रविवार, 19 सितंबर 2010

भेद-भाव के कारण क्या है ?

घिनौने हिन्दू धर्म का और भी घिनौना रूप। समयान्तर पत्रिका के नवंबर 2010 अंक में इस पुस्तक कि समीक्षा छपी है। 

लेखक -- दीवान सिंह बजेली
डार्लिंग जीः किश्वर देसाई; अनु. सोनल मित्रा; हार्पर कोलिंस; पृ.ः 442; मूल्यः 299
पुस्तक लेखक का घिनौना मनुवादि रूप देखिये-- " बलराज जिन्होंने फिल्म में अभिनय के लिए अपना नाम बदलकर सुनील रखा क्योंकि फिल्मों में बलराज साहनी एक प्रसिद्ध नाम पहले से ही विद्यमान था। बलराज का जन्म एक महिवाल ब्राह्मण परिवार में हुआ था जून 6, 1929 को जो विभाजन के समय पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। उनके पिता दीवान रघुनाथ दत्त इलाके के एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। जब बलराज की उम्र छोटी थी उनके पिता की मृत्यु हो गई। बलराज ने मैट्रिक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की पर अभावों के कारण आगे नहीं पढ़ सके और मिलिट्री में भती हो गए। विभाजन के समय उनका परिवारµमां, भाई और बहिनµतबाह हो गए। तब बलराज लखनऊ में थे। लंबे अंतराल के बाद बलराज अपने परिवार से मिल पाए। .........किश्वर पुस्तक का आरंभ दिलीपा से करती है। संभवतः बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि दिलीपा नर्गिस की नानी थी। वह बलिया की रहने वाली एक ब्राह्मणी थी। वह बाल विधवा कष्टकारक व अपमान से भरा जीवन बिताने के लिए बाध्य थी। कट्टरपंथी ब्राह्मण समाज ने उसका जीवित रहना दूभर कर दिया था। कहा जाता है कि वह चिलचिला के एक सारंगी वादक शेख मियांजान के संपर्क में आई और उनके साथ उनकी पत्नी के रूप में रहने लगी। मियांजान गाने-बजाने वाली औरतों के साथ काम करते थे। मियांजान व दिलीपा की पुत्री हुई जिसका नाम था जद्दनबाई जो एक प्रसिद्ध गायिका बनी। बाद में जद्दनबाई बंबई की तत्कालीन तथाकथित बड़ी सोसाइटी की सक्रिय सदस्य बनी और अपने को फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित करने में सफल हुईं।"



देखा आपने, सुनील दत्त और नर्गिस कि महानता उनके अप्रतिम प्रेम,श्रेष्ठ अभिनय,उनकी निस्स्वार्थ समाज सेवा से भी बढ़ कर लेखक के अनुसार यह थी कि दोनों न केवल ब्राह्मण थे बल्कि उच्च कुलीन ब्राह्मण थे। मुसलमान बनने के बाद भी नर्गिस कि नानी में लेखक को उच्च कुलीन ब्राह्मण रक्त ही नज़र आया। थू है ऐसे लेखक और धर्म पर जिसमें इंसान का पीछा न तो जाति छोडती है और जाति पर गर्व करनेवाले उसे छोडने में अपनी हेठी समझते है.

जातीय अहंकार का यह हिस्सा देखने लायक जो है .

