शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

बहुजन और दलित केवल और केवल

डॉ. लाल रत्नाकर   
बहुजन और दलित केवल और केवल जीवित रहने के लिए दलित बना रहना चाहता है, और रोज़ मरता है, हर पल मरता है, जब जीने की आस छोड़ देता है तब बहुतों को मारता है. यही मरने और मारने की दशा को उत्सव बना दिया गया, बनियों ने व्यापर के लिए उत्सव गढ़े, हम उस पर निछावर होते रहे , आतिशबाजियों से आनंदित होते रहे , मन के भीतर से उनके लिए श्रद्धालू होते रहे वे हमें या बहुजन को ललचाते रहे अपने त्योहारों से जब की -
उनकी   दीवारों की पुताई                                                                       
दरवाज़ों की सफाई 
फर्श की घिसाई 
गमलों की सफाई 
माटी के दीयों की गढ़ायी
कोल्हू  से तेल 
कपास की 
बुआयी, कटायी और सफाई 
सजावटी ढेरों सारे 
सामान नुमा मेरी रचनाएँ 
उनके घरों की शोभा 
इन्ही बहुजनों के 
कुशल हाथों के कमाल है 
पर बहुजन है की 
मान के लिए परेशान है
ठगी  करके 
इन्ही के अंगूठे 
कटाने वाले अपने गुमान 
को बढ़ाने के लिए 
उत्सव मनाने और मनवाने में  
बहुजन को 
दलित को 
बिरत कर 
बने हुए महान है .
क्रांति कभी 
आयातित नहीं होती 
और उसे करने के लिए 
केवल पुरुषार्थ ही 
आगे आता है 
दलित कभी दलित 
नहीं होता 
वह असल में असली 
इन्सान होता है 
'बेईमानों' की मंडली 
ने सदियों से 
उसको ठग कर 
फुसलाकर, उसके हक़ और हुकुक को 
हड़पकर,
उसे  दलित और 
पद दलित बनाये 
रखना चाहता है .
कानून 
कितने दिनों से 
किसके लिए काम कर रहा है ,
सदियाँ हुयी 
निरहू को न्याय के नाम पर 
कमर तोड़ मेहनत 
क़र्ज़ की उगाही 
वकीलों और 'न्यायलय'
का परिसर 
हड़प ही रहा है 
पर न्याय 
तो अन्याय को ही 
बढ़ा रहा है.
ठाकुर  की बेटी 
को निरहू ने नहीं भगाया था 
निरहू को वही भगाकर ले गयी थी
पर  कटघरे में 
निरहू खड़ा है 
न्याय करने वाले कहते है,
ठाकुर  की बेटी
तो निरपराध है 
निरहू का अपराध 
यही है की वह दलित है 
नहीं तो ठाकुरों 
के घर की बेटी 
और निरहू की हिम्मत कैसे हुयी 
झुनिया के संग 
रंगे हाथों तुद्दा सिंह 
जब पकड़ा गया 
तो झुनिया का मुहं काला कर 
सरे आम बाज़ार में, गली में 
ठाकुरों के चमचों ने 
बेशर्मी से घुमाया था 
शाम को ठाकुरों के 
घर दारुओं की सौगात में 
पूरा गाँव नहाया था.
क्योंकि 
निरहू और झुनिया 
दलित थे 
दलित का हक़ बिना 
पंडित 
के नहीं मिलता.
क्योंकि पंडित को ठाकुर 
और ठाकुर को पंडित 
मदद करता है ,
और दलित कभी 
पंडित की और कभी 
ठाकुर की ही तिमारदरी करता है.
इसीलिए 
जब कोई दलित 
होनहार निकल जाता है 
तो उसे पंडित 
या ठाकुर 
अपनी बेटियां सौपने में 
कोई कोताही नहीं करता 
उसे दलित / बहुजन नहीं 'साहब' 
कहता है.
बेटी,
बहन जी की वजह से 
बहुजन के अधिकार 
हड़प लेता है.

