मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

अतः अन्ना का आना अभी "शुभ नहीं है"


डॉ.लाल रत्नाकर 
एक शिक्षक और कलाकार

बोया पेड़ बबूल का -आम कहाँ से खाय |
अन्ना जी का उत्तर प्रदेश जाना अभी शायद जल्दबाजी का काम है, जब पूरे देश से भ्रष्टाचार मिट जायेगा तो इस पिछड़े राज्य से भी मिट ही जायेगा . आखिर  बहन जी का उत्तर प्रदेश पर राज्य करना देश की पहली दलित प्रयोगशाला है, इसमे 'भ्रष्टाचार की बात भी बेमानी लगती है क्योंकि बेईमानों को हटाकर बिना बेईमानी के कैसे राज करेंगी' भ्रष्टाचार के आगोश में जब पूरा देश डूबा हो तो बहन जी का भ्रष्टाचार समुद्र में बूंद जैसा ही है.पर आज जिस तरह से 'भ्रष्टतम' समाज पैदा हो गया है उसका क्या होगा ? उसका ठीकरा प्रदेश के जन जन तक पर फोड़ा जा रहा है पर भ्रष्ट बिलकुल अलग और पुराने तरीके से ही लगे हैं. पहले उदारीकरण तो था नहीं आजकल भ्रष्टाचार में भी उदारता बरती जा रही है, फला फला के लिए  आज़ादी है, फला फला के लिए उसमें जेल, इसका इलाज कैसे होगा. यदि उत्तर प्रदेश में इनका यही हाल रहा तो बाकि के प्रदेश का क्या हश्र होगा. त्रिपाठी जी ने इशारे इशारे में ही उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व और वर्तमान पर इशारा किया पर अभूतपूर्व दलों की ओर इशारा तक नहीं किया है. पूरे प्रदेश में सिस्टम के नाम पर बहु बेटियों तथा निक्कमे स्वजातियों को बैठाये हुए है हर जगह, जिसका अदृश्य रूप जब जब सबके सामने आता है तो दिखाई देता है कि घोर भ्रष्टाचार और अत्याचार में लम्बे समय से डूबा है यह प्रदेश. लेकिन पुलिस की भर्ती में धांधली की आवाज़ तो हाई कोर्ट तक जाती है, पर सारी भर्तियों में - जातीय निक्कमों की फौज की फौज - सारे सरकारी दफ्तरों , विद्यालयों , विश्वविद्यालयों में थोक में है पर उनपर न तो मिडिया नज़र उठाता है और न अन्ना हजारे निकलते हैं सुधार के लिए "दलित राज्य की उपलब्धियों को नकारने का मतलब तो समझ में आता ही होगा" पर सारी उपलब्धियों का श्रेय "द्विज" शक्तियों को देना बहुत बड़ी साजिश है भ्रष्टाचार को बनाये रखने की.
अतः अन्ना का आना अभी "शुभ नहीं है"
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अन्ना मामले पर शिक्षकों की नाराजगी

रामदत्त त्रिपाठी

अन्ना
अन्ना हज़ारे यूपी का दौरा करने वाले हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहिम चलाना चाहते हैं.


लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति द्वारा ने विश्वविद्यालय शिक्षक संघ को अन्ना हजारे के स्वागत में सभा करने और विश्वविद्यालय गेस्ट हाउस में रुकने देने की अनुमति रद्द कर देने की शिक्षक और कर्मचारी संघ में तीखी प्रतिक्रिया हुई है.
समझा जाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने राज्य सरकार के दबाव में यह कदम उठाया है.
लखनऊ विश्विद्यालय शिक्षक और कर्मचारी संघ प्रशासन के फैसले से बहुत नाराज है. दोनों संगठनों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई.
शिक्षक संघ के अध्यक्ष डाक्टर दिनेश कुमार ने बताया कि वे और उनके साथी कुलपति प्रोफ़ेसर मनोज कुमार मिश्र से मिले थे और उनसे मालवीय सभागार में सभा कर लेने देने का अनुरोध किया. मगर कुलपति नही माने.
प्रशासन द्वारा एस सम्बन्ध में असहमति व्यक्त करने के कारण अतिथि गृह में कक्ष उपलब्ध कराना संभव नही है
मनोज दीक्षित, प्रोफेसर
डाक्टर दिनेश कुमार के अनुसार कुलपति ने कहा कि वह इस तरह का विवादास्पद कार्यक्रम नहीं होने देंगे.
दिनेश कुमार के मुताबिक़ इससे पहले उन्हें मालवीय सभागार में सभा की अनुमति दी गयी थी और उन्होंने उसके लिए आवश्यक धन राशि भी जमा कर दी थी.
शिक्षक संघ के अनुसार मालवीय सभागार के अलावा अन्ना हजारे तथा उनके साथियों किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश और अरविन्द केजरीवाल आदि के रुकने के लिए विश्वविद्यालय गेस्ट हाउस देने से भी मना कर दिया गया है. गेस्ट हाउस के इंचार्ज प्रोफेसर मनोज दीक्षित ने इसकी पुष्टि की है.
मनोज दीक्षित ने शिक्षक संघ को लिखे एक पत्र में बताया है कि, ''प्रशासन द्वारा एस सम्बन्ध में असहमति व्यक्त करने के कारण अतिथि गृह में कक्ष उपलब्ध कराना संभव नही है.''
विश्वविद्यालय कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष जगदीश सिंह और महामंत्री राकेश यादव भी अपना विरोध दर्ज कराने के लिए प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित थे.
लखनऊ विश्विद्यालय परिसर गोमती नदी के किनारे झूले लाल मैदान के पास है , जहां पहली मई को अन्ना हजारे की जन सभा होनी है.
विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने इस आम सभा से पहले मालवीय सभागार में स्वागत कार्यक्रम रखा था. इसके बाद विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी और छात्र अन्ना हजारे की रैली में भी शामिल होने वाले थे.
इस घटना से मै बहुत आहत हूँ. आपने कार्य परिषद को भी विशवास में लेना उचित नही समझा. आपका यह कृत्य विश्विद्यालय की स्वायत्तता व् अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है.
अनिल सिंह, प्रोफेसर
विश्विद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य अनिल कुमार सिंह ने कुलपति के फैसले की निंदा की है.
अनिल कुमार सिंह ने कुलपति को लिखे एक पत्र में कहा कि, ‘‘इस घटना से मै बहुत आहत हूँ. आपने कार्य परिषद को भी विशवास में लेना उचित नही समझा. आपका यह कृत्य विश्विद्यालय की स्वायत्तता व् अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है. आपके निर्णय से विश्विद्यालय की गरिमा को अपार क्षति हुई है.’’
अनिल कुमार सिंह ने याद दिलाया है कि इसके पहले जय प्रकाश नारायण , वीपी सिंह एवं अन्य सामाजिक राजनीतिक नेताओं की सभाएं विश्विद्यालय परिसर में होती रही हैं.
शिक्षक संघ के महासचिव डाक्टर आरबी सिंह का कहना है कि कुलपति के इस निर्णय को एक चुनौती के रूप में लिया गया है.
अब शिक्षक और छात्र भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आन्दोलन में ज्यादा सक्रियता से काम करेंगे. उनका कहना है अन्ना हजारे के जाने के बाद शिक्षक संघ इस मसले पर अपनी आम सभा की बैठक बुलाएगा.
कुलपति प्रोफ़ेसर मनोज कुमार ने फोन नहीं उठाया लेकिन गेस्ट हॉउस के इंचार्ज प्रोफ़ेसर मनोज दीक्षित ने सभागार और गेस्ट हॉउस का आरक्षण रद्द करने के निर्णय की पुष्टि की है
प्रेक्षकों का कहना है कि लखनऊ विश्विद्यालय के इस निर्णय से साफ़ है कि मायावती सरकार अन्ना हजारे के उत्तर प्रदेश दौरे से काफी असहज महसूस कर रही है.

(बी बी सी हिंदी से साभार)

वाह कुलपति महोदय आपने कर दिया कमाल !

