गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025
ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?
सोमवार, 13 अक्टूबर 2025
2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :
बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :
| प्रमुख आरोप/उल्लेख | विवरण | नामित अधिकारी (उदाहरण) | 
|---|---|---|
| जातिगत भेदभाव और अपमान | SC अधिकारी होने के कारण प्रमोशन रोका, इंक्रीमेंट न दिए, सार्वजनिक अपमान। रोहतक में फर्जी FIR (6 अक्टूबर 2025) में फंसाने की कोशिश। | रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया (जातिवाद, फर्जी FIR का आरोप); पूर्व DGP मनोज यादव (2020 में थाने में पूजा पर विवाद)। | 
| मानसिक उत्पीड़न और नोटिस | बार-बार अनावश्यक नोटिस, सरकारी आवास/वाहन छीनना, गलत हलफनामा। नवंबर 2023 में आधिकारिक वाहन जब्त। | DGP शत्रुजीत सिंह कपूर (नोटिस भेजकर परेशान, आवास विवाद); 1991-2005 बैच के 7-8 IPS (अवैध प्रमोशन का आरोप)। | 
| प्रशासनिक हस्तक्षेप | कम महत्वपूर्ण पदों पर रखा (जैसे सनौरी जेल प्रमुख, हालिया ट्रांसफर 9 दिन पहले)। भ्रष्टाचार के झूठे केस (रिश्वत लेने का आरोप, जो उनके गनमैन ने कबूल किया)। | 2 IAS अधिकारी (नाम अस्पष्ट, लेकिन पोस्टिंग में दखल); कुल 12-16 नाम (11 सक्रिय पदों पर)। | 
| सकारात्मक उल्लेख | केवल एक अधिकारी को "सच्चा समर्थन" देने के लिए सराहा। | राजेश खुल्लर (रिटायर्ड IAS, CM के मुख्य प्रधान सचिव; दो मुलाकातों में मदद)। | 
| व्यक्तिगत दर्द | "अब कोई ऑप्शन नहीं बचा... पिछले 5 साल से उत्पीड़न। परिवार की सुरक्षा चिंतित। ईश्वर से प्रार्थना: मेरे प्रति शत्रुता समाप्त हो।" | - | 
- वसीयत का हिस्सा: अंतिम पेज में सभी संपत्ति (घर, वाहन, बैंक बैलेंस, निवेश) पत्नी अमनीत को हस्तांतरित। बेटियों (दो) का उल्लेख नहीं, जिससे कानूनी विवाद की आशंका।
 
- अन्य: नोट में पत्राचार के रिकॉर्ड (सरकारी ईमेल/लेटर्स) का जिक्र। उन्होंने कहा कि वे "सिस्टेमेटिक ह्यूमिलिएशन" झेल रहे थे, और SC/ST आयोग तक शिकायत की थी।
 
- FIR: चंडीगढ़ पुलिस ने IPC धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), SC/ST एक्ट धारा 3(1)(r) व 3(5) के तहत केस दर्ज। SIT (6 सदस्यीय) गठित, CFSL टीम ने फोरेंसिक जांच की। पत्नी ने DGP कपूर और SP बिजरनिया के खिलाफ FIR की मांग की।
 
- परिवार: अमनीत ने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखा, "षड्यंत्र" बताया। बेटी अमेरिका से लौटी। रसोइए ने बताया: सुसाइड से पहले पूरन ने 15 बार पत्नी को कॉल किया (उठाया नहीं), और "डिस्टर्ब मत करना" कहा।
 
- सरकारी कदम: रोहतक SP बदला गया। NCSC ने नोटिस जारी। पोस्टमॉर्टम 9 अक्टूबर को वीडियोग्राफी के साथ हुआ।
 
- विवाद: नोट ने हरियाणा पुलिस में जातिवाद/भ्रष्टाचार उजागर किया। X पर वायरल वीडियो (रिश्वत केस) से बहस। BJP सरकार ने "व्यक्तिगत कारण" बताया, लेकिन विपक्ष ने सिस्टम की नाकामी पर सवाल उठाए।
 
मंगलवार, 30 सितंबर 2025
इतिहास की संरचना को समझने के लिए प्रमुख कारक
1 आर्थिक कारक:
	◦	उत्पादन के साधन, व्यापार, और आर्थिक प्रणालियाँ (जैसे, सामंतवाद, पूँजीवाद, समाजवाद)।
◦ संसाधनों की उपलब्धता और वितरण।
◦ तकनीकी प्रगति, जैसे औद्योगिक क्रांति, जिसने सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को बदला।
2 सामाजिक कारक:
◦ वर्ग संरचना, सामाजिक असमानता, और सामाजिक गतिशीलता।