सोमवार, 1 नवंबर 2010

मगरमच्छों व शार्को का भ्रष्ट नापाक गठजोड़

 दैनिक भाष्कर से साभार 
जनता के मन में जो बात वर्षो से रह-रहकर उठती रही है, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी के जरिए रिकॉर्ड पर ला दिया है। आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपी एक सरकारी अधिकारी को निरपराध मानते हुए न्यायमूर्ति मरकडेय काटजू और ज्ञानसुधा मिश्रा की बेंच ने जो निर्णय दिया, उससे निश्चित रूप से एक अलग संदेश समाज में गया है।

आंध्रप्रदेश के सहकारिता विभाग के एक जूनियर इंस्पेक्टर के पास सिर्फ 2.63 लाख रुपए मूल्य की आय से अधिक संपत्ति निकली, जिस पर निचली अदालत ने 1996 में उसे सश्रम कारावास की सजा सुना दी थी। इस बीच पिछले करीब 14 वर्षो में न जाने कितनी तारीखें उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में लगी होंगी। वकीलों की फीस, यात्राओं, फोटो कॉपी, कोर्ट फी आदि में निश्चित ही 2.63 लाख से ज्यादा रुपए खर्च हुए होंगे। लेकिन मूल मुद्दा न्यायालय की उस मौजू टिप्पणी का है, जिससे सरकार को सीख लेनी चाहिए।

सरकार मगरमच्छों और शार्को को तो छोड़ देती है और छोटे अफसरों को प्रताड़ित करती है। यह कहा है सुप्रीम कोर्ट ने इस छोटे भ्रष्टाचार के मामले में। यह सर्वविदित है कि बड़े अफसर अक्सर नेताओं आदि से सांठगांठ कर हर तरफ से बच जाते हैं। भ्रष्ट नेता भी कम ही जेल जाते हैं या उनकी कुर्सी खिसकती है। एक बार यदि कुर्सी छिन जाती है तो कुछ दिनों के बाद जोड़-तोड़ और लेन-देन के जरिए फिर मिल जाती है। हमारे देश में सरकारी अफसर, राजनेता और अन्य प्रभावशील लोगों का दृश्य व अदृश्य गठबंधन काफी तगड़ा है। इसे तोड़ना मुश्किल भी है और शायद कोई चाहता भी नहीं कि यह टूटे। साधारण जनमानस इस गठजोड़ के खिलाफ है, पर उसकी सुनता कौन है। इस पृष्ठभूमि में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी और सरकार को लगाई गई फटकार का महत्व है।

दुख इस बात का है कि यह फटकार टीवी और अखबारों में दो-चार दिनों तक ‘खबर’ के रूप में रहेगी, फिर स्मृति से ओझल हो जाएगी। सरकार की कार्यप्रणाली इससे बदलेगी और बड़े, प्रभावशाली व ताकतवर सरकारी अफसर (आईएएस, आईपीएस आदि) डरेंगे और सुधरेंगे, यह कम संभव दिखता है। मुश्किल यह भी है कि लोकपाल, लोकायुक्त, सीबीआई, भ्रष्टाचार निवारक अन्य संस्थाओं के बढ़ते अधिकारों के बावजूद देश में अनैतिक दौलत का लोभ व आकर्षण कम होता नहीं दिखता। कॉमनवेल्थ गेम्स इसका ताजा और शर्मनाक उदाहरण हैं।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

क्या क्या कर रहे है ये तकनीकी संस्थान-लिपस्टिक की गाज मिनी स्कर्ट पर !

