रविवार, 8 दिसंबर 2013

दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !


बदलाव-2014

....................................
विकल्प हीनता के कारण सपा और बसपा के समर्थक भी उससे किनारा कर लेंगें यदि ये दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !
......................................................................................
रेखाचित्र ; डॉ लाल रत्नाकर 

सभी दलों से दलित पिछड़े खींचे चले आयेंगे जो नहीं आये तो जनता उन्हें धकेल कर किनारे कर देगी .
बदलाव के प्रासेस में स्वाभाविक है मेरी बात नेताओं को भी ठीक न लगे पर है ये जरूरी, इसे आम आदमी से लेकर सारे बुद्धिजीवी पसंद करेंगे. क्या दिक्कत है ये नेता सत्ता क्यों नहीं चाहते. क्यों ये सत्ता में बैठे चोरों और अपराधियों के शिकंजे में ये जकडे रहना ही पसंद करते हैं, इस मकड जाल को तोड़कर
आओ गले लग जाओ 'राजनीती में कोई अछूत और दुश्मन नहीं होता' तो आप भी अपना हठ छोडो और "गाँठ" जोड़ो, बनाओ गठबंधन और पुरे देश में अपनी सत्ता फैलाओ, पुरे देश के बुद्धिजीवी आपका इंतज़ार कर रहे हैं पुरे देश की अवाम आपको दिल्ली का ताज -2014 में सौपना चाहती है.
कब तक हम महापुरुषों का नाम लेकर भाग्य की माला जपते रहेंगे उन्होंने उस समय के समाज को चुनौती दी थी तभी वो आगे बढे, अब की तरह नहीं की बगैर संघर्ष के नहीं मिलने वाला कुछ। कांशीराम ने इस सदी में ही अपने संघर्षों से सत्ता प्राप्त करने का मंत्र दिया, पर मायावती को गलत फहमी हो गयी की उन्हें यह सत्ता 'ब्राह्मणों ने दी' यही गलती 'नेताजी को है की उन्हें सत्ता सवर्णों ने दी है। 
सामाजिक बदलाव के इस स्वरुप से ही असली बदलाव होगा, किसी को देश से निकालने की जरूरत नहीं है सबको 'इमानदारी और जिम्मेदारी से काम करने की व्यवस्था दलित और पिछड़े ही दे सकते है.' सदियों से शोषक जातियां अपने समुदाय के हित के लिए 'राष्ट्र' हित को नकारकर समुदाय हित के चलते 'बहुसंख्य' आबादी को तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।
एकतरफ देश में बेरोजगारी आसमान छू रही है दूसरी तरफ ये अपनी चौधराहट में बिदेशी कंपनियों को खुली छुट देकर देश को कंगाल और रोजगार बिहीन बनाकर 'मंनरेगा' और न जाने कितने तरह के 'भिक्षा अभियान' को बढ़ावा रहे हैं। 
यदि इनके पास योजना नहीं है तो इन्हें राज करने का कोई अधिकार ही नहीं है, ये केवल पूंजीपतियों के लिए योजना तैयार करते हैं और तमाम आवादी को मजदूर बनाकर रखते हैं।
अतः अब योजना ऐसी बनानी चाहिए जिसमें जनोपयोगी रोजगार को बढ़ावा मिले असमान पूंजी की भण्डारण व्यवस्था पर रोक लगे, प्रतिस्पर्धा का साफ़ सुथरा मानक लागू हो .
आइये इन्हें लागू कराने के लिए एकजूट हों 
और नेत्रित्व को तैयार करें .
अन्यथा पिछड़ों दलितों और अल्पसंखयकों का, 
नहीं तो केजरीवाल जैसे लोग आयेंगे और अवाम को भरमाएंगे, उदितराज, योगेन्द्र यादव जैसे चिंतकों को क्या आपको जरूरत नहीं है, यदि ऐसा है तो कांग्रेस कि मातम पुर्शी में लगे रहो और "नरेंद्र मोदी" गरजते गरियाते आयेंगे और ये भाजपा वाले सदियों सदियों की सामजिक परिवर्तन कि लड़ाई को अपने लिए इस्तेमाल करेंगे।
-डॉ लाल रत्नाकर 

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

समाजवाद के ये चहरे !

