शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

अहम् फैसला



पेट्रोल पंप आवंटन में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण

नई दिल्ली/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Friday, July 20, 2012    8:52 PM
27 percent reservation to OBCs in Petrol pump allotment
पेट्रोल पंप आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया में सरकार ने अहम बदलाव का निर्णय लिया है। अब रिटेल आउटलेट (आरओ) डीलरशिप के आवंटन में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए 27 फीसदी आरक्षण होगा। इसके अलावा चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी रोकने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय ने लकी ड्रॉ के जरिए पेट्रोल पंप आवंटन संपन्न करने की योजना बनाई है।

पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इससे रिटेल आउटलेट के डीलरशिप में पारदर्शिता आ सकेगा। मंत्रालय ने पिछड़े वर्ग को आर्थिक मदद के लिए यह निर्णय लिया है। आरक्षण के कारण नई प्रक्रिया में उन्हें डीलरशिप पाने में वरीयता मिल सकेगी। मालूम हो कि फिलहाल रिटेल आउटलेट डीलरशिप में 22 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए, 5 फीसदी शहीदों की विधवाओं और 5 फीसदी सेना के सेवानिवृत्त जवानों को लिए है। अब ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देकर इस सूची शामिल कर लिया गया है।

शनिवार, 14 जुलाई 2012

सामाजिक परिवर्तन


सामाजिक परिवर्तन लायें लड़कियां: राष्ट्रपति

Updated on: Wed, 02 Nov 2011 08:36 PM 
Teach girls martial arts for protection: President
सामाजिक परिवर्तन लायें लड़कियां: राष्ट्रपति
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। तीन सदियों में अपने गौरवशाली इतिहास में महिलाओं की शिक्षा और उत्थान के असंख्य पन्नों को संजोये ईसाबेला थॉबर्न [आइटी] कॉलेज में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का बुधवार को पदार्पण यहां की छात्राओं के लिए यादगार लम्हा बन गया। जब राष्ट्रपति एशिया के पहले महिला क्रिश्चियन कॉलेज की होनहार छात्राओं से रूबरू हुयीं तो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच इस यादगार लम्हे का साक्षी बनने के लिए वक्त भी ठहर गया था।
कॉलेज की स्थापना के 125 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने छात्राओं को शिक्षित होकर न सिर्फ महिलाओं के प्रति भेदभाव बरतने वाली सामाजिक कुरीतियों की मुखालिफत करने की नसीहत दी बल्कि उनसे सामाजिक परिवर्तन का सूत्रधार बनने का भी आह्वान किया।
शैक्षिक यात्रा के साथ राष्ट्रपति ने प्रतीकस्वरूप 125 लाइटों से सुसज्जित दीपमाला को प्रज्ज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया।
समारोह में उपस्थित छात्राओं और देश-विदेश से आये अतिथियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा किसी देश की सामाजिक स्थिति का आकलन वहां की महिलाओं को हासिल दर्जे और हैसियत से किया जाता है।
महिलाओं की शिक्षा का उनकी तरक्की और आर्थिक स्वावलंबन से सीधा रिश्ता रहा है। यह भी कड़वा सच है कि शिक्षित महिलाओं की सफलताओं के किस्सों के बीच अशिक्षा व सुविधाओं से वंचित होने की चर्चाएं भी प्राय: सुनने को मिलती हैं।
यह विडंबना ही है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के असंभव को संभव कर दिखाने ने के बावजूद आज भी देश में बहुसंख्य महिलाएं लिंग भेद व सामाजिक कुरीतियों का शिकार हैं।
उन्होंने कॉलेज की युवा छात्राओं से इन सामाजिक कुरीतियों से लड़ने तथा इनका शिकार महिलाओं की मदद करने का आह्वान किया। छात्राओं को तरक्की में साझेदार बनने की नसीहत देते हुए उन्होंने कामकाजी महिलाओं के समक्ष बच्चों के पालन-पोषण, घरेलू और पेशेवर जिंदगियों में सामंजस्य और रिश्तों पर पड़ने वाले उनके प्रभावों जैसी चुनौतियों के प्रति भी सचेत किया। कॉलेज की स्थापना के 125 वर्ष पूरे होने की स्मृति में उन्होंने शिलापट का अनावरण भी किया।
अपने संबोधन में राज्यपाल बीएल जोशी ने कॉलेज को उसकी उपलब्धियों के लिए साधुवाद दिया। राज्यपाल ने कॉलेज की इतिहास पुस्तिका और पूर्व छात्राओं के संस्मरणों के संकलन का विमोचन भी किया।
इससे पहले कॉलेज की प्रधानाचार्या डॉ.ईएस चा‌र्ल्स ने कॉलेज के इतिहास और यहां पढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में शोहरत हासिल करने वाली नामचीन पूर्व छात्राओं का उल्लेख किया।
अपने उद्घाटन भाषण में कॉलेज की सोसाइटी के अध्यक्ष बिशप तारानाथ सागर ने राष्ट्रपति से देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबों के उत्थान के क्षेत्रों में काम कर रहे ईसाई मिशनरी व अल्पसंख्यकों की हिफाजत के लिए सरकार की ओर से उचित कदम उठाने का अनुरोध किया।
इस मौके पर भारत के चीफ पोस्ट मास्टर जनरल कर्नल कमलेश चंद्रा ने आइटी कॉलेज पर जारी डाक टिकट का अनावरण कर राष्ट्रपति को एल्बम भी भेंट किया। कार्यक्रम में नगर विकास मंत्री नकुल दुबे भी उपस्थित थे।
जूडो-कराटे सीखें लड़कियां
कॉलेज की छात्राओं से मुखातिब राष्ट्रपति ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भी अपने सरोकार जताएं। खुद को अपराधियों से बचाने के लिए उन्होंने लड़कियों को जूडो-कराटे सीखने की नसीहत दी। यह कहते हुए कि आत्मरक्षा ही महिलाओं की सुरक्षा का सबसे कारगर तरीका है।
उन्होंने कहा यह चिंता का विषय है कि 21वीं सदी में परिवारीजन अपनी महिला सदस्यों की सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद रहते हैं। कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार संस्थाओं को इस समस्या से निपटने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
लड़कियों को पढ़ायें, हर गली में मिलेंगे फरिश्ते
समारोह में राष्ट्रपति के उद्बोधन से पहले राज्यपाल ने छात्राओं को संबोधित किया। उन्होंने लखनऊ की शान में एक शेर सुनाया जिसकी आखिरी पंक्ति यूं थी कि इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं।
छात्राओं से रूबरू हुयीं राष्ट्रपति ने भी महिला शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। भाषण के अंत में उन्होंने राज्यपाल के सुनाये गए शेर की आखिरी पंक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि सारी लड़कियों को पढ़ाइये, हर गली में आपको फरिश्ते मिल जाएंगे। राष्ट्रपति का यह कहना था कि पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