डॉ.लाल रत्नाकर 
"आईआईटी को हमेशा उच्चस्तरीय अध्ययन और शोध के लिए जाना जाता है और वहाँ इस तरह की प्रतियोगिता दुर्भाग्यपूर्ण है.
इस प्रतियोगिता की अनुमति देने के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल को भी बर्ख़ास्त किए जाने की मांग उठ रही है.
कोतवाली पुलिस ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए कॉलेज प्रशासन को चिठ्ठी लिखकर पूछा है कि इस बारे में क्या कार्रवाई की जा रही है.
उधर कॉलेज प्रशासन इस किरकिरी से बेइंतहा खीजा हुआ है. कॉलेज में डीन, स्टूडेंट्स वेल्फेयर प्रो. एनके गोयल ने कहा, "लिप-लिपस्टिक प्रतियोगिता एक अनौपचारिक इवेंट था और आयोजन समिति को इसकी कोई जानकारी नहीं थी."
प्रो. गोयल ने बताया, "इस मामले की जांच की जा रही है. ये छात्रों के लिए तय आचार संहिता का उल्लंघन है इसके लिए ज़िम्मेदार छात्रों की पहचान करके उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी."
उपर्युक्त ख्याल पहले क्यों नहीं आया इसका मुख्य कारण प्रशासन के स्तर पर अयोग्य अधिकारी बनाना है यहाँ से निकले लोग जिम्मेदारियों में कुशल माने जाते है, वहीँ वहां इस तरह की नादानी समझ में क्यों नहीं आयी ? 
आईआईटी रूड़की में ‘लव-लिप-लिपस्टिक’ प्रतियोगिता से उठे विवाद और फ़जीहत के बाद अब कॉलेज प्रशासन ने मिनी स्कर्ट पहनने पर पाबंदी लगा दी है.
रजिस्ट्रार की ओर से एक सर्कुलर जारी करके छात्राओं से कहा गया है कि वो कॉलेज परिसर में मिनी स्कर्ट न पहनें.
आईआईटी रूड़की के सालाना समारोह थॉम्सो में इस बार कुछ अलग तरह का इवेंट करने की चाहत में लिप लिपस्टिक प्रतियोगिता रखी गई जिसमें छात्रों ने अपने मुंह में लिपस्टिक रखकर पार्टनर छात्राओं के होठों पर लगाया.
जब इसे अश्लील करार देते हुए सवाल उठाया गया, तो कॉलेज की प्रतिष्ठा और संबंधित अध्यापकों की भूमिका पर गहरे सवाल उठने लगे.
ख़बर है कि मीडिया में इसे दिखाए जाने और उससे हुई बदनामी के बाद इसमें शामिल कई छात्राएं सदमे में हैं और बीमार पड़ गई हैं.
नाम जाहिर न करने की शर्त पर इसमें शामिल हुई एक छात्रा ने कहा, "हमने तो सिर्फ़ फ़न के लिए ऐसा किया था और हमारे दिमाग़ में ऐसी कोई बात नहीं थी. हमें नहीं पता था कि ये मस्ती हमें इतनी भारी पड़ जाएगी."
इस बीच लिप-लिपस्टिक प्रतियोगिता पर विवाद और बढ़ता ही जा रहा है.

शिकायत

हिंदूवादी संगठनों ने अश्लील प्रदर्शन का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है और आयोजकों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने की मांग की है.
इस मामले की जांच की जा रही है. ये छात्रों के लिए तय आचार संहिता का उल्लंघन है इसके लिए ज़िम्मेदार छात्रों की पहचान करके उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी
प्रोफ़ेसर गोयल
उत्तराखंड महिला आयोग ने इस पर गहरी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आयोजकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग की है.
आयोग की अध्यक्ष सुशीला बलूनी ने कहा कि, "ये शर्मनाक और भारतीय संस्कति की गरिमा के विरूद्ध है."
आईआईटी को हमेशा उच्चस्तरीय अध्ययन और शोध के लिए जाना जाता है और वहाँ इस तरह की प्रतियोगिता दुर्भाग्यपूर्ण है.
इस प्रतियोगिता की अनुमति देने के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल को भी बर्ख़ास्त किए जाने की मांग उठ रही है.
कोतवाली पुलिस ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए कॉलेज प्रशासन को चिठ्ठी लिखकर पूछा है कि इस बारे में क्या कार्रवाई की जा रही है.
उधर कॉलेज प्रशासन इस किरकिरी से बेइंतहा खीजा हुआ है. कॉलेज में डीन, स्टूडेंट्स वेल्फेयर प्रो. एनके गोयल ने कहा, "लिप-लिपस्टिक प्रतियोगिता एक अनौपचारिक इवेंट था और आयोजन समिति को इसकी कोई जानकारी नहीं थी."
प्रो. गोयल ने बताया, "इस मामले की जांच की जा रही है. ये छात्रों के लिए तय आचार संहिता का उल्लंघन है इसके लिए ज़िम्मेदार छात्रों की पहचान करके उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी."
बहरहाल इस विवाद से कॉलेज के थॉम्सो समारोह के रंग में भंग पड गया है. छात्र-छात्राओं में गहरी मायूसी है और कॉलेज प्रशासन भी चौतरफ़ा हो रहे हमलों और अपनी साख को लेकर परेशान है.
(बी.बी.सी.हिदी से साभार)