समाजवाद के ये चहरे ! डॉ.लाल रत्नाकर 

-----------------------

अमर सिंह और नरेश अग्रवाल में क्या फर्क है !

समाजवादी पार्टी को बर्बाद करने में इन दोनों के बयान बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ! आपको याद होगा जबतक अमर सिंह सपा में थे इसी तरह बडबोलापना करते करते कांग्रेस के 'दलाल' के रूप में काम करते रहे जो जग जाहिर है, उसकी उन्हें उनकी कीमत मिलाती थी जिसमें इजाफा भले ही हुआ पर उन दिनों माननीय नेताजी का गंभीर और महत्त्व पूर्ण कद बौना होने लगा था. जिसे किसी तरह रोका गया पर अब ये नए विचारवान श्री नरेश अग्रवाल कहाँ से अवतरित हो गए हैं.आश्चर्य होता है की इन दलालों को समाजवाद से क्या लेना देना ! क्या भाजपा से वास्तव में कोई इनकी बड़ी डील है जो ये अपने मुह से उस बात को जिसे भाजपा चाहती है, चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री न बनाने की (बनने) बात कर रहे हैं यह स्टेटमेंट देखें ; दैनिक भास्कर से साभार -

''चाय बेचने वाला नहीं बन सकता पीएम''

समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने नरेंद्र मोदी के साथ ही देश के चाय बेचने वालों और देश-समाज की जी जान से सुरक्षा कर रहे सिपाहियों पर कटाक्ष किया है। उन्होंने बुधवार को कहा कि ऐसा व्यक्ति जो चाय बेचता रहा हो उसका राष्ट्रीय दृष्टिकोण नहीं हो सकता। वह देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।
हरदोई से आने वाले असरदार नेता नरेश ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। चाय की दुकान से ऊपर उठने वाले का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य नहीं हो सकता। जैसे अगर आप सिपाही को पुलिस कप्तान बना दें तो उसका कभी नजरिया नहीं बड़ा हो सकता। उसकी सोच सिपाही की ही रहेगी।’ एक सभा में अग्रवाल ने कहा, ‘देश का प्रधानमंत्री राष्ट्रीय व्यक्तित्व वाला समर्थ व्यक्ति होना चाहिए। जहां तक भीड़ का सवाल है वह तो मदारी भी जमा कर लेता है।‘
मोदी अपनी चुनावी सभाओं में गांधी-नेहरू परिवार पर यह कहते हुए निशाना साधते रहे हैं, 'उन्होंने गरीबी नहीं देखी, लेकिन मैंने इसे झेला है। मैं गरीबों का दर्द जानता हूं।' पटना में 27 अक्टूबर को हुई हुंकार रैली में मोदी ने कहा, 'मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था। मैं गरीबी में पला बढ़ा हूं। मैंने रेलवे स्टेशनों और ट्रेन में चाय बेची है। जो लोग ट्रेन में चाय बेचते हैं वे रेलमंत्री से ज्यादा रेलवे को जानते हैं।' मोदी के बारे में कहा जाता है कि जब वे महज 6 साल के थे, तभी अपने पिता की मदद वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में करते थे। 
**

