शनिवार, 7 अप्रैल 2018

दलित आंदोलन



चंद्र भूषण सिंह 
सन्दर्भ-
मैं दलित चेतना और उनके संघर्ष को कोटिशः नमन करता हूँ क्योकि वे ही कौमें जिंदा कही जाती हैं जिनका इतिहास संघर्ष का होता है,जो अन्याय के प्रतिकार हेतु स्वचेतना से उठ खड़े होते हैं।

02 अप्रैल 2018 का दिन दलित चेतना का,संघर्ष का,बलिदान का,त्याग का ऐतिहासिक दिन बन गया है क्योंकि बगैर किसी राजनैतिक संगठन या बड़े नेता के आह्वान के सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया पर दलित नौजवानों/बुद्धिजीवियों की अपील पर पूरे देश मे दलित समाज का जो स्वस्फूर्त ऐतिहासिक आंदोलन उठ खड़ा हो गया,वह देश के तमाम बड़े आंदोलनों को पीछे छोड़ते हुए एक अद्वितीय और अनूठा आंदोलन हो गया है।
अब तक देश मे जितने बड़े अंदोलन हुए उन सबका नेतृत्व या तो किसी नेम-फेम वाले बड़े व्यक्ति/नेता ने किया या किसी बड़े राजनैतिक/सामाजिक संगठन द्वारा प्रायोजित हुवा जिसका भरपूर प्रचार -प्रसार विभिन्न माध्यमो से या मीडिया द्वारा किया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी ऐक्ट में किये गए अमेंजमेंट के बाद सोशल मीडिया पर एक न्यूज उछला कि 2 अप्रैल को दलित समाज द्वारा भारत बंद किया जाएगा।इस आह्वान का कर्ता-धर्ता कौन है,यह अपील किसकी है,ये सब कुछ बेमानी हो गया और सोशल मीडिया पर उछले इस अपील की परिणति यह हुई कि 2 अप्रैल को पूरा भारत बिना किसी सक्षम नेतृत्व के बुद्धजीवियों/छात्रों/नैजवानो और प्रबुद्ध जनो के सड़क पर उतर जाने से बंद हो अस्त-ब्यस्त हो गया।
इस आंदोलन का एक पहलू जहाँ यह रहा कि पूरे देश के दलित बुद्धजीवी एकजुट हो करो या मरो के नारे के साथ जय भीम का हुंकार भरते हुए देश भर में सड़कों पर आ गये तो कथित प्रभु वर्ग अपने अधिकारों को बचाने हेतु आंदोलित संविधान को मानते हुए शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे वंचित समाज के लोगो पर ईंट-पत्थर-गोली चलाते हुए इस आंदोलन को हिंसक बना दिया जिसमें 14 दलित साथी शहीद हो गए।
यह आंदोलन अपने आप मे बहुत ही महत्वपूर्ण आंदोलन हो गया है क्योंकि अपने संवैधानिक अधिकारों को महफ़ूज बनाये रखने के लिए शहादत देने का ऐसा इतिहास अब तक किसी कौम ने नही बनाई है।यह दलित समाज ही है जो अपने अधिकारों व सम्मान के लिए लड़ना व मरना जानता है।
मैं निःसंकोक कह सकता हूँ कि इस देश मे यदि कोई जगी कौम है तो वह या तो दलित कौम है या प्रभु वर्ग।इस देश का 60 फीसद पिछड़ा बिलकुल मुर्दा है क्योंकि उसे न अपने अधिकार का भान है और न अपने सम्मान की फिक्र,यह तो जैसे है वैसे ही चलता रहे,इस मान्यता में जीने वाली जमात है।
2 अप्रैल को sc/st ऐक्ट को निष्प्रभावी बनाने के विरुद्ध आहूत अंदोलन ने जता दिया है कि दलित अपने अधिकार की हिफाजत हेतु किसी भी सीमा तक जा सकता है जबकि सवर्ण तबका भी मण्डल कमीशन लागू होने के बाद देश भर में रेल-बसों को फूंकते हुए खुद का आत्मदाह कर यह दिखा चुका है कि वह इतनी आसानी से देश पर अपने वर्चस्व को खत्म नही होने देने वाला है।2 अप्रैल के आंदोलन में भी यह सवर्ण तबका हथियार लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे 14 दलित आंदोलनकारियो की हत्या कर जता दिया है कि इस देश मे आंदोलन करने,बोलने व कुछ भी कर डालने का एकाधिकार उसी का है।


