शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

सामाजिक न्याय की लडाई लड़ना आसान नहीं ! कहीं आपको देशद्रोही न बना दें "असली देशद्रोही"

डॉ.लाल रत्नाकर
अंग्रेजों के ज़माने में अंग्रेजों के खिलाफ बोलने वाले उनकी नज़र में जैसे देशद्रोही थे, आज उन्ही की नाजायज औलादें उसी तरह से देश के बड़े ओहदों एवं 'न्याय' के पदों पर बैठकर खुलेआम 'अन्याय' को न्याय में तब्दील कर रहे हैं. सत्ता में बैठे हुए लोग इनसे यह सब करवा रहे है!
बी बी सी की यह खबर इसका उदहारण ही नहीं 'सत्ता' की सच्चाई है -
बिनायक सेन को देशद्रोह के लिए उम्रकैद 


बिनायक सेन
छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता बिनायक सेन को देशद्रोह के लिए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है.
अदालत ने उन्हें नक्सलियों के साथ साँठगाँठ और उनकी सहायता के आरोप में राजद्रोह और विद्रोह का दोषी पाया है.
उनके साथ नक्सली समर्थक नारायण सान्याल और कोलकाता के पीयूष गुहा को भी उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई है.
डॉ. बिनायक सेन को मई, 2007 में बिलासपुर से गिरफ़्तार किया गया था.
उन पर आरोप लगाया गया था कि वे नक्सल समर्थक नारायण सान्याल का पत्र भूमिगत नक्सली नेताओं तक पहुँचाने जा रहे थे.
वे दो वर्षों तक जेल में रहे और आख़िर मई, 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें ज़मानत मिल सकी थी.
लेकिन अदालत के इस फ़ैसले के बाद एक बार फिर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है.
बिनायक शुरु से राज्य सरकार के आरोपों का खंडन करते रहे हैं और कहते रहे हैं कि वो नक्सलियों का साथ नहीं देते लेकिन वो साथ ही राज्य सरकार की ज्यादतियों का भी विरोध करते रहे हैं.
उनकी गिरफ़्तारी पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई है. पीयूसीएल ने इस 'वाहियात फ़ैसला' बताया है तो सीपीएम ने इसे 'न्यायप्रणाली का मज़ाक' बताया है.

सज़ा

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर तो इस देश में गैंगस्टर खुले घूमते रहते हैं और दूसरी ओर 30 सालों तक ग़रीबों और आदिवासियों के बीच सेवाकार्य करने वाले को देशद्रोही का दोषी ठहराया जाता है
इलीना सेन, बिनायक सेन की पत्नी
रायपुर में अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीपी वर्मा ने बिनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा तीनों को भारतीय दंड विधान की धारा 124 (देशद्रोह) और 120 बी (षडयंत्र) और छत्तीसगढ़ के जनसुरक्षा अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है.
उन्हें ग़ैरक़ानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी सज़ा सुनाई गई है. सारी सज़ाएँ साथ चलेंगीं.
बिनायक सेन को अदालत ने नारायण सान्याल का पत्र भूमिगत नक्सली नेताओं तक पहुँचाने का दोषी पाया जबकि पीयूष गुहा नक्सलियों को संगठित होने में सहायता देने का दोषी पाया.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने जिस जनसुरक्षा अधिनियम के तहत बिनायक सेन को गिरफ़्तार किया था उस क़ानून का वे तब से विरोध कर रहे थे जब सरकार ने इसे लागू करने का फ़ैसला किया था.
उनका तर्क था कि इस क़ानून का सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के ख़िलाफ़ दुरुपयोग किया जा सकता है.
बहुत से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस क़ानून को 'पोटा से भी ख़तरनाक' बताया था.

'फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेंगे'

बिनायक सेन की रिहाई के लिए प्रदर्शन
बिनायक सेन की रिहाई के लिए दुनिया भर से आवाज़ें उठी थीं
बिनायक सेन की पत्नी और सुपरिचित सामाजिक कार्यकर्ता इलीना सेन ने इस फ़ैसले का विरोध करते हुए कहा है कि यह दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला दिन है.
उन्होंने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर तो इस देश में गैंगस्टर खुले घूमते रहते हैं और दूसरी ओर 30 सालों तक ग़रीबों और आदिवासियों के बीच सेवाकार्य करने वाले को देशद्रोही का दोषी ठहराया जाता है."
इलीना सेन ने कहा है कि इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक बार फिर लंबा संघर्ष करना होगा लेकिन हम ये लड़ाई लड़ेंगे.
विनायक सेन के वकील ने कहा है कि इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की जाएगी.
जबकि पीयूसीएल की कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने भी कहा है कि इस फ़ैसले का अध्ययन करने के बाद उच्च न्यायालय में अपील की जाएगी.

ज़्यादतियों का विरोध

बिनायक सेन
बिनायक सेन ने आदिवासियों के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत काम किया
डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के पदाधिकारी रहे हैं.
इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे.
उन्होंने अक्सर सरकार के लिए असुविधाजनक सवाल खड़े किए और नक्सली आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रहे सलमा जुड़ुम की विसंगतियों पर भी गंभीर सवाल उठाए.
सलवा जुड़ुम के चलते आदिवासियों को हो रही कथित परेशानियों को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाक़े बस्तर में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ चल रहे सलवा जुड़ुम को सरकार स्वस्फ़ूर्त जनांदोलन कहती रही है जबकि इसके विरोधी इसे सरकारी सहायता से चल रहा कार्यक्रम कहते हैं. सलवा जुड़ुम आंदोलन की मानवाधिकार संगठनों ने निंदा की और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सवाल उठाए और आख़िर में छत्तीसगढ़ सरकार को इसे बंद करना पड़ा है.
पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन ने समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे.
इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया.


"यदि यही सब होता रहा तो इस देश के देसी अंग्रेजों की जमात इसी तरह के फैसले देती रहेगी, गरीब के हक़ की लडाई लड़ने वालों को जेल भेजती रहेगी .अब वक़्त आ गया है जब इन देसी अंग्रेजों की खैरियत लेनी होगी, अब शांति के नामपर ये देसी अंग्रेज सुधारों की तरफ देखने की इज़ाज़त नहीं देंगे.कमोबेश यही हालात पूरे देश में होते जा रहे हैं सर्वोच्च न्यायालय के बयान अपने ही उच्च न्यायालयों के बारे में क्या कह रहे हैं और यह मिडिया  उन्हें किस तरह से प्रचारित कर रहा है.
विनायक सेन को राजद्रोह में उम्रकैद
रायपुर।
Story Update : Saturday, December 25, 2010    2:32 AM
सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन, नक्सल विचारक नारायण सान्याल और कोलकाता के कारोबारी पीयूष गुहा को शुक्रवार को राजद्रोह का दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई। तीनों पर माओवादियों के साथ साठगांठ करने का आरोप था। अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बीपी वर्मा ने तीनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) और 120बी (षड्यंत्र) तथा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत दोषी ठहराया। 58 वर्षीय डॉक्टर और पीपुल्स यूनियन आफ सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष सेन पर आरोप था कि उन्होंने जेल में बंद सान्याल के संदेश वाहक के तौर पर काम किया और सान्याल के संदेश और पत्र भूमिगत माओवादियों तक पहुंचाए। सेन को 14 मई 2007 को बिलासपुर में गिरफ्तार किया गया था और पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के पहले वह दो साल तक जेल में रहे।

सान्याल को 2006 में गिरफ्ततार किया था
सान्याल (67) को आंध्र प्रदेश के खम्मम में जनवरी 2006 में गिरफ्तार किया गया था जबकि गुहा (35) को एक साल बाद मई में गिरफ्तार किया गया था। दोनों उस समय से जेल में हैं। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि वे नेटवर्क स्थापित करने में माओवादियों की मदद कर रहे थे। सेन के वकील महेंद्र दुबे ने कहा कि वे फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। तीनों आरोपियों को राजद्रोह में उम्रकैद की सजा के अलावा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत दो साल की सजा सुनाई गई और एक हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया। तीनों को गैरकानूनी गतिविधियां निवारण कानून के तहत भी दोषी ठहराया गया और उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई और एक एक हजार रुपये का जुर्माना किया गया। सान्याल को कानून की धारा 20 के तहत 10 साल की सजा सुनाई गई और दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। दुबे ने बताया कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। सेन की पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फैसले पर निराशा जताई है।

विनायक सेन को सजा पर जताई निराशा
सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के फैसले पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजिंदर सच्चर समेत कई जानेमाने लोगों ने निराशा जताई है। हालांकि कांग्रेस ने अदालत के फैसले की आलोचना को खारिज कर दिया है। शुक्रवार को जस्टिस सच्चर ने कहा कि पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) इस फैसले को चुनौती देगी। इसके अलावा गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम को भी चुनौती दी जाएगी, जिसके तहत सेन को दोषी ठहराया गया है। उन्होंने कहा कि यह कानून असंवैधानिक है। यह कहना गलत है कि सेन देश के हितों के खिलाफ काम कर रहे थे। सेन को सजा पर उनकी पत्नी एलिना और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी निराशा जाहिर की। एलिना ने कहा कि यह फैसला तर्कसंगत नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने भी फैसले को अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा कि सेन को राजद्रोह में सजा सुनाए जाने के खिलाफ हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

हालांकि दिल्ली में कांग्रेस ने कहा कि अदालत के फैसले की आलोचना करना बिलकुल गलत है, जबकि कानूनी प्रक्रिया अभी पूरी भी नहीं हुई है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पूरे दो साल चले मुकदमे के बाद यह फैसला आया है। भारत की न्यायिक प्रक्रिया में कोई पक्षपात नहीं होता है और दुनिया भर में हमारी न्यायिक व्यवस्था की सराहना होती है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह पहला मामला है जिसमें कोर्ट ने राजद्रोह और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत किसी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। विनायक सेन की गिरफ्तारी का देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम मानवाधिकार संगठनों ने विरोध किया था।

