रविवार, 8 दिसंबर 2013

दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !


बदलाव-2014

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विकल्प हीनता के कारण सपा और बसपा के समर्थक भी उससे किनारा कर लेंगें यदि ये दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !
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रेखाचित्र ; डॉ लाल रत्नाकर 

सभी दलों से दलित पिछड़े खींचे चले आयेंगे जो नहीं आये तो जनता उन्हें धकेल कर किनारे कर देगी .
बदलाव के प्रासेस में स्वाभाविक है मेरी बात नेताओं को भी ठीक न लगे पर है ये जरूरी, इसे आम आदमी से लेकर सारे बुद्धिजीवी पसंद करेंगे. क्या दिक्कत है ये नेता सत्ता क्यों नहीं चाहते. क्यों ये सत्ता में बैठे चोरों और अपराधियों के शिकंजे में ये जकडे रहना ही पसंद करते हैं, इस मकड जाल को तोड़कर
आओ गले लग जाओ 'राजनीती में कोई अछूत और दुश्मन नहीं होता' तो आप भी अपना हठ छोडो और "गाँठ" जोड़ो, बनाओ गठबंधन और पुरे देश में अपनी सत्ता फैलाओ, पुरे देश के बुद्धिजीवी आपका इंतज़ार कर रहे हैं पुरे देश की अवाम आपको दिल्ली का ताज -2014 में सौपना चाहती है.
कब तक हम महापुरुषों का नाम लेकर भाग्य की माला जपते रहेंगे उन्होंने उस समय के समाज को चुनौती दी थी तभी वो आगे बढे, अब की तरह नहीं की बगैर संघर्ष के नहीं मिलने वाला कुछ। कांशीराम ने इस सदी में ही अपने संघर्षों से सत्ता प्राप्त करने का मंत्र दिया, पर मायावती को गलत फहमी हो गयी की उन्हें यह सत्ता 'ब्राह्मणों ने दी' यही गलती 'नेताजी को है की उन्हें सत्ता सवर्णों ने दी है। 
सामाजिक बदलाव के इस स्वरुप से ही असली बदलाव होगा, किसी को देश से निकालने की जरूरत नहीं है सबको 'इमानदारी और जिम्मेदारी से काम करने की व्यवस्था दलित और पिछड़े ही दे सकते है.' सदियों से शोषक जातियां अपने समुदाय के हित के लिए 'राष्ट्र' हित को नकारकर समुदाय हित के चलते 'बहुसंख्य' आबादी को तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।
एकतरफ देश में बेरोजगारी आसमान छू रही है दूसरी तरफ ये अपनी चौधराहट में बिदेशी कंपनियों को खुली छुट देकर देश को कंगाल और रोजगार बिहीन बनाकर 'मंनरेगा' और न जाने कितने तरह के 'भिक्षा अभियान' को बढ़ावा रहे हैं। 
यदि इनके पास योजना नहीं है तो इन्हें राज करने का कोई अधिकार ही नहीं है, ये केवल पूंजीपतियों के लिए योजना तैयार करते हैं और तमाम आवादी को मजदूर बनाकर रखते हैं।
अतः अब योजना ऐसी बनानी चाहिए जिसमें जनोपयोगी रोजगार को बढ़ावा मिले असमान पूंजी की भण्डारण व्यवस्था पर रोक लगे, प्रतिस्पर्धा का साफ़ सुथरा मानक लागू हो .
आइये इन्हें लागू कराने के लिए एकजूट हों 
और नेत्रित्व को तैयार करें .
अन्यथा पिछड़ों दलितों और अल्पसंखयकों का, 
नहीं तो केजरीवाल जैसे लोग आयेंगे और अवाम को भरमाएंगे, उदितराज, योगेन्द्र यादव जैसे चिंतकों को क्या आपको जरूरत नहीं है, यदि ऐसा है तो कांग्रेस कि मातम पुर्शी में लगे रहो और "नरेंद्र मोदी" गरजते गरियाते आयेंगे और ये भाजपा वाले सदियों सदियों की सामजिक परिवर्तन कि लड़ाई को अपने लिए इस्तेमाल करेंगे।
-डॉ लाल रत्नाकर 

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

समाजवाद के ये चहरे !

समाजवाद के ये चहरे ! डॉ.लाल रत्नाकर 

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अमर सिंह और नरेश अग्रवाल में क्या फर्क है !

समाजवादी पार्टी को बर्बाद करने में इन दोनों के बयान बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ! आपको याद होगा जबतक अमर सिंह सपा में थे इसी तरह बडबोलापना करते करते कांग्रेस के 'दलाल' के रूप में काम करते रहे जो जग जाहिर है, उसकी उन्हें उनकी कीमत मिलाती थी जिसमें इजाफा भले ही हुआ पर उन दिनों माननीय नेताजी का गंभीर और महत्त्व पूर्ण कद बौना होने लगा था. जिसे किसी तरह रोका गया पर अब ये नए विचारवान श्री नरेश अग्रवाल कहाँ से अवतरित हो गए हैं.आश्चर्य होता है की इन दलालों को समाजवाद से क्या लेना देना ! क्या भाजपा से वास्तव में कोई इनकी बड़ी डील है जो ये अपने मुह से उस बात को जिसे भाजपा चाहती है, चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री न बनाने की (बनने) बात कर रहे हैं यह स्टेटमेंट देखें ; दैनिक भास्कर से साभार -

''चाय बेचने वाला नहीं बन सकता पीएम''

समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने नरेंद्र मोदी के साथ ही देश के चाय बेचने वालों और देश-समाज की जी जान से सुरक्षा कर रहे सिपाहियों पर कटाक्ष किया है। उन्होंने बुधवार को कहा कि ऐसा व्यक्ति जो चाय बेचता रहा हो उसका राष्ट्रीय दृष्टिकोण नहीं हो सकता। वह देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।
हरदोई से आने वाले असरदार नेता नरेश ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। चाय की दुकान से ऊपर उठने वाले का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य नहीं हो सकता। जैसे अगर आप सिपाही को पुलिस कप्तान बना दें तो उसका कभी नजरिया नहीं बड़ा हो सकता। उसकी सोच सिपाही की ही रहेगी।’ एक सभा में अग्रवाल ने कहा, ‘देश का प्रधानमंत्री राष्ट्रीय व्यक्तित्व वाला समर्थ व्यक्ति होना चाहिए। जहां तक भीड़ का सवाल है वह तो मदारी भी जमा कर लेता है।‘
मोदी अपनी चुनावी सभाओं में गांधी-नेहरू परिवार पर यह कहते हुए निशाना साधते रहे हैं, 'उन्होंने गरीबी नहीं देखी, लेकिन मैंने इसे झेला है। मैं गरीबों का दर्द जानता हूं।' पटना में 27 अक्टूबर को हुई हुंकार रैली में मोदी ने कहा, 'मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था। मैं गरीबी में पला बढ़ा हूं। मैंने रेलवे स्टेशनों और ट्रेन में चाय बेची है। जो लोग ट्रेन में चाय बेचते हैं वे रेलमंत्री से ज्यादा रेलवे को जानते हैं।' मोदी के बारे में कहा जाता है कि जब वे महज 6 साल के थे, तभी अपने पिता की मदद वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में करते थे। 
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सपा को कोई तो तो बचाए न जाने कहाँ से इन बुद्धि बांकुरों को उठाकर सपा में ला दिया गया है, यदि इनसे कोई पूछे की यदि चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री के योग्य नहीं तो "सपा में गाय भैंस चराने वाले" ज्यादा हैं उन्हें तो मुख्यमंत्री भी बनने बनाने के वे हिमायती नहीं होंगे. यह प्रदेश क्या श्री नरेश अग्रवाल की जागीर है !
एक थे अमर सिंह ! दुसरे हैं माननीय नरेश अग्रवाल, नरेश जी हम जिस इलाके से आते हैं हैं वहां एक कहावत है की ' क्या बनिया की छेड़ मरकही' बात ये है की नरेश जी जिस बिरादरी से आते हैं माना जाता है की उनसे तो कोई भी 'दुह' दुहना का मतलब निकालने से है यानी बनिए से तो कोई भी कितना भी निकाल सकता है यानी ऐसा सरल ऐसी बकरी के माफिक होता है, जिसे कहीं भी कोई भी दुह ले, लेकिन इनका रोज़ का बेहूदा बयांन सपा की नीतियों के खिलाफ नहीं जा रहा है क्या ? क्या ये जानते हैं गरीब गुरबे और संघर्षशील जातियां समाजवादी पार्टी में भरोषा रखती हैं विशेषकर दलित और पिछड़े या मुस्लिम पर ये तो पतंग बाज़ी करते होंगे वहां बैठकर की 'सवर्णों' और बनियों ने सरकार बनाई है, (मैंने सूना और देखा है ऐसे तिकडम्बाज़ नेताओं को जो इसी तरह की जुगाली करते नहीं थकते)  इनको पता नहीं समाजवादी और पूंजीवादी में क्या फर्क है ' .
माँ.नरेश अग्रवाल आप 'पूंजीवाद' व्यवस्था के समर्थक सम्प्रदाय के उत्पाद हो मोदी 'मज़दूर' श्रेणी से है आप समाजवादियों के खेमें में हो ! मोदी पुजिवादियों के ! आपकी तुलना मोदी से करना 'बे - मानी' है !(आप गलत फहमी न पालें) पर यह गणित आपको नहीं आती होगी आपको दौलत बनाने का गुना भाग जरूर आता होगा. 
गणित यह है की आपकी वजह (बेहुदे बयानों) से ही गरीब गुरबे सपा से "दूर' होते जायेंगे और आपके भाई बंद तो पहले से ही सपा को गालियाँ देते नहीं थकते, अतः आप सपा के जड़ में गरम गरम मट्ठा डाल रहे हो *****जबकि मोदी भाजपा को (जहाँ आपके सारे बड़े बड़े एवं खाने पीने के (मिलावटी), दवा, दारु, तेल (खाने पिने और पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, सुगन्धित और बदबूदार), फल, सब्जी, मांस, लकड़ी, सीमेंट, लोहा,किताब, कापी, डीग्री बेचने की दुकाने खोले बैठे हुए सारे भाई बंद, यथा हर तरह के सामान 'बेचने' वाले यानी जूता, चपपल, साडी, पेटीकोट, चोली, अंडर वीयर, रूमाल , चूड़ी और कंगन, लिपस्टिक, सेविंग क्रीम से लेकर हेयर रेमुवर बनाने वाले और चरणबद्ध तरीके से बेचने वाले, परचून से लेकर माल चलाने वाले हैं ) जहाँ गरीबों और राष्ट्र प्रेमियों के लिए 'वोटों का इंतजाम कर रहा हो, देश की विदेशी महारानी के खिलाफ अभियान चलाया हो ऐसे में आप, सपा के लिए या भाजपा के लिए काम कर रहे हों नरेश जी ! कभी दिल पर हाथ रखकर सोचो. नेता जी समाजवादी और सज्जन और गरीब, मजदूर और किसानों के मसीहा रहे हैं, उन्हें 'पूंजीवादियों की तरफ मत धकेलो ? यह खामियाजा प्रदेश को ले डूबेगा ! (नरेश जी आप जानते हो भाजपा को प्रदेश में कोई शिकस्त दे सकता है तो वह 'नेता जी' आप सपा को अंदर से कमजोर कर रहे हो)
"कुतर्कों की कमी नहीं होती किसी के नाश के लिए वो तो हमलोग भी जानते हैं" पर आप जैसी घटिया राजनीति से तौबा कर ली थी हमने, अब समझ में आता है की ये 'नेताजी' लोग कैसे अपनी नीतियों के खिलाफ हो जाते हैं, उसमें योगदान होता है आप जैसे पूंजीवादियों का. जिसका खामियाजा भोगती हैं बिचारवांन और राष्ट्रप्रेमी कौमें और आप और देश हित के लिए पहुंचती है सिपाही के रूप में आपकी रक्षा के लिए जिन्हें भी आप भ्रष्ट बनाते हो अपने भ्रष्टाचार के लिए, जो नहीं भरती हो पाते हैं पुलिस में वो बेचते हैं चाय या चाय बनाने का दूध .
राज करते है नरेश अग्रवाल और उनके 'सु' या 'कु' पूत !!!
जो इन्हें/उन्हें बोलने की आज़ादी है वो क्या और किसी को उसे विश्लेषित करने की भी नहीं है समाजवाद में . समाजवादी साथियों ; जागो !
(समाजवादियों को इसपर मुहं खोलना होगा अन्यथा ये नए समाजवादी समाजवाद का नामों निशान मिटा देंगें।)
क्रमशः। ...................... 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

