गुरुवार, 6 नवंबर 2025

बहुजन समाज की फूट ही उसके विनाश का महत्वपूर्ण कारण है लेकिन उसका निदान क्या है

बहुजन समाज की फूट ही उसके विनाश का महत्वपूर्ण कारण है लेकिन उसका निदान क्या है ?
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बहुजन समाज की फूट वाकई उसके राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पतन का एक प्रमुख कारण रही है, जैसा कि कई विचारक और नेता जैसे डॉ. बी.आर. आंबेडकर, जोतीराव फुले और कांशीराम ने बार-बार चेतावनी दी है। यह फूट जातीय अभिमान, आर्थिक हितों के टकराव, सांस्कृतिक मतभेदों और बाहरी शक्तियों (जैसे ब्राह्मणवाद या राजनीतिक साजिशों) से उपजती है। लेकिन इसका निदान संभव है, और विभिन्न स्रोतों से निकले सुझावों के आधार पर मैं कुछ प्रमुख उपाय बता रहा हूं। ये उपाय विचारकों, आंदोलनों और समकालीन चर्चाओं से लिए गए हैं, जो एकता को मजबूत करने पर जोर देते हैं।

### 1. **शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना**
   - बहुजन समाज की एकता की नींव शिक्षा में है। डॉ. आंबेडकर का मंत्र "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" इसी दिशा में इशारा करता है। समाज के सदस्यों को अपनी साझा इतिहास, संघर्ष और विचारधारा (जैसे फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन) के बारे में जागरूक बनाना जरूरी है। इससे जातीय अभिमान कम होगा और साझा पहचान बनेगी।
   - उदाहरण: सामाजिक संगठनों और अभियानों के माध्यम से लोगों को यह समझाना कि बुद्ध, फुले, आंबेडकर और पेरियार जैसे महापुरुषों को अलग-अलग जातीय खांचों में न बांटें, बल्कि उन्हें मानववादी आधार पर एकीकृत करें। इससे सांस्कृतिक विविधता का सम्मान बढ़ेगा और फूट कम होगी।

### 2. **सांस्कृतिक सम्मान और विकल्प प्रदान करना**
   - फूट का एक बड़ा कारण सांस्कृतिक मतभेद हैं, जैसे त्योहारों (दीपावली, छठ) पर विवाद या परंपराओं का मजाक उड़ाना। उपाय है कि एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करें और ब्राह्मणवादी तत्वों को हटाकर बहुजनीकरण करें – जैसे दशहरा को अशोक विजयादशमी बनाना या त्योहारों में आंबेडकर की तस्वीर शामिल करना।
   - धार्मिक स्वतंत्रता का आदर करें, लेकिन घृणा त्यागकर प्रेम, मैत्री और करुणा पर आधारित समाज बनाएं। उत्तर भारत में पेरियार मॉडल की तरह गैर-ब्राह्मण जातियों को एकत्रित करने के प्रयास करें। इससे समाज में वैचारिक एकता आएगी।

### 3. **राजनीतिक और वर्गीय एकता पर जोर**
   - जाति-आधारित राजनीति के बजाय मुद्दा-आधारित वर्गीय एकता अपनाएं। बहुजन अवधारणा (दलित, पिछड़े, मुसलमान) आकर्षक है, लेकिन इसमें आर्थिक टकराव (जैसे दलित मजदूरों और संपन्न पिछड़ों के बीच) को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन पर आधारित एकता बनाएं, जैसा आंबेडकर ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से किया।
   - सुझाव: अलग-अलग आरक्षण कोटे (जैसे अति-पिछड़ों के लिए), पदोन्नति में आरक्षण, निजी क्षेत्र में आरक्षण, और रोजगार को मौलिक अधिकार बनाना। राजनीतिक पार्टियां जैसे बसपा या आईपीएफ इस दिशा में अभियान चला रही हैं, जहां जाति/धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि साझा मुद्दों पर एकजुट हों।

### 4. **संगठन और संघर्ष की रणनीति**
   - समाज को इकट्ठा रहने, एक-दूसरे की समस्याओं को समझने और मिल-जुलकर रहने की सलाह दें। बहुजन नेता जैसे मायावती कहती हैं कि सत्ता की "मास्टर चाबी" हासिल करना ही अच्छे दिनों का रास्ता है, जो एकता से ही संभव है। फूट को रोकने के लिए बाहरी साजिशों (जैसे वोट बांटने की कोशिशें) का मुकाबला करें।
   - सामाजिक संगठनों को मजबूत बनाएं: समय-समय पर महापुरुषों ने कहा है कि आपस में मिलें, समस्याओं को साझा करें। अभियान जैसे रोजगार एवं सामाजिक अधिकार अभियान चलाकर एकता बढ़ाएं।

### 5. **व्यावहारिक कदम और चुनौतियां**
   - सोशल मीडिया और समुदाय स्तर पर चर्चा बढ़ाएं, लेकिन विवादों से बचें। एकता अस्थायी न हो, बल्कि स्थायी हो – जैसे शूद्र एकता मंच की तरह शिक्षा, नौकरी और व्यवसाय पर फोकस करें।
   - चुनौती: हिंदुत्व या अन्य ताकतें फूट डालती हैं, इसलिए बहुजन को सतर्क रहना चाहिए। लेकिन अगर एकजुट हों, तो कोई नहीं हरा सकता, जैसा कई सामाजिक पोस्ट में कहा गया है।

ये उपाय अमल में लाने से बहुजन समाज न केवल फूट से बच सकता है, बल्कि अपनी ताकत को पहचानकर सशक्त बन सकता है। यह प्रक्रिया लंबी है, लेकिन निरंतर प्रयास से संभव है। 





पेरियार का द्रविड़ आंदोलन: एक परिचय

ई.वी. रामासामी नायकर, जिन्हें दुनिया 'पेरियार' (महान व्यक्ति) के नाम से जानती है, द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार थे। उनका जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के एरोड में एक कन्नड़ बालिजा परिवार में हुआ था। पेरियार ने ब्राह्मणवाद, जातिवाद, धार्मिक अंधविश्वास और उत्तर भारतीय सांस्कृतिक वर्चस्व के खिलाफ एक क्रांतिकारी संघर्ष छेड़ा, जो द्रविड़ (दक्षिण भारतीय गैर-ब्राह्मण) पहचान को मजबूत करने पर केंद्रित था। द्रविड़ आंदोलन, जो 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत में उभरा, मुख्य रूप से तमिलनाडु तक सीमित रहा, लेकिन इसने दक्षिण भारत की राजनीति, समाज और संस्कृति को हमेशा के लिए बदल दिया। पेरियार की विचारधारा तर्कवाद, स्वाभिमान और समानता पर आधारित थी, जिसने गैर-ब्राह्मणों को सशक्त बनाया।

### द्रविड़ आंदोलन की उत्पत्ति और विकास

द्रविड़ आंदोलन की जड़ें 19वीं सदी के अंत में मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि) में ब्राह्मणों के सरकारी नौकरियों और शिक्षा में वर्चस्व से उपजी असंतोष में हैं। ब्राह्मण, जो कुल आबादी का मात्र 3% थे, 70% से अधिक उच्च पदों पर काबिज थे। यह असमानता एनी बेसेंट की होम रूल मूवमेंट और कांग्रेस के ब्राह्मण-प्रधान चरित्र से और गहरी हुई।

- **न्याय पार्टी का गठन (1916)**: आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 20 नवंबर 1916 को मद्रास के विक्टोरिया हॉल में सी. नटेसा मुदलियार, टी.एम. नायर और पी. थियागराज चेट्टी द्वारा न्याय पार्टी (जस्टिस पार्टी) के रूप में हुई। यह गैर-ब्राह्मण हितों की रक्षा के लिए बनी, जो 1920 के दशक में गैर-ब्राह्मण आरक्षण की मांग उठाई। लेकिन 1936 में इसका पतन हो गया।
  
- **पेरियार का प्रवेश (1920-30 के दशक)**: पेरियार 1919 में कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन 1925 में ब्राह्मण वर्चस्व के कारण छोड़ दिया। उन्होंने वैकोम सत्याग्रह (1924-25) का नेतृत्व किया, जहां दलितों को मंदिर मार्ग पर चलने का अधिकार दिलाया गया। 1925 में ही उन्होंने **स्वाभिमान आंदोलन (सेल्फ-रिस्पेक्ट मूवमेंट)** शुरू किया, जो द्रविड़ आंदोलन का वैचारिक आधार बना। यह आंदोलन जाति-आधारित अपमान को मिटाने, अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने और महिलाओं के अधिकारों (जैसे विधवा पुनर्विवाह, दहेज-विरोध) पर केंद्रित था।

- **द्रविड़ कढ़गम (DK) की स्थापना (1944)**: पेरियार ने न्याय पार्टी को राजनीतिक संगठन से सामाजिक संगठन में बदल दिया और द्रविड़ कढ़गम (ड्राविड़र कझगम) बनाया। यहां उन्होंने 'कोई भगवान नहीं, कोई धर्म नहीं, कोई गांधी नहीं, कोई कांग्रेस नहीं, कोई ब्राह्मण नहीं' का नारा दिया। 1940 के दशक में उन्होंने स्वतंत्र 'द्रविड़ नाडु' (तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम भाषी राज्यों का संघ) की मांग की, लेकिन यह अन्य द्रविड़ राज्यों में समर्थन न पाकर तमिलनाडु तक सीमित रही।