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बहस

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राम लला   
बाबा विश्वनाथ और
राहुल बाबा 
डॉ.लाल रत्नाकर

उजरे हुए दयार के नायक और महा नायक 'राम लला' वहीँ बीच वाली गुम्बद के नीचे ही रहेंगे यह फैसला तीन जजों कि बेंच ने दे दिया है, विश्व हिन्दू परिषद् ,निर्मोही अखाडा और मुसलमानों को दे दिया है (इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ पीठ ने गुरुवार को अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि घोषित किया है. तीन जजों की बेंच के बहुमत से आए फ़ैसले में विवादित ज़मीन को हिंदू, मुसलमान और निर्मोही अखाड़े के बीच,
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अब सवाल खड़ा होता है कि बाबा विश्वनाथ का क्या होगा क्या उन पर भी आस्था का कहर बरपेगा कब और कैसे यह सवाल उसी तरह चल रहा है जैसे राहुल बाबा का देश भ्रमण और इस इरादे से कि यह देश कैसा है, स्वर्गीय राजीव जी इस देश कि माटी के साथ मिल गए है क्योंकि जिस महिला ने मानव बम के रूप में अपनी क़ुरबानी दी उसे शायद कांग्रेसियों जितना राजीव जी के बारे में जानकारी नहीं रही होगी नहीं तो वाह शायद आगे आकर इस तरह का काम इन्जाम न करती.
स्वर्गीय  राजीव गाँधी के बारे में जीतनी जानकारी है उससे उनके पायलट होने और पोलिटिशियन होने कि जानकारी तो सार्वजनिक है पर उनका राष्ट्र प्रेम कहीं गाँधी जैसा तो किसी को नहीं खटक रहा होगा, यह सवाल कम से कम उभरकर आया है ऐसा लगभग अब तक कि जानकारी से पता चलता है, राजनीति में इनका आना नेहरू और इंदिरा कि विरासत थी या सचमुच इन्हें राजनीती में रूचि थी यह सब सवाल खोज के हिस्से हो गए है पर जो ज्वलंत है वह है 'राहुल बाबा' का राजनीती का चश्का 'देखने' सुनने से तो नहीं लगता कि इस बाबा में कोई करामाती सोच होगी 'कंग्रेशियों कि लत पड़ गयी है बंशबाद कि जी हुजूरी कि सो अलग बात है पर इनके बश का इतना विशाल देश है सो लगता नहीं कि इनसे संभालने वाला है.
कहते है कि इनकी यूथ टीम है जिसमे इन्ही जैसे लाडले आये है इन्ही कि देखा देखी अन्य दालों के युवा पुत्र पुत्रियों कि राजनीती में आमद इस प्रकार के बहादुर योद्धा आ रहे है जो एक नया 'राजतन्त्र' गढ़ेंगे जिसमे न तो देश कि दशा पर चर्चा होगी और न ही विकास कि कोई दिशा होगी, उधार का सपना होगा और ये जब राज करेंगे तो इनके चहेते देश लूटेंगे नाना प्रकार के तरीके से .