बुधवार, 13 जून 2012

केंद्र सरकार को झटका


अल्पसंख्यक आरक्षण: हाईकोर्ट के फैसले पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

 बुधवार, 13 जून, 2012 को 12:43 IST तक के समाचार
सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यकों के लिए अलग से 4.5 प्रतिशत आरक्षण को संविधान और कानून के हिसाब से सही नहीं बताया है
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़े वर्गों के 27 प्रतिशत आरक्षण में से धार्मिक अल्पसंख्यकों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था को खारिज करने वाले आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केंद्र सरकार को झटका लगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 27 प्रतिशत आरक्षण में से ही अल्पसंख्यकों के लिए इस वर्ष जनवरी से 4.5 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का सरकार का फैसला प्रथम दृष्टया संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नजर नहीं आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह, अल्पसंख्यकों के लिए अलग से 4.5 प्रतिशत आरक्षण किसी कानून के हिसाब से भी नहीं मुनासिब नहीं लगता है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अन्य पिछड़ा वर्गों के छात्रों को आईआईटी में अब 443 सीटें और मिलेंगी जिन्हें 4.5 प्रतिशत आरक्षण की बुनियाद पर अल्पसंख्यकों के लिए अलग रख दिया गया था.
आईआईटी संस्थानों में प्रवेश के लिए काउंसलिंग का बुधवार को आखिरी दिन है.

शुक्रवार, 1 जून 2012

बिहार में फिर शुरू हो सकता है खूनी संघर्ष!


ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या, बिहार में फिर शुरू हो सकता है खूनी संघर्ष!
नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:01-06-12 05:00 PM
Last Updated:01-06-12 05:27 PM
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रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद बिहार में एक बार फिर से खूनी संघर्ष शुरू होने की आशंका घिरने लगी है। आरा जिले में मुखिया की हत्या के बाद 80 के दशक में जो खूनी खेल ठाकुर और नक्सलियों में शुरु होकर 90 तक चला था, उस जातीय युद्ध के बीज अब फिर से पकने लगे हैं।
राज्य में 90 के दशक में हुए कई नरसंहारों में रणवीर सेना का हाथ माना जाता है। हाल ही में ब्रह्मेश्वर सिंह को बथानी टोला नरसंहार मामले में बाइज्जत बरी कर दिया गया था। हालांकि हाई कोर्ट के इस फैसले की कड़ी आलोचना हुई भी थी।
जानकारों का कहना है कि ब्रह्मेश्वर की हत्या बथानी में किए गए नरसंहार का बदला है। ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया बिहार का जाना माना नाम है और वो रणवीर सेना के कारण चर्चा में आए थे। कई संगीन अपराधों में शामिल सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। वह हाल ही में जेल से रिहा हुये थे।
जेल से निकलने के साथ ही किसानों के लिए एक संगठन की स्थापना भी की थी जो किसानों के हित के लिए संघर्ष करता। लेकिन मुखिया की हत्या की इस घटना के बाद से ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं फिर से बिहार में खूनी संघर्ष का दौर ना शुरू हो जाए।
उधर बथानी नरसंहार में बरी किए जाने के खिलाफ माले भी लगातार धरना प्रदर्शन कर रहा था। आरा में पिछले 26 मई से धरना पर बैठे माले के पूर्व विधायक सुदामा प्रसाद को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। पुलिस ने ये कदम उनकी सुरक्षा के कारण उठाया है।
जानिए आखिर कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया!
बिहार की जातिगत लड़ाइयों का एक चर्चित चेहरा थे ब्रह्मेश्वर मुखिया। बिहार राज्य में एक वक्त ऐसा आया जब नक्सली संगठनों और बड़े किसानों के बीच खूनी लड़ाई का दौर चल पड़ा। इस दौरान ही ब्रह्मेश्वर मुखिया ने अपने नेतृत्व में अपनी एक सेना बनाई थी।
सितंबर 1994 में ब्रह्मेश्वर मुखिया के नेतृत्व में जो सगंठन बना उसे रणवीर सेना का नाम दिया गया। ब्रह्मेश्वर मुखिया ने ऊंची जाति के जमींदारों की प्राइवेट आर्मी रणवीर सेना की शुरुआत की थी।
1994 से लेकर 2002 तक करीब 250 लोगों की हत्या के 22 मुकदमें का मुख्य आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया को सबूतों के अभाव में कुछ दिन पहले ही जमानत दी गई थी।
ब्रह्मेश्वर मुखिया पर सबसे पहले अपने ही गांव खोपिरा में रक्तपात करने का आरोप लगा था। उसके बाद 2002 तक तकरीबन 22 बार दलितों और पिछड़ों को मौत के घाट उतारने का आरोप लगाया गया।
इन आरोपों को जांच के लिए लिए जो अमीरदास आयोग बनी थी उसे जनवरी 2006 में भंग कर दिया गया था। अमीरदास आयोग का गठन तत्कालीन राजद सरकार ने रणवीर सेना पर लगे आरोपों की जांच करने के लिए किया था।