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

जातीय जनगणना एक साल खिसकाने पर शरद खफा


 Sep 14, 08:39 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। वर्तमान जनगणना से अलग अगले साल जाति जनगणना करवाने के कैबिनेट के फैसले पर फिर विरोध शुरू हो गया है। जाति जनगणना को लेकर संसद में काफी उग्र रहे जद-यू अध्यक्ष शरद यादव ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा के नेता प्रणब मुखर्जी ने संसद का भरोसा तोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार का फैसला न सिर्फ पैसे की बर्बादी है बल्कि यह पूरी जनगणना का उद्देश्य ही विफल कर देगा। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को पत्र भेजकर उन्होंने पुनर्विचार करने और वर्तमान जनगणना में ही इसे लागू करने की मांग की है।
जाति जनगणना को लेकर विपक्षी दलों ने पिछले दो संसदीय सत्रों में लगातार सरकार पर दबाव बनाया था। पिछले दिनों कैबिनेट ने इसे हरी झंडी तो दे दी लेकिन जून से सितंबर 2011 के बीच जाति जनगणना कराने का फैसला किया। शरद ने मंगलवार को इस पर आपत्ति जताते हुए कहा, सरकार अपना वादा नहीं निभा पाई। पहले भी सरकार ने भरोसा दिलाया था कि वर्तमान जनगणना के साथ ही इसे लागू किया जाएगा लेकिन उसे टाल दिया गया। जाति जनगणना के पीछे मंशा केवल पिछड़ों की संख्या जानना नहीं है बल्कि यह जानना भी जरूरी है कि वे कितने पिछड़े हैं। यह तभी हो सकता है जब जाति जनगणना वर्तमान जनगणना के साथ ही हो। जाति जनगणना अलग से करवाने पर इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। शरद ने कहा कि यह पैसे की भी बर्बादी है। वित्त मंत्री व जाति जनगणना पर बने मंत्री समूह के अध्यक्ष प्रणब को पत्र लिखकर उन्होंने अपनी आपत्ति जता दी है
(दैनिक जागरण से साभार)

सोमवार, 13 सितंबर 2010

जाट बिगाड़ेंगे कॉमनवेल्थ खेल

नई दिल्ली /मेरठ/हिसार. लेट-लतीफी और भ्रष्टाचार से पहले ही विवादों में घिरे राष्ट्रमंडल खेलों की राह में अब जाट बिरादरी ने बाधा बनने की धमकी दी है। जाट नेताओं का कहना है कि यदि केंद्र सरकार ने उनकी आरक्षण की मांग को पूरा नहीं किया तो वे खेल नहीं होने देंगे। आयोजन स्थल राजधानी दिल्ली की पानी की आपूर्ति ठप कर देंगे। साथ ही शहर में सब्जी, दूध आदि भी नहीं आने देंगे। 

राजमार्ग जाम 

जाटों ने अपनी मांग के समर्थन में सोमवार को मेरठ में राष्ट्रीय राजमार्ग को काफी देर तक बंद रखा। बाद में पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने काफी मशक्कत के बाद जाम हटवाया और यातायात सामान्य हुआ। वहीं, मोहद्दीन में जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले जाटों ने केंद्र के प्रति कड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा कि सरकार उनके आंदोलन को हल्के में लेने की कोशिश न करे। 

हिसार में हिंसा 

आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के हिसार में जाटों ने सड़क जाम किया। इन पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक १६ वर्षीय छात्र की मौत हो गई। इसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। इन लोगों ने पुलिस को खदेड़ते हुए कैट चौकी, मय्यड़ पेट्रोल पंप और कॉपरेटिव बैंक को आग के हवाले कर दिया। आठ वाहनों को भी फूंक दिया। हिसार-रेवाड़ी रेलवे मार्ग पर पटरी उखाड़ दी। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंका और उन्हें लाठियों से पीटा भी।
(साभार दैनिक भाष्कर )

बुधवार, 8 सितंबर 2010

अब गिनती के बाद पूछी जाएगी जाति

भारतीय संसद धन्य है , इसके नौकरशाह खुल्लम खुल्ला गुंडागर्दी पर आमादा , न प्रधानमंत्री न सरकार - देखो इनकी मनमानी  .

