रविवार, 6 अक्टूबर 2019

गांव

हमारे जीवन में गावों की दुनिया एक अलग ही दुनिया हुआ करती थी लेकिन आज की दुनिया गावों में भी जहर घोल दी है। सरकारी प्रयास ऐसे लगते थे जैसे गावों के विकास के लिए कार्य कर रहे हों, पर उसके भीतर किस तरह का खेल चल रहा होता था उसका कभी भी अंदाज़ा समझ में नहीं आया। हम बड़े होते गए विकास अपनी तरह से आगे बढ़ता गया और राजीव जी की सरकार ने यह फैसला लिया जिससे पैसा सीधे गांव प्रधान के पास आये यह था तो बहुत अच्छा फैसला पर प्रधान बेईमान नहीं होगा इसका क्या भरोषा।  

अब सवाल यह था की जब पंचायती राज की अवधारणा पर काम होना शुरू हुआ तब - 


















अस्पृश्यता उसका स्रोत ; बाबा साहेब डा. अम्बेडकर संपूर्ण वाड्मय

अस्पृश्यता-उसका स्रोत  ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पृश्यों की दयनीय स्थिति से दुखी हो यह चिल्लाकर अपना जी हल्का करते फिरते हैं कि हमें अस...