कुचक्र रचती है कांग्रेस !

कांग्रेस पिछड़ों के हिस्से को यदि देश की जागरूक जातियों में 'वोट' के लिए बांटना शुरू किया वोट तो उसको मिलेंगे नहीं और पुरे देश में ये सन्देश जाएगा की ये पिछड़ों की विरोधी है . जो वास्तव में है भी इसके अंदर बैठे कांग्रेसी इस की नियति को निति को बजे समाजवादी रखने के जातिवादी और 'द्विजवादी' बनाकर सत्यानाश पर आमादा है, वास्तव में बीजेपी इनकी बी टीम है ये उसे जिताने की तैयारी कर रहे हैं, इन्होने राहुल को मुस्लिम युवाओं के खिलाफ बोलने की राय दी जिससे 'जाट' खुश हों, पर ओ उलटा पड़ गया, अब जाटों को आरक्षण की बात कर रहे हैं, न इन्हें आचार संहिता का डर है और न क़ानून का.

यदि ये अपने कुचक्र से बाज़ नहीं आये तो इन्हें 'बंगाल की खाड़ी' में जनता डालेगी ! 

जाटों पर चुनावी दांव लगाने को सरकार तैयार

congress political bet on jat community

संबंधित ख़बरें

वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाला जीओएम ओबीसी श्रेणी में जाटों का कोटा तय करने की सिफारिश करने पर विचार कर रहा है। दरअसल सरकार अपने इस सियासी दांव से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा को चित करना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि इन राज्यों में इस बिरादरी की अच्छी खासी संख्या चुनाव नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करती रही है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इस बिरादरी की संख्या अच्छी खासी है।
जीओएम में शामिल एक मंत्री के अनुसार फिलहाल आरक्षण की मांग पर सभी का रुख सकारात्मक है। जीओएम ने अब तक आरक्षण के पक्ष में विभिन्न जाट संगठनों और राज्य सरकारों के दावों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है। अब इस बारे में जल्द ही निर्णय ले लिया जाएगा।
उक्त मंत्री का कहना था कि ज्यादा संभावना जीओएम द्वारा जाटों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का कोटा तय करने की सिफारिश की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि बेहद विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में घिरे हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने कई बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात कर इस संबंध में जल्द निर्णय का अनुरोध किया था।
हालांकि एनसीबीसी के सूत्रों का कहना है कि उसकी पहली सिफारिश, जिसमें जाट बिरादरी को आरक्षण देने के लायक नहीं माना गया था, के आधार पर अदालत सरकार के फैसले को फिर से पलट सकती है। वैसे भी वर्ष 2011 में भारी दबाव के बाद सरकार ने एनसीबीसी को अपने फैसले की समीक्षा का अधिकार दिया।
इसके बाद एनसीबीसी अलग से जाटों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आईसीएसएसआर से अध्ययन कराया है। हालांकि आईसीएसएसआर ने फिलहाल अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

रविवार, 3 नवंबर 2013

सवर्णवादी सोच के निहितार्थ ; पिछड़ी राजनीति !

सन्दर्भ;सुश्री अनुप्रिया के नाम 

डॉ.लाल रत्नाकर 
अनुप्रिया जी छोडिये दीवाली को ! 
यह पाखण्ड की परम्परा थोथे आदर्शों को ढोने का 'सवर्णीय' हथकंडा है निरंतरता और सतत संघर्षों से हटाने का उनका हथियार ! देश के कई हिस्सों में जातियों से जुड़े पर्व पाखण्ड के तौर पर लोकप्रिय बना दिए गए हैं जिससे उनका (जन सामान्य) ध्यान बटाए रखा जाय ! आपका आन्दोलन दबाये जाने के सारे कुचक्र किये जा रहे हैं उन अपराधिय जातियों द्वारा जिन्होंने 'सता के लिए सारी मर्यादायों का खात्मा कर दिया है' मैं फेसबुक से आपकी सक्रियता से तो वाकिफ ही हूँ, जमीनी हकीकत से जैसा लोग अवगत कराते रहते है, उससे आपका आन्दोलन 'कुर्मियों' के खेमे में डालने की पूरी साजिश हो रही है यथा आपको उससे सावधान रहना होगा, पिछडा नेत्रित्व विहीन है,समुचित नेत्रित्व से ही यह आन्दोलन धार पकड़ेगा, अभी तक इसके मूवमेंट का सारा श्रेय ऊँची जातियों को ही जाता रहा है (आज़ादी के पहले के हिस्से को छोड़ दें) लोहिया, विपि सिंह आदि पर राजनैतिक रूप से स्वर्गीय श्री राम स्वरुप वर्मा राम सेवक यादव , चंद्रजीत जी मन से इसे आगे ले जाना चाहते थे, अब सक्रीय रूप से श्री शरद यादव जी इसके लिए चिन्हित होते हैं, लालू, मुलायम, नितीश इस आन्दोलन के प्रति अपना गैर ज़िम्मेदाराना रूप दीखा चुके हैं, आज यह जिम्मेदारी आप जिस सिद्दत से उठाये हुए दीख रही हो उससे पूरा पिछड़ा बुद्धिजीवी आपके साथ खडा होगा, मुझे जो डर है अपढ़ पिछड़े इसके टूकडे न कर डालें, मैं जानता हूँ इसके लिए सवर्णों के पास नुख्सों की कमी नहीं है. जिसका असर अब तक के सभी राजनेताओं पर देख चुका हु / जिसे आप भी महशुस कर रही होंगीं. अतः आप इस दायित्व को जिम्मेदारी से उठाएंगी और हमेशा इसका ध्यान रखेंगी की इन जातियों के रिश्ते के आपसी धागे बहुत नाज़ुक हैं, कोई भी ज़रा सा जोर लगाता है तो वो टूट जाते हैं, और सदियाँ गुजर जाती हैं उन्हें जोड़ने में. आज श्री मुलायम सिंह 'सवर्णों' को जोड़ने में लगे हैं पिछड़ों के सदियों के संघर्षों के परिणामों से प्राप्त हक को तोड़कर ! इसकी सज़ा क्या होगी ये तो वक़्त ही बतायेगा !  
अब जो उत्तरदायित्व आप के हिस्से आया है उसमें इमानदारी बरतनी होगी, राजनीती को तो उन्होंने घिनौना बनाकर छोड़ा है, जिससे आप इसे नकारात्मक लें अतः आप सावधान रहें यही मेरा सुझाव है.    

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

सरोकार

डॉ.लाल रत्नाकर 
उत्तर प्रदेश की सरकार के सरोकार क्या हैं, सवर्णों के हकों की रक्षा करना या सवर्ण बन जाना, इन सब मुद्दों पर विचार करने का वक़्त आ गया है.
पिछली सरकार जितना संबर्धन 'द्वीजों' का की आज़ादी से अब तक किसी भी सरकार में नहीं हुआ रहा होगा, अब लगता है यह समाजवादी सरकार पिछली सरकार के आंकड़े तोड़ने में लगी है.
यही सारे कारण है की आज के लम्बे संघर्षो से प्राप्त पिछड़ों के हक़ को ये सरकार समाप्त कर दी है, यह सवर्ण मानसिकता नहीं तो क्या है, जब स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री) ने मंडल कमीशन लागू किया तो सारे सवर्ण उन्हें क्या क्या नहीं कह रहे थे - कुर्मी है ........या क्या ओ बी सी है / और बहुत कुछ यहाँ तक की यह राजपूत ही नहीं है ....
यदि समाजवादी पार्टी के नए लोहिया को अपना ही नारा भूल गया है -
समाजवादियों ने बाधी गाँठ, पिछड़ा पाए सौ में साठ !
अतः अब सरोकार का सवाल है सरकारें तो आती जाती रहती हैं जहाँ चाह वहां राह निकाल ही लेती अवाम !  