◦ परिवार, धर्म, और सामाजिक रीति-रिवाजों की भूमिका।
◦ शिक्षा और साक्षरता का स्तर, जो सामाजिक जागरूकता और परिवर्तन को प्रभावित करता है।
3 राजनीतिक कारक:
◦ शासन प्रणालियाँ (राजतंत्र, लोकतंत्र, तानाशाही) और सत्ता का वितरण।
◦ युद्ध, क्रांतियाँ, और स्वतंत्रता आंदोलन।
◦ कानून और नीतियाँ जो सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं।
4 सांस्कृतिक कारक:
◦ कला, साहित्य, दर्शन, और धर्म का प्रभाव।
◦ सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वैश्वीकरण।
◦ परंपराएँ और मूल्य जो समाज के व्यवहार को आकार देते हैं।
5 पर्यावरणीय कारक:
◦ प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और जलवायु परिवर्तन।
◦ प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़, सूखा) जो सामाजिक और आर्थिक ढांचे को प्रभावित करती हैं।
◦ मानव और पर्यावरण के बीच अंतर्क्रिया, जैसे कृषि और शहरीकरण।
6 वैज्ञानिक और तकनीकी कारक:
◦ आविष्कार और नवाचार, जैसे प्रिंटिंग प्रेस, भाप इंजन, या इंटरनेट।
◦ चिकित्सा और विज्ञान में प्रगति, जिसने जीवन प्रत्याशा और जनसंख्या को प्रभावित किया।
7 वैचारिक और दार्शनिक कारक:
◦ विचारधाराएँ जैसे राष्ट्रवाद, साम्यवाद, उदारवाद।
◦ बौद्धिक आंदोलन, जैसे पुनर्जागरण या प्रबोधन, जो सामाजिक सोच को बदलते हैं।
8 भौगोलिक कारक:
◦ भौगोलिक स्थिति, जैसे नदियों, पहाड़ों, या समुद्रों की निकटता, जो व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रभावित करती है।
◦ जलवायु और मिट्टी की उर्वरता, जो कृषि और बस्तियों को प्रभावित करती है।
इन कारकों का परस्पर प्रभाव और संयोजन इतिहास की गतिशीलता को निर्धारित करता है। प्रत्येक कारक समय और स्थान के संदर्भ में भिन्न प्रभाव डालता है, जिससे इतिहास की जटिल संरचना बनती है।
1 नदियों और जलस्रोतों का प्रभाव:
◦ प्राचीन सभ्यताएँ, जैसे मेसोपोटामिया (टाइग्रिस-यूफ्रेट्स), मिस्र (नील नदी), हड़प्पा (सिंधु नदी), और चीन (ह्वांगहो) नदियों के किनारे विकसित हुईं क्योंकि ये जलस्रोत कृषि, व्यापार और परिवहन के लिए अनुकूल थे।
◦ उदाहरण: नील नदी की नियमित बाढ़ ने मिस्र में स्थिर कृषि को बढ़ावा दिया, जिससे वहाँ एक समृद्ध सभ्यता का विकास हुआ।
2 जलवायु और मिट्टी की उर्वरता:
◦ उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु ने कृषि-आधारित समाजों को बढ़ावा दिया। उदाहरण के लिए, गंगा के मैदानों की उर्वरता ने प्राचीन भारत में समृद्ध सभ्यताओं और साम्राज्यों को जन्म दिया।
◦ प्रतिकूल जलवायु, जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में, ने खानाबदोश जीवनशैली को प्रोत्साहित किया, जैसे मध्य एशिया के मंगोल।
3 पहाड़ और प्राकृतिक अवरोध:
◦ पहाड़ों और प्राकृतिक अवरोधों ने समाजों को बाहरी आक्रमणों से बचाया और सांस्कृतिक विशिष्टता को बनाए रखा। उदाहरण: हिमालय ने भारतीय उपमहाद्वीप को उत्तरी आक्रमणों से आंशिक रूप से सुरक्षित रखा।
◦ लेकिन ये अवरोध व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी सीमित कर सकते थे।
4 समुद्री तट और व्यापार:
◦ समुद्र तटीय क्षेत्रों ने व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। प्राचीन ग्रीस और फोनीशिया जैसे समुद्री तटों पर बसे समाज नौवहन और व्यापार में अग्रणी रहे।
◦ मध्यकाल में यूरोप के समुद्री देशों (पुर्तगाल, स्पेन) ने समुद्री मार्गों के माध्यम से उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।
