रविवार, 5 फ़रवरी 2012

पांच साल का हिसाब

पांच साल की 'माया'नगरी
 शनिवार, 4 फ़रवरी, 2012 को 18:26 IST तक के समाचार
मायावती ने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी
वर्षों पहले नरसिंह राव के इस बयान में न सिर्फ़ महिला सशक्तिकरण की बात थी, बल्कि दलित वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने को लेकर चल रहे बदलाव की ओर भी इशारा था.
एक दलित परिवार में पैदा हुईं मायावती का राजनीतिक सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा है. एक समय दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली मायावती देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री बनीं.
मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस बताते हैं कि वर्ष 1977 में कांशीराम मायावती से मिलने पहुँचे, उस समय मायावती सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी.
उन्होंने मायावती से कहा था- मैं एक दिन तुम्हे इतना बड़ा नेता बना दूँगा कि एक आईएएस अधिकारी नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में आईएएस अधिकारी तुम्हारे आदेश के लिए खड़े रहेंगे.
और ये बात सच भी हुई जब 1995 में 39 साल की उम्र में मायावती ने देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा मुख्यमंत्री बनीं.

वापसी के लिए संघर्ष

दलितों की मसीहा और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरीं मायावती आज अपने राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं.
पिछले पाँच वर्षों के दौरान उन पर आरोपों की झड़ी लगी और भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें 21 मंत्रियों को हटाना पड़ा. पार्कों में अपनी मूर्तियाँ लगवाने को लेकर सवाल उठे, तो सरकारी धन के दुरुपयोग पर भी विपक्ष ने उनको घेरा.
लेकिन इन सब आरोपों के बीच उत्तर प्रदेश चुनाव में मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी को ख़ारिज करना इतना आसान नहीं. दलितों के बीच पार्टी की ज़बरदस्त पैठ है और इन पाँच वर्षों में गिनाने के लिए कई उपलब्धियाँ भी.
लेकिन, क्या इन पाँच वर्षों में एक राजनेता के रूप में मायावती परिपक्व हुई हैं.
"मायावती परिपक्व ज़रूर हुई हैं, लेकिन उन्होंने अपने वोटरों और क़रीबी लोगों से दूरी बना ली है. हालांकि ये दूरी नौकरशाही ने बनाई हुई है."
उदय सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार उदय सिन्हा कहते हैं, "मायावती परिपक्व ज़रूर हुई हैं, लेकिन उन्होंने अपने वोटरों और क़रीबी लोगों से दूरी बना ली है. हालांकि ये दूरी नौकरशाही ने बनाई हुई है."
शायद मायावती को इस दूरी का सबसे बड़ी ख़ामियाज़ा वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा था. मायावती को इस चुनाव में तगड़ा झटका लगा था.
मायावती की जीवनी लिखने वाले पत्रकार अजय बोस का मानना है कि मायावती ने 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद अपने वोटरों को जोड़ने की भरपूर कोशिश की और काफ़ी हद तक सफल रहीं.
अजय बोस कहते हैं, "मायावती ने एक बड़ा काम ज़रूर किया, जो दलित वोट उनसे बिछड़ने वाला था, उन्होंने उसे वापस जोड़ा. इसलिए इस चुनाव में भी मायावती की अनदेखी नहीं की जा सकती है. सर्वजन समाज को लेकर चलने के मुद्दे पर भी उनका संतुलन क़ायम है."
"मायावती ने एक बड़ा काम ज़रूर किया, जो दलित वोट उनसे बिछड़ने वाला था, उन्होंने उसे वापस जोड़ा. इसलिए इस चुनाव में भी मायावती की अनदेखी नहीं की जा सकती है."
अजय बोस, मायावती के जीवनीकार
अजय बोस की बात से पत्रकार उदय सिन्हा सहमत नहीं हैं. उदय सिन्हा का कहना है कि मायावती ने वोटरों से दूरी के मुद्दे पर कुछ ख़ास नहीं किया और सर्वजन समाज के लोगों का भी कोई ख़ास कल्याण नहीं हुआ.
उदय सिन्हा ने कहा, "मायावती ने अपने आप को लोगों से काट दिया. वो पहले फ़ीडबैक लेती थी, उससे भी वे अलग हो गईं. ये राजनीतिक दृष्टि से उनका बहुत ख़राब फ़ैसला रहा है और इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ा. उन्होंने सर्वजन समाज की एक जाति को छोड़कर बाक़ियों का कुछ ख़ास ख़्याल नहीं रखा."

