गुरुवार, 14 मई 2015

चन्द्र भूषण जी की पोस्ट

बुधवार, 13 मई 2015

गाहे बगाहे

दिलीप मंडल की पोस्ट के लिये:
भाई दिलीप जी! आपकी गालियाँ किनके लिये हैं, उनके लिये जिनके मन आपके लिये नफ़रत से भरे रहते हैं । अफ़सोस ये नहीं कि जातियाँ जिसने भी बनाई अपने काम के लिये बनाईं । पर जबतक आप उनके बनाये पर खड़े रहोगे तब तक वो चलती रहेंगी, आप किसका हित कर रहे हो जाति बनाने वालों का या उन जातियों का जिन्हें आप पिडित समझते हैं। मेरे ख़्याल से छल छल ही होता है, जातियों के हिसाब से छल जारी है, अपनी या अपनी जाति के प्रति मोह आकर्षण आदि ही मूल कारण है। आप कभी भी इस भेदभाव को समाप्त नहीं कर पायेंगे क्योंकि जब आप सॉस्थानिक होते हैं ईमानदारी का रोग लग जाता है और न्यायप्रिय दिखना चाहते हैं। यही गुण उनमें नहीं होता उनका दुर्गुण ही उनका सम्बल है। आपको,हमको, उन सबको अलग न्यायालय,संसद,विश्वविद्यालय आदि बनाना होगा जिसमें बहुजन के लिये नियम क़ानून और आन्तरिक दुश्मन से लड़ने के लिये फ़ौज तक खड़ी करनी होगी।.............
इसलिये भी कि जिन्हें हम अपने हक़ की लड़ाई के लिये चुनते हैं वे उनकी गोंद में बैठकर बहुजन की बात कभी कभार करते हों जो बहुजनों के जन्मना दुश्मन हैं, अज्ञान ही नहीं आर्थिक ग़ैर बराबरी मूलतह उसकी जड़ में है। जिसे भरने के उपक्रम के तरीके वही बताते हैं, मुझे लगता है उन्हीं तरीक़ों के चलते वे फँस जाते हैं, जिसमें वो कम और उनके सलाहकार ज़्यादा दोषी होते हैं।
हमारी लड़ाई पीछे रह जाती है। नई लड़ाई लड़ने के लिये सजग सिपाहसालारों की जगह उनका परिवार आगे आता है जो रेड का पेड़ साबित होता है।
भाई दिलीप जी अनेकों तर्कों से बताते रहते हैं कि योगेन्द्र यादव का सामाजिक न्याय और जातिय लड़ाई के लिये कोई योगदान नहीं है, मेरे और पत्रकार मित्रों की राय इसी से मेल खाती है, पर मुझे लगता है यदि योगेन्द्र यादव को इसके लिये तैयार किया जाता तो इसे दूर तक ले जाया जा सकता जहाँ से रास्ते निकलते, पर जब सारे रास्ते अवरूद्ध हो गये हों दिलीप भाई उनके जिनके न तो बड़े बड़े नीजी कालेज हों और न ही उद्योग धंधे वह जमात अच्छी से अच्छी शिक्षा लेकर जायेगी कहाँ ?
क्या योगेन्द्र यादव आप से इसीलिये तो नहीं निकाले गये ?
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एक बात और दिलीप भाई शरद यादव जैसे भी है क्या उनका दर्द आपसे छुपा है, गालियाँ दीजिये ! जी भरके पर पहले कोई रास्ता तो बनवाईये, नहीं तो ये बड़ा उल्टा लगता है आप जिस तरफ़ चलते हो उसके उस तरफ़ के लोग लाभान्वित होने लगते हैं।
कि कहीं मंडल और मोदी का गोत्र एक ही तो नहीं?