बिहार में ब्रह्मेश्वर मुखिया ने वर्ष 1994 के अंत में रणवीर सेना का गठन किया था। इस सेना पर 29 अप्रैल 1995 को भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड के खोपिरा में पहली बार कहर बरपाने का आरोप लगा।
आरोप था कि इस दिन ब्रह्मेश्वर मुखिया की मौजूदगी में रणवीर सेना ने 5 दलितों की हत्या कर दी थी। इसके करीब 3 महीने बाद रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के ही उदवंतनगर प्रखंड सरथुआं गांव में 25 जुलाई 1995 को 6 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
7 फरवरी 1996 को रणवीर सेना ने एक बार फिर भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड के चांदी गांव में हमला कर 4 लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद 9 मार्च 1996 को भोजपुर के सहार प्रखंड के पतलपुरा में 3, 22 अप्रैल 1996 को सहार प्रखंड के ही नोनउर नामक गांव में रणवीर सेना ने 5 लोगों की हत्या कर दी। 29 अप्रैल 1995 से लेकर 25 मई 1996 तक के बीच रणवीर सेना ने कुल 38 लोगों की हत्या कर दी।
11 जुलाई 1996 के दिन रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के सहार प्रखंड के ही बथानी टोला नामक दलितों और पिछड़ों की बस्ती पर हमला बोलकर 21 लोगों की गर्दन रेतकर हत्या कर दी।
वर्ष 1997 में रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के बाहर कदम रखा और 31 जनवरी 1997 को जहानाबाद के मखदूमपुर प्रखंड के माछिल गांव में 4 दलितों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद रणवीर सेना ने पटना जिले के बिक्रम प्रखंड के हैबसपुर नामक गांव में 10 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना को रणवीर सेना ने 26 मार्च 1997 को अंजाम दिया।
रणवीर सेना ने 31 दिसंबर 1997 को रणवीर सेना ने जहानाबाद के लक्ष्मणपुर-बाथे नामक गांव में एक साथ 59 लोगों की निर्मम हत्या कर दी। यह बिहार में हुआ अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार है।
25 जनवरी 1999 को रणवीर सेना ने जहानाबाद में एक और बड़े नरसंहार को अंजाम दिया। जहानाबाद के अरवल प्रखंड के शंकरबिगहा नामक गांव में 23 लोगों की हत्या कर दी गई।
इसके बाद 10 फरवरी 1999 को जहानाबाद के नारायणपुर में 12, 21 अप्रैल 1999 को गया जिले के बेलागंज प्रखंड के सिंदानी नामक गांव में 12, 28 मार्च 2000 को भोजपुर के सोनबरसा में 3, नोखा प्रखंड के पंचपोखरी में 3 और 16 जून 2000 को रणवीर सेना ने औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड के मियांपुर गांव में 33 लोगों की सामूहिक हत्या कर दी, इसमें 20 महिलाएं, 4 बच्चे और केवल 9 वयस्क पुरुष थे।
ब्रह्मेश्वर मुखिया के जिस्म पर हमलावरों ने दागी 40 गोलियां
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान
First Published:01-06-12 03:04 PM
Last Updated:01-06-12 05:01 PM
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बिहार में रणवीर सेना के संस्थापक माने जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की अज्ञात हमलावरों ने शुक्रवार तड़के गोली मारकर हत्या कर दी। वे सुबह चार बजे टहलने के लिए निकले थे, तभी पहले से घात लगाए अज्ञात अपराधियों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। अपराधियों ने उनके शरीर में लगभग 40 गोलियां दागी और फरार हो गए।