उपलब्धियां

लेकिन मायावती ने क्या इन पाँच वर्षों में कुछ किया ही नहीं. अंबेडकर ग्राम में अभूतपूर्व विकास को बहुजन समाज पार्टी बड़ी उपलब्धि मान रही है. और तो और पार्कों के निर्माण को भी कहीं न कहीं दलित अपने सम्मान से जोड़कर देखता है.
अजय बोस कहते हैं, "पार्क और मूर्तियाँ मायावती का पागलपन नहीं, इसके पीछे उनकी एक राजनीतिक सोच है और दलित इसे अच्छा काम मानता है."
जानकारों की मानें, तो लब्बोलुआब ये है कि मायावती ने अपने मौजूदा कार्यकाल की शुरुआत से ही उन लोगों से किनारा करना शुरू कर दिया, जो उनके क़रीबी रहे थे और जो उनके समर्पित मतदाता थे.
लेकिन बाद में ही सही मायावती को ये सच समझ में आ गया और दलितों के पास भी मायावती के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं. सवाल ये भी है कि मायावती पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद क्या उनका दलित वोटबैंक खिसकेगा.
उदय सिन्हा इसे पूरी तरह ख़ारिज करते हैं. कहते हैं, "ड्राइंग रूप में चलने वाले विचार-विमर्श में तो इसका असर पड़ सकता है, लेकिन मतदान केंद्रों पर इसका असर नहीं पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में मायावती के समर्पित वोटर 11 प्रतिशत हैं. ये 11 प्रतिशत वोट मायावती के अलावा कहीं और नहीं जाएगा. मायावती के समर्पित वोटरों में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है."
"राजनीति करने वाले राजनीति तो करेगा ही. वैश्य वोटबैंक भाजपा का है, जाट वोटबैंक अजित सिंह का है, दलित वोटबैंक मूल रूप से मायावती का है, तो पिछड़ा वर्ग और यादव मुलायम सिंह का वोटबैंक है"
उदितराज, दलित नेता
जब मैंने यही सवाल उदित राज के सामने रखा, तो उन्होंने कहा कि वोट बैंक के रूप में तो सभी इस्तेमाल होते हैं. दलितों के मायावती से जुड़े रहने के बारे में वे कहते हैं कि दलितों के पास विकल्प नहीं है. मायावती ने उनके लिए अगर कुछ ख़ास नहीं किया, तो अन्य लोगों ने क्या कर दिया....
उदित राज कहते हैं, "वोट बैंक तो सभी है. इस शब्द का इस्तेमाल मुझे समझ नहीं आता है. राजनीति करने वाले राजनीति तो करेगा ही. वैश्य वोटबैंक भाजपा का है, जाट वोटबैंक अजित सिंह का है, दलित वोटबैंक मूल रूप से मायावती का है, तो पिछड़ा वर्ग और यादव मुलायम सिंह का वोटबैंक है."
अपने पाँच साल के कार्यकाल में मायावती ने भले ही कई ग़लतियाँ की हों, लेकिन एक परिपक्व राजनेता के तौर पर उन्होंने कम से कम अपने समर्पित मतदाताओं को फिर से अपने ख़ेमे में वापस लेने की कोशिश की है.
लेकिन जब तक उत्तर प्रदेश का मतदाता एक बेहतर प्रशासक के रूप में मायावती को सबसे बेहतर विकल्प नहीं मानेगा, मायावती को मुश्किल पेश आ सकती है. लेकिन ये कहना कि मायावती सत्ता के संघर्ष में काफ़ी पिछड़ गई है, फ़िलहाल उचित नहीं होगा

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न निति है और न राजनीती .

वाह बहिन जी मामला फसता देख बिफर पड़ीं 'कुशवाहा आपको भ्रष्टाचारी ' नज़र आने लगा और आपका भाई और  मिश्र जी का भांजा "अंतु मिश्र" तथा अनेक जिसने सरे आम प्रदेश को लूटा और आज खुल्लम खुल्ला लूट रहे हैं, उनकी यद् आपको नहीं आ रही है |
ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न  निति है और न राजनीती है.