इस देश का पिछड़ा तो ऐसा कुचालक है जो उसी डाल को काटता है जिस पर वह बैठा हुआ है।यह पिछड़ा अपनी दुर्दशा का दोष कभी अम्बेडकर साहब पर तो कभी खुद के भाग्य पर डालता है क्योंकि इसे स्वयं संघर्ष करने में रुचि नही है।यह विशाल किन्तु खण्ड-खण्ड में बंटा पिछड़ा कभी अपने अधिकार,मान-सम्मान के लिए लड़ने में विश्वास रखा ही नही है।संविधान के अनुच्छेद 15(4),16(4) एवं 340 के क्रियान्वयन के लिए यह पिछड़ा वर्ग देश भर में कभी संगठित हो लड़ा ही नही।1977 में अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के कारण बिहार व यूपी में क्रमशः कर्पूरी ठाकुर जी व रामनरेश यादव जी गालियां खाते हुए इन असंगठित पिछडो को कुछ आरक्षण दिए थे तो 1990 में राजनैतिक दुर्घटनावश वीपी सिंह जी ने मण्डल लागू कर इन सोए हुए पिछडो को 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था।ये पिछड़े पूर्ण मण्डल लागू करवाने,जातिवार जनगणना करवाने,प्राइवेट सेक्टर सहित हर क्षेत्र में आरक्षण पाने हेतु कभी न लड़े, न सोचें ही।ये पिछड़े सचमुच के पिछड़े हैं लेकिन देश का sc/st निश्चित तौर पर बहादुर वर्ग है जो लड़कर अधिकार लेना जानता है।
2 अप्रैल 2018 के भारत बंद में अभी सुश्री मायावती जी खुलकर नही आईं जबकि रामविलास पासवान जी इस आंदोलन को बेमानी बता डाले तो रामदास अठावले जी लखनऊ आ मायावती जी को भाजपा से गठबंधन करने का दावत दे डाले लेकिन बिना किसी राजनैतिक सहयोग के (बिहार में तेजश्वी यादव जी के सहयोग को छोडकर करके) दलित समाज ने अपनी शहादत देते हुए जो अमिट लकीर खींच डाली है वह आंदोलनों के इतिहास में माइल स्टोन सिद्ध होगा।
मैंने अपने जनपद देवरिया में देखा कि 2 अप्रैल 2018 के आंदोलन में मुझको लेकर कुंल 4-5 लोग ही पिछड़े वर्ग के रहे होंगे जो इस आंदोलन का हिस्सा बने वरना पूरी भीड़ शिक्षित दलित समाज की ही थी।आज देश का दलित समाज बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी के "शिक्षित हो,संगठित हो,संघर्ष करो" के मूल मंत्र को आत्मसात कर तरक्की की राह पर अग्रसर है।
2 अप्रैल 2018 को अपने अधिकारों की रक्षा हेतु आंदोलन करते हुए शहीद हुए भीम सैनिकों को नमन करते हुए देश भर के दलित बुद्धजीवियों को साधुवाद कि उन्होंने बिना किसी सक्षम नेतृत्व के संघर्ष की ऐतिहासिक इबारत लिखते हुए यह जता दिया कि वे मरी कौम नही हैं और अन्याय बर्दाश्त करने वाले भी नही हैं।
भीम सैनिकों को एक बार पुनः उनकी शहादत पर नमन और तीब्र संघर्ष पर भीम सलाम!

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"2 अप्रैल 2018 का आंदोलन"

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★"संविधान रक्षक सेनानी" हैं भाजपा सरकार के दमन का मुकाबला करने वाले वंचित समाज के आंदोलनकारी....

★सपा/बसपा को घोषित करना चाहिए कि आंदोलन में मरने वाले आंदोलन कारियों के परिजनों को नौकरी/मुआवजा दिया जाएगा तथा मुकदमो में फँसाये गए लोग पेंशन पाएंगे....