हत्या के बाद से आरा में रणवीर सेना समर्थकों ने जमकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया है। जगह-जगह आगजनी और तोड़फोड़ की सूचना है। आरा के कतिरा थाना क्षेत्र में जहां पर मुखिया की हत्या हुई है वहां पर स्थित हरिजन छात्रावास में आग लगा दी गई है।
इसके अलावा सर्किट हाउस में भी आगजनी और तोड़फोड़ की सूचना है। आरा प्रशासन ने हालात को काबू में रखने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए हैं। लेकिन इसका कुछ खास असर नहीं दिख रहा है। पूरे बिहार में अलर्ट घोषित कर दिया गया है।
लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान ने रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की निंदा करते हुए शुक्रवार को इस घटना की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।
     
पासवान ने कहा कि ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की सीबीआई से जांच होनी चाहिए। उनकी हत्या की घटना निंदनीय है। लोकतंत्र में हिंसा को किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
बिहार की जातिगत लड़ाइयों का एक चर्चित चेहरा थे ब्रह्मेश्वर मुखिया। बिहार राज्य में एक वक्त ऐसा आया जब नक्सली संगठनों और बड़े किसानों के बीच खूनी लड़ाई का दौर चल पड़ा। इस दौरान ही ब्रह्मेश्वर मुखिया ने अपने नेतृत्व में अपनी एक सेना बनाई थी।
सितंबर 1994 में ब्रह्मेश्वर मुखिया के नेतृत्व में जो सगंठन बना उसे रणवीर सेना का नाम दिया गया। ब्रह्मेश्वर मुखिया ने ऊंची जाति के जमींदारों की प्राइवेट आर्मी रणवीर सेना की शुरुआत की थी।
1994 से लेकर 2002 तक करीब 250 लोगों की हत्या के 22 मुकदमें का मुख्य आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया को सबूतों के अभाव में कुछ दिन पहले ही जमानत दी गई थी।
ब्रह्मेश्वर मुखिया पर सबसे पहले अपने ही गांव खोपिरा में रक्तपात करने का आरोप लगा था। उसके बाद 2002 तक तकरीबन 22 बार दलितों और पिछड़ों को मौत के घाट उतारने का आरोप लगाया गया।
इन आरोपों को जांच के लिए लिए जो अमीरदास आयोग बनी थी उसे जनवरी 2006 में भंग कर दिया गया था। अमीरदास आयोग का गठन तत्कालीन राजद सरकार ने रणवीर सेना पर लगे आरोपों की जांच करने के लिए किया था।
बिहार में ब्रह्मेश्वर मुखिया ने वर्ष 1994 के अंत में रणवीर सेना का गठन किया था। इस सेना पर 29 अप्रैल 1995 को भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड के खोपिरा में पहली बार कहर बरपाने का आरोप लगा।
आरोप था कि इस दिन ब्रह्मेश्वर मुखिया की मौजूदगी में रणवीर सेना ने 5 दलितों की हत्या कर दी थी। इसके करीब 3 महीने बाद रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के ही उदवंतनगर प्रखंड सरथुआं गांव में 25 जुलाई 1995 को 6 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
7 फरवरी 1996 को रणवीर सेना ने एक बार फिर भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड के चांदी गांव में हमला कर 4 लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद 9 मार्च 1996 को भोजपुर के सहार प्रखंड के पतलपुरा में 3, 22 अप्रैल 1996 को सहार प्रखंड के ही नोनउर नामक गांव में रणवीर सेना ने 5 लोगों की हत्या कर दी। 29 अप्रैल 1995 से लेकर 25 मई 1996 तक के बीच रणवीर सेना ने कुल 38 लोगों की हत्या कर दी।
11 जुलाई 1996 के दिन रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के सहार प्रखंड के ही बथानी टोला नामक दलितों और पिछड़ों की बस्ती पर हमला बोलकर 21 लोगों की गर्दन रेतकर हत्या कर दी।
वर्ष 1997 में रणवीर सेना ने भोजपुर जिले के बाहर कदम रखा और 31 जनवरी 1997 को जहानाबाद के मखदूमपुर प्रखंड के माछिल गांव में 4 दलितों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद रणवीर सेना ने पटना जिले के बिक्रम प्रखंड के हैबसपुर नामक गांव में 10 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना को रणवीर सेना ने 26 मार्च 1997 को अंजाम दिया।
रणवीर सेना ने 31 दिसंबर 1997 को रणवीर सेना ने जहानाबाद के लक्ष्मणपुर-बाथे नामक गांव में एक साथ 59 लोगों की निर्मम हत्या कर दी। यह बिहार में हुआ अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार है।
25 जनवरी 1999 को रणवीर सेना ने जहानाबाद में एक और बड़े नरसंहार को अंजाम दिया। जहानाबाद के अरवल प्रखंड के शंकरबिगहा नामक गांव में 23 लोगों की हत्या कर दी गई।