बाबू सिंह कुशवाहा बसपा से निष्कासित

लखनऊ/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Tuesday, November 29, 2011    1:22 AM
Babu Singh Kushwaha expelled from BSP
बसपा प्रमुख मायावती ने कभी अपने विश्वासपात्र रहे बाबू सिंह कुशवाहा को आखिरकार पार्टी से निकाल ही दिया। पूर्व मंत्री और एमएलसी कुशवाहा को पार्टी नेतृत्व के खास लोगों पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगा कर बगावती तेवर अपनाना महंगा पड़ा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने अनुशासनहीनता व पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में कुशवाहा के आजीवन निष्कासन का ऐलान किया।

उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया
प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच से बचने के लिए कांग्रेस पार्टी के लगातार संपर्क में हैं। कुशवाहा ने परिवार कल्याण मंत्री रहते अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। इस कारण उनके मंत्री रहते हुए ही विभाग में तीन सीएमओ की हत्या हुई। कुशवाहा के मंत्री रहने के दौरान इस तरह की घटना होने पर ही सरकार व पार्टी की छवि खराब होते देख उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया था।

सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया
मौर्य ने कहा कि मामले की जांच सीबीआई को दिए जाने के बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए और बसपा को लगातार नुकसान पहुंचाने का काम करते रहे। उन्होंने अपने समाज के लोगों को बसपा के खिलाफ काम करने के लिए उकसाया। उन्होंने राज्य सरकार के बारे में असत्य व भ्रामक बयानबाजी की। यह सभी काम निजी फायदे के लिए किए। बकौल मौर्य, कुशवाहा ने विधान परिषद् के हाल में बुलाए सत्र में भाग नहीं लिया और विपक्षी पार्टियों को सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया। गौरतलब है कि कुशवाहा और अनंत मिश्र अंटू से इसी साल 7 अप्रैल को मुख्यमंत्री ने दो सीएमओ की हत्याओं को बाद इस्तीफा ले लिया था। तब बसपा ने कहा था कि दोनों मंत्रियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया है।

टर्निंग प्वांइट
यूं तो कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले व सीएमओ हत्याकांड की सीबीआई जांच की जद में आने के कारण पहले ही हाशिए पर आ गए थे। लेकिन, जब सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और दो प्रमुख अफसरों पर अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप लगाते हुए सीएम व पीएम को पत्र भेजा, तब ही उनका हश्र नजर आने लगा था। बसपा प्रदेशाध्यक्ष ने सवाल किया कि कुशवाहा को मंत्री रहते इन लोगों से अपनी जान का खतरा क्यों नजर नहीं आया।

पूर्व मंत्री कुशवाहा बर्खास्त

 सोमवार, 28 नवंबर, 2011 को 15:19 IST तक के समाचार

एक समय में कुशवाहा मायावती के पसंदीदा लोगों में से थे
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी और पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
कुशवाहा ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी.
कुछ समय पहले तक कुशवाहा बीएसपी में मायावती के सबसे विश्वासपात्र लोगों में गिने जाते थे.
उन्हें कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री निवास के बगल में बँगला मिला था और वह लगभग हमेशा मुख्यमंत्री निवास में रहते थे.
बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि कुशवाहा को " अनुशासनहीनता एवं पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण" हमेशा के लिए बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.
मौर्य ने आरोप लगाया कि कुशवाहा के परिवार कल्याण मंत्री रहते इस विभाग में दो सीएमओ की ह्त्या हुई तथा एक और की जेल में मृत्यु हुई.
इन हत्याओं के चलते मुख्यमंत्री ने कुशवाहा को मंत्री पद से हटा दिया था.
बाद में अदालत ने इस ह्त्या और परिवार कल्याण विभाग में कथित घोटालों की जांच सीबीआई को सौंप दी.
विपक्ष का आरोप था कि इन घोटालों के तार मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े हैं , क्योंकि रिश्वत का पैसा ऊपर तक जाता था.
कुशवाहा ने हाल ही में राज्यपाल, राष्ट्रपति एवं अन्य लोगों को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी , कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और गृह सचिव कुंवर फ़तेह बहादुर से अपनी जान को ख़तरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी.
माया सरकार ने इन आरोपण का खंडन किया और कुशवाहा को मिली सुरक्षा कम कर दी गयी.
अब प्रदेश बीएसपी अध्यक्ष मौर्य ने आरोप लगाया है कि कुशवाहा सीबीआई जांच से अपने को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी से लगातार संपर्क में हैं.
मौर्य ने यह भी आरोप लगाया है कि कुशवाहा विपक्षी नेताओं से मिलकर सरकार एवं पार्टी के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं.
कुशवाहा इन दिनों अज्ञात वास में हैं और उनसे संपर्क संभव नही हो सका.