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संविधान,आरक्षण और एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर 2 अप्रैल 2018 को हुए ऐतिहासिक आंदोलन में करीब 12 वंचित समाज के आंदोलनकारी जान गवां बैठे हैं जबकि आज भी इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाले आंदोलनकारियों का दमन जारी है जिसमे इनके विरुद्ध मुकदमा लिखने,छापा डालने,पिटाई करने व जेल भेजने का क्रम शुरू है।
भारतीय संविधान,आरक्षण एवं अपने अधिकारों की हिफाजत के लिए वंचितों ने हुंकार क्या भरा,देश भर का प्रभु वर्ग इनका मुखालिफ हो गया।क्या सरकार,क्या पुलिस और क्या आम अभिजात्य जन,सबकी भृकुटि इन वंचित तबके के आंदोलनकारियों पर चढ़ी हुई है।
पुलिस आंदोलनकारियों को "चमारिया" कहते हुए थाने में बेल्टों से पीट रही है तो आम अभिजात्य जन सड़को पर "मारो चमारों" को कहते हुए पिटाई कर रहे हैं।सरकार सारे देश मे इन आंदोलनकारियों के दमन पर उतारू है।मुकदमो की झड़ी लगा दी गयी है।लोगो के घरों में छापे पड़ रहे हैं जिस पर भाजपा के ही सांसदों को चिट्ठी लिखनी पड़ रही है लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात जैसी है।
आखिर अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाये रखने के लिए शांतिपूर्ण सत्याग्रह करना कौन सा गुनाह है?आखिर क्यों इन आंदोलनकारियों पर संविधान द्रोही प्रभु वर्ग के लोगो ने भी गोली चलाया और पुलिस ने भी गोली चलाया?आखिर क्यों इन्हें आंदोलन करने के बाद मुकदमो में फंसाया जा रहा है और छापे डाल करके गिरफ्तारी कर पीटा जा रहा है?क्या कारण है कि इस स्वस्फूर्त आंदोलन से देश की सत्ता भयाक्रांत हो गयी है और दमन पर उतारू है?
देश भर में संविधान बचाने हेतु वंचित समाज के सजग बुद्धिजीवियों ने जिस तरीके से आंदोलन किया है वह उन्हें "संविधान रक्षक सेनानी" का दर्जा देने योग्य है।सपा और बसपा को चाहिए कि इनके नेता श्री अखिलेश यादव जी व सुश्री मायावती जी को साझा प्रेस कांफ्रेंस कर यह घोषित कर देना चाहिए कि देश मे संविधान बचाने हेतु आंदोलन करते हुए जो कोई मरेगा उसे शहीद का दर्जा देते हुए उसके परिजनों को सपा/बसपा की सरकार बनने पर नौकरी व मुआवजा दिया जाएगा तथा उत्पीड़न,मुकदमा,पिटाई व जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित करते हुए सम्मानजनक पेंशन दिया जाएगा।
सपा/बसपा ने ज्यों ही इन आंदोलनकारियों को "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित कर पेंशन व मुआवजा देने की बात किया त्यों ही इन वंचित समाज के क्रांतिकारी साथियो का उत्पीड़न बन्द हो जाएगा और आंदोलन करने वाले साथियो का हौसला हजार गुना बढ़ जाएगा वरना देश फासीवाद की गिरफ्त में चला जायेगा और इसके विरुद्ध कोई लड़ने वाला भी नही मिलेगा।
मेरी पुरजोर अपील है कि श्री अखिलेश यादव जी व सुश्री मायावती जी संविधान की रक्षा हेतु संघर्षरत प्रबुद्ध जनो का उत्पीड़न रोकने हेतु आगे आएं और इन्हें "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित कर इनके सम्मान व अधिकार की रक्षा व उत्पीड़न के विरुद्ध प्रतिकार हेतु आवाज बुलंद करें।
जय भीम!जय मण्डल! जय लोहिया!

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

शहीद दिवस पर

शहीद दिवस पर :
डॉ.लाल रत्नाकर
यह झलक है आगामी मनुस्मृतिवाद का और इसके लिए जिम्मेदार हैं इस देश के दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक और उनके नेता, नेताओं के चट्टू और उनके समर्थक जिन्होंने झूठे, फर्जी, पिछड़े और गपबाज ठग को समझने में गहरी नासमझी दिखायी है। राजनीतिक ठगी का जो दौर हमने देखा है वह संभवत: मध्यकाल में भी किसी ने नहीं ही देखा हो ? क्योंकि विकास की जितनी अवधारणाएं बन सकती थी सब हमारे समय में ही प्रयुक्त हुई हैं, आजाद भारत की बात हो, समाजवादी विचारधारा की बात हो, बहुजन आंदोलन का सवाल हो, सामाजिक न्याय की लड़ाई का मामला हो सब कुछ इसी बीच परवान चढ़ा है। लेकिन उन्हें ऐसा नेतृत्व मिला जो सारी अवधारणाओं को धूल धूसरित कर दिया और ऐसे नायकों के हाथ में सत्ता गई जिन्होंने मूल उद्देश्य के विपरीत ही काम किया। जिसका खामियाजा आज देश की 85 फ़ीसदी आवाम को भोगना पड़ रहा है और उन अवधारणाओं पर किसी को विचार करने का न तो समझ, वक्त और ना ही सोच की ताकत ही है।