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

बिहार के बहाने ;

बिहार के बहाने 
"जीतन राम मांझी प्रकरण ने बिहार में दलितों और पिछडों की राजनैतिक एकता पर करारा वार किया है। अगर आप जरा भी संवेदनशील हैं तो आप इस समय बिहार के दलितों के दिल में उठने वाले दर्द और हूक का अंदाजा लगा सकते हैं।
(-प्रमोद रंजन )
के हवाले से कहना चाहता हूँ प्रमोद भाई उर्मिलेश जी ने एक बहस चलाई है जिसमें देश की राजनीती के लिए विकल्प पर चरचा हो रही है, इसी समय बिहार एक अलग तरह के राजनितिक चरित्र के साथ उठ खड़ा हुआ इसमें भी नए विकल्प का सवाल मरता हुआ नज़र आ रहा है उर्मिलेश जी का बी बी सी वाला आलेख भी आगे दे रहा हूँ और प्रमोद और राहुल के फेब के बयां भी पर मुझे इन सारे मसलों पर लगता है की दलित और पिछड़ा एजेंडा सवर्णों ने उन्ही से खत्म करा दिया ! भाई उर्मिलेश, प्रमोद रंजन और राहुल कुमार कैसे देखते हैं वह अलग विषय है पर सामाजिक सरोकारों पर बड़े बड़े इधर उधर होते नज़र आते हैं। नितीश कोई सामाजिक सरोकारों को समझने वाले नेता नहीं हैं उन्होंने जितने राजनैतिक करवट बदले हैं उससे कौन वाकिफ नहीं है। ऐसे राजनैतिक चरित्रहीन व्यक्ति को    
ये तमाशे चल रहे हैं मोदी जी के ! "हरकारा" आपने देखा होगा उनसे मेल खता हुआ व्यक्तित्व ! दूसरी और आनन्द कुमार जी ! ये सब कितने खास हैं किसके लिए नीति बनाएंगे ये ! ये विदेशी फंडों से जीवन यापन वाले हैं इन्हे तो इस देश की शिक्षा को ठीक करने का मौक़ा मिला क्या किया इन्होने हजारों काबिल और ईमानदार दलित पिछड़े जिन्होंने कर्ज लेकर पढाई की मेहनत की 'ईमानदार' है उन्हें आज भी सड़क ही नापनी है, क्योंकि उनके आका नहीं हैं, उनके आका नहीं कालेजों संस्थानों और विश्वविद्यालयों में इसलिए वो नाकाबिल हैं. 
भाई उर्मिलेश जी ! आप को मैंने कल नितीश को राजनितिक और संत बताते हुए मैंने सुना आश्चर्य हुआ "ऐसे अवसरवादी" नेता को सपोर्ट करना पुरे सोच के लिए नुकसानदेह है जिसका खामियाजा "आम जान जीवन" के संघर्षों ने खड़ा किया था जिसे इन्होने डुबो दिया है।  आप क्या समझते हैं ये बिहार के कोई खानदानी राजा थे जो इन्हे ही सत्ता में बने रहना चाहिए था ! मांझी क्यों ईमानदार इनके प्रति रहे ये तो उस अवाम के प्रति ईमानदार नहीं रहे जिसने उन्हें अपना नेता बनाया था ! कमोवेश यही हाल सभी पिछड़े नेताओं का है !
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"जीतन राम मांझी प्रकरण ने बिहार में दलितों और पिछडों की राजनैतिक एकता पर करारा वार किया है। अगर आप जरा भी संवेदनशील हैं तो आप इस समय बिहार के दलितों के दिल में उठने वाले दर्द और हूक का अंदाजा लगा सकते हैं।