इसके बाद 10 फरवरी 1999 को जहानाबाद के नारायणपुर में 12, 21 अप्रैल 1999 को गया जिले के बेलागंज प्रखंड के सिंदानी नामक गांव में 12, 28 मार्च 2000 को भोजपुर के सोनबरसा में 3, नोखा प्रखंड के पंचपोखरी में 3 और 16 जून 2000 को रणवीर सेना ने औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड के मियांपुर गांव में 33 लोगों की सामूहिक हत्या कर दी, इसमें 20 महिलाएं, 4 बच्चे और केवल 9 वयस्क पुरुष थे।
गौरतलब है कि ब्रह्मेश्वर पर राज्य सरकार ने पांच लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था। उसे 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से गुप्त सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया। करीब नौ वर्ष बाद ब्रह्मेश्वर 10 जुलाई 2011 को न्यायालय के आदेश के बाद जेल से बाहर आया।
जेल से बाहर आने के बाद पांच मई 2012 को ब्रह्मेश्वर ने भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से एक संगठन बनाया और कहा कि अब वह किसानों की हित की लड़ाई एक बार फिर लड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि ब्रह्मेश्वर के साक्ष्य के अभाव में अधिकांश मामलों में बरी हो जाने के बाद वर्तमान सरकार पर भी उसकी मदद करने का आरोप लगने लगा था।
जातीय संघर्ष का प्रमुख नाम था ब्रह्मेश्वर मुखिया
पटना, एजेंसी
First Published:01-06-12 02:28 PM
Last Updated:01-06-12 04:37 PM
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बिहार में रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम जातीय संघर्ष में प्रमुखता से लिया जाता है। ब्रह्मेश्वर की शुक्रवार सुबह चार बजे आरा जिले के कतिरा मुहल्ले में अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
रणवीर सेना ऊंची जातियों का संगठन माना जाता रहा है। बिहार में जातीय संघर्ष के दौर में ऊंची जाति के लोगों ने अपने हितों की लड़ाई लड़ने के लिए सितम्बर 1994 में ब्रह्मेश्वर मुखिया के नेतृत्व में रणवीर सेना का गठन आरा के पेलाउर गांव में किया था। धीरे-धीरे इस संगठन का वर्चस्व भोजपुर, बक्सर, औरंगाबाद, गया, भभुआ, पटना सहित कई जिलों में हो गया।
बिहार में कई नरसंहारों में रणवीर सेना का हाथ माना जाता रहा है। ब्रह्मेश्वर के नेतृत्व वाली इस सेना पर पहली बार 29 अप्रैल 1995 को भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड के खोपिरा गांव में पांच दलितों की हत्या का आरोप लगा। कालांतर में इस संगठन की खूनी भिड़ंत नक्सली संगठनों से होने लगी। बाद में राज्य सरकार ने इस संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया।
नब्बे के दशक में बिहार के कई जिलों में नरसंहार का दौर प्रारंभ हुआ था, जिसमें सबसे बड़ा दिसंबर 1997 में हुआ जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार था। इसमें 58 दलितों की हत्या कर दी गई थी।
गौरतलब है कि इस मामले में न्यायालय ने 18 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि ब्रह्मेश्वर साक्ष्य के अभाव में बरी हो गया।
बिहार में करीब 277 लोगों की हत्या से सम्बंधित 22 अलग-अलग नरसंहारों में मुखिया को आरोपी बनाया गया था, जिसमें धीरे-धीरे कर 16 मामलों में उसे साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। जबकि छह अन्य मामलों में वह जमानत पर था। हाल ही में ब्रह्मेश्वर को बथानी टोला नरसंहार में बरी किया गया था।
गौरतलब है कि ब्रह्मेश्वर पर राज्य सरकार ने पांच लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था। उसे 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से गुप्त सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया। करीब नौ वर्ष बाद ब्रह्मेश्वर 10 जुलाई 2011 को न्यायालय के आदेश के बाद जेल से बाहर आया।
जेल से बाहर आने के बाद पांच मई 2012 को ब्रह्मेश्वर ने भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से एक संगठन बनाया और कहा कि अब वह किसानों की हित की लड़ाई एक बार फिर लड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि ब्रह्मेश्वर के साक्ष्य के अभाव में अधिकांश मामलों में बरी हो जाने के बाद वर्तमान सरकार पर भी उसकी मदद करने का आरोप लगने लगा था।
पासवान की मांग, ब्रह्मेश्वर हत्याकांड की हो CBI जांच
पटना, एजेंसी
First Published:01-06-12 02:23 PM
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लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान ने रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की निंदा करते हुए शुक्रवार को इस घटना की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।
     