बाबू सिंह कुशवाहा को माया ने पार्टी से निकाला

Nov 28, 02:11 pm
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की सोमवार को बसपा से विदाई हो गई। पार्टी ने उन्हें लखनऊ में दो सीएमओ की हत्या और जेल में डिप्टी सीएमओ की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। आरोप लगाया है कि वह खुद को एनआरएचएम घोटाले से बचाने के लिए कांग्रेस के संपर्क में हैं। दूसरे विपक्षी दलों के साथ मिलकर पार्टी के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से जारी लिखित बयान में यह जानकारी दी गई है।
मौर्य ने कहा है कि कुशवाहा ने परिवार कल्याण विभाग यह कह कर मांगा था कि वह इसके जरिए दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की सेवा कर सकेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। कुशवाहा के मंत्री रहते हुए ही दो सीएमओ की हत्या और एक डिप्टी सीएमओ की जिला कारागार में मौत हुई। सरकार और पार्टी की छवि खराब होती देख उनसे मंत्री पद से त्याग पत्र लिया गया था। कुशवाहा जब कानूनी शिकंजे में फंस रहे हैं, तो उन्हें कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव और प्रमुख सचिव गृह से अपनी जान का खतरा दिखने लगा है।
मौर्य ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा परिवार कल्याण विभाग में हुई हत्याओं और डिप्टी सीएमओ की जेल में मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इसके बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए। उन्होंने बसपा से जुड़े अपने समाज के लोगों को पार्टी के खिलाफ काम करने के लिए भी उकसाया। विधान परिषद की बैठकों में भी शामिल नहीं हुए। इसके अलावा उन्होंने विपक्षी पार्टियों के सदस्यों को सरकार के विरुद्ध हंगामा करने के लिए भी भड़काया।

रविवार, 27 नवंबर 2011

मायावती की पहल - पिछड़ों और दलितों को जोड़ने की


(सारी क्रीम ब्राह्मणों को खिलाकर अब लाली पाप की कवायद पिछड़ों के लिए)

माया का चुनाव के लिए ऐलान-ए-जंग

लखनऊ।
Story Update : Monday, November 28, 2011    1:45 AM
Maya decided to attack on bjp congress sp
प्रदेश की सीएम मायावती ने विधानसभा चुनाव के लिए जंग का ऐलान करते हुए जनता को चेताया कि कांग्रेस को जिताया तो यूपी पांच साल में कंगाल नंबर वन हो जाएगा। उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए उनके दावों और आरोपों को हवाहवाई बताया। रमाबाई अंबेडकर मैदान में रविवार को आयोजित दलित-पिछड़ा वर्ग भाईचारा कार्यकर्ता महासम्मेलन के करीब डेढ़ घंटे के भाषण में मायावती ने कांग्रेस और केंद्र पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बसपा को मिल रहे अपार समर्थन से कांग्रेस घबराई हुई है। मायावती ने आशंका जताई कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे के प्रस्ताव को विरोधी दल मिलकर रोक सकते हैं। यह भी कहा कि केंद्र उनसे बदला लेने को उनके भाई आनंद सिंह को फर्जी मामले में फंसा सकती है।

बसपा ने अभियान शुरू कर दिया
मुख्यमंत्री ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल गांधी संसद छोड़कर यूपी में आकर नाटकबाजी कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि विस चुनाव के लिए बसपा ने अभियान शुरू कर दिया है। अगर उनकी केंद्र में सरकार बनती है तो वह मनरेगा के तहत सौ दिन के बजाए पूरे साल भर रोजगार देंगी। प्रदेश में चल रही सामाजिक कल्याण की तमाम योजनाओं को भी देश भर में लागू किया जाएगा।

क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी
उन्होंने भाजपा पर सांप्रदायिकता बढ़ाने और सपा पर गुंडागर्दी का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि विरोधी पार्टियां अगर दलित सीएम या पीएम बनाती हैं तब भी वह किसी काम के नहीं होंगे, क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी। उन्होंने कहा कि अपने मां-बाप और भाई-बहन से उनका संबंध तभी तक है जब तक वे बसपा मूवमेंट से जुड़े रहेंगे। जैसे ही उनके मन में सांसद, मंत्री बनने का ख्याल आएगा वह उनसे संबंध तोड़ लेंगी। उन्होेंने दावा किया कि चुनाव में बसपा इस नारे को हकीकत में बदल देगी कि ‘चलेगा हाथी, उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल और न रहेगी साइकिल’।