अब गिनती के बाद पूछी जाएगी जाति

नई दिल्ली [राजकिशोर]। जनगणना के साथ ही जाति पूछने के फैसले से केंद्र सरकार ने अब कदम वापस खींचने का फैसला किया है। जातीय जनगणना में व्यावहारिक दिक्कतों पर गृह मंत्रालय की आपत्तियों के मद्देनजर अब जनगणना के बाद जातीय गणना कराई जाएगी। गुरुवार को कैबिनेट में इस नए फैसले को मंजूरी के आसार हैं। अलग से जातीय जनगणना पर करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
सरकार का एक वर्ग हालांकि, अलग से जातीय गणना में समय और धन की बर्बादी रोकने के लिए जनगणना के साथ ही इसे कराने का पक्षधर था। इस वर्ग को यह भी आशंका है कि अलग से जातीय गणना के फैसले से इसमें अनावश्यक देर होगी। इसके बावजूद, गृह मंत्रालय जनगणना के साथ जातीय गणना कराने पर तैयार नहीं है। उसने इस प्रक्रिया को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। गृह मंत्रालय का साफ कहना था कि एक साथ ये दोनों काम नहीं हो सकते, इससे जनगणना का काम काफी पीछे चला जाएगा। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दखल देना पड़ा।
चूंकि, पिछड़ा वर्ग लॉबी और भाजपा समेत ज्यादातर राजनीतिक दल अब जातीय जनगणना के पक्ष में मत दे चुके थे, लिहाजा इससे पीछे हटने का सरकार के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। लिहाजा, जनगणना में देरी न हो, इसके मद्देनजर अब सरकार ने तय किया है कि ये दोनों काम अलग-अलग हों। वर्ष 2011 से पहले जनगणना का काम पहले से नियत कार्यक्रम पर किया जाएगा। इसमें एक चरण का काम यानी घरों के सर्वेक्षण सरकार कर चुकी है। अब लोगों की शिक्षा और अन्य अहम जानकारियां ली जाएंगीं लेकिन, इसमें जो जाति का कॉलम जोड़ा जा रहा था, वह नहीं होगा। अब जनगणना का काम खत्म होने के बाद जातीय गणना के लिए अलग से अभियान चलाया जाएगा। ऐसे में, जातीय आंकड़े 2013 से पहले आने की उम्मीद कम ही है।

हर तीसरा भारतीय है भ्रष्ट

Sep 08, 11:03 pm
नई दिल्ली। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त [सीवीसी] के पद से पिछले सप्ताह सेवानिवृत्त हुए प्रत्यूष सिन्हा ने कहा है कि हम भारतीयों में से एक-तिहाई निहायत ही भ्रष्ट हैं जबकि आधे ऐसा बनने की कगार पर खड़े हैं।
सिन्हा के मुताबिक, उनके काम का सबसे खराब पहलू यही रहा कि वह भ्रष्टाचार को फलते-फूलते देखते रहे। उन्हें लगता है कि लोग अब ज्यादा भौतिकतावादी हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'जहां तक मुझे याद है, जब हम छोटे थे तब यदि कोई भ्रष्टाचार में शामिल पाया जाता था तो हम उसे बड़ी हिकारत से देखते थे। उसके साथ सामाजिक कलंक जुड़ जाता था। आज इसके उल्टा हो गया है। भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिल चुकी है।'
सिन्हा ने बताया कि हमारे देश में 20 प्रतिशत लोग अभी भी ईमानदार हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें लालच नहीं दिया जाता है लेकिन वे उससे विचलित नहीं होते। वहीं, तीस प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो निहायत ही भ्रष्ट हैं। इनके अलावा जो लोग बच गए, वे बिल्कुल कगार पर खड़े हैं। उन्हें मौका मिलने की देर है।
उन्होंने कहा, 'आज देश की स्थिति यह हो गई है कि जिसके पास ज्यादा पैसा है, उसे बड़ा सम्मान मिलता है। इस पर कोई न तो सवाल करता है, न ही जानने की कोशिश करता है कि उसने वह पैसा कहां से और किस तरीके से कमाया।'
हाल ही में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं। इनमें राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण कार्यो में हुई अनियमितता, इंडियन प्रीमियर लीग में कर चोरी जैसे मामले शामिल हैं। भारत को संट्टेबाजों का अड्डा भी कहा जाता है। पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के स्पॉट फिक्सिंग में फंसने के मामले में भारतीयों के भी शामिल होने की बात सामने आई है। भ्रष्टाचार के गहरे पैठने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने भी जीवन के हर स्तर पर फैली रिश्वत, उगाही और धोखाधड़ी के कारण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ने की बात कही है।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जब मिडिया दुश्मन बन जाये !

