रविवार, 15 मई 2011

किसान नेता टिकैत का निधन

बी.बी. सी. से साभार -


फाइल फोटो
पिछले दिनो नोएडा के पास के गांवो में किसान आंदोलन को भी टिकैत ने समर्थन दिया था.
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत का रविवार सुबह मुज़फ्फरनगर में निधन हो गया.
वो 76 वर्ष के थे और पिछले कई महीनों से आंत के कैंसर से पीड़ित थे.
टिकैत के परिवार वालों ने बीबीसी को बताया कि उनका अंतिम संस्कार सोमवार सुबह 11 बजे उनके पैतृक गांव सिसौली में होगा.
टिकैत अपने पीछे चार बेटे और दो बेटियां छोड़ गए हैं. उनके पुत्र राकेश टिकैत उनके साथ किसान यूनियन का काम देखा करते थे.

अभियान

टिकैत पिछले क़रीब 25 सालों से किसानों की समस्याओं के लिए संघर्षरत थे और विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसानों में उनकी साख थी.
टिकैत ने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था.
इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था.
इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी.
इसके बाद से ही टिकैत पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम किया. उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए.

अमर उजाला से साभार-


किसानों का सच्चा हमदर्द दुनिया से विदा
मुजफ्फरनगर।
Story Update : Monday, May 16, 2011    1:38 AM
मृत्यु शैया पर भी युद्ध सी ललकार वाली आवाज खामोश हो गई है। सिसौली सूनी हो गई। किसानों का सच्चा हमदर्द दुनिया से विदा हो गया। भाकियू मुखिया और बालियान खाप के चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत नहीं रहे। जानलेवा बीमारी कैंसर से लड़ते हुए रविवार तड़के उन्होंने अंतिम सांस ली।

लंबी बीमारी के बाद मुजफ्फरनगर में निधन
देश के शीर्ष किसान नेता एवं भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का 76 वर्ष की आयु में रविवार को लंबी बीमारी के बाद मुजफ्फरनगर में निधन हो गया। वह हड्डी के कैंसर से पीड़ित थे। अपने महानायक के निधन से किसान स्तब्ध हैं। बाबा टिकैत इससे पहले भी दो बार गंभीर रूप से बीमार पड़े पर अपनी हठ से हर बात मनवाने वाले टिकैत ने बीमारी को दोनों दफा हरा दिया। लेकिन अबकी किसान नेता ने लगता है हामी भर दी।

किसान भवन में होगा अंतिम संस्कार
भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और उनके पुत्र राकेश टिकैत ने बताया कि स्व टिकैत की अंत्येष्टि सोमवार को उनके पैतृक गांव सिसौली में किसान भवन में शाम चार बजे होगी। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए किसानों, राजनीतिज्ञों और किसान संगठनों के पदाधिकारियों का तांता लगा है। उनके निधन का समाचार फैलते ही शोक की लहर दौड़ गई और लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ने लगे।

दो साल से बोन कैंसर से जूझ रहे थे
पिछले 25 सालों से देश में किसान संघर्ष का प्रतीक बन गए चौधरी टिकैत ने मुजफ्फरनगर में सरकुलर रोड स्थित ऋषभ विहार में अपने आवास पर सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर अंतिम सांस ली। टिकैत दो साल से बोन कैंसर से जूझ रहे थे। शनिवार को तबीयत अधिक खराब हो गई। पौत्र गौरव टिकैत के मुताबिक बाबा ने सुबह उनके साथ बातचीत की तो लगा कि सेहत में सुधार है। लेकिन कुछ पल बाद ही वह अनंत में लीन हो गए। वह बालियान खाप के मुखिया भी थे। अब मुखिया की पगड़ी उनके पुत्र नरेश टिकैत को पहनाई जाएगी।

टिकैत कभी राजनीति के मोह में नहीं पड़े। उनके साहस, लक्ष्य को पूरा करने की लगन और सादगी ने उन्हें ऐसा किसान नेता बना दिया जिनकी कमी आने वाले दिनों में महसूस होगी।
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

टिकैट ने जिंदगी भर किसानों के हित के लिए काम किया। इस काम के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा
मायावती

राजनाथ सिंह ने कहा कि टिकैत ने भ्रष्टाचार से दूर रह कर सादगी में अपनी जिंदगी बिता दी। देश ने किसानों का सच्चा साथी खो दिया है।

वह हड्डी के कैंसर से पीड़ित थे
टिकैट बालियान खाप के मुखिया थे। अब मुखिया की पगड़ी उनके पुत्र नरेश टिकैत को पहनाई जाएगी
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में टिकैत के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे.