विवि में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में आप 'भ्रष्टाचारियों के साथ'

लविवि में अन्ना के लिए जगह नहीं

Apr 27, 03:01 am
-बुकिंग के बाद मालवीय सभागार और अतिथि गृह देने से किया इंकार
-विवि में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को झटका
लखनऊ, 26 अप्रैल (संवाद सूत्र) : भ्रष्टाचार के खिलाफ देश को एकजुट करने वाले गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में कोई जगह नहीं है। शिक्षक भले ही अन्ना को बुला कर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को बल देना चाहते हों लेकिन लविवि प्रशासन के लिए यह महज 'विवादित' कार्यक्रम है और ऐसा कोई कार्यक्रम वह अपने यहां कराने को राजी नहीं है। इसी वजह से विवि प्रशासन ने परिसर स्थित मालवीय सभागार व अतिथि गृह की पहली मई की उस बुकिंग को भी निरस्त कर दिया, जिसे शिक्षकों ने अन्ना के लिए आरक्षित कराया था।
मंगलवार को बुकिंग निरस्त होने की सूचना आने के बाद कुलपति प्रो. मनोज कुमार मिश्र से मिलने गए लूटा पदाधिकारियों ने मुलाकात के बाद बताया कि कुलपति ने परिसर में किसी भी 'विवादित' कार्यक्रम की अनुमति देने से मना कर दिया है। शिक्षकों के मुताबिक वे अन्ना का स्वागत करना चाहते हैं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं है। शिक्षकों का आरोप है कि निर्धारित कार्यक्रम के दौरान मंच पर कुलपति, कुलसचिव और प्रतिकुलपति के लिए कोई स्थान नहीं रखा गया था, लिहाजा यह कार्यवाही द्वेष की भावना से की गई है।
लूटा के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार और महामंत्री डॉ. आरबी सिंह ने बताया कि अन्ना से कार्यक्रम की स्वीकृति मिलने पर एक मई के लिए बीती 23 अप्रैल को मालवीय सभागार बुक कराया गया था। इसके लिए निर्धारित पांच सौ रुपये का भुगतान भी कैशियर कार्यालय में कर दिया गया था। आमंत्रित अतिथियों में अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश, किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल को ठहराने के लिए अतिथि कक्ष के छह कमरे दिए जाने की स्वीकृति भी विवि प्रशासन ने दे दी थी। शिक्षक कार्यक्रम की तैयारियों में जुटे थे कि इसी बीच लविवि प्रशासन ने उन्हें मालवीय सभागार की बुकिंग रद करने की सूचना भेज दी।
विवि के निर्णय के खिलाफ कार्यपरिषद सदस्य अनिल सिंह, लविवि शिक्षक संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष दिनेश कुमार, महामंत्री आरबी सिंह और कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष जगदीश सिंह ने प्रेसवार्ता कर कुलपति की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया। शिक्षकों ने कहा कि एक मई के बाद बैठक कर विवि प्रशासन के इस फैसले के विरोध में आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी।
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''कार्यपरिषद सदस्य और जिम्मेदार नागरिक के नाते इस समाचार से आहत हूं। कुलपति ने एकतरफा फैसला लिया है, जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और विवि की गरिमा के विरुद्ध है।''
अनिल सिंह, कार्यपरिषद सदस्य
लखनऊ विश्वविद्यालय
''अन्ना हजारे के आगमन से विवि में होने वाली भीड़ को देखते हुए उनकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता था। किसी तरह की दुर्घटना से बचने के लिए कार्यक्रम रद किया गया है।''
प्रो.एसके द्विवेदी,प्रवक्ता,लखनऊ विश्वविद्यालय


सोमवार, 4 अप्रैल 2011

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की जाति

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की जाति
by Udit Raj on 04 अप्रैल 2011 को 15:12 बजे
 नई दिल्ली, 4 अप्रैल, 2011.

डॉ0 उदित राज, रा0 चेयरमैन, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसवंघ ने कहा कि लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि भ्रष्टाचार की कोई जाति नहीं होती लेकिन यह सच नहीं है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, श्री के.जी. बालाकृष्णन एवं कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, श्री पी.डी. दिनाकरन के साथ जो हुआ या हो रहा है, उससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भ्रष्टाचार की जाति है। यहां यह मतलब नहीं है कि ये भ्रष्ट हैं या ईमानदार। प्रश्न यह है कि दर्जनों हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के तथाकथित सवर्ण जज भ्रष्टाचार में डूबे हैं, उनके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठती? के.जी. बालाकृष्णन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी और संज्ञान लिया गया। ऐसा अन्यों के मामले में क्यों नहीं?

