बुधवार, 19 सितंबर 2012

केंद्रीय विवि में शिक्षकों के 5,362 पद खाली

केंद्रीय विवि में शिक्षकों के 5,362 पद खाली

वाराणसी/शैलेश सिंह
Story Update : Friday, August 24, 2012    12:39 PM
5362 teachers vacancies in central universities
देश के 31 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 5,362 पद खाली पड़े हैं। सबसे अधिक दिल्ली विश्वविद्यालय में 945 और दूसरे नंबर पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में 914 पद रिक्त हैं। इनमें प्रोफेसर से लेकर असिस्टेंट प्रोफेसर तक के पद शामिल हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सात हजार से अधिक गैर शिक्षण कर्मियों के पद भी भरे जाने हैं। आरटीआई के जरिए यूजीसी से मांगी गई जानकारी में यह तथ्य सामने आया है।

आरटीआई से मिली जानकारी
औरैया जिले के आलोक नगर निवासी महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में यूजीसी ने बताया कि 31 विश्वविद्यालयों में सामान्य वर्ग के 3011, अनुसूचित जाति के 896, अनुसूचित जनजाति के 475, ओबीसी के 822 और शारीरिक विकलांग कोटे के 158 शिक्षक पद खाली पड़े हैं।

डीयू में 945 पद खाली
अगर दिल्ली विश्वविद्यालय की बात करें तो यहां प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के सामान्य वर्ग के 691, अनुसूचित जाति के 64, एससी के 31, ओबीसी के 120 और शारीरिक विकलांग कोटे के 39 पद खाली हैं। इसी प्रकार बीएचयू में सामान्य वर्ग के 375, एससी के 247, एसटी के 150, ओबीसी के 124 तथा शारीरिक विकलांग कोटे के 18 पद रिक्त हैं।

बैकलॉग दूर करना यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी
महेंद्र प्रताप सिंह ने आरटीआई के तहत एक अन्य आवेदन में यूजीसी से पूछा था कि रिक्त पदों पर बहाली क्यों नहीं की जा रही है? इसका यूजीसी ने जवाब दिया कि यह जिम्मेदारी विश्वविद्यालयों की है कि वे बैकलॉग दूर करें। बीएचयू में आरक्षित पदों के बैकलॉग पूरे न होने पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग नाराजगी भी जता चुका है। इस संबंध में बीएचयू के रजिस्ट्रार प्रो. वीके कुमरा का कहना है कि यूजीसी के निर्देशानुसार रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है।

प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त शिक्षक पद
विश्वविद्यालय ------- रिक्त पद
दिल्ली विश्वविद्यालय ------- 945
बीएचयू ------- 914
जेएनयू ------- 268
इग्नू ------- 178
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ------- 508
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ------- 298
अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ ------- 22
सेंट्रल यूनिवर्सिटी पंजाब ------- 96
सेंट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश ------- 117
सेंट्रल यूनिवर्सिटी जम्मू कश्मीर ------- 52

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आप की राय -
Alok Singh, Pratapgarh
सुनकर बड़ी खुसी हुई की प्राथमिक विद्यालयों में आध्यापको की नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ होने वाली है. लेकिन अभी भी लगता नहीं की यह अभियान सफल होगा. क्योकि सरकार चाहती नहीं है. मायावती नें टी.इ. टी. की प्रक्रिया इसलिए सुरु की थी जिससे की वोट कें लिए धन का इंतजाम हो जाय और हुआ भी वही. मायावती का यह नारा है मुख्यमंत्री बनना हैं और सभी जिलो का नाम बदलना है. बेवजह .
Lajja ram, Pilkhuwa
Bharti kyo nhi ho rhi h.ek or to hm "siksha ka adhikar kanun" bna chuke h or dusri trf bhrti prkriya thpp pdi h. India is grret
Renu Tiwari, Lucknow
नमस्कार उजाला ,, आपकी यह जानकारी सुनकर बहुत दुःख हो रहा है इतने पद रिक्त होते हुए भी शिक्षकों की भारती नहीं की जा रही है ये कैसी सरकारी योजना है बेरोजगारी भत्ता के पट्टे से ऐसे ही कई बेरोजगार बंधे जायेंगे लेकिन उन्हें रोजगार नहीं देंगे यही निति है सर्कार की पद रिक्त रखना भी इनके वोते बैंक को मजबूत करेंगे अगले सत्र के लिए ..वह सर्कार राज है .....