दैनिक जागरण से साभार-

टिकैत की ताकत के आगे झुकती रही सरकारें

May 16, 01:20 am
लखनऊ [अवनीश त्यागी]। किसानों के नाम पर सियासत चमकाने का काम तो बहुतों ने किया, लेकिन किसानों का स्वाभिमान जगाने का काम भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेन्द्र सिंह टिकैत ने ही किया। किसानों को लेकर हरे रंग का झण्डा और लाल टोपी के बल पर उन्होंने ऐसी ताकत बनाई, जिसके आगे दिल्ली और लखनऊ की सरकारों को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा।
लगभग ढाई दशक में टिकैत किसान आंदोलन के प्रतीक बन गये। जब भी किसानों के हितों पर आंच आयी, वे सरकार से दो-दो हाथ करने में पीछे नहीं हटे। उनकी लोकप्रियता, दृढ़ इच्छाशक्ति और लड़ाकू तेवर का ही कमाल था कि जनवरी 1987 में जब बिजली दरों में प्रति हार्स पावर बीस रुपये की बढ़ोत्तरी की गई, तब उन्होंने भारी संख्या में किसानों को साथ लेकर मुजफ्फरनगर के करमूखेड़ा बिजलीघर को घेर लिए। आठ दिनों तक उनकी घेरेबंदी चलती रही और घेरा तब टूटा जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने फैसला वापस लेने का ऐलान कर दिया। सरकार उनके आगे झुकी और फिर यह सिलसिला कभी थमा नहीं।
ठीक एक साल बाद 1988 में उन्होंने मेरठ कमिश्नरी में कई दिनों तक प्रदर्शन किया। इसके समानांतर मुरादाबाद के रजबपुर में भी 110 दिनों तक किसानों का घेरा उनके अडिग रहने का दस्तावेज बन गया। दो आंदोलनों को एक साथ चलाने की उनकी सियासी सूझबूझ भी उसी दौरान उजागर हुई। उन्होंने अपने इन आंदोलनों के मंचों पर सियासी लोगों को चढ़ने से मना कर दिया और खास बात यह कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सरीखे लोग भी उनके मंच से मायूस होकर लौटे।
उनके अनुयायी विनोद कलंजरी कहते हैं कि 'बाबा के प्रति किसानों के मन में इतना भरोसा था कि उनकी एक आवाज पर लोग सभी काम धंधा छोड़कर धरने में शामिल हो जाते थे। उन्होंने किसानों को नई ताकत दी। ' इस भरोसे की बुनियाद पर ही टिकैत ने दिल्ली में भी अपनी ताकत दिखाई। 25 अक्टूबर 1988 से वोट क्लब पर लाखों की संख्या में सात दिन तक जमे रहे किसानों ने केन्द्र सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
भोपा मुजफ्फरनगर के नईमा अपहरण काण्ड से टिकैत के किसान आंदोलन को नई ऊंचाइयां मिलीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को किसानों को मनाने में नाको चने चबाने पड़े। जून 1990 में टिकैत का आंदोलन लखनऊ की ओर मुड़ा, लेकिन सरकार ने उन्हें फैजाबाद में गिरफ्तार कराकर आंदोलन दबाने की कोशिश की। किसान भड़क गये और प्रदेश में सात दिनों तक किसानों के जेल भरने का सिलसिला चला, तो एक बार फिर सरकार को झुकना पड़ा। जुलाई 1992 में गन्ना मूल्य भुगतान, बिजली कर्ज माफी आदि मांगों को लेकर जब दोबारा उन्होंने लखनऊ कूच किया तो घबराई सरकार ने उन्हें मेरठ में ही गिरफ्तार करा लिया।
विनोद कलंजरी कहते हैं कि 'बाबा हमेशा केन्द्र पर ज्यादा दबाव बनाते थे, क्योंकि नीति तो वहीं बनती है।' तारीख गवाह है कि मार्च 2001 को किसान घाट, जुलाई 2001 को जंतर-मंतर और 2007 में वोट क्लब पर टिकैत के जमावड़े से दिल्ली और लखनऊ दोनों ही सरकारें हिल गयीं। यह उनके दबाव और करिश्माई व्यक्तित्व का नतीजा रहा कि प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह समेत कई बड़े लोग उनको मनाने उनके मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव तक चलकर आये। मौजूदा प्रदेश सरकार से उनका सीधा टकराव भले ही न रहा हो, पर बिजनौर प्रकरण पर टिकैत की घेराबंदी कर पाने में सत्ताधारी नाकामयाब रहे.
हिंदुस्तान से साभार-



रविवार, 8 मई 2011

वाह शशांक शेखर जी - अंग्रेजों के पास भी आप जैसे ही नौकरशाह रहे होंगे |

वो क्या करते हैं अहले सियासत जाने 
अपना पैगाम तो मोहब्बत है जहाँ तक पहुंचे 
बड़े मर्हुलियत आगेज़ होते हैं सियासत के कदम 
तू न समझेगा सियासत तू इन्सान है अभी 
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जागरण की यह खबर यही कहती है. 