डॉ0 उदित राज ने आगे कहा कि सन् 2000 में भारत के मुख्य न्यायाधीश, डॉ. ए.एस. आनंद थे। मध्य प्रदेश में जमीन घोटाला हुआ, श्री आनंद अपने प्रभाव का दुरूपयोग करते हुए अपनी पत्नी के माध्यम से झूठा शपथ-पत्र देकर वहां की सरकार से एक करोड़ से ज्यादा मुवावजा उठाया। इन्होंने अपनी जन्मतिथि में भी हेर-फेर किया जिससे देर तक न्यायपालिका में बने रहे।  जिन वकीलों ने उनकी मदद की, उनकी पदोन्नति हुई। वरिष्ठ पत्रकार श्री विनीत नारायण इनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहते थे लेकिन राजनैतिक लोग डर गए। तब उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन, को अपील भेजी, तो उन्होंने इस याचिका को उस समय के कानूनमंत्री, राम जेठमलानी के पास भेजा। उसके बाद जेठमलानी ने डॉ0 आनंद के पास उनकी टिप्पणी के लिए याचिका को अग्रसारित कर दिया। इनकी बचत में अरूण जेटली एवं अटल बिहार वाजपेयी आए और अंत में जेठमलानी को कानूनमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। कितना फर्क है कि एक दलित मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ बड़े आराम से भ्रष्टाचार की आवाज उठ रही है और सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिका मंजूर कर ली। दूसरी तरफ जब सवर्ण मुख्य न्यायाधीश का मामला आया तो देश के कानूनमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। मामला ठीक उल्टा हुआ, क्योंकि इस्तीफा डॉ0 आनंद को देना चाहिए था। सवर्ण मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ आवाज उठाने पर न केवल देश के कानूनमंत्री को जाना पड़ा बल्कि वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण को भूमिगत होना पड़ा। डॉ0 आनंद ने विनीत नारायण के खिलाफ जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में अवमानना का मुकदमा कायम करवा दिया। चूंकि हिजबुल मुजाहिदीन के निशाने पर विनीत नारायण थे और उन्हें श्रीनगर में रहकर अपनी पैरवी करनी थी, इसलिए ऐसा किया गया। विनीत नारायण के घर और दफ्तर पर छापे भी मारे गए। मजबूर होकर वे देश छोड़कर भाग गए। आज भी डॉ0 आनंद के खिलाफ सारे घोटालों की फाइलें पड़ी हुई हैं और जांच की जाए तो सिद्ध हो जाएगा कि भ्रष्टाचार के आरोप बिल्कुल सही थे। सवर्ण होने का फायदा कितना है, इससे भी जान सकते हैं कि डॉ0 आनंद को सेवानिवृत्त के बाद भारत के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। मजे की बात है कि इनकी नियुक्ति डॉ0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के समय हुई। 

डॉ0 उदित राज ने बताया कि दूसरे सवर्ण मुख्य न्यायाधीश, श्री वाई.के. सब्बरवाल तो डॉ0 ए.एस. आनंद से भी कहीं आगे भ्रष्टाचार में निकले लेकिन उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका मंजूर नहीं हुई और शान से नौकरी करके सेवानिवृत्त हुए। दिल्ली के बड़े बिल्डरों से साठ-गांठ करके सैकड़ों कॉलोनियांें एवं लाखों दुकानों को सील कर दिया। लाखों लोग भुखमरी के कगार पर आ गए। हजारों मकान तोड़ दिए गए, जो दुकानें सील हुई थी उनको खोलने में बड़ा समय लगा। उसकी वजह से अरबों का रखा हुआ भीतर सामान सड़ गया या जंग लग गया। आवास से ही इनके बेटों ने कंपनी चलायी। सिकंदर रोड, कनॉट प्लेस, जो बहुत पॉश कालौनी है, इनके बेटों ने लगभग 100 करोड़ की सम्पत्ति खरीदी। भ्रष्टाचार सिद्ध नहीं हुआ है फिर भी यदि मान लिया जाए कि के.जी. बालाकृष्णन ने भ्रष्टाचार किया भी तो क्या यह सब्बरवाल से ज्यादा घातक है। 