- **विभाजन और राजनीतिकरण (1949)**: 1949 में सी.एन. अन्नादुराई ने पेरियार से मतभेद (विशेषकर अलगाववाद पर) के कारण द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (DMK) बनाया। पेरियार DK को गैर-राजनीतिक रखना चाहते थे, जबकि DMK ने चुनावी राजनीति अपनाई। 1967 में DMK ने तमिलनाडु में सत्ता हासिल की, जो द्रविड़ आंदोलन की जीत थी। बाद में AIADMK (एम.जी. रामचंद्रन द्वारा 1972 में) जैसे दल बने।

### पेरियार की प्रमुख विचारधारा

पेरियार की विचारधारा ब्राह्मणवाद को द्रविड़ों के शोषण का मूल कारण मानती थी। वे हिंदू धर्म को 'आर्य आक्रमण' का प्रतीक मानते थे, जहां ब्राह्मणों ने द्रविड़ों को गुलाम बनाया। मुख्य बिंदु:

- **एंटी-कास्ट और एंटी-ब्राह्मण**: जाति को ब्राह्मणों की साजिश बताया, और 'ब्राह्मणों को भगाओ' जैसे नारों से संघर्ष किया। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्राह्मण व्यक्तियों का विरोध नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद का है।
  
- **तर्कवाद और नास्तिकता**: धर्म को अंधविश्वास का स्रोत माना, और रामायण-महाभारत जैसे ग्रंथों को जलाने जैसे प्रतीकात्मक कदम उठाए। वे तमिल साहित्य (जैसे तिरुक्कुरल) को श्रेष्ठ मानते थे।
  
- **महिला सशक्तिकरण**: महिलाओं को संपत्ति अधिकार, जन्म नियंत्रण और स्वतंत्रता का हकदार बताया। स्वाभिमान विवाह (बिना पुजारी के) शुरू किए।
  
- **भाषाई और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद**: हिंदी थोपने के खिलाफ 1937-38 और 1960 के दशक में आंदोलन चलाए, तमिल को 'द्रविड़ों का मंदिर' कहा।

### तमिलनाडु की राजनीति और समाज पर प्रभाव

द्रविड़ आंदोलन ने तमिलनाडु को ब्राह्मण-प्रधान से गैर-ब्राह्मण-प्रधान राज्य बनाया। DMK-AIADMK ने 1967 से लगातार सत्ता संभाली, आरक्षण (69% पिछड़ों के लिए), मुफ्त शिक्षा-स्वास्थ्य और तमिल प्राथमिकता लागू की। सामाजिक रूप से, अस्पृश्यता घटी, दलित पुजारी बने, और 'समता पुरम' (समानता गांव) जैसे योजनाएं चलीं। लेकिन आलोचना भी है: आंदोलन ने मध्यवर्ती जातियों (जैसे वेल्लाला, नायडू) को मजबूत किया, जबकि दलितों को पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं मिला। पेरियार की विरासत 2025 में शताब्दी वर्ष के रूप में मनाई जा रही है, जो सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

| प्रमुख संगठन | स्थापना | मुख्य योगदान |
|--------------|--------|--------------|
| न्याय पार्टी | 1916 | गैर-ब्राह्मण आरक्षण की शुरुआत |
| स्वाभिमान आंदोलन | 1925 | जाति-विरोधी विवाह और तर्कवाद |
| द्रविड़ कढ़गम (DK) | 1944 | सामाजिक सुधार, अलगाववाद |
| द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (DMK) | 1949 | चुनावी राजनीति, तमिल राष्ट्रवाद |

पेरियार का आंदोलन न केवल दक्षिण भारत का, बल्कि पूरे भारत के बहुजन आंदोलनों (जैसे आंबेडकरवाद) का प्रेरणा स्रोत है। आज भी DMK के नेतृत्व में यह जीवंत है, जो ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष जारी रखे हुए है। यदि कोई विशिष्ट पहलू (जैसे महिलाओं पर प्रभाव) पर अधिक जानना हो, तो बताएं।





डॉ. बी.आर. आंबेडकर का दलित आंदोलन: एक परिचय

डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (1891-1956), जिन्हें बाबासाहेब के नाम से जाना जाता है, भारत के दलित (अछूत/अस्पृश्य) आंदोलन के सर्वोच्च नेता और आधुनिक भारत के संविधान निर्माता थे। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू (तत्कालीन मध्य प्रांत) में महार जाति के परिवार में हुआ, जो उस समय अछूत मानी जाती थी। आंबेडकर ने जातिवाद, अस्पृश्यता और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ जीवनभर संघर्ष किया, जिसे **दलित आंदोलन** कहा जाता है। यह आंदोलन केवल सामाजिक सुधार नहीं, बल्कि राजनीतिक सशक्तिकरण, आर्थिक समानता और मानव गरिमा की पुनर्स्थापना का क्रांतिकारी प्रयास था। आंबेडकर ने दलितों को "दलित" (दमित) शब्द से पहचान दी, जो पहले "अछूत", "हरिजन" जैसे अपमानजनक नामों से जाने जाते थे।

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### दलित आंदोलन की पृष्ठभूमि और विकास

दलित आंदोलन की जड़ें 19वीं सदी के सामाजिक सुधार आंदोलनों (जैसे जोतीराव फुले का सत्यशोधक समाज) में हैं, लेकिन आंबेडकर ने इसे वैज्ञानिक, संवैधानिक और संगठित रूप दिया। ब्रिटिश शासन में दलितों को शिक्षा और नौकरी में अवसर मिले, जिससे जागरूकता बढ़ी, लेकिन हिंदू समाज में उन्हें मंदिर प्रवेश, जल स्रोत और सार्वजनिक स्थलों से वंचित रखा गया।

#### प्रमुख चरण और घटनाएँ:

1. **शिक्षा और स्वाभिमान की शुरुआत (1910-1920 के दशक)**
   - आंबेडकर ने कोलंबिया और लंदन से अर्थशास्त्र, कानून में डॉक्टरेट की। 1920 में **बहिष्कृत हितकारिणी सभा** की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दलितों में शिक्षा, संस्कृति और स्वाभिमान बढ़ाना था।
   - 1924 में **बहिष्कृत भारत** पत्रिका शुरू की, जो दलितों की आवाज बनी।

2. **महाड़ सत्याग्रह (1927)**
   - 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र के महाड़ में सार्वजनिक जलाशय से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह। यह दलित इतिहास में पहला संगठित जन-आंदोलन था।
   - आंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाईं, जो अस्पृश्यता का वैधानिक आधार थी।

3. **पूना पैक्ट (1932)**
   - राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में आंबेडकर ने दलितों के लिए **अलग निर्वाचन क्षेत्र** की मांग की। गांधी ने अनशन किया, जिससे समझौता हुआ – **पूना पैक्ट**।
   - परिणाम: दलितों को सामान्य सीटों में **आरक्षित सीटें** मिलीं, जो आज भी संविधान में हैं (अनुच्छेद 330, 332)।

4. **मंदिर प्रवेश आंदोलन**
   - **काला राम मंदिर सत्याग्रह (1930, नासिक)**: दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने का प्रयास। हालांकि तत्काल सफलता नहीं मिली, लेकिन जागरूकता बढ़ी।
   - आंबेडकर का नारा: *"मंदिर प्रवेश से पहले आत्म-सम्मान!"*

5. **राजनीतिक संगठन**
   - **इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP, 1936)**: मजदूर और दलित हितों के लिए।
   - **शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन (SCF, 1942)**: दलितों की राजनीतिक पार्टी।
   - बाद में **रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI, 1956)** की नींव रखी, जो आज भी सक्रिय है।

6. **धर्मांतरण और बौद्ध धम्म (1956)**
   - हिंदू धर्म में समानता न देखकर 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में **5 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया**।
   - 22 प्रतिज्ञाएं दीं, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं, कर्मकांड और वर्ण व्यवस्था का त्याग शामिल था।
   - यह दलित आंदोलन का सबसे क्रांतिकारी कदम था – धार्मिक मुक्ति।

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### आंबेडकर की प्रमुख विचारधारा

| मुद्दा | आंबेडकर का दृष्टिकोण |
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| **जाति** | जाति को वर्ग नहीं, बल्कि **श्रेणीबद्ध असमानता** का साधन माना। इसे खत्म करने के लिए **वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन** जरूरी। |
| **धर्म** | हिंदू धर्म को अस्पृश्यता का समर्थक माना। बौद्ध धर्म को समता, करुणा और तर्क का धर्म कहा। |
| **राजनीति** | "राजनीतिक सत्ता ही सामाजिक स्वतंत्रता की कुंजी है।" दलितों को वोट और प्रतिनिधित्व की ताकत दी। |
| **अर्थव्यवस्था** | भूमि सुधार, औद्योगीकरण और **राज्य समाजवाद** की वकालत की। |
| **शिक्षा** | "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" – यह उनका मूल मंत्र था। |

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### दलित आंदोलन का प्रभाव

1. **संवैधानिक उपलब्धियाँ**
   - भारतीय संविधान में **अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17)**, **आरक्षण (SC/ST/OBC)**, **समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-16)**।
   - **हिंदू कोड बिल** (महिलाओं को संपत्ति, तलाक का अधिकार) में योगदान।

2. **सामाजिक परिवर्तन**
   - दलितों में शिक्षा दर बढ़ी (आज SC में साक्षरता 66%+), सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व।
   - **दलित पैंथर (1972)**, **बामसेफ**, **बसपा (कांशीराम-मायावती)** जैसे आंदोलन आंबेडकर से प्रेरित।