डॉ.लाल रत्नाकर
श्याम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के प्रांतीय सेवा के अधिकारी है, और ख्यातिलब्ध सूटर है कई बार देश विदेश में प्रदेश एवं देश का नाम रोशन कर चुके है, जब इनको राष्ट्रमंडल खेलों में आधिकारिक कार्य दिया गया तो तमाम लोगों के पेट में दर्द हो गया है जिसकी आंच से तमाम रिपोर्टर जल रहे है. पर उन्हें सारे भ्रष्टाचार एक अधिकारी को सरकारें तहस नहस करने के लिए कैसे फसाती है, यह इनके मामले में देखा जा सकता है.
श्याम सिंह यादव तेज तर्रार अधिकारी है जिससे समय समय पर कई राजनेताओं यथा अमर सिंह , कई ब्यूरोक्रेट जिन्हें वह दुखते रहते है, स्वभाव से खुश मिजाज़ यादव जी बहुत जल्दी किसी पर भी बहुत जल्दी अपने व्यक्तित्व से मान मोह लेते है , पर इनका प्रभावशाली व्यक्तित्व कम लोगों को ज्यादा दिनों तक संभाल पाते है या उनसे संभलता है .   
"ये बुद्धीजीवी, राजनेता, नामचीन खिलाड़ी और मीडिया आईपीएल पर अब क्यों आंसू बहा रहे है. उस समय ये आंखों पर पट्टी बांध कर क्यों बैठे हुए थे जब टीवी पर खुलेआम खिलाड़ियों की बोलियाँ लगाई जा रही थीं. उस समय नहीं दिखाई दे रहा था कि यह खेल नहीं बल्कि पैसे बनाने का खेल शुरू हो रहा है. पर लगता यह है कि सत्ता की केंद्र संसद ही इंडियन पार्लियामेंट लिमिटेड कंपनी बनकर विदेशियों की तरह राज करते हुए अपनी हुकूमत चला रही है. महँगाई कम नहीं कर रही है, टैक्स पर टैक्स लगा रही है. वह देश के विकास की बात को लेकर, सरकारी कर्मचारियों को छठवाँ वेतन आयोग के सिफारिशों के समान वेतन देकर और ग़रीबों को मनरेगा के जरिए पैसा देकर, इस तरह लोग सरकार पर आश्रित हो रहे हैं. सरकार इस खेल में मगन है. इसका फ़ायदा उठाकर पैसे वाले, अभिनेता और नेताओं ने मिलकर इंडियन पैसा बनाओ लिमिटेड (आईपीएल) का गठन किया. इसी लालच में थरूर को जाना पड़ा लेकिन और लोग भी जाते दिख रहे हैं. ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि सरकार मीडिया और आयकर विभाग पहले क्यों नहीं चेता. इसमें सबसे ज्यादा मूर्ख तो आम जनता बनी जो क्रिकेट को धर्म के रूप में देख रही है. उसकी इस कमजोरी का फ़ायदा आईपीएल ने उठाया. थरूर के बाद अब मोदी की बारी और फिर सरकार की बारी. पर लगता है कि मीडिया की बारी कभी नहीं आने वाली है. आईपीएल कांड से हर्षद मेहता की याद ताजा हो रही है. लेकिन अफ़सोस है कि कुछ समय बाद ये बातें हवा हो जाएंगी."

हिम्मत सिंह भाटी
-बी बी सी हिंदी से साभार     
यही कारण है की यह देश अगर हम इनसे आगे बढ़ते है और उनको याद करते है जिनकी वजह से यह सब हो रहा उसमे सर्वाधिक पिछड़े राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों,पत्रकारों तथा सामाजिक आन्दोलन चलाने वाले लोगों का हाथ है. यथा हम यह कह सकते है की सामाजिक न्याय के जिन पुरोधाओं के चलते सामाजिक बदलाव का दौर शुरू हुआ था क्या उनके बताये रास्ते को कोई अख्तियार किया   यदि नहीं तो क्यों ? यह एक जटिल सवाल है जिसका जवाब देने से पहले सारे  पिछड़े राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवियों,पत्रकारों तथा सामाजिक आन्दोलन चलाने वाले लोगों को अपना दामन देखना होगा, एक दूसरे पर हमला बोलने के सिवा किया ही क्या है हमारे कर्ण धारों ने, न ही उन्होंने कोई नीति बनाई और न ही ऐसे स्कूल बनाये जहाँ से पिछड़ों के विकास के मार्ग प्रशस्त हो सके , उन्ही धाराओं के सहारे उन्ही के बताये रास्तों से उन्ही की देखा रेख में बदलाव की कामना करना तड़पती दोपहरी में तारे देखने जैसा ही है.
 यह खबर जो नीचे संलग्न है उसी का परिणाम है -  