इन नेताओं की आर्थिक समृद्धि की राजनीतिक सोच के रानितिज्ञों के कुकर्मों का ही दुष्परिणाम आज यह महान बहुजन देश भोग रहा है, विकास की सारी धाराएं मोड़ दी गई है जो देश को पुरे मध्यकालीन पाखंडी और अज्ञानी तानाशाहीपूर्ण साम्राज्य की ओर ले जाने के लिए मुंह बाए खड़ी हैं । और निरन्तर खड़ी की जा रही हैं । सारे संवैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जा रहा है जिस पर देश के चारों खंबे आश्चर्यचकित तरीके से मौन है या तो गुणगान करने में मशगूल हैं। आज हम जिस सत्ता के अधीन उम्मीद के पुल बांधे हुए हैं उसके अनुयाई जो वास्तव में नासमझी की हद तक समझ रखते हैं उन से कैसे निजात मिले यह तो गोरखपुर और फूलपुर की जनता ने बताया है । यदि यह जनता जागती रही और 2019 में इनका हिसाब किताब ठीक से कर दी तभी यह देश डॉ.बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में बने संविधान की रक्षा कर पाएगा। जबकि उनका नेतृत्व दिग्भ्रमित हो करके कहीं उन्हीं ब्राह्मणवादियों के इर्द गिर्द ना मंडराने लगे जिन्हें वह अपना हितैषी समझते हैं और वह हितैषी की बजाए उनका सर्वनाश करने पर रात दिन आमादा रहते हैं।
यही कारण है कि उन्हें अपने वैचारिक बहुजन की पूरी टीम (अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक इनमें से अधिकाँश चीजें अम्बेडकर साहित्य में मौजूद हैं ) भी ढूंढने होंगे और उनके आधार पर नीतियां बनाकर के भविष्य की राजनीति को बहुजन राजनीति के रूप में विकसित करना होगा जो निश्चित तौर पर आज के समाज में बहुत दूर खड़े हैं उन्हें सत्ता के समीप लाना होगा। अन्यथा मनुस्मृति के सिद्धांत निरंतर लागू किए जा रहे हैं जिससे देश की 85% फ़ीसदी अवाम निरक्षर और निरीह बन करके मजलूम और गुलामी की जिंदगी जीने को बाध्य न हो।
जैसा की हम देख रहे हैं विभिन्न क्षेत्रों में इसी तरह के फरमान जारी किए जा रहे हैं अभी ताजा ताजा परिणाम शिक्षा विभाग का है जिसमें देश की तमाम प्रमुख शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्तशासी बना कर के यही संदेश दिया गया है कि वह अपनी मनमानी से उनके आकार प्रकार और उद्देश्य को बदल डालें जो संस्थाएं आमजन के लिए बनी थी उन्हें खासजन की बना दी जा रही हैं ? इसके नाना प्रकार के प्रयोग पिछले दिनों देखने को मिले हैं हम यदि अब न जागे तो गाय की पूंछ पकड़कर घर में कसाई की तरह घुस जाने की कथा कोई नई नहीं है हम लोगों ने पिछले काफी दिनों से गाय और गोबर से रूबरू होते हुए इस तरह के दुष्परिणाम देखने को बाध्य हुए हैं।
इन सारी स्थितियों के लिए जिन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वे लोग समाजवाद बहुजनवाद और सामाजिक न्याय के आंदोलनों से निकले हुए लोग हैं जिन्होंने मनुवादी व्यवस्था को अंगीकृत करके मनुवाद को समाप्त करने की बजाय ऐसे मनुवाद का सृजन कर दिया है जिसको हटाना उनके बस का नहीं है । लेकिन अगर संविधान के अनुसार चुनाव हुए तो जनता ने मन बना लिया है कि अब वह इस तरह की गलती नहीं करेगी।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

शनिवार, 3 मार्च 2018

न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए १५ मार्च से शुरू हो रहे बीडीएम् के अभियान का पम्फ्लेट्स-दुसाध

धन दौलत के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिएअभियान; दुसाध









न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए १५ मार्च से शुरू हो रहे बीडीएम् के अभियान का पम्फ्लेट्स-दुसाध;