सपा को कोई तो तो बचाए न जाने कहाँ से इन बुद्धि बांकुरों को उठाकर सपा में ला दिया गया है, यदि इनसे कोई पूछे की यदि चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री के योग्य नहीं तो "सपा में गाय भैंस चराने वाले" ज्यादा हैं उन्हें तो मुख्यमंत्री भी बनने बनाने के वे हिमायती नहीं होंगे. यह प्रदेश क्या श्री नरेश अग्रवाल की जागीर है !
एक थे अमर सिंह ! दुसरे हैं माननीय नरेश अग्रवाल, नरेश जी हम जिस इलाके से आते हैं हैं वहां एक कहावत है की ' क्या बनिया की छेड़ मरकही' बात ये है की नरेश जी जिस बिरादरी से आते हैं माना जाता है की उनसे तो कोई भी 'दुह' दुहना का मतलब निकालने से है यानी बनिए से तो कोई भी कितना भी निकाल सकता है यानी ऐसा सरल ऐसी बकरी के माफिक होता है, जिसे कहीं भी कोई भी दुह ले, लेकिन इनका रोज़ का बेहूदा बयांन सपा की नीतियों के खिलाफ नहीं जा रहा है क्या ? क्या ये जानते हैं गरीब गुरबे और संघर्षशील जातियां समाजवादी पार्टी में भरोषा रखती हैं विशेषकर दलित और पिछड़े या मुस्लिम पर ये तो पतंग बाज़ी करते होंगे वहां बैठकर की 'सवर्णों' और बनियों ने सरकार बनाई है, (मैंने सूना और देखा है ऐसे तिकडम्बाज़ नेताओं को जो इसी तरह की जुगाली करते नहीं थकते)  इनको पता नहीं समाजवादी और पूंजीवादी में क्या फर्क है ' .
माँ.नरेश अग्रवाल आप 'पूंजीवाद' व्यवस्था के समर्थक सम्प्रदाय के उत्पाद हो मोदी 'मज़दूर' श्रेणी से है आप समाजवादियों के खेमें में हो ! मोदी पुजिवादियों के ! आपकी तुलना मोदी से करना 'बे - मानी' है !(आप गलत फहमी न पालें) पर यह गणित आपको नहीं आती होगी आपको दौलत बनाने का गुना भाग जरूर आता होगा. 
गणित यह है की आपकी वजह (बेहुदे बयानों) से ही गरीब गुरबे सपा से "दूर' होते जायेंगे और आपके भाई बंद तो पहले से ही सपा को गालियाँ देते नहीं थकते, अतः आप सपा के जड़ में गरम गरम मट्ठा डाल रहे हो *****जबकि मोदी भाजपा को (जहाँ आपके सारे बड़े बड़े एवं खाने पीने के (मिलावटी), दवा, दारु, तेल (खाने पिने और पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, सुगन्धित और बदबूदार), फल, सब्जी, मांस, लकड़ी, सीमेंट, लोहा,किताब, कापी, डीग्री बेचने की दुकाने खोले बैठे हुए सारे भाई बंद, यथा हर तरह के सामान 'बेचने' वाले यानी जूता, चपपल, साडी, पेटीकोट, चोली, अंडर वीयर, रूमाल , चूड़ी और कंगन, लिपस्टिक, सेविंग क्रीम से लेकर हेयर रेमुवर बनाने वाले और चरणबद्ध तरीके से बेचने वाले, परचून से लेकर माल चलाने वाले हैं ) जहाँ गरीबों और राष्ट्र प्रेमियों के लिए 'वोटों का इंतजाम कर रहा हो, देश की विदेशी महारानी के खिलाफ अभियान चलाया हो ऐसे में आप, सपा के लिए या भाजपा के लिए काम कर रहे हों नरेश जी ! कभी दिल पर हाथ रखकर सोचो. नेता जी समाजवादी और सज्जन और गरीब, मजदूर और किसानों के मसीहा रहे हैं, उन्हें 'पूंजीवादियों की तरफ मत धकेलो ? यह खामियाजा प्रदेश को ले डूबेगा ! (नरेश जी आप जानते हो भाजपा को प्रदेश में कोई शिकस्त दे सकता है तो वह 'नेता जी' आप सपा को अंदर से कमजोर कर रहे हो)
"कुतर्कों की कमी नहीं होती किसी के नाश के लिए वो तो हमलोग भी जानते हैं" पर आप जैसी घटिया राजनीति से तौबा कर ली थी हमने, अब समझ में आता है की ये 'नेताजी' लोग कैसे अपनी नीतियों के खिलाफ हो जाते हैं, उसमें योगदान होता है आप जैसे पूंजीवादियों का. जिसका खामियाजा भोगती हैं बिचारवांन और राष्ट्रप्रेमी कौमें और आप और देश हित के लिए पहुंचती है सिपाही के रूप में आपकी रक्षा के लिए जिन्हें भी आप भ्रष्ट बनाते हो अपने भ्रष्टाचार के लिए, जो नहीं भरती हो पाते हैं पुलिस में वो बेचते हैं चाय या चाय बनाने का दूध .
राज करते है नरेश अग्रवाल और उनके 'सु' या 'कु' पूत !!!
जो इन्हें/उन्हें बोलने की आज़ादी है वो क्या और किसी को उसे विश्लेषित करने की भी नहीं है समाजवाद में . समाजवादी साथियों ; जागो !
(समाजवादियों को इसपर मुहं खोलना होगा अन्यथा ये नए समाजवादी समाजवाद का नामों निशान मिटा देंगें।)
क्रमशः। ...................... 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