3. **राजनीतिक सशक्तिकरण**
   - उत्तर प्रदेश में बसपा ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
   - दलित राष्ट्रपति (केजी रामनाथ कोविंद), मुख्यमंत्री (मायावती) बने।

4. **सांस्कृतिक जागरण**
   - जय भीम, नीला झंडा, आंबेडकर की मूर्तियाँ हर दलित बस्ती में।
   - 14 अप्रैल को **आंबेडकर जयंती** राष्ट्रीय अवकाश।

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### आलोचनाएँ और चुनौतियाँ

- कुछ लोग कहते हैं कि आंबेडकर ने दलितों को हिंदू समाज से अलग कर दिया।
- आरक्षण के दुरुपयोग, दलित नेताओं का भ्रष्टाचार।
- आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में **अत्याचार** (NCRB: 2022 में 50,000+ मामले) जारी।
- दलित आंदोलन में **उप-जातियों की फूट** (महार vs मातंग, चमार vs वाल्मीकि)।

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### वर्तमान स्थिति (2025)

- **आंबेडकरवाद** उत्तर भारत (UP, बिहार, महाराष्ट्र) में मजबूत है।
- **बौद्ध आंदोलन** नागपुर, महाराष्ट्र में सक्रिय (दिक्षा भूमि)।
- नई पीढ़ी सोशल मीडिया पर #JaiBhim, #Ambedkarite ट्रेंड कर रही है।
- बसपा, RPI, भीम आर्मी जैसे संगठन सक्रिय, लेकिन एकता की कमी।

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### निष्कर्ष

आंबेडकर का दलित आंदोलन केवल अछूतों की मुक्ति का नहीं, बल्कि **मानव गरिमा, समानता और न्याय** की लड़ाई थी। उन्होंने कहा था:  
> **"मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।"**

यह आंदोलन आज भी जीवित है और बहुजन एकता का आधार बन सकता है। यदि आप **बौद्ध धर्मांतरण**, **आरक्षण नीति**, या **बसपा की भूमिका** पर विस्तार चाहें, तो बताएं।







जोतीराव फुले का आंदोलन: एक परिचय

महात्मा जोतीराव गोविंदराव फुले (1827-1890), जिन्हें **महात्मा फुले** या **ज्योतिबा फुले** के नाम से जाना जाता है, भारत के पहले आधुनिक सामाजिक क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में माली (बागवान) जाति के परिवार में हुआ, जो शूद्र वर्ण में आती थी। फुले ने **जातिवाद, ब्राह्मणवाद, स्त्री-शिक्षा की कमी और किसान शोषण** के खिलाफ जीवनभर संघर्ष किया। उनका आंदोलन **शूद्र-अतिशूद्र (OBC और दलित) एकता**, **शिक्षा क्रांति** और **किसान मुक्ति** पर आधारित था। वे आंबेडकर के विचारों के अग्रदूत थे और बहुजन समाज के पहले संगठित नेता माने जाते हैं। फुले ने ब्राह्मणवादी वर्ण व्यवस्था को "आर्य-ब्राह्मण साजिश" बताया और द्रविड़-शूद्र पहचान को मजबूत किया।

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### आंदोलन की पृष्ठभूमि

19वीं सदी में महाराष्ट्र में पेशवा शासन (ब्राह्मण-प्रधान) के बाद ब्रिटिश शासन आया। ब्राह्मणों का शिक्षा, धर्म और प्रशासन में वर्चस्व था। शूद्र और अतिशूद्र (किसान, मजदूर) अशिक्षित, शोषित और धार्मिक रूप से अपमानित थे। महिलाएँ (विशेषकर शूद्र) शिक्षा से वंचित थीं, विधवा विवाह निषिद्ध था, और सती प्रथा अभी-अभी बंद हुई थी। फुले ने थॉमस पेन की *Rights of Man*, बाइबिल और भारतीय इतिहास से प्रेरणा ली।

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प्रमुख पहल और संगठन :

| पहल | वर्ष | उद्देश्य और प्रभाव |
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| **लड़कियों का पहला स्कूल** | 1848 | पुणे में सावित्रीबाई फुले के साथ भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला। ब्राह्मणों ने विरोध किया, परिवार ने त्याग दिया। |
| **सत्यशोधक समाज** | 24 सितंबर 1873 | शूद्र-अतिशूद्रों का पहला संगठन। उद्देश्य: बिना पुजारी के विवाह, सत्य की खोज, ब्राह्मणवाद का विरोध। नारा: **"ज्ञान ही ईश्वर है"** |
| **अनाथालय और विधवा गृह** | 1854, 1863 | विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा, ब्रह्मचारी बच्चे को गोद लिया। सती प्रथा के खिलाफ। |
| **किसान पुस्तक: *शेतकऱ्याचा आसूड*** | 1883 | किसानों के शोषण पर पहली मराठी किताब। ब्राह्मण महाजनों और सरकारी अफसरों की लूट उजागर की। |
| **गुलामगिरी** | 1873 | अमेरिकी किताब *Uncle Tom's Cabin* से प्रेरित। ब्राह्मणों को "आर्य आक्रमणकारी" और शूद्रों को मूल निवासी बताया। |

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### फुले की प्रमुख विचारधारा

1. **आर्य-ब्राह्मण साजिश सिद्धांत**  
   - ब्राह्मणों को बाहरी आक्रमणकारी (आर्य) माना, जिन्होंने द्रविड़-शूद्रों को गुलाम बनाया।  
   - मनुस्मृति को असमानता का संविधान कहा।  
   - इतिहास को **बलिराजा** (शूद्र राजा) के शासन से जोड़ा, न कि राम-कृष्ण से।

2. **शूद्र-अतिशूद्र एकता**  
   - सभी गैर-ब्राह्मण (OBC + दलित) को **बहुजन** कहा।  
   - जातीय फूट को ब्राह्मणों की साजिश माना।  
   - मराठा, कुणबी, माली, दलित – सभी को एक मंच पर लाया।

3. **स्त्री मुक्ति**  
   - सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षिका बनाया।  
   - विधवा विवाह, बाल विवाह विरोध, दहेज विरोध।  
   - कहा: **"विद्या विना मति गेली, मति विना नीति गेली"** (शिक्षा बिना बुद्धि गई, बुद्धि बिना नीति गई)।

4. **धर्म और तर्कवाद**  
   - ईश्वर को **निर्गुण, निराकार** माना।  
   - पूजा-पाठ, कर्मकांड का विरोध।  
   - सत्यशोधक विवाह: बिना ब्राह्मण, बिना मंत्र, सिर्फ सत्य की प्रतिज्ञा।

5. **किसान और मजदूर हक**  
   - भूमि सुधार, कर्ज माफी, शिक्षा का अधिकार मांगा।  
   - ब्रिटिश सरकार से शूद्रों के लिए नौकरियाँ मांगी।

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आंदोलन का प्रभाव :

1. **शिक्षा क्रांति**  
   - 18 बालिका स्कूल खोले।  
   - सावित्रीबाई ने शिक्षिकाएँ तैयार कीं।  
   - आज महाराष्ट्र में OBC शिक्षा दर फुले की देन।

2. **राजनीति में बहुजन चेतना**  
   - सत्यशोधक समाज → **नॉन-ब्राह्मण मूवमेंट** → शahu महाराज → आंबेडकर → फुले-आंबेडकरवादी पार्टियाँ।  
   - महाराष्ट्र में **शिवसेना, NCP, रिपब्लिकन पार्टियाँ** अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित।

3. **सामाजिक सुधार**  
   - विधवा पुनर्विवाह शुरू, बाल विवाह रुका।  
   - नाई, धोबी जैसे जातियों ने बहिष्कार तोड़ा।

4. **सांस्कृतिक प्रतीक**  
   - **बलिराजा** को शूद्रों का राजा बनाया।  
   - फुले दंपति की मूर्तियाँ, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय।

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आलोचनाएँ :

- ब्राह्मणों ने उन्हें **"शूद्र विद्रोही"** कहा।  
- कुछ दलित विचारक कहते हैं कि फुले ने **मध्य जातियों (मराठा, कुणबी)** को ज्यादा लाभ पहुँचाया।  
- अलगाववादी होने का आरोप (लेकिन वे संवैधानिक सुधार चाहते थे)।

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वर्तमान स्थिति (2025) :

- **महाराष्ट्र सरकार** फुले दंपति को **महात्मा** की उपाधि देती है।  
- **फुले-शahu-आंबेडकर** विचारधारा OBC-Dalit एकता का आधार।  
- **सत्यशोधक समाज** आज भी सक्रिय, विवाह और जागरण करता है।  
- **11 अप्रैल** को **ज्योतिबा फुले जयंती** राष्ट्रीय अवकाश की मांग।  
- सोशल मीडिया पर **#PhuleAmbedkar**, **#Bahujan** ट्रेंड।

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 निष्कर्ष :

फुले का आंदोलन **शिक्षा, एकता और संघर्ष** का पहला मॉडल था। उन्होंने कहा था:  
> **"जो तकलीफ में हैं, उन्हें उठाओ, शिक्षित करो, संगठित करो।"**

यह आंदोलन **पेरियार**, **आंबेडकर** और **कांशीराम** की नींव है। बिना फुले के, बहुजन समाज की कल्पना अधूरी है।

यदि आप **सत्यशोधक समाज की वर्तमान गतिविधियाँ**, **सावित्रीबाई की भूमिका**, या **फुले vs आंबेडकर** की तुलना चाहें, तो बताएं।





































 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?