शनिवार, 22 अप्रैल 2017

एकात्म मानवतावाद

कुछ विद्वान मित्रों का मानना है कि भाजपा की तरफ आम लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है और वह इसलिए कि उन लोगों के मन में उनमें  हिंदू होने का मुख्य केंद्र में ही आकर्षण दिख रहा है जिससे उनका रुझान उधर बढ़ा है।(विशेष रूप से गैर यादव पिछड़े और गैर जाटव (चमार) दलित में)
यहाँ यह दृष्टव्य है की ई वी एम प्रसंग भी बहुत कुछ इसके लिए जिम्मेदार है फिर भी बाकी संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है जिसमें प्रचंड बहुमत की सत्ता का मुख्य केंद्र कुछ सवर्ण जातियों के इर्द गिर्द घूम रहा है यहाँ अति दलित और अति पिछड़े लगभग  नदारद हैं।  
आजकल उत्तर प्रदेश में नई सरकार अपनी तरह के अधिकारियों को लगाने में व्यस्त है अब यह सारी व्यवस्था किस आधार पर की जा रही है इसका लेखा-जोखा तो कुछ दिनों के बाद ही पता चलेगा क्योंकि जब सरकारी आती हैं तो वह ढूंढ ढूंढ करके अपने चहेतों को पूरे प्रदेश भर में तैनात कर देती हैं।
यही काम पिछली सरकार ने भी किया होगा और पूरे 5 साल तक इस तरह की व्यवस्था में वह व्यस्त रही कि किस अधिकारी को कहां लगाया जाए। इस सरकार में और उस सरकार में फर्क इतना है कि यहां पर एक बहुत ही मजे हुए सन्यासी और राजनीतिज्ञ का नजरिया है दूसरी तरफ अनुभवहीन और अवसरवादी नेता पुत्र का उत्साह था यद्यपि इस समय राजनीतिक गलियारों में यह बहस का मुद्दा नहीं है ।
अब यह कैसे तय हो कि जिस झूठ फरेब और प्रोफगंडे से भारतीय राजनीति के समकालीन दौर में प्रदेशों और छोटी छोटी इकाइयों तक इसी तरह का पाखंड प्रबल हो रहा है उसका क्या उपाय है कि 5 सालों बाद कौन आ रहा है, मुख्य मुद्दा तो यह है कि इन 5 वर्षों तक प्रदेश की बदहाली या खुशहाली किस रूप में आने जा रही है, मौजूदा सरकार ने तमाम राजनेताओं की जन्मतिथि यों पर होने वाली छुट्टियों को समाप्त कर दिया है इससे हर पढ़ा लिखा आदमी खुश तो है, इन छुट्टियों के खत्म किए जाने से उनके बारे में लोग जल्दी भूल जाएंगे जिन्हें साल भर छुट्टियों के नाम पर लोग गालियां देते फिरते थे कि इन्होंने क्या किया है देश के लिए ।
मुझे बहुत आशंका है कि प्रदेश में छुट्टियां बहुत हो गई थी और तमाम ऐसे वैसे लोगों के नाम पर हो गई थी जिनमें बहुत कम लोग राष्ट्रवादी थे या यह कहा जाए की दलित और पिछड़े भी थे उनके लिए प्रदेश में छुट्टियां हो यह एक तबका कैसे बर्दाश्त कर सकता है इसलिए उनका खत्म किया जाना अनिवार्य है प्रतीत हो रहा था, आने वाले दिनों में अगर राष्ट्रवादियों के नाम पर उनके पर्व और उत्सव मनाए जाएंगे तो छुट्टियां तो करनी पड़ेगी।
इतनी छुट्टियों के साथ ही और छुट्टियां जुड़ी और इन छुट्टियों के साथ उनकी छुट्टियां जुड़ती तो बहुत सारी छुट्टियां हो जाती इसलिए जरूरी था कि पहले पुरानी छुट्टियों को खत्म किया जाए ताकि नई छुट्टियां करने में सुविधा हो। और दलित और पिछड़े तथा अल्पसंख्यकों के नाम पर कोई छुट्टी हो यह मौजूदा राष्ट्रवाद को कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
मेरा मानना है कि जो लोग सत्ता में आए हैं वह प्रचार प्रसार और प्रोपगंडा में बहुत विश्वास करते हैं यहां तक कि इनकी पुरानी सरकार थी तब इन्होंने शाइनिंग इंडिया नाम का प्रचार अभियान शुरू किया था ठीक उसी तरह से जैसे पिछली सरकार ने विकास के नाम पर जनता का वोट लेना चाहा था ।
धर्म तो वही रहेगा लेकिन उसमें नए दर्शन का समावेश किया जाना है जिसके समावेश से दुनिया में फैले समाजवाद को कैसे ब्राह्मणवाद निकलेगा उसके विभिन्न सारे रास्ते तलाशे जा रहे हैं और इसी तलाश में जारी है दीनदयाल उपाध्याय का एकात्मवाद यह एक तरह का नव ब्राह्मणवाद है जिस में घुमा-फिरा करके यह बताने की कोशिश की गई है कि किस तरह से भारतीय दर्शन को माननीय से पूरी दुनिया से आई हुई समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा के मूल को तहस-नहस करना और नव ब्राह्मणवाद फैलाना यह सिद्धांत मूलतः इस अंधभक्त देश में बहुत आसानी से आध्यात्म और धर्म के नाम पर फैलाया जा सकेगा जिससे कि कोई सत्ता की तरफ देखने की हिम्मत न करें और साधु संत मध्यकाल की तरफ इस देश को ले जाने का पूरा इंतजाम करें और सारा विकास उनके इर्द-गिर्द हो यही नव एकात्मवाद होगा ऐसी संभावना दिख रही है।