भूमि अधिग्रहण हिंसा का कारण नहीं: शशांक

May 09, 01:30 am
लखनऊ। राज्य सरकार ने रविवार को फिर दोहराया कि नोएडा के भट्ठा गांव में शनिवार को हुई हिंसा का कारण भूमि अधिग्रहण नहीं है। किसानों को भूमि अधिग्रहण से कोई शिकायत नहीं है। इस बीच प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने घटना को लेकर विरोधी दलों की बयानबाजी को राजनीति से प्रेरित और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
मुख्यमंत्री की ओर से कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने रविवार को उनके वक्तव्य की जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में सभी को शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने का अधिकार है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कानून हाथ में लेकर लोक संपत्तिको क्षति पहुंचाई जाए। उन्होंने कांग्रेस पर तीखे आरोप लगाते हुए कहा बयान देने से पहले रीता जोशी को तथ्यों की पूरी जानकारी लेनी चाहिए थी। इसी तरह अजित सिंह को भी सोच-विचार कर बयान देना चाहिए। कैबिनेट सचिव ने साफ किया कि भट्टा गांव में जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई भूमि करार नियमावली के तहत काफी पहले की जा चुकी थी। किसी भी परियोजना के लिए गांव में भूमि अधिग्रहण करने संबंधी कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। गांव में विकास कार्य कराने की मांग को लेकर वहां किसान धरना दे रहे थे, जिन्हें बुलंदशहर के मनवीर तेवतिया ने निजी स्वार्थ के लिए भड़काया और रोडवेज के तीन कर्मचारियों को बंधक बना लिया। उन्हें छुड़ाने के दौरान ग्रामीणों व पुलिस के बीच संघर्ष में चार लोगों की मृत्यु हुई। भट्ठा गांव में मार्च 2009 से अगस्त 2009 के बीच 178 हेक्टेयर भूमि अधिगृहीत की गई थी जिसका 170 करोड़ रुपये मुआवजा किसानों के बीच वितरित किया जा चुका है। इसी प्रकार परसौल गांव में 260 हेक्टेयर जमीन अधिगृहीत की गई जिसका 180 करोड़ मुआवजा वितरित किया जा चुका है। राज्य सरकार ने जो मुआवजा नीति घोषित की है, वह अन्य राज्यों से अधिक है।
कैबिनेट सचिव ने कहा कि भट्टा गांव में अब पूरी तरह से स्थिति नियंत्रण में है और कही पर भी कोई समस्या नहीं है। आगरा, अलीगढ़ और मथुरा में भी स्थिति सामान्य है।
तेवतिया सहित छह लोगों की गिरफ्तारी पर ईनाम
लखनऊ। भट्टा गांव में पुलिस व ग्रामीणों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के लिए मनवीर सिंह तेवतिया सहित 22 व्यक्तियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी गयी है। इनमें तेवतिया व अन्य पांच लोगों की गिरफ्तारी के लिए ईनाम भी घोषित किया गया है।

कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह के अनुसार मनवीर सिंह तेवतिया पर 50 हजार रुपये का ईनाम घोषित किया गया है। परसौल गांव के प्रेमवीर एवं नीरज मलिक पर 15-15 हजार रुपये तथा भट्टा गांव के गजे सिंह एवं किरनपाल और अच्छेपुर गांव के रहने वाले मनोज पर दस-दस हजार रुपये का ईनाम घोषित है। सभी पर आरोप है कि इन लोगों ने रोडवेज कर्मियों को बंधक बनाने के साथ ही पुलिसकर्मियों पर ग्रामीणों को भड़काकर फायर भी किये। कैबिनेट सचिव ने कहा तेवतिया ने टप्पल में भी किसानों को भड़काया था। एक राजनीतिक दल तेवतिया का समर्थन कर रहा है।
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क्या हो गया है सत्ता में बैठे 'मदांध' सत्तानसिनों को- 
क्या ये डकैत हो गए हैं जिन पर इनाम घोषित हो रहा है "जब कि डकैत तो सरकार में बैठे हैं" जो किसानों को लूट रहे हैं उनको कौन सजा देगा लगता है प्रदेश लूटेरों के हाथ में आ गया है.
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हिंसा सोची समझी साजिश : मायावती
लखनऊ।
Story Update : Monday, May 09, 2011    12:45 AM
राज्य सरकार ने कहा है कि भट्टा पारसोल में हुई हिंसा जमीन अधिग्रहण से संबंधित नहीं है। इसे लेकर भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं और कुछ राजनीतिक पार्टियां भड़काऊ बयान दे रही हैं। हिंसा फैलाने के आरोप में किसानों के नेता मनवीर सिंह तेवतिया के अलावा पांच और लोगों की गिरफ्तारी पर इनाम घोषित किया गया है।