कुचक्र रचती है कांग्रेस !

कांग्रेस पिछड़ों के हिस्से को यदि देश की जागरूक जातियों में 'वोट' के लिए बांटना शुरू किया वोट तो उसको मिलेंगे नहीं और पुरे देश में ये सन्देश जाएगा की ये पिछड़ों की विरोधी है . जो वास्तव में है भी इसके अंदर बैठे कांग्रेसी इस की नियति को निति को बजे समाजवादी रखने के जातिवादी और 'द्विजवादी' बनाकर सत्यानाश पर आमादा है, वास्तव में बीजेपी इनकी बी टीम है ये उसे जिताने की तैयारी कर रहे हैं, इन्होने राहुल को मुस्लिम युवाओं के खिलाफ बोलने की राय दी जिससे 'जाट' खुश हों, पर ओ उलटा पड़ गया, अब जाटों को आरक्षण की बात कर रहे हैं, न इन्हें आचार संहिता का डर है और न क़ानून का.

यदि ये अपने कुचक्र से बाज़ नहीं आये तो इन्हें 'बंगाल की खाड़ी' में जनता डालेगी ! 

जाटों पर चुनावी दांव लगाने को सरकार तैयार

congress political bet on jat community

संबंधित ख़बरें

वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाला जीओएम ओबीसी श्रेणी में जाटों का कोटा तय करने की सिफारिश करने पर विचार कर रहा है। दरअसल सरकार अपने इस सियासी दांव से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा को चित करना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि इन राज्यों में इस बिरादरी की अच्छी खासी संख्या चुनाव नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करती रही है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इस बिरादरी की संख्या अच्छी खासी है।
जीओएम में शामिल एक मंत्री के अनुसार फिलहाल आरक्षण की मांग पर सभी का रुख सकारात्मक है। जीओएम ने अब तक आरक्षण के पक्ष में विभिन्न जाट संगठनों और राज्य सरकारों के दावों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है। अब इस बारे में जल्द ही निर्णय ले लिया जाएगा।
उक्त मंत्री का कहना था कि ज्यादा संभावना जीओएम द्वारा जाटों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का कोटा तय करने की सिफारिश की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि बेहद विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में घिरे हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने कई बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात कर इस संबंध में जल्द निर्णय का अनुरोध किया था।
हालांकि एनसीबीसी के सूत्रों का कहना है कि उसकी पहली सिफारिश, जिसमें जाट बिरादरी को आरक्षण देने के लायक नहीं माना गया था, के आधार पर अदालत सरकार के फैसले को फिर से पलट सकती है। वैसे भी वर्ष 2011 में भारी दबाव के बाद सरकार ने एनसीबीसी को अपने फैसले की समीक्षा का अधिकार दिया।
इसके बाद एनसीबीसी अलग से जाटों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आईसीएसएसआर से अध्ययन कराया है। हालांकि आईसीएसएसआर ने फिलहाल अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

रविवार, 3 नवंबर 2013

सवर्णवादी सोच के निहितार्थ ; पिछड़ी राजनीति !