डॉ0 उदित राज ने कहा कि ग़ाजियाबाद प्राविडेंट फंड के मुख्य आरोपी एवं गवाह को जेल में मार दिया गया। क्यों नहीं उस पर कोई बड़ा हंगामा हुआ? यहां तक कि तमाम हाई कोर्ट के जज जो इस मामले में लिप्त हैं, सीबीआई अदालत में पेश ही नहीं होते। इस घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के उस समय के जज तरून चटर्जी का नाम आया था। क्यों नहीं उस समय उनके खिलाफ कोई सक्रियता मीडिया से लेकर सरकार में हुई। कर्नाटक हाई कोर्ट के दलित ईसाई मुख्य न्यायाधीश, श्री पी.डी. दिनाकरन चिल्लाते रहे कि जिस जमीन को लेकर विवाद है, उसकी जांच की जाए तब उनके खिलाफ बार एसोसिएशन, मीडिया एवं जज कार्यवाही करंे। उनकी एक न सुनी गयी और अंत में उनको सजा मिल गयी। उनसे काम छीन लिया गया। यह अपने आपमें एक बड़ी सजा थी और उसके बाद उनको दूसरे हाई कोर्ट में भेज दिया गया। यदि मान लिया जाए कि इन्होंने जमीन के मामले में भ्रष्टाचार किया तो अपना पक्ष रखने का मौका तो इन्हें देना चाहिए था। यदि ये दलित न होते तो शायद इनके साथ ऐसा व्यवहार न होता। क्या हुआ, उस राजस्थान के जज के खिलाफ, जिसने दलित महिला भंवरी देवी के बलात्कार के मामले में कहा था कि सवर्ण ऐसा कर ही नहीं सकते? राजस्थान में सुशीला नागर, दलित जज, के साथ उनके वरिष्ठ गलत कृत्य करना चाहते थे, जब वे सफल नहीं हुए तो उल्टे सुशीला नागर को ही दंड भोगना पड़ा। इनकी पदोन्नति रोकी गयी और गलत स्थानों पर बार-बार तैनात किया गया। इसका विरोध करने के लिए इनके प्रगतिशील पति, ए.के. जैन, जो स्वयं जज थे, वे इस्तीफा देकर सार्वजनिक जीवन में आए। इस तरह से हजारों भ्रष्टाचार के मामले सवर्ण जजों के खिलाफ मिल जाएंगें लेकिन जैसा के.जी. बालाकृष्णन एवं पी.डी. दिनाकरन के साथ कथित भ्रष्टाचार के मामले में बार एसोसिएशन, मीडिया, सरकार एवं न्यायपालिका ने सक्रियता दिखाई, वैसा अन्यों के मामलों में क्यों नहीं होता? भ्रष्टाचार के दोहरे मानदंड क्यों? 

सुप्रीम कोर्ट में अब तक सैकड़ों जज नियुक्त एवं सेवानिवृत्त हो गए, अब तक उनमें से केवल तीन दलित जज हो सके। इसी तरह से हजारों जज हाई कोर्ट में नियुक्त हुए, उसमें से कुछ ही दलित एवं पिछड़े समाज से हुए। जो भी हुए उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में फंसाने की कोशिश की गयी।  जज बनने के लिए कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती। देश की इतनी बड़ी संस्था में पहुंचने के लिए काबिलियत का कोई भी मापदंड निर्धारित नहीं है। बस इतना ही है कि कौन किसका रिश्तेदार है? कौन समीकरण बैठाने में चतुर और चालाक है? कभी-कभार ही योग्यता के आधार पर जज की नियुक्ति होती है, जिसकी खुद ही योग्यता की जांच-पड़ताल न हो, वह यहां बैठकर क्या फैसला देगा? यही कारण है कि आज करोड़ों मुकदमे लंबित हैं। 
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C. L. Maurya

एकबार नहीं हज़ार बार धोखा !