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

समाजवाद बनाम पिछड़ा वर्ग


समाजवाद और पिछड़े वर्ग के अंतःसंबंधो पर एक नया दस्तावेज
पुस्तकः
समाजवाद बनाम पिछड़ा वर्ग
लेखकः
कौशलेन्द्र प्रताप यादव
प्रकाशकः सम्यक प्रकाशन,नई दिल्ली
मूल्य- 75 रु.,पृष्ठ- 112

भारत में अपने स्थापना काल से ही समाजवादियों को पिछड़ा वर्ग प्रेम जग जाहिर है। इसके ऐतिहासिक कारण रहे हंै। कांग्रेस जहां दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ को प्राथमिकता देती थी, वहीं दक्षिणपंथी ताकतें सवर्ण वर्चस्व को और मजबूत करना चाहती थीं। समाजवादियों ने इसीलिए पिछड़े वर्ग पर अपना दांव लगाया और ‘‘सोशलिस्टो ने लगाई हांक-पिछड़ा पावैं सौ में साठ’’ की हांक लगाई। मंडल आयोग की रिपोर्ट जिसे पिछडे़ वर्ग की बाइबिल कहा जाता है का गठन प्रथम समाजवादी सरकार में हुआ और इसे लागू भी उस वी0पी0 सिंह की सरकार में किया गया जिसमें समाजवादियों का वर्चस्व था।
इस पुस्तक के लेखक कौशलेन्द्र को पिछड़ा वर्ग आंदोलन का थिंक टैंक कहा जाता है। न केवल अपने लेखन से वरन जगह-जगह पिछड़े वर्ग पर अधिवेशन आयोजित कर वो अपनी सक्रियता बनाये रखते हैं। समाजवाद और पिछड़े वर्ग पर उनके जो लेख इधर राष्ट्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में आए हैं उसी का संग्रह है यह पुस्तक। इसकी प्रस्तावना प्रख्यात समाजवादी लेखक मस्तराम कपूर ने लिखी है।
पुस्तक का प्रथम लेख लोहिया और अंबेडकर के संबंधों पर है। लोहिया और अंबेडकर के तथाकथित अनुयायियों को यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए। उ0प्र0 में लोहिया के तथाकथित अनुयायियों द्वारा अंबेडकर की मूर्तियां तोड़ने की जो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हो रही है और दोनों को एक दूसरे से बड़ा बनाने की जो घिनौनी कोशिशंे हो रही हैं,इस दौर में इस लेख की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। लोहिया और अंबेडकर कैसे गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहते थे और कैसे एक राष्ट्रीय दलित-पिछड़ा महाजोट बनाना चाहते थे इस पर यह लेख प्रकाश डालता है। अंबेडकर पर लोहिया की यह टिप्पणी कि ‘‘गांधी के बाद इस देश में अगर कोई महान है तो वो अंबेडकर है’’ और अंबेडकर की यह टिप्पणी कि ‘‘समाजवादियों ने मुझसे गठबंधन करके मुझे राजनैतिक रूप से अछूत होने से बचा लिया’’ इस पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हालांकि इस पुस्तक में एक से अच्छे दूसरे लेख हंै लेकिन जिस एक लेख के लिए लेखक और यह पुस्तक याद रखी जायेगी वो यही लेख है। इस लेख में लेखक अंत में यह टिप्पणी करके पाठकों को भावुक कर देता है कि ‘‘अफसोस कि लोहिया और अंबेडकर के वारिस ही उनकी वसीयत और विरासत को  संजोकर नहीं रख पाये।’’
लोहिया पर इस पुस्तक में कई लेख है, जो उनके व्यक्तित्व और संघर्ष के कई अनछुए पहलू सामने लाते हंै। ‘‘लोहिया बनाम नेहरू’’ के अपने लेख में नेहरू और लोहिया की विचारधाराओं को सामने रखकर उनकी टकराहट की वजहें भी बताई गई हंै। 1962 के युद्ध में चीन ने जब भारतीय भूभाग के 14500 वर्ग मील पर कब्जा कर लिया तो लोहिया और दूसरे नेताओं ने नेहरू को संसद में घेरा। इस पर नेहरू ने जवाब दिया कि ‘‘चीन ने जिस भूभाग पर कब्जा किया है वह बर्फीला और बंजर है। उसे लेकर हमें ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है।’’ इस पर लोहिया ने नेहरू की चुटकी ली कि ‘‘आपकी खोपड़ी भी बंजर है, इसे भी चीन भेज दीजिए।’’ ऐसी न जाने कितनी ऐतिहासिक टिप्पणियां इस पुस्तक में दर्ज हंै जो इसे एक दस्तावेज बनाती हैं। ‘‘लोहिया के विविध रंग’’ नामक अपने लेख में लेखक ने दिखाया है कि लोहिया एक्टिविस्ट होने के अतिरिक्त एक कला मर्मज्ञ भी थे। इसमें लोहिया का नारी विषयक चिंतन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिसमें वो स्त्रि़यों को श्रीमती न कहकर श्री कहते और द्रौपदी को भारतीय इतिहास ही नहीं वरन विश्व इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्री घोषित करते हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन और अन्य कई किसान आंदोलनों में समाजवादियों की भूमिका का रेखांकन अभी तक नहीं हुआ है। ‘भारत छोड़ो आंदोलन में समाजवादियों का योगदान’ ऐसा ही एक लेख है, जिसमें कौशलेन्द्र का विशद ऐतिहासिक अध्ययन सामने आता है, जिसमें उन्होंने 1942 के आंदोलन में महाराष्ट्र, बिहार,उ0प्र0 और मध्य भारत में समाजवादियों के संघर्ष का गहराई से पड़ताल किया है। ‘कांग्रेस के कब्जे में समाजवाद’ इसी प्रकार का एक अन्य ऐतिहासिक लेख है, जिसमें कांग्रेस को न समझ पाने की दिशाहीनता समाजवादियों की कमजोरी के रूप में उसके स्थापना काल से ही रही है। उल्लेखनीय है कि समाजवादियों के आज तक जितने भी विभाजन हुए हंै चाहे वह अशोक मेहता ने किया हो या चन्द्रशेखर ने, उसके पीछे कांग्रेस का ही मंथरा परामर्श रहा है। इसी क्रम में लेखक वामपंथियों की भी गहरी जांच परख करता है और चुटकी लेते हुए कहता है कि जहां चार वामपंथी रहते है, वहां पांच प्रकार की राय सामने आती है।
उ0प्र0 की नयी बनी अखिलेश की समाजवादी सरकार पर भी पुस्तक में दो-तीन लेख हंै जिसमें उसकी चुनौतियां, पिछड़ा वर्ग आंदोलन को लेकर उससे अपेक्षाएं और कानून व्यवस्था पर उठ रहे सवालों पर एक विमर्श किया गया है।
पुस्तक में प्राकृतिक प्रकोपों पर भी समाजवादी दृष्टिकोण से चर्चा की गई है। इसमें माक्र्स की वो टिप्पणी भी दर्ज है जिसमें वो एंगेल्स से कहते हंै कि ‘‘सभ्यता जब अविवेकपूर्ण ढंग से विकसित होती है तो अपने पीछे रेगिस्तान छोड़ जाती है।’’ यहां एक मर्मांतक टिप्पणी लोहिया की भी है जिसमें वो कहते है कि ‘‘विचारों के अकाल से पड़ता है सूखा।’’
इस पुस्तक में कुछ अन्य पठनीय लेख है-ममता क्यों हैं निर्मम, किन्नर और दरगाहों से उठे मोहब्बत के पैगाम। ममता वाले अपने लेख में लेखक ममता के उलझे चरित्र पर मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रकाश डालता है। इस क्रम में लेखक की दृष्टि जयललिता और मायावती से होते हुए अटल बिहारी वाजपेयी तक जाती है और इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि अविवाहित लोग क्यों आदर्शवादी या यूटोपियन ज्यादा होते हंै और कुछ बिन्दुओं पर यथार्थ से कोसांे दूर। ‘दरगाहों से उठे मोहब्बत का पैगाम’ में भारत और पाकिस्तान में फैली महत्वपूर्ण सूफी दरगाहों का उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ भारत-पाक संबंधों पर उनके महत्व को रेखांकित करता है। किन्नरों की त्रासदी पर लेखक ने इतने मार्मिक ढंग से लेखनी चलाई है कि पाठक रोने को मजबूर हो जाता है।
पिछड़ा वर्ग आंदोलन पर मस्तराम कपूर, वासुदेव चैरसिया, प्रो0 चैथीराम यादव, जवाहर लाल नेहरू वि0वि0 के डा0 विवेक कुमार और गुलाबी गैंग की कमांडर सम्पत पाल के साक्षात्कार इस पुस्तक को और भी जीवंत बनाते हंै।
कुल मिलाकर इस पुस्तक में कौशलेन्द्र का लेखक उनके आंदोलनधर्मी चरित्र पर भारी पड़ गया है। इस पुस्तक में लोहिया और अंबेडकर के अंतर्सबंधों के माध्यम से न केवल दलितों-पिछड़ों के विभाजन को पाटने की कोशिश है, वरन भटके हुए समाजवादी आंदोलन पर तंज भी है। हिंदी पट्टी से  कांग्रेस क्यों गायब हो रही है, इसकी एक बड़ी वजह लेखक यह भी बताता है कि कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के साथ हमेशा सौतेला रवैया अपनाया। काका कालेलकर से लेकर मंडल आयोग तक, जाति जनगणना से लेकर पदोन्नति में आरक्षण तक, सब जगह कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग को दरकिनार किया। जांच-परख करते हुए पूरी पुस्तक में लेखक ने बख्शा किसी को नहीं है और सबको बड़ी बेरहमी से लताड़ लगाई है। लेकिन मूलतः एक्टिविस्ट होने के कारण कौशलेन्द्र ने भविष्य के संघर्षों के संकेत भी दिए हंै।
यह पुस्तक इसलिए लम्बे समय तक याद रखी जायेगी क्योंकि इसमें समाजवाद और पिछड़ा वर्ग आंदोलन का न केवल इतिहास दर्ज है वरन् गुमरह लोगों के लिए भविष्य के संघर्षों का संकेत भी।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

