गुरुवार, 15 जुलाई 2010

जिनका सामाजिक सरोकार रहा है !


एसा नहीं की पिछड़ी जातियां एका-एक आ गयी और सारी समस्या खड़ी हो गयी .
मुंशी राम सुन्दर यादव
(से एक मुलाकात जो पिछले दिनों जून २०१० के पहले सप्ताह उनके गाँव में हुयी 'रसिकापुर' जौनपुर जनपद का एक परंपरागत गाँव है जहाँ ज्यादातर यादव आवादी है बाकि थोड़े से और लोग है जो सामाजिक तौर तरीके से इन्ही के आस पास के है)
ऐसे ही कुछ लोग जिन्हें हम यहाँ लगा रहे है उनका सामाजिक सरोकार रहा है , बहुत सारे आंदोलनों को उन्होंने गति दी है भले ही उन आंदोलनों का परिणाम उनके प्रतिकूल गया हो पर सारा आन्दोलन खड़ा ही उनके प्रयासों से था .
मुझे याद है १९९१ के विधानसभा उत्तर प्रदेश के चुनाव होने थे और मै दिल्ली में डॉ.संजय सिंह तब संचार मंत्री थे स्वर्गीय चंद्रशेखर जी के मंत्रीमंडल में उनके यहाँ आया हुआ था कुछ लोगों को टेलीफोन के कनक्शन की सिफारिश करनी थी . तब टेलीफोन के मायने होते थे और महानगरों में लम्बी कतार लैंड लाईन टेलीफोन की, खैर यह सारे काम हो गए पर ३१. हुमायूँ रोड के  संचार भवन के अतिथि निवास में प्रवास जो राजनीति की खुमारी का मुकाम बना टेलीफोन की सुबिधा और टिकट बटवारे के दौर का नज़ारा, निहायत विचारहीन सुविधाभोगी राजनेताओं का जमावड़ा उन दिनों कांग्रेस के गर्दिश के दिन और भाजपाईयों का 'मंडल' का विरोध और 'कमंडल' का हमला करके 'विश्वनाथ प्रताप सिंह' के राज्य का पतन और श्री चंद्रशेखर जी का सत्तानासिन किया जाना.  
जिसके निहितार्थ थे अगड़ी जातियों के क्योंकि श्री चंद्रशेखर जी पिछड़ी जातियों के अघोषित शत्रु थे और पिछड़ी जातियों के कुछ नेता उनके भक्त बने हुए थे जिनका उनके लिए कोई मायने नहीं था केवल अपनी चौधराहट चलाने के स्व.चंद्रशेखर जी ये जानते थे, यद्यपि उन दिनों पिछड़ों की राजनीती के बहुत सारे वरिष्ठ और कनिष्ठ तमाम तरह के नेता थे पर वह कहीं न कहीं धोखे में थे, जिनको लग रहा था की उनका कोई समझदार नेता आ गया तो उनकी दुकान ही बंद हो जाएगी (यह बात इसलिए भी प्रासंगिक है की कई पिछड़े राजनेताओ की गति और दुर्गति इसी चालाकी के चलते हुयी है) पर स्व.चंद्रशेखर जी जो स्वभाव से पिछड़ों के विरोधी थे.वे पिछड़ों के सारे आन्दोलन को कुंद करने में कामयाब हो गए थे.
यही कारण है की पिछड़ों के बड़े नेता कभी एक साथ आकर नहीं खड़े हुए, अक्सर चंद्रजीत जी इस बात को स्वीकारते थे की कहीं न कहीं यह गड़बड़ हो रही है, पर बाकि नेता स्व.श्री चंद्रजीत यादव को पचा नहीं पा रहे थे या उनका अन्दर का बौनापन उन्हें उनके पास आने से रोकता था. पर यादव जी की महत्वाकांक्षा और उनका राजनैतिक कैरियर तथा उनका आन्दोलन सब कुछ इस स्तर का था की कई पिछड़े नेता खामखाह इनसे इर्ष्या करते थे जिसकी सारी जानकारी उन्हें थी पर वो चाहकर चलकर उन्हें समझाना चाहते थे पर कौन समझ रहा है .

इसी तरह अनेक पिछड़ों के बुद्धिजीवी रातदिन एक करके चिंतन करते सामाजिक बदलाव के बारे में  सोचते थकते नहीं थे पर कुंद बुद्धि राजनेता जनता को बेवकूफ बनाने के अलावा जो कर रहे थे उस पर आज सी.बी.आई. की नज़र है, या तो उनके भाई भतीजे या कुटुम्बी हरपने को तैयार बैठे है. इस प्रथा का सबसे अधिक असर पिछड़े नेताओं पर हुआ है उतना शायद और नेताओं पर नहीं दुखद यह है की पिछड़े समाज का विखंडन करने में जितना योग इन समकालीन नेताओं ने किया है उतना उन्होंने नहीं जो स्वाभाविक विरोधी थे, कभी भी इन पिछड़े नेताओं ने अपनी क्रीम को राजनीति में आने से जितना रोका उतना तो पराये भी नहीं. जबकि स्व.श्री चंद्रजीत यादव हमेशा अच्छे लोगों को राजनीती में लाने के पक्षधर रहे, पिछड़ों की महिलाओं को हमेशा आगे लाने के लिए आन्दोलन चलाये -
डॉ.लाल रत्नाकर 

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