विनायक सेन समेत तीन को उम्रकैद

Dec 24, 02:49 pm
रायपुर। मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉक्टर बिनायक सेन को अदालत ने देशद्रोह मामले में दोषी ठहराते हुए शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उनके साथ नक्सल विचारक नारायण सान्याल और कोलकाता के कारोबारी पियूष गुहा को भी इस मामले में उम्र कैद दी गई है।
सेन के वकील ने कहा है कि वह निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। सेन की पत्नी एलिना और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फैसले को निराशाजनक बताया।
इन तीनों पर माओवादियों से संबंध रखने, देश के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप था। अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बी.पी. वर्मा ने तीनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए [राजद्रोह] और 120बी [षड्यंत्र] तथा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत दोषी ठहराया। इस संबंध में सान्याल और गुहा पिछले दो-ढाई साल से जेल में कैद हैं।
-सान्याल के संदेशवाहक हैं बिनायक सेन : 58 वर्षीय डॉक्टर और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष [पीयूसीएल] सेन पर आरोप था कि उन्होंने जेल में बंद सान्याल के संदेशवाहक के तौर पर काम किया और भूमिगत माओवादियों तक संदेश पहुंचाए।
सेन को 14 मई 2007 को बिलासपुर में गिरफ्तार किया गया था और पिछले साल मई में हाई कोर्ट से जमानत मिलने के पहले वह दो साल तक जेल में रहे। जबकि 67 वर्षीय सान्याल को आंध्र प्रदेश के खम्मम में जनवरी 2006 में और 35 वर्षीय गुहा को एक साल बाद मई में गिरफ्तार किया गया था। दोनों तब से जेल में हैं। उन पर आरोप है कि वे नेटवर्क स्थापित करने में माओवादियो की मदद कर रहे थे।
उम्र कैद के अलावा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत तीनों को दो साल की सजा और एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। साथ ही तीनों को गैरकानूनी गतिविधियां निवारण कानून के तहत भी दोषी करार देते हुए पांच साल और एक हजार रुपये जुर्माना लगाया गया। ये सारी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
सच्चर ने की फैसले की निंदा
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर ने छत्तीसगढ़ की एक अदालत द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉक्टर बिनायक सेन को देशद्रोह का दोषी ठहराए जाने पर हैरानी जताई है।
सच्चर ने यहां कहा कि मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन
सिविल लिबर्टीज [पीयूसीएल] इस फैसले के साथ ही गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम निरोधक कानून को भी चुनौती देगा। सेन को इस कानून के तहत ही दोषी करार दिया गया है। उन्होंने कहा, 'यह कहना हैरान करने वाला है कि डॉक्टर सेन देशहित के खिलाफ काम कर रहे थे। जिस गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून के तहत उन्हें दोषी ठहराया गया, वह असंवैधानिक है।'
पेशे से बाल रोग चिकित्सक 58 वर्षीय सेन पीयूसीएल के उपाध्यक्ष भी हैं।
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दैनिक भाष्कर 

छत्तीसगढ़ : बिनायक सेन राजद्रोही करार , मिली उम्रकैद


रायपुर.नक्सलियों की मदद करने के आरोप में पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. बिनायक सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। उनके साथ नारायण सान्याल व पीजूष गुहा को भी आजीवन कारावास झेलनी होगी। ढाई साल चले लंबे मुकदमे के बाद तीनों पर राजद्रोह का आरोप साबित हो गया।

द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश बीपी वर्मा ने खचाखच भरे कोर्ट रूम में ९२ पन्नों के जजमेंट में तीनों को उम्रकैद की सजा सुनाई।

तीनों ही आरोपियों पर नक्सलियों के साथ ही ऐसे संगठनों की मदद करने का आरोप है, जिन्हें राज्य सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ है। सरकार के खिलाफ आचरण व षड्यंत्र करने के आरोप में ही तीनों के खिलाफ फैसला सुनाया गया।

सरकारी वकील टीसी पंड्या ने बताया कि डा. सेन सहित सान्याल व गुहा पर राजद्रोह के चार्ज लगे थे। आईपीसी की धारा 124 ए और 120 बी के तहत तीनों को उम्रकैद व 5 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई।

इसके अलावा अन्य धाराओं में भी उन्हें सजा दी गई। गौरतलब है कि राजद्रोह का मुकदमा 30 अप्रैल 2008 को शुरू हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर के आखिरी हफ्ते में फैसला सुनाने के निर्देश दिए थे।

पांच मामलों में सजा 

तीनों ही आरोपियों को पांच धाराओं में सजा मिली। आईपीसी की धारा 124 ए व 120 बी के तहत राजद्रोह में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। साथ ही 5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया।

छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 8 - 1 में दो साल की सजा व एक हजार रुपए जुर्माना, 8 - 2 में एक साल की सजा व एक हजार रुपए जुर्माना, 8 - 3 में तीन साल की सजा व एक हजार रुपए जुर्माना, 8 - 5 में 5 साल की सजा व एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया।

विधि विरुद्ध निवारण अधिनियम की धारा 39 - 2 के तहत 5 साल की सजा व एक हजार रुपए जुर्माना लगाया गया। नारायण सान्याल पर विधि विरूद्ध निवारण अधिनियम की धारा 20 के तहत 10 साल की सजा व दो हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया।

सुनवाई एक नजर में

> अभियोजन पक्ष की ओर से 153 गवाह बनाए गए।

> इनमें से 97 के बयान दर्ज किए गए, बाकी 56 गवाह या तो बुलाए नहीं गए या फिर उन्हें छोड़ दिया गया।

> अभियोजन पक्ष की ओर से 417 और बचाव पक्ष की ओर से 56 दस्तावेज पेश किए गए।

> 25 दौर का ट्रायल चला। इनमें अभियोजन के 97 गवाहों में से 6 गवाह पक्ष द्रोही करार दिए गए।

सिर्फ डा. सेन को मिली थी जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने 25 मई 2009 को डा. बिनायक सेन को जमानत पर रिहा कर दिया था। तब से लेकर अब तक लगभग डेढ़ साल से वे हर पेशी में कोर्ट में उपस्थित होते रहे। सजा मिलते ही उन्हें सान्याल व गुहा के साथ जेल दाखिल कर दिया गया।

हाईकोर्ट में अपील करेंगे 

डा. सेन की पत्नी इलिना सेन ने बताया कि फैसले से वे काफी दुखी है। उन्हें अब भी देश के कानून पर भरोसा है। अब वे हाईकोर्ट में अपील करेंगी।

सेन के खिलाफ सबूत

> जेल में बंद नारायण सान्याल द्वारा डॉ बिनायक सेन को लिखा गया पोस्टकार्ड। इस पर जेल अथारिटी की मुहर लगी हुई थी। इसमें स्वास्थ्य और मुकदमे के बारे में लिखा हुआ था।

> जेल में बंद मदन लाल बंजारा(सीपीआई माओवादी के सदस्य) द्वारा बिनायक सेन को लिखा गया पत्र।

> एक बुकलेट, जिसमें सीपीआई (पिपुल्स वार) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के एकता के बारे में लिखा हुआ था।

> अंग्रेजी में लिखे हुए लेख की फोटो कॉपी। इसका शीर्षक, नक्सल मूवमेंट ट्राइबल्स एण्ड वूमेंस मूवमेंट के बारे में लिख हुआ था।

> चार पन्ने के पत्र की फोटो कॉपी। एंटी-यूएस इंपिरियलिस्ट फ्रंट गठित करने से संबंधित बातें थी उसमें।

> आठ पन्ने का लेख, जिसमें क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा और वैश्वीकरण आवाम भारतीय क्षेत्र के बारे में लिखा हुआ था।

बदले तीन जज

राजद्रोह के मुकदमे में तीन जजों ने अलग-अलग सुनवाई की। सबसे पहले अपर सत्र न्यायाधीश बीएस सलूजा की कोर्ट में मुकदमा चला। इसके बाद एडीजे गणपत राव की कोर्ट में मुकदमा चला। अंत में फैसला एडीजे बीपी वर्मा ने दिया।

सेन समर्थकों में गुस्सा 

फैसले से सेन समर्थक नाराज हैं। कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने फैसले को अतार्किक बताया। डॉ. सेन के सुप्रीम कोर्ट में वकील रहे कॉलिन गोंजालविज ने कहा कि न तो कोई हथियार बरामद हुआ, न हिंसा का कोई सबूत मिला।

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रमुख राजेंद्र सच्चर और सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने सेन को देशद्रोही करार देने वाले फैसले से असहमति जाहिर की है।

असित कुमार सेनगुप्ता को आठ साल की सजा

नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपों में घिरे असित कुमार सेनगुप्ता को नवम अपर सत्र न्यायाधीश ओपी गुप्ता ने शुक्रवार को सजा सुनाई। असित को विधि विरुद्ध क्रियाकलापों से जुड़े होने की वजह से 8 साल की सजा सुनाई गई है।

असित को 22 जनवरी 2008 को रायपुर, गबरापारा में एक किराए के मकान से गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप है कि वह मकान में माओवादियों के साथ मिलकर भारत सरकार के विरुद्ध षडयंत्र रच रहा था।

इसके अलावा कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का सदस्य होते हुए नक्सली साहित्य छपवाकर उन्हें बेचा करता था और नौजवानों को संगठन में शामिल होने के लिए प्रेरित करता था।

वह उग्रवादी संगठन के क्रियाकलापों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उसका सदस्य रहा और संगठन के लिए काम करता रहा। उसके मकान में आए दिन संदिग्ध लोगों का आना-जाना लगा रहता था।

न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद असित को 124 ए आईपीसी में तीन साल कठोर कारावास, 18, 39(2) विधि विरुद्ध क्रियाकलाप के तहत आठ साल कठोर कारावास और छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम की धारा 8 (1)(3)(5) में तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। असित पर प्रत्येक धारा में पॉंच-पॉंच सौ रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है जिसे नहीं पटाने की स्थिति में सजा बढ़ाई जाएगी।

कब,कहां और कैसे हुई गिरफ्तारी

असित की नक्सलियों से संबंध होने की सूचनाएं लगातार पुलिस को मिल रही थीं। इस पर पुलिस ने 22 जनवरी 2008 को असित के किराए के मकान में देर रात छापा मारा था। मुल्जिम के मकान से कई नक्सली साहित्य बरामद हुए थे।

इस पर पुलिस ने उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया था। इसके अलावा विवेचना के दौरान भी पुलिस ने इसके पास से कई नक्सली साहित्य और पत्र-पत्रिकाएं बरामद की थी। आरोपी के पास से बरामद साहित्यों में सरकार के खिलाफ नक्सली गतिविधियों को बढ़ावा देने का उल्लेख था।


कोर्ट में तनाव का था अंदेशा!