5 प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता:
◦ खनिज, लकड़ी, और अन्य संसाधनों की उपलब्धता ने औद्योगिक और आर्थिक विकास को प्रभावित किया। उदाहरण: ब्रिटेन में कोयले और लोहे की प्रचुरता ने औद्योगिक क्रांति को गति दी।
◦ संसाधनों की कमी ने कुछ क्षेत्रों में युद्ध और संघर्ष को जन्म दिया।
6 प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव:
◦ भूकंप, बाढ़, और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाएँ सभ्यताओं के पतन का कारण बनीं। उदाहरण: मिनोअन सभ्यता का पतन संभवतः ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ा था।
◦ सूखा और जलवायु परिवर्तन ने कई प्राचीन सभ्यताओं, जैसे माया सभ्यता, को कमजोर किया।
7 भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्व:
◦ रणनीतिक भौगोलिक स्थिति वाले क्षेत्र, जैसे कांस्टेंटिनोपल, व्यापार और सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहे। यह शहर यूरोप और एशिया के बीच एक सेतु था।
◦ भौगोलिक स्थिति ने साम्राज्यों के विस्तार और युद्धों को प्रभावित किया, जैसे मंगोल साम्राज्य का मध्य एशिया की विशाल घासभूमियों पर विस्तार।
8 सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव:
◦ भौगोलिक कारकों ने भाषा, धर्म, और जीवनशैली को आकार दिया। उदाहरण: तिब्बत की ऊँची पठारी स्थिति ने वहाँ की अनूठी बौद्ध संस्कृति को प्रभावित किया।
◦ अलग-थलग क्षेत्रों, जैसे द्वीपों (जापान), ने विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा।
निष्कर्ष: भौगोलिक कारक इतिहास को केवल पृष्ठभूमि प्रदान नहीं करते, बल्कि वे मानव समाजों के विकास, उनके संघर्षों, और उपलब्धियों को सक्रिय रूप से आकार देते हैं। ये कारक अन्य कारकों (आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक) के साथ मिलकर इतिहास की जटिल तस्वीर बनाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत की भौगोलिक विविधता (हिमालय, गंगा मैदान, तटीय क्षेत्र) ने इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि को बढ़ाया।
शनिवार, 13 सितंबर 2025
टीवी डिबेट के कोलाहल में संभावनाओं से भरी दो आवाजें
लेंस संपादकीय
टीवी डिबेट के कोलाहल में संभावनाओं से भरी दो आवाजें
Editorial Board, Kanchana Yadav and Priyanka Bharti
मंगलवार, 29 अप्रैल 2025
बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन : एक विश्लेषण - पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध विहारों का विनाश : एक ऐतिहासिक विश्लेषण
बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन: एक विश्लेषण
शनिवार, 12 अप्रैल 2025
अस्पृश्यता उसका स्रोत ; बाबा साहेब डा. अम्बेडकर संपूर्ण वाड्मय
अस्पृश्यता-उसका स्रोत
ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पृश्यों की दयनीय स्थिति से दुखी हो यह चिल्लाकर अपना जी हल्का करते फिरते हैं कि हमें अस्पृश्यों के लिए कुछ करना चाहिए।' लेकिन इस समस्या को जो लोग हल करना चाहते हैं, उनमें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो यह कहता हो कि 'हमें स्पृश्य हिंदुओं को बदलने के लिए भी कुछ करना चाहिए। यह धारणा बनी हुई है कि अगर किसी का सुधार होना है तो वह अस्पृश्यों का ही होना है। अगर कुछ किया जाना है तो वह अस्पृश्यों के प्रति किया जाना है और अगर अस्पृश्यों को सुधार दिया जाए, तब अस्पृश्यता की भावना मिट जाएगी। सवर्णों के बारे में कुछ भी नहीं किया जाना है। उनकी भावनाएं, आचार-विचार और आदर्श उच्च हैं। वे पूर्ण हैं, उनमें कहीं भी कोई खोट नहीं है। क्या यह धारणा उचित है? यह धारणा उचित हो या अनुचित, लेकिन हिंदू इसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहते? उन्हें इस धारणा का सबसे बड़ा लाभयह है कि वे इस बात से आश्वस्त हैं कि वे अस्पृश्यों की समस्या के लिए बिल्कुल भी उत्तरदायी नहीं हैं।
