शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

आईएएस व आईपीएस के परिजन भी मैदान में उतरे |





(ये नए समाज के अलमबरदार तैयार हो गए है गाँव संभालने को इन्होने पूरे सूबे को जो शक्ल दी है वही योजना लेकर आये है गाँव की हसीं ख़ुशी को अपनी मनहूस उदासी से सराबोर कर भ्रष्टाचार बिखेरने इनसे बचाना चहिये . आईये इनके खिलाफ एक मोर्चा हम भी बनायें .

डॉ.लाल रत्नाकर )

खबर दैनिक जागरण से साभार - 


मेजा, इलाहाबाद : सरकार ने जिस प्रकार पिछले दस वर्षो में पंचायतों को अधिकारों से लैस किया है इससे इसका आकर्षण युवाओं में ही नहीं अधिकारियों के परिजन में भी बढ़ा है। यही कारण इस बार के पंचायत चुनाव के समर में आईएएस एवं आईपीएस के परिवारीजन भी प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसा कुछ उरुवां विकास खंड में देखने को मिल रहा है। यहां पर रसूख वाले कई उच्चाधिकारियों के पिता, भाई एवं भतीजे प्रधानी के लिए मैदान में हैं।
विकास खण्ड उरुवां जिसे चौरासी के नाम से जाना जाता है, में पंचायत चुनाव का रंग कुछ ज्यादा ही चटक है। कारण यह है कि यह चौरासी का इलाका बुद्धिजीवियों का इलाका माना जाता है। यहां की धरती ने दो दर्जन से भी ज्यादा आईएएस एवं आईपीएस दिये है। इस बार पंचायत के चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कुवंरपंट्टी गांव के दुर्गा चरन मिश्रा आईपीएस सेवा में हैं। इनके पिता त्रिभुवन नाथ मिश्रा गांव की प्रधानी के लिए खड़े हुए हैं। मजे की बात यह है कि इनके सामने जो प्रत्याशी जीत कुमारी मिश्रा हैं, वह क्षेत्रीय विधायक आनन्द कुमार पाण्डेय (कलेक्टर पाण्डेय) की सगी बहन हैं। वर्तमान में वह गांव की प्रधान भी हैं। ऐसे में यहां की प्रधानी की जंग काफी दिलचस्प हो गई है। सोरांव गांव के पंडित का पुरा निवासी आद्या प्रसाद पाण्डेय पिछले माह डीजीपी पंजाब के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उनके छोटे भाई कौशलेश प्रसाद पाण्डेय गांव के प्रधानी के प्रत्याशी हैं। इसी प्रकार से अटखरियां गांव निवासी पूर्व डीआईजी राजेंद्र सिंह के भाई शीतला प्रसाद सिंह गांव में प्रधानी के लिए चुनावी मैदान में हैं। यही नही भिंगारी गांव के रमेंद्र नाथ मिश्रा पूर्व अपर आयुक्त रहे हैं लेकिन वे भी पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी हैं। ये तो चंद उदाहरण है ऐसे और भी उच्चाधिकारी है जिनके परिवार के लोग पंचायत के चुनाव में जोर आजमाइश कर रहे हैं और उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यही नहीं इस इलाके में क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों के चहेते भी चुनावी मैदान में है जिसको लेकर राजनीति की गुणा गणित कुछ ज्यादा ही हो गई है। कुल मिलाकर मेजा तहसील के तीनों ब्लाकों में मेजा, माण्डा एवं उरुवां के राजनीतिक दंगल को देखा जाए तो उरुवां ब्लाक में सबसे ज्यादा दिग्गजों के बीच घमासान है।

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

न जाने कितने वीरपाल भूखमरी से जुझने को मजबूर




न जाने कितने वीरपाल शहादत देंगें इस गूंगी बाहरी व्यवस्था में, कहने को तो दलितों की मुखियां up की मुखियां है पर जो खेल उनकी आँखों के आगे चल रहा है सो भयावह है -साभार जागरण से