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन को राजद्रोह के तहत दोषी करार दिए जाने के फैसले के बाद जबर्दस्त तनाव की स्थिति बन गई। कोर्ट में मौजूद पीयूसीएल (पीयूपल्स यूनियन फार सिविल लिबरटिस) समेत तमाम संगठनों के कार्यकर्ता बिफर उठे। उन्होंने फैसले का कड़ा विरोध किया।

विनायक के परिवार वालों ने फैसले का कड़ा विरोध करते हुए आक्रामक तेवर भी दिखाए। पुलिस को इसका पहले से अंदाजा था। एसआईबी (स्टेट इंटिलिजेंस ब्यूरो) ने पहले ही फोर्स को एलर्ट कर दिया था कि फैसले के विरोध में किसी तरह की अव्यवस्था निर्मित हो सकती है।

लिहाजा पुलिस ने सुबह से ही सुरक्षा की चाकचौबंध व्यवस्था कर रखी थी। आसपास तमाम जवानों को तैनात किया गया था जो सादी वर्दी में तमाम गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे।

पुलिस की टीम ने फैसले को लेकर एक दिन पहले से कोर्ट परिसर के चप्पे-चप्पे की जांच कर ली थी। किसी भी बाहरी तत्व को भीतर घुसने नहीं दिया गया। हर एक व्यक्ति पर नजर रखी गई और आने-जाने वालों की तलाशी भी ली गई।

कोर्ट परिसर में किसी तरह की अव्यवस्था निर्मित न होने पाए, इसके लिए भी फोर्स जगह-जगह तैनात रही।

पुलिस ने 200 से ज्यादा जवानों की कोर्ट परिसर में डच्यूटी लगाई थी। 100 से ज्यादा गनमेन कोर्ट से लेकर जेल परिसर तक तैनात रखे गए थे। विनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष को जिस डग्गे में ले जाया गया, उसे भी कड़ी सुरक्षा घेरे में ले लिया गया था। पुलिस के जवान पूरे इलाके के घेरे हुए थे।

इंटिलिजेंस सूत्रों के मुताबिक नक्सली वारदात या किसी प्रकार की छिटपुट गतिविधियां होंगी, इसका पुलिस को शक था। अफसरों को तमाम नागरिक संगठनों से जुड़े लोगों पर भी नजर रखने की हिदायत दी गई थी।

विनायक से मिलने वालों पर कड़ी नजर

विनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा से मिलने आने वालों पर कड़ी नजर रखी गई। उनसे मिलने पहुंचे तमाम संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी चौकस निगाहें रखी गई थी।

परिवार वाले फैसले के खिलाफ किस तरह का कदम उठाएंगे और उनके आगे की क्या योजनाएं होंगी, इसे लेकर भी पुलिस ने अपने आदमी चारों तरफ फैला रखे थे। खासकर परिवार के सदस्यों और उनके रिश्तेदारों व मित्रों की हरकतों को वाच किया जा रहा था। पुलिस की अलग-अलग टीम को संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं पर निगाह रखने के टॉस्क सौंपे गए हैं।

विनायक सेन- कब क्या हुआ>

14 मई 2007 :

बिनायक सेन को बिलासपुर से अनलाफुल एक्टीविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट और छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट(17) के तहत गिरफ्तार किया गया। इनपर जेल में बंद माओवादी नेता नारायण सान्याल और व्यापारी पियूश गुहा से संपर्क होने के आरोप।

> 16 मई 2007 :

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने छत्तीसगढ़ सरकास से बिनायक सेन को तत्काल छोड़ने को कहा साथ में चेतावनी दी कि अगर नहीं रिहा किया तो मानवाधिकार हनन का आरोप लगेगा।

> 20 जून 2007 :

पिपुलस यूनियन फार सिविल लिबर्टी का एक डेलिगेशन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से मिलकर बिनायक सेन के रिहाई की अपील की।

> 31 अगस्त 2007:

सेन की रिहाई की याचिका को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया। वरिष्ठ काउंसिल सोली सोराबजी का दावा था कि कि बिनायक सेन को 14 मई से गैरकानूनी ढंग से और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर नक्सलियों का सहयोग करने के आरोप में फंसाया गया है।

> 29 अप्रैल 2008 :

न्यूयार्क की ह्यूमन राइट्स वाच ने रायपुर में बिनायक सेन के मुकदमें की सुनवाई के एक दिन पहले स्टेटमेंट जारी किया और मुकदमें की पारदर्शी सुनवाई पर सवाल उठाया।

> 15 मई 2007:

रायपुर की कोर्ट ने बिनायक सेन की जमानत को खारिज करते हुए 18 मई तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

> मई 26 से जून 4, 2007:

कोर्ट के आदेश से निराश सेन के समर्थकों ने अलग-अलग स्थानों में रैलियां हुईं।

> 23 जुलाई2007: 

जमानत के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल।

> 3 अगस्त 2007:

छत्तीसगढ़ पुलिस ने बिनायक सेन के खिलाफ आरोप पत्र दखिल किया।

> मई 4, 2008 :

सेन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया।

> 11 अगस्त 2008 :

हाईकोर्ट में दूसरी जमानत याचिका दाखिल हुई।

> 21 अक्टूबर 2008 : 

सेन ने दक्षिण बस्तर में शांति की अपील की।

> 25 मई 2009 : 

खराब स्वास्थ की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने बिनायक सेन की जमानत मंजूर किया।

> 24 दिसंबर 2010 : 

रायपुर के सेशन कोर्ट ने बिनायक सेन को राजद्रोह और माओवादियों को मदद करने का दोषी पाया गया।बिनायक अएवं अन्य दो अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

कौन है विनायक सेन

58 वर्षीय डा. बिनायक सेन शिशु रोग विशेषज्ञ है, जिसका जन स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में राज्य के आदिवासियों को सेवाएं प्रदान करने का 25 सालों का रिकार्ड है। सेन ने वेल्यूर के सीएमसी (क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज) से स्नातक की डिग्री हासिल की थी।

2004 में उसे पॉल हैरिशन नामक अवार्ड से नवाजा गया था। लंबे समय तक बिनायक ने चिकित्सा के क्षेत्र में सेवाएं देने के साथ-साथ दूसरे कामों में भी समय दिया। राज्य मितानिन कार्यक्रम के तहत उसे राज्य सरकार केसाथ काम करने का मौका मिला।

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय में वो स्वास्थ्य विभाग के अतंर्गत राज्य सलाहकार कमेटी के सदस्य के पद पर नियुक्त रहे।

धीरे-धीरे सेन ने नागरिक आजादी और मानव अधिकार के कार्यो में रुचि बढ़ाई और वह राज्य के ऐसे सबसे पहले व्यक्तियों में गिने जाने लगे, जिन्होंने धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ प्रदेश में भूखमरी और कुपोषण के खिलाफ एक खोजी रिपोर्ट तैयार की।

उसी समय उन्हें पीयूसीएल (पीयूपल्स यूनियन फॉर सिविल लीबरटिस) का राज्य अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुना गया। उन्होंने सलवा जुडूम के खिलाफ लोगों का सबसे पहले ध्यान आकर्षित किया था। इसके बाद से ही उन पर नक्सलियों को समर्थन देने और उनके उद्देश्य के तहत काम करने का आरोप लगा।

बाद में पुलिस ने इसकी गंभीरता से जांच की, तो उनके खिलाफ राजद्रोह के तहत किए जाने वाले तमाम आरोपों में सबूत भी मिल गए। उनकी गिरफ्तारी हुई और फिर पिछले दो सालों से इस मामले में मुकदमा चलता रहा।

चूंकि वे राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के उपाध्यक्ष रहे, इसलिए उनके खिलाफ देशद्रोह के तहत युद्ध की योजना बनाने के लिए भी धारा लगाई गई। बाद में इसके ठोस सबूत नहीं मिल सके।
हिंदुस्तान दैनिक -
बिनायक सेन देशद्रोही साबित, आजीवन कारावास की सजा
रायपुर, एजेंसी
First Published:24-12-10 03:07 PM
Last Updated:24-12-10 05:32 PM

रायपुर की स्थानीय अदालत ने नक्सलियों का सहयोग करने के मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन, नक्सली विचारक नारायण सान्याल और कोलकाता के व्यापारी पीयूष गुहा को आजीवन कारावास की सजा सुनायी।
इससे पहले अदालत ने पीयूसीएल की राज्य इकाई के महासचिव बिनायक सेन को देशद्रोही करार दिया है। उनके वकील ने कहा है कि वह इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे।
रायपुर सेशन कोर्ट ने बिनायक सेन को देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, लोगों को भड़काने, प्रतिबंधित माओवादी संगठन के लिए काम के आरोप में दोषी करार दिया है।
बिनायक सेन के वकील ने कहा कि वह सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। पीयूसीएल की महासचिव कविता कृष्णमूर्ति ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह फैसला बिल्कुल गलत व अस्वीकार्य है, तथा वह इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगी।
बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून-2005 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया है। उन्हें 14 मई 2007 को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उनपर नक्सलियों के लिए काम करने का आरोप पुलिस ने लगाया था।
दिसंबर 2007 ने सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. सेन की जमानत को निरस्त कर दिया। स्वास्थ्यगत कारणों से मई 2009 में डॉ. सेन को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी 2011 तक इस मामले का फैसला देने की तारीख निश्चित किया है।





बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ये पिछड़ों की बात नहीं करते 'ये गुर्जर हैं' ?