बुधवार, 18 सितंबर 2013

उत्तर प्रदेश की सरकार किसके लिए;

लोकसभा में भी सुनाई देगी आरक्षण की गूंज

इलाहाबाद (ब्यूरो)। त्रिस्तरीय आरक्षण को लेकर शुरू हुआ आंदोलन का दायरा बड़ा होता जा रहा है। जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव तक पहुंच, अपना दल की अनुप्रिया पटेल का आंदोलन में शामिल होना, इंडियन जस्टिस पार्टी के डॉ. उदित राज का इससे जुड़ना इस बात का संकेत है कि इसकी सियासी गूंज लोकसभा चुनाव में भी सुनाई देगी। अलग-अलग दलों के नेताओं का एक मंच पर आना एक नए सियासी समीकरण का संकेत भी माना जा रहा है। आरक्षण समर्थक पहले ही इस बात की घोषणा कर चुके हैं और छोटी-छोटी सभाओं के जरिए इसका मंच भी तैयार कर चुके हैं। जिस तरह से तमाम पाबंदियों तथा चप्पे-चप्पे पर पुलिस की पहरेदारी के बावजूद पिछड़ी जाति की कई उपजातियों और संगठन के लोग आरक्षण बचाओ महापंचायत के लिए निकले, गिरफ्तारी दी, पुलिस लाइन में फोर्स की मौजूदगी में बेखौफ हो सभा की उससे साफ है कि यह आंदोलन व्यापक होता जा रहा है।
आंदोलन के बाद ही इसका संकेत दे दिया था कि आगामी लोकसभा भी इससे अछूता नहीं रहेगा। आंदोलन की अगुवाई करने वाले अजीत यादव, दिनेश यादव, मनोज समाजसेवी, लालाराम सरोज आदि का साफ तौर पर कहना है कि वे आंदोलन चुनाव तक किसी न किसी रूप में जिंदा रखेंगे। इसके लिए उन्हाेंने पूरे देश में शहर तथा गांवों में नुक्कड़ सभाओं, पर्चे बांटने आदि की घोषणा की है जिसका दौर शुरू हो चुका है। एम्स का मुद्दा संसद में उठाने वाले शरद यादव इस आंदोलन की कमान संभालने के लिए भी तैयार हैं। एक मुद्दे पर ही सही लेकिन इनकी यह एका बड़ी पार्टियों खासतौर, पर पिछड़ों की राजनीति करने वालों, और सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है। मुजफ्फरनगर तथा दंगों से संबंधित एक रिपोर्ट को लेकर चौतरफा घिरी प्रदेश सरकार के लिए मंगलवार को प्रस्तावित आरक्षण समर्थकों की महापंचायत की सफलता से परेशानी और बढ़ सकती थी। सामाजिक न्याय मोर्चा की बुधवार को बैठक होगी, जिसमे आगे की रणनीति पर चर्चा होगी।
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महापंचायत को लेकर शहर में दहशत, सैकड़ों गिरफ्तार

इलाहाबाद (ब्यूरो)। रोक के बावजूद त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था के हजारों समर्थक मंगलवार को सड़कों पर निकले और गिरफ्तारी दी। उन्होंने फोर्स की मौजूदगी में पुलिस लाइन में महापंचायत भी आयोजित की। बालसन चौराहा पर छोटे-छोटे समूह में पहुंचे आरक्षण समर्थकों को पुलिस लाइन लाया गया। ग्रामीण क्षेत्र के प्रमुख बाजारों और मार्गों पर भी सैकड़ों समर्थकों ने गिरफ्तारी दी। इंडियन जस्टिस पार्टी के डॉ. उदित राज को बमरौली एयरपोर्ट, इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष राघवेंद्र प्रताप सिंह समेत अन्य नेताओं को जंक्शन तथा शहर से बाहर ही रोक लिया गया। पुलिस के अनुसार बालसन चौराहा पर 540 तथा कुल तकरीबन सात सौ लोगों ने गिरफ्तारी दी। इसके विपरीत आरक्षण समर्थकों ने हजारों की संख्या में गिरफ्तारी दिए जाने का दावा किया है। शाम को सभी को छोड़ दिया गया। अंतिम समय में कहीं बवाल न हो जाए इसलिए उन्हें बसों से अलग-अलग मुहल्लों में छोड़ा गया। पूरे आंदोलन के दौरान राहत की बात यह रही कि कहीं से उपद्रव की सूचना नहीं है। हालांकि आंदोलन के मद्देनजर बैरिकेडिंग, जांच के कारण घरों से निकले लोगों को कुछ परेशानी जरूर हुई। बालसन चौराहा समेत कुछ स्थानों पर पुलिस को लाठी भी पटकनी पड़ी।
पूर्व की घटनाओं को देखते हुए सामाजिक न्याय मोर्चा की ओर से घोषित ‘आरक्षण बचाओ महापंचायत’ को लेकर पूरे शहर में दहशत और तनाव का माहौल रहा। जिला प्रशासन के रोक के बाद भी समर्थक इसके लिए अड़े रहे। इसको लेकर प्रदेश सरकार भी पूरी तरह से सतर्क रही। महापंचायत में शामिल होने के लिए दूरंतों ट्रेन से आ रहे जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव को गाजियाबाद तथा अपना दल की अनुप्रिया पटेल को रायबरेली में ही सोमवार देर रात को गिरफ्तार कर लिया गया। शहर तथा दूसरे जिलों से जोड़ने वाले मार्गों पर चप्पे-चप्पे पर फोर्स तैनात रही। छात्रों तथा प्रतियोगियों के बहुलता वाले इलाकों में काफी सख्ती थी। इसकी वजह से कहीं भी युवाओं का जमावड़ा नहीं हो पाया। जहां भी दो-चार लोग इकट्ठा हुए पुलिस ने उन्हें हटा दिया। इसके बाद भी आरक्षण समर्थक बालसन चौराहा पहुंचने में सफल हुए। गलियों में एकत्रित प्रतियोगी छोटे-छोटे समूह में आनंद भवन, हासिमपुर रोड, जीटी रोड हर तरफ से बालसन चौराहा पहुंचे, जिन्हें वहीं गिरफ्तार कर लिया गया। खास यह कि समर्थकों ने इसका कोई प्रतिरोध नहीं किया और नारेबाजी करते हुए पुलिस की बस, वैन में चढ़ गए। इसके बाद उन्हें पुलिस लाइन ले जाया गया। इस दौरान वे प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए चल रहे थे। पुलिस और आरक्षण समर्थकों के बीच लुका-छिपी का यह खेल दिन भर चला।

सोमवार, 16 सितंबर 2013

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को निवेदित पत्र

मेरा मानना है की बिना परिश्रम के प्राप्त मूल्य /सम्मान संपदा सत्ता की कोई परवाह नहीं होती, माया मुलायम और उनके पुत्र के साथ कुछ ऐसा ही है -

बुधवार, 14 अगस्त 2013

संघर्ष के परिणाम -

साथियों ;
संघर्ष के परिणाम -
अभी दो दिन पहले ही राजनारायण जी ने इस पोस्ट को तैयार किया है और उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के जजों का उल्लेख किये हैं उन जजों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए जिन्होंने इतना घटिया बयान दिया है !
परन्तु उम्मीद बंधी है की संसद इसे गंभीरता से ली है तमाम पिछड़े दलित सांसदों ने इस मसले को गंभीरता से उठाया है जिससे यह बयान आया है .
पर अभी इसकी गंभीरता को न्यालय की मानसिकता पर इंतज़ार करने की वजाय संसद संबिधान संसोधन लाये जो ज्यादा उपयुक्त होगा अन्यथा न्यालय इसे लटका कर रखेगा ऐसा संदेह स्वाभाविक है -


पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए : अनशन

सामजिक न्याय के लिए संघर्ष ;
 "हमें खाद्य सुरक्षा कानून और लैप-टॉप नहीं चाहिये। देना है तो हमारा संवैधानिक हक-अधिकार, भेदभाव रहित न्याय व्यवस्था और दलित-आदिवासी-पसमांदा और समस्त पिछड़ी जातियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी दे दो। हम अपने भोजन और लैप-टॉप का इंतजाम खुद कर लेंगे।" - अनुप्रिया पटेल।
उत्तर प्रदेश सरकार चाहे तो सौ फर्जी मुकदमे लाद दे पर आरक्षण समर्थकोँ के लिये हमेशा लड़ूगी। दलित- आदिवासी- पसमांदा और समस्त पिछड़ी जातियों के लिये आरक्षण की लड़ाई कोई नौकरी लेने और पैसा कमाने की लड़ाई नहीं है बल्कि समाज और जीवन के सभी क्षेत्रों में न्याय- भागीदारी-बराबरी स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई है। आरक्षण समर्थकों को बदनाम करने की साजिश बंद हो। उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस- प्रशासन आरक्षण समर्थक छात्रों को बदनाम कर रही है। प्रदेश भर में दर्ज आरक्षण समर्थक छात्रों पर से मुकदमा वापस लिया जाय और उन्हें परेशान- प्रताड़ित न किया जाय। आरक्षण समर्थक सभी क्रांतिकारी छात्र-युवाओं का सम्मान की इस लड़ाई में साथ देने के लिये शुक्रिया।
अनुप्रिया जी ..आज पिछड़ा वर्ग कराह रहा है जहाँ ज़रा भी सम्बेदना है. पर तथाकथित पिछड़े समर्थक राज्नीतिज्ञों ने जितना धोखा दिया है उतना तो सवर्ण भी न देता. जिस मंडल कमीशन को आज भी कई प्रदेश पूर्ण रुपेंन लागू भी नहीं कर पाए हैं वहीँ उत्तर प्रदेश में लोक सेवा आयोग के फैसले को जिस तरह से निरस्त किया गया है, वह बहुत ही गंभीर मसला है. यदि इसी समय इस लड़ाई को न लड़ा गया तो आने वाले दिनों में यह लटक जाएगा और द्विजों की भेंट चढ़ जाएगा. वर्तमान/निवर्तमान शासक जिस तरह से उत्तर प्रदेश में भी द्वीज बंदना में लगे हैं लगता है सब कुछ उन्हें "भेंट" स्वरुप समर्पित कर देंगे. मुझे लगता है आप साहस और हिम्मत की सोच समृद्ध लगती हैं जिसकी वजह से इमानदार तरीके से लड़ सकती हैं. आप आगे बढेंगी तो लोग आ जायेंगे. हम लोगों के पास जीतनी क्षमता है उसका भी उपयोग कर सकती हैं. 