इसकी क्या जरूरत थी .............



राज्यसभा में सपा और बसपा सांसदों में हाथापाई

 बुधवार, 5 सितंबर, 2012 को 13:17 IST तक के समाचार
सपा और बसपा आरक्षण के मुद्दे पर आमने सामने खड़े हैं.
सरकारी नौकरियों में प्रमोशन (पदोन्नति) में आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर राज्यसभा के भीतर चलते सत्र के दौरान सांसदों में हाथापाई हो गई है.
राज्यसभा टेलीविजन चैनन में समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल और बहुजन समाज पार्टी के अवतार सिंह के एक दूसरे को धकियाने और गुत्थमगुत्था होने के दृश्य प्रसारित किए गए हैं.
अवतार सिंह सदन के केंद्र की तरफ बढ़ते हुए देखे गए. पर तभी समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल ने आगे बढ़कर दोनों हाथों से उनका रास्ता रोकने की कोशिश की.
इस पर अवतार सिंह उनसे गुत्थमगुत्था होते दिखे.
फिर दोनों स्कूली लड़कों की तरह एक दूसरे को हाथों के जोर से पीछे धकेलते हुए नजर आए.
एक दो सांसद बेमन से बीच बचाव करने आए लेकिन उसका कोई असर नहीं पड़ा. सदन के बाकी सभी सदस्य अपनी अपनी सीटों पर बैठे रहे.
ये हाथापाई सदन के पटल पर विधेयक रखे जाने के कुछ ही देर बाद शुरू हो गई.
इसके बाद राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई है.

