ही विभाग में तीन सीएमओ की हत्या हुई। कुशवाहा के मंत्री रहने के दौरान इस तरह की घटना होने पर ही सरकार व पार्टी की छवि खराब होते देख उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया था।

सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया
मौर्य ने कहा कि मामले की जांच सीबीआई को दिए जाने के बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए और बसपा को लगातार नुकसान पहुंचाने का काम करते रहे। उन्होंने अपने समाज के लोगों को बसपा के खिलाफ काम करने के लिए उकसाया। उन्होंने राज्य सरकार के बारे में असत्य व भ्रामक बयानबाजी की। यह सभी काम निजी फायदे के लिए किए। बकौल मौर्य, कुशवाहा ने विधान परिषद् के हाल में बुलाए सत्र में भाग नहीं लिया और विपक्षी पार्टियों को सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया। गौरतलब है कि कुशवाहा और अनंत मिश्र अंटू से इसी साल 7 अप्रैल को मुख्यमंत्री ने दो सीएमओ की हत्याओं को बाद इस्तीफा ले लिया था। तब बसपा ने कहा था कि दोनों मंत्रियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया है।

टर्निंग प्वांइट
यूं तो कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले व सीएमओ हत्याकांड की सीबीआई जांच की जद में आने के कारण पहले ही हाशिए पर आ गए थे। लेकिन, जब सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और दो प्रमुख अफसरों पर अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप लगाते हुए सीएम व पीएम को पत्र भेजा, तब ही उनका हश्र नजर आने लगा था। बसपा प्रदेशाध्यक्ष ने सवाल किया कि कुशवाहा को मंत्री रहते इन लोगों से अपनी जान का खतरा क्यों नजर नहीं आया।

पूर्व मंत्री कुशवाहा बर्खास्त

 सोमवार, 28 नवंबर, 2011 को 15:19 IST तक के समाचार

एक समय में कुशवाहा मायावती के पसंदीदा लोगों में से थे
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी और पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
कुशवाहा ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी.
कुछ समय पहले तक कुशवाहा बीएसपी में मायावती के सबसे विश्वासपात्र लोगों में गिने जाते थे.
उन्हें कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री निवास के बगल में बँगला मिला था और वह लगभग हमेशा मुख्यमंत्री निवास में रहते थे.
बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि कुशवाहा को " अनुशासनहीनता एवं पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण" हमेशा के लिए बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.
मौर्य ने आरोप लगाया कि कुशवाहा के परिवार कल्याण मंत्री रहते इस विभाग में दो सीएमओ की ह्त्या हुई तथा एक और की जेल में मृत्यु हुई.
इन हत्याओं के चलते मुख्यमंत्री ने कुशवाहा को मंत्री पद से हटा दिया था.
बाद में अदालत ने इस ह्त्या और परिवार कल्याण विभाग में कथित घोटालों की जांच सीबीआई को सौंप दी.
विपक्ष का आरोप था कि इन घोटालों के तार मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े हैं , क्योंकि रिश्वत का पैसा ऊपर तक जाता था.
कुशवाहा ने हाल ही में राज्यपाल, राष्ट्रपति एवं अन्य लोगों को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी , कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और गृह सचिव कुंवर फ़तेह बहादुर से अपनी जान को ख़तरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी.
माया सरकार ने इन आरोपण का खंडन किया और कुशवाहा को मिली सुरक्षा कम कर दी गयी.
अब प्रदेश बीएसपी अध्यक्ष मौर्य ने आरोप लगाया है कि कुशवाहा सीबीआई जांच से अपने को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी से लगातार संपर्क में हैं.
मौर्य ने यह भी आरोप लगाया है कि कुशवाहा विपक्षी नेताओं से मिलकर सरकार एवं पार्टी के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं.
कुशवाहा इन दिनों अज्ञात वास में हैं और उनसे संपर्क संभव नही हो सका.