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आरक्षण समर्थकों पर से मुकदमा हटाने की मांग
लखनऊ। आरक्षण के समर्थन में अपना दल के कार्यकर्ताओं ने सोमवार को विधान भवन के सामने तीन दिवसीय क्रमिक अनशन शुरू किया। उन्होंने मांग की है कि लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण फार्मूला लागू किया जाए। पार्टी की विधायक अनुप्रिया पटेल और आरक्षण समर्थकों के खिलाफ इलाहाबाद के जार्जटाउन थाने में दर्ज मुकदमों को शीघ्र वापस लिया जाए। अपना दल के पूर्व विधायक ज्वाला प्रसाद यादव के नेतृत्व में प्रदेश और जिला स्तर के पदाधिकारी क्रमिक अनशन में शमिल हुए।
उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्र व राज्य में बैठी पूर्व और वर्तमान सरकारों ने हमेशा ओबीसी और एससीएसटी का हक मारा है। वोट की राजनीति के कारण उक्त वर्ग का हक मारने का काम किया जा रहा है। अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। नसिं।
(हिंदुस्तान)

13 अगस्त, 2013 को आरक्षण के समर्थन में लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश विधान भवन के सामने चल रहे क्रमिक अनशन के दूसरे दिन अपना दल की राष्ट्रीय महासचिव व विधायक अनुप्रिया पटेल ने देश और प्रदेश की सरकारों से दलित-आदिवासी-पसमांदा और समस्त पिछड़ों को ठगने का धंधा छोड़कर आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की वकालत की। सत्ता के केन्द्रों- मीडिया,ब्यूरोक्रैसी,जुडीशियरी आदि में बैठे मठाधीशों के द्वारा आरक्षण के खिलाफ किये जा रहे साजिश को खत्म करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन की जरूरत पर बल दिया। अनुप्रिया पटेल ने आरक्षण समर्थकों पर थोपे गये मामले को फर्जी बताते हुये राज्य सरकार से मुकदमें वापस लेने की अपील की और कहा कि इन्हे परेशान-प्रताड़ित करने का अंजाम बुरा होगा।

पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए सुश्री अनुप्रिया पटेल ने अपना दल की ओर से 12-13-14 अगस्त, 2013 
को तीन दिवसीय क्रमिक अनशन का कार्यक्रम उत्तर प्रदेश विधानसभा के सामने रखा गया था। हमारी प्रमुख 
माँगे थी कि- UPPSC में त्रिस्तरीय आरक्षण फॉर्मूला लागू हो। आरक्षण समर्थकों पर से मुकदमा वापस हो और पुलिस-प्रशासन आरक्षण समर्थकों को परेशान-प्रताड़ित करना बंद करे। साथ ही उत्तर प्रदेश में 2007-2012 और 2012 से अबतक दलित-आदिवासी-पसमांदा- समस्त पिछड़ी जातियों को मिले सभी स्तरों की नौकरियों के बारे में राज्य सरकार श्वेत पत्र जारी करे। इस आंदोलन को लेकर बड़े भाई डॉ.लाल रत्नाकर ने पोस्टर बनाकर समर्थन किया जिसके लिये धन्यवाद। आप सभी शुभचिंतकों, समर्थकों, विचारकों को भी विचार-भावनात्मक समर्थन के लिये धन्यवाद। हमारा संघर्ष जारी रहे यही अपील है।



सोमवार, 1 जुलाई 2013

छत्तीसगढ़ का पिछड़ा आन्दोलन !

प्रेस विज्ञप्ति            
 दिनांक 30/06/2013

बस्तर से भी बड़ी पिछड़ा वर्ग अधिकार यात्रा सरगुजा संभाग से आएगी।

     रायपुर, आज राज्य पिछड़ा वर्ग समाज समन्वय समिति, के प्रदेश समन्वयक सदस्यो की महत्वपूर्ण बैठक, न्यू सर्किट हाउस मे आहूत की गई। बैठक मे सरगुजा संभाग के समस्त जिलो के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया । बैठक मे अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमुख मांगो के संबद्ध मे विस्तार पूर्वक चर्चा हुई जिसमे प्रमुख रूप से नौकरी, प्रमोशन,शैक्षणिक संस्थायों मे जनसंख्या के आधार पर या कम से कम 27% आरक्षण सहित अन्य प्रमुख मांग शामिल है। समन्वय समिति के कोर कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक मे सरगुजा संभाग के प्रतिनिधियों ने सरगुजा संभाग मे आंदोलन करने की रूप रेखा बनाई।
     इस कड़ी मे आगामी 7 जुलाई को राज्य पिछड़ा वर्ग समाज समन्वय समिति की प्रदेश स्तरीय बैठक चंद्राकर छात्रावास, महादेव घाट रोड, रायपुर मे आयोजित की गई है। बैठक मे छत्तीसगढ़ के चारो संभागों के समस्त जिलो के प्रतिनिधि उपस्थित हो कर भावी कार्यकर्मों के आयोजन तथा सरगुजा से आने वाली पिछड़ा वर्ग अधिकार यात्रा जो की चारामा  से निकली  अधिकार रैली से  बड़ी रैली की वयवस्था के संदर्भ मे विस्तृत चर्चा की जाएगी ।
         समन्वय समिति के प्रवक्ता मोहन चंद्राकर एवं शांतनु साहू ने बताया के आज के इस बैठक मे प्रमुख रूप से शांतनु साहू, मोहन चंद्राकर, माधव यादव, इं. नारायण साहू, जी. एल. बीजोरा, महेश देवांगन, बसंत तारक, लीलाधार चंद्राकर, प्रहलाद रजक, कैलाश गुप्ता, मुरारी लाल गुप्ता, बंटी कश्यप, हीरा देवांगन, नन्द किशोर गुप्ता,पुष्कर कहार, विनय कुमार, सुरेश गुप्ता आदि गणमान्य समाज के प्रमुख लोग उपस्थित थे।
                                       मोहन चंद्राकर  / शांतनु साहू,
                                  9977002275 / 9425208

बुधवार, 5 जून 2013

वाह नेता जी ;

"प्रदेश की नौकरशाही में बड़ा फेरबदल हो सकता है। इसके संकेत प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने बुधवार को बृजेंद्र स्वरूप पार्क में आयोजित पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में दिए।"

संभवतः कुछ लोग इस पर विश्वास भी कर रहे होंगे, पर ऐसा है नहीं अभी पिछले दिनों संज्ञान में आया था की 'नोएडा' में उन्ही अधिकारियों को लोट (बड़ी संख्या) में पोस्ट किया गया है जो पिछली सरकार में यहाँ पोस्ट थे, यह खेल कितनी आसानी से समझ में आता है, नेताजी लोग किसको उल्लू बना रहे हैं, पिछले दिनों ही एक 'पिछड़ों के एक ईमानदार अफसर को इन्होने ही बदलकर एक सवर्ण अफसर को अपने यहाँ पोस्ट किया है, वर्ग चेतना की इससे बड़ी मिशाल तो कभी मिलेगी ही नहीं.
हो सकता है ये नेता हम लोगों की बातों को मजाक में लें 'हसी में टाल दें' पर इनका ख्याल आते ही दिल दिमाग बैठने लगता है की ये सामाजिक न्याय के आन्दोलनों की देन हैं या 'विरासत' के राज्याधिकारी हो गए हैं और सहनशाह भी। इसीलिए इनसे डर लगता है कहीं ये इतने गहरे तक सारे सिस्टम को न ले जाएँ की दुबारा मौका ही न मिले सुधार और बदलाव की बात करने का। 
डॉ . लाल रत्नाकर  

यूपी: प्रदेश में बड़े फेरबदल के संकेत दिए शिवपाल ने

कानपुर/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 6 जून 2013 12:39 AM IST पर
system in up is not good
प्रदेश की नौकरशाही में बड़ा फेरबदल हो सकता है। इसके संकेत प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने बुधवार को बृजेंद्र स्वरूप पार्क में आयोजित पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में दिए।
उन्होंने मंच से कहा कि प्रदेश की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है। यह काम जल्द ही किया जाएगा। कहा कि पूर्व सरकार के समय जो अव्यवस्थाएं पैदा की गई थी वे अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाई हैं। 
यह भी कहा कि नौकरशाही काम नहीं करना चाहती है। इसे भी ठीक करना होगा। प्रदेश के जनपदों से लगातार अधिकारियों की लापरवाही की शिकायतें आ रही हैं। जिसे गंभीरता से लिया जा रहा है।
कैबिनेट मंत्री ने आरोप लगाया कि पूर्व की बसपा सरकार ने पिछड़ों के साथ काफी अन्याय किया है। नौकरशाही के बल पर और अन्य तरीकों से इन लोगों को प्रताड़ित किया गया।
यही वजह है कि पिछड़े वर्ग के लोगों में काफी गुस्सा है। जिसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में दिखेगा। पिछड़ी जाति के लोगों ने खेत खलिहान से लेकर देश को आजादी दिलाने तक विशेष भूमिका निभाई है।
ऐसे कर्मवीरों की कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों ने हमेशा उपेक्षा की। इस मौके उन्होंने कानपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी राजू श्रीवास्तव और अकबरपुर सीट से प्रत्याशी लाल सिंह तोमर को भारी बहुमत से जिताने की भी अपील की। कार्यकर्ताओं से उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा।
सम्मेलन में कानपुर के अलावा, मेरठ, सहारनपुर और आजमगढ़ मंडल से भी पार्टी से जुड़े पदाधिकारी पहुंचे। सभी अपने साथ समर्थकों की भीड़ भी लेकर आए थे।
सम्मेलन में प्रमुख रूप से कैबिनेट मंत्री बलराम यादव, गायत्री प्रसाद प्रजापति, प्रेमदास कठेरिया, रामआसरे विश्वकर्मा, जयप्रकाश, शिवकुमार बेरिया, अरुणा कोरी, लीलावती कुशवाहा, विद्यावती, पिछड़ा वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, महानगर अध्यक्ष चंद्रेश सिंह, लोहिया वाहिनी के महासचिव अरुण यादव सहित विधायक, सांसद और भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।