राजनीति

बसपा के अवतार सिंह समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल की भिड़ंत.
समाजवादी पार्टी ने खुले तौर पर इस विधेयक के विरोध का ऐलान किया है और बहुजन समाज पार्टी इसका समर्थन कर रही है.
इस विधेयक को मंगलवार को कैबिनेट ने मंज़ूर दी थी.
जहाँ देश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण पहले से मौजूद है, वहीं ताजा प्रस्ताव के तहत नौकरी पा चुके अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए पदोन्नति में भी आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा.
भारत का सुप्रीम कोर्ट प्रमोशन में आरक्षण को गैरकानूनी ठहरा चुकी है और यदि इसे लागू करना है तो सरकार को इस मामले को संसद में लाकर संसदीय मंजूरी लेनी होगी.
समाजवादी पार्टी कहती है कि सरकार कोयला घोटाले से ध्यान हटाने के लिए इस विधेयक को लाई है.
बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा है कि अगर सरकार इस प्रस्ताव को संसद के वर्तमान सत्र में पारित नहीं कराती तो ये माना जाएगा कि सरकार गरीबों को ये सुविधा देना नहीं चाहती है.
असल में पूर्व में उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मायावती सरकार ने सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया था जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर विधेयक लाने का फैसला किया है.

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

कांग्रेस ने ओबीसी के लिए भी आरक्षण की मांग की


प्रोन्नति में कोटे को हरी झंडी

Sep 04, 12:31 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कोयला ब्लॉक आवंटन में चौतरफा घिरी सरकार ने आरक्षण का दांव खेल दिया है। केंद्रीय कैबिनेट ने सरकारी नौकरियों की प्रोन्नति में भी अनुसूचित जाति [एससी] और अनुसूचित जनजाति [एसटी] को आरक्षण के लिए संविधान संशोधन बिल को मंगलवार को हरी झंडी दे दी। सरकार बुधवार को ही इस विधेयक को राज्यसभा से पारित कराने की कोशिश में है। हालांकि सपा के विरोध के कारण आशंकाएं बरकरार हैं।
संविधान के अनुच्छेद 16 [4] में संशोधन किए जाने को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही राजनीति भी शुरू हो गई है। बसपा प्रमुख मायावती व कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया, लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान समेत एससी/एसटी समुदाय के दूसरे सांसदों ने खुशी जाहिर की है। मायावती ने अपने सांसद सतीशचंद्र मिश्र के साथ राजग नेताओं खासकर भाजपा के सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से मिलकर विधेयक को इसी सत्र में पारित कराने के लिए मदद मांगी है। इतना ही नहीं, सपा व गैर एससी/एसटी सांसदों के विरोध को देखते हुए माया ने पिछड़े समुदाय को भी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान इसी विधेयक में किए जाने की पैरवी कर दी है। संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा कि सरकार बिल पारित कराने के लिए कटिबद्ध है। बुधवार को राज्यसभा में दोपहर 12 बजे या फिर दो बजे बिल पेश किया जाएगा।
पासवान ने भी कहा कि यह विधेयक पारित होते ही ओबीसी के लिए भी ऐसा ही बिल लाया जाए तथा अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए आरक्षण का इंतजाम किया जाए, लेकिन मामला इतना आसान नहीं है। सपा ने विधेयक के विरोध का एलान कर दिया है। सपा प्रवक्ता प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा, 'जिस मामले को सुप्रीम कोर्ट चार बार खारिज कर चुका हो, उसे पलटने के लिए संविधान संशोधन का कदम प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। हम पहले भी इसके विरोध में थे। वह अब भी संसद के भीतर और बाहर जारी रहेगा।'
दूसरे दलों में भी इस मुद्दे पर अंदरूनी मतभेद है। माना जा रहा है कि ऐसे दल चुप होकर स्थिति को देखेंगे। भाजपा की परेशानी यह है कि अगर वह कोयला ब्लॉक को लेकर विरोध बरकरार रखती है और संसद बाधित होती है तो ठीकरा उसके सिर फूटेगा। और शांत रहती है तो माना जाएगा कि कोयले पर उनका विरोध खत्म हो गया है। इतना तय है कि पार्टी विधेयक का विरोध नहीं करेगी।
बताते हैं कि संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 16 व 335 प्रोन्नति में आरक्षण में बाधा नहीं बनेंगे। इस मामले में 19 अक्टूबर, 2006 को दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाएगा। केंद्रीय नौकरियों में उनके लिए आरक्षण का लाभ प्रोन्नति में तो मिलेगा ही, जबकि राज्यों की नौकरियों में यह उनकी आबादी के लिहाज से परिणामी ज्येष्ठता [कांसीक्वेंशियल सीनियारिटी] के आधार पर प्रोन्नति मिल सकेगी।
प्रोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की शर्ते
1-प्रोन्नति में कांसीक्वेंशियल सीनियारिटी का फायदा [आरक्षण] तभी मिल सकता है, जब एससी/एसटी का समुचित प्रतिनिधित्व न हो।
2-नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन का समुचित डाटा उपलब्ध हो।
3-इससे प्रशासनिक दक्षता न प्रभावित नहीं होती हो।