एक सच और साफ बोलने वाले मुख्‍यमंत्री के प्रति शरद यादव कैसी भाषा का इस्‍तेमाल कर रहे थे? दलितों ने जो जनता दल (यू) के प्रदेश कार्यालय में और पटना के एक होटल में घुस कर नीतीश-शरद समर्थकों की जो मार-कुटाई की, वह शरद यादव की बदतमीज भाषा का ही परिणाम थी। वास्‍तव में मुझे यह जानकर हर्ष हुआ कि समाज के सबसे कुचले हुए तबके लोगों ने इन सत्‍ता संस्‍थानों पर हमला करने का साहस किया। कहते हैं, जो होता है, सो अच्‍छा होता है। शायद इन्‍ही कारणों से बिहार में स्‍वतंत्र दलित राजनीति का भी आगाज हो।
लेकिन नीतीश-शरद, आपने जो काम किया है, वह माफ करने लायक नहीं है।" 
(प्रमोद रंजन - फारवर्ड प्रेस में वरिष्ठ संपादक हैं )
*
इतने हल्ला के बाद मुझे भी लगने लगा था की मोदी और बीजेपी डेवलपमेंट करेंगे । इसलिए मैंने उनके खिलाफ लिखना बंद कर दिया था । मुझे लगने लगे था चाहे ये अंधविश्वास या अवैज्ञानिक बातो को क्यों न बढ़ावा देते हो लेकिन जब ये विकाश करेंगे , लोग शिक्षित होंगे , तब अपने आप अंधविश्वास कम होगा । मैंने सोचा था विकाश और अंधविश्वास एक साथ नहीं चल सकते । मैंने बिलकुल सही सोचा था । लेकिन हुआ उल्टा ये लोग विकाश करने के बजाय भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर ध्यान दे रहे है , संस्कृत को लागु , रामजादे-हरामजादे को बढ़वा दे रहे है । लड़के-लड़कियों को ऐसे पिट रहे है जैसे इनके बाप का देश हो । ये भूल रहे है इन्हे नौजवान युवा और युवतियों ने इन्हे सत्ता दिलाई और उसके पास इसे छीनने की भी ताकत है । ये भूल रहे है ये भगत सिंह और आंबेडकर का देश है , यह देश किसी एक धर्म, जाति और समुदाय का नहीं हो सकता ।
जो बोला था उसे पूरा करो मोदी बाबू , नए वादे और बात बाद में कर लेंगे । अगर ऐसे ही चलता रहा कांग्रेस का हश्र तो आप के सामने ही है । कही सत्ता की लालच में आप भी भरोसा न खो दे । याद रखे ये भरोसा ही आपकी सत्ता और ताकत है । इसे मत गँवाइये लोकतंत्र में इसकी बड़ी कीमत है । एक चाय वाले को यह अगर प्रधानमंत्री बना सकती है तो एक प्रधानमंत्री को … ।
राहुल कुमार 
डबलिन , आयरलैंड
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बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस्तीफ़ा देने से मना करते हुए कहा कि वो विधानसभा में अपना बहुमत साबित करेंगे.
इससे पहले जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने पत्र लिखकर मांझी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा था.
जीतन राम मांझी ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि वो 20 फ़रवरी को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करेंगे.
मांझी ने पत्रकारों से कहा, "बिहार विधानसभा में जो भी साथ देगा उसका स्वागत है."
मांझी ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए से कहा, "लोग समझने लगे हैं कि नीतीश कुमार ने सामाजिक परिक्षेत्र में जो काम नहीं किया था, जीतन राम मांझी उनसे बढ़कर काम करने लगे हैं. इसलिए दो-चार-पाँच लोग बार-बार नीतीश कुमार को बरगला रहे हैं."