मंगलवार, 26 मार्च 2013

प्रसंगवश


प्रसंगवश
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इतिहास से -

".............जिन लोगों ने भी नेता जी को जाना है वह इस बात में यकीं रखते हैं की नेताजी जो कहते हैं वो करते भी हैं,देश के तमाम ऐसे लोग प्रधानमंत्री बने जिनकी जमीनी पकड़ नेताजी के मुकाबले कुछ भी नहीं ." जिन कारणों से नेताजी उन राजनीतिक ऊँचाइयों को नहीं छू पाए जिनकी उनमे क्षमता थी, उसमें उनके सहयोगियों की बहुत बड़ी साजिश भी रही है जैसे - बेनी प्रसाद से ही शुरू करता हूँ एक जमाने में नेताजी के सबसे करीबी हुआ करते थे और इस जोड़ी को लोग उम्मीदों के मशाल के रूप में देखते थे, पर बेनी बाबू अपनी कौम में ही अलोकप्रिय होते गए तब वे जिसका गुस्सा नेता जी पर उतारते फिर रहे हैं। 
दूसरे नंबर पर पंडित जनेश्वर मिश्र को लेता हूँ नेता जी ने उन्हें आजीवन सत्ता के करीब रखा पर वे कभी भी नेता जी को अपने से बड़ा नहीं होने दिए, उलटे अकेले में उनकी जीतनी भर्त्सना / निंदा हो सकती थी करते और करवाते रहे (समाजवादियों की जिस फौज का वह प्रतिनिधित्व करते थे उसमें जातिवादियों की जमात का ही बोलबाला था) पर नेताजी उनका आँख मूँद कर समर्थन करते रहे और मिश्र जी  इस संघर्ष पुरुष के श्रम का प्रसाद वैसे ही खाते रहे जैसे मध्यकाल का द्विज/बुद्धि दान के नाम पर शुद्र का माल उडाता रहा हो ! 
तीसरे नंबर पर भाई अमर सिंह सीधे सादे समाजवादी को जिन रंगारंग दुनिया की सैर करवाई कि ओ आम आदमी से दूर ही नहीं गायब ही हो गया - उन दिनों तो बस यही गीत याद आता था - अजीब दास्तान है ..... ! एक धूर समाजवादी को पूंजीपतियों की पंगत में बैठाने का अंजाम तो भाई अमर सिंह को ही दिया जाना चाहिए अन्यथा इस जमीनी जन नायक को धंधे बाजों की तरह संपत्ति बनाने वालों से क्या मोह। 
तीसरा नेत्र अगर किसी ने खोला तो ओ भाई अमर सिंह ही थे। 
भला हो बहन जी का जिन्होंने इस दलाल की और दलाली की औकात समझी और वो भी दगा दे गयी 'धरती पुत्र' को बहाना था की उनके लठैतों ने सर्किट हाउस में उनके साथ ‘लट्ठमार होली खेल ली थी’ फिर क्या था उनका भी विश्वास डगमगाया और चली गयी ‘राम दरबार में’ वहां उनका अभिनन्दन हुआ और इस सर्किट हॉउस कांड की महानायक बनाकर जलते हुए उत्तर प्रदेश की कुर्सीपर उन्हें विराजमान किया गया। तब भी  भाई अमर सिंह पानी डालने के नाम पर समाजवाद का खून पीते रहे और अपनी धमनियों को मोटी करते रहे जिससे समाजवाद का गला घोंट सकें' और गला घोंटते रहे - राज बब्बर, बेनी वर्मा, आजम खान, सिसकते रहे पर अमर भाई ‘कुतरते रहे’ क्या मजाल कोई बोलने की हिम्मत करे नेता से की ये कठफोरवा की तरह कुतर रहा है नेता जी की नियत को। 
छुटभइयों की क्या बिसात परिवार वालों की भी हिम्मत नहीं थी की भाई अमर सिंह के कर्मों पर कोई उंगली उठा सके। नेताजी को कहाँ पहुंचाकर खुद आराम करने उनदिनों स्वदेश त्याग गए थे भाई अमर सिंह ‘दवाई’का बहाना बनाकर । 
कारण पर मत जाइये ? 
कैसे भागे भाई जी आप सब जानते हैं ! 
लोग आते रहे लोग जाते रहे, लम्बी कहानी है कभी फिर लिखेंगे अभी तो (लिखना थोर समझना ढेर) 
भला हो बहन जी का वो सत्ता में आयीं और पूर्ण बहुमत से। भाई अमर सिंह फिर अपने ‘बिल’ में चले गए, समाजवाद - दलित और द्विज के आगे कमजोर पड़ गया। 
बहन जी ने सदियों की गुलामी का नामों निशाँ मिटाने का संकल्प लिया, पुराने घावों को यादकर इतिहास रचना आरम्भ किया 'राम-मंदिर' के बजाय उन्होंने आंबेडकर,फुले, कांशीराम और अपने स्मारक बनवाने आरम्भ किये जिसे रोकने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत तक ने हस्तक्षेप किया पर इतिहास बनता गया और इतिहास की तरह द्विज देखता रहा ‘जिन्हें इतिहास बनाना आता है उन्हें दौलत की कमी नहीं पड़ती’ इस इतिहास रचने की प्रक्रिया में जो भी गलत हुआ उसपर विचार सदियाँ करेंगी अभी तो इतिहास के लिए काम हो रहा था. मिडिया, बुद्धिजीवी, द्विजद्रोह और सामन्तिओ को सत्ता पर कब्जे की प्रक्रिया के डर ने झकझोर दिया। ये जुट गए भाई अमर सिंह की तरह भितरघात में और जैसे उस समय के प्रायोजित  भ्रष्टाचार की आंधी में नेता जी की सरकार चली गयी थी वैसे ही 2012 मे इतिहास रचने की प्रक्रिया रूक गयी। पर अभी खत्म नहीं हुयी है, इतिहास तो इतिहास ही है कभी रूक जाता है कभी बनने लगता है। 
पर नेताजी मान रहे हैं अब सीनियर्स की ही राजनिती नहीं रही तो उन्हें शायद यह याद नहीं है कि जब वे राजनिती में आये थे तब वे भी युवा थे पर आज के जैसे युवा नहीं, इंदिराजी भी महिला थीं और युवा नेत्री भी, उनके विरोध/समर्थन का एक बड़ा कारण यह भी था कि वह नेहरू जी  की पुत्री थीं और बहुत से अनुभवी कांग्रेसियों से उन्हें आगे ले जाया जा रहा था, तब भी इंदिरा जी को बड़ा किया जा रहा था देश को नहीं । संयोग से अब भी वही हो रहा है बिलकुल निराले ढंग से । 
इस होली पर राहुल जी (राहुल सांकृत्यायन) याद आ रहे हैं - उनकी दो पुस्तकें 1. तुम्हारी क्षय हो 2.घुमक्कड शास्त्र . अकारण नहीं याद आ रही हैं उन्होंने उसमें कहा है - पहली किताब में वह लिखते हैं ‘जब जब पिछड़े या शुद्र सत्ता की तरफ बढ़ते नजर आते हैं तब तब ऊँची जातियों के लोग लोग देश बेच देते हैं या विदेशियों को सौंप देते हैं।(कांग्रेसी इस पुस्तक को जरूर पढ़ें) दूसरी में लिखते हैं घर से निकलों जो और मिलेंगे वो भी अपने होते जायेंगे। 
आज हम इन दोनों बातों को यहाँ प्रसंगवश लाये हैं क्योंकि होली के अवसर पर यदि हम इस सच को स्वीकार कर पायेंगे की देश सबका है हमारा ही नहीं तभी हर आदमी इसे बनाने का प्रयास करेगा। 
नेताजी की चिंता कभी यह नहीं रही कि फला ने कितना दगा दिया/किया, पर उन्हें हमेशा यह याद रहता है की किसने क्या किया है। कहते हैं की नेताजी लोग जरा कान के कच्चे होते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता, क्योंकि जब तक नेता जी के कान तक सच जाएगा नहीं तब तक झूठे नाना प्रकार के प्रचार ही करते रहेगें।(कितने लोग है जो सच कहने की हिम्मत करते हैं) उनके इस बयां में भी वही सच्चाई है की ‘अब भविष्य गठबंधन सरकार का ही है-मुलायम। 
पर इस गठबंधन में होगा कौन ? 
दरअसल कितनी बड़ी विडम्बना है कि जब पिछड़ा बन रहा होगा तब दलित अलग हो जाएगा/कर दिया जाएगा, जब दलित बन रहा होगा तब पिछड़ा अलग हो जाएगा/कर दिया जाएगा, --------------- 
जब सपा और बसपा कांग्रेस को समर्थन दे रहे हों चाहे जिन भी कारणों से, ऐसी कौन सी बिडम्बना है जो ये खुद की सरकार गठबंधन से नहीं चला सकते।
इनकी इन हरकतों में गाँवों  के किस्से दृष्टिगोचर होते हैं, जहाँ एक 'लम्पट सा ........' आदमी इन्हें लड़ा रहा होता है।

बुरा न मानें  ‘होली’ है। 

डा. लाल रत्नाकर

शनिवार, 26 जनवरी 2013

ये कैसा पागलपन है कौन कहता है इन्हें बुद्धिजीवी !