बाबू सिंह कुशवाहा को माया ने पार्टी से निकाला

Nov 28, 02:11 pm
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की सोमवार को बसपा से विदाई हो गई। पार्टी ने उन्हें लखनऊ में दो सीएमओ की हत्या और जेल में डिप्टी सीएमओ की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। आरोप लगाया है कि वह खुद को एनआरएचएम घोटाले से बचाने के लिए कांग्रेस के संपर्क में हैं। दूसरे विपक्षी दलों के साथ मिलकर पार्टी के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से जारी लिखित बयान में यह जानकारी दी गई है।
मौर्य ने कहा है कि कुशवाहा ने परिवार कल्याण विभाग यह कह कर मांगा था कि वह इसके जरिए दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की सेवा कर सकेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। कुशवाहा के मंत्री रहते हुए ही दो सीएमओ की हत्या और एक डिप्टी सीएमओ की जिला कारागार में मौत हुई। सरकार और पार्टी की छवि खराब होती देख उनसे मंत्री पद से त्याग पत्र लिया गया था। कुशवाहा जब कानूनी शिकंजे में फंस रहे हैं, तो उन्हें कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव और प्रमुख सचिव गृह से अपनी जान का खतरा दिखने लगा है।
मौर्य ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा परिवार कल्याण विभाग में हुई हत्याओं और डिप्टी सीएमओ की जेल में मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इसके बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए। उन्होंने बसपा से जुड़े अपने समाज के लोगों को पार्टी के खिलाफ काम करने के लिए भी उकसाया। विधान परिषद की बैठकों में भी शामिल नहीं हुए। इसके अलावा उन्होंने विपक्षी पार्टियों के सदस्यों को सरकार के विरुद्ध हंगामा करने के लिए भी भड़काया।

रविवार, 27 नवंबर 2011

मायावती की पहल - पिछड़ों और दलितों को जोड़ने की


(सारी क्रीम ब्राह्मणों को खिलाकर अब लाली पाप की कवायद पिछड़ों के लिए)

माया का चुनाव के लिए ऐलान-ए-जंग

लखनऊ।
Story Update : Monday, November 28, 2011    1:45 AM
Maya decided to attack on bjp congress sp
प्रदेश की सीएम मायावती ने विधानसभा चुनाव के लिए जंग का ऐलान करते हुए जनता को चेताया कि कांग्रेस को जिताया तो यूपी पांच साल में कंगाल नंबर वन हो जाएगा। उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए उनके दावों और आरोपों को हवाहवाई बताया। रमाबाई अंबेडकर मैदान में रविवार को आयोजित दलित-पिछड़ा वर्ग भाईचारा कार्यकर्ता महासम्मेलन के करीब डेढ़ घंटे के भाषण में मायावती ने कांग्रेस और केंद्र पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बसपा को मिल रहे अपार समर्थन से कांग्रेस घबराई हुई है। मायावती ने आशंका जताई कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे के प्रस्ताव को विरोधी दल मिलकर रोक सकते हैं। यह भी कहा कि केंद्र उनसे बदला लेने को उनके भाई आनंद सिंह को फर्जी मामले में फंसा सकती है।

बसपा ने अभियान शुरू कर दिया
मुख्यमंत्री ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल गांधी संसद छोड़कर यूपी में आकर नाटकबाजी कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि विस चुनाव के लिए बसपा ने अभियान शुरू कर दिया है। अगर उनकी केंद्र में सरकार बनती है तो वह मनरेगा के तहत सौ दिन के बजाए पूरे साल भर रोजगार देंगी। प्रदेश में चल रही सामाजिक कल्याण की तमाम योजनाओं को भी देश भर में लागू किया जाएगा।

क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी
उन्होंने भाजपा पर सांप्रदायिकता बढ़ाने और सपा पर गुंडागर्दी का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि विरोधी पार्टियां अगर दलित सीएम या पीएम बनाती हैं तब भी वह किसी काम के नहीं होंगे, क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी। उन्होंने कहा कि अपने मां-बाप और भाई-बहन से उनका संबंध तभी तक है जब तक वे बसपा मूवमेंट से जुड़े रहेंगे। जैसे ही उनके मन में सांसद, मंत्री बनने का ख्याल आएगा वह उनसे संबंध तोड़ लेंगी। उन्होेंने दावा किया कि चुनाव में बसपा इस नारे को हकीकत में बदल देगी कि ‘चलेगा हाथी, उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल और न रहेगी साइकिल’।