'विकास पर बात'


मांझी ने पशोपेश में डाल रखा है अपनी ही पार्टी को

जीतन राम मांझी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि प्रधानमंत्री से उनकी केवल विकास के मुद्दे पर बात हुई.
पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने मांझी को एक चिट्ठी लिखकर कहा था कि विधानमंडल की बैठक में नीतीश कुमार को नया नेता चुन लिया गया है.
मांझी ने इस पर कहा, "बिहार विधानमंडल दल की बैठक ग़ैर-कानूनी है, इसलिए किसी को नेता चुनने या उस नेता को मंजूरी देने की बात भी ग़लत है."
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/02/150203_urmilesh_bihar_va?SThisFB&fb_ref=Default


बिहार: मझधार में मांझी और नीतीश के विकल्प




बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी चाहते तो बिहार की दलित-उत्पीड़ित जनता के पक्षधर और सेक्युलर-लोकतांत्रिक सियासत के तरफ़दार नेता बनकर एक नया इतिहास रच सकते थे.
लेकिन बीते कुछ महीनों के दौरान उनके काम, बयान और गतिविधियों पर नज़र डालें तो निराशा होती है. उन्होंने दलितों के बीच चुनावी-जनाधार पैदा करने की कोशिश ज़रूर की, पर दलित-उत्पीड़ितों के मुद्दों और सरोकारों के लिए कुछ खास नहीं किया.
ले-देकर वह बिहार के कुछ सवर्ण-सामंती पृष्ठभूमि के दबंग नेताओं के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संरक्षण-समर्थन में उभरते ‘दूसरे रामसुदंर दास’ नज़र आए.
अगर उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर चलने की कोशिश की होती, तो नीतीश कुमार या शरद यादव उनके खिलाफ़ मुहिम छेड़ने का साहस नहीं कर पाते.
लेकिन कुर्सी पर बने रहने और जिस नीतीश ने उन्हें मुख्यमंत्री नामांकित किया, को चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए वह भाजपा के शीर्ष पुरूष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, राज्य के छोटे-मोटे भाजपा नेताओं का भी अभिनंदन करने लगे.
'भाजपा भी मांझी से खुश'


जदयू-राजद समर्थन की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री ने भाजपा में किसकी-किसकी तारीफ नहीं की? वह भी अगले विधानसभा चुनाव से महज़ सात-आठ महीने पहले.
इस सहनशीलता के लिए नीतीश-शरद के धैर्य की तारीफ़ करनी होगी. शायद, उनमें डर भी था कि मांझी को छेड़ने से जद(यू)-राजद के दलित-समर्थन में दरार न पैदा हो!
उनके दिमाग में सवाल रहा होगा कि भाजपा को ऐसा मौका क्यों दें?
मांझी के बयान और प्रशासनिक गतिविधियों पर नजर डालें तो उनके व्यक्तित्व की एक जटिल तस्वीर उभरती है. कभी वह बहुत हल्की किस्म की बातें कहते नजर आते हैं तो कभी नए राजनीतिक हस्तक्षेप का संकेत दे रहे होते हैं.
कभी वह सेक्युलर-सामाजिक न्याय की बात करते रहे हैं तो कभी ‘दस या बीस मिनट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से दोस्ती कर लेने’ की अपनी पार्टी नेताओं को धमकी भी देते रहे हैं.
कभी उनमें वैचारिक प्रौढ़ता के अभाव के साथ एक तरह की सरलता दिखती तो कभी उनमें ज्यादा चतुराई, अति महत्वाकांक्षा और परले दरजे का अवसरवाद नजर आता रहा. उनके बारे में यह भी कयास लगाया जाने लगा कि अगले विधानसभा चुनाव आते-आते वह कहीं भाजपा के मददगार न बन जायें!
यह महज़ संयोग नहीं कि पिछले कुछ समय से भाजपा-एनडीए के बड़े नेता भी मांझी से खुश नज़र आते रहे. कभी प्रधानमंत्री मोदी तो कभी उमा भारती तो कभी पासवान ने उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े.
यह भी संयोग नहीं कि उनकी अपनी पार्टी में सवर्ण-सामंती छवि के नेताओं ने उनके पक्ष में मोर्चा संभाले रखा. इनमें महाचंद्र सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, रवीन्द्र राय जैसे लोग सबसे आगे हैं.
दलितों पर रवैया


एक सवाल उठना लाज़मी है, अगर मांझी सचमुच दलित-उत्पीड़ित अवाम के हमदर्द रहे हैं, तो बिहार में ऐसे समुदायों के लिए चले कार्यक्रमों के प्रति उनका रवैया क्या था?
शायद ही इस बात पर किसी तरह का विवाद हो कि बिहार जैसे राज्य में भूमि-सुधार दलित-उत्पीड़ित समुदायों के पक्ष का सबसे प्रमुख एजेंडा है. आजादी के तुरंत बाद ही बिहार में भूमि सुधार कार्यक्रम लागू करने की कोशिश की गई.
लेकिन ताकतवर नेताओं की एक लाबी ने इसे नहीं होने दिया. क्या जीतनराम मांझी के ‘दलित-एजेंडे’ में भूमि सुधार जैसा अहम मुद्दा शामिल है? क्या अब तक के अपने कार्यकाल में मांझी ने भूमि सुधार की बंदोपाध्याय रिपोर्ट को पटना सचिवालय की धूलभरी आलमारियों से बाहर निकालने की एक बार भी कोशिश की?
अगर नहीं, तो कहां है उनका दलित-एजेंडा? दलित-एजेंडा सिर्फ भाषणबाजी नहीं हो सकता! ऐसी भाषणबाजी तो दलित समुदाय से आने वाले पहले के नेता भी करते रहे हैं. क्या अमीरदास आयोग को फिर से बहाल करने के बारे में कभी विचार किया?
इसका गठन कुख्यात रणवीर सेना के राजनीतिक रिश्तों की जांच के लिए हुआ था लेकिन भूस्वामी लाबी के दबाव में पूर्ववर्ती सरकार ने उस आयोग को ही खत्म कर दिया.
राज्य के मुख्यमंत्री और दलित नेता के तौर पर मांझी की बड़ी परीक्षा शंकरबिघा हत्याकांड के सारे अभियुक्तों के स्थानीय अदालत द्वारा छोड़े जाने के फैसले पर भी होनी थी.