(डॉ.लाल रत्नाकर)
समता या समानता के आधार पर आरक्षण की लडाई न लड़ना कहीं गुर्जरों पर भारी न पड़ जाय! इन्हें समझ आना चहिये ! पर लगता है ये समझेंगे नहीं  !
(दैनिक भाष्कर से साभार)

कोर्ट में आरक्षण की मांग खारिज होने से और भड़के गुर्जर, दूध सप्‍लाई रोकेंगे

गिरिराज अग्रवाल   |   Last Updated 19:17(22/12/10) 

पीलूपुरा/जयपुर. सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर पटरियों पर धरना दे रहे गुर्जरों को राजस्‍थान हाईकोर्ट ने करारा झटका दिया है। अदालत ने उनकी मांग नामंजूर कर दी है। गुर्जर अभी भी आंदोलन जारी रखने पर अड़े हैं। आरक्षण संघर्ष समिति ने गुर्जर समाज से दिल्ली में दूध की सप्लाई तुरंत रोकने का आह्वान किया है। बुधवार को पीलूपुरा और रसेरी गांव के समीप दिल्ली-मुंबई ट्रैक पर जमे गुर्जरों को जाट समुदाय ने भी अपना समर्थन दे दिया। केंद्र ने गुर्जर आंदोलन के और तेज होने के बाद पैरा मिलिट्री फोर्स के 1500 जवान राजस्थान भेजे हैं। 


राजस्‍थान हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश अरूण मिश्र और न्यायाधीश महेश भगवती की खण्डपीठ ने कहा कि गुर्जरों को विशेष आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्‍य सरकार यह प्रमाणित नहीं कर पाई है कि गुर्जरों को किस आधार पर पांच फीसदी आरक्षण दिया जाए। अदालत ने गुर्जरों को दिया गया 1 फीसदी आरक्षण जारी रखने के आदेश दिए।


अदालत ने सरकार को एक साल के भीतर गुर्जर सहित तमाम जातियों के आंकड़े जमा करने और गुर्जरों की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर रिपोर्ट सौंपने को भी कहा। पीठ ने कहा कि तमिलनाडु का 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण का फार्मूला यहां लागू नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता जी शर्मा ने पहले अदालत में याचिका दाखिल कर आरक्षण को 50 फीसदी से ज्यादा होने पर आपत्ति की थी। इसी याचिका पर हाईकोर्ट ने आज फैसला सुनाया।


दिल्ली में दूध सप्लाई रोकने का आह्वान


राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष किरोड़ी सिंह बैसला ने हाई कोर्ट के निर्णय के बाद गुर्जर समाज को कहा है कि वे दिल्ली में दूध की सप्लाई तुरंत रोक दें। उन्होंने राजस्थान में राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे यातायात को भी जाम करने का एलान किया है। फैसला आने के बाद धरना स्थल से फोन पर बात करते हुए कर्नल बैंसला ने कहा कि सरकार ने गुर्जर समाज की पैरवी ठीक तरह से अदालत में नहीं की, जिस कारण समाज के साथ न्याय नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि गुर्जर समाज आंदोलन को और तेज करेगा।  


बैसला ने कहा कि वह राजस्थान सरकार की भेदभाव पूर्ण नीतियों के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखेंगे। उनका कहना है कि सरकार कुछ भी करे, उन्हें तो 5 प्रतिशत आरक्षण चाहिए। उन्होंने गुर्जरों की मांगों के संबंध में सरकार की ओर से किए गए प्रयासों की जानकारी देने के उद्देश्य से अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन को भी छलावा बताया। उन्‍होंने कहा कि सरकार को बातचीत करनी है तो ट्रैक पर आएं। गृहमंत्री शांति धारीवाल का कहना है कि हम वार्ता को तैयार हैं, पर यह टेबल पर होगी।


पीलूपुरा में रेलवे ट्रैक पर गुर्जरों की संख्या बढ़ती जा रही है। पीलूपुरा में जिस रेलवे ट्रैक पर आंदोलनकारी गुर्जर बैठे हैं, वहां कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। इसके बावजूद गुर्जर अलाव जला कर ट्रैक पर जमे हुए हैं।


जाटों ने दिया समर्थन


राष्ट्रीय जाट आरक्षण समिति ने भी गुर्जरों के आंदोलन को समर्थन दिया है। मंगलवार को पीलूपुरा में समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक की ओर से भेजे गए प्रतिनिधिमंडल ने इसकी घोषणा की। उधर, इस समिति के हरियाणा में प्रदेशाध्यक्ष हवासिंह सागवा ने भी आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाने की बात कही है।


छौंकड़ा पुलिस चौकी पर कब्जा जमाया


गुर्जरों ने मंगलवार को बयाना की छौंकड़ा पुलिस चौकी पर कब्जा कर लिया। हालांकि पुलिस का कहना है कि यह चौकी सोमवार को ही खाली कर दी गई थी। गुर्जर चौकी के कमरों और छत पर बैठे हैं।




8 किमी ट्रैक पर सिर्फ गुर्जर : छोटी-छोटी टोलियों में बंटे गुर्जर

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

मुसलमान मुलायम और आजम के जरखरीद गुलाम नहीं हैं


(जनतंत्र  से  साभार)

आजम खान की समाजवादी पार्टी में बहुप्रतीक्षित वापसी बहुत ही भावुक अंदाज में हुई। इतनी भावुकता यश चोपड़ा और करन जौहर की फिल्मों में ही देखने को मिलती है। भावुकता में ही दोनों के आंसू छलक पड़े और मुलायम सिंह यादव ने आजम खान को ’किस’ भी किया। फिल्मों की तरह बिछड़ने-मिलने की इस कहानी का आजम-मुलायम की नजर में हैप्पी एंड तो हो सकता है। लेकिन इस बात को मुसलमान तय करेंगे कि हैप्पी एंड हुआ है या पिक्चर अभी बाकी है।
आजम खान की वापसी को कुछ इस तरह लिया जा रहा है कि जैसे अब उत्तर प्रदेश का सारा मुसलमान सपा के साथ हो जाएगा। समाजवादी पार्टी के नेता यह न भूलें कि आजम खान मुसलमानों के ठेकेदार नहीं हैं। न ही मुसलमान आजम खान सरीखे नेताओं के जरखरीद गुलाम हैं। आजम खान ने सत्ता में रहते हुए मुसलमानों पर ऐसा कुछ एहसान नहीं किया है, जिसको चुकाने के लिए मुसलमान मरे जा रहे हों।
आजम खान तो सत्ता में रहते मलियाना कांड की जांच आयोग की रिपोर्ट तक सार्वजनिक नहीं करा पाए थे। आजम खान ने मलियाना कांड को हमेशा ही अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया आज भी करते हैं। सच तो यह है कि आजम खान ने नहीं मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी पर एहसान किया। उस एहसान के बदले में मुसलमानों को कुछ नहीं मिला।
मुलायम सिंह यादव ने सत्ता की खातिर या यूं कहें कि अपने ’परिवार’ की खातिर इतनी कलाबाजियां खाईं हैं कि उनकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग गया है। समाजवादी पार्टी एक तरह से मुलायम सिंह यादव के परिवार की पार्टी है। जब उनके परिवार के लगभग सभी सदस्य अपना ’कॅरियर’ राजनीति में ही बनाएंगे तो यही कहा जाएगा कि सपा मुलायम परिवार के लिए ’खाने-कमाने’ का जरिया मात्र है। हद तब हो गयी, जब फिरोजाबाद उपचुनाव में मुलायम ने अपनी बहु डिम्पल को उतार दिया। उनकी इस हरकत से जनता में संदेश गया था कि मुलायम सिंह यादव ’परिवार मोह’ मे पार्टी का बेड़ा गर्क करने पर तुल गए हैं। हम शुरू से ही कहते आएं हैं कि मुलायम सिंह यादव न तो कभी मुसलमानों के हितैषी थे और न कभी हो सकते हैं।
बाबरी मस्जिद-राममंदिर विवाद की देन समाजवादी पार्टी भाजपा की कार्बन कॉपी है। उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा में यह गठजोड़ था कि भाजपा हिन्दुओं की राजनीति करेगी तो सपा मुसलमानों की। दिन में दोनों राजनैतिक मंच से एक-दूसरे को कोसते जरूर थे, लेकिन शाम को मुलायम और कल्याण सिंह अमीनाबाद में लस्सी साथ ही बैठकर पीते थे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अक्टूबर 1990 में उन्होंने कानून का सहारा लेकर बाबरी मस्जिद को शहीद होने से बचा लिया था। मुसलमानों ने मुलायम के उस एहसान का बदला उन्हें भरपूर समर्थन देकर अदा किया था। लेकिन यह शर्मनाक रहा कि मुसलमानों को मुलायम सिंह यादव ने केवल एक वोट बैंक समझकर उनकी अनदेखी की। वोट के बदले आजम खान सरीखे एक दो मुसलमानों को मंत्री बनाकर यह समझ लिया कि मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी मिल गयी है। सरकारी नौकरियों में केवल अपनी जाति के लोगों को तरजीह दी। मुलायम सिंह यादव की सरकार एक तरह से यादवों की सरकार रही। मुसलमान केवल वोट देकर सरकार बनवाने तक ही सीमित रहे।
मुलायम सिहं यादव ने मुसलमानों को समाजवादी पार्टी का ’अंध भक्त’ समझ कर बहुत बड़ी गलती की थी। इसलिए उन्होंने वे सब काम किए जो, मुसलमानों को पसन्द नहीं थे। सपा से उस साक्षी महाराज को राज्यसभा में भेजा, जिसने गर्व से कहा था कि बाबरी मस्जिद पर सबसे पहला फावड़ा उसने चलाया था। मुसलमानों ने इसे बर्दाश्त किया। फिर कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह को मंत्री बनाया। मुसलमानों ने इसे भी सहा। सच यह भी है कि मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को लोध वोटों के लालच में अपने साथ लिया था। लेकिन लोध वोट तो मिला नहीं, मुस्लिम भी छिटक गए। मुसलमान इस बात को नहीं पचा पाए कि जिस कल्याण सिंह को मुसलमान अपना दुश्मन मानते रहे हैं, उस आदमी को कैसे समाजवादी पार्टी में बर्दाश्त किया जा सकता है। हालांकि मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को सपा से बाहर करके और मुसलमानों से अपनी गलती की माफी मांग ली लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मुसलमानों के सामने मुलायम सिंह यादव का चेहरा बेनकाब हो गया था।
अब आजम खान की बात करते हैं। कल्याण सिंह की वापसी पर ’नाराजगी’ जताने वाले आजम खान तब सपा में ही थे, जब साक्षी महाराज को राज्यसभा में भेजा गया था। आजम तब क्यों नाराज नहीं हुए थे। कल्याण सिंह का पुत्र राजबीर सिंह सपा सरकार में मंत्री बना, तब भी आजम सपा में ही थे। तब भी आजम क्यों चुप रहे। हकीकत यह है कि आजम खान को कल्याण सिंह को सपा में लिए जाने पर भी ऐतराज नहीं था। उनकी नाराजगी तो रामपुर से जया प्रदा को टिकट देने पर थी। आजम नहीं चाहते थे कि रामपुर सीट से जया प्रदा को टिकट दिया जाए। लेकिन तब मुलायम सिंह यादव इस भ्रम थे कि मुस्लिम वोटों की पूर्ति कल्याण सिंह की वजह से लोधों वोटों से पूरी हो जाएगी इसलिए आजम की नहीं सुनी गई। यकीन करिए रामपुर सीट मामले में मुलायम सिंह यादव आजम खान की मान लेते तो आजम को कल्याण सिंह भी कबूल थे। कल्याण सिंह को तो उन्होंने केवल ढाल बनाया था।
आजम खान की वापसी से सपा दोबारा में जान पड़ जाएगी यह केवल खामख्याली के अलावा कुछ नहीं है। बिहार ने संदेश दे दिया है कि जाति और धर्म की राजनीति करने वाले नेता अपने दिन गिनने शुरू कर दें। मंडल और कमंडल बीते जमाने की चीज हो चुकी हैं। आने वाले वक्त में विकास ही मुददा होगा। मुसलमान भी अब बाबरी मस्जिद का शोकगीत गाने के बजाय अपना और अपनी आने वाली नस्लों का उज्जवल भविष्य चाहते हैं। इस बात को आजम खान भी समझ लें और मुलायम सिंह भी, अब किसी के पार्टी में आने या जाने से मुसलमान अपना एजेंडा तय नहीं करेंगे। जो राजनैतिक दल आज तक भाजपा का डर दिखाकर मुसलमानों का वोट लेते आए हैं, वे सभी इस बात को भी समझ लें कि मुसलमानों के वोट चाहिए तो मुसलमानों को भी कुछ देना पड़ेगा।