राहुल गांधी पर भी साधा निशाना
मायावती ने कहा कि कांग्रेस को हमेशा बसपा का भय रहता है। कांग्रेसियों को सपने में भी बसपा का हाथी रौंदता दिखाई देता होगा। कांग्रेसी नेता जो अनापशनाप बोलते रहते हैं, उस पर मैं तो संज्ञान नहीं लेती, पर प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को जरूर गुस्सा आता है। माया ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल संसद छोड़ यूपी में नाटकबाजी कर रहे हैं। यूपी के लोगों को भिखारी कहने पर उन्होंने कहा कि उन 40 वर्षों में यूपी के लोगों ने ज्यादा पलायन किया जब यहां कांग्रेस का राज था। लोगों के पलायन को कांग्रेस जिम्मेदार है ।

कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस ने कहा कि मायावती राहुल फोबिया से ग्रसित हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि मायावती को अब लगने लगा है कि कांग्रेस उनकी सरकार को उखाड़ फेंकेगी। पूरे भाषण में उनका यही डर झलक रहा था।

जिस तरह से मायावती ने राहुल गांधी पर प्रहार किया उससे साफ है कि उन्हें लगने लगा है कि उनकी जमीन खिसक रही है और कांग्रेस मजबूत हो रही है। मायावती की घबराहट कांग्रेस के लिए संतोष की बात है। यह इस बात का भी संकेत है कि हमारी जमीन मजबूत हो रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी 

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा दोगुनी करने की सिफारिश




17-11-11 06:51 PM
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केन्द्र सरकार से सिफारिश की है कि सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए बनी क्रीमीलेयर की सीमा दोगुनी करके इसे नौ लाख रुपये वार्षिक आय कर दिया जाए।

सरकारी नौकरियों में क्रीमीलेयर की वर्तमान सीमा में फिलहाल साढ़े चार लाख रुपये वार्षिक आय वाले ओबीसी सदस्य आते हैं। अगर आयोग की सिफारिशों को केन्द्र सरकार हरी झंडी दिखा देती है तो देश में ओबीसी के लिये क्रीमीलेयर की सामान्य सीमा नौ लाख रुपये सालाना और देश के चार महानगरों के लिए यह सीमा नौ लाख रुपये सालाना से भी अधिक हो जाएगी। अभी देश के महानगरों और अन्य क्षेत्रों के लिये यह सीमा एक समान साढ़े चार लाख रुपये है।

आयोग के सदस्य डाक्टर शकील अंसारी ने कहा कि आयोग ने कई सर्वेक्षणों के बाद ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा में बढ़ोत्तरी करने की सिफारिश की है। उम्मीद है कि जल्द ही सरकार विचार विमर्श के बाद इन सिफारिशें को मंजूरी देगी।

अंसारी ने कहा कि हर तीन साल बाद क्रीमीलेयर की सीमा की समीक्षा की जाती है। वर्तमान क्रीमीलेयर में ओबीसी के बड़े तबके को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है, इसलिए ये सिफारिशें की गई हैं।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

साहित्य में जातिवाद


दलित विरोधी ये प्रगतिशील
श्यौराज सिंह बेचैन
Story Update : Friday, November 04, 2011    7:47 PM
हाल ही में लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने कुछ ऐसी बातेंकहीं, जिससे प्रगतिशील लेखकों के दलित विरोधी होने की धारणा पुख्ता होती है!

उन्होंने कहा कि ‘दलितों के बारे में बेहतर ढंग से दलित ही लिख सकता है और महिलाओं के बारे में महिलाएं ही लिख सकती हैं, अगर ऐसा मानेंगे, तो सारा प्रगतिशील लेखन ही खारिज हो जाएगा।’ इसके अलावा उन्होंने बहुरि नहीं आवना पत्रिका में डॉ धर्मवीर द्वारा किए गए मुर्दहिया के मूल्यांकन पर दलित हिमायती के अंदाज में ऐतराज जताते हुए कहा कि मुर्दहिया की एक अन्य दलित लेखक धर्मवीर ने जमकर धज्जियां उड़ाई हैं। खेमेबाजी यहां भी है।

मान लिया जाए कि दलित ने दलित की आलोचना की या नामवरों के जाल से उसे बाहर निकाल लाने की कोशिश की, पर क्या प्रलेस के विगत 75 वर्षों में नामवर सिंह ने कभी किसी दलित-विरोधी ठाकुर की आलोचना की? दलित साहित्य के स्थायी और घोषित विरोधी होने के बावजूद नामवर सिंह मुर्दहिया के पक्ष में कैसे आ गए?

