डॉ. लाल रत्नाकर
बहुजन और दलित केवल और केवल जीवित रहने के लिए दलित बना रहना चाहता है, और रोज़ मरता है, हर पल मरता है, जब जीने की आस छोड़ देता है तब बहुतों को मारता है. यही मरने और मारने की दशा को उत्सव बना दिया गया, बनियों ने व्यापर के लिए उत्सव गढ़े, हम उस पर निछावर होते रहे , आतिशबाजियों से आनंदित होते रहे , मन के भीतर से उनके लिए श्रद्धालू होते रहे वे हमें या बहुजन को ललचाते रहे अपने त्योहारों से जब की -
उनकी दीवारों की पुताई
दरवाज़ों की सफाई
फर्श की घिसाई
गमलों की सफाई
माटी के दीयों की गढ़ायी
कोल्हू से तेल
कपास की
बुआयी, कटायी और सफाई
सजावटी ढेरों सारे
सामान नुमा मेरी रचनाएँ
उनके घरों की शोभा
इन्ही बहुजनों के
कुशल हाथों के कमाल है
पर बहुजन है की
मान के लिए परेशान है
ठगी करके
इन्ही के अंगूठे
कटाने वाले अपने गुमान
को बढ़ाने के लिए
उत्सव मनाने और मनवाने में
बहुजन को
दलित को
बिरत कर
बने हुए महान है .
क्रांति कभी
आयातित नहीं होती
और उसे करने के लिए
केवल पुरुषार्थ ही
आगे आता है
दलित कभी दलित
नहीं होता
वह असल में असली
इन्सान होता है
'बेईमानों' की मंडली
ने सदियों से
उसको ठग कर
फुसलाकर, उसके हक़ और हुकुक को
हड़पकर,
उसे दलित और
पद दलित बनाये
रखना चाहता है .
कानून
कितने दिनों से
किसके लिए काम कर रहा है ,
सदियाँ हुयी
निरहू को न्याय के नाम पर
कमर तोड़ मेहनत
क़र्ज़ की उगाही
वकीलों और 'न्यायलय'
का परिसर
हड़प ही रहा है
पर न्याय
तो अन्याय को ही
बढ़ा रहा है.
ठाकुर की बेटी
को निरहू ने नहीं भगाया था
निरहू को वही भगाकर ले गयी थी
पर कटघरे में
निरहू खड़ा है
न्याय करने वाले कहते है,
ठाकुर की बेटी
तो निरपराध है
निरहू का अपराध
यही है की वह दलित है
नहीं तो ठाकुरों
के घर की बेटी
और निरहू की हिम्मत कैसे हुयी
झुनिया के संग
रंगे हाथों तुद्दा सिंह
जब पकड़ा गया
तो झुनिया का मुहं काला कर
सरे आम बाज़ार में, गली में
ठाकुरों के चमचों ने
बेशर्मी से घुमाया था
शाम को ठाकुरों के
घर दारुओं की सौगात में
पूरा गाँव नहाया था.
क्योंकि
निरहू और झुनिया
दलित थे
दलित का हक़ बिना
पंडित
के नहीं मिलता.
क्योंकि पंडित को ठाकुर
और ठाकुर को पंडित
मदद करता है ,
और दलित कभी
पंडित की और कभी
ठाकुर की ही तिमारदरी करता है.
इसीलिए
जब कोई दलित
होनहार निकल जाता है
तो उसे पंडित
या ठाकुर
अपनी बेटियां सौपने में
कोई कोताही नहीं करता
उसे दलित / बहुजन नहीं 'साहब'
कहता है.
बेटी,
बहन जी की वजह से
बहन जी की वजह से
बहुजन के अधिकार
हड़प लेता है.