गढ़मुक्तेश्वर, संवाद सहयोगी : गरीब दलितों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। क्षेत्र में अनेक दलित वीरपाल की तरह तंगहाली और बीमारी से परेशान होकर अपनी जिंदगी को बोझ की तरह ढो रहे हैं। बीपीएल का लाभ भी इन गरीबों को नहीं मिल पा रहा है। इनमें से कई के कच्चे पक्के मकान बरसात में गिर गए तो अब उनके पास सिर छुपाने के लिए भी कोई साधन नहीं बचा है। फिर भी प्रशासन उदासीन बना हुआ है।
मुख्यमंत्री मायावती ने तीन साल पहले प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद 11 बिंदुओं पर योजना बनाकर अंबेडकर ग्राम योजना के तहत उसे लागू करने की घोषणा की। इन 11 बिंदुओं में गरीब व दलितों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए उन्हें बीपीएल योजना से जोड़ना भी शामिल था। बीपीएल कार्डधारक को इंदिरा आवास योजना, सस्ता राशन तथा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ निहित कर दिया गया। लेकिन जिन गरीब दलितों का जुगाड़ नहीं है उनके पास बीपीएल कार्ड भी नहीं हैं। वहीं सुविधा शुल्क लेकर अपात्र लोगों को बीपीएल कार्ड थमा दिए गए, जिसका लाभ साधन संपन्न लोग उठा रहे हैं। वहीं, दलित वीरपाल के तरह न जाने कितने लोग अपनी तंगहाली व बोझ बनी जिंदगी को ढो रहे हैं।
नगर के मोहल्ला अहाता बस्ती राम निवासी लीला अपने बीमार पति का इलाज कराते कराते तंगहाली में आ गई है और उसके पास आय का कोई साधन भी नहीं है। बरसात में उसका घर गिर गया। बीमार पति नैन सिंह व बेटी पूजा के साथ ही उसके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं बच पाई। इसी मोहल्ले के इंद्र प्रसाद पुत्र टीकाराम बीमार हैं। मजदूरी एक महीना से नहीं मिल पाई तो जिंदगी बोझ बन गई। विधवा धर्मवती की हालत भी ऐसी है, खेतों में पानी भरने के कारण उसे वहां काम नहीं मिल रहा है और वह तीन छोटे-छोटे बच्चे के साथ बदहाली के साथ है। परशुराम पुत्र सावलिया बीमार होने पर तंग हो गया। सेंगेवाला मोहल्ला निवासी मुखराम का पुत्र डूंगर बीमार है, ऊपर से उसे बंदर ने काट लिया। लेकिन सरकारी अस्पताल में उसे एक इंजेक्शन लगाकर भगा दिया गया। लेकिन प्राइवेट अस्पताल में वह इलाज नहीं करा सकता, क्योंकि उसे कई दिन से मजदूरी नहीं मिल पा रही है। इन सभी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं तो सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है। इसके चलते वे अपनी जिंदगी कीड़े मकोड़े की तरह जीने को मजबूर हैं। क्षेत्र के गांव दौताई, खिलवाई, लोदीपुर छपका व नया गांव इनायतपुर में मलिन बस्ती में गंदगी की भरमार है। तालाबों का गंदा सड़ा पानी दलितों के घरों में तीन महीने से घुसपैठ कर रहा है। बदबू में सांस लेना मुश्किल है। लेकिन वहां दलित रहने को मजबूर हें। खास बात यह है कि जिला अधिकारी, उप जिलाधिकारी व खंड विकास अधिकारी से ग्रामीणों ने बार-बार शिकायत दर्ज कराई। तीन दिन पहले बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सांसद नरेंद्र कश्यप ने बाढ़ प्रभावित गांवों का जायजा लिया तो दौताई गांव में दलितों के घरों में पानी घुसने का मामला फिर से उठाया गया।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि वीरपाल ही नहीं न जाने कितने लोग लगातार भूख और बीमारी से तंग होकर मर रहे हैं या फिर आत्महत्या को मजबूर हैं