क्यों ख़ामोश रहे मांझी?

शंकरबिघा गांव में सन 1999 के दौरान रणवीर सेना सेना की अगुवाई में 24 दलितों की हत्या की गई थी. कुछ समय पहले लक्ष्मणपुर बाथे कांड में भी ऐसा ही हुआ था. उस कांड में 58 दलित मारे गये थे. पर अदालत ने सबको बरी कर दिया.
शंकरबिघा और लक्ष्मणपुर बाथे जैसे हत्याकांडों को लेकर वह क्यों खामोश रहे? पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों के स्तर पर इस तरह के मुकद्दमों से जुड़ी पड़ताल आदि में कितनी लापरवाही की गई होगी, इसका अंदाज लगाना मुश्किल नहीं.
बहुत संभव है, यह ‘लापरवाही’ योजना के तहत की गई हो. मांझी सरकार अमीर दास आयोग की बहाली या इस तरह की कोई और पहल कर सकती थी. पर अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ.
मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों सरकारी सम्मेलन कक्ष में राज्य के दलित-आदिवासी अफसरों की एक ‘गोपनीय बैठक’ को संबोधित किया.

फ़ायदा या नुकसान



सवाल है, संवैधानिक ढंग से निर्वाचित एक मुख्यमंत्री कुछ समुदाय विशेष से जुड़े अफसरों की ‘गोपनीय बैठक’ क्यों संबोधित करता है?
ऐसे में, आज जब विधानसभा चुनाव को महज कुछ महीने रह गये हों, मांझी को बनाये रखना जद(यू)-राजद के नज़रिये से न केवल आत्मघाती होगा बल्कि भाजपा को मुंहमांगा मौका देने जैसा होगा.
जिस सियासी-समूह का कप्तान स्वयं अपने प्रतिद्वन्दी समूह के प्रति उदार और सहानुभूति वाला दिखे, वह भला चुनावी-रणक्षेत्र में कैसा प्रदर्शन कर सकता है!
ऐसे में नीतीश-शरद वही करना चाहते हैं जो उन्हें करना चाहिए. लेकिन एक पेंच है. राजभवन का, जहां भाजपा के एक पूर्व नेता विराजमान हैं.
अगर मांझी ने स्वेच्छा से इस्तीफा देकर नीतीश के शपथग्रहण का रास्ता तैयार नहीं किया तो कुछ मुश्किलें जरूर पैदा हो सकती हैं. पर संविधान इस बारे में साफ है, विधायक दल में बहुमत वाले नेता की बात ही निर्णायक होती है.
बहुमत का फैसला शनिवार को होना है. और बहुमत नीतीश के साथ नज़र आता है.