क़ैस ज़ौनपुरी की कविता - मंदिर

कविता.
मंदिर
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मैं अपने रास्‍ते से
जा रहा था
रास्‍ते में देखा
एक मंदिर था
किसी देवी का
लाल रंग से पुती हुई
चुनरी में लिपटी हुई
मैंने सिर झुका लिया
आते-जाते, जहां भी
मंदिर देखता हूं
सिर झुका लेता हूं

लेकिन क्‍या हुआ कि
कुछ लिखा था, जो
मैंने पढ़ लिया
अब जब पढ़ लिया
तो पूरा पढ़ लिया
लिखा था
श्री चौरामाई मंदिर
सुन्‍दरपुर, वाराणसी
अध्‍यक्ष - त्रिभुवन सिंह
कोशाध्‍यक्ष - संजय सिंह
उपाध्‍यक्ष - प्रभाकर दुबे
उपप्रबन्‍धक - अषोक कुमार पटेल
आय-व्‍यय निरीक्षक - मुन्‍ना लाल सिंह
रजिस्‍टर्ड - 841
प्रबन्‍ध समिति
आपका हार्दिक
स्‍वागत करता है.
प्रबन्‍धक - लालचन्‍द प्रसाद

मैंने सोचा
चलो....क्‍या करना है....?
हमें तो बस सिर झुकाना है
मगर सिर झुकाने के बाद
जब सिर उठाया, तो भी
कुछ था, लिखा हुआ
कुछ था, पढ़ने के लिए
स्‍वर्गीय बच्‍चा लाल श्रीवास्‍तव
द्वारा भेंट (ग्रिल)
मतलब, मंदिर का दरवाजा
इन्‍होंने लगवाया था
मुझे तो यही समझ में आया
फिर भी, मैंने अपना ध्‍यान हटाया
सिर्फ चौरामाई को देखा
वहां भी
चौखट पर लिखा था
जय माता दी
जय चौरामाई
और वहीं बगल में
संगमरमर के पत्‍थर पर
खुदाई करके
लिखी गई थी
दानदाताओं की सूची
रामप्रसाद - 101 रुपया
जयदेव सिंह - 290 रुपया
कन्‍हैया लाल - 100 रुपया
.................. - ...................
................... - ..................
.................... - .................
- क़ैस ज़ौनपुरी.
(टीप - कविता में दिए गए स्थान व व्यक्तियों के नाम पूर्णतः काल्पनिक हैं, और किसी जीवित-मृत व्यक्ति से संबंधित नहीं हैं)  







शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

फैसले से मुसलमान ठगा सा महसूस कर रहा: मुलायम


Oct 02, 02:23 am


(मुलायम सिंह यादव मुसलमानों के रहनुमा तो है ही यह बात कोई नई नहीं है पर इनकी इस छबि पर ग्रहण लगाने के इरादे काम कर चुके है सो आशंका तो खड़ी ही होती है की क्या यह नए सिरे से उन तेवरों के साथ खड़े हो पायेंगे जिसके लिए इन्हें 'मुल्ला मुलायम का नाम मिला था' इस पर ठीक से अमर सिंह ही बता सकते है, पर इतना तो तय है की हिंदुस्तान का मुसलमान जिन आक्रोसों का मुकाबला कर रहा है वह उसे इस देश पर भरोसे के लायक नहीं छोड़ रहा है. भले ही दबे मान से ही सही मुलायम सिंह ने यह बात स्वीकार की हो की इंसाफ नहीं हुआ है , यह बात जायज़ है 'राम लला हिन्दू आस्था के प्रतीक हो सकते है' पर उनका इस्तेमाल ईंट पत्थर की तरह करना बेमानी ही है, सच्चाई तो यही है की उनकी मूर्तियाँ वहां इसी तरह से पहुचाई गयी थी जैसे यह फैसला आया है . यह बात और घातक हो जाती है जब फैसले में एक मुसलमान एक ब्राह्मण और एक बनिया जज नियुक्त किया गया हो 'दिलीप मंडल की यह बात की जजों के बारे में कुछ भी कहना न्यायालय की अवमानना नहीं है,' अतः यह तो तय है की जो कुछ भी किया गया है सोच समझकर देश को फिर एकबार गुमराह करने के लिए किया गया है .
यहाँ यह बात उतनी ही प्रासंगिक है जीतनी मंडल के समय कमंडल का हमला आज फिर एक उसी तरह का झमेला खड़ा कर दिया था 'पिछड़ी जातियों की संख्या की गिनती करने की, समझदार मंत्री समूह आँखों में धूल तो डाल ही गया है यादवों के तीनों पहलवानों को और उनके जुटाए पिछड़ों के नेताओं की आँखों में, पर इनकी नियति को पहचानिए -
१.गृहमंत्री पी.चिदंबरम का बयान 'बाबरी विध्वंश के मुकदमे पर कोई असर नहीं पड़ेगा...
२.प्रधान मंत्री का बयान 'धैर्य धारण करें'.
आज यही मुलायम सिंह अपनी समाजवादी विचारधारा को तार तार करने के बाद जिस चिंता को कर रहे है वह अब उतनी पैनी नहीं रही, बात तो हज़ार नहीं लाख टके की है की 'फैसला' ठीक नहीं हुआ है और इसका खुलासा सुप्रीम कोर्ट करेगा उम्मीद की एक लकीर मात्र ही है .
चलिए कम से कम मुलायम सिंह यादव ने यह स्वीकार किया कि मुसलमान पशोपेश में है ?
मै  कई मुसलमानों से बातचीत में पाया कि कहीं न कहीं गड़बड़ है .
डॉ.लाल रत्नाकर 
खबर दैनिक जागरण से साभार )
लखनऊ, जागरण ब्यूरो। 'अयोध्या विवाद का हल आपसी बातचीत से निकले या फिर न्यायालय निकाले।' अब तक यह राय रखने वाली समाजवादी पार्टी शुक्रवार को नया रुख अख्तियार करती नजर आयी। पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या फैसले की बाबत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा , 'इस फैसले से देश का मुसलमान ठगा सा महसूस कर रहा है। पूरे समुदाय में मायूसी है।'
फैसले के दिन खामोशी अख्तियार करने वाली सपा ने शुक्रवार को चुप्पी तोड़ी। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पार्टी मुख्यालय में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में एक पन्ने का लिखित बयान पढ़ कर और उसे जारी करते हुए अयोध्या फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुलायम ने क्या कहा, उन्हीं की जुबानी :
'देश आस्था से नहीं संविधान एवं कानून से चलता है। यह बात मैने 1990 में तब कही थी, जब पूरे देश में अयोध्या पर आक्रमण की तैयारियां चरम सीमा पर थीं। मैने उस समय चेन्नई में सम्पन्न राष्ट्रीय एकता परिषद में बड़े दुखी मन से कहा था कि मेरी स्थिति महाभारत के अर्जन की तरह हो गयी है क्योंकि मुझे संविधान और कानून की रक्षा के लिए अपने ही लोगों पर सुरक्षाबलों से गोलियां चलवानी पड़ सकती है। मैंने टस से मस हुए बिना अपने कर्तव्य का पालन किया था।'
उन्होंने आगे कहा, 'कल अयोध्या पर फैसला आया। यह देख कर मुझे निराशा हुई है कि न्यायिक निर्णयों में आस्था को कानून और सुबूतों से ऊपर रख कर फैसला दिया गया है। यह देश के लिए, संविधान के लिए एवं न्यायपालिका के लिए अच्छा संकेत नही है। आगे चल कर इस निर्णय से अनेक संकट पैदा होंगे। इस फैसले से देश का मुसलमान ठगा सा महसूस कर रहा है। पूरे समुदाय में मायूसी है। मैं समझता हूं कि वह पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में जायेगा जहां सुबूतों एवं कानून के आधार पर फैसला आयेगा जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।' सपा प्रमुख ने इसी के साथ पत्रकारों के किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया।
इससे पूर्व मुलायम सिंह यादव नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद अहमद हसन और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ सबेरे नदवा कालेज गये। वहां उन्होंने पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी से मुलाकात की। दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई। माना जा रहा है दोनों में अयोध्या फैसले के बाबत ही विचार विमर्श हुआ।

आईएएस व आईपीएस के परिजन भी मैदान में उतरे |





(ये नए समाज के अलमबरदार तैयार हो गए है गाँव संभालने को इन्होने पूरे सूबे को जो शक्ल दी है वही योजना लेकर आये है गाँव की हसीं ख़ुशी को अपनी मनहूस उदासी से सराबोर कर भ्रष्टाचार बिखेरने इनसे बचाना चहिये . आईये इनके खिलाफ एक मोर्चा हम भी बनायें .