(सत्य हिंदी से साभार पंकज श्रीवास्तव का आलेख)  
ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?
विश्लेषण

पंकज श्रीवास्तव
ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?
14 OCT, 2025
sridhar vembu zoho rss
श्रीधर वेम्बू
पंकज श्रीवास्तव
क्या ज़ोहो के माध्यम से सरकारी फ़ाइलों या ईमेल सिस्टम में संघ से जुड़े नेटवर्क की सेंध लगी है? डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर नए सवाल उठ रहे हैं। क्या भारत में डिजिटल स्वदेशीकरण के नाम पर संवेदनशील जानकारी खतरे में है?
क्या स्वदेशी का अर्थ सरकारी कंपनी का काम छीनकर निजी कंपनी को देना और उस पर सरकारी ख़ज़ाना लुटाना है। मोदी सरकार की ज़ोहो कारपोरेशन पर मेहरबानी तो कुछ ऐसा ही साबित कर रहा है। ख़ास बात ये है कि इस सॉफ्टवेयर कंपनी के संस्थापक श्रीधर वेम्बू आरएसएस से काफ़ी क़रीब हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकारी कर्मचारियों का ईमेल इस कंपनी में शिफ़्ट करने का फ़ैसला कितना जायज़ है। क्या यह सरकार के तमाम दस्तावेज़ों और डेटा को एक निजी कंपनी को सौंपना नहीं है। साथ ही, क्या इस कंपनी के ज़रिए आरएसएस सरकारी डेटा में सेंध लगा सकता है?
ज़ोहो पर सरकारी ईमेल
पिछले एक साल में केंद्र सरकार के 12 लाख कर्मचारियों के ईमेल सरकारी NIC.in से हटाकर प्राइवेट कंपनी ज़ोहो पर शिफ्ट हो गये। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भी शामिल है। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह का पर्सनल ईमेल भी ज़ोहो पर पहुंच चुका है। डोमेन तो nic.in या gov.in ही है, लेकिन स्टोरेज, एक्सेस और प्रोसेसिंग सब ज़ोहो के जिम्मे। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने 3 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी किया – Zoho Suite का इस्तेमाल करो।

केंद्र सरकार में कुल 34.6 लाख कर्मचारी हैं, जबकि केंद्र-राज्य मिलाकर 2.15 करोड़। ज़ोहो को प्रति कर्मचारी लगभग 300 रुपये सालाना फीस मिल रही है, यानी सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों के ईमेल के लिए सरकार जोहो को फ़ीस बतौर हर साल 1 अरब 3 करोड़ 80 लाख रुपये देगी। ये शिफ्ट 2023 में डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन (DIC) के साथ 7 साल के अनुबंध के कारण हुआ। NIC के डोमेन से PMO समेत सभी सरकारी ईमेल ज़ोहो पर चले गए। सरकारी फाइल्स और दस्तावेजों तक अब ज़ोहो की पहुंच है। सरकार स्वदेशी की बात करती है लेकिन एनआईसी जैसी स्वदेशी और सरकारी कंपनी की जगह एक प्राइवेट कंपनी पर मेहरबानी करना तमाम सवाल खड़े कर रहा है।
NIC: इंदिरा गांधी की दूरदर्शिता
1976 को आमतौर पर इमरजेंसी के लिए याद किया जाता है, लेकिन उसी साल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक दूरदर्शी फैसला लिया। नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) की स्थापना हुई, जो डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस का आधार बनी। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन NIC भारत सरकार का प्रमुख IT संगठन है। ये ई-गवर्नेंस, ICT इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल सेवाएं विकसित करता है – केंद्र से ब्लॉक स्तर तक। 
सभी सरकारी ईमेल NIC के जरिए चलते थे। NIC ने डिजिटल क्रांति को संभव बनाया, लेकिन अब सरकार इसे 'टाटा-बाय-बाय' कर रही है।

ज़ोहो क्या है?
ज़ोहो कॉर्पोरेशन 1996 में श्रीधर वेम्बू ने तमिलनाडु के तेंकासी में शुरू की। ये क्लाउड-बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी है, जो Zoho Mail, CRM, Projects जैसे टूल्स बनाती है। SMBs पर फोकस, सस्ते और यूजर-फ्रेंडली सॉफ्टवेयर के लिए मशहूर। हाल ही में इसने अरात्ती मैसेंजर लॉन्च किया – व्हाट्सऐप जैसा। हालाँकि इसमें अभी प्राइवेसी का सवाल उलझा हुआ है। किसी भारतीय कंपनी का तरक्की करना गर्व की बात, लेकिन दो साल पहले मोदी सरकार की 'मेहरबानी' ने इसकी आरसएसएस के संबंधों की पृष्ठभूमि को सार्वजनिक कर दिया है।
वेम्बू और आरएसएस का कनेक्शन
2023 में DIC का जोहो से अनुबंध करना चौंकाने वाला फ़ैसला था। जल्दी ही इसकी असली वजह यानी वेम्बू का आरएसएस से रिश्ता सामने आ गया। 22 नवंबर 2024 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के 70वें राष्ट्रीय अधिवेशन में वेम्बू मुख्य अतिथि थे जो गोरखपुर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में आयोजित था। वेम्बू इस अवसर पर स्वावलंबन, ग्रामीण विकास पर बोले। वे इससे पहले चेन्नई ABVP संगमम में भी शामिल हुए थे। फरवरी 2019 में वेम्बू चेन्नई के RSS आयोजन 'Resurgent Bharath' (RSS IT शाखा) में मुख्य अतिथि थे। वेम्बू RSS से वैचारिक जुड़ाव रखते हैं, स्वदेशी जगरण मंच (RSS की आर्थिक शाखा) के सदस्य (मनीकंट्रोल इंटरव्यू में स्वीकार किया है) भी हैं। वे अपने प्लेटफॉर्म्स से RSS नैरेटिव को बढ़ावा देते और विरोधी आवाज दबाते हैं।
विश्लेषण से और

सरवण राजा कांड
ज़ोहो के पूर्व मार्केटिंग मैनेजर सरवण राजा ने अक्टूबर 2018 में वेम्बू से असहमति पर कंपनी छोड़ी। इंट्रानेट ब्लॉग में RSS की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका उजागर करते हुए उन्होंने लिखा था: “RSS हर मंच पर जिंगोइज्म से कब्जा कर रहा, जबकि इतिहास उनकी देशभक्ति पर अलग कहता है।” इस पर वेम्बू भड़क गए। उन्होंने जवाब दिया: “फ्री स्पीच के नाम पर कुछ भी मत कहो... अपना मंच बनाओ। मैं निकालूंगा नहीं, लेकिन असहमत हूं। जब तुम्हारा वैल्यू सिस्टम कंपनी और CEO से उल्टा है, तो यहां क्यों काम करते हो?”
इस घटना के बाद सरवण ने ज़ोहो छोड़ दिया। आरएसएस से संबंध को लेकर सोशल मीडिया पर #BoycottZoho ट्रेंड भी चला लेकिन वेम्बू को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। मोदी सरकार ने 2021 में वेम्बू को पद्मश्री से सम्मानित किया। आलोचकों का कहना है कि ज़ोहो RSS एजेंडे का उपक्रम है –सरकार देश से जुड़े संवेदनशील डेटा को प्राइवेट कंपनी ही नहीं, RSS के हाथों सौंप रही है। एक unregistered NGO हमारी निजता में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है।
निजता की वैश्विक लड़ाई
दुनिया भर की प्रतिष्ठित टेक कंपनियाँ निजता के लिए सरकारों से लंबी लड़ाई लड़ी हैं:
क्लिपर चिप (1990s): सरकार ने डिवाइसों में बैकडोर चिप लगाने का प्रस्ताव दिया। कंपनियों ने मजबूत एन्क्रिप्शन विकसित कर इसे विफल कर दिया।
बर्नस्टीन केस (1995): गणितज्ञ डैन बर्नस्टीन ने साबित किया कि एन्क्रिप्शन कोड संरक्षित भाषा है। अदालत ने फैसला दिया कि कोड निर्यात नियंत्रण के दायरे में नहीं।
Google vs चीन (2009): सेंसरशिप और डेटा मांगों से तंग आकर Google ने चीन से सेवाएँ हटा लीं।
Apple vs FBI (2016): सैन बर्नार्डिनो हमले के iPhone को अनलॉक करने से Apple ने इनकार किया। CEO टिम कुक ने सार्वजनिक विरोध किया; FBI थर्ड-पार्टी से एक्सेस कर पाया, लेकिन Apple ने सॉफ्टवेयर अपडेट से कमजोरी ठीक की।
स्नोडेन लीक (2013): NSA जासूसी के बाद Google ने एन्क्रिप्शन मजबूत किया।
WhatsApp vs Pegasus: Meta ने स्पाइवेयर पेगासस के खिलाफ मुकदमा किया और कमजोरियों को पैच किया।