एकात्म-(वाद) मानवतावाद, पर परिचर्चा ही भारतीय संविधान की मूल अवधारणा को विवादित करने के उद्देश्य को हवा देती है, जिन महानुभावों को भारत के संविधान में आस्था नहीं है वे अपने अलग तरह  विचार लेकर भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं और सांस्कृतिक समाजवाद को बढ़ावा देते हुए संविधान के मूल तत्वों से सामन्यजन का ध्यान हटाते है।  -  डॉ.लाल रत्नाकर)
पं. दीनदयाल उपाध्याय : भारतीय संस्कृति और एकात्म मानव दर्शन

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्ति व समाज ''स्वदेश व स्वधर्म'' तथा परम्परा व संस्कृति'' जैसे गूढ़ विषय का अध्ययन, चिंतन व मनन कर उसे एक दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया। ...

अशोक बजाज पं. दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्ति व समाज ''स्वदेश व स्वधर्म'' तथा परम्परा व संस्कृति'' जैसे गूढ़ विषय का अध्ययन, चिंतन व मनन कर उसे एक दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया।

न्होंने देश की राजनैतिक व्यवस्था व अर्थतंत्र का भी गहन अध्ययन कर शुक्र, वृहस्पति, और चाणक्य की भांति आधुनिक राजनीति को शुचि व शुध्दता के धरातल पर खड़ा करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति समाज व सृष्टि का ही नहीं अपितु मानव के मन, बुध्दि, आत्मा और शरीर का समुचय है। उनके इसी विचार व दर्शन को ''एकात्म मानववाद'' का नाम दिया गया, जिसे अब एकात्म मानव-दर्शन के रूप में जाना जाता है। एकात्म मानव-दर्शन राष्ट्रत्व के दो पारिभाषित लक्षणों को पुनर्जीवित करता है, जिन्हें ''चिति '' (राष्ट्र की आत्मा) और ''विराट'' (वह शक्ति जो राष्ट्र को ऊर्जा प्रदान करता है) कहते हैं।मूल समस्या: स्व के प्रति दुर्लक्ष्यआजादी के बाद देश की राजनैतिक दिशा स्पष्ट नहीं थी क्योंकि आजादी के आंदोलन के समय इस विषय पर बहुत च्यादा चिन्तन नहीं हुआ था। अंग्रेजी शासनकाल में सबका लक्ष्य एक था ''स्वराज'' लाना लेकिन स्वराज के बाद हमारा रूप क्या होगा? हम किस दिशा में आगे बढेंग़े? इस बात का ज्यादा विचार ही नहीं हुआ। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 1964 में कहा था कि हमें ''स्व''  का विचार करना आवश्यक है। बिना उसके स्वराय का कोई अर्थ नहीं। केवल स्वतंत्रता ही हमारे विकास और सुख का साधन नहीं बन सकती। जब तक कि हमें अपनी असलियत का पता नहीं होगा तब तक हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता और न उनका विकास ही संभव है। परतंत्रता में समाज का ''स्व'' दब जाता है। इसीलिए लोग राष्ट्र के स्वराय की कामना करते हैं, जिससे वे अपनी प्रकृति और गुणधर्म के अनुसार प्रयत्न करते हुए सुख की अनुभूति कर सकें। प्रकृति बलवती होती है। उसके प्रतिकूल काम करने से अथवा उसकी ओर दुर्लक्ष्य करने से कष्ट होते हैं। प्रकृति का उन्नयन कर उसे संस्कृति बनाया जा सकता है, पर उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि किस प्रकार मानव-प्रकृति एवं भावों की अवहेलना से व्यक्ति के जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति प्राय: उदासीन एवं अनमना रहता है। उसकी कर्म-शक्ति क्षीण हो जाती है अथवा विकृत होकर विपथगामिनी बन जाती है। व्यक्ति के समान राष्ट्र भी प्रकृति के प्रतिकूल चलने पर अनेक व्यथाओं का शिकार बनता है। आज भारत की अनेक समस्याओं का यही कारण है। नैतिक पतन एवं अवसरवादिताराष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाले तथा राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश व्यक्ति इस प्रश्न की ओर उदासीन हैं। फलत: भारत की राजनीति, अवसरवादी एवं सिद्वांतहीन व्यक्तियों का अखाड़ा बन गई है। राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलों के न कोई सिद्वांत एवं आदर्श हैं और न कोई आचार-संहिता। एक दल छोड़कर दूसरे दल में जाने में व्यक्ति को कोई संकोच नहीं होता। दलों के विघटन अथवा विभिन्न दलों में गठबंधन किसी तात्विक मतभेद अथवा समानता के आधार पर नहीं अपितु उसके मूल में चुनाव और पद ही प्र्रमुख रूप से रहते हैं। अब राजनीतिक क्षेत्र में पूर्ण स्वेच्छाचारिता है। इसी का परिणाम है कि आज भी सभी के विषय में जनता के मन में समान रूप से अनास्था है। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं कि जिसकी आचरणहीनता के विषय में कुछ कहा जाए तो जनता विश्वास न करे। इस स्थिति को बदलना होगा। बिना उसके समाज में व्यवस्था और एकता स्थापित नहीं की जा सकती। भारतीय संस्कृति एकात्मवादीराष्ट्रीय दृष्टि से तो हमें अपनी संस्कृति का विचार करना ही होगा, क्योंकि वह हमारी अपनी प्रकृति है। स्वराय का स्व-संस्कृति से घनिष्ठ संबंध रहता है। संस्कृति का विचार न रहा तो स्वराज की लड़ाई स्वार्थी व पदलोलुप लोगों की एक राजनीतिक लड़ाई मात्र रह जायेगी। स्वराय तभी साकार और सार्थक होगा जब वह अपनी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बन सकेगा। इस अभिव्यक्ति में हमारा विकास भी होगा और हमें आनंद की अनुभूति भी होगी। अत: राष्ट्रीय और मानवीय दृष्टियों से आवश्यक हो गया है कि हम भारतीय संस्कृति के तत्वों का विचार करें। भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता यह है कि वह सम्पूर्ण जीवन का, सम्पूर्ण सृष्टि का, संकलित विचार करती है। उसका दृष्टिकोण एकात्मवादी है। टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना विशेषज्ञ की दृष्टि से ठीक हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं। व्यक्ति के सुख का विचार सम्पूर्ण समाज या सृष्टि का ही नहीं, व्यक्ति का भी हमने एकात्म एवं संकलित विचार किया है। सामान्यत: व्यक्ति का विचार उसके शरीर मात्र के साथ किया जाता है। शरीर सुख को ही लोग सुख समझते हैं, किन्तु हम जानते हैं कि मन में चिंता रही तो शरीर सुख नहीं रहता। प्रत्येक व्यक्ति शरीर का सुख चाहता है। किन्तु किसी को जेल में डाल दिया जाए और खूब अच्छा खाने को दिया जाए तो उसे सुख होगा क्या? आनंद होगा क्या? इसी प्रकार बुद्वि का भी सुख है। इसके सुख का भी विचार करना पड़ता है। क्योंकि यदि मन का सुख हुआ भी और आपको बड़े प्रेम से रखा भी तथा आपको खाने-पीने को भी खूब दिया, परंतु यदि दिमाग में कोई उलझन बैठी रही तो वैसी हालत होती है, जैसे पागल की हो जाती है। पागल क्या होता है? उसे खाने को खूब मिलता है, हष्ट-पुष्ट भी हो जाता है, बाकी भी सुविधाएं होती हैं। परंतु दिमाग की उलझनों के कारण बुद्वि का सुख प्राप्त नहीं होता। बुद्वि में तो शांति चाहिए। इन बातों का हमें विचार करना पड़ेगा।

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

चंद्रजीत यादव एक चिंतक

Tenth Lok sabha
Members BioprofileYADAV, SHRI CHANDRAJIT
[J.D. - Azamgarh (Uttar Pradesh)]
Father's NameDate of Birth
Place of Birth
Marital Status
Spouse's Name
Children
Educational Qualifications


Profession
Permanent Address

Present Address
Positions held
1957-67


1967
1971-74
 1971
1974-77
1980

1991
Other Positions held
Social and Cultural Activities



Special Interests

Favourite Pastime and Recreation

Sports and Clubs

Countries visited
Shri Ishwari Prasad Yadav1st January, 1930
Savupaha in Distt. Azamgarh (Uttar Pradesh)
Married in 1949
Smt. Asha Yadav
One son
M.A., LL.B.
Educated at S.K.P. College, Azamgarh; Banaras Hindu University, Varanasi and Lucknow University, Lucknow (Uttar Pradesh)
Lawyer
Mohalla Hari Bansh Pura, Azamgarh (Uttar Pradesh)