राहुल गांधी पर भी साधा निशाना
मायावती ने कहा कि कांग्रेस को हमेशा बसपा का भय रहता है। कांग्रेसियों को सपने में भी बसपा का हाथी रौंदता दिखाई देता होगा। कांग्रेसी नेता जो अनापशनाप बोलते रहते हैं, उस पर मैं तो संज्ञान नहीं लेती, पर प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को जरूर गुस्सा आता है। माया ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल संसद छोड़ यूपी में नाटकबाजी कर रहे हैं। यूपी के लोगों को भिखारी कहने पर उन्होंने कहा कि उन 40 वर्षों में यूपी के लोगों ने ज्यादा पलायन किया जब यहां कांग्रेस का राज था। लोगों के पलायन को कांग्रेस जिम्मेदार है ।

कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस ने कहा कि मायावती राहुल फोबिया से ग्रसित हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि मायावती को अब लगने लगा है कि कांग्रेस उनकी सरकार को उखाड़ फेंकेगी। पूरे भाषण में उनका यही डर झलक रहा था।

जिस तरह से मायावती ने राहुल गांधी पर प्रहार किया उससे साफ है कि उन्हें लगने लगा है कि उनकी जमीन खिसक रही है और कांग्रेस मजबूत हो रही है। मायावती की घबराहट कांग्रेस के लिए संतोष की बात है। यह इस बात का भी संकेत है कि हमारी जमीन मजबूत हो रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी 

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा दोगुनी करने की सिफारिश




17-11-11 06:51 PM
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केन्द्र सरकार से सिफारिश की है कि सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए बनी क्रीमीलेयर की सीमा दोगुनी करके इसे नौ लाख रुपये वार्षिक आय कर दिया जाए।

सरकारी नौकरियों में क्रीमीलेयर की वर्तमान सीमा में फिलहाल साढ़े चार लाख रुपये वार्षिक आय वाले ओबीसी सदस्य आते हैं। अगर आयोग की सिफारिशों को केन्द्र सरकार हरी झंडी दिखा देती है तो देश में ओबीसी के लिये क्रीमीलेयर की सामान्य सीमा नौ लाख रुपये सालाना और देश के चार महानगरों के लिए यह सीमा नौ लाख रुपये सालाना से भी अधिक हो जाएगी। अभी देश के महानगरों और अन्य क्षेत्रों के लिये यह सीमा एक समान साढ़े चार लाख रुपये है।

आयोग के सदस्य डाक्टर शकील अंसारी ने कहा कि आयोग ने कई सर्वेक्षणों के बाद ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा में बढ़ोत्तरी करने की सिफारिश की है। उम्मीद है कि जल्द ही सरकार विचार विमर्श के बाद इन सिफारिशें को मंजूरी देगी।

अंसारी ने कहा कि हर तीन साल बाद क्रीमीलेयर की सीमा की समीक्षा की जाती है। वर्तमान क्रीमीलेयर में ओबीसी के बड़े तबके को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है, इसलिए ये सिफारिशें की गई हैं।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

साहित्य में जातिवाद


दलित विरोधी ये प्रगतिशील
श्यौराज सिंह बेचैन
Story Update : Friday, November 04, 2011    7:47 PM
हाल ही में लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने कुछ ऐसी बातेंकहीं, जिससे प्रगतिशील लेखकों के दलित विरोधी होने की धारणा पुख्ता होती है!

उन्होंने कहा कि ‘दलितों के बारे में बेहतर ढंग से दलित ही लिख सकता है और महिलाओं के बारे में महिलाएं ही लिख सकती हैं, अगर ऐसा मानेंगे, तो सारा प्रगतिशील लेखन ही खारिज हो जाएगा।’ इसके अलावा उन्होंने बहुरि नहीं आवना पत्रिका में डॉ धर्मवीर द्वारा किए गए मुर्दहिया के मूल्यांकन पर दलित हिमायती के अंदाज में ऐतराज जताते हुए कहा कि मुर्दहिया की एक अन्य दलित लेखक धर्मवीर ने जमकर धज्जियां उड़ाई हैं। खेमेबाजी यहां भी है।

मान लिया जाए कि दलित ने दलित की आलोचना की या नामवरों के जाल से उसे बाहर निकाल लाने की कोशिश की, पर क्या प्रलेस के विगत 75 वर्षों में नामवर सिंह ने कभी किसी दलित-विरोधी ठाकुर की आलोचना की? दलित साहित्य के स्थायी और घोषित विरोधी होने के बावजूद नामवर सिंह मुर्दहिया के पक्ष में कैसे आ गए?