यह मनोवृत्ति कितनी स्वभाव अनुरूप है, इसे यहूदियों के प्रति ईसाइयों की मनोवृत्ति का उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है। हिंदुओं की तरह ईसाई भी यह नहीं मानते कि यहूदियों की समस्या असल में ईसाइयों की समस्या है। इस विषय पर लुइस गोल्डिंग की टिप्पणी इस स्थिति को और अधिक स्पष्ट करती है। यहूदियों की समस्या असलियत में किस तरह ईसाइयों की समस्या है, इसे बताते हुए वह कहते हैं :
"जिस अर्थ में मैं यहूदियों की समस्या को असलियत में ईसाई समस्या समझता हूं, उसको स्पष्ट करने के लिए बहुत ही सीधी-सी मिसाल देता हूं। मेरे ध्यान में मिश्रित जाति का एक आयरिश शिकारी कुत्ता आ रहा है। इसे मैं बहुत दिनों से देखता आया हूं। यह मेरे दोस्त जॉन स्मिथ का कुत्ता है, नाम है पैडी। वह इसे बेहद प्यार करते हैं। पैडी को स्कॉच शिकारी कुत्ते नापसंद हैं। इस जाति का कोई कुत्ता उसके आस-पास बीस गज दूर से भी नहीं निकल सकता और कोई दिख भी जाता है तो वह भूक-भूककर आसमान सिर पर उठा लेता है। उसकी यह बात जॉन स्मिथ को बेहद बुरी लगती है और वह उसे चुप करने का हर संभव प्रयत्न भी करते हैं. क्योंकि पैडी जिन कत्तों से नफरत करता है. वे बेचारे चुपचाप रहते हैं और कभी भी पहले नहीं भुंकते। मेरा दोस्त. हालांकि पैडी को बहुत प्यार करता है, तो भी वह यह सोचता है. और जैसा कि मैं भी सोचता हूं, कि पैडी की यह आदत बहुत कुछ उसके किसी जाति-विशेष होने पर उसके स्वभाव के कारण है। हमसे किसी ने यह नहीं कहा कि यहां जो समस्या है, वह स्कॉच शिकारी कुत्ते की समस्या है और जब पैडी अपने पास के किसी कुत्ते पर झपटता है जो बेचारा टट्टी-पेशाब वगैरह के लिए जमीन सूंघ-सांघ रहा होता है, तब उस कुत्ते को क्या इसलिए मारना-पीटना चाहिए कि वह वहां अपने अस्तित्व के कारण पैडी को हमला करने के लिए उकसा देता है।
हम देखते हैं कि यहूदी समस्या और अस्पृश्यों की समस्या एक जैसी है। स्कॉच शिकारी कुत्ते के लिए जैसा पैडी है, यहूदियों के लिए वैसा कोई ईसाई है और वैसा ही अस्पृश्यों के लिए कोई हिंदू है। किंतु एक बात में यहूदियों की समस्या और ईसाई समस्या एक-दूसरे की विरोधी है। यहूदी स और ईसाई अपनी प्रजाति के एक-दूसरे के शत्रु होने के कारण एक-दूसरे से अलग कर दिए गए हैं। यहूदी प्रजाति ईसाई प्रजाति के विरुद्ध है। हिंदू और अस्पृश्य इस प्रकार की शत्रुता के कारण एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। उनकी एक ही प्रजाति है और उनके एक जैसे रीति-रिवाज हैं।
दूसरी बात यह है कि यहूदी, ईसाइयों से अलग-अलग रहना चाहते हैं। इन दो तथ्यों में से पहले तथ्य अर्थात यहूदियों और ईसाइयों में वैर-भाव का आधार यहूदियों की अपनी प्रजाति के प्रति कट्टर भावना है और दूसरा तथ्य ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित लगता है। प्राचीन काल में ईसाइयों ने यहूदियों को अपने साथ मिलाने के कई प्रयत्न किए, लेकिन यहदियों ने इसका सदा प्रतिरोध किया। इस संबंध में दो घटनाएं उल्लेखनीय हैं पहली घटना नेपोलियन के शासन काल की है। जब फ्रांस की राष्ट्रीय असेम्बली इस बात के