गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कोख में मार दी गईं १९०० बेटियां

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की रपट में सामने आई सच्चाई सिर्फ कन्या भ्रूण हत्या से प्रभावित नहीं हुआ लिंग अनुपात
(अमर उजाला से साभार)
नई दिल्ली। पुरुषों के मुकाबले देश में लगातार महिलाओं की कम होती संख्या के कारण पैदा हो रही कई किस्म की नृशंस सामाजिक विकृतियों के बीच केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि 200१ से २०05 के दौरान रोजाना करीब 1800 से 1900 कन्या भू्रण हत्याएं हुई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की एक रपट में कहा गया है कि साल 200१ से २०05 के बीच रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है।

हालांकि महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम कर रही संस्था सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि यह आंकड़ा भयानक है, लेकिन वास्तविक तस्वीर इससे भी अधिक डरावनी हो सकती है। उन्होंने कहा कि गैर कानूनी और छुपे तौर पर कुछ इलाकों में जिस तादाद में कन्या भ्रूण की हत्या हो रही है उसके अनुपात में यह आंकड़ा कम लगता है। उन्होंने कहा कि आधिकारिक आंकड़े इतने भयावह हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी गंभीर है।

सरकारी रपट में कहा गया है कि ६ साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण के गर्भपात के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है। बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर अधिक है। इसलिए जन्म के समय मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण संकेतक है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। रपट के मुताबिक 1981 में 6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 था, जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है।

उल्लेखनीय है कि 1995 में बने जन्म-पूर्व नैदानिक अधिनियम (प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, 1995) के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है, जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है। भारत सरकार ने 201१-12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ा कर 950 करने का लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है।

(यह सब क्यों हो रहा है क्या हम कभी इस पर नज़र डालते है शायद नहीं जरा पूछो दहेज़ लोभियों से दुराचारियों से इन अबलाओं को मारते हुए उनके तौर तरीके कितने खतरनाक होते है ) 

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