78, North Avenue, New Delhi-110001. Tel. 3017214

Member, Uttar Pradesh Legislative Assembly
Deputy Leader, C.P.I. Group, Uttar Pradesh State Legislature

Elected to Lok Sabha (Fourth)

General Secretary, A.I.C.C.
Re-elected to Lok Sabha (Fifth)
Union Minister, Steel and Mines
Elected to Lok Sabha (Eighth) for the third time
Member, Committee on Government Assurances
Elected to Lok Sabha (Tenth) for the fourth time
Chairman, Public Accounts Committee

President, Indo-G.D.R. Friendship Society, Uttar Pradesh; National Committee on Aid for Democratic Republic of Vietnam; Vice-President, Afro-Asian Peace and Solidarity Committee; General Secretary, U.P. Kisan Sabha; President, All India Peace and Solidarity Organisation; Vice-President, Indo-Soviet Cultural Society; Member, Presidium of the World Peace Council; Vice-President, Asian Solidarity Organisation; Chairman, W.P.C. Asia Committee


Reading biographies and poetry

Gardening and swimming


Cricket

Widely travelled.

जब वे एक साथ होंगे !


(बीजेपी की जीत से आहत सपा बसपा एक साथ आने की सोच रही है जबकि वैचारिक रूप से इन दलों का आंतरिक सेतु तोड़ने का जो महँ काम किया है इनके नेताओं ने वह भरना बहुत आसान नहीं है , मीडिआ अपने पुरे सवाब पर है जिसे हम इस तरह देख सकते हैं की इनके बीच जिस तरह के जहर का समावेश इन्होने किया है वह बहुत ही पीड़ा दायक है )

आजकल यह चर्चा बहुत जोरों पर है कि मायावती जी और अखिलेश जी एक साथ आ रहे हैं । वैसे तो इस विचार का स्वागत करने वाले लोग आजकल भाजपा में चले गए हैं । और भाजपा तो उनके सपनों की पार्टी थी ही लेकिन जब तक वे सपा बसपा का विनाश नहीं कर लिए तब तक वे वहीँ जमे रहे । अब सामाजिक सरोकारों को एक सतह पर लाने के लिए जिस तरह से वह उनको मजबूत करने के लिए अखिलेश और मायावती को एक साथ लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ? और जैसा की योगी जी का भी मानना है कि वह उनके प्रभाव के कारण ही एक साथ आ रहे हैं?
अब देखना यह है कि एक साथ आकर यह क्या जनता को बताते हैं ? क्योंकि इन्होंने अपने कार्यकाल में उसी जनता का सबसे ज्यादा नुकसान किया है जिसकी वजह से यह नेता बने थे और उसी जनता ने इन्हें नकार दिया है! फिर भी यह देखना है कि इनके पास सामाजिक न्याय का कोई मुद्दा बचा है क्या ? क्यों  कि यह सवर्णों के लिए बेहद बेचैन रहे है ? और अगर यह है तो वह क्या है या केवल सत्ता के लिए साझा हो रहा है या कोई मुद्दे भी यहां हैं। यदि ऐसा है तो यह अपने मिशन में कितने सफल हो पाएंगे उस पर बहुत कुछ अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनका यह समझौता समाज के लिए ना होकर क्या इनके अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्यादा नजर आ रहा है ?
क्योंकि इन्होंने सत्ता में रहते हुए इस तरह के समझौतों पर कभी विचार ही नहीं किया बल्कि उल्टे एक दूसरे पर प्रहार ही किया है । यह तो भला हो जनता का कि वह इनके इस मंसूबे के साथ एक साथ आने पर इनके लिए एक साथ खड़ी हो जाए और इनसे पूछें कि क्या आपको सामाजिक न्याय की कोई समझ है और अगर समझ है तो आरक्षण पर आप कहां कहां खड़े हुए हैं !
यह निश्चित जानिए कि यदि आरक्षण के मामले पर और सामाजिक न्याय के तमाम सवालों पर आप का ज्ञान नहीं है। तो जनता आपके झांसे में अब दुबारा आने वाली नहीं है इसलिए आपका यह मेल मिलाप केवल और केवल भाजपा के कल्पनातीत बहुमत का भय ही है जो इनको एक साथ खड़ा कर रहा है ।
खुदा न खाश्ता यह एक साथ आकर अगर जीत भी गए तो इनके सलाहकार वही 15 फीसदी लोग होंगे और वह सामाजिक न्याय की सारी शक्तियों का बड़ा नुकसान करायेंगे।

डॉ.लाल रत्नाकर

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