डॉ.लाल रत्नाकर
दरअसल भारतीय राजनिति की विडम्बना कहें या इस देश कि स्मिता के साथ मजाक.
यह सब क्यों हो रहा है. यह मेरी या किसी के समझ में क्यों नहीं आ रहा है इसका कारण आसान सा है जिसे समझाने के लिए जिस साधन की जरुरत है दरअसल उसी का अभाव है पिछड़ी जातिओं में . यह अभाव कई रूपों में नज़र आता है, जिसे समय समय पर पूरा करने के लिए कई प्रकार के आन्दोलन किये जाते हैं और ये आन्दोलन उनके लिए और ताकत दे देते हैं जो इन सारे कारणों के लिए जिम्मेदार हैं.
पिछले दिनों एक ऐसा हीआन्दोलन पिछड़ी जाति में शरीक किये जाने के लिए जाटों ने किया है, बहुत ही सलीके से पहले इन्हें राज्यों की पिछड़ी जाति में शरीक किया गया और अब इनसे मांग करवाई जा रही है की ये केंद्र में पिछड़ी जातियों में शरीक कर लिए जाएँ. अब यहाँ पर इस आन्दोलन का औचित्य देखने योग्य है. जाट कहीं से पिछड़ा नहीं है पर उसे पिछड़ों में धकेलने के दो कारण स्पष्ट तौर पर नज़र आते हैं -
१.यह देश के सारे प्रदेशों में नहीं है, दिल्ली के समीपवर्ती प्रान्तों में ही यह रहता है, हरियाणा प्रान्त की यह सबसे अधिक आबादी और शक्तिशाली, आर्थिक रूप से संपन्न जाति है . 
२. इसके अपने शैक्षिक संसथान बहुतायत में हैं, जिसके कारण पुरुष ही नहीं इनकी महिलाएं शिक्षित हैं. इनकी वजह से यह जाति किसी भी तरह से पिछड़ी नहीं है. 
यही महत्त्व पूर्ण है की ये लम्बे समय से सरकारी सेवाओं  में पर्याप्त मात्रा में हैं जबकि पिछड़ों की अन्य अनेक जातियां दूर तक इन सेवाओं में नज़र नहीं आती हैं, इनके आने से वह स्वतः रूक जाएँगी हर जगह 'आरक्षण' के नाम पर इन्हें रखा जायेगा क्योंकि यह मूलतः आरक्षण बिरोधी रहे हैं.
इस योजना की समर्थक 'दलितों' की तथाकथित शुभ चिन्तक एक नेत्री जाटों को पिछड़ी जातियों में आरक्षण का समर्थन कर रही हैं जबकि उनके साथ पिछड़ों की अन्य अनेक जातियां दूर तक इन सेवाओं में नज़र नहीं आती हैं जो राजनितिक रूप से उनके साथ जुडी हुयी हैं , पिछड़ों के तथाकथित नेताओं की तो बात ही निराली है 'पिछड़ों के हित के सिवा' उनसे किसी भी तरह का गठबंधन और बयां दिलवा या करवा लो .
सामाजिक बदलाव के रास्ते जटिलतम हैं उनके परिवर्तन की परिकल्पना करना आसान नहीं हैं, इस आन्दोलन के प्रणेताओं ने सोचा तो यही रहा होगा की आगे आने वाली उनकी संततियों की रह आसान हो जाएगी सामाजिक बदलाव के आन्दोलन खड़े करने से पर हो तो उससे उलट ही रहा है, देश के भाग्य विधाता मोटी सी बात क्यों नहीं समझ पा रहे  हैं? या जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं . 
अगड़ों की बहुलता के कारण सामाजिक सन्दर्भ उतने दूषित नहीं होते जितने पिछड़ों की समय समय की चुप्पी के कारण कमजोर पड़ते है. इसी कमजोरी को मज़बूत करने के लिए ये नए समीकरण गढ़े जा रहे हैं. 
(क्रमश:...)     


शुक्रवार, 25 मार्च 2011

जाट आन्दोलन और भारतीय राजनीतिकों को नियति



 पिछड़ी जातियों के दुश्मनों के रूप में नए नए गठबंधन जो पिछड़ों को पचा नहीं पा रहे हैं . जाट कभी पिछड़ा नहीं रहा है यह हमेशा से शक्तिशाली रहा है 'मंडल कमीशन का बिरोधी रहा है.'
डॉ.लाल रत्नाकर
 (अखबारों की कतरनें) 
जाट आंदोलन पर केंद्र ने बुलाई बैठक
नई दिल्ली।
Story Update : Saturday, March 26, 2011    2:31 AM
आरक्षण की मांग को लेकर जाटों के जोर पकड़ते आंदोलन ने केंद्र की चिंता भी बढ़ा दी है। आंदोलन के चलते बने हालात से कैसे निपटा जाए केंद्र इस पर मंथन करने में जुट गया है, उसने इस मसले पर चर्चा के लिए शनिवार को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों की बैठक भी बुलाई है। इस आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट पहले ही सरकारों को फटकार लगा चुके हैं।