भट्टा-पारसोल मामले में प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने कहा कि दोनों गांव नोएडा व ग्रेटर नोएडा की सीमा में आते हैं और वहां विकास कार्य के लिए जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही आपसी समझौते के आधार पर पिछले वर्ष ही पूरी की जा चुकी है। कैबिनेट सचिव ने कहा कि मुख्यमंत्री मायावती ने कहा है कि भोलेभाले किसानों को आंदोलित करने के लिए विपक्षी दल निजी स्वार्थों के लिए उकसा रहे हैं और सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। उन्हें चाहिए कि भड़काऊ बयान देने से पहले वे तथ्यों से सही तौर पर अवगत हो लें। इस मुद्दे पर रविवार शाम कैबिनेट सचिव ने कहा कि यह किसी भी जमीन के अधिग्रहण से संबंधित मामला नहीं है।

दोनों गांवों में विकास के लिए जमीन अधिग्रहण का काम आपसी समझौते की नीति के आधार पर किया गया और मार्च 2009 से प्रक्रिया शुरू की गई थी। अगस्त 2009 में नोटिफिकेशन हुआ था। भट्टा गांव की 178 हेक्टेयर जमीन ली गई थी जिसका 120 करोड़ रुपये किसानों को मुआवजा दिया गया था। समझौते के साधार पर हुई कार्रवाई की वजह से किसानों ने मुआवजा उठाया था। ऐसे ही पारसोल गांव की 260 हेक्टेयर जमीन के लिए 180 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया।

कैबिनेट सचिव ने सफाई दी कि यह हिंसा कुछ असामाजिक तत्वों ने की। कैबिनेट सचिव ने कहा कि इस मामले में 22 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। वहां स्थिति सामान्य है और कानून-व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है। कैबिनेट सचिव ने कहा कि आगरा में हुआ संघर्ष भी जमीन अधिग्रहण का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि एतमादपुर गांव में मंदिर के छज्जे को लेकर विवाद हुआ था, जिसे लेकर भ्रांति फैलाई गई। कैबिनेट सचिव ने कहा कि जिस जगह संघर्ष हुआ उसे लोग टप्पल से जोड़ा जा रहा है जबकि टप्पल वहां से तीस किलोमीटर दूर है।

इन पर हुआ इनाम
पारसोल गांव के नीरज मलिक व प्रेमवीर - 15-15 हजार रुपये
भट्टा गांव के गजय सिंह और किरम पाल - 10-10 हजार रुपये
आछेपुर गांव के मनोज पर - 10 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया है।
(मनवीर तेवतिया की गिरफ्तारी पर शनिवार को ही 50 हजार का इनाम घोषित करा गया था )

अमर उजाला ब्यूरो

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शुक्रवार, 6 मई 2011

Lalit Kala Akademi chairman rejects Maya’s award


Criticising the approach of the Mayawati government towards literature, noted poet and chairperson of Lalit Kala Akademi Ashok Vajpeyi has rejected the highest literary honour of Uttar Pradesh Hindi Sansthan, the Bharat Bharati Samman.
In a snub to Mayawati, he has questioned why instead of the Chief Minister or the Governor, a minister has been invited to distribute the awards when the CM is the president of the Sansthan. “Accepting any award from such an institute I consider my insult and of the entire writer community,” wrote Vajpeyi in a May 2 letter to Ashok Ghosh, the Principal Secretary, Language, UP.
Earlier this year, the Sansthan announced over 100 awards to writers following recommendations by a duly-constituted jury. But the UP government, without assigning any reason, scrapped all awards except the top three — Bharat Bharati, Hindi Gaurav and Mahatma Gandhi Sahitya Samman.
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“It is not proper to scrap the awards from retrospective effect... I request that the Sansthan gives the awards to all winners,” Vajpeyi wrote in an earlier letter to the UP government.
The Sahitya Akademi winner questioned the government’s seriousness regarding the honour. “It is clear that the CM or the Governor do not have time to distribute the highest and now purposelessly remaining three awards of UP...I politely suggest not to hold the award ceremony.”
When Vajpeyi did not get any reply from the government, he rejected the award. The ceremony is scheduled on May 19 with UP Urban Development Minister Nakul Dubey as the chief guest.


प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...