डॉ.लाल रत्नाकर )

खबर दैनिक जागरण से साभार - 


मेजा, इलाहाबाद : सरकार ने जिस प्रकार पिछले दस वर्षो में पंचायतों को अधिकारों से लैस किया है इससे इसका आकर्षण युवाओं में ही नहीं अधिकारियों के परिजन में भी बढ़ा है। यही कारण इस बार के पंचायत चुनाव के समर में आईएएस एवं आईपीएस के परिवारीजन भी प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसा कुछ उरुवां विकास खंड में देखने को मिल रहा है। यहां पर रसूख वाले कई उच्चाधिकारियों के पिता, भाई एवं भतीजे प्रधानी के लिए मैदान में हैं।
विकास खण्ड उरुवां जिसे चौरासी के नाम से जाना जाता है, में पंचायत चुनाव का रंग कुछ ज्यादा ही चटक है। कारण यह है कि यह चौरासी का इलाका बुद्धिजीवियों का इलाका माना जाता है। यहां की धरती ने दो दर्जन से भी ज्यादा आईएएस एवं आईपीएस दिये है। इस बार पंचायत के चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कुवंरपंट्टी गांव के दुर्गा चरन मिश्रा आईपीएस सेवा में हैं। इनके पिता त्रिभुवन नाथ मिश्रा गांव की प्रधानी के लिए खड़े हुए हैं। मजे की बात यह है कि इनके सामने जो प्रत्याशी जीत कुमारी मिश्रा हैं, वह क्षेत्रीय विधायक आनन्द कुमार पाण्डेय (कलेक्टर पाण्डेय) की सगी बहन हैं। वर्तमान में वह गांव की प्रधान भी हैं। ऐसे में यहां की प्रधानी की जंग काफी दिलचस्प हो गई है। सोरांव गांव के पंडित का पुरा निवासी आद्या प्रसाद पाण्डेय पिछले माह डीजीपी पंजाब के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उनके छोटे भाई कौशलेश प्रसाद पाण्डेय गांव के प्रधानी के प्रत्याशी हैं। इसी प्रकार से अटखरियां गांव निवासी पूर्व डीआईजी राजेंद्र सिंह के भाई शीतला प्रसाद सिंह गांव में प्रधानी के लिए चुनावी मैदान में हैं। यही नही भिंगारी गांव के रमेंद्र नाथ मिश्रा पूर्व अपर आयुक्त रहे हैं लेकिन वे भी पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी हैं। ये तो चंद उदाहरण है ऐसे और भी उच्चाधिकारी है जिनके परिवार के लोग पंचायत के चुनाव में जोर आजमाइश कर रहे हैं और उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यही नहीं इस इलाके में क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों के चहेते भी चुनावी मैदान में है जिसको लेकर राजनीति की गुणा गणित कुछ ज्यादा ही हो गई है। कुल मिलाकर मेजा तहसील के तीनों ब्लाकों में मेजा, माण्डा एवं उरुवां के राजनीतिक दंगल को देखा जाए तो उरुवां ब्लाक में सबसे ज्यादा दिग्गजों के बीच घमासान है।

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

न जाने कितने वीरपाल भूखमरी से जुझने को मजबूर




न जाने कितने वीरपाल शहादत देंगें इस गूंगी बाहरी व्यवस्था में, कहने को तो दलितों की मुखियां up की मुखियां है पर जो खेल उनकी आँखों के आगे चल रहा है सो भयावह है -साभार जागरण से