जरूरी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करें
सूत्रों ने बताया कि गृह सचिव जीके पिल्लई तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करेंगे। यह बैठक बृहस्पतिवार के सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के बाद बुलाई जा रही है, जिसमें उसने राज्य सरकारों से कहा था कि वे दिल्ली के लिए पानी, दूध, सब्जियों आदि जरूरी चीजों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करें। पिल्लई बैठक में सुरक्षा के हालात और राज्यों की जरूरतों का जायजा भी लेंगे। ऐसी रणनीति बनाने की कवायद भी होगी जिससे जाट आंदोलन से टे्रन और सड़क यातायात बाधित नहीं हो और न ही जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति पर असर पड़े।

टे्रन आवागमन प्रभावित हो रहा
मालूम हो कि गृह मंत्री पी चिदंबरम और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक के साथ जाटों की दो दौर की बातचीत में कोई सकारात्मक हल नहीं निकल पाया था। उत्तर प्रदेश के काफूरपुर में तो जाटों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद रेलवे ट्रैक खाली कर दिया था, लेकिन हरियाणा में अभी भी वह कई जगह ट्रैक पर डटे हुए हैं। इससे टे्रन आवागमन प्रभावित हो रहा है। गौरतलब है कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट भी हरियाणा सरकार को तत्काल रेलवे ट्रैक खाली कराने का आदेश दे चुका है, जिससे टे्रनों की आवाजाही सामान्य हो सके।
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मायावती ने जाट आरक्षण का समर्थन किया
लखनऊ।
Story Update : Thursday, March 10, 2011    3:37 PM
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने जाटों की केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण की मांग का समर्थन करते हुए उनसे अपील की है कि वे राज्य (उत्तर प्रदेश) में कोई ऐसा काम न करें, जिससे आम जनता को असुविधा हो।

लखनऊ में गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मायावती ने कहा कि मैं पहले भी इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट कर चुकी हूं, लेकिन मैं एक बार फिर से दोहराना चाहती हूं कि हमारी पार्टी जाटों की इस मांग का पुरजोर समर्थन करती है, लेकिन उनकी आरक्षण सम्बंधी इस मांग पर फैसला लेने में केंद्र सरकार ही सक्षम है। ऐसे में जाट समुदाय के लोग दिल्ली जाकर अनुशासित तरीके से केंद्र सरकार के सामने अपनी मांग रखें।

आरक्षण की मांग को लेकर अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष सिमति के बैनर तले जाट समुदाय के लोगों के आंदोलन का आज छठवां दिन है। जाट आंदोलन की आग अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ हिरयाणा में भी पहुंच गई है। बीते दिनों से अमरोहा के काफूरपुर रेलवे स्टेशन के पास जाट आंदोलनकारी रेलमार्ग को अवरुद्ध करके दिल्ली-लखनऊ रेलमार्ग को ठप्प किये हुए हैं, जिससे रेल यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। जहां 20 से ज्यादा रेलगाड़ियां रद्द करनी पड़ी हैं, वहीं करीब 15 के मार्ग बदलकर उन्हें दूसरे मार्गों से चलाया जा रहा है।