सोमवार, 5 जनवरी 2015

जिस मिशन के तहत ये नेता पैदा हुए थे

अभी एक खबर आयी है की ; (निचे के लिंक पर देख सकते हैं)
http://www.bhaskar.com/news-htup/UP-LUCK-rebellion-bahujan-samaj-party-imposed-mayawati-take-money-party-denies-4862866-PHO.html
"बगावत: सांसद के बाद विधायक ने भी माया पर लगाया पैसे लेने का आरोप, बसपा ने किया खारिज"
 जिस मिशन के तहत ये नेता पैदा हुए थे
अब सवाल इस बात का नहीं है बल्कि इस बात का है कि जिस मिशन के तहत ये नेता पैदा हुए थे उनमें क्या  इस तरह के प्रतिनिधियों की कोई जगह थी, लेकिन किसी न किसी कारण ये लोग आये, जब ये आये थे तो क्या उसी मिशन के लिए आये थे, जिसको लेकर बाबा साहब, राम मनोहर लोहिया, फुले या मान्यवर कांशी राम राजनैतिक चेतना की कड़ी खड़ी की थी या जोड़ी थी ! हम अभी भूले नहीं है ! बल्कि हमें याद  रखना  भी चाहिए हम उसी पीढ़ी के हैं जिस पीढ़ी ने मान्यवर कांशी राम को देखा है, और उनका अंत देखा है, अब उनकी सोच और मान्यताओं के विनाश की लीला देख, पढ़ और सुन रहे हैं। यह तथ्य सही हैं की दलित और पिछड़े एक साथ आते और उनके प्रबुद्ध लोग राज्य की नीति तय करते तो सदियों के लड़े आंदोलन को नई दिशा मिलती लेकिन हुआ इसके उलट. जिनको जनता ने दूर किया था उनको इन्होने सत्ता मद में गले लगाया। ये ! ये भूल गए की इनका आरोहण किस कार्य के  लिए हुआ है। 
दलितों और पिछड़ों का दुर्भाग्य यही है जितना उन्हें औरों ने बर्बाद किया था उससे ज्यादा कहीं न कहीं उनके अपनों ने नाश किया है। चिंतकों विचारकों और बुद्धजीवियों की तो इन्होने इस कदर अनदेखी की है कि वे कभी सर न उठा सकें। घटिया से घटिया इनका "सर्वजन" इनके सामजिक व् राजनैतिक हितों का समायोजन इनके विनाश का कारण बना है और अभी भी इनका मोह नहीं छूट रहा है। 
(आपको याद होगा मैंने मायावती जी की उत्तर प्रदेश में स्थापत्य कला के उत्थान के लिए प्रशंसा की थी लेकिन ये आशंका भी की कहीं यह इनके विनाश का कारण न बन जाय और नव पाखंडवाद इन्हे अपनी देवी बना ले "दौलत की देवी") सामाजिक सरोकारों में संघ ने मोदी को उतार कर सारे सामाजिक ढांचे के आंदोलन को ध्वस्त कर दिया है, जिसके प्रतिरोध के लिए जो गठजोड़ बन रहा है (मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, नितीश कुमार एवं देवे गौड़ा व् अन्य कौन है ये आप इन्हे जानते हैं पहले ये सारे ताने बाने को तोड़ने वाले और सॅकट में एक साथ होने के लिए अभिशप्त) जो मोदी की आंधी को रोकने में कितना कामयाब होगा उसका परिणाम तो जनता को भी पता है ? मुझे तो यह भी लगता है की उक्त गठवन्धन कहीं मोदी के उत्थान के लिए सहायक न हो जाय ! 
यदि ऐसे ही सब कुछ बढ़ता रहा तो कल मायावती को भी इनके साथ आना होगा जिससे इनके "सामजिक शकल" की चुटकी लेते हुए " मोदी जी " घूम घूम कर यही कहेंगे कि  जब हम पिछडो दलितों के उत्थान के लिए काम करने की योजनाएं तैयार कर रहे हैं तो ये सब उसे रोकने के लिए "एकजुट" हो रहे है. इसपर दलित पिछड़े सब हिन्दू होते नज़र आएंगे और 'गठबंधन' के 'सर्वजन' घुन की तरह इन्हे और खोखला बना रहे होंगे ?    
-डॉ लाल रत्नाकर 
चिंतक, प्राध्यापक, चित्रकार, मूर्तिकार, कवि, राजनीतविद  और सामजिक कार्यकर्ता।
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अब देखिये न क्या कर रहे हैं लोग ;
http://www.lucknow.amarujala.com/feature/politics-lkw/ex-dgp-brijlal-joins-bjp-shocks-mayawati-hindi-news/