वह इस कृति के समर्थन की आड़ में दलित साहित्य और समाज का कौन-सा बड़ा हित करना चाह रहे थे, जिसे डॉ धर्मवीर की समीक्षा ने नाकाम कर दिया, जिस वजह से उन्होंने सम्मेलन का मुख्य मुद्दा उस समीक्षा को बनाया? यों कहने के लिए प्रगतिशील विचारधारा में वर्ण नहीं, वर्ग होते हैं, पर नामवर सिंह के मानस में स्थायी रूप से सामंत निवास करता है। वह कह चुके हैं कि आरक्षण से बड़ा फर्क पड़ा है। काफी दलित सवर्णों से बेहतर स्थिति में हैं। यही हालात रहे, तो ब्राह्मण, ठाकुर सड़क पर नजर आएंगे। इससे पहले नया पथ के एक साक्षात्कार में वह दलित लेखकों के बारे में अनाप-शनाप बोल चुकेहैं।

नामवर सिंह को इस बेबाकी के लिए बधाई देनी चाहिए कि वह दलितों के विषय में जो सोचते हैं, जो करते हैं, वही कहते हैं। वरना कथनी और करनी में अंतर रखने वाले प्रगतिशीलों की क्या कमी है! हिंदी क्षेत्र के दलितों के लिए यह अच्छा ही हुआ कि नामवर सिंह जैसे विरोधी और प्रतिद्वंद्वी पैदा हुए। काश वे केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में भी पैदा हो जाते, तो वहां भी दलित लेखन अपने रूप में आ गया होता। नामवर सिंह के रूप में यहां 75 वर्षीय प्रलेस की कलई खुली है। उसका नेतृत्व दलितों का कैसा इस्तेमाल करता रहा है, यह साफ हो गया है।

डॉ अंबेडकर से लेकर अब तक कभी किसी दलित की अच्छी रचना नामवर जी की समझ में नहीं आई। उन्होंने उसे या तो दो कौड़ी की या भूसा कहा। प्रेमचंद के सामने गांधी और अंबेडकर राजनीतिक आदर्श के रूप में दो विकल्प थे। प्रेमचंद ने गांधी जी को चुना और अंबेडकर का असहयोग किया। स्वामी अछूतानंद प्रेमचंद के हमउम्र और हमशहरी थे। प्रेमचंद ने उनके नेतृत्व को भी स्वीकार नहीं किया। उसी परंपरा में नामवर सिंह दलितों के बौद्धिक नेतृत्व और साहित्य चिंतन को गुलाम बनाए रखने का उपक्रम कर रहे हैं।

नामवर जी दावा कर रहे थे कि गैरदलित भी दलित साहित्य लिख सकता है। उनसे पूछा जा सकता है कि उन्हें किसने रोका था, एक और मुर्दहिया, मेरा बचपन मेरे कंधों पर अथवा मेरी पत्नी और भेड़िया जैसी आत्मकथा लिखने से? पर उन्होंने डॉ यशवंत वीरोदय से कहा कि ऐसी बातें छिपा लेनी चाहिए। यही तो अंतर है। उनकी परंपरा में छिपाना है, जबकि दलित और कबीर की परंपरा में खोलकर कहना है।

नामवर सिंह आतंकित हैं कि दलित उनकी सोच को खारिज कर देंगे। इसलिए वह मार्क्सवाद का आवरण फेंककर सीधे वर्णवादी भाषा में बोलते दिख रहे हैं। मार्क्सवाद में तो ब्राह्मण, ठाकुर और दलित होता नहीं है, इसके लिए तो नामवर जी को अपने असली चरित्र में आना ही पड़ता। यदि प्रेमचंद दलितों को लेकर चले थे और ठाकुर का कुआं लिखकर ठाकुर का चरित्र दिखा चुके थे, तो 75 वर्ष होने पर प्रलेस का नेतृत्व दलित को सौंप देना चाहिए था। स्थायी तौर पर नहीं, तो सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए ही सही, पर ऐसी पहल कहीं से होती नहीं दिखी।

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...