बसपा प्रमुख ने रेलमार्ग पर कब्जा किये हुए आंदोलनकारी जाट समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा कि वे उ?ार प्रदेश में कोई ऐसा काम न करें, जिससे आम जनता को कोई नुकसान या असुविधा हो। इस बीच अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जल्द उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे पूरे उत्तर भारत में रेलमार्गों को जाम कर देंगे।
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राजधानी पहुंची जाट आंदोलन की आग
नई दिल्ली।
Story Update : Friday, March 11, 2011    3:05 AM
जाट आंदोलन की आग बृहस्पतिवार को दिल्ली तक पहुंच गई। आरक्षण की मांग को लेकर जाट समुदाय ने उग्र प्रदर्शन कर गाजीपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग-24 को करीब एक घंटे तक बंद रखा। प्रदर्शनकारियों ने करीब आधा दर्जन कारों के शीशे तोड़े और सड़क पर टायर रखकर आग लगा दी। भीड़ ने एमसीडी टोल टैक्स बूथ पर तोड़फोड़ कर आग लगाने का प्रयास किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को समझा-बुझाकर जाम खुलवाया। पूर्वी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मुताबिक उन्हें मामले की सूचना नहीं दी गई थी। मामले की जांच की जा रही है। अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय महासचिव सतपाल के नेतृत्व में दोपहर 1.30 बजे प्रदर्शनकारियों ने गाजीपुर टोल टैक्स के नजदीक हंगामा शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए एनएच-24 को जाम कर दिया। इस दौरान इन लोगों ने टायरों में आग लगा दी और कई गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए। बाद में भीड़ एमसीडी टोल टैक्स के बूथ पर पहुंची और तोड़फोड़ शुरू कर दी।
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जाट नेताओं की केंद्र से बातचीत बेनतीजा
नई दिल्ली।
Story Update : Sunday, March 20, 2011    1:05 AM
आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र सरकार और जाट नेताओं की दूसरे दौर की बातचीत किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। जाट नेताओं ने अपनी मांग मानने तक आंदोलन समाप्त करने से साफ इनकार कर दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक के साथ दिल्ली बातचीत करने आए जाट नेताओं ने साफ कर दिया कि सरकार की ओर से आरक्षण की मांग को मानने की समय सीमा घोषित करने के बाद ही आंदोलन खत्म करने का फैसला होगा। लेकिन सरकार ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जता दी है।

सरकार बताएं मांग कब तक मानी जाएगी
नार्थ ब्लॉक में शनिवार को चिदंबरम और वासनिक के साथ अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता यशपाल मलिक की अगुवाई में आए प्रतिनिधिमंडल की लगभग डेढ़ घंटे तक चली बैठक में कोई समाधान नहीं निकल पाया। जाट नेताओं ने दो टूक कह दिया कि सरकार को पहले यह बताना होगा कि उनकी आरक्षण की मांग कब तक मानी जाएगी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद समिति ने लोगों से रेलवे ट्रैक खाली करने को कह दिया है। हालांकि अभी कई जगह लोग रेलवे ट्रैक पर डटे हैं। मलिक ने भरोसा दिया कि लोग अब रेलों के संचालन में बाधा भी नहीं डालेंगे, लेकिन आरक्षण को लेकर आंदोलन दूसरे रूप में जारी रहेगा।

समय सीमा बता पाना संभव नहीं
दूसरी तरफ चिदंबरम ने जाट नेताओं से कहा कि उनकी मांग पहले ही पिछड़ा वर्ग आयोग को भेज दी गई है और आयोग इस मांग पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार के लिए इस मांग को पूरा करने की समय सीमा बता पाना संभव नहीं है। उन्होंने जाट नेताओं से आंदोलन खत्म करने का आग्रह भी किया। वहीं, जाट नेताओं ने कहा कि वे समिति की कोर कमेटी सामने इस बैठक के नतीजे रखेंगे और फिर आंदोलन को लेकर अगला कदम उठाया जाएगा। इससे पहले 16 मार्च को भी नार्थ ब्लॉक में इसी मसले पर बैठक हुई थी। तब मलिक ने बैठक के बाद आंदोलन खत्म करने के संकेत दिए थे, लेकिन आंदोलन खत्म नहीं हुआ।
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जाट आंदोलन पर गृह मंत्रालय की बैठक आज
नई दिल्ली।
Story Update : Saturday, March 19, 2011    2:24 AM
इलाहाबाद हाईकोर्ट के केंद्र व यूपी के अधिकारियों को रेल व सड़क यातायात बहाल करने के लिए कदम उठाने के दिए आदेश के बाद गृह मंत्रालय सक्रिय हो गया है। मंत्रालय ने जाट आंदोलन को लेकर शनिवार को केंद्रीय अर्द्घसैनिक बल और रेलवे अधिकारियों की बैठक बुलाई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्र भी राज्य सरकार से आंदोलन रोकने को लेकर उचित कदम उठाने के लिए कह सकता है।

गृह मंत्रालय द्वारा जाट आंदोलन की मार झेल रहे सभी राज्यों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए समुचित सुरक्षा मुहैया कराने का आश्वासन भी दिए जाने की उम्मीद है। वहीं, नार्थ ब्लॉक के बाद अब कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (सीसीपीए) ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में आंदोलन से पैदा स्थिति पर विचार किया। इससे पहले हाल में केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम व सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक इसी मुद्दे पर जाट नेताओं से विचार-विमर्श कर चुके थे।


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