मोदी पर हमलावर रहे ममदानी बोले- उस भारत से हूँ जो विविधता का उत्सव मनाता था


इन तमाम कंपनियों ने अपने देश की सरकार से निजता के अधिकार को लेकर संघर्ष किया। लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएँगे कि श्रीधर वेम्बू सरकार के एक तरह से हिस्से ही हैं। 2021 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB, अजीत डोभाल के नेतृत्व) में नियुक्त किया गया। 2024 में UGC सदस्य हैं।
इन नियुक्तियों को देखते हुए क्या कोई सोच सकता है कि श्रीधर वेम्बू कभी अपने ग्राहक की निजता की परवाह करेंगे अगर सरकार उसे भंग करना चाहे?  वेम्बू तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार बोर्ड में हैं और मोदी सरकार को विपक्ष में उठी हर आवाज़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा लगती है। यानी विपक्षी नेता या कार्यकर्ता अगर ज़ोहो का कोई टूल इस्तेमाल करते हैं तो वे हमेशा सरकार के निशाने पर रहेंगे। सरकार अगर ज़ोहो पर अरबों रुपये लुटा रही है तो उसका हर दरवाज़ा सरकार के लिए खुला ही रहेगा, इसमें शक़ नहीं। कुछ साल पहले Koo को Twitter (अब X) का विकल्प बनाने की कोशिश की गयी थी लेकिन उसे दक्षिणपंथियों का इतना ज़बरदस्त समर्थन मिला कि बाक़ी लोग वहाँ गये ही नहीं। कू अब कहाँ है, कोई नहीं जानता। साख का यही संकट ज़ोहो पर भी मंडरा रहा है जिसे पद्मश्री वेम्बू को समझना चाहिए। 

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर 
बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :

### 2025 अक्टूबर में भारत में दलितों पर हुई प्रमुख घटनाएं: एक क्रमबद्ध विवरण
2025 के अक्टूबर महीने (1 से 13 अक्टूबर तक) में भारत के विभिन्न हिस्सों में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई दर्दनाक घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं जातिगत हिंसा, भेदभाव, लिंचिंग, आत्महत्या और संस्थागत उत्पीड़न को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दलितों के खिलाफ अपराधों में 46% की वृद्धि हुई है, जो इस महीने की घटनाओं को व्यापक संदर्भ देती है। नीचे तिथि अनुसार प्रमुख घटनाओं का क्रम दिया गया है, जो समाचार स्रोतों और सोशल मीडिया (X) पर वायरल वीडियो/पोस्ट्स पर आधारित हैं। ये घटनाएं मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और सुप्रीम कोर्ट स्तर पर हुईं।
#### प्रमुख घटनाओं का तिथि-क्रम
| तिथि       | स्थान/घटना विवरण                                                                 | प्रभावित व्यक्ति/समुदाय | कार्रवाई/परिणाम |
|------------|----------------------------------------------------------------------------------|--------------------------|------------------|
| **1-2 अक्टूबर** | **रायबरेली, उत्तर प्रदेश**: चोरी के संदेह पर एक दलित युवक हरिओम वाल्मीकि (उम्र 20-25 वर्ष) को भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। वीडियो में वह दया की भीख मांगता दिखा और राहुल गांधी का नाम लिया, लेकिन हमलावरों ने कहा "यहां सब बाबा वाले हैं"। हमलावरों ने लाठियों और मुक्कों से हमला किया। | हरिओम वाल्मीकि (दलित) | 5 गिरफ्तार (वैभव सिंह, विपिन मौर्य, सुरेश मौर्य, सहदेव पासी, विजय कुमार)। FIR दर्ज, लेकिन विरोध प्रदर्शन के बाद ही कार्रवाई। |
| **2 अक्टूबर** | **हिमाचल प्रदेश (अनाम गांव)**: एक 12 वर्षीय दलित बालक को राजपूत परिवार के घर में घुसने पर पीटा गया। परिवार ने "शुद्धिकरण" के लिए बकरी की मांग की, जिसके बाद बालक ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। यह जातिगत अपमान का स्पष्ट उदाहरण है। | 12 वर्षीय दलित बालक | पुलिस जांच जारी; स्थानीय स्तर पर आक्रोश, लेकिन कोई गिरफ्तारी की खबर नहीं। |
| **5-6 अक्टूबर** | **सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली**: एक वकील ने दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंका और नारा लगाया "सनातन का अपमान नहीं सहेेंगे"। यह RSS विचारधारा से प्रेरित जातिगत हमला था, जो न्यायपालिका पर भी सवाल उठाता है। | CJI बी.आर. गवई (दलित) | वकील गिरफ्तार; सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी निंदा की, लेकिन व्यापक जांच की मांग। |
| **7 अक्टूबर** | **चंडीगढ़, हरियाणा**: 2001 बैच के IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार (SC समुदाय) ने जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और प्रमोशन में आरक्षण न मिलने के कारण आत्महत्या की। 9-पेज के सुसाइड नोट में DGP शत्रुजीत सिंह कपूर समेत 12-16 वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप। पत्नी अमनीत पी. कुमार (IAS) जापान दौरे पर थीं। | वाई. पूरन कुमार (दलित IPS) | FIR दर्ज (IPC 108, SC/ST एक्ट); SIT गठित, रोहतक SP हटाया। NCSC ने नोटिस जारी। |
| **9-10 अक्टूबर** | **राजस्थान (सवाई माधोपुर)**: बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला; साथ ही NCRB डेटा पर बहस। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने PM मोदी पर आरोप लगाया कि दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं (46% वृद्धि)। | कमला देवी रैगर (दलित महिला) | राजनीतिक बयानबाजी; कोई विशिष्ट कार्रवाई की खबर नहीं। |
| **10-13 अक्टूबर** | **उत्तर प्रदेश (मैनपुरी, प्रयागराज, अमरोहा)**: 14 वर्षीय दलित लड़की पर गैंग रेप (वीडियो वायरल); प्रयागराज में दलित हिरा लाल की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत; अमरोहा में दलित युवक पर तलवार से हमला (शराब पीने का विरोध)। भिम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने निंदा की। | दलित लड़की, हिरा लाल, युवक | FIR दर्ज; हाईकोर्ट में PIL; विरोध प्रदर्शन। |
#### समग्र विश्लेषण और प्रभाव
- **ट्रेंड**: ये घटनाएं मुख्य रूप से BJP शासित राज्यों (UP, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल) में हुईं, जहां NCRB के अनुसार दलितों पर अपराध सबसे अधिक हैं (UP: 15,130 केस 2023 में)। X पर #DalitVirodhiRSS और #DalitLivesMatter ट्रेंड कर रहे हैं, जहां 40+ हमलों का उल्लेख है। कांग्रेस ने RSS-BJP पर जातिवादी एजेंडे का आरोप लगाया।
- **राजनीतिक प्रतिक्रिया**: मायावती ने UP BJP को सराहा, लेकिन विपक्ष (कांग्रेस, SP) ने निंदा की। तमिलनाडु गवर्नर आर.एन. रवि ने राज्य में दलित अत्याचारों पर चिंता जताई (5 अक्टूबर)।
- **कानूनी पक्ष**: अधिकांश मामलों में SC/ST (Prevention of Atrocities) Act लागू, लेकिन सजा दर मात्र 32%। विशेष अदालतों की कमी और पुलिस पूर्वाग्रह समस्या बढ़ा रहे हैं।
- **सामाजिक प्रभाव**: ये घटनाएं दलित जागरूकता बढ़ा रही हैं, लेकिन भय का माहौल है। CJP रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में जुलाई से अब तक 50+ घटनाएं दर्ज।
ये घटनाएं संवैधानिक समानता पर सवाल उठाती हैं। अधिक जानकारी के लिए NCRB वेबसाइट या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें। स्रोत: समाचार (India Today, The Hindu, CJP) और X पोस्ट्स।
वाई पूरन कुमार आईपीएस** (Y. Puran Kumar IPS) का सोसाइटी नॉट क्या है?
आपके प्रश्न में "सोसाईट नॉट" संभवतः suicide note (आत्महत्या नोट) का टाइपो या उच्चारण भेद है। वाई पूरन कुमार (Y. Puran Kumar), 2001 बैच के हरियाणा कैडर IPS अधिकारी (IG/ADGP रैंक), ने 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित सरकारी आवास के बेसमेंट में अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। उम्र: 52 वर्ष। घटना के समय उनकी पत्नी अमनीत पी. कुमार (IAS, 2001 बैच) जापान में आधिकारिक दौरे पर थीं।
पुलिस ने घटनास्थल से 9 पेज का suicide note बरामद किया, जो मुख्य रूप से हैंडरिटन और टाइप्ड था। यह नोट अंग्रेजी में लिखा गया था, और इसमें उन्होंने अपने हस्ताक्षर (हरी स्याही से) और मृत्यु तिथि (7/10/2025) दर्ज की। नोट की तीन कॉपियां थीं: एक घटनास्थल पर, एक पत्नी को भेजी गई (सुसाइड से कुछ घंटे पहले), और एक करीबी IPS मित्रों को। अंतिम पेज वसीयत (will) का था, जिसमें सभी संपत्ति पत्नी अमनीत को सौंपी गई। नोट को "फाइनल नोट" या "हरियाणा के संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को" संबोधित किया गया था।
सुसाइड नोट की प्रमुख सामग्री
प्रमुख आरोप/उल्लेखविवरणनामित अधिकारी (उदाहरण)
जातिगत भेदभाव और अपमानSC अधिकारी होने के कारण प्रमोशन रोका, इंक्रीमेंट न दिए, सार्वजनिक अपमान। रोहतक में फर्जी FIR (6 अक्टूबर 2025) में फंसाने की कोशिश।रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया (जातिवाद, फर्जी FIR का आरोप); पूर्व DGP मनोज यादव (2020 में थाने में पूजा पर विवाद)।
मानसिक उत्पीड़न और नोटिसबार-बार अनावश्यक नोटिस, सरकारी आवास/वाहन छीनना, गलत हलफनामा। नवंबर 2023 में आधिकारिक वाहन जब्त।DGP शत्रुजीत सिंह कपूर (नोटिस भेजकर परेशान, आवास विवाद); 1991-2005 बैच के 7-8 IPS (अवैध प्रमोशन का आरोप)।
प्रशासनिक हस्तक्षेपकम महत्वपूर्ण पदों पर रखा (जैसे सनौरी जेल प्रमुख, हालिया ट्रांसफर 9 दिन पहले)। भ्रष्टाचार के झूठे केस (रिश्वत लेने का आरोप, जो उनके गनमैन ने कबूल किया)।2 IAS अधिकारी (नाम अस्पष्ट, लेकिन पोस्टिंग में दखल); कुल 12-16 नाम (11 सक्रिय पदों पर)।
सकारात्मक उल्लेखकेवल एक अधिकारी को "सच्चा समर्थन" देने के लिए सराहा।राजेश खुल्लर (रिटायर्ड IAS, CM के मुख्य प्रधान सचिव; दो मुलाकातों में मदद)।
व्यक्तिगत दर्द"अब कोई ऑप्शन नहीं बचा... पिछले 5 साल से उत्पीड़न। परिवार की सुरक्षा चिंतित। ईश्वर से प्रार्थना: मेरे प्रति शत्रुता समाप्त हो।"-