रविवार, 26 सितंबर 2010

यह है इस देश का सच .बी.बी.सी.से साभार-बोलने की आज़ादी नहीं है: अखिल कुमार



अखिल कुमार
अखिल कुमार का कहना है कि भारत में बोलने के बाद ज़ुबान काट दी जाती है.
राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता रह चुके जाने माने मुक्केबाज़ अखिल कुमार का कहना है कि भारत में बोलने की आज़ादी नहीं है और बोलने के बाद ज़ुबान काट दी जाती है.
बीबीसी हिंदी से हुई एक विशेष बातचीत में अखिल कुमार ने इस बात को स्वीकार किया कि राष्ट्रमंडल खेल गाँव में पहुँचने के बाद जब वे अपने बेड पर आराम करने के लिए बैठे तो उनका पलंग टूट गया.
अखिल कुमार ने 2006 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया था.
अखिल कुमार और बीजिंग ओलम्पिक खेलों में रजत पदक जीतने वाले मुक्केबाज़ विजेंदर कुमार समेत भारतीय मुक्केबाजी टीम शनिवार को खेलगांव पहुंची थी.
मैं उस हादसे के बारे में बहुत बात कर चुका हूँ, अब और मानसिक चिंता में नहीं पड़ना चाहता. भारत में बोलने की आज़ादी नहीं है और बोलने के बाद ज़ुबान काट दी जाती है.
अखिल कुमार
अखिल कुमार का कहना है कि एक लंबी यात्रा के बाद जब वे खेल गांव पहुंचे तो उन्हें निराशा हाथ लगी.
अखिल कहते हैं," मैं उस हादसे के बारे में बहुत बात कर चुका हूँ, अब और मानसिक चिंता में नहीं पड़ना चाहता. भारत में बोलने की आज़ादी नहीं है और बोलने के बाद ज़ुबान काट दी जाती है."
अखिल राष्ट्रमंडल खेलों में हो रही अनियमितताओं की ओर इशारा करते हुए बताते हैं, " सबको पता है कि क्या क्या गड़बड़ियाँ हो रहीं है लेकिन कोई साथ देने के लिए तैयार नहीं है. मैं तो बस यही चाहता हूँ कि राष्ट्रमंडल खेल ठीक से हो जाएँ और हम मेडल जीत लें. अफ़सोस यही है कि कोई भी बोलने के लिए तैयार नहीं है. हमसे यही कहा जा रहा है कि ऐसा करने से भारत की बेइज्जती हो रही है."
बीबीसी हिंदी ने जब भारतीय मुक्केबाज़ी टीम के एक और मुक्केबाज़ दिनेश कुमार से इस मसले पर बात कि तो उन्होंने अपने को इस मुद्दे से दूर रखते हुए कहा कि अब तो चीज़ें सुधर रहीं है.
विश्व मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता में भारत के लिए कांस्य पदक जीतने वाले दिनेश बताते हैं, " छोटी मोटी कमियां तो हर जगह ही रहती हैं, पर ऐसी कोई बड़ी बात नहीं है जो अखिल के साथ घटी."
रहा सवाल अखिल कुमार का तो अखिल अपनी बात इसी तर्क पर ख़त्म करते हैं कि खिलाडियों के लिए मूलभूत सुविधाओं का इंतज़ाम कराना बाक्सिंग संघ का काम नहीं है बल्कि राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति का है.

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

बीबीसी से साभार - सावधान जानवरों में जातिवाद फ़ैल रहा है ! दलित ने छुआ तो कुत्ता हुआ अछूत

प्रवीण चित्रांष

'दलित' शेरू
इसी पालतू कुत्ते शेरू को उसके मालिक ने इसलिए घर से निकाल दिया क्योंकि इसे एक दलित महिला ने रोटी खिला दी थी.
मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में एक राजपूत परिवार के पालतू कुत्ते, 'शेरू' को भेदभाव का शिकार होना पड़ा है.
शेरू को एक दलित महिला ने रोटी खिला दी जिसके बाद उसका मालिक उसे घर में रखने को तैयार नहीं.
सोमवार को कुत्ते पर फ़ैसला करने के लिए गाँव की पंचायत बैठी जिसने ये तय किया कि क्योंकि दलित महिला ने कुत्ते को अछूत बनाया है, इसलिए अब उसे ही कुत्ते को रखना होगा.
पंचायत ने महिला पर 15,000 हज़ार रूपए का जुर्माना भी लगाया.
कुत्ते को गाँव के दलित बहुल इलाक़े में एक खंभे से बाँधकर रख दिया गया.
इस महिला ने मामले की जानकारी पुलिस को दी लेकिन उसका आरोप है कि अबतक इस मामले में एफ़आईआर दर्ज नहीं किया गया है.
अब इस अछूत क़रार दिए गए कुत्ते का विवादित मामला मुरैना के ज़िला अधिकारी, पुलिस और अनुसूचित जाति के ख़िलाफ़ हुए मामलों की सुनवाई करनेवाले हरिजन थाना के पास पड़ा है.