पासवान ने कहा कि ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की सीबीआई से जांच होनी चाहिए। उनकी हत्या की घटना निंदनीय है। लोकतंत्र में हिंसा को किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
     
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के सुशासन में विधि व्यवस्था में लगातार गिरावट आती जा रही है। आपराधिक घटनाओं की संख्या में लगातार बढ रही है इसलिए विधि व्यवस्था खराब होने को लेकर मुख्यमंत्री को अपने पद से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए। पुलिस मुख्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर घटनाओं की संख्या में बढोतरी की बात स्वीकार की गयी है।
     
पासवान ने लचर कानून व्यवस्था और अपराधियों के बढते हौसले को लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हालात सामान्य होने पर मैं मतक के परिजनों को सांत्वना देने के लिए ब्रह्मेश्वर मुखिया के घर पर जाउंगा।

बुधवार, 23 मई 2012

मुलायम  सिंह  यादव  समय  की  गति को मापने में कहीं न  कहीं चुक  कर रहे हैं -

कांग्रेस-सपा की नजदीकियों के मायने..

 बुधवार, 23 मई, 2012 को 13:52 IST तक के समाचार
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांग्रेस की गठबंधन सरकार के तीन साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री के रात्रि भोज में शामिल हुए और कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पूरा सम्मान दिया.
यह दोनों दलों के बीच बनी नई समझदारी का प्रतीक है. लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता इन अटकलों को गलत बता रहें हैं कि समाजवादी पार्टी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो सकती है अथवा वह विवादास्पद आर्थिक कार्यक्रम को संसद में समर्थन दे सकती है.
कांग्रेस पार्टी की तात्कालिक चिंता अगले राष्ट्रपति चुनाव में अपने उम्मीदवार को जिताना है. इसके लिए कांग्रेस को यूपीए के घटक दलों के बाहर से भी समर्थन चाहिए.
इसलिए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा दोनों से बातचीत कर रही है , भले ही दोनों परस्पर विरोधी हों.
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहन सिंह का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को भरोसा दिलाया है कि वह उसके उम्मीदवार का समर्थन करेगी. सपा ने कांग्रेस नेताओं को केवल यह बताया है कि राष्ट्रपति पद पर वह एक राजनीतिक उम्मीदवार चाहती है, न कि कोई नौकरशाह.
मोहन सिंह के मुताबिक़ कांग्रेस ने अभी यह नहीं बताया है कि उसका उम्मीदवार कौन है.
माना जा सकता है कि सपा को हामिद अंसारी और मीरा कुमार पसंद नही हैं.
राजनीतिक कीमत
राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देना सपा की मजबूरी भी है, क्योंकि सपा भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं खड़ी हो सकती.
तीसरा मोर्चा न तो अस्तित्व में है न अभी कोई संभावना है.
फिर सवाल उठता है कि मुलायम सिंह यादव राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन देने की क्या कीमत वसूलना चाहेंगे?
और कुछ नहीं तो मुलायम चाहेंगे कि केन्द्र सरकार उत्तर प्रदेश में उनके बेटे की सरकार में कोई अड़ंगे न डाले. जितना हो सके वित्तीय सहयोग दे, जिससे सपा लोक सभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत कर ले.
वे यह भी चाह सकते हैं कि केन्द्र सरकार सपा को वित्तीय मदद देने वाले औद्योगिक घरानों को परेशान न करे और हो सके तो कुछ राहत दे दे. कुछ राजनीतिक नियुक्तियों में हिस्सेदारी भी मांग सकते हैं.
यहाँ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी तरफ से कदम बढाते हुए अफसरों को अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्रों में विकास कार्यों में मदद करने का संकेत दिया है.
हाल के विधान सभा चुनाव में सपा को इन दोनों जिलों में बड़ी कामयाबी मिली है.
इस कामयाबी से उत्साहित अमेठी और रायबरेली के सपा नेता अगले लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ मजबूत उम्मदीवार उतारने की तैयारी कर रहें हैं. ये दोनों हार जाएँ तो उन्हें बहुत खुशी होगी.
जाहिर है कि समाजवादी पार्टी का मूल चरित्र कांग्रेस विरोधी है और मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री बनाना उसका घोषित अगला लक्ष्य है.
इसलिए लोक सभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का टकराव तो होना ही है. मगर इसका मतलब यह नहीं कि उसके बाद दोनों दलों में फिर कोई समझदारी नहीं बन सकती. मुलायम सिंह को दोस्ती और दुश्मनी दोनों अच्छी तरह से निभाना आता है.

(राम दत्त जी के विचार हो सकता है सही हों पर राजनितिक जानकर इसको ठीक नहीं कहेंगे, क्योंकि कांग्रेस पार्टी अब भारतीय पार्टी नहीं है यह अंतर्राष्ट्रीय पार्टी हो गयी है अतः अब कांग्रेस से कोई भारतीय कोई उम्मीद करे तो बेमानी ही है - भ्रष्टाचार के मामले पर, महगाई के मामले पर कोई कंट्रोल यह पार्टी या उसकी सरकार लगाने जा रही है तो यह सोचना भी बेवकूफी ही होगी, क्योंकि इसमें लूटेरों ने अच्छे लोगों को किनारे लगा दिया है और इस कांग्रेस की नयी मालकिन की यही इक्षा भी होगी, इसीलिए मेरा मानना है की नेता जी ने कांग्रेस के साथ नजदीकी दिखाकर दूरगामी परिणाम वाला काम  नहीं किये हैं.-डॉ.लाल रत्नाकर)