दरअसल नंदी को पिछड़ों दलितों में ही भ्रष्टाचार दिखाई देता है . इसमें इनका दोष भी नहीं है। ये जिस संस्कृति और समाज से आते हैं वहां अपने भ्रष्ट 'भ्रष्ट' नज़र नहीं आते, इनके यहाँ भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार नहीं बल्कि शिष्टाचार है . अतः इन्हें पिछड़े और दलित भ्रष्ट नज़र आ रहे हैं .-

-डॉ.लाल रत्नाकर (26-01-2013 रात्रि 9.30)

आशीष नंदी ने जो बात कही है वो वन साइडेड है। सवर्ण कुंठा का प्रदर्शन है। उनको हज़ार-लाख रुपैयॆ का भ्रस्टाचार दिखाई देता है मगर लाखो हज़ारो करोड़ का नहीं। भ्रस्टाचार हमेशा ऊपर से नीचे जाता है। बड़े भ्रस्टाचार को नज़रंदाज़ करके वे अपनी सवर्ण -कुंठा का परिचय दे रहे है। और दलित-ओबीसी के लिए उनके मन में जो घृणा है वो उसकी नुमाईश कर रहे है।
-राजेंद्र यदव (26-01-2013 रात्रि -11-00 बजे)

आशीष नन्दी जी जयपुर के साहित्य मेले में जो कुछ कहा, वह बेहद शर्मनाक और अनर्गल है। माफी मांगने से उनका गुनाह माफ होने वाला नहीं। पर मैं उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई या पुलिस में शिकायत द्रद कराने का समर्थन नहीं कर सकता। वह एक बुद्दिजीवी हैं और उऩ्हें अपनी बात कहने का अधिकार है। मैं उनसे असहंमत हूं, उनका विरोध करता हूं पर वह अपनी गलत बात भी कह सकें, इसके लिए उन्हें आजादी होनी चाहिए। हम ऐसे जनतंत्र के स्वप्नदर्शी हैं।
-उर्मिलेश 'उर्मिल' (26-01-2013 रात्रि 12.00)

आशीष नंदी के बयान पर सोशल मीडिया में हलचल

 रविवार, 27 जनवरी, 2013 को 00:09 IST तक के समाचार
आशीष नंदी
बीबीसी हिन्दी के फेसबुक पेज पर आशीष नंदी के बयान से जुड़ी पोस्ट पर सैकड़ों प्रतिक्रियाएं आई हैं
जयपुर में चल रहे साहित्य महोत्सव में समाज वैज्ञानिक आशीष नंदी के विवादित बयान पर जहां दिन भर मीडिया में चर्चा चलती रही, वहीं सोशल मीडिया भी इससे अछूता नहीं रहा.
बीबीसी हिन्दी के फेसबुक पेज पर आशीष नंदी के बयान से जुड़ी पोस्ट पर कई प्रतिक्रियाएं आई हैं जिनमें कुछ तो उनके बयान का समर्थन करते हैं और कुछ बेहद तल्खी के साथ विरोध कर रहे हैं.
फेसबुक पर विजय कुमार मलिक लिखते हैं, “सही बात बोलने पर बवाल कोई नई बात नहीं है, ये आज की राजनीति की परम्परा सी हो गई है.”
वहीं राजेंद्र कुमार पांडेय की प्रतिक्रिया है, “हमारे देश में ब्राह्मण और दूसरे सवर्णों को गाली देने पर ताली मिलती है और संवैधानिक अधिकारों के तहत अपने विचार व्यक्त करने वाले की गिरफ्तारी की मांग की जाती है.”
जबकि अंजलि वर्मा की टिप्पणी है, “सच तो ये है कि कितने शर्म की बात है कि भ्रष्टाचार जैसे राष्ट्रीय मुद्दे को भी जाति के आधार पर जोड़ा जा रहा है जो कि बहुत ही भयावह है. हम कभी नहीं सुधर सकते, इससे तो कम से कम यही साबित होता है.”
एक अन्य पाठक भारत भूषण के विचार कुछ अलग तरह के हैं. वो लिखते हैं, “इस वर्ग के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाकर चपरासी भी नहीं बना सकते एवं सरकारी अस्पताल में इलाज कराकर कौन मरना चाहेगा, तो भला वो ऊपरी आमदनी का जुगाड़ क्यों न करे?"
वो कहते हैं, "एक चीज और. कुछ लोगों की अकूत सम्पत्ति देश के सभी शहरों में है क्योंकि इनके पुरखे गुलाम भारत में भी सत्ता के करीब थे, तो फिर गरीबी में पले-बढ़े लोग यदि मौका मिलने पर थोड़ा गलत कर लेते हैं तो पकड़ाते भी है, जबकि अकूत सम्पदा वालों का ये पुश्तैनी धंधा है और वर्तमान परिवेश में वे ईमानदार माने जाते हैं.”
योगेश चौधरी टिप्पणी करते हैं, “ये हम सब जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. ये इंडिया है, यहां जिसका जो मन कर रहा है, बोले जा रहा है. मेरे हिसाब से तो हम लोगों को इस मसले पर बहस करने की बजाय अपने मकसद पर ध्यान देना चाहिए. समाज में शिक्षा और जागरूकता जितनी बढ़ेगी, देश को उतना ही फायदा होगा.”
शंकर मेघवाल कहते हैं, “ये बयान गलत है, बेईमानों की कोई जाति नहीं होती.”
तो चंद्रेश खरे लिखते हैं, “यदि हिदुओं को एकजुट करना है तो आरक्षण की राजनीति बंद करनी पड़ेगी और यदि देश को एकजुट करना है तो अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति छोड़कर सबको अपनाना पड़ेगा, क्योंकि बहुसंख्यक और ऊँची जाति के बच्चे भी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से बेहाल हैं आज के भारत में.”

आशीष नंदी को तुरंत गिरफ्तार किया जाए: मायावती

 शनिवार, 26 जनवरी, 2013 को 22:45 IST तक के समाचार
आशीष नंदी
आशीष नंदी का कहना है कि वे अपने बयान पर क़ायम हैं
जयपुर साहित्य उत्सव में राजनीतिक आलोचक आशीष नंदी ने भ्रष्टाचार पर एक विवादित बयान देते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार करने वाले ज्यादातर लोग अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के होते हैं.
उनके इस कथित बयान पर बहुजन समाजवादी पार्टी प्रमुख मायावती ने उन्हें गिरफ्तार किए जाने की मांग की है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मायावती ने पत्रकारों से कहा, "उन्हें तुरंत माफी मांगनी चाहिए. हमारी पार्टी उनके बयान की भर्त्सना करती है. हमारी पार्टी राजस्थान सरकार से मांग करती है कि उनके खिलाफ तुरंत मामला दर्ज करके कड़ी कार्रवाई करे और उन्हें जेल भेज दिया जाए."
बीबीसी संवाददाता नारायण बारेठ का कहना है कि आशीष नंदी के इस बयान के बाद दौसा से निर्दलीय सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने आयोजन स्थल पर पहुंचकर हंगामा करके अपना विरोध दर्ज कराया है.
इस मामले में एक व्यक्ति की शिकायत के बाद पुलिस ने आशीष नंदी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.
जयपुर साहित्य उत्सव में परिचर्चा के दौरान आशीष नंदी ने कहा, ''ज्यादातर भ्रष्ट लोग ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के होते हैं.''
उन्होंने कहा, ''जब तक ऐसा होता रहेगा, भारत के लोग भुगतते रहेंगे.''

बयान पर क़ायम

"आप किसी गरीब आदमी को पकड़ लेते हैं जो 20 रूपये के लिए टिकट की कालाबाज़ारी कर रहा होता है और कहते हैं कि भ्रष्टाचार हो रहा है लेकिन अमीर लोग करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार कर जाते हैं और पकड़ में नहीं आते हैं."
आशीष नंदी
आशीष नंदी ने बाद में कहा कि वह अपने बयान पर क़ायम हैं और अपने खिलाफ किसी भी तरह की पुलिस कार्रवाई के लिए तैयार हैं.
आशीष नंदी का कहना है कि उनके बयान को गलत परिप्रेक्ष्य में समझा गया है.
परिचर्चा में मौजूद कुछ पत्रकारों समेत श्रोताओं में से भी ज्यादातर लोगों ने नंदी के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है.
लेकिन नंदी ने बाद में सफाई देते हुए कहा, ''आप किसी गरीब आदमी को पकड़ लेते हैं जो 20 रूपये के लिए टिकट की कालाबाज़ारी कर रहा होता है और कहते हैं कि भ्रष्टाचार हो रहा है लेकिन अमीर लोग करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार कर जाते हैं और पकड़ में नहीं आते हैं.''
वहीं परिचर्चा के पहले हिस्से में 'विचारों का गणतंत्र' विषय के आलोक में भारतीय गणतंत्र पर चर्चा करते हुए लेखक और पत्रकार तरुण तेजपाल ने कहा कि भ्रष्टाचार हर वर्ग, हर तबके में है.
तरुण तेजपाल ने नाराज़गी जाहिर करते हुए मीडिया पर आरोप लगाया है कि आशीष नंदी के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है.
आशीष नंदी के कथित बयान के विरोध में मायावती बहुजन समाजपार्टी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, ''पार्टी मांग करती है कि इस मामले में राजस्थान सरकार को तुरंत उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और अन्य सख्त कानूनी धाराओं में तहत कार्रवाई सुनिश्चित करके जल्द से जेल भेज देना चाहिए.''