  • वसीयत का हिस्सा: अंतिम पेज में सभी संपत्ति (घर, वाहन, बैंक बैलेंस, निवेश) पत्नी अमनीत को हस्तांतरित। बेटियों (दो) का उल्लेख नहीं, जिससे कानूनी विवाद की आशंका।
  • अन्य: नोट में पत्राचार के रिकॉर्ड (सरकारी ईमेल/लेटर्स) का जिक्र। उन्होंने कहा कि वे "सिस्टेमेटिक ह्यूमिलिएशन" झेल रहे थे, और SC/ST आयोग तक शिकायत की थी।
जांच और प्रतिक्रिया
  • FIR: चंडीगढ़ पुलिस ने IPC धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), SC/ST एक्ट धारा 3(1)(r) व 3(5) के तहत केस दर्ज। SIT (6 सदस्यीय) गठित, CFSL टीम ने फोरेंसिक जांच की। पत्नी ने DGP कपूर और SP बिजरनिया के खिलाफ FIR की मांग की।
  • परिवार: अमनीत ने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखा, "षड्यंत्र" बताया। बेटी अमेरिका से लौटी। रसोइए ने बताया: सुसाइड से पहले पूरन ने 15 बार पत्नी को कॉल किया (उठाया नहीं), और "डिस्टर्ब मत करना" कहा।
  • सरकारी कदम: रोहतक SP बदला गया। NCSC ने नोटिस जारी। पोस्टमॉर्टम 9 अक्टूबर को वीडियोग्राफी के साथ हुआ।
  • विवाद: नोट ने हरियाणा पुलिस में जातिवाद/भ्रष्टाचार उजागर किया। X पर वायरल वीडियो (रिश्वत केस) से बहस। BJP सरकार ने "व्यक्तिगत कारण" बताया, लेकिन विपक्ष ने सिस्टम की नाकामी पर सवाल उठाए।
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नोट के पहले 8 पेजों में उन्होंने अगस्त 2020 से अक्टूबर 2025 तक के उत्पीड़न का सिलसिलेवार विवरण दिया। मुख्य थीम: जातिगत भेदभाव (SC/ST एक्ट के तहत), मानसिक प्रताड़ना, प्रमोशन में देरी, गलत ACR (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट), अनियमित पोस्टिंग, और भ्रष्टाचार में फंसाने की साजिश। उन्होंने 12-16 वरिष्ठ IAS/IPS अधिकारियों के नाम लिए (जिनमें 8 IPS, 2 IAS, और कुछ रिटायर्ड शामिल), जिन्हें जिम्मेदार ठहराया। कुछ अधिकारियों को मदद के लिए सराहा भी।
नोट की पूरी कॉपी सार्वजनिक नहीं है (पुलिस जांच के कारण), लेकिन ऊपर सार सार्वजनिक स्रोतों से लिया गया। यह घटना नौकरशाही में SC अधिकारियों के संघर्ष को रेखांकित करती है। अधिक जानकारी के लिए चंडीगढ़ पुलिस या आधिकारिक स्रोत देखें।
"सोसाईट नॉट" शायद **suicide note** (आत्महत्या नोट) का टाइपो या उच्चारण भेद हो सकता है, क्योंकि इस घटना में 9-पेज का suicide note प्रमुखता से चर्चा में है। नीचे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। जानकारी समाचार स्रोतों पर आधारित है।
#### पृष्ठभूमि
- **नाम और पद**: वाई पूरन कुमार (Y. Puran Kumar), 2001 बैच के IPS अधिकारी, हरियाणा कैडर। वे ADGP (अतिरिक्त निदेशक महानिदेशक) रैंक के थे। हाल ही में उन्हें सनौरी जेल (जहां गुरमीत राम रहीम बंद हैं) का प्रमुख बनाया गया था।
- **परिवार**: पत्नी - अमनीत पी. कुमार (Amneet P. Kumar), 2001 बैच IAS अधिकारी, हरियाणा कैडर। वे वर्तमान में हरियाणा सरकार में सिविल एविएशन, महिला एवं बाल विकास विभाग की कमिश्नर व सेक्रेटरी हैं। दंपति की दो बेटियां हैं।
- **घटना**: 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित सरकारी आवास के बेसमेंट में उन्होंने खुद को गोली मार ली। उम्र: 52 वर्ष। मृत्यु के समय पत्नी जापान में सीएम नायब सिंह सैनी के साथ आधिकारिक दौरे पर थीं।
#### सुसाइड नोट (Suicide Note) का विवरण
- **लंबाई और सामग्री**: 9-पेज का handwritten note, जो चंडीगढ़ पुलिस को साइट से मिला (एक पेज उनकी जेब से)। इसमें उन्होंने **12-16 वरिष्ठ IAS और IPS अधिकारियों** को नाम लेकर जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने कथित रूप से उन्हें मानसिक उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव (SC/ST एक्ट के तहत), अनियमित प्रमोशन, गलत ACR (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट), और प्रशासनिक हस्तक्षेप किया।
  - **मुख्य आरोप**:
    - **DGP शत्रुजीत सिंह कपूर**: बार-बार अनावश्यक नोटिस जारी कर उत्पीड़न, सरकारी आवास आवंटन में भेदभाव, गलत हलफनामा देकर घर आवंटन रोका, और नवंबर 2023 में आधिकारिक वाहन छीन लिया।
    - **रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया**: जातिगत भेदभाव, सार्वजनिक अपमान, और हालिया फर्जी FIR (6 अक्टूबर 2025) में फंसाने की साजिश।
    - अन्य: 7-8 IPS और 2 IAS अधिकारी, जिनमें 1991, 1996, 1997, 2005 बैच के अधिकारियों के अवैध प्रमोशन का आरोप। SC अधिकारियों के प्रमोशन में देरी और इंक्रीमेंट न देने का दावा।
  - **सकारात्मक उल्लेख**: केवल एक अधिकारी, राजेश खुल्लर (मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव, रिटायर्ड IAS), को उन्होंने "सच्चा समर्थन" देने के लिए सराहा। कहा कि खुल्लर ने दो बार मुलाकात में नोट्स डिक्टेट कर मदद की।
- **अन्य विवरण**: नोट में उन्होंने अपनी जिंदगी के संघर्ष, विभाग में जातिवाद, और "सिस्टेमेटिक ह्यूमिलिएशन" का जिक्र किया। यह नोट कुछ करीबी IPS मित्रों और पत्नी को भेजा गया था।
#### विल (Will) का विवरण
- नोट का एक पेज **विल (will)** के रूप में था, जिसमें उन्होंने **सभी संपत्ति (assets)** को पत्नी अमनीत पी. कुमार को हस्तांतरित कर दिया।
- **संपत्ति (Assets) के बारे में**: सार्वजनिक रूप से कोई सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। IPS अधिकारियों की संपत्ति में आमतौर पर सरकारी आवास, वाहन, बैंक बैलेंस, और कुछ व्यक्तिगत निवेश (जैसे म्यूचुअल फंड, प्रॉपर्टी) शामिल होते हैं। लेकिन कुल मूल्य या नेट वर्थ (net worth) का कोई आधिकारिक खुलासा नहीं हुआ है।
  - **विरासत का विवाद**: समाचारों में सवाल उठा है कि संपत्ति का असली हकदार पत्नी हैं या बेटियां? विल में स्पष्ट रूप से पत्नी को ही सब कुछ सौंपा गया है, लेकिन परिवारिक कानून (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम) के तहत बेटियां भी दावा कर सकती हैं। पत्नी ने FIR की मांग की है, लेकिन संपत्ति विवाद अभी उभर रहा है।
  - **अमनीत पी. कुमार की संपत्ति**: IAS अधिकारियों के लिए वार्षिक संपत्ति घोषणा अनिवार्य है, लेकिन सार्वजनिक डोमेन में कोई विशिष्ट आंकड़े नहीं मिले। अनुमानित रूप से, सीनियर IAS की नेट वर्थ ₹1-5 करोड़ तक हो सकती है (सैलरी, पर्क्स, निवेश पर आधारित), लेकिन पुष्टि नहीं।
#### जांच और प्रतिक्रिया
- **FIR**: चंडीगढ़ पुलिस ने IPC की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r) और 3(5) के तहत FIR दर्ज की। SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित, जिसमें 6 सदस्य हैं। NCSC (नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स) ने भी नोटिस जारी किया।
- **परिवार की मांग**: पत्नी अमनीत ने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर DGP और SP के खिलाफ FIR और गिरफ्तारी की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि यह "षड्यंत्र" था।
- **सरकारी कदम**: रोहतक SP बदला गया। CM ने जांच के निर्देश दिए।
यह घटना हरियाणा पुलिस विभाग में जातिवाद और उत्पीड़न के गंभीर मुद्दों को उजागर कर रही है। यदि आप suicide note की कॉपी या अधिक डिटेल चाहें, तो आधिकारिक स्रोत (जैसे चंडीगढ़ पुलिस) से संपर्क करें। स्रोत: इंडिया टुडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, एशियनेट न्यूज।
 मायावती जी के भाषण में अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं का उल्लेख :
नहीं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने **9 अक्टूबर 2025** को लखनऊ के कांशी राम स्मारक स्थल पर आयोजित **कांशी राम के 19वें परिनिर्वाण दिवस** की महारैली में 