सलीम अख्तर सिद्दीकी

रविवार, 12 दिसंबर 2010

आज कल उत्तर प्रदेश में दलित और द्विज सामराज्य है |

(जागरण से साभार)

यूपी के अफसरो पर उठीं निष्पक्षता पर अंगुली

Dec 13, 01:06 am
लखनऊ [नदीम]। एक डीएम को हटाने का आदेश अगर हाईकोर्ट को इस वजह से देना पड़ा कि वह सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिए विपक्ष के जिला पंचायत सदस्यों को धमका रहे हैं, निर्वाचन आयोग को एक डीआईजी को चुनावी प्रक्रिया से इस वजह से अलग करना पड़ा कि उनको लेकर यह शिकायत प्राप्त हुई कि वह उम्मीदवार विशेष के 'एजेंट' के रूप में काम कर रहे हैं और एक जिले में उप्र पुलिस को हटाकर केंद्रीय बल की निगरानी में चुनाव कराना पड़ा, तो उप्र के अफसरों की 'भूमिका' पर ज्यादा कुछ कहने को बचा नहीं रह जाता।
उप्र की मुख्य सचिव रह चुकी नीरा यादव के जेल जाने के बाद जब राजनीतिकों और अफसरों के गठजोड़ पर बहस शुरू हुई थी, तो ज्यादातर लोगों की राय थी कि यह घटना कम से कम अफसरों के लिए 'आई ओपनर' [आंख खोलने वाली] साबित होगी, लेकिन पिछले तीन दिनों में हुए ताबड़-तोड़ फैसले बताते हैं कि उप्र के अफसर सबक लेने और सुधरने को तैयार नहीं है। उन्हें 'पार्टी' बनने में ज्यादा मजा आता है और फायदा दिखता है। राजनीतिकों को खुश करने में उन्हें किसी भी सीमा तक जाने में कोई गुरेज नहीं रहता। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद हाईकोर्ट को मथुरा के डीएम को तुरंत हटाने का आदेश न देना पड़ता।
डीएम के ऊपर तो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन मथुरा के डीएम पर तो आरोप यह है कि वह खुद सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को जिताने की जुगत में लग गए। डीएम का दबाव कुछ इतना ज्यादा बढ़ गया कि कुछ जिला पंचायत सदस्यों को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी।
मथुरा के डीएम का उदाहरण अकेला नहीं है। देवी पाटन परिक्षेत्र के डीआईजी को चुनावी प्रक्रिया से विरत रहने का आदेश निर्वाचन आयोग को करना पड़ा। यहां के डीआईजी पर भी यही आरोप है कि उनकी भूमिका निष्पक्ष नहीं थी। गोंडा जिले में एक उम्मीदवार विशेष के पक्ष में मतदान के लिए विपक्षी दलों से जुड़े जिला पंचायत सदस्यों को डरा-धमका रहे थे। डीआईजी को लेकर मिली शिकायत के बाद निर्वाचन आयोग ने इसकी जांच कराई। डीआईजी पर लगे इल्जाम प्रथम दृष्टया सही पाए गए। आयोग ने उन्हें तुरंत चुनावी प्रक्रिया से अलग करने का आदेश दिया। बाराबंकी जिले में सत्तारूढ़ दल और प्रशासनिक मशीनरी के गठजोड़ के चलते स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव होने की सम्भावना पर सवालिया निशान लगा तो हाईकोर्ट को यह आदेश देना पड़ा कि इस जिले के चुनाव की प्रक्रिया से स्थानीय पुलिस को तुरंत हटाया जाए और केंद्रीय बल की निगरानी में चुनाव कराया जाए।
आईएएस एसोसिएशन और आईपीएस एसोसिएशन पूरे घटनाक्रम पर खामोशी अख्तियार किए हैं। हालांकि 'आफ द रिकार्ड' कुछ पदाधिकारियों की राय है, अच्छे और बुरे लोग सभी जगह हैं, इसलिए कुछ लोगों के कारण पूरी सेवा के अधिकारियों को आरोपित नहीं किया जा सकता, लेकिन इस सवाल का जवाब उनमें से किसी के पास नहीं कि शीर्ष सेवाओं के अंग होने के अलग ही मायने होते हैं। किसी एक अधिकारी के व्यग्तिगत आचरण से पूरी सरकारी मशीनरी से विश्वास हटता है और इसका जिम्मेदार कौन है?

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

पिछड़ी जातियों के दुखद पहलू !

डॉ.लाल रत्नाकर
जहाँ तक भरोसे का सवाल है, वह पिछड़ी जातियों के भीतर बहुत मजबूती से भरा है, परन्तु उनकी समझ का सवाल आज भी बौना है, पिछड़ी जातियों कि राजनितिक चेतना के आयाम विविधता संजोये हुए है इनमे बौद्धिक समझ और धोखे में बने रहने कि स्थिति बहुत भयावह है, इनके विकास कि दशा और गति जीतनी भी तेज हो जाय पर ये भ्रष्ट जातियों को रोकने कि वजाय उनके अस्त्र के रूप में सामने आते है, यही दुर्भाग्य है कि सदियों कि लडाई को ये चंद लाभ और लोलुपता के कारण उन्ही को मज़बूत करने में लगा देते है |
दूसरी ओर पिछले दिनों महिला आरक्षण को लेकर एक आन्दोलन खड़ा हुआ जिसमें पिछड़ी जातियों कि महिलाओं के अलग से आरक्षण कि मांग उठी जिसे देश के संसद में इन्ही मुद्दों को दबाने के लिए ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया है. आज हमारे सामने जातीय जनगणना का सवाल है जिसके लिए संसद ने कितने विरोध देखे पर यहाँ भी वही हुआ इसे भी उसी तरह दबाने का पूरा यत्न कर दिया गया है.