वह इस कृति के समर्थन की आड़ में दलित साहित्य और समाज का कौन-सा बड़ा हित करना चाह रहे थे, जिसे डॉ धर्मवीर की समीक्षा ने नाकाम कर दिया, जिस वजह से उन्होंने सम्मेलन का मुख्य मुद्दा उस समीक्षा को बनाया? यों कहने के लिए प्रगतिशील विचारधारा में वर्ण नहीं, वर्ग होते हैं, पर नामवर सिंह के मानस में स्थायी रूप से सामंत निवास करता है। वह कह चुके हैं कि आरक्षण से बड़ा फर्क पड़ा है। काफी दलित सवर्णों से बेहतर स्थिति में हैं। यही हालात रहे, तो ब्राह्मण, ठाकुर सड़क पर नजर आएंगे। इससे पहले नया पथ के एक साक्षात्कार में वह दलित लेखकों के बारे में अनाप-शनाप बोल चुकेहैं।

नामवर सिंह को इस बेबाकी के लिए बधाई देनी चाहिए कि वह दलितों के विषय में जो सोचते हैं, जो करते हैं, वही कहते हैं। वरना कथनी और करनी में अंतर रखने वाले प्रगतिशीलों की क्या कमी है! हिंदी क्षेत्र के दलितों के लिए यह अच्छा ही हुआ कि नामवर सिंह जैसे विरोधी और प्रतिद्वंद्वी पैदा हुए। काश वे केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में भी पैदा हो जाते, तो वहां भी दलित लेखन अपने रूप में आ गया होता। नामवर सिंह के रूप में यहां 75 वर्षीय प्रलेस की कलई खुली है। उसका नेतृत्व दलितों का कैसा इस्तेमाल करता रहा है, यह साफ हो गया है।

डॉ अंबेडकर से लेकर अब तक कभी किसी दलित की अच्छी रचना नामवर जी की समझ में नहीं आई। उन्होंने उसे या तो दो कौड़ी की या भूसा कहा। प्रेमचंद के सामने गांधी और अंबेडकर राजनीतिक आदर्श के रूप में दो विकल्प थे। प्रेमचंद ने गांधी जी को चुना और अंबेडकर का असहयोग किया। स्वामी अछूतानंद प्रेमचंद के हमउम्र और हमशहरी थे। प्रेमचंद ने उनके नेतृत्व को भी स्वीकार नहीं किया। उसी परंपरा में नामवर सिंह दलितों के बौद्धिक नेतृत्व और साहित्य चिंतन को गुलाम बनाए रखने का उपक्रम कर रहे हैं।

नामवर जी दावा कर रहे थे कि गैरदलित भी दलित साहित्य लिख सकता है। उनसे पूछा जा सकता है कि उन्हें किसने रोका था, एक और मुर्दहिया, मेरा बचपन मेरे कंधों पर अथवा मेरी पत्नी और भेड़िया जैसी आत्मकथा लिखने से? पर उन्होंने डॉ यशवंत वीरोदय से कहा कि ऐसी बातें छिपा लेनी चाहिए। यही तो अंतर है। उनकी परंपरा में छिपाना है, जबकि दलित और कबीर की परंपरा में खोलकर कहना है।

नामवर सिंह आतंकित हैं कि दलित उनकी सोच को खारिज कर देंगे। इसलिए वह मार्क्सवाद का आवरण फेंककर सीधे वर्णवादी भाषा में बोलते दिख रहे हैं। मार्क्सवाद में तो ब्राह्मण, ठाकुर और दलित होता नहीं है, इसके लिए तो नामवर जी को अपने असली चरित्र में आना ही पड़ता। यदि प्रेमचंद दलितों को लेकर चले थे और ठाकुर का कुआं लिखकर ठाकुर का चरित्र दिखा चुके थे, तो 75 वर्ष होने पर प्रलेस का नेतृत्व दलित को सौंप देना चाहिए था। स्थायी तौर पर नहीं, तो सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए ही सही, पर ऐसी पहल कहीं से होती नहीं दिखी।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

ब्राह्मणवादी व्यवस्था ; एक विश्लेषण

  • पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना और 'महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी' जैसे समाचार से कोई भी व्यक्ति बाध्य हो एकता है कि मंदिर या कोई भी धर्मालय केवल भगवान का निवास स्थान है या इसका अन्य सामाजिक और राजनितिक प्रभाव है इसी सन्दर्भ में मंदिर के बारे में एक विश्लेषण -  
  •  
  • मंदिर : ब्राह्मणवादी शासन की राजनैतिक–आर्थिक इकाई