सन्दर्भ;सुश्री अनुप्रिया के नाम 

डॉ.लाल रत्नाकर 
अनुप्रिया जी छोडिये दीवाली को ! 
यह पाखण्ड की परम्परा थोथे आदर्शों को ढोने का 'सवर्णीय' हथकंडा है निरंतरता और सतत संघर्षों से हटाने का उनका हथियार ! देश के कई हिस्सों में जातियों से जुड़े पर्व पाखण्ड के तौर पर लोकप्रिय बना दिए गए हैं जिससे उनका (जन सामान्य) ध्यान बटाए रखा जाय ! आपका आन्दोलन दबाये जाने के सारे कुचक्र किये जा रहे हैं उन अपराधिय जातियों द्वारा जिन्होंने 'सता के लिए सारी मर्यादायों का खात्मा कर दिया है' मैं फेसबुक से आपकी सक्रियता से तो वाकिफ ही हूँ, जमीनी हकीकत से जैसा लोग अवगत कराते रहते है, उससे आपका आन्दोलन 'कुर्मियों' के खेमे में डालने की पूरी साजिश हो रही है यथा आपको उससे सावधान रहना होगा, पिछडा नेत्रित्व विहीन है,समुचित नेत्रित्व से ही यह आन्दोलन धार पकड़ेगा, अभी तक इसके मूवमेंट का सारा श्रेय ऊँची जातियों को ही जाता रहा है (आज़ादी के पहले के हिस्से को छोड़ दें) लोहिया, विपि सिंह आदि पर राजनैतिक रूप से स्वर्गीय श्री राम स्वरुप वर्मा राम सेवक यादव , चंद्रजीत जी मन से इसे आगे ले जाना चाहते थे, अब सक्रीय रूप से श्री शरद यादव जी इसके लिए चिन्हित होते हैं, लालू, मुलायम, नितीश इस आन्दोलन के प्रति अपना गैर ज़िम्मेदाराना रूप दीखा चुके हैं, आज यह जिम्मेदारी आप जिस सिद्दत से उठाये हुए दीख रही हो उससे पूरा पिछड़ा बुद्धिजीवी आपके साथ खडा होगा, मुझे जो डर है अपढ़ पिछड़े इसके टूकडे न कर डालें, मैं जानता हूँ इसके लिए सवर्णों के पास नुख्सों की कमी नहीं है. जिसका असर अब तक के सभी राजनेताओं पर देख चुका हु / जिसे आप भी महशुस कर रही होंगीं. अतः आप इस दायित्व को जिम्मेदारी से उठाएंगी और हमेशा इसका ध्यान रखेंगी की इन जातियों के रिश्ते के आपसी धागे बहुत नाज़ुक हैं, कोई भी ज़रा सा जोर लगाता है तो वो टूट जाते हैं, और सदियाँ गुजर जाती हैं उन्हें जोड़ने में. आज श्री मुलायम सिंह 'सवर्णों' को जोड़ने में लगे हैं पिछड़ों के सदियों के संघर्षों के परिणामों से प्राप्त हक को तोड़कर ! इसकी सज़ा क्या होगी ये तो वक़्त ही बतायेगा !  
अब जो उत्तरदायित्व आप के हिस्से आया है उसमें इमानदारी बरतनी होगी, राजनीती को तो उन्होंने घिनौना बनाकर छोड़ा है, जिससे आप इसे नकारात्मक लें अतः आप सावधान रहें यही मेरा सुझाव है.    