मामला


पंचायत के आदेश के मुताबिक शेरु को अब इस दलित महिला सुनीता के साथ रहना होगा.
मुरैना के एक गाँव मानिकपुर में एक दलित महिला, सुनीता जाटव ने गाँव के उच्च जाति के एक प्रभावशाली किसान, अमृतलाल किरार के पालतू कुत्ते को एक रोटी खिला दी.
दरअसल सुनीता अपने पति चंदन जाटव के लिए खाना लेकर गई थी जो खेतों में काम कर रहा था.
चंदन के खाना खाने के बाद जो रोटी बच गई वो उसकी पत्नी ने इस कुत्ते को खिला दी.
कुत्ते के लिए ये रोटी उसके मुसीबत की जड़ बन गई.
कुत्ते के मालिक अमृतलाल ने उसे रोटी खाते देख लिया और सुनीता पर भड़क गया.
अमृतलाल का कहना था कि रोटी खिलाकर सुनीता ने कुत्ते को अछूत बना दिया.
इस बीच हरिजन थाने के डीएसपी बलदेव सिंह का कहना है कि वो मामले की जाँच कर रहे हैं.


दलित ग्राम प्रधान को गाँव से निकाला

उत्तराखंड की दलित महिला ग्राम प्रधान
पंचायत चुनावों में जीतने वाली महिलाओं के बारे में इस तरह का ख़बरे लगभग भारत के हर राज्य से आती रहती हैं.
उत्तराखंड की एक दलित महिला ग्राम प्रधान को गाँव के तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने गाँव से बाहर निकाल दिया है.
विधो देवी नाम की इस ग्राम प्रधान ने अपने साथ हुई इस ज़्यादती की शिकायत शासन से करते हुए दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की है.
घटना को हुए 10 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन इस मामले में प्रशासन के स्तर पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
निर्वोरोध प्रधान
इस पहाड़ी राज्य में दलितों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं हैं लेकिन राजधानी देहरादून से क़रीब 90 किलोमीटर दूर इस दलित महिला ग्राम प्रधान को जिस तरह दर-दर भटकना पड़ रहा है उससे पंचायती राज व्यवस्था की सार्थकता पर सवाल उठ रहे हैं.
विधो देवी ने प्रशासन को जो शिकायत पत्र दी है उसके मुताबिक़ वे कालसी तहसील के गैंग्रो गांव की आरक्षित सीट से निर्विरोध प्रधान चुनी गई थीं.
उनका कहना है कि गाँव के तथा कथित ऊँची जाति के प्रभावशाली लोग यह बात सहन नहीं कर पाए और उन्होंने विधो देवी को प्रधान मानने से ही इनकार कर दिया.
मुझे गांव की प्रधानी नहीं चाहिए. मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार के रहने की व्यवस्था की जाए.''
विधो देवी, गैंग्रो गांव की प्रधान
पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करने की बात तो दूर उन्हें सरेआम अपमानित कर बैठकों में घुसने ही नहीं दिया जाता था.
उनकी अनुपस्थिति में ही योजनाएँ बनाई जाने लगीं और बैठक की कार्यवाही पर कथित तौर पर उनसे जबरन दस्तख़त करा लिए जाने लगे.
इन तथाकथित ऊँची जाति के लोगों ने उन पर सामूहिक भोज देने का दंड लगाकर उस दिन उन्हें गाँव से निकाल दिया जिस दिन पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था.
विधो देवी आज अपने पति मंगल दास और बच्चों के साथ दर-दर भटक रही हैं .
बीबीसी से उन्होंने कहा, ''मुझे गांव की प्रधानी नहीं चाहिए. मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार के रहने की व्यवस्था की जाए.''
वे कहती हैं, ''जिन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया है वे दबंग लोग हैं, हम तो छोटे लोग ठहरे. मुझे तो अब वहाँ लौटने में भी डर लग रहा है.''
गाँव वालों की चुप्पी
उधर, गैंग्रो गाँव में लोग इस घटना के बाद से चुप्पी साधे हुए हैं. इस पर बात करने को कोई तैयार नहीं है.
इस संबंध में संपर्क करने पर कालसी के एसडीएम इला तोमर ने कहा, ''यह बहुत दुखद घटना है.जल्द ही इसकी जांच कराकर दोषियों को सज़ा दी जाएगी.''
घटना को शर्मनाक बताते हुए दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि कहते हैं, ''उत्तराखंड में दलितों की भयावह स्थिति है. इस विषय पर सरकार और बुद्धिजीवियों की भूमिका भी संदिग्ध है.''
उन्होंने कहा, ''कोई इस पर बात करने को तैयार नहीं है. इसे बहुत स्वाभाविक ढँग से लिया जाता है. इस तरह के मामलों पर वे चुप हैं और सवर्णों के ही साथ है.''
पंचायती राज के लिए काम कर रहे ग़ैर सरकारी संगठन 'रूलक' के अध्यक्ष अवधेश कौशल कहते हैं, ''ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण मामला है. यह न्याय व्यवस्था और सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह उस दलित महिला को उसके पद पर दुबारा बहाल कराए. यह सुनिश्चित किया जाए कि वह गाँव में सम्मानजनक तरीके से रह सके.”