गढ़मुक्तेश्वर, संवाद सहयोगी : गरीब दलितों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। क्षेत्र में अनेक दलित वीरपाल की तरह तंगहाली और बीमारी से परेशान होकर अपनी जिंदगी को बोझ की तरह ढो रहे हैं। बीपीएल का लाभ भी इन गरीबों को नहीं मिल पा रहा है। इनमें से कई के कच्चे पक्के मकान बरसात में गिर गए तो अब उनके पास सिर छुपाने के लिए भी कोई साधन नहीं बचा है। फिर भी प्रशासन उदासीन बना हुआ है।
मुख्यमंत्री मायावती ने तीन साल पहले प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद 11 बिंदुओं पर योजना बनाकर अंबेडकर ग्राम योजना के तहत उसे लागू करने की घोषणा की। इन 11 बिंदुओं में गरीब व दलितों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए उन्हें बीपीएल योजना से जोड़ना भी शामिल था। बीपीएल कार्डधारक को इंदिरा आवास योजना, सस्ता राशन तथा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ निहित कर दिया गया। लेकिन जिन गरीब दलितों का जुगाड़ नहीं है उनके पास बीपीएल कार्ड भी नहीं हैं। वहीं सुविधा शुल्क लेकर अपात्र लोगों को बीपीएल कार्ड थमा दिए गए, जिसका लाभ साधन संपन्न लोग उठा रहे हैं। वहीं, दलित वीरपाल के तरह न जाने कितने लोग अपनी तंगहाली व बोझ बनी जिंदगी को ढो रहे हैं।
नगर के मोहल्ला अहाता बस्ती राम निवासी लीला अपने बीमार पति का इलाज कराते कराते तंगहाली में आ गई है और उसके पास आय का कोई साधन भी नहीं है। बरसात में उसका घर गिर गया। बीमार पति नैन सिंह व बेटी पूजा के साथ ही उसके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं बच पाई। इसी मोहल्ले के इंद्र प्रसाद पुत्र टीकाराम बीमार हैं। मजदूरी एक महीना से नहीं मिल पाई तो जिंदगी बोझ बन गई। विधवा धर्मवती की हालत भी ऐसी है, खेतों में पानी भरने के कारण उसे वहां काम नहीं मिल रहा है और वह तीन छोटे-छोटे बच्चे के साथ बदहाली के साथ है। परशुराम पुत्र सावलिया बीमार होने पर तंग हो गया। सेंगेवाला मोहल्ला निवासी मुखराम का पुत्र डूंगर बीमार है, ऊपर से उसे बंदर ने काट लिया। लेकिन सरकारी अस्पताल में उसे एक इंजेक्शन लगाकर भगा दिया गया। लेकिन प्राइवेट अस्पताल में वह इलाज नहीं करा सकता, क्योंकि उसे कई दिन से मजदूरी नहीं मिल पा रही है। इन सभी परिवारों के पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं तो सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है। इसके चलते वे अपनी जिंदगी कीड़े मकोड़े की तरह जीने को मजबूर हैं। क्षेत्र के गांव दौताई, खिलवाई, लोदीपुर छपका व नया गांव इनायतपुर में मलिन बस्ती में गंदगी की भरमार है। तालाबों का गंदा सड़ा पानी दलितों के घरों में तीन महीने से घुसपैठ कर रहा है। बदबू में सांस लेना मुश्किल है। लेकिन वहां दलित रहने को मजबूर हें। खास बात यह है कि जिला अधिकारी, उप जिलाधिकारी व खंड विकास अधिकारी से ग्रामीणों ने बार-बार शिकायत दर्ज कराई। तीन दिन पहले बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सांसद नरेंद्र कश्यप ने बाढ़ प्रभावित गांवों का जायजा लिया तो दौताई गांव में दलितों के घरों में पानी घुसने का मामला फिर से उठाया गया।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि वीरपाल ही नहीं न जाने कितने लोग लगातार भूख और बीमारी से तंग होकर मर रहे हैं या फिर आत्महत्या को मजबूर हैं

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