रविवार, 26 अगस्त 2012

नेता जी के नाम खुला पत्र

माननीय श्री मुलायम सिंह यादव जी
राष्ट्रीय  अध्यक्ष
समाजवादी पार्टी

महोदय,
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का पदोन्नतियों में आरक्षण का मुद्दा काफी गरम है तथा संविधान में संषोधन न करके पुनः पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है तथा पूर्ण संम्भावना है कि संविधान में संषोधन कर पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था पुनः कर दी जायेगी।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को नियुक्तियों व पदोन्नतियों में आरक्षण प्रारम्भ से ही है ये व्यवस्था प्रथमवार दस वर्ष के लिये की गयी थी परन्तु प्रति दस वर्ष पुनः दस-दस वर्ष करके बढाया जाता रहा है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की पदोन्नति में आरक्षण पर किसी को आपत्ति नहीं रही, पदोन्नति मंे आरक्षण के बावजूद निष्चित अनुपात में उच्च पदों पर अब भी कोटा पूरा नहीं है। पदोन्नतियांे में आरक्षण निष्चित ही होना चाहिए। इसमें किसी को आपत्ति नहीं थी।
समस्या तब उत्पन्न हुई जब कुछ अति महत्वाकांक्षी अधिकारियों ने गलत सलाह देकर पदोन्नतियों में परिणामी लाभ देने का आदेष करा दिया तथा पदोन्नतियों में परिणामी लाभ की व्यवस्था कर दी गयी इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जूनियर अधिकारी भी कई-कई बैच सीनियर से भी आगे जाने लगे तब जाकर पदोन्नतियों में आरक्षण पर भी प्रष्न चिन्ह लग गया जिसको माननीय उच्च न्यायालय ने अवैध ठहराया। बाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी पदोन्नतियों में आरक्षण को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अवैध ठहराने की पुष्टि कर दी।
अब संविधान में संषोधन करके पुनः पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए की जा रही है।
पिछड़े वर्गों को नियुक्तियों में भी आरक्षण नहीं था जबकि काका कालेकर आयोग एवं मण्डल आयोग द्वारा पिछड़े वर्गों की नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था करने की संस्तुति बहुत पहले की गयी थी। सर्वप्रथम उत्तर प्रदेष में वर्ष 1977 में माननीय श्री रामनरेष यादव जी के नेतृत्व में बनी सरकार में 15 प्रतिशत नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। बाद में भारत सरकार ने 27 प्रतिशत नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था की। पिछड़े वर्गों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की कोई व्यवस्था न उत्तर प्रदेष में है और न भारत सरकार में हंै।
अब क्योंकि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए संविधान में संषोधन करके पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था की जा रही है। इसी के साथ पिछड़े वर्गों के लिए भी पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था का प्रष्न उठाया जाना आवष्यक हो गया है। क्योंकि पिछड़े वर्गों की आबादी 55 प्रतिषत से अधिक है परन्तु आरक्षण 27 प्रतिषत ही दिया गया है इस तरह पिछड़ों का राजकीय सेवाओं में प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उच्च पदों पर सीधी भर्ती नहीं होती तथा पदोन्नतियोें में पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व अत्यंन्त ही कम है। ऐसी परिस्थिति में पिछडे वर्गों का उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व कैसे पूरा हो सकता है। इस बिन्दु पर विचार किया जाना अत्यंन्त आवश्यक