बुधवार, 25 अगस्त 2010

कैसे बदलेगी यह व्यवस्था || ? ||

राहुल छात्रों को पढ़ाएंगे राजनीति का पाठ   Aug 25, 11:43 pm

"चंडीगढ़, जागरण संवाददाता। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी 27 अगस्त को हरियाणा के कुरुक्षेत्र, करनाल और हिसार का दौरा करेंगे। वह यहां छात्रों को राजनीति का पाठ पढ़ाएंगे। उनके साथ राष्ट्रीय छात्र संगठन [एनएसयूआई] की राष्ट्रीय प्रभारी मीनाक्षी नटराजन के आने की सूचना है।
राहुल गांधी एनएसयूआई के संगठनात्मक चुनाव के लिए छात्रों से मिलने आ रहे हैं। नई दिल्ली से पहुंचे विशेष सुरक्षा दल [एसपीजी] ने उनके आगमन के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभाल ली है। सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी विमान से करनाल पहुंचने के बाद सड़क मार्ग से कुरुक्षेत्र जाएंगे। उसके बाद वह वापसी पर करनाल स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट [एनडीआरआई] में छात्रों से रूबरू होंगे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में वह एनएसयूआई के छात्र सदस्यों से मिलेंगे। हिसार में राहुल हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में एनएसयूआई के सदस्यों से रूबरू होंगे। प्रदेश में इस समय एनएसयूआई के चुनाव चल रहे हैं। संगठन में कॉलेज, ब्लॉक व जिला स्तर पर चुनाव होने हैं। राहुल गांधी के हरियाणा दौरे को इन्हीं चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है।"

"कितने है नसीब वाले जिन्हें इस तरह की ट्रेनिंग की सहूलियत मिल रही है जिस लोक-तंत्र की दुहाई देकर राजतन्त्र के कायदे कानून पर इस नौजवान को   राजतिलक के लिए तैयार किया जा रहा है, इनकी इस योजना में जाने न जाने कितने 'महाराजा' राज के काबिल बनाने में लगे है. तरस आता  है इन विरोधी और राष्ट्र प्रेमियों पर की इन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, तरस आता है करोरों नौजवानों पर जो देश को सही रास्ते पर ले जा सकते है पर उनकी सुधि किसको है. कमोबेश यही हाल विरोधी दलों के "कुवरों" की भी है."

राजा का बेटा राजा,
नेता का बेटा नेता.
मज़दूर का बेटा मज़बूर.
कैसे बदलेगी यह व्यवस्था || ? || 

सोमवार, 23 अगस्त 2010

.