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

सरोकार

डॉ.लाल रत्नाकर 
उत्तर प्रदेश की सरकार के सरोकार क्या हैं, सवर्णों के हकों की रक्षा करना या सवर्ण बन जाना, इन सब मुद्दों पर विचार करने का वक़्त आ गया है.
पिछली सरकार जितना संबर्धन 'द्वीजों' का की आज़ादी से अब तक किसी भी सरकार में नहीं हुआ रहा होगा, अब लगता है यह समाजवादी सरकार पिछली सरकार के आंकड़े तोड़ने में लगी है.
यही सारे कारण है की आज के लम्बे संघर्षो से प्राप्त पिछड़ों के हक़ को ये सरकार समाप्त कर दी है, यह सवर्ण मानसिकता नहीं तो क्या है, जब स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री) ने मंडल कमीशन लागू किया तो सारे सवर्ण उन्हें क्या क्या नहीं कह रहे थे - कुर्मी है ........या क्या ओ बी सी है / और बहुत कुछ यहाँ तक की यह राजपूत ही नहीं है ....
यदि समाजवादी पार्टी के नए लोहिया को अपना ही नारा भूल गया है -
समाजवादियों ने बाधी गाँठ, पिछड़ा पाए सौ में साठ !
अतः अब सरोकार का सवाल है सरकारें तो आती जाती रहती हैं जहाँ चाह वहां राह निकाल ही लेती अवाम !  


बुधवार, 18 सितंबर 2013

उत्तर प्रदेश की सरकार किसके लिए;

लोकसभा में भी सुनाई देगी आरक्षण की गूंज

इलाहाबाद (ब्यूरो)। त्रिस्तरीय आरक्षण को लेकर शुरू हुआ आंदोलन का दायरा बड़ा होता जा रहा है। जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव तक पहुंच, अपना दल की अनुप्रिया पटेल का आंदोलन में शामिल होना, इंडियन जस्टिस पार्टी के डॉ. उदित राज का इससे जुड़ना इस बात का संकेत है कि इसकी सियासी गूंज लोकसभा चुनाव में भी सुनाई देगी। अलग-अलग दलों के नेताओं का एक मंच पर आना एक नए सियासी समीकरण का संकेत भी माना जा रहा है। आरक्षण समर्थक पहले ही इस बात की घोषणा कर चुके हैं और छोटी-छोटी सभाओं के जरिए इसका मंच भी तैयार कर चुके हैं। जिस तरह से तमाम पाबंदियों तथा चप्पे-चप्पे पर पुलिस की पहरेदारी के बावजूद पिछड़ी जाति की कई उपजातियों और संगठन के लोग आरक्षण बचाओ महापंचायत के लिए निकले, गिरफ्तारी दी, पुलिस लाइन में फोर्स की मौजूदगी में बेखौफ हो सभा की उससे साफ है कि यह आंदोलन व्यापक होता जा रहा है।
आंदोलन के बाद ही इसका संकेत दे दिया था कि आगामी लोकसभा भी इससे अछूता नहीं रहेगा। आंदोलन की अगुवाई करने वाले अजीत यादव, दिनेश यादव, मनोज समाजसेवी, लालाराम सरोज आदि का साफ तौर पर कहना है कि वे आंदोलन चुनाव तक किसी न किसी रूप में जिंदा रखेंगे। इसके लिए उन्हाेंने पूरे देश में शहर तथा गांवों में नुक्कड़ सभाओं, पर्चे बांटने आदि की घोषणा की है जिसका दौर शुरू हो चुका है। एम्स का मुद्दा संसद में उठाने वाले शरद यादव इस आंदोलन की कमान संभालने के लिए भी तैयार हैं। एक मुद्दे पर ही सही लेकिन इनकी यह एका बड़ी पार्टियों खासतौर, पर पिछड़ों की राजनीति करने वालों, और सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है। मुजफ्फरनगर तथा दंगों से संबंधित एक रिपोर्ट को लेकर चौतरफा घिरी प्रदेश सरकार के लिए मंगलवार को प्रस्तावित आरक्षण समर्थकों की महापंचायत की सफलता से परेशानी और बढ़ सकती थी। सामाजिक न्याय मोर्चा की बुधवार को बैठक होगी, जिसमे आगे की रणनीति पर चर्चा होगी।
-----