है। क्योंकि नये सिरे से पदोन्नतियों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण की व्यवस्था हो रही है। इस संम्बन्ध में मेरा सुझाव है कि पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दी है। अतः पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था पुनः न करके अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के लिए जिनको वर्तमान में नियुक्तियों में अर्थात् सीधी भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था है इसी आरक्षण का विस्तार करके सभी पदों पर, चाहे वह सीधी भर्ती से भरे जायें या चाहे पदोन्नति से भरे जायें, लम्बवत् (Vertical/Perpendicular) आरक्षण की व्यवस्था कर दी जाये तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होगी इसका लाभ यह होगा कि सीधी भर्ती में तो 27 प्रतिशत, 21 प्रतिषत व 2 प्रतिषत की भर्ती हो जाती है तो पदोन्नतियों में भी 27 प्रतिषत, 21 प्रतिषत व 2 प्रतिषत की व्यवस्था हो जायेगी। इससे कालान्तर में 27 प्रतिषत, 21 प्रतिषत व 2 प्रतिषत पदों पर आरक्षित वर्गों का अनुपात हो जायेगा। इससे उस विसंगति को भी समाप्त किया जा सकेगा जहां 50 प्रतिषत नियुक्ति सीधी भर्ती से होती है एवं 50 प्रतिषत नियक्तियाँ पदोन्नति से होतीं हैं। वहां पिछड़े वर्गों को सीधी भर्ती मंे 27 प्रतिषत का लाभ मिलता है परन्तु पदोन्नतियों में कोई लाभ न मिलने से 27 प्रतिषत का अनुपात कभी पूरा नहीं हो पाता। कुछ पद शत् प्रतिषत पदोन्नति से ही भरे जाते हैं वहां पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिषत का अनुपात कभी भी पूरा नहीं हो सकता। सभी नियुक्तियांे पर लम्बवत् (Vertical/Perpendicular) आरक्षण का लाभ होने पर शत्प्रतिशत पदोन्नति से भरे जाने वाले पदों पर भी 27 प्रतिषत, 21 प्रतिषत व 2 प्रतिषत का लाभ स्वतः मिलने लगेगा। 
           यहाँ यह स्पष्ट करना भी उचित होगा कि जहां सीधी भर्ती में पिछड़े वर्गों का आरक्षण है वहां पदोन्नति से नियुक्तियों में आरक्षण नहीं है, नियुक्ति दोनों प्रकार के पदों पर होती है। फिर चाहे सीधी भर्ती से हो या पदोन्नति से। पदोन्नति के बाद उच्च पद पर नियुक्ति की जाती है। अतः सीधी भर्ती या पदोन्नति से भर्ती का विचार किये बिना सभी पदों पर नियुक्तियों में लम्बवत् (Vertical/Perpendicular) आरक्षण की व्यवस्था करने का विचार करना अतिआवश्यक है। क्योंकि नये सिरे से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था करने पर विचार किया जाना है उसका विरोध कोई पार्टी नहीं करेगी। परन्तु इसी के साथ पिछड़े वर्गों के लिए सभी स्तर के पदों पर नियुक्तियों में लम्बवत् (Vertical/Perpendicular) आरक्षण की व्यवस्था करने पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
इस समय हमारा पिछड़ा वर्ग का नेतृत्व पिछड़े वर्ग का समाज चूक गया तो फिर ऐसा समय कभी नहीं मिलेगा तथा भावी पीढियों हमको सदैव कोसेंगीं। अतः समय है हम जागरूक हों तथा सजग होकर मांग करें। हम कुछ मांग नहीं रहे हैं केवल सभी पदों पर नियुक्तियों में तथा पदोन्नतियों में लम्बवत् (Vertical/Perpendicular) आरक्षण की मांग कर रहे हैं जोकि हमारा हक है।
       आज जरूरत अनुसूचित जातियों के प्रमोशन में आरक्षण का विरोध नहीं बल्कि पिछड़ों के प्रमोशन में में भी आरक्षण की मांग की जरूरत है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो समता मूलक समाज बनाने के बजे विषमता  रहेगी और द्विज सामराज्य प्रभावी रहेगा .
(डॉ.लाल रत्नाकर)