(हिंदुस्तान )

दलितों विरोधी टिप्पणी पर आशीष नंदी के खिलाफ FIR
जयपुर, एजेंसी
(First Published:26-01-13 10:26 PM Last Updated:26-01-13 11:50 PM)

इस टिप्पणी के कुछ घंटों बाद ही उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 506 आपराधिक धमकी और अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।
राजस्थान अनुसूचित जाति जनजाति मंच के अध्यक्ष राजपाल मीणा ने यह प्राथमिकी दर्ज करायी। पुलिस का कहना है कि इस मामले की जांच की जायेगी। महोत्सव में पैनल चर्चा के दौरान नंदी ने कहा कि यह एक हकीकत है कि अधिकतर भ्रष्ट लोग अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जातियों से आते हैं और अब अनुसूचित जनजाति के लोग भी अधिक संख्या में भ्रष्ट हो रहे हैं।
उन्होंने इससे भी आगे जाते हुए कहा कि मैं एक उदाहरण देता हूं। सबसे कम भ्रष्टाचार वाला राज्य पश्चिम बंगाल है, जहां माकपा की सरकार थी। मैं आपका ध्यान इस बात पर दिलाना चाहता हूं कि उस राज्य में पिछले 100 सालों में अजा, अजजा या ओबीसी का कोई व्यक्ति सत्ता के करीब नहीं पहुंचा।
पैनल में शामिल वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और दर्शक दीर्घा में बैठे कई लोगों ने इस बयान पर आपत्ति जताई। आशुतोष ने कहा कि यह मेरा सुना गया सबसे अनोखा बयान है। ब्राह्मण और सवर्ण जातियां सभी तरह का भ्रष्टाचार करके बच निकली हैं, लेकिन जब कोई नीची जाति का व्यक्ति इसमें उनकी बराबरी करता है तो यह गलत हो जाता है। इस तरह का बयान सही नहीं है।
नंदी के बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती और लोजपा नेता राम विलास पासवान ने विरोध जताकर नंदी के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी। मायावती ने कहा कि नंदी को तुरंत जेल भेजा जाना चाहिये।
नंदी के बयान की भाजपा, जदयू, माकपा और अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी एल पूनिया ने भी निंदा की।
अपनी सफाई पेश करते हुये नंदी ने कहा कि यदि उनकी बात को गलत समझा गया है तो वह माफी मांग लेंगे। हालांकि बाद में नंदी ने अपने बयान पर माफी न मांगते हुये कहा कि मैं माफी नहीं मागूंगा, क्योंकि मैं हाशिये पर आये लोगों का समर्थन कर रहा था। मैंने अपना पूरा जीवन उनके हितों के लिये काम करने में बिताया है और मैं ऐसा करता रहूंगा।
नंदी ने हालांकि बाद में स्पष्ट किया कि उनका मतलब यह था कि ज्यादातर लोग जिन्हें पकड़ा जाता है, वे ओबीसी, अजा और अजजा समुदायों के होते हैं, क्योंकि उनके पास सवर्ण जातियों की तरह खुद को बचाने के तरीके नहीं होते हैं।
उन्होंने कहा कि उनका कहना था कि ओबीसी एससी और एसटी के लोग यदि भ्रष्टाचार में शामिल होते हैं तो उसे भ्रष्टाचार करार दिया जाता है पर उच्च जाति के लोग बच कर निकल जाते हैं।
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आशीष नंदी की दलितों संबंधी टिप्पणी पर जमकर हंगामा
जयपुर, एजेंसी
First Published:26-01-13 08:12 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव में उस समय जमकर हंगामा हुआ, जब राजनीतिक चिंतक आशीष नंदी ने अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदायों के लोगों और भ्रष्टाचार को लेकर विवादित टिप्पणी की।
महोत्सव में पैनल चर्चा के दौरान नंदी ने कहा कि ज्यादातर भ्रष्ट लोग ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के होते हैं। नंदी के इस बयान पर दर्शकों ने शोर मचाना शुरू कर दिया।

पैनल में शामिल वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और दर्शक दीर्घा में बैठे कई लोगों ने इस बयान पर आपत्ति जताई। आशुतोष ने कहा कि यह मेरे द्वारा सुना गया सबसे अनोखा बयान है। ब्राह्मण और सवर्ण जातियां सभी तरह का भ्रष्टाचार करके बच निकली हैं, लेकिन जब कोई नीची जाति का व्यक्ति इसमें उनकी बराबरी करता है तो यह गलत हो जाता है। इस तरह का बयान सही नहीं है।
नंदी के बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती और लोजपा नेता राम विलास पासवान ने विरोध जताकर नंदी के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की। मायावती ने कहा कि नंदी को तुरंत जेल भेजा जाना चाहिये।
नंदी के बयान की भाजपा, जदयू, माकपा और अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी एल पूनिया ने भी निंदा की।
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आशीष नंदी की विवादित टिप्पणी की पुलिस ने शुरू की जांच
जयपुर, एजेंसी
(First Published:26-01-13 08:40 PM Last Updated:26-01-13 10:31 PM)

पुलिस ने आज आशीष नंदी और सुजाय राय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और अनूसूचित जाति, जनजाति अत्याचार की धारा 3 ए के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
जांच कर रहे पुलिस अधिकारी सुमित गुप्ता ने कहा कि मामला दर्ज हुआ है, मामले की जांच की जा रही है। गौरतलब है कि साहित्यकार आशीष नंदी ने जयपुर साहित्योत्सव के एक सत्र में बोलते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति एक पिछड़े वर्ग के लोग जिम्मेदार है। सत्र में मौजूद पत्रकार आशुतोष ने इसका विरोध किया था।
दौसा सांसद डॉ किरोडी लाल मीणा को नंदी के बयान की जानकारी मिलते ही जयपुर साहित्योत्सव स्थल पर पहुंच कर नंदी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने धरना देने की चेतावनी दी।
डॉ मीणा ने कहा कि नंदी ने एक वर्ग पर जान-बुझ कर कटाक्ष किया है। सरकार को नंदी के खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इस बीच नंदी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मेरी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। मेरा मकसद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था, अगर किसी को मेरी बातों से दुख पहुंचा है तो मै माफी मांगता हूं।
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पासवान ने की आशीष नंदी की टिप्पणी की आलोचना
पटना, एजेंसी
First Published:26-01-13 07:07 PM  Last Updated:26-01-13 09:13 PM 
लोजपा मुखिया रामविलास पासवान ने जयपुर में चल रहे साहित्य महोत्सव में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अनुसूचित जाति और जनजातियों के खिलाफ समाजशास्त्री एवं लेखक आशीष नंदी की कथित टिप्पणी की आज कड़ी आलोचना की।
पासवान ने नंदी की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बारे में जो बयान दिया है, वह विक्षिप्त मानसिकता का परिचायक है। दलित नेता ने कहा कि नंदी को इस बयान के लिए अनुसूचित जाति जनजाति अत्यचार अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि नंदी ने जयपुर साहित्य महोत्सव में पैनल परिचर्चा के दौरान आज कहा था कि सबसे अधिक भ्रष्ट लोग अन्य पिछड़ी जाति, दलित और आदिवासी समुदाय से आते हैं।
(साभार हिंदुस्तान - नई दिल्ली) 
अमर उजाला से -

'देश में भ्रष्टाचार के लिए पिछड़े और दलित जिम्मेदार'

जयपुर/इंटरनेट डेस्क | Last updated on: January 26, 2013 4:28 PM IST

most of corrupt come from backward classes says ashis nandy
समाजशास्त्री और लेखक आशीष नंदी ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए सीधे तौर पर पिछड़े वर्ग को जिम्मेदार बताया ह‌ै। उनके इस बयान से जयपुर साहित्य सम्मेलन एक बार फिर विवादों में आ गया है। विवाद को देखते हुए सम्मेलन स्‍थल की सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

सीएसडीएस के निदेशक और मशहूर फिल्मकार प्रीतीश नंदी के भाई आशीष नंदी ने साहित्य सम्मेलन के एक कार्यक्रम में शनिवार को कहा कि भ्रष्टाचार के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ साथ, अनुसूचित जाति और जनजाति जिम्मेदार हैं। उन्होंने इसके लिए पश्चिम बंगाल का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा भ्रष्ट लोग इन्हीं वर्ग से आते हैं।

इस विवादास्पद बयान को लेकर मीणा और जाट जातियों के कुछ संगठन बेहद नाराज नजर हो गए हैं। मीणा महासभा और जाट महासभा ने जयपुर साहित्य सम्मेलन से नंदी को बाहर करने की मांग की है। इतना ही नहीं, मीणा महासभा ने नंदी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का मन बना लिया है।

नंदी के बयान की साहि‌त्य और राजनीति जगत में ‌काफी आलोचना हो रही है। जयपुर साहित्य सम्मेलन के आयोजक संजोय रॉय का कहना है कि भ्रष्टाचार का किसी जाति-सुमदाय से कोई संबंध नहीं होता है। 

दैनिक भास्कर से-

नंदी का बयान, 'भ्रष्‍ट लोग ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय से'

dainikbhaskar.com | Jan 27, 2013, 00:23AM IST
 
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नई दिल्‍ली/जयपुर. जयपुर में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल में आशीष नंदी के बयान पर बवाल हो गया है। राजनीतिक समालोचक नंदी ने कहा है कि ज्‍यादातर भ्रष्‍ट लोग ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय से आते हैं। पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों के खिलाफ नंदी के इस विवादास्‍पद बयान पर श्रोताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। दलित महासंघ ने नंदी के बयान का कड़ा विरोध किया है और महासंघ की शिकायत पर नंदी के खिलाफ अशोक नगर थाने में केस दर्ज हो गया है। नंदी के खिलाफ गैर जमानती धाराओं में एससी/एसटी एक्‍ट के तहत केस दर्ज हुआ है, ऐसे में उनकी गिरफ्तारी भी संभव है।

हालांकि ऐसा लग रहा है कि नंदी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनका कहना है कि वह अपने बयान पर कायम हैं। यदि उनका बयान गैरकानूनी है तो पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। उन्‍होंने यह भी कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। आशीष नंदी सीएसडीएस के निदेशक हैं और मशहूर फिल्मकार प्रीतीश नंदी के भाई हैं।
नंदी ने अपने बयान के समर्थन में पश्चिम बंगाल का उदाहरण दिया। नंदी के बयान का मंच पर मौजूद एक और साहित्यकार ने ताली बजाकर स्वागत किया। लेकिन साहित्य जगत से लेकर राजनीतिक वर्ग से प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो चुका है।
राजस्थान पत्रिका से-
दित टिप्पणी,नंदी पर केस दर्ज
Saturday, 26 Jan 2013 9:49:15 hrs IST
Ashish Nandy at jlf
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में एससी,एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के खिलाफ कथित विवादित बयान देने वाले समाजशास्त्री एवं लेखक आशीष नंदी के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया है। यह मामला गैर जमानती मामलों में दर्ज किया गया है। 



शनिवार देर शाम अशोक नगर थाने में मामला दर्ज होने के बाद नंदी पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। अगर वह दोषी पाए जाते हैं तो 10 साल तक की सजा हो सकती है। पुलिस ने फेस्टिवल के आयोजक संजय रॉय के खिलाफ भी केस दर्ज किया है। 