    अंदर मूरत पर चढें घी, पूरी, मिष्ठान, मंदिर के बाहर खड़ा, इश्वर मांगे दान     (निदा फाजली)

    धर्म मानव जीवन का एक अभिन्न पहलु है जो मानवीय जीवन को किसी न किसी रूप से प्रभावित करता है 
    धर्म को मानव को इश्वर से जोड़ने वाला माध्यम के रूप में स्थापित किया गया है और मानव किसी न किसी रूप में धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करता है परन्तु यदि इस मान्यता पर विश्वास न किया जाय फिर भी धर्म द्वारा आत्म-नियंत्रण और अच्छे चरित्र के निर्माण में सहायक के सकारात्मक पहलु से इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु धर्म के नाम पे होने वाले धार्मिक व्यापार, कर्मकांड, अन्धविश्वाश और धर्म के आधार पर अनपढ़ और गरीब का शोषण इसके नकारात्मक पहलु भी है 

    मंदिर एक धार्मिक संस्था के रूप में समाज की धार्मिक गतिविधियों को संचालित नियमित और नियंत्रित करता है, इसी संस्था के द्वारा धार्मिक नियम बनाए जाते है और उसका पालन भी कराये जाते है पर मंदिर का “ब्राह्मणवादी शासन और राजनीति” से क्या सम्बन्ध है को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि किसी देश का शासन चलाने के लिए क्या आवश्यक है ? किसी देश का शासन चलाने के लिए आवश्यक तत्व है – 1. व्यक्तियों का समूह, 2. धन और सम्पत्ति, 3. सूचना तंत्र –4. प्रशिक्षित मानवीय संसाधन 

    व्यक्तियों का समूह – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है समूह, संगठन या संस्था जो मानवीय शक्ति को अपने अनुसार प्रशिक्षित और उपयोग कर सके
    मंदिर को व्यक्तियों के समूह या संगठन की इकाई के रूप में देखा जा सकता है एक मंदिर में पांच से लेकर २०० से अधिक व्यक्ति कार्य करते है यह मंदिर के आकार और प्रसिद्धि पर निर्भर करता है मंदिर से ऊपर मठ होता है जो मंदिर की गतिविधियों को नियंत्रित और निर्देशित करता है, इससे ऊपर पीठ का निर्माण किया गया है जो मंदिर और मठों को निर्देशित करने के साथ साथ ब्राह्मणवादी एजेंडे का निर्माण करते है पीठ सर्वोच्च धार्मिक संस्था है जिसका सम्बन्ध विभिन्न गैर राजनितिक धार्मिक संगठनों जैसे राष्ट्रीय सेवक संघ, रामसेना, शिवसेना, बजरंगदल से है जो दबाव समूह के रूप में कार्य करतें है और सबसे ऊपर राजनैतिक पार्टिया जो धर्म को अपना प्रमुख एजेंडा बनाती है और जो साम्प्रदायिकता को बढावा देती है या अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टिया जो अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मणवाद पर कार्य करती है और मंदिर से उत्पन्न आर्थिक और प्रशिक्षित मानवीय (जैसे बड़े नेता, प्रवक्ता, नौकरशाह, मीडिया जिनका सम्बन्ध कहीं न कहीं धार्मिक संगठनो से होता है) संसाधनों का प्रयोग करती है
    इस प्रकार एक कड़ी मंदिर से शुरू होकर शासन और प्रशासन तक जाता है 