रविवार, 19 सितंबर 2010

भेद-भाव के कारण क्या है ?

घिनौने हिन्दू धर्म का और भी घिनौना रूप। समयान्तर पत्रिका के नवंबर 2010 अंक में इस पुस्तक कि समीक्षा छपी है। 

लेखक -- दीवान सिंह बजेली
डार्लिंग जीः किश्वर देसाई; अनु. सोनल मित्रा; हार्पर कोलिंस; पृ.ः 442; मूल्यः 299
पुस्तक लेखक का घिनौना मनुवादि रूप देखिये-- " बलराज जिन्होंने फिल्म में अभिनय के लिए अपना नाम बदलकर सुनील रखा क्योंकि फिल्मों में बलराज साहनी एक प्रसिद्ध नाम पहले से ही विद्यमान था। बलराज का जन्म एक महिवाल ब्राह्मण परिवार में हुआ था जून 6, 1929 को जो विभाजन के समय पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। उनके पिता दीवान रघुनाथ दत्त इलाके के एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। जब बलराज की उम्र छोटी थी उनके पिता की मृत्यु हो गई। बलराज ने मैट्रिक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की पर अभावों के कारण आगे नहीं पढ़ सके और मिलिट्री में भती हो गए। विभाजन के समय उनका परिवारµमां, भाई और बहिनµतबाह हो गए। तब बलराज लखनऊ में थे। लंबे अंतराल के बाद बलराज अपने परिवार से मिल पाए। .........किश्वर पुस्तक का आरंभ दिलीपा से करती है। संभवतः बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि दिलीपा नर्गिस की नानी थी। वह बलिया की रहने वाली एक ब्राह्मणी थी। वह बाल विधवा कष्टकारक व अपमान से भरा जीवन बिताने के लिए बाध्य थी। कट्टरपंथी ब्राह्मण समाज ने उसका जीवित रहना दूभर कर दिया था। कहा जाता है कि वह चिलचिला के एक सारंगी वादक शेख मियांजान के संपर्क में आई और उनके साथ उनकी पत्नी के रूप में रहने लगी। मियांजान गाने-बजाने वाली औरतों के साथ काम करते थे। मियांजान व दिलीपा की पुत्री हुई जिसका नाम था जद्दनबाई जो एक प्रसिद्ध गायिका बनी। बाद में जद्दनबाई बंबई की तत्कालीन तथाकथित बड़ी सोसाइटी की सक्रिय सदस्य बनी और अपने को फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित करने में सफल हुईं।"



देखा आपने, सुनील दत्त और नर्गिस कि महानता उनके अप्रतिम प्रेम,श्रेष्ठ अभिनय,उनकी निस्स्वार्थ समाज सेवा से भी बढ़ कर लेखक के अनुसार यह थी कि दोनों न केवल ब्राह्मण थे बल्कि उच्च कुलीन ब्राह्मण थे। मुसलमान बनने के बाद भी नर्गिस कि नानी में लेखक को उच्च कुलीन ब्राह्मण रक्त ही नज़र आया। थू है ऐसे लेखक और धर्म पर जिसमें इंसान का पीछा न तो जाति छोडती है और जाति पर गर्व करनेवाले उसे छोडने में अपनी हेठी समझते है.