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

ये है भारतीय व्यवस्था के न दिखाई देने वाले वो लोग

डॉ.लाल रत्नाकर
(जिन्हें हाई प्रोफाइल कहते है इस प्रकार के लोग अलग जगहों से इकट्ठे किये गए है यह लेख तहलका से लिया गया है)

राडिया की रामकहानी

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लॉबीइंग की दुनिया में बड़ी खिलाड़ी और कई रहस्यों के आवरण में लिपटी नीरा राडिया के सफरनामे पर शांतनु गुहा रे की रिपोर्ट
अरबों रु के संचार घोटाले से घिरी लॉबीइस्ट नीरा राडिया ने पिछले दिनों अपने जन्मदिन पर दक्षिण दिल्ली में एक मंदिर का उद्घाटन किया. इस कृष्ण मंदिर को बनवाने के लिए दान भी उन्होंने ही दिया था. इस मौके पर मौजूद रहे लोग बताते हैं कि राडिया ने मंदिर में काफी देर तक पूजा-अर्चना की. इन दिनों उनके नाम पर जितना बड़ा बवाल मचा हुआ है उसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में अब तक के सबसे बड़े इस घोटाले की छाया से बाहर निकलने के लिए उन्होंने ईश्वर से मदद की प्रार्थना की होगी. मंदिर जाने से पहले दक्षिण दिल्ली की सीमा पर बने उनके फार्महाउस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग और सीबीआई के नोटिस पहुंच चुके थे. यह वही फार्महाउस है जो जितना वहां होने वाले धार्मिक भोजों के लिए जाना जाता है उतना ही देर रात तक चलने वाली पार्टियों के लिए भी. दोनों ही आयोजनों में दिल्ली के रसूखदार लोग शामिल होते हैं.
अब यह तो वक्त ही बताएगा कि यह प्रार्थना सत्ता के गलियारों में मौजूद इस अकेली महिला लॉबीइस्ट की कोई मदद कर पाएगी या नहीं. अकसर साड़ी या बिजनेस सूट में नजर आने वाली राडिया के बारे में कहा जाता है कि इंसानी सोच और तकनीकी शब्दावली पर उनकी पकड़ इतनी कुशल है कि अमीर और ताकतवर लोगों की नब्ज टटोलने में उन्हें ज्यादा देर नहीं लगती.
लॉबीइंग की दुनिया में राडिया ने शुरुआती कदम भाजपा के साथ बढ़ाए. फिर उन्होंने कांग्रेस के भीतरी गलियारों तक पहुंच बनाई और माना जाता है कि अब सीपीएम के साथ भी उनकी अच्छी छनती है. उनके बारे में होने वाली चर्चाएं बताती हैं कि आज उनकी निजी संपत्ति 500 करोड़ रु से ऊपर की है.
आयकर विभाग की जांच बताती है कि रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को टेलीकॉम लाइसेंस दिलवाने में राडिया ने अहम भूमिका निभाई
कर चोरी को पकड़ने के लिए कुछ समय पहले आयकर विभाग ने जब कुछ लोगों के फोन टेप करने शुरू किए थे तो ऐसा करने वाले अधिकारियों को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि यह रूटीन काम उन्हें इतने बड़े घोटाले तक पहुंचा देगा. अब आयकर विभाग समेत दूसरी कई एजेंसियां भी यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि क्या दिल्ली की सत्ता के गलियारों में राडिया की पहुंच इस कदर है कि वे किसी को भी मंत्री बनवा दें या फिर अपने कॉरपोरेट क्लाइंटों के हित में सरकार से नीतियां बनवा दें.
उधर, प्रवर्तन निदेशालय यह जानने की कोशिश कर रहा है कि कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस के लिए बनी राडिया की कंपनी के जरिए पैसा किससे किसको पहुंचा. शायद राडिया को भी ईडी की इस मंशा के बारे में अंदाजा हो गया था, इसलिए पूछताछ के लिए सबसे पहले भेजे गए नोटिसों को उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देकर टालने की कोशिश की. इस दौरान मिले समय का इस्तेमाल उन्होंने उत्तर प्रदेश के कुछ नेताओं से संपर्क करने में किया. बताया जाता है कि राडिया ने उनसे कहा कि वे अपने राज्य के कैडर के अधिकारियों को खामोश रहने के लिए कहें जो इस घोटाले की जांच कर रहे हैं. लेकिन एक लाख 76 हजार करोड़ रु के इस घोटाले की आंच में कोई अपने हाथ नहीं जलाना चाहता था.
राजनीतिक रूप से राडिया को अलग-थलग पड़ते देख जांच एजेंसियों की हिम्मत बढ़ी. पूछताछ के लिए उन्हें फिर से नोटिस भेजे गए. इस बार इन नोटिसों की भाषा काफी तल्ख थी. 24 नवंबर को राडिया ईडी के दफ्तर पहुंचीं. शायद मीडिया की नजर से बचने के लिए उन्होंने वक्त चुना सुबह सवा नौ बजे. उस समय तक तो जांच अधिकारी भी दफ्तर नहीं पहुंचे थे. जांच में शामिल ईडी के एक बड़े अधिकारी राजेश्वर सिंह से जब तहलका ने बात करने की कोशिश की तो वे इससे ज्यादा कुछ भी कहने को तैयार नहीं हुए कि वे शायद भारत में हुए अब तक के सबसे बड़े घोटाले की जांच कर रहे हैं.
जब तक राडिया ईडी के दफ्तर से बाहर निकलतीं तब तक वहां मीडिया का भारी-भरकम जमावड़ा लग गया था. सवालों की बौछार के बीच वे सधे हुए शब्दों में उसी नफासत के साथ बोलीं जो किसी पीआर प्रोफेशनल की पहचान होती है. कुछ भी ज्यादा कहने से बचते हुए उन्होंने जो कहा उसका मतलब यही था कि मामला अदालत में है और उनकी तरफ से पूरा सहयोग दिया जाएगा.
उधर, सीबीआई अधिकारियों का दावा है कि उनके पास ऐसे सबूत हैं जो बताते हैं कि राडिया की कंपनी का डाटा यूक्रेन स्थित सर्वरों (जिन तक किसी तीसरे पक्ष की पहुंच बहुत मुश्किल होती है) पर रहा है और उनके और उनके करीबी सहयोगियों ने अपने फोनों पर ऐसे इजराइली उपकरण लगा रखे थे जिनसे नंबरों की निगरानी संभव नहीं हो पाती. सीबीआई के पास वैष्णवी कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस की चेयरपर्सन राडिया और नेताओं, नौकरशाहों और कुछ बड़े पत्रकारों के बीच 180 घंटे की बातचीत है जो उन्हें उस दूरसंचार घोटाले के केंद्र में खड़ा कर सकती है जिसने ए राजा की कुर्सी छीन ली. गौरतलब है कि संचार मंत्री रहे राजा को वास्तविक कीमत से कहीं कम कीमत पर 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस बेचने से उठे विवाद के बाद अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सीबीआई उन पूर्व नौकरशाहों और राडिया के बीच के गठजोड़ की भी जांच कर रही है जिन्हें राडिया ने इसलिए नौकरी पर रखा था ताकि वे अपने क्लाइंटों के हिसाब से नीतियां बनवा सकें. उनके क्लाइंटों में टाटा, रिलायंस, आईटीसी, महिंद्रा, लवासा, स्टार टीवी, यूनिटेक, एल्ड हेल्थकेयर, हल्दिया पेट्रोकैमिकल्स, इमामी और बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे बड़े नाम हैं.
पिछले ही हफ्ते राडिया के करीबियों में से एक प्रदीप बैजल से सीबीआई ने चार घंटे से भी ज्यादा समय तक पूछताछ की. गौरतलब है कि बैजल दूरसंचार मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं और देश में विवादास्पद विनिवेश प्रक्रिया को शुरू करने का श्रेय उन्हीं को जाता है. सीबीआई ने उनसे गुयाना और सेनेगल जैसे अफ्रीकी देशों में उनके तथाकथित निवेशों के बारे में पूछताछ की.
इस बारे में ज्यादा जानकारी देने से इनकार करते हुए ईडी अधिकारी राजेश्वर सिंह बस इतना ही कहते हैं, 'आरोप गंभीर हैं.' सीबीआई और ईडी अधिकारियों ने तहलका को बताया है कि यह साबित करने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत हैं कि डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रोमोशन में सचिव रहे अजय दुआ, पूर्व वित्त सचिव सीएम वासुदेव, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एसके नरूला और नागरिक उड्डयन सचिव रहे अकबर जंग जैसे रिटायर्ड नौकरशाह राडिया के इशारे पर काम करते हैं.
दूसरी तरफ, आयकर विभाग की जांच बताती है कि रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को टेलीकॉम लाइसेंस दिलवाने में राडिया ने अहम भूमिका निभाई.

ईडी अधिकारियों ने तहलका को बताया है कि यूनिटेक के लिए 1,600 करोड़ रु जुटाने में राडिया की अहम भूमिका थी. गौरतलब है कि यूनिटेक 
भी उन विवादास्पद कंपनियों में से एक है जिसे ये टेलीकॉम लाइसेंस हासिल हुए थे. कंपनी ने अपनी दूरसंचार फर्म का एक बड़ा हिस्सा आखिरकार नार्वे की एक कंपनी टेलेनॉर को बेचा और उस कीमत से सात गुना ज्यादा पैसा वसूला जो उसने लाइसेंस खरीदने के लिए चुकाई थी.
एजेंसियों के पास जो बातचीत रिकाॅर्ड है उसके कुछ हिस्से राडिया का संबंध लंदन स्थित वेदांता समूह से भी जोड़ते हैं. गौरतलब है कि उड़ीसा के कालाहांडी जिले में अपनी खनन परियोजनाओं में पर्यावरण संबंधी मानकों का उल्लंघन करने के लिए इस समूह की काफी आलोचना हुई है. विश्वस्त सूत्रों ने तहलका को यह भी बताया है कि वेदांता समूह ने राडिया को भारत में अपनी नकारात्मक छवि को बदलने की भी जिम्मेदारी सौंपी थी. नतीजा यह हुआ कि अखबारों और पत्रिकाओं में वेदांता को अच्छा बताते कई महंगे विज्ञापन छपे. लेकिन इनसे कोई खास असर नहीं हुआ क्योंकि पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उसकी परियोजना को रद्द कर दिया.