निर्मल जी की चिंता बृजलाल जी के बीजेपी में जाने पर ।
डा.लाल रत्नाकर 
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भाई निर्मल जी कौन कहां जा रहा है यह देखने की वजाय यह देखिये क्यों जा रहा है ।
क्या वास्तव में आप जहां भी हैं सन्तुष्ट हैं ।
यदि नहीं तो कारण नहीं पूछूंगा ?
वास्तव मे हम जिसके लिये संघर्ष कर रहे है वह कितना तैयार हो रहा है।
यही चिन्ता हमें दलित्व और नपुंसकत्व पिछडेंपन और पीछे रहने को बाध्य करती है।
फिर आपकी व्यथा वाजिब नहीं लगती ।
आज तक हमने जितनों को खडा किया सब विरोध में खडे हैं। उनका स्वार्थ जो है ।
अत: राजनेतावों को तो आप देखते तो है कि बीजेपी,कांगेर्सी, कम्युनिस्ट कैसे घेर लेते हैं तब भी मुखर होकर कहते नहीं हम क्योंकि भय लगता है ।
यही कारण है हम डरते हैं और वे नहीं ।
आपको कभी वे स्वीकृति नहीं देते आप धन्य हो जाते हो उनके आने से ।
हम नित्य भोगते हैं सद्दकर्म के विचार से वे हमें अविश्वसनीय बनाते हैं अपनों से ।
शायद इसी भोग के लिये गये हों।
  

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

आदरणीय नेता जी

आदरणीय नेता जी

आपके जन्मदिन की  शुभ  कामनाओं के रिटर्न गिफ्ट के रूप में आपसे आग्रहितः श्री चन्द्रभूषण सिंह यादव जी के पत्र के समर्थन में:-जहाँ तक मैं आपको जानता हूँ आप हमेशा इस बात का ध्यान रखते रहे हैं पर जब पिछड़ों के आपके समर्थक लूट में मशगूल होंगे तो आपसे नीति के बात नहीं करेंगे ऐसा मुझे एहसास है पर मैं जानता हूँ यदि आपसे समाज के सुधि लोग मिलें और निचे लिखी बातों को तथ्यात्मक तरीके से रखें तो आप उन्हें अक्षरसः उसका अनुपालन कराएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है.
इसी विश्वास को पुख्ता करने के लिए आपसे आग्रह है की आप इनका  अनपालन  अवश्य कराएंगे। 
सादर 
आपका 
डा. लाल रत्नाकर


(आज माननीय श्री मुलायम सिंह यादव जी का 76 वाँ ज दिन है। नेताजी को जन्म दिन की बधाई एवं चिरायु,शतायु और स्वस्थ जीवन की कामना।

आज नेताजी अपना जन्मदिन मना रहे हैं और ऐसी परम्परा है कि जन्म दिन पर उपहार या दान बांटा जाता है। मै एक पिछड़े वर्ग का नागरिक होने के कारण नेताजी से पिछड़ों के लिए उनके जन्मदिन पर एक याचक बनकर कुछ मांगना चाहता हूँ-)

आदरणीय नेताजी।
सादर अभिवादन।

आपके स्वस्थ दीर्घ जीवन की कामना के साथ अनुरोध है कि हमारी शरीर अजर-अमर नही है अपितु हमारे विचार और कार्य अजर-अमर हैं।सत्ता चिरस्थायी न होती है और न हमारे यश-कीर्ति को चिर स्थायी बनाती है। हम चिर स्थायी अपने कार्यो और बिचारो से बनते हैं। 

नेताजी!
सत्ता रहने पर बहुत सारे स्वार्थी लोग जय-जयकार करते दीखते हैं पर सत्ता खत्म होते ही वे पुनः नई सत्ता प्रमुख का जय-जयकार करते दीखते हैं। हम इन क्षणभंगुर समर्थको के मोहपाश में बंधकर अगर अपने वर्गीय हित को चोट पहुंचाते हैं तो निश्चय ही हमे आने वाली पीढियां माफ़ नही करेंगी तथा हमारा इतिहास नही बनेगा। 

नेताजी! 
गाँधी,अम्बेडकर,लोहिया,हेडगेवार,सावरकर,दीनदयाल उपाध्याय,फुले,पेरियार,गाडगे,शाहूजी महाराज,कबीर,नानक आदि अन्यान्य लोग कभी सत्ता में नही रहे पर अपने निश्चित विचारो के कारण अमर हैं। वी पी सिंह,कर्पूरी ठाकुर,रामनरेश यादव एवं मंडल साहब को पिछड़ा तब तक याद रखेगा जबतक आरक्षण रहेगा और वह उसका लाभ पाता रहेगा जबकि इन लोगों को बहुत गलियां खानी पड़ी हैं।