महापंचायत को लेकर शहर में दहशत, सैकड़ों गिरफ्तार

इलाहाबाद (ब्यूरो)। रोक के बावजूद त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था के हजारों समर्थक मंगलवार को सड़कों पर निकले और गिरफ्तारी दी। उन्होंने फोर्स की मौजूदगी में पुलिस लाइन में महापंचायत भी आयोजित की। बालसन चौराहा पर छोटे-छोटे समूह में पहुंचे आरक्षण समर्थकों को पुलिस लाइन लाया गया। ग्रामीण क्षेत्र के प्रमुख बाजारों और मार्गों पर भी सैकड़ों समर्थकों ने गिरफ्तारी दी। इंडियन जस्टिस पार्टी के डॉ. उदित राज को बमरौली एयरपोर्ट, इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष राघवेंद्र प्रताप सिंह समेत अन्य नेताओं को जंक्शन तथा शहर से बाहर ही रोक लिया गया। पुलिस के अनुसार बालसन चौराहा पर 540 तथा कुल तकरीबन सात सौ लोगों ने गिरफ्तारी दी। इसके विपरीत आरक्षण समर्थकों ने हजारों की संख्या में गिरफ्तारी दिए जाने का दावा किया है। शाम को सभी को छोड़ दिया गया। अंतिम समय में कहीं बवाल न हो जाए इसलिए उन्हें बसों से अलग-अलग मुहल्लों में छोड़ा गया। पूरे आंदोलन के दौरान राहत की बात यह रही कि कहीं से उपद्रव की सूचना नहीं है। हालांकि आंदोलन के मद्देनजर बैरिकेडिंग, जांच के कारण घरों से निकले लोगों को कुछ परेशानी जरूर हुई। बालसन चौराहा समेत कुछ स्थानों पर पुलिस को लाठी भी पटकनी पड़ी।
पूर्व की घटनाओं को देखते हुए सामाजिक न्याय मोर्चा की ओर से घोषित ‘आरक्षण बचाओ महापंचायत’ को लेकर पूरे शहर में दहशत और तनाव का माहौल रहा। जिला प्रशासन के रोक के बाद भी समर्थक इसके लिए अड़े रहे। इसको लेकर प्रदेश सरकार भी पूरी तरह से सतर्क रही। महापंचायत में शामिल होने के लिए दूरंतों ट्रेन से आ रहे जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव को गाजियाबाद तथा अपना दल की अनुप्रिया पटेल को रायबरेली में ही सोमवार देर रात को गिरफ्तार कर लिया गया। शहर तथा दूसरे जिलों से जोड़ने वाले मार्गों पर चप्पे-चप्पे पर फोर्स तैनात रही। छात्रों तथा प्रतियोगियों के बहुलता वाले इलाकों में काफी सख्ती थी। इसकी वजह से कहीं भी युवाओं का जमावड़ा नहीं हो पाया। जहां भी दो-चार लोग इकट्ठा हुए पुलिस ने उन्हें हटा दिया। इसके बाद भी आरक्षण समर्थक बालसन चौराहा पहुंचने में सफल हुए। गलियों में एकत्रित प्रतियोगी छोटे-छोटे समूह में आनंद भवन, हासिमपुर रोड, जीटी रोड हर तरफ से बालसन चौराहा पहुंचे, जिन्हें वहीं गिरफ्तार कर लिया गया। खास यह कि समर्थकों ने इसका कोई प्रतिरोध नहीं किया और नारेबाजी करते हुए पुलिस की बस, वैन में चढ़ गए। इसके बाद उन्हें पुलिस लाइन ले जाया गया। इस दौरान वे प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए चल रहे थे। पुलिस और आरक्षण समर्थकों के बीच लुका-छिपी का यह खेल दिन भर चला।

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...