उधर नंदी के बयान के विरोध में एससी,एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े लोग फेस्टिवल के आयोजन स्थल डिग्गी पैलेस के बाहर धरने पर बैठ गए हैं। जयपुर में अन्य स्थानों पर भी विरोध प्रदर्शन कर नंदी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई व गिरफ्तारी की मांग की गई। मीणा महासभा के अध्यक्ष रामपाल मीणा ने कहा है कि जब तक पुलिस नंदी को गिरफ्तार नहीं कर लेती तब तक विरोध जारी रहेगा। 

जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने कहा कि साहित्यकारों को दलितों के खिलाफ अनुचित भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। दलित और ओबीसी देश की जनसंख्या का 80-85 फीसदी हैं। वे सबसे ज्यादा भ्रष्ट नहीं है। नंदी का बयान देश की इतनी बड़ी आबादी को गाली है।
काम नहीं आई सफाई 
विवाद बढ़ता देख फेस्टिवल के आयोजकों ने आनन फानन में नंदी की प्रेस कांफ्रेंस करवाई। इसमें नंदी ने अपने बयान पर सफाई भी दी। सफाई देने के लिए वे अपने साथ मशहूर पत्रकार तरूण तेजपाल को भी लेकर आए। नंदी ने कहा कि उनकी टिप्पणी को गलत अर्थ में लिया गया है। उन्होंने एक लिखी हुई स्क्रिप्ट मीडिया के समक्ष पढ़ी। 

इसमें कहा गया कि भारत में भ्रष्टाचार इक्वलाइजिंग फोर्स है। मेरे कहने का यह मतलब था कि जब गरीब लोग,एससी और एसटी के लोग भ्रष्टाचार करते हैं तो इसको बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है। अगर लोगों ने इसे गलत समझा। मैं माफी मांगता हूं। मेरे कहने का मतलब था कि 
अमीर लोगों के भ्रष्टाचार को हमेशा नजरअंदाज कर दिया जाता है।

मैं इस मामले को यहीं खत्म करता हूं। नंदी की सफाई के बाद तरूण तेजपाल ने कहा कि नंदी कभी दलितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं रहे हैं। उन्होंने हमेशा इस वर्ग के लिए काम किया है। उन्होंने पत्रकारों को भी नसीहत दी कि वे फालतू का विवाद खड़ा न करें। इसके बाद संजय रॉय ने कहा कि दौसा सांसद किरोड़ी लाल मीणा और जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील से नंदी और तरूण तेजपाल की बातचीत हो गई है। वे उनकी सफाई से संतुष्ट हैं। 

यह कहा था नंदी ने 
लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन नंदी ने 'रिपब्लिक ऑफ आइडियाज' सेशन में टिप्पणी की थी कि देश को भ्रष्टाचार ने जकड़ रखा है। यह तथ्य है कि ज्यादातर भ्रष्ट लोग एससी,एसटी और ओबीसी वर्ग से हैं।
दैनिक जागरण से ;-

आशीष नंदी के एससी-एसटी संबंधी बयान पर बवाल

जयपुर [ओमप्रकाश तिवारी]। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल विवादों से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है। दुनिया के 100 शीर्ष बुद्धिजीवियों में से एक माने जानेवाले समाजशास्त्री आशीष नंदी ने शनिवार को सम्मेलन के एक सत्र यह कहकर मुसीबत मोल ले ली कि भारत में दलित और पिछड़े ही सबसे भ्रष्ट हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान पर सफाई देने की कोशिश की है, लेकिन इसविवादास्पद बयान पर उनके खिलाफ जयपुर के अशोक नगर पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। इसी के साथ राजनीतिक दलों के स्तर पर भी उनका विरोध शुरू हो गया है।
आशीष नंदी आज जयपुर साहित्य सम्मेलन के तीसरे दिन सुबह रिपब्लिक ऑफ आइडियाज अर्थात विचारों का गणतंत्र नामक सत्र में बोल रहे थे। नंदी ने अपने बयान में दलितों व पिछड़ों को सबसे ज्यादा भ्रष्ट तो बताया ही, साथ ही पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि वहां भ्रष्टाचार सबसे कम इसलिए है क्योंकि वहां पिछले 100 साल में दलितों व पिछड़ों को सत्ता के नजदीक आने का मौका ही नहीं मिला। नंदी के यह बयान देते ही हंगामा मच गया। सबसे पहले मंच पर उन्हीं के साथ बैठे पत्रकार आशुतोष ने उनके कथन से अपना विरोध दर्ज कराया। उसके बाद तो यह बयान मंच और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल परिसर की सीमाएं लांघ कर राजनीतिक हल्कों में जा पहुंचा। राजस्थान के मीणा एवं जाट जातियों के कुछ नेता तो जेएलएफ परिसर तक आ पहुंचे। अनहोनी की आशंका को देखते हुए सम्मेलन परिसर में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी पड़ी।
मामला बिगड़ता देख सम्मेलन के आयोजकों ने शाम होते-होते आशीष नंदी को अपने बयान पर सफाई पेश करने के लिए राजी कर लिया। इसके लिए बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में आकर नंदी ने कहा कि उनके बयान का वह अर्थ नहीं था, जो समझा गया। वह कहना चाहते थे कि अमीर लोगों के पास और अमीर होने के कई तरीके होते हैं, इन तरीकों से किया गया भ्रष्टाचार आसानी से छुप जाता है। जबकि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग द्वारा की गई छोटी सी भी गलती बड़ी आसानी से लोगों के सामने आ जाती है। सुबह के सत्र में उनके साथ रहे पत्रकार तरुण तेजपाल ने भी नंदी की बात का समर्थन करते हुए कहा कि साहित्य सम्मेलन हर मुद्दे पर खुली चर्चाओं के लिए होते हैं। इन चर्चाओं को राजनीतिक बहस का रूप नहीं दिया जाना चाहिए। संवाददाता सम्मेलन से पहले ही राजस्थान के मीणा एवं जाट समाज के नेता सम्मेलन के नेताओं से मिलकर अपना विरोध जता चुके थे। इसके बावजूद ये नेता संतुष्ट नहीं हुए। जिसके फलस्वरूप आशीष नंदी के खिलाफ जयपुर के अशोक नगर थाने में एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
आशीष नंदी ने दिया लिखित स्पष्टीकरण
नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। जयपुर साहित्य उत्सव में भ्रष्टाचार के संदर्भ में अपनी टिप्पणी से उपजे बवाल के बाद समाजशास्त्री एवं लेखक-विचारक आशीष नंदी ने तत्काल माफी मांगने के बाद देर शाम लिखित में भी अपना स्पष्टीकरण जारी किया और माफी भी मांगी। उनका स्पष्टीकरण इस तरह है:
''मैंने जो कहा, इस संदर्भ में नहीं कहा था और न ही मैं ऐसा कहना चाहता था। पूरे सत्र में जो बात उठी वह इस प्रकार थी। मैं तरुण तेजपाल की बात का समर्थन कर रहा था कि भारत में भ्रष्टाचार हर तरफ फैला हुआ है। मेरा मानना है कि एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज एक तरह की तानाशाही जैसा होगा। सत्र में इससे पहले मैंने यह कहा था कि मेरे या रिचर्ड सोराबजी जैसे लोग जब भ्रष्टाचार करते हैं तो बड़ी सफाई से कर जाते हैं, फर्ज करें, मैं उनके बेटे को हार्वर्ड में फैलोशिप दिलवा दूं और वह मेरी बेटी को ऑक्सफोर्ड भिजवा दें। इसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाएगा। लोग समझेंगे कि यह उनकी काबिलियत के आधार पर किया गया है, लेकिन जब कोई दलित, आदिवासी या अन्य पिछड़े वर्ग का आदमी भ्रष्टाचार करता है तो वह सबकी नजर में आ जाता है।
हालांकि मेरा मानना है कि इन दोनों भ्रष्टाचारों के बीच कोई अंतर नहीं है और अगर इस भ्रष्टाचार से उन तबकों की उन्नति होती है तो भ्रष्टाचार में बराबरी बनी रहती है। इस बराबरी के बलबूते पर मैं गणतंत्र को लेकर आशावादी हूं। आशा है कि मेरे इस बयान से यह विवाद यहीं खत्म हो जाएगा। अगर इससे गलतफहमी पैदा हुई है तो मैं माफी चाहता हूं। हालांकि ऐसी कोई बात हुई नहीं थी। मैं किसी भी समुदाय की भावना को आहत नहीं करना चाहता था और अगर मेरे शब्दों या गलतफहमी से ऐसा हुआ है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं।''
बयान से भड़की राजनीतिक आग
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के लिए दलितों और पिछड़ों को जिम्मेदार बताने वाले लेखक आशीष नंदी चौतरफा घिर गए। कांग्रेस और भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने जहां इस पर आपत्ति जताई वहीं बसपा प्रमुख मायावती और लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान ने तो उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग कर डाली। रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष रामदास आठवले ने नंदी की गिरफ्तारी एवं उन्हें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से बाहर करने की मांग की है।
हालांकि, नंदी ने बिगड़ी बात संभालने की कोशिश की, लेकिन नेता संतुष्ट नहीं हुए। बसपा प्रमुख ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए राजस्थान सरकार से कहा कि सामाजिक वैमनस्य फैलाने वाले इस व्यक्ति के खिलाफ तत्काल एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने यह आशंका भी जताई कि पिछड़ों को बदनाम करने के लिए जानबूझ कर इस तरह का बयान दिया गया।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने भी नंदी पर हमला किया। उन्होंने कहा कि नंदी एक जाने-माने आलोचक और समाजशास्त्री हैं, लेकिन भ्रष्टाचार को किसी जाति से जोड़ा जाना सर्वथा गलत है। बात चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में कही गई हो, यह बयान हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भ्रष्टाचार एक रोग है, जिसके खिलाफ सभी को एकजुट खड़ा होना चाहिए। नंदी का यह बयान आपत्तिजनक है और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने भी नंदी बयान को देश के लिए नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहा कि किसी जाति या समुदाय के बारे में इस तरह की टिप्पणी नहीं होनी चाहिए। इससे नंदी की मानसिक स्थिति पर सवालिया निशान लगते हैं।


प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...