आदरणीय नेताजी! 
आज उत्तर प्रदेश की सत्ता आपके हाथों में है। यदि आप चाहे तो अमर भी हो सकते हैं और पिछड़े-वंचित लोगो का कल्याण भी कर सकते हैं। आज इतिहास पुरुष बनने का अवसर आपके दरवाजे खड़ा है, बस उसे दिशा देने की जरूरत है।

नेताजी!
देश का पिछड़ा नेतृत्व विहीन है। यदि आपने मंडल साहब की सिफ़ारिशो के मुताबिक पिछड़ों के लिए सम्पूर्ण शिक्षा मुफ्त कर उनके छात्रावास,भोजन,वस्त्र,किताब,वजीफा और कोचिंग का इंतजाम कर दिया तो तय मानिये मोदी का हिंदुत्व एजेंडा चकनाचूर हो जायेगा और सम्पूर्ण (हिन्दू-मुस्लिम) पिछड़ा अगले पांच वर्ष में सडकों पर डाक्टर,इंजीनियर,प्रोफेसर,कलक्टर,कप्तान आदि के रूप में नजर आएगा। 

नेताजी 
मंडल साहब ने अपनी सिफारिशों में यह भी कहा है कि प्रोन्नति में आरक्षण ग्राह्य बनाया जाय तथा प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण दिया जाय। 

नेताजी!
यदि यह अनुशंसा लागू हो गयी तो हमारा भूल सुधार भी हो जायेगा और पिछड़ों का उद्धार भी।

नेताजी!
सभी ठेकों में पिछड़े-दलितों को आरक्षण देने के साथ जातिवार जन गड़ना व महिला आरक्षण में पिछड़े-दलित महिलाओं को आरक्षण की मांग को इशू बनाके सपा प्रदेश में अभियान छेड़ दे तो देखिएगा मोदी साहब का हिंदुत्व केवल अभिजात्य वर्गों में सिमट के रह जायेगा। 

नेताजी! 
कहावत है कि"आधी छोड़ पूरी पर धावे,आधी मिले न पूरी पावे",हमारा आधार पिछड़ा है,सोशलिस्टों का प्राण पिछड़ा है और पिछडो की अपेक्षा आप और समाजवाद से है इसलिए मृग मरीचिका में जीने की बजाय यथार्थ समझना चाहिए और पिछले लोकसभा और नगर पालिका,नगर निगम आदि के चुनाव परिणामो को देखकर समझना चाहिए कि अभिजात्य वर्ग कभी भी हमे स्वीकार नही करता है इसलिए हमे भ्रम में पड़े बिना सम्पूर्ण पिछड़े समाज के हित में कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए।

नेताजी!
यदि आज जन्म दिन पर ऐसा कोई संकल्प पिछडो के हित में आपने ले लिया तो निश्चय मानिये कि आप इतिहास में अमर भी हो जायेंगे और आगे सत्ता की राह भी आसान हो जाएगी तथा पिछड़े कुछ पा भी जायेंगे लेकिन तय मानिये यदि वर्तमान स्थिति में अपेक्षित सुधार नही हुआ तो पिछड़े दुर्दशाग्रस्त तो रहेंगे ही,इतिहास आपको भी माफ़ नही करेगा और जब भविष्य में पिछडो के प्रति आपकी भूमिका की समीक्षा होगी तो समीक्षक आपके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखेंगे इसलिए अपना इतिहास बनाइए और इतिहास हो चुके पिछड़ों का भविष्य।

नेताजी!
उम्मीद है मेरी बात आप तक पहुंचेगी और और आप इस दिशा में सोचेंगे। यदि मेरी राय गलत लगे तो क्षमा करेंगे।
एक बार फिर जन्म दिन की बधाई और आपके शतायु होने की कामना।

सादर।

आपका शुभचिंतक-
चन्द्रभूषण सिंह यादव

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...