- पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना और 'महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी' जैसे समाचार से कोई भी व्यक्ति बाध्य हो एकता है कि मंदिर या कोई भी धर्मालय केवल भगवान का निवास स्थान है या इसका अन्य सामाजिक और राजनितिक प्रभाव है इसी सन्दर्भ में मंदिर के बारे में एक विश्लेषण -
- मंदिर : ब्राह्मणवादी शासन की राजनैतिक–आर्थिक इकाई
अंदर मूरत पर चढें घी, पूरी, मिष्ठान, मंदिर के बाहर खड़ा, इश्वर मांगे दान (निदा फाजली)
धर्म मानव जीवन का एक अभिन्न पहलु है जो मानवीय जीवन को किसी न किसी रूप से प्रभावित करता हैधर्म को मानव को इश्वर से जोड़ने वाला माध्यम के रूप में स्थापित किया गया है और मानव किसी न किसी रूप में धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करता है परन्तु यदि इस मान्यता पर विश्वास न किया जाय फिर भी धर्म द्वारा आत्म-नियंत्रण और अच्छे चरित्र के निर्माण में सहायक के सकारात्मक पहलु से इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु धर्म के नाम पे होने वाले धार्मिक व्यापार, कर्मकांड, अन्धविश्वाश और धर्म के आधार पर अनपढ़ और गरीब का शोषण इसके नकारात्मक पहलु भी हैमंदिर एक धार्मिक संस्था के रूप में समाज की धार्मिक गतिविधियों को संचालित नियमित और नियंत्रित करता है, इसी संस्था के द्वारा धार्मिक नियम बनाए जाते है और उसका पालन भी कराये जाते है पर मंदिर का “ब्राह्मणवादी शासन और राजनीति” से क्या सम्बन्ध है को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि किसी देश का शासन चलाने के लिए क्या आवश्यक है ? किसी देश का शासन चलाने के लिए आवश्यक तत्व है – 1. व्यक्तियों का समूह, 2. धन और सम्पत्ति, 3. सूचना तंत्र –4. प्रशिक्षित मानवीय संसाधन
व्यक्तियों का समूह – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है समूह, संगठन या संस्था जो मानवीय शक्ति को अपने अनुसार प्रशिक्षित और उपयोग कर सकेमंदिर को व्यक्तियों के समूह या संगठन की इकाई के रूप में देखा जा सकता है एक मंदिर में पांच से लेकर २०० से अधिक व्यक्ति कार्य करते है यह मंदिर के आकार और प्रसिद्धि पर निर्भर करता है मंदिर से ऊपर मठ होता है जो मंदिर की गतिविधियों को नियंत्रित और निर्देशित करता है, इससे ऊपर पीठ का निर्माण किया गया है जो मंदिर और मठों को निर्देशित करने के साथ साथ ब्राह्मणवादी एजेंडे का निर्माण करते है पीठ सर्वोच्च धार्मिक संस्था है जिसका सम्बन्ध विभिन्न गैर राजनितिक धार्मिक संगठनों जैसे राष्ट्रीय सेवक संघ, रामसेना, शिवसेना, बजरंगदल से है जो दबाव समूह के रूप में कार्य करतें है और सबसे ऊपर राजनैतिक पार्टिया जो धर्म को अपना प्रमुख एजेंडा बनाती है और जो साम्प्रदायिकता को बढावा देती है या अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टिया जो अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मणवाद पर कार्य करती है और मंदिर से उत्पन्न आर्थिक और प्रशिक्षित मानवीय (जैसे बड़े नेता, प्रवक्ता, नौकरशाह, मीडिया जिनका सम्बन्ध कहीं न कहीं धार्मिक संगठनो से होता है) संसाधनों का प्रयोग करती हैइस प्रकार एक कड़ी मंदिर से शुरू होकर शासन और प्रशासन तक जाता है
धन और सम्पत्ति – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है धन और सम्पत्ति जो आवश्यक अध्:संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक हों प्रत्येक मंदिर में पूजा, चढावा, दान और पुजारी को दिया गया धन और संपत्ति (जो अधिकांशत: पिछड़े समाज का होता है) का गमन और संचयन नीचे से उपर (मंदिर, मठ, पीठ, संगठन और अंतत: पार्टियों) की ओर होता है इस प्रकार इन संगठनों एवं पार्टियों को चुनाव प्रचार, सूचनातंत्र के निर्माण के लिए धन इकठ्ठा करने की कोई समस्या नहीं होती है जो पिछड़े समाज से सम्बंधित पार्टियों के लिए हो/ अब देश में इतने मंदिर है यदि इनका केवल लेखा जोखा रखा जाय तो मंदिर के अर्थशास्त्र के बारे में सही विश्लेषण किया जा सकता है /- सूचना तंत्र - किसी भी राज्य का शासन करने के लिए मजबूत सूचनातंत्र का होना अतिआवश्यक है कोई भी शासकवर्ग तब तक शासन नहीं कर सकता जब तक सूचना पर उसका अधिकार न हो इस सुचनातंत्र के माध्यम से ही शासकवर्ग अपना एजेंडा और रणनीति जनता तक पहुचता है और जनता के अंदर चल रही गतिविधियों और कार्यकलापों को जानता और समझता है मंदिर