बातचीत के टेप राडिया का संबंध सुनील अरोड़ा से भी साबित करते हैं. अरोड़ा राजस्थान में तैनात आईएएस अफसर हैं जिन्होंने राडिया को अलग-अलग मंत्रालयों में तैनात अपने दोस्तों तक पहुंचाया. इन टेपों में रिकॉर्ड बातचीत उन नोट्स का हिस्सा है जो सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे हैं. ऐसा लगता है कि नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल के खिलाफ मोर्चा खोलकर इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर की अपनी कुर्सी गंवाने वाले अरोड़ा ने राडिया के लिए भारत में कई दरवाजे खोले. यह पता चला है कि इंडियन एयरलाइंस के मुखिया के तौर पर अरोड़ा के कार्यकाल के दौरान सात विमान उन कंपनियों से लीज पर लिए गए थे जिनके एजेंट के तौर पर राडिया की कंपनियां काम कर रही थीं. वरिष्ठ आयकर अधिकारी अक्षत जैन कहते हैं, 'हमारे पास सबूत हैं कि राडिया की कंपनी ने अरोड़ा के मेरठ स्थित भाई को काफी पैसा दिया है.'
राडिया आज भी जेट एयरवेज के मुखिया नरेश गोयल और उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल से खार खाती हैं. उन्हें लगता है कि इन दोनों की वजह से उनकी अपनी एयरलाइन का सपना पूरा नहीं हो सका
अब राडिया की पृष्ठभूमि पर एक नजर. 19 नवंबर ,1960 को सुदेश और इकबाल मेमन के घर नीरा राडिया का जन्म हुआ. ईदी आमिन के पतन के वक्त उनके परिवार को अफ्रीका छोड़कर ब्रिटेन जाना पड़ा. कभी कुख्यात हथियार डीलर अदनान खशोगी का उभरता प्रतिद्वंद्वी कहे जाने वाले मेमन ने लंदन में विमान लीज कारोबार में काम शुरू किया. परिवार के इस कारोबार की राडिया स्वाभाविक उत्तराधिकारी थीं. लंदन में उन्होंने एक अमीर व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले जनक राडिया से शादी की. सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि 1996 में काले धन की जमाखोरी के एक मामले में वे जांच के घेरे में आईं और फिर वे भागकर भारत आ गईं. यहां पहले उन्होंने तब सहारा सुप्रीमो सुब्रत रॉय के चहेते उत्तर कुमार बोस के साथ काम किया जो एयर सहारा का काम देख रहे थे. सहारा इंडिया के निदेशकों में से एक अभिजित सरकार भी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, 'उन्होंने कुछ समय तक हमारे लिए काम किया.' मगर बोस तब राय की नजरों से उतर गए जब यह पाया गया कि जो एयरक्राफ्ट लीज पर लिए गए हैं उनके किराए बाजार भाव से 50 फीसदी ज्यादा हैं.
इसके बाद राडिया ने अपने बूते आगे बढ़ने का फैसला किया. उनकी नजर बंद हो चुकी मोदीलुफ्त पर थी जिसे फिर से शुरू कर वे मैजिक एयर के नाम से चलाना चाहती थीं, मगर इसके लिए उन्हें जरूरी मंजूरियां नहीं मिलीं. ताकतवर प्राइवेट एयरलाइंस लॉबी ने हर कदम पर उन्हें मात दी और जल्दी ही राडिया ने इस काम के लिए खाड़ी स्थित जिन फायनेंसरों को राजी किया था वे पीछे हट गए. मलेशियन एयरलाइंस सहित कई एयरलाइनों से पायलटों और उड्डयन विशेषज्ञों की जो क्रैक टीम राडिया ने बनाई थी वह एक लंबी और परेशान कर देने वाली यथास्थिति के बाद टूट गई.
ऐसे कई लोग हैं जो दावा करते हैं कि राडिया आज भी जेट एयरवेज के मुखिया नरेश गोयल और नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल से खार खाती हैं. उन्हें लगता है कि इन दोनों व्यक्तियों की वजह से उनकी अपनी एयरलाइन का सपना पूरा नहीं हो सका. राडिया को क्राउन एयर के प्रोमोटर के तौर पर सुरक्षा मंजूरी तो नहीं मिली लेकिन वे तत्कालीन उड्डयन मंत्री और भाजपा के अनंत कुमार के करीबी संपर्क में आ गईं. भाजपा नेतृत्व के सूत्र बताते हैं कि जब पीएमओ से उन्हें साफ संकेत मिले कि कुमार की कुर्सी जाने वाली है तो राडिया ने मान लिया था कि क्राउन एयर अब एक मर चुका सपना है. इसके बाद भी राडिया ने एनडीए शासनकाल के दौरान जमीन का एक विशाल टुकड़ा बहुत ही सस्ते दामों में अपनी स्वर्गवासी मां के नाम पर बनी सुदेश फाउंडेशन को आवंटित कराने में सफलता पा ली.
आईबी की एक पुरानी रिपोर्ट बताती है कि राडिया को सुरक्षा संबंधी मंजूरी देने के खिलाफ जो एतराज थे उनमें से कुछ का संबंध मुंबई स्थित एक व्यक्ति चंदू पंजाबी के साथ उनकी डीलिंग से भी था जिसकी पृष्ठभूमि संदिग्ध थी. पंजाबी ठाकरे परिवार का भी करीबी था. राडिया ने फिल्म अग्निसाक्षी की फंडिंग में भी अहम भूमिका निभाई थी. इस फिल्म के निर्माता बाल ठाकरे के बेटे बिंदा ठाकरे थे. पंजाबी के बारे में बताया जाता है कि बांद्रा स्थित सी रॉक होटल में उसका भी कुछ हिस्सा था. 1992 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्टों में से एक इस होटल में भी हुआ था और अब यह होटल टाटा समूह की इंडियन होटल्स कंपनी द्वारा चलाया जाता है. नेटवर्किंग के अपने गुण की बदौलत राडिया ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ तालमेल स्थापित कर लिया और भारत में उसके रखरखाव, रिपेयर और ओवरहॉल सुविधा स्थापित करने में मदद की. सरकार की नीति में इस बदलाव  कि विदेशी एयरलाइंस भारत में नहीं आ सकतीं, के बारे में भी यह चर्चा चली थी कि यह बदलाव उनके विरोधियों गोयल और पटेल ने करवाया था.
नौकरशाह और राजनेताओं से अपने संपर्क और कुमार के साथ उनके गठजोड़ ने राडिया के लिए दिल्ली की सत्ता के गलियारों के कई दरवाजे खोले. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक पूर्व मुखिया और एनडीए सरकार के दौरान ताकतवर रहे नौकरशाह एसके नरूला रिटायर होने के बाद भी राडिया के विश्वासपात्र हैं और उनकी तरफ से सरकार के साथ कुछ महत्वपूर्ण सौदेबाजियों को अंजाम देते हैं.
राडिया को सबसे बड़ा ब्रेक तब मिला जब उनका परिचय रतन टाटा के करीबी सहयोगी आरके कृष्ण कुमार से हुआ. कुमार वही शख्स थे जिन्हें टाटा ने अपनी एयरलाइन के सपने को हकीकत में बदलने की जिम्मेदारी सौंपी थी. टाटा-सिंगापुर एयलाइंस गठजोड़ नाकाम रहा मगर जल्दी ही राडिया ने पब्लिक रिलेशंस के क्षेत्र में फिर से शरुआत की. उन्होंने वैष्णवी कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस की शुरुआत की और उन्हें टाटा समूह की सभी कंपनियों का काम मिल गया. अब उनके पास भारत के सबसे प्रतिष्ठित कारोबारी घराने का नाम था. जल्दी ही उनकी कंपनी की जड़ें आठ शहरों में जम गई थीं.
जब टाटा समूह टाटा फायनैंस के दिलीप पेंडसे के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करना चाहता था और पेंडसे ने मराठी मानुस कार्ड खेलकर उसका यह प्रयास विफल कर दिया था तब एक दिन दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने पेंडसे को एक बहुत ही छोटे मामले में गिरफ्तार कर लिया. पेंडसे ने आरोप लगाया कि यह सब राडिया के इशारे पर हुआ है क्योंकि पुलिस विभाग में पहुंच उनकी रणनीतियों का एक अहम पहलू है. यह एक ऐसा हथियार है जिसे वे अकसर अपना काम निकालने के लिए इस्तेमाल करती हैं. इसका राडिया को इतना खयाल है कि पिछले आठ सालों में एक स्टाफर को इसी काम के लिए रखा गया है कि ग्राउंड लेवल पर काम करने वाले पुलिसकर्मियों के साथ रिश्ते बनाकर रखे जाएं. उधर, राडिया पुलिस के सीनियर स्टाफ के साथ बनाकर रखती हैं. दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर केके पॉल राडिया के करीबी दोस्त थे जिन्हें एनडीए की सरकार के आखिरी चार महीने के दौरान ही यह पद मिला था. महाराष्ट्र के एक पूर्व डीजीपी को जब फरवरी, 2007 में रातों-रात मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद से हटाया गया तो यह चर्चा खूब उड़ी थी कि राडिया उसे दिल्ली में सीबीआई या किसी इंटेलिजेंस एजेंसी में कोई अहम पद दिलवाने के लिए भारी लॉबीइंग कर रही हैं. इंटेलिजेंस के सूत्र मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर से जुड़े उस विवाद में राडिया का हाथ होने से इनकार नहीं करते जब उनका एक विवादास्पद इंटरव्यू एक मैगजीन में छप गया था. इससे पहले वे महाराष्ट्र के डीजीपी पद के लिए पहली पसंद कहे जा रहे थे. गफूर विवाद का फायदा एएन राय को हुआ जो टाटा मोटर्स के मुखिया रविकांत के करीबी रिश्तेदार हैं. राय भी दक्षिण मुंबई के उसी रेजीडेंसियल कांप्लेक्स में रहते हैं जहां कांत सहित टाटा मोटर्स के तीन-चार बड़े लोगों का आशियाना है.
दिलचस्प यह भी है कि राडिया ने अपनी कमर्शियल एयरलाइन का सपना 2004 में एक बार फिर जिंदा किया और फिर मलेशियन एयरलाइंस के उड्डयन विशेषज्ञों की एक टीम बनाई. इसके मुखिया नग फूक मेंग पहले भी क्राउन एयर का हिस्सा रह चुके थे. अपने विरोधी प्रफुल पटेल के उड्डयन मंत्री होने के बावजूद आशावादी राडिया इस मोर्चे पर जम गईं. लेकिन 14 महीने तक कोशिशों के बाद आखिरकार उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा.
इसी अवधि के दौरान राडिया ने दयानिधि मारन के साथ भी एक तीखी लड़ाई लड़ी. मारन, कारोबारी सी शिवशंकरन को रतन टाटा के कथित संरक्षण से नाराज थे. राडिया ने डीएमके मुखिया करुणानिधि की पत्नी राजति अम्मल के एक करीबी के साथ संपर्क बढ़ाया और चेन्नई की कई यात्राएं करके अम्मल के साथ अच्छी दोस्ती कर ली. उन्हें तब मौका मिला जब मारन और करुणानिधि परिवार में फूट पड़ी जिसकी वजह से दयानिधि मारन को संचार मंत्रालय छोड़ना पड़ा. माना जाता है कि राडिया  चेन्नई गईं और उन्होंने डीएमके सुप्रीमो, उनके बेटे एमके स्टालिन और टाटा के बीच एक गुपचुप वार्ता आयोजित की थी.
एएआई के पूर्व सीएमडी नरूला ने नौकरशाही के उस शीर्ष स्तर तक उनकी पहुंच के द्वार खोले जिसके रिटायर होने में पांच-छह साल बचे होते हैं और जो रिटायर होने के बाद कॉरपोरेट इंडिया के साथ अवसरों की तलाश में होता है. बैजल और वासुदेव ने भी इस काम में अहम भूमिका निभाई. इनकी सेवाओं का इनाम देते हुए राडिया ने बैजल, वासुदेव और नरूला को पार्टनर बनाते हुए नियोसिस नाम की फर्म खोली. जल्दी ही इसने टेलीकाॅम क्षेत्र की बड़ी खिलाड़ी हुवाई सहित कुछ चीनी कंपनियों को अपनी परामर्श सेवाएं देनी शुरू कर दीं.
राडिया की इस अचानक बड़ी छलांग और सिंगापुर की उनकी कई यात्राओं ने कई लोगों का ध्यान उनकी तरफ खींचा. बताया जाता है कि बड़े नकद सौदों में से कुछ को उनके नाम से मिलते-जुलते कोड के साथ किया गया था. उनकी अबाध उन्नति ने बहुतों को हैरान भी किया. उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. (आरआईएल) का काम संभाला तो अपने संपर्कों की बदौलत मुकेश अंबानी को करोड़ों का अप्रत्याशित लाभ करवा दिया. आरआईएल का काम संभालने के लिए राडिया ने न्यूकॉम बनाई. अब भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति उनके पास थे, जिनसे उन्हें चर्चाओं के मुताबिक 100 करोड़ रु सालाना मिल रहे थे. राडिया ने इस क्षेत्र में काम शुरू करने के छह साल के भीतर ही हर स्थापित खिलाड़ी को मीलों पीछे छोड़ दिया था. जल्दी ही वे कॉरपोरेटों के लिए ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों को भी अपनी सेवाएं देने लगीं. तेलगू देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उन लोगों में से कुछ हैं जिनके साथ राडिया ने करीबी से काम किया. कहा जाता है कि नैनो प्रोजेक्ट को बंगाल से गुजरात लाने में राडिया की भूमिका अहम थी.
अगर स्पेक्ट्रम घोटाला इतना बड़ा नहीं हुआ होता तो उनकी यह निर्बाध यात्रा निश्चित रूप से जारी रहती. मगर राडिया जिस कारोबार में हैं वहां टिके रहने के लिए नेताओं और कॉरपोरेट्स के विश्वास की जरूरत होती है. और ये दोनों इसमें पैसे के लिए आते हैं. इसके अलावा कोई भी ऐसे शख्स के साथ काम नहीं करना चाहता जिसकी छवि पर दाग लग चुका हो.