लिए सहमत हो गई कि यहूदियों के लिए 'मानव के अधिकार घोषित किए जाएं, तब अलसाके के व्यापारी संघ और प्रतिक्रियावादी पुरोहितों ने यहूदी प्रश्न को फिर उठाया। इस पर नेपोलियन ने इस प्रश्न को यहूदियों को उनके द्वारा ही विचार करने के लिए सौंपने का निर्णय किया। उसने फ्रांस, जर्मनी और इटली के प्रमुख यहूदी नेताओं का एक सम्मेलन बुलाया ताकि इस बात पर विचार किया जा सके कि क्या यहूदी धर्म के सिद्धांत, नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्तों के अनुरूप हैं अथवा नहीं। नेपोलियन यहूदियों को बहुसंख्यकों के साथ मिला देना चाहता था। इस सम्मेलन में एक सौ ग्यारह प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह सम्मेलन 25 जुलाई 1806 को पेरिस के टाउन हाल में हुआ, जिसमें बारह प्रश्न विचारार्थ रखे गए थे। ये प्रश्न मुख्य रूप से यहूदियों में देश-भक्ति की भावना, यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच विवाह होने की संभावना और इसकी कानूनी मान्यता से संबंधित थे। सम्मेलन में जो घोषणा की गई, उससे नेपोलियन इतना प्रसन्न हुआ कि उसने येरूस्लम की प्राचीन परिषद् के आधार पर यहूदियों की एक सर्वोच्च न्याय परिषद् (सैनहेड्रिन) का आयोजन किया। उसने इसे विधान सभा का कानूनी दर्जा देना चाहा। इसमें फ्रांस, जर्मनी, हालैंड और इटली के इकहत्तर प्रतिनिधि शामिल हुए। इसकी अध्यक्षता स्ट्रासबर्ग के रब्बी सिनजेइम ने की। इसकी बैठक 9 फरवरी 1807 को हुई और इसमें एक घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया, जिसमें इस बात के लिए सभी यहूदियों का आवाह्न किया गया कि वे फ्रांस को अपने पूर्वजों का निवास स्थान मान लें, इस देश के सभी निवासियों को अपना भाई समझें और यहां की भाषा बोलें। इसमें यहूदियों और ईसाइयों के बीच विवाह-संबंध उदार भाव से ग्रहण करने का भी अनुरोध किया गया, लेकिन इस घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया कि ये विवाह-संबंध यहूदियों की धार्मिक महासभा द्वारा नहीं स्वीकृत किए जा सके। यहां यह उल्लेखनीय है कि यहूदियों ने अपने और गैर-यहूदियों के साथ विवाह-संबंध होने की स्वीकृति नहीं दी। उन्होंने इन संबंधों के विरुद्ध कुछ भी कार्रवाई न करने के बारे में सहमति मात्र दी थी।
दूसरी घटना तब की है, जब बटाविया गणराज्य की स्थापना 1795 में हुई थी। इसमें यहूदी संप्रदाय के अति-उत्साही सदस्यों ने इस बात पर दबाव डाला कि उन ढेर सारे प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए, जिनसे यहूदी पीड़ित हैं। किंतु प्रगतिशील यहूदियों ने नागरिकता के पूर्ण अधिकार की जो मांग की थी, उसका एम्सटर्डम में रहने वाले यहूदियों के नेताओं ने पहले तो विरोध किया जो काफी आश्चर्य की बात थी। उनको आशंका थी कि नागरिक समानता होने से यहूदी धर्म की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी, और उन्होंने घोषणा की कि उनके सहधर्मी अपने नागरिक होने के अधिकार का परित्याग करते हैं, क्योंकि इससे उनके धर्म के निर्देशों के अनुपालन में बाधा पहुंचती है। इससे स्पष्ट है कि वहां के यहूदियों ने उस गणराज्य के सामान्य नागरिक के रूप में रहने की अपेक्षा विदेशी के रूप में रहना अधिक पसंद किया था।