    धन और सम्पत्ति – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है धन और सम्पत्ति जो आवश्यक अध्:संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक हों प्रत्येक मंदिर में पूजा, चढावा, दान और पुजारी को दिया गया धन और संपत्ति (जो अधिकांशत: पिछड़े समाज का होता है) का गमन और संचयन नीचे से उपर (मंदिर, मठ, पीठ, संगठन और अंतत: पार्टियों) की ओर होता है इस प्रकार इन संगठनों एवं पार्टियों को चुनाव प्रचार, सूचनातंत्र के निर्माण के लिए धन इकठ्ठा करने की कोई समस्या नहीं होती है जो पिछड़े समाज से सम्बंधित पार्टियों के लिए हो/ अब देश में इतने मंदिर है यदि इनका केवल लेखा जोखा रखा जाय तो मंदिर के अर्थशास्त्र के बारे में सही विश्लेषण किया जा सकता है /
    • सूचना तंत्र - किसी भी राज्य का शासन करने के लिए मजबूत सूचनातंत्र का होना अतिआवश्यक है कोई भी शासकवर्ग तब तक शासन नहीं कर सकता जब तक सूचना पर उसका अधिकार न हो इस सुचनातंत्र के माध्यम से ही शासकवर्ग अपना एजेंडा और रणनीति जनता तक पहुचता है और जनता के अंदर चल रही गतिविधियों और कार्यकलापों को जानता और समझता है  मंदिर में पुजारी ब्राह्मण जाति से होते है और सामान्यत: ब्राह्मण ही अधिकांशत: भिक्षावृति भी करते है जो सूचनाओं का आदान-प्रदान का माध्यम भी होते है अत: बिना संचार माध्यम के होते हुए भी सुचना एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुच जाती है और वर्तमान में तो कार्य और सरल हो गया है मंदिर में कार्य करने वाला पुजारी शिक्षित एवं समाज के सबसे प्रतिष्ठित वर्ग के व्यक्ति होते है इनकी बातो या सुचनाओं पर गाव का सीधा साधा एवं अशिक्षित जनता उसी प्रकार विश्वास करती है जिस प्रकार शहरों का शिक्षित समुदाय ब्राह्मणवादी मीडिया की सूचनाओं पर बिना सत्य का खोज किये विश्वास करता है अत: भिक्षा मागने वाले ब्राह्मण से लेकर, मठाधिकारी तथा विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी से लेकर सदस्य भी सूचना के आदान-प्रदान में लगे रहते है इस प्रकार मंदिर को गाव का सुचना केन्द्र के रूप में उपयोग किया जाता है  
    • प्रशिक्षित मानवीय संसाधन – राष्ट्रीय सेवक संघ के द्वारा स्थापित विभिन्न सरस्वती शिशु मंदिर में एक बच्चे को बाल्यावस्था से ही ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अनुसार शिक्षा दी जाती है फिर मंदिर से लेकर मठ, विभिन्न पीठ, धार्मिक संगठन नई पीढ़ी को अपने संगठनों में सम्मिलित कर उनका ब्रेनवास करके धार्मिक रूप से प्रशिक्षित करते है जो ब्राह्मणवादी मिशन को आगे बढाते है और शासन चलाने में सहायक होते है विभिन्न संगठन ऐसे प्रशिक्षित मानवीय संसाधनों को पुजारी, व्यवस्थापक या ट्रस्टी के रूप में नियुक्त करते है इस प्रकार मंदिर से सभी प्रकार के आवाश्यकताओं की पूर्ति होती है जो एक राष्ट का शासन चलाने के लिए आवश्यक होता है चुकि मंदिर पर केवल ब्राह्मण वर्ग का कब्जा और स्वामित्व है इसलिए भारत में एक सुनियोजित, ब्राह्मणवादी शासन राज कर रहा है                              For more detail read...  (http://www.facebook.com/note.php?note_id=166728076688383).  
    • साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने का उपाय – 
      (१) मंदिर से संगृहीत धन को सरकारी सम्पत्ति माना जाय एवं उसका लेखा-जोखा तैयार किया जाय 
      इस धन का उपयोग समाज के गरीब वर्ग के उत्थान में लगाया जाय 

      (२) बड़े-२ मंदिर जो सार्वजनिक हो, उनमे विभिन्न समुदाय के लोगों को नियुक्त किया जाय तथा उसमें होने वाली गतिविधियों की निगरानी की जाय तथा नियंत्रित किया जाय 

      बहुजन (OBC/SC/ST) समाज के लोग जितनी संख्या में ब्राह्मणवादी कर्मकांड एवं पूजापाठ को त्यागकर समतामूलक समाज बनाने वाले नायको के विचारों से अवगत होगे ब्राह्मणवाद वैसे-२ कमजोर होगा, फिर भी यदि इश्वर में आस्था ही है तो मंदिर में केवल इश्वर की आराधना करे, न कि इश्वर के नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे, यदि दान ही देना हो तो किसी गरीब और जरूरतमंद को दे जैसा कि बौद्ध. इस्लाम, सिक्ख या इसाई जैसे मानवतावादी धर्म में कहा गया है 
नोट - १ - पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना (http://www.bhaskar.com/article/NAT-rs5-lakh-crore-treasure-belongs-to-lord-vishnu-2242419.html)
         २. महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी (http://hindi.webdunia.com/webdunia-city-madhyapradesh-ratlam/1111025025_1.htm) २५ अक्टूबर 