2जी स्पेक्ट्रम: 85 कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने को मंजूरी

Source: भास्कर न्यूज   |   Last Updated 05:42(14/12/10)
 
 
 
 
 
 
नई दिल्ली. केंद्रीय विधि मंत्रालय ने 2जी स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली 85 कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने को हरी झंडी दे दी है। इसके लिए इन कंपनियों के लाइसेंस हासिल करने के लिए आवश्यक मानदंडों का पालन न करने को आधार बनाया गया है। दूरसंचार मंत्रालय ने विधि मंत्रालय से पूछा था कि क्या 1.76 लाख करोड़ रुपए के घोटाले में कथित रूप से शामिल 85 कंपनियों के लाइसेंस निरस्त किए जा सकते हैं?

सूत्रों के अनुसार, विधि मंत्रालय ने लाइसेंस रद्द करने के दो आधार बताए लाइसेंस आवंटन के दिन तक कंपनियां बोली प्रक्रिया में शामिल होने की आवश्यक शर्र्तो पर खरी नहीं उतरती थीं। इन कंपनियों के पास पर्याप्त आधार पूंजी नहीं थी। विधि मंत्रालय ने इस संबंध में देश के अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती की सलाह भी मांगी थी। इधर, दूरसंचार मंत्रालय सभी 85 कंपनियों से पूछने जा रहा है, ‘क्यों न लाइसेंस रद्द कर दिया जाए?’ इन कंपनियों में कई रीयल एस्टेट कंपनियां भी शामिल हैं। दूरसंचार क्षेत्र में सेवा देने का उनका कोई अनुभव नहीं है।

राजा से पूछताछ नहीं करेगी एक सदस्यीय समिति

दूरसंचार मंत्रालय की ओर से लाइसेंस व स्पेक्ट्रम आवंटन में नीतियों के पालन की समीक्षा के लिए गठित एक सदस्यीय समिति के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिवराज वी पाटिल ने साफ किया है कि वह अपनी जांच के दौरान पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा को पूछताछ के लिए नहीं बुलाएंगे। यही नहीं, उन्होंने कहा कि न केवल राजा बल्कि वह किसी अधिकारी से पूछताछ नहीं करेंगे।

इसकी वजह यह है कि उनका काम नियमों के पालन की जांच करना है। पूछताछ का अधिकार उनके पास नहीं है। इधर, दूरसंचार सचिव आर चंद्रशेखर ने कहा है कि जिन कंपनियों को कैग ने अपनी रपट में अपात्र करार दिया है और जिन्हें सेवा शुरू न करने का आरोपी ठहराया है उन सभी कंपनियों को इस सप्ताह के अंत तक कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि इन कंपनियों को सोमवार देर शाम से नोटिस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। एक सदस्यीय समिति के प्रमुख पाटिल ने कहा कि वह 1999 की नई टेलीकॉम पॉलिसी के होते हुए वर्ष 2001 में सेलुलर टेलीकॉम मोबाइल सर्विस लाइसेंस लाने, दूरसंचार विभाग के अंदर 2001-09 के बीच लाइसेंस व स्पेक्ट्रम देने के मामले में अंजाम दी गई कार्रवाई में नियमों के उल्लंघन की समीक्षा करेंगे।

उनका कार्य यह देखना है कि किसी स्तर पर किसी के भी द्वारा नियमों की अवेहलना या उल्लंघन तो नहीं किया गया है। इसके लिए वह किसी भी अधिकारी या बाहरी विशेषज्ञ को बुला सकते हैं, उससे परामर्श ले सकते हैं। पाटील ने कहा कि हालांकि वह पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा या फिर उससे पूर्व के किसी भी दूरसंचार मंत्री को पूछताछ के लिए नहीं बुलाएंगे। यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

उनका कार्य फाइलों पर हुई लिखित कार्यवाही के माध्यम से किसी भी तरह की गलती पकड़ना है। जरूरत होने पर वह फाइलों पर लिखी टिप्पणी को जानने के लिए किसी भी अधिकारी को तलब कर सकते हैं। पाटील ने कहा कि वह कोशिश करेंगे कि वह अपनी रपट जल्द दे दें। उन्हें उम्मीद है कि वह एक महीने में अपनी रपट दे देंगे लेकिन जरूरत होने पर दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल उनका कार्यकाल बढ़ा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी राडिया के खिलाफ शिकायत की कॉपी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से उस शिकायत की कॉपी मांगी है, जिसके आधार पर कापरेरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया के फोन टेप किए गए। नवंबर 2007 में मिली इस शिकायत की कॉपी सीलबंद लिफाफे में मांगी गई है। जस्टिस जीएस सिंघवी व एके गांगुली की बेंच ने यह निर्देश अटॉर्नी जनरल को दिए हैं। बेंच सोमवार को टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

इस याचिका में रतन टाटा ने राडिया से उनकी बातचीत के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की है। कोर्ट ने टाटा को एक और हलफनामा प्रस्तुत करने और सरकारी हलफनामे का जवाब देने की अनुमति भी दी है। इसके लिए जनवरी 2011 के पहले सप्ताह तक का समय दिया गया है।

बेंच ने बताया कि दो पत्रिकाएं ‘ओपन’ और ‘आउटलुक’ अगले तीन सप्ताह में अपना जवाब पेश करें। मामले की अगली सुनवाई अगले साल 2 फरवरी 2011 होगी। इधर, आउटलुक के वकील अनिल दीवान व ओपन के वकील राजीव धवन- ने टाटा की याचिका को चुनौती दी है। उनका कहना था कि याचिका जनहित की बजाय व्यक्तिगत हित में है। दीवान ने कहा कि प्रेस को किसी भी भ्रष्टाचार को उजागर करने का पूरा अधिकार है। प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा हर कीमत पर की जानी चाहिए।

टाटा के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी नागरिक की निजता व सम्मान की रक्षा के बीच संतुलन बनाना चाहिए। इस पर बेंच ने कहा, ‘सम्मान का अधिकार सबसे मूल्यवान है। इसकी रक्षा हर हाल में की जानी चाहिए।’

उधर, अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने बताया कि इस मामले में सीबीआई कोई हलफनामा पेश नहीं करेगी। पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने एक हलफनामा पेश कर सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि एक शिकायत के बाद 2007 में राडिया के फोन टेप करने शुरू किए गए थे। शिकायत मिली थी कि राडिया मात्र 9 साल में 300 करोड़ रुपए का बिजनेस खड़ा कर चुकी है। उस पर विदेशी एजेंट होने और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का भी आरोप था।

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...