अक्टूबर 2025 (1 से 9 अक्टूबर तक) में हुए विशिष्ट दलित अत्याचारों या हमलों 
(जैसे रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की लिंचिंग, 
हिमाचल प्रदेश में दलित बालक की आत्महत्या, 
सुप्रीम कोर्ट में CJI बी.आर. गवई पर हमला, या 
वाई. पूरन कुमार IPS की आत्महत्या) 
का कोई सीधा या स्पष्ट उल्लेख नहीं किया। 


रैली का फोकस मुख्य रूप से **कांशी राम की विरासत, BSP की संगठनात्मक मजबूती, 2027 यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी, और अन्य दलों पर जातिवादी होने के सामान्य आरोपों** पर रहा। मायावती जी ने दलितों के व्यापक शोषण और आरक्षण के मुद्दों को छुआ, लेकिन हाल की घटनाओं को नाम लेकर या विस्तार से नहीं उठाया। नीचे भाषण के प्रमुख बिंदुओं का सारांश दिया गया है, जो समाचार स्रोतों (आज तक, जागरण, इंडिया डेली, न्यूज18, एनडीटीवी आदि) पर आधारित है।
भाषण के प्रमुख बिंदु (दलित अत्याचारों से जुड़े संदर्भ)
मायावती जी ने लगभग 3 घंटे के भाषण में दलितों के संरक्षण पर जोर दिया, लेकिन अक्टूबर की ताजा घटनाओं का जिक्र न करने से विपक्ष (जैसे कांग्रेस और सपा) ने बाद में सवाल उठाए। मुख्य संदर्भ:
| बिंदु | विवरण | दलित अत्याचार से संबंध |
|-------|--------|-------------------------|
| **सपा पर दलित विरोधी होने का आरोप** | सपा ने कासगंज जिले का नाम "कांशी राम नगर" से बदल दिया; सत्ता में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) को भूल जाती है; बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया। | सामान्य जातिवादी रवैया का उल्लेख, लेकिन कोई हालिया घटना नहीं। |
| **कांग्रेस पर हमला** | इमर्जेंसी के दौरान संविधान का अपमान; दलितों-पिछड़ों का शोषण; कांशी राम के निधन पर राष्ट्रीय शोक न घोषित करना। | ऐतिहासिक शोषण का जिक्र, वर्तमान अत्याचारों का नहीं। |
| **आरक्षण और कानूनों पर** | आरक्षण पूरा नहीं मिला; BSP सरकार बनने पर दलित-पिछड़ों के खिलाफ कानून बदलेंगे; बाबा साहेब के संविधान की रक्षा करेंगे। | दलितों के व्यापक अधिकारों पर फोकस, लेकिन अक्टूबर की घटनाओं (जैसे IPS पूरन कुमार का मामला) का कोई लिंक नहीं। |
| **योगी सरकार की तारीफ** | स्मारक की मरम्मत कराई; दलित प्रतीकों का सम्मान; कानून-व्यवस्था अच्छी। | अत्याचारों पर चुप्पी, जो BJP की आलोचना से बचने की रणनीति मानी जा रही। |
| **चंद्रशेखर आजाद पर अप्रत्यक्ष हमला** | "स्वार्थी और बिकाऊ लोगों" को वोट न दें; BSP वोट बैंक तोड़ने की साजिश। | दलित नेताओं के बीच विभाजन का संकेत, लेकिन हमलों का जिक्र नहीं। |
| **2027 चुनाव का ऐलान** | अकेले लड़ेंगे; पांचवीं बार BSP सरकार बनाएंगे; कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने की अपील। | दलित एकता पर जोर, लेकिन हालिया हिंसा का कोई संदर्भ नहीं। |
#### विश्लेषण और प्रतिक्रिया
- **क्यों नहीं उल्लेख?**: रैली का उद्देश्य **शक्ति प्रदर्शन और सकारात्मक संदेश** देना था, न कि नकारात्मक घटनाओं पर फोकस। मायावती जी ने कांशी राम के "जाति तोड़ो, सत्ता जोड़ो" नारे को दोहराया और BSP को दलित उत्थान का एकमात्र माध्यम बताया। X (ट्विटर) पर कुछ यूजर्स ने इसे "चुप्पी" बताकर आलोचना की, खासकर पूरन कुमार की आत्महत्या (7 अक्टूबर) पर।
- **सामान्य दलित मुद्दे**: भाषण में दलितों के शोषण का व्यापक उल्लेख था, जैसे "जातिवादी दल संविधान बदलने की कोशिश कर रहे" और "दलितों को सत्ता की मास्टर चाबी चाहिए"। लेकिन विशिष्ट घटनाओं (जैसे रायबरेली लिंचिंग या CJI पर हमला) का नामोनिशान नहीं।


- **भीड़ और प्रभाव**: BSP दावा: 4-5 लाख लोग; यह 9 साल बाद लखनऊ में बड़ा आयोजन था। आकाश आनंद (मायावती के भतीजे) ने भी आरक्षण पर बोला, लेकिन अत्याचारों पर नहीं।
यदि मायावती जी बाद में (रैली के बाद) इन घटनाओं पर कोई बयान दें, तो अपडेट हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए BSP आधिकारिक सोशल मीडिया या समाचार स्रोत देखें।

2025 अक्टूबर माह में दलितों पर हुई घटनाओं पर RSS और मोदी का बयान एवं कार्रवाई

2025 के अक्टूबर माह (1 से 13 अक्टूबर तक) में भारत में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई घटनाएं सामने आईं, जैसे रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की लिंचिंग (1-2 अक्टूबर), हिमाचल प्रदेश में 12 वर्षीय दलित बालक की आत्महत्या (2 अक्टूबर), सुप्रीम कोर्ट में दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का हमला (5-6 अक्टूबर), हरियाणा में दलित IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या (7 अक्टूबर), राजस्थान में बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला (9-10 अक्टूबर), और उत्तर प्रदेश में अन्य घटनाएं (मैनपुरी में दलित लड़की पर गैंग रेप, प्रयागराज में हिरासत मौत, अमरोहा में तलवार हमला; 10-13 अक्टूबर)। इन घटनाओं पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई व्यापक या सामूहिक बयान नहीं आया। केवल एक घटना (CJI पर हमला) पर मोदी का व्यक्तिगत बयान मिला, जबकि RSS की ओर से कोई सीधा बयान या कार्रवाई नहीं दिखी। विपक्ष (जैसे कांग्रेस) ने इन घटनाओं को "RSS-BJP की सामंती मानसिकता" से जोड़ा, लेकिन मोदी या RSS ने इसका प्रत्यक्ष जवाब नहीं दिया। नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है, जो उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान और कार्रवाई
मोदी ने अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं पर सामान्य रूप से कोई बयान नहीं दिया। केवल एक विशिष्ट घटना पर उनका X (ट्विटर) पोस्ट मिला:
- **बयान**: 6 अक्टूबर 2025 को मोदी ने X पर पोस्ट किया: "सुप्रीम कोर्ट में आज CJI जस्टिस बी.आर. गवई जी पर हुए हमले से हर भारतीय क्रोधित है। हमारे समाज में ऐसे घिनौने कृत्यों की कोई जगह नहीं है। यह पूरी तरह निंदनीय है। मैं ऐसे हालात में जस्टिस गवई द्वारा दिखाए गए धैर्य की सराहना करता हूं। यह न्याय के मूल्यों और संविधान की भावना को मजबूत करने के उनके समर्पण को दर्शाता है।" (यह पोस्ट सीधे CJI पर हमले से संबंधित था, जो दलित समुदाय से हैं।)
- **कार्रवाई**: कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं दिखी। हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हमलावर वकील को गिरफ्तार किया, लेकिन मोदी सरकार की ओर से कोई जांच आयोग, नीतिगत बदलाव या राष्ट्रीय स्तर की अपील नहीं की गई। विपक्ष ने इसे "संघ की विचारधारा से प्रेरित" बताया, लेकिन मोदी ने इस पर चुप्पी साधी।
- **अन्य घटनाओं पर**: रायबरेली लिंचिंग, IPS पूरन कुमार की आत्महत्या, या अन्य हमलों पर मोदी का कोई बयान नहीं मिला। पुरानी घटनाओं (जैसे 2016) में उन्होंने "दलितों पर अत्याचार से सिर शर्म से झुक जाता है" कहा था, लेकिन 2025 में ऐसा कुछ नहीं। विपक्षी नेता जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि मोदी के समय दलित अपराध 46% बढ़े हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का बयान और कार्रवाई
RSS ने अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं पर कोई सीधा बयान या कार्रवाई नहीं की। उनके X हैंडल (@RSSorg) पर इस अवधि में कोई दलित-संबंधित पोस्ट नहीं मिला।
- **बयान**: कोई स्पष्ट बयान नहीं। RSS का एकमात्र पोस्ट (2 अक्टूबर 2025) पहलगाम आतंकवादी हमले (अप्रैल 2025) पर था, जो दलितों से असंबंधित है। विपक्ष ने RSS को "दलित विरोधी" बताया, जैसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हरियाणा IPS आत्महत्या और रायबरेली लिंचिंग पर "RSS-BJP की सामंती मानसिकता" का आरोप लगाया। पंजाब कांग्रेस ने भी BJP-RSS को दलित अत्याचारों के लिए जिम्मेदार ठहराया।
- **कार्रवाई**: कोई कार्रवाई नहीं दिखी। RSS की सामान्य नीति "सामाजिक समरसता" (सामाजिक सद्भाव) की है, लेकिन 2025 में इन घटनाओं पर कोई विशेष बैठक, अभियान या जांच की खबर नहीं। CJP रिपोर्ट में 2025 के आधे साल में दलित-अदिवासी हिंसा पर RSS-BJP की "खोखली रेटोरिक" की आलोचना की गई है।