शनिवार, 25 अगस्त 2012

प्रमोशन में आरक्षण

प्रमोशन में आरक्षण पर सरकार के सामने फंसा नया पेच

नई दिल्ली/ब्यूरो
Story Update : Sunday, August 26, 2012    12:41 AM
ag warns govt on Reservation in promotion
अनुसूचित जाति व जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने संबंधी विधेयक लाने का वादा कर चुकी केंद्र सरकार के सामने अब नया पेच फंस गया है। केंद्र को उसके ही शीर्ष विधि अधिकारी अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने सलाह दी है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रस्ताव कानूनी तौर पर पुख्ता नहीं है।

उन्होंने सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि इस विषय पर कोई भी कानून लाते समय सतर्कता बरती जाए। इस तरह के कानून को अदालत में चुनौती दी जा सकती है, जबकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश की ओर से पदोन्नति में आरक्षण देने के कानून को निरस्त कर चुका है।

वाहनवती की ओर से यह राय कार्मिक मंत्रालय को भेजी गई है। हाल ही में सरकार ने टिकाऊ संशोधन कर एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण का भरोसा राजनीतिक दलों को दिलाया था। वाहनवती ने सरकार को इस मुद्दे पर सावधानी से कदम बढ़ाने की नसीहत देते हुए कहा है कि संशोधन के लिए प्रस्तावित कदम मजबूत होने चाहिए क्योंकि नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर लोग अदालत में इसे चुनौती देंगे।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर सरकार को इस मुद्दे के सभी पहलुओं से अवगत कराते हुए पेचीदगियों की जानकारी भी दी है। सर्वोच्च अदालत ने 28 अप्रैल को पूर्व की मायावती सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश में एससी/एसटी को दिए गए प्रमोशन में आरक्षण को निरस्त कर दिया था। इसी के बाद केंद्र सरकार ने इस आरक्षण के संबंध में संशोधन लाने को कहा था। हाल ही में इस मसले पर सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने रुख साफ करते हुए कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए सरकार टिकाऊ विधेयक लेकर आएगी।

विरोध में है सपा
समाजवादी पार्टी प्रमोशन में आरक्षण के विरोध में है। उसका कहना है कि इससे सामाजिक भेदभाव बढ़ेगा।

भाजपा का रुख साफ नहीं
इस मुद्दे पर दुविधा में पड़ी भाजपा ने अपना रुख अब तक खुलकर जाहिर नहीं किया है। उसकी आशंका है कि प्रमोशन में आरक्षण को समर्थन पर उसका सबसे खास वोट बैंक सवर्ण नाराज हो जाएंगे, जबकि विरोध करने पर अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग।

सरकार ने किया वादा
सरकार ने हाल ही में राजनीतिक दलों को भरोसा दिलाया है कि उसने सभी कानूनी पहलुओं की जांच करने के बाद एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण मुहैया करने को लेकर संविधान में संशोधन करने का समर्थन किया है।

एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण मुहैया कराने के लिए प्रस्तावित कदम पर्याप्त रूप से मजबूत होना चाहिए क्योंकि इसे अदालत में चुनौती दिए जाने की प्रबल संभावनाएं है।
जीई वाहनवती, अटॉर्नी जनरल

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