शनिवार, 9 जुलाई 2011

दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी कोटा पूरी तरह लागू करो

आज कल नियम तो बनाते हैं पर उनका अनुपालन नहीं होता जिसका सबसे बड़ा खामियाजा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए ओ बी सी के छात्रों के साथ किया जा रहा है. इसी के लिए एक प्रदर्शन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिनांक ११ जुलाई २०११ को करने जा रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में. जिसमें उनकी प्रमुख मांगें होंगी-
  • दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी कोटा पूरी तरह लागू करो
  • दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी सीटों को सवर्ण सीट में कनवर्ट करना बंद करो
  • ओबीसी का दुश्मन ब्राह्मणवादी वीसी दिनोश सिंह मुर्दाबाद
  • 27% संवैधानिक OBC कोटा लागू करो
  • ओबीसी के खिलाफ सरकारी पैसे से मुकदमा लड़ने वाला ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह शर्म करो
  • अपनी जाति दिखाने वाला ओबीसी विरोधी ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह मुर्दाबाद
  • ओबीसी का 27% कोटा चाहिए, इसी साल चाहिए, अभी चाहिए
  • ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह मुर्दाबाद









सोमवार, 4 जुलाई 2011

जाट राजनीति को गरमाने की कोशिश


जाट राजनीति को गरमाने की कोशिश

(दैनिक जागरण से साभार)
Jul 04, 09:44 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण के मुद्दे पर जाट राजनीति को एक बार फिर गरमाने की कोशिश शुरू कर दी गई है। आरक्षण आंदोलन की आगामी रणनीति बनाने के लिए सोमवार को आयोजित बैठक में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह और कांग्रेस के सांसद शीश राम ओला भी पहुंचे। बैठक में सभी ने एकजुटता की बात दोहराई, लेकिन बैठक से आरक्षण संघर्ष समिति का दूसरा गुट नदारद रहा।
बैठक का आयोजन संयुक्त जाट संघर्ष समिति ने किया था, जिसके अध्यक्ष एचपी सिंह परिहार हैं। जबकि यशपाल मलिक के नेतृत्व वाले अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता इस बैठक से दूर रहे। गुटबाजी की शिकार संघर्ष समिति के नेता राजनीतिक दलों से दूरी बनाए रखने और एकजुटता की अपील करते रहे। तभी रालोद नेता अजित सिंह ने कहा कि आंदोलन की सफलता के लिए एकजुटता जरूरी है।
जाट आरक्षण के लिए संघर्ष की प्रभावी रणनीति बनाने के लिए जिन बड़े नेताओं को मंच पर बुलाया गया था, वे बहुत जल्दी में थे। राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह सबसे पहले बोले और यह कहकर चले गए कि उन्हें तेलंगाना के लोगों के कार्यक्रम में जाना है। हालांकि वह जाट नेताओं को यह जरूर बता गए कि आंदोलन के लिए राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल होनी चाहिए जो इस समय हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नेताओं के मुकाबले जनता का दबाब ज्यादा कारगर होता है।
अजित सिंह ने आंदोलन चलाने वाले नेताओं को चेताया भी कि आंदोलन की एक हद होती है, जिसके भीतर रहकर ही सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है। इसे पार करने से आंदोलन बेकाबू हो जाता है और दूसरे समाज के लोग आपके खिलाफ हो जाते हैं। इससे समस्या और जटिल हो जाती है।
कांग्रेस के सांसद शीश राम ओला ने कहा कि इच्छा शक्ति, प्रतिबद्धता और विश्वास के साथ आंदोलन करेंगे तो सफलता मिलेगी। लेकिन आपको यह सोचना होगा कि कौन आरक्षण दिला सकता है और कौन आरक्षण दे सकता है। राजस्थान में आरक्षण से पूर्व कोई जाट भारतीय प्रशासनिक सेवा में नहीं था, लेकिन आरक्षण के बाद से 140 जाट युवक आईएएस और आईपीएस बन चुके हैं।

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