में पुजारी ब्राह्मण जाति से होते है और सामान्यत: ब्राह्मण ही अधिकांशत: भिक्षावृति भी करते है जो सूचनाओं का आदान-प्रदान का माध्यम भी होते है अत: बिना संचार माध्यम के होते हुए भी सुचना एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुच जाती है और वर्तमान में तो कार्य और सरल हो गया है मंदिर में कार्य करने वाला पुजारी शिक्षित एवं समाज के सबसे प्रतिष्ठित वर्ग के व्यक्ति होते है इनकी बातो या सुचनाओं पर गाव का सीधा साधा एवं अशिक्षित जनता उसी प्रकार विश्वास करती है जिस प्रकार शहरों का शिक्षित समुदाय ब्राह्मणवादी मीडिया की सूचनाओं पर बिना सत्य का खोज किये विश्वास करता है अत: भिक्षा मागने वाले ब्राह्मण से लेकर, मठाधिकारी तथा विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी से लेकर सदस्य भी सूचना के आदान-प्रदान में लगे रहते है इस प्रकार मंदिर को गाव का सुचना केन्द्र के रूप में उपयोग किया जाता है
- प्रशिक्षित मानवीय संसाधन – राष्ट्रीय सेवक संघ के द्वारा स्थापित विभिन्न सरस्वती शिशु मंदिर में एक बच्चे को बाल्यावस्था से ही ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अनुसार शिक्षा दी जाती है फिर मंदिर से लेकर मठ, विभिन्न पीठ, धार्मिक संगठन नई पीढ़ी को अपने संगठनों में सम्मिलित कर उनका ब्रेनवास करके धार्मिक रूप से प्रशिक्षित करते है जो ब्राह्मणवादी मिशन को आगे बढाते है और शासन चलाने में सहायक होते है विभिन्न संगठन ऐसे प्रशिक्षित मानवीय संसाधनों को पुजारी, व्यवस्थापक या ट्रस्टी के रूप में नियुक्त करते है इस प्रकार मंदिर से सभी प्रकार के आवाश्यकताओं की पूर्ति होती है जो एक राष्ट का शासन चलाने के लिए आवश्यक होता है चुकि मंदिर पर केवल ब्राह्मण वर्ग का कब्जा और स्वामित्व है इसलिए भारत में एक सुनियोजित, ब्राह्मणवादी शासन राज कर रहा है For more detail read... (http://www.facebook.com/note.php?note_id=166728076688383).
- साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने का उपाय –(१) मंदिर से संगृहीत धन को सरकारी सम्पत्ति माना जाय एवं उसका लेखा-जोखा तैयार किया जायइस धन का उपयोग समाज के गरीब वर्ग के उत्थान में लगाया जाय(२) बड़े-२ मंदिर जो सार्वजनिक हो, उनमे विभिन्न समुदाय के लोगों को नियुक्त किया जाय तथा उसमें होने वाली गतिविधियों की निगरानी की जाय तथा नियंत्रित किया जाय
बहुजन (OBC/SC/ST) समाज के लोग जितनी संख्या में ब्राह्मणवादी कर्मकांड एवं पूजापाठ को त्यागकर समतामूलक समाज बनाने वाले नायको के विचारों से अवगत होगे ब्राह्मणवाद वैसे-२ कमजोर होगा, फिर भी यदि इश्वर में आस्था ही है तो मंदिर में केवल इश्वर की आराधना करे, न कि इश्वर के नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे, यदि दान ही देना हो तो किसी गरीब और जरूरतमंद को दे जैसा कि बौद्ध. इस्लाम, सिक्ख या इसाई जैसे मानवतावादी धर्म में कहा गया है
नोट - १ - पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना (http://www.bhaskar.com/article/NAT-rs5-lakh-crore-treasure-belongs-to-lord-vishnu-2242419.html)
२. महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी (http://hindi.webdunia.com/webdunia-city-madhyapradesh-ratlam/1111025025_1.htm) २५ अक्टूबर
लेख रोचक है पर मैं इस बात से असहमत हूँ कि सरस्वती शिशु मंदिर में एक बच्चे को बाल्यावस्था से ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अनुसार शिक्षा दी जाती है । लेख में चार चांद लग जाते यदि आप इस तथाकथित ब्राह्मणवादी व्यवस्था के संबंध में विस्तारपूर्वक बताते । आपको शायद पता न हो कि शिशु मंदिर में कक्षा एक से छ: तथा विद्या मंदिर में सात से मैट्रिक तक की शिक्षा दी जाती है और इन विद्यालयों में शासन की ओर से अधिकृत पुस्तकें ही पढ़ाई जाती है अत: ब्राह्मणवादी व्यवस्था होने जैसी बात कहना सर्वथा अनुचित है । मैं स्वयं इन विद्यालयों में अध्ययन कर चुका हूँ और अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूँ कि ऐसी कोर्इ बात इनमें नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि आपने भी देश के राजनीतिज्ञों की तरह सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही अपने आलेख में इन पंक्तियों को सम्मिलित कर लिया है ।
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