जातीय अहंकार का यह हिस्सा देखने लायक जो है .

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

जातीय जनगणना एक साल खिसकाने पर शरद खफा


 Sep 14, 08:39 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। वर्तमान जनगणना से अलग अगले साल जाति जनगणना करवाने के कैबिनेट के फैसले पर फिर विरोध शुरू हो गया है। जाति जनगणना को लेकर संसद में काफी उग्र रहे जद-यू अध्यक्ष शरद यादव ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा के नेता प्रणब मुखर्जी ने संसद का भरोसा तोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार का फैसला न सिर्फ पैसे की बर्बादी है बल्कि यह पूरी जनगणना का उद्देश्य ही विफल कर देगा। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को पत्र भेजकर उन्होंने पुनर्विचार करने और वर्तमान जनगणना में ही इसे लागू करने की मांग की है।
जाति जनगणना को लेकर विपक्षी दलों ने पिछले दो संसदीय सत्रों में लगातार सरकार पर दबाव बनाया था। पिछले दिनों कैबिनेट ने इसे हरी झंडी तो दे दी लेकिन जून से सितंबर 2011 के बीच जाति जनगणना कराने का फैसला किया। शरद ने मंगलवार को इस पर आपत्ति जताते हुए कहा, सरकार अपना वादा नहीं निभा पाई। पहले भी सरकार ने भरोसा दिलाया था कि वर्तमान जनगणना के साथ ही इसे लागू किया जाएगा लेकिन उसे टाल दिया गया। जाति जनगणना के पीछे मंशा केवल पिछड़ों की संख्या जानना नहीं है बल्कि यह जानना भी जरूरी है कि वे कितने पिछड़े हैं। यह तभी हो सकता है जब जाति जनगणना वर्तमान जनगणना के साथ ही हो। जाति जनगणना अलग से करवाने पर इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। शरद ने कहा कि यह पैसे की भी बर्बादी है। वित्त मंत्री व जाति जनगणना पर बने मंत्री समूह के अध्यक्ष प्रणब को पत्र लिखकर उन्होंने अपनी आपत्ति जता दी है
(दैनिक जागरण से साभार)

सोमवार, 13 सितंबर 2010

जाट बिगाड़ेंगे कॉमनवेल्थ खेल

नई दिल्ली /मेरठ/हिसार. लेट-लतीफी और भ्रष्टाचार से पहले ही विवादों में घिरे राष्ट्रमंडल खेलों की राह में अब जाट बिरादरी ने बाधा बनने की धमकी दी है। जाट नेताओं का कहना है कि यदि केंद्र सरकार ने उनकी आरक्षण की मांग को पूरा नहीं किया तो वे खेल नहीं होने देंगे। आयोजन स्थल राजधानी दिल्ली की पानी की आपूर्ति ठप कर देंगे। साथ ही शहर में सब्जी, दूध आदि भी नहीं आने देंगे। 

राजमार्ग जाम 

जाटों ने अपनी मांग के समर्थन में सोमवार को मेरठ में राष्ट्रीय राजमार्ग को काफी देर तक बंद रखा। बाद में पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने काफी मशक्कत के बाद जाम हटवाया और यातायात सामान्य हुआ। वहीं, मोहद्दीन में जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले जाटों ने केंद्र के प्रति कड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा कि सरकार उनके आंदोलन को हल्के में लेने की कोशिश न करे। 

हिसार में हिंसा 

आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के हिसार में जाटों ने सड़क जाम किया। इन पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक १६ वर्षीय छात्र की मौत हो गई। इसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। इन लोगों ने पुलिस को खदेड़ते हुए कैट चौकी, मय्यड़ पेट्रोल पंप और कॉपरेटिव बैंक को आग के हवाले कर दिया। आठ वाहनों को भी फूंक दिया। हिसार-रेवाड़ी रेलवे मार्ग पर पटरी उखाड़ दी। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंका और उन्हें लाठियों से पीटा भी।
(साभार दैनिक भाष्कर )

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...