विचार
पिछड़ों के सबसे बड़े दुश्मन "पिछड़े"
डॉ.लाल रत्नाकर
दरअसल भारत जैसे विशाल देश में पिछड़ों की विशाल आवादी की आज जो वास्तविक स्थिति है उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदारी यदि किसी पर जाति है तो वह पिछड़ों की ही बनती है, क्योंकि सबसे अधिक अत्याचार इन्हें ही सहना पड़ता है यदि कोई इसमे आगे आता है तो वह भी पिछड़े ही पर जो आगे आता है सबसे पहले पिछड़े ही उसका साथ छोड़ जाते है यही नहीं दोषी भी उसे ही बनाते है, आपको एइसा नहीं करना चहिये, विरोध करने का तरीका ठीक नहीं था, क्या जरुरत थी हम भी समझ रहे थे की वह गलत है, पर विरोध का यह तरीका ठीक नहीं.
अदभूद तरीके से सदियों से इन्ही पिछड़ी जातियों का विरोध किया जा रहा है जिसे पिछड़ी जातियां रोज रोज भूल रही है, कभी "अहीर - गडेरी, कभी कुर्मी- काछी,कभी नाई- लोहार, कभी मुराई - मल्लाह, कभी तेली - तमोली -  बनिया - गुजर आदि आदि यह सब कहने वाले जब जबाब पाते है तो उन्हें बहुत ख़राब लगता है, नाना प्रकार के उदाहरणों से जातीय उदगार जो तकलीफ देता है उसको सहना लगभग उनका स्वभाव बन गया है. पर इन्ही पिछड़ी जातियों के अपमानों का जो सबसे ज्यादा प्रतिकार करता है उसे इस कदर बदनाम कर दिया जाता है यथा - यादव तिकड़ी 'मुलायम -लालू -शरद ' यही नहीं क्षेत्रीय स्तर पर अन्य प्रभावशाली पिछड़ी जातियों की भी यही गति की जाति है कुल मिलाकर  जहाँ ये जातियां आर्थिक रूप से समृद्ध है वहां भी सामाजिक तौर पर उन्हें अपमानित करने के हथकंडे निरंतर अख्तियार किये जाते है.
अभी अभी इन पिछड़ों में शरीक किये गए 'जाटों' का तो कुछ अलग ही राग का अलाप है, और तो और वे अभी तथाकथित उनके अपने जातीय दुश्मन के साथ परंपरागत पिछड़ों का गला काटने को तैयार बैठे हैं. हाँ इनका एक अलग जीवन यापन के तरीके रहे है जिनकी वजह से वह अधिकाधिक लूट में शरीक रहते है . यही कारण है यह लाभ तो जातीय वजह से पिछड़ा होने के नाते सबसे ज्यादा उठा रहे है और उन्हें पिछड़ों में डालने वालों की मंशा भी यही थी . 
अगर हम इनसे आगे बढ़ते है और उनको याद करते है जिनकी वजह से यह सब हो रहा उसमे सर्वाधिक पिछड़े राजनीतिज्ञों , बुद्धिजीवियों,पत्रकारों तथा सामाजिक आन्दोलन चलाने वाले लोगों का हाथ है .
यथा हम यह कह सकते है की सामाजिक न्याय के जिन पुरोधाओं के चलते सामाजिक बदलाव का दौर शुरू हुआ था क्या उनके बताये रास्ते को कोई अख्तियार किया   यदि नहीं तो क्यों ? यह एक जटिल सवाल है जिसका जवाब देने से पहले सारे  पिछड़े राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवियों,पत्रकारों तथा सामाजिक आन्दोलन चलाने वाले लोगों को अपना दामन देखना होगा, एक दूसरे पर हमला बोलने के सिवा किया ही क्या है हमारे कर्ण धारों ने, न ही उन्होंने कोई नीति बनाई और न ही ऐसे स्कूल बनाये जहाँ से पिछड़ों के विकास के मार्ग प्रशस्त हो सके , उन्ही धाराओं के सहारे उन्ही के बताये रास्तों से उन्ही की देखा रेख में बदलाव की कामना करना तड़पती दोपहरी में तारे देखने जैसा ही है. 
चाहे सवाल किसानों का हो मजदूरों का हो या माध्यम वर्ग के कर्मचारियों का हो, उनके लिए जिस तरह की नीति बनानी चहिये थी वह बनाने में किसी की रूचि नहीं रही है और न ही आगे है, सवाल खड़ा होता है वह एजेंसी ही नहीं है. यह बात ठीक भी है पर येसा नहीं है की पिछड़े और दलितों के बीच एसे लोग नहीं है, हैं पर ईमानदारी और हरिश्चंद्र के पुतले है उन्हें जब मौका मिलता है तब वह इतने ईमानदार बनने का प्रदर्शन करते है.
जिसमे वह ईमानदारी के बदले उनकी वफ़ादारी में सारा समय निकाल देते है, और ये वफादार यह शांत पर भितरघात से सारा खेल ख़राब कर देते है, जब तक यह पिछड़े राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों,पत्रकारों तथा सामाजिक आन्दोलन चलाने वाले समझें तब तक सत्ता के चतुर 'चूहे' सारा गोदाम क़तर जाते है वह चाहे वोट का गोदाम हो या सत्ता का, समृद्धि आते ही दुर्बुद्धि स्वतः आ जाती है. 
सदियों  के इस खेल से क्या हम कोई सबक ले रहे है, हिंदी भाषी प्रदेशों के बड़े आन्दोलनों की मलाई खाने वाले कौन है ? यदि आप को इसकी जानकारी नहीं है तो सी.बी.आई. की फाइलों में देख लीजिये आय से अधिक संपत्ति के मामले किन किन पर चल रहे है, पत्रकारों को बांटे गए कोष में कितने पिछड़ों को उसमे मिला है . यही नहीं समग्र पिछड़े आन्दोलनों के संचालकों के बंश से किसको राज्य सभा और विधानपरिशदों में भेजा गया पर उसकी मलाई खाने वालों का पूरा का परिवार उक्त सदनों की शोभा बढ़ा रहे है या घटा रहे है .
ये वही तथाकथित पिछड़े है जो आज पिछड़ों के भगवान बन बैठे है,
क्रमश :...........................
     

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...