माननीय विश्वनाथ प्रताप सिंह की राजनीतिक प्रतिभा और क्षमता तो अपनी जगह है उनका साहित्य और कलात्मक योगदान बहुत महत्वपूर्ण है अपने चित्रों और कविताओं के माध्यम से उन्होंने बहुत बड़ी बात कही है। अब यह अलग बात है की जो लोग उनसे नाराज हो गए हैं वह उनकी कविताओं और चित्रों से भी नाराज हो गए क्योंकि उनके चित्रों और कविताओं में जो भले उन्हें समझ आए या न आए पर उनमें भी उन्हें सामाजिक न्याय दिखाई देता है। जब भी आप सामाजिक न्याय की बात करेंगे तो देश का एक बहुत समृद्धि तबका ऐसा है जो हर तरह से नाराज हो जाएगा। हालाँकि यह सही है कि आज भी बहुजन समाज में वैज्ञानिक तथ्यों का बहुत अभाव है,. माननीय विश्वनाथ प्रताप सिंह जी जब कांग्रेसछोड़े थे तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए थे उन महत्वपूर्ण कार्यों को सूचीबद्ध किया जाए तो बहुत सारे ऐसे बिंदु जिसे उन्होंने अघोषित रूप से चिन्हित करके उस पर क्रियान्वयन किया था हालांकि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए दस्यु उन्मूलन का जो काम चला था और जिसमें उनके भाई को डकैतों द्वारा मार दिया गया था वह सब ऐसी घटनाएं थी जिसमें उन्हें सामाजिक विद्रूपता नजर आती थी और उसी विद्रूपता को लेकर के उनका एक चित्र जो यहां पर मैं संलग्न कर रहा हूं बहुत ही स्पष्ट तौर पर कई मुद्दों को रेखांकित करता है। चित्र की प्रतीकात्मकता, कविताओं के माध्यम से स्पष्ट तौर पर गद्य की तरह अपनी बात कह देना, जो सहज ही काव्यमयी हो जाती हैं।
एक ऐसा संयोग रहा है कि मैंने उनकी कविताओं को एक कवि सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर जहां पर उनको मुख्य अतिथि बनाया गया था सुनने का अवसर मिला जब उनसे रात्रि रुकने का आग्रह किया जा रहा था तो उन्होंने तपाक से जो उदाहरण दिया था कि यदि अभी चला गया तो सुबह इलाहाबाद में ताजा रहूंगा और सुबह निकला तो इलाहाबाद में बासी हो जाऊंगा बासी और ताजा का मतलब मैं टिप्पणी में लिखूंगा यहां पर मेरा कहने का तात्पर्य है हर बात को वह प्रतीकात्मक तरीके से कहते थे।
एक और घटना मुझे याद आती है जब वह जनमोर्चा बनाए थे तो उसकी एक मीटिंग लखनऊ में 19 विक्रमादित्य मार्ग जो उस समय श्री संजय सिंह जी की कोठी हुआ करती थी उसमें जनमोर्चा के कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग रखी थी। (यह समय उन तमाम पार्टियों से गठबंधन होने का था जो विपक्ष में थी यानी कांग्रेस के खिलाफ सभी दलों का एक गठबंधन बनना था उसी को आगे चलकर जनता दल के नाम से जाना गया) जनमोर्चा के उत्साही कार्यकर्ताओं ने उनसे टिकट की बात की तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा यह लड़ाई सामूहिक लड़ाई होगी और जो गठबंधन के बाद तय होगा हम उसी को अमल करेंगे इसमें जो लोग केवल टिकट के लिए आए हैं मेरा उनसे विनम्र निवेदन है कि वह वहां चले जाएं जहां उनको टिकट मिल रहा हो। अपने कार्यकर्ताओं से इतने स्पष्ट तौर पर कह देने की ताकत भी उन्हीं में थी।
एक और घटना की याद आती है अमेठी में चुनाव हो रहे थे श्री राम सिंह जी जनता दल से लोकसभा के प्रत्याशी थे। राजा साहब को अमेठी लोकसभा के बॉर्डर की एक सभा में मीटिंग में आना था जिस कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी हमारे ऊपर थी उस मीटिंग का मैं संचालन भी कर रहा था और बीच-बीच में राजा साहब से लोगों के संदेश भी दे रहा था।
मंडल कमीशन लागू हो चुका था जनता दल में भी विशेष तरह की अंतर्कलह पैदा हो गई थी। उसी बीच वहां के कुछ स्थानीय संभ्रांत राजपूत उनसे व्यक्तिगत तौर पर मिलना चाह रहे थे जब हमने यह बात उनसे कही तो उन्होंने कहा कि यह कैसे संभव होगा लोगों में गलत संदेश जाएगा, मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि आप इनसे मिल लीजिए यह मीटिंग बहुत गोपनीय तरीके से कराऊंगा, मेरी बात उन्होंने मान ली और वहां के स्थानीय लोगों से वह मिले बातचीत हुई उसका ज़िक्र यहां उचित नहीं है, उसको मैं कहीं और लिखूंगा। जितने भी वहां के स्थानीय राजपूत नाराज थे वह सब राजा साहब की जय जयकार करने लगे। मेरे कहने का मतलब यह है कि उनके पास हर बात का माकूल जवाब हुआ करता था।
वैसे तो उनसे अन्य कई अन्य अनेक अवसरों पर अनौपचारिक मुलाकात हुई और दो बार तो मैंने उनको अपनी पेंटिंग के कैटलाग भी दिया जो उस समय की मेरी प्रदर्शनियों के थे। कुल मिलाकर यह कह सकता हूं कि वह ऐसे राजनीतिज्ञ थे जो इमानदारी और राष्ट्रहित के साथ खड़े थे और यही कारण था कि कांग्रेस को उस दौर में उनकी रणनीति ने परास्त ही नहीं कर दिया था बल्कि अनेक प्रदेशों में ऐसे राजनीतिक भी खडे़ किए जो सोच भी नहीं सकते थे जो आज वह है।
यह वह बातें हैं जो उनके लिए मैंने अपने बहुत करीबी अनुभवों से साझा किया हूं। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि वह सत्य के साथ खड़े रहने वाले ऐसे व्यक्ति थे जो साहित्य संगीत और कलाओं के मर्मज्ञ थे ऐसा व्यक्तित्व जो ईमानदार होता है वह सत्य के साथ होता है सत्य ही सामाजिक न्याय को आगे बढ़ा सकता है।
-डॉ लाल रत्नाकर
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