(सिन्धु घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र एवं बणिक-नवल वियोगी)
उक्त पुस्तक में बहुत ही विस्तार से चर्चा सिन्धुघाटी सभ्यता के विषय में की गयी है जिसके पूरे विस्तार को देखने से जो निष्कर्ष निकला है उसे इसी पुस्तक के उपसंहार से यहाँ उद्धरित किया जा रहा है -
(डॉ.लाल रत्नाकर)
''पूर्व लिखित अध्यायों से यह निष्कर्ष निकलता है कि सिन्धुघाटी सभ्यता मैसोपोटामिया तथा मिस्र कि सभ्यताओं से भी उच्च थी. क्योंकि यहाँ का साधारणजन सुखी व् संपन्न था उसे आधुनिक काल के जैसी जीवन कि सुविधाएँ भी उपलब्ध थीं जैसे नगर योजनाओ के अधीन बने पक्के मकान, भूमिगत जल निकास व्यवस्था, स्नानागार, इंग्लिश प्रकार कि सीट वाले शौचालय आदि . यानि उनका जीवन स्तर बहुत उच्च था, निश्चिन्त था वहां का वातावरण शांतिमय था, वहां न आज कि तरह जाति व्यवस्था थीं न गुलामी का चलन. जबकि अन्य दोनों सभ्यताओं में गुलामों का पशुवत प्रयोग किया जाता था, शिल्पी लोग साधारण कोठरियों में निवास करते थे गुलामों को बैरकों में रखा जाता था.
यह भी सिद्ध किया जा चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के जनक द्रविण थे जिन पर आर्यों ने १७०० ई.पू.के बाद आक्रमण किया और उनकी सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था.आर्य उस समय बर्बर एवं अर्धसभ्य अवस्था में थे न उन्हें शहरी सभ्यता का ज्ञान था न उसके मूल्य का. सिन्धु घाटी सभ्यता का औसत जीवन काल २७०० ई.पू. व् १७०० ई.पू. के मध्य माना जाता है .
उक्त आक्रमण के बाद समाज में दो वर्ग बने थे विजयी लम्बे-तड़ंगे गोरे रंग के सुन्दर आर्य और काले रंग व् छोटे कद के पराजित अनार्य. पराजित अनार्य हिन् भावना से ग्रस्त थे और विजयी आर्य गर्व से युक्त. यही पराजित व् विजयी होने कि भावना वर्ण व् जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का मूल कारण बना. जिस प्रकार आर्यों के दूसरे उपनिवेश फारस में आरुओं में तीन वर्ग थे पुरोहित ,रथकार तथा शिल्पी व् किसान उसी प्रकार भारत में भी उनके तीन वर्ग थे ब्राह्मण क्षत्रिय व् वैश्य . इस प्रकार अब वहां चार वर्ग थे तीन आर्यों के चौथा अनार्य दस्यु तथा दासों का जो बाद में शूद्र कहलाया.
यह भी सिद्ध किया जा चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के जनक द्रविण थे जिन पर आर्यों ने १७०० ई.पू.के बाद आक्रमण किया और उनकी सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था.आर्य उस समय बर्बर एवं अर्धसभ्य अवस्था में थे न उन्हें शहरी सभ्यता का ज्ञान था न उसके मूल्य का. सिन्धु घाटी सभ्यता का औसत जीवन काल २७०० ई.पू. व् १७०० ई.पू. के मध्य माना जाता है .
उक्त आक्रमण के बाद समाज में दो वर्ग बने थे विजयी लम्बे-तड़ंगे गोरे रंग के सुन्दर आर्य और काले रंग व् छोटे कद के पराजित अनार्य. पराजित अनार्य हिन् भावना से ग्रस्त थे और विजयी आर्य गर्व से युक्त. यही पराजित व् विजयी होने कि भावना वर्ण व् जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का मूल कारण बना. जिस प्रकार आर्यों के दूसरे उपनिवेश फारस में आरुओं में तीन वर्ग थे पुरोहित ,रथकार तथा शिल्पी व् किसान उसी प्रकार भारत में भी उनके तीन वर्ग थे ब्राह्मण क्षत्रिय व् वैश्य . इस प्रकार अब वहां चार वर्ग थे तीन आर्यों के चौथा अनार्य दस्यु तथा दासों का जो बाद में शूद्र कहलाया.
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