#### समग्र विश्लेषण
- **चुप्पी का कारण?**: मोदी और RSS ने इन घटनाओं को "व्यक्तिगत" या "स्थानीय" मानकर टाला हो सकता है, जबकि विपक्ष ने इन्हें "संघ की जातिवादी विचारधारा" से जोड़ा। NCRB डेटा के अनुसार, दलित अपराधों में वृद्धि हुई है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई राष्ट्रीय स्तर की पहल नहीं।
- **विपक्ष की प्रतिक्रिया**: कांग्रेस, तेलंगाना MP मल्लू रवि, और अन्य ने BJP-RSS को दोषी ठहराया। X पर #DalitVirodhiRSS ट्रेंड कर रहा है।
- **सुझाव**: अधिक जानकारी के लिए NCRB रिपोर्ट या आधिकारिक स्रोत देखें। यदि कोई नया बयान आए, तो अपडेट हो सकता है।

2025 अक्टूबर माह में दलितों पर हुए अत्याचारों पर न्यायपालिका और सरकारों की जिम्मेदारी ?

2025 के अक्टूबर माह (1 से 14 अक्टूबर तक) में भारत के विभिन्न राज्यों में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई घटनाएं दर्ज हुईं, जो जातिगत हिंसा, भेदभाव और संस्थागत उत्पीड़न को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दलितों पर अपराधों में 46% की वृद्धि हुई है, और यह प्रवृत्ति 2025 में भी जारी है। इन घटनाओं पर देश की न्यायपालिका और केंद्र/राज्य सरकारों की जिम्मेदारी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 17 (अस्पृश्यता उन्मूलन) और SC/ST (Prevention of Atrocities) Act, 1989 के तहत है। नीचे घटनाओं का क्रम, जिम्मेदारियां और की गई कार्रवाई का विवरण दिया गया है। जानकारी समाचार स्रोतों पर आधारित है।

#### प्रमुख घटनाएं (तिथि-क्रम में)
| तिथि       | स्थान/घटना विवरण                                                                 | प्रभावित व्यक्ति/समुदाय |
|------------|----------------------------------------------------------------------------------|--------------------------|
| **1-2 अक्टूबर** | **रायबरेली, उत्तर प्रदेश**: चोरी के संदेह पर दलित युवक हरिओम वाल्मीकि को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। वीडियो में वह राहुल गांधी का नाम लेकर दया मांगता दिखा, लेकिन हमलावरों ने "यहां सब बाबा वाले हैं" कहा। | हरिओम वाल्मीकि (दलित) |
| **2 अक्टूबर** | **हिमाचल प्रदेश**: 12 वर्षीय दलित बालक को राजपूत परिवार के घर में घुसने पर पीटा गया। परिवार ने "शुद्धिकरण" के लिए बकरी मांगी, जिसके बाद बालक ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली। | 12 वर्षीय दलित बालक |
| **5-6 अक्टूबर** | **सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली**: वकील राकेश किशोर ने दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंका और "सनातन का अपमान नहीं सहेेंगे" का नारा लगाया। | CJI बी.आर. गवई (दलित) |
| **7 अक्टूबर** | **चंडीगढ़, हरियाणा**: दलित IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार ने जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या की। 9-पेज के सुसाइड नोट में 12-16 अधिकारियों पर आरोप। | वाई. पूरन कुमार (दलित IPS) |
| **9-10 अक्टूबर** | **सवाई माधोपुर, राजस्थान**: बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला। | कमला देवी रैगर (दलित महिला) |
| **10-13 अक्टूबर** | **उत्तर प्रदेश (मैनपुरी, प्रयागराज, अमरोहा)**: मैनपुरी में 14 वर्षीय दलित लड़की पर गैंग रेप; प्रयागराज में दलित हिरा लाल की पुलिस हिरासत में मौत; अमरोहा में दलित युवक पर तलवार से हमला। | दलित लड़की, हिरा लाल, युवक |

ये घटनाएं मुख्य रूप से BJP शासित राज्यों (UP, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल) में हुईं। CJP की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के पहले छह महीनों में दलितों-अदिवासियों पर 50+ घटनाएं दर्ज हुईं।

#### सरकारों की जिम्मेदारी और कार्रवाई
- **केंद्र सरकार (मोदी सरकार)**: SC/ST एक्ट के तहत अपराधों की रोकथाम, जांच और पीड़ितों को मुआवजा/पुनर्वास प्रदान करना। NCRB डेटा पर निगरानी और राज्यों को दिशानिर्देश देना। हालांकि, विपक्ष (जैसे कांग्रेस) ने सरकार पर "चुप्पी" का आरोप लगाया, दावा किया कि अपराध 46% बढ़े हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने केवल CJI पर हमले पर X पर निंदा की, लेकिन अन्य घटनाओं पर कोई बयान नहीं। कोई राष्ट्रीय जांच या नीति बदलाव नहीं।
- **राज्य सरकारें**: पुलिस FIR दर्ज करे, गिरफ्तारियां करे, और विशेष अदालतों में मुकदमे चलाएं। उदाहरण:
  - **उत्तर प्रदेश (योगी सरकार)**: रायबरेली लिंचिंग में 5 गिरफ्तार (वैभव सिंह, विपिन मौर्य आदि), लेकिन विरोध के बाद। मैनपुरी रेप में FIR, लेकिन देरी की शिकायतें।
  - **हरियाणा**: IPS पूरन कुमार मामले में FIR (IPC 108, SC/ST एक्ट), SIT गठित, रोहतक SP हटाया। कांग्रेस ने न्याय की मांग की।
  - **हिमाचल प्रदेश**: बालक आत्महत्या पर जांच जारी, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं।
  - **राजस्थान**: महिला पर हमले पर राजनीतिक बयानबाजी, लेकिन विशिष्ट कार्रवाई नहीं।
- **समस्या**: NCRB के अनुसार, SC/ST एक्ट में सजा दर मात्र 32% है; 14 राज्यों के 498 जिलों में केवल 194 विशेष अदालतें। पुलिस पूर्वाग्रह और देरी आम। Human Rights Watch ने 2025 रिपोर्ट में राज्य सरकारों पर हमलों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।


#### न्यायपालिका की जिम्मेदारी और कार्रवाई
- **सुप्रीम कोर्ट**: संविधान की रक्षा, SC/ST एक्ट की व्याख्या, और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना। CJI गवई पर हमले में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने वकील को निष्कासित किया, प्रवेश कार्ड रद्द किया। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने "बुलडोजर जस्टिस" को अवैध ठहराया और दिशानिर्देश जारी किए (नवंबर 2024 में, लेकिन 2025 संदर्भ में प्रासंगिक)।
- **हाईकोर्ट**: बॉम्बे हाईकोर्ट ने SC/ST एक्ट पर टिप्पणियां कीं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने दलितों पर हमलों में दोषियों को सजा दी।
- **समस्या**: न्यायपालिका में देरी; विशेष अदालतों की कमी। UN ह्यूमन राइट्स कमिटी ने 2025 में दलितों पर हिंसा पर चिंता जताई।

#### समग्र मूल्यांकन
- **जिम्मेदारी**: सरकारें रोकथाम, जांच और पुनर्वास के लिए जिम्मेदार हैं; न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय और कानून व्याख्या के लिए। लेकिन कम सजा दर, पुलिस पूर्वाग्रह और राजनीतिक चुप्पी से न्याय प्रभावित होता है। विपक्ष ने RSS-BJP पर "जातिवादी एजेंडा" का आरोप लगाया।
- **सुझाव**: विशेष अदालतें बढ़ाएं, पुलिस सुधार, और राष्ट्रीय जांच आयोग गठित करें। दलितों की सुरक्षा संविधान की रक्षा है। अधिक जानकारी के लिए NCRB या आधिकारिक स्रोत देखें।

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