ईसाइयों के स्पष्टीकरण का चाहे जो भी अर्थ समझा जाए, इतना तो स्पष्ट है कि उन्हें कम से कम इस बात का तो एहसास रहा है कि उनका यह प्रमाणित करना एक दायित्व है कि यहूदियों के प्रति उनका व्यवहार गैर-मानवीय नहीं रहा है। परंतु हिंदुओं ने अस्पृश्यों के साथ अपने व्यवहार के औचित्य को प्रमाणित करने की बात तो कभी सोची ही नहीं। हिंदुओं का दायित्व तो बहुत बड़ा है, क्योंकि उनके पास कोई वास्तविक कारण है ही नहीं, जिसके अनुसार वे अस्पृश्यता को उचित ठहरा सकें। वे यह नहीं कह सकते कि कोई व्यक्ति समाज में इसलिए अस्पृश्य है, क्योंकि वह कोढ़ी है या वह घिनौना लगता है। वे यह भी नहीं कह सकते कि उनके और अस्पृश्यों के बीच में कोई धार्मिक वैर है, जिसकी खाई को पाटा नहीं जा सकता। वे यह तर्क भी नहीं दे सकते कि अस्पृश्य स्वयं हिंदुओं में घुलना-मिलना नहीं चाहते।लेकिन अस्पृश्यों के संबंध में ऐसी बात नहीं है। वे अर्थ में अनादि हैं और शेष से विभक्त हैं। लेकिन यह पृथकता, उनका पृथग्वास उनकी इच्छा का परिणाम नहीं है। उनको इसलिए दंडित नहीं किया जाता कि वे घुलना-मिलना नहीं चाहते। उन्हें इसलिए दंडित किया जाता है कि वे हिंदुओं में घुल-मिल जाना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि हालांकि यहूदियों और अस्पृश्यों की समस्या एक जैसी है क्योंकि यह समस्या दूसरों की पैदा की हुई है, तो भी वह मूलतः भिन्न है। यहूदी की समस्या स्वेच्छा से अलग रहने की है। अस्पृश्यों की समस्या यह है कि उन्हें अनिवार्य रूप से अलग कर दिया गया है। अस्पृश्यता एक मजबूरी है, पसंद नहीं।
सोमवार, 10 मार्च 2025
डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद : 10 ;03 ;2025
डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद :
बाजार में एक जन्तु है, जो है तो पीला लेकिन खुद को लाल बताता है। जो है तो कंकर, लेकिन खुद को रत्नाकर बताता है।
रत्नाकर ; हा हा हा हा हा हा......... वाह कला के भी विशेषज्ञ निकले। डर यही था की ज्यादा चलने में, बोलने में, लिखने में, फोटो खींचाने में कहीं सच न उजागर हो जाए।
अज : खुद को लाल रत्न कहने से कोई कलाकार नहीं बना। स्वयंभु कहते हैं।
रत्नाकर ;मेरा नाम है भाई है। अब आपका नाम का क्या बखान करूं। कहीं उस व्यक्तित्व का अपमान ना हो जाए जिसने यह नारा दिया होगा।
जयहिंद।।
अज : अमीर के चक्कर काट कर कुछ न प्राप्त होगा।
रत्नाकर ; अमीर और गरीब का संबंध हजारों साल का है कृष्ण को ही देखीए ना सुदामा की कितनी मदद किया।
अज : गरीब की सेवा करें।
रत्नाकर ; आपसे बड़ा तो कोई नजर नहीं आ रहा है। हो सके तो खुद भी कुछ करें।
अज :अमीर के चक्कर काट कर कुछ न प्राप्त होगा।
रत्नाकर ; अमीर और गरीब का संबंध हजारों साल का है कृष्ण को ही देखीए ना सुदामा की कितनी मदद किया।
ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?
(सत्य हिंदी से साभार पंकज श्रीवास्तव का आलेख) ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध? विश्लेषण पंकज श्रीवास्तव ज़ोहो ईमेल या सरकारी ...
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बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन: एक विश्लेषण - डॉ ओम शंकर (वरिष्ठ ह्रदय रोग विशेषज्ञ हैं जो BHU में पोस्टेड है) भारत में बौद्ध ...
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जातिवादी वर्चस्व के आगे संसद की भी नहीं चलती! by Dilip Mandal on 26 नवंबर 2010 को 11:34 बजे (26 नवंबर, 2010 को जनसत्ता के संपादकीय प...
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सामजिक न्याय के लिए संघर्ष ; https://www.facebook.com/AnupriyaPatelMLA "हमें खाद्य सुरक्षा कानून और लैप-टॉप नहीं चाहिये। देना ...
 