रविवार, 20 मई 2012

May-19,2012,
11:31 pm

सपा शासन में गुंडा राज कायम

- स्वामी प्रसाद

जौनपुर: बसपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता विधान मण्डल दल स्वामी प्रसाद मौर्य ने प्रदेश की अखिलेश सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सपा शासन में पूरी तौर पर गुंडा राज कायम हो चुका है।
वे शनिवार को स्थानीय डाक बंगले में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज समस्याओं के मारे लोग दर-बदर भटक रहे हैं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। प्रदेश का नौजवान जो बेरोजगारी भत्ता, टेबलेट व लैपटाप के नाम पर सरकार बनवाकर अब अपने को ठगा महसूस कर रहा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा बसपा शासन में चालीस हजार करोड़ रुपए घोटाले की बात को निराधार व तथ्यहीन बताया।
मछलीशहर प्रतिनिधि के अनुसार स्थानीय नगर में आयोजित पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि बसपा शासन में गुण्डे-माफिया जेल में थे और बहन-बेटियां निर्भीक होकर घूमती थी जबकि सपा के शासन में ठीक इसका उलटा हो रहा है। सम्मेलन में केराकत, पिण्डरा, मछलीशहर व जफराबाद विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में संगठनात्मक ढांचे में सभी वर्गो की हिस्सेदारी सुनिश्चित करके संगठन की मजबूती पर चर्चा हुई।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जोनल कोआर्डिनेटर छट्ठू राम एवं धनपति राम व्रिदोही ने भी पार्टी की नीतियों के तहत चुनावी तैयारी में लग जाने की बात कही। कार्यक्रम संयोजक मछलीशहर लोकसभा प्रभारी बीपी सरोज रहे। इस मौके पर रामचन्द्र गौतम, मेवालाल गौतम, रईस अहमद खां, शिवाजी सिंह, रामफेर गौतम आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
नौपेड़वा प्रतिनिधि के अनुसार बक्शा विकास खण्ड के सुजियामऊ गांव में बसपा नेता तपेश विक्रम मौर्या के आवास पर शनिवार को पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि प्रदेश की सपा सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हुई है। आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा ही प्रदेश में एक मात्र विकल्प होगी। इस दौरान जौनपुर लोकसभा प्रभारी एमएलसी प्रभावती पाल, जोनल कोआर्डिनेटर छट्ठू राम, पाणिनी सिंह, डा भोलानाथ मौर्य, अमरजीत गौतम आदि मौजूद रहे। संचालन जिलाध्यक्ष ज्ञान सागर अम्बेडकर ने किया।
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स्वामी प्रसाद मौर्य  ब्रह्मण  राज्य के हिमायती हैं। इन्होने जौनपुर को अपनी जागीर बना रखा है और तमाम पिछड़ों की भावनाओं  के  साथ  मजाक  किया जा रहा है .
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शुक्रवार, 18 मई 2012



पिछड़ा वर्ग आन्दोलन एवं उ0प्र0 सरकार
कौशलेन्द्र प्रताप यादव

प्रत्येक सरकार की कसौटी के पैमाने भी अलग-अलग होते हंै। दल का घोषणा पत्र जिस लोक लुभावन वादों के साथ और जिस वर्ग के वोट से सत्ता में आता है उन्हीं वादों पर सरकार को फेल-पास किया जाता है। मसलन बसपा की सरकार दलितों के लिए क्या कर रही है, इस पर सबकी नजर रहती थी। उसी प्रकार सपा सरकार पिछड़े वर्ग से संबंधित मुददों पर क्या रूख अख्तियार करती है और अपने कार्यकाल में क्या कुछ दे जाती है, इसी कसौटी पर उसको कसा भी जायेगा और यही रूख उसका भविष्य भी तय करेगा।

प्रमोशन  में दलितों को आरक्षण का मुददा सब जगह छाया रहा। लेकिन यह तथ्य कहीं भी प्रकाश में लाने की कोशिश नहीं गई कि 1978 में जिस शासनादेश के तहत दलितों को प्रमोशन में आरक्षण की बात कही गई थी, उसी शासनादेश में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों को भी प्रमोशन में आरक्षण की बात कही गई थी। इस शासनादेश के तहत अन्य पिछड़े वर्ग के तीन तेज तर्रार अधिकारियेां को प्रमोशन में आरक्षण भी मिला। लेकिन 30.9.1980 के शासनादेश संख्या 5119/40-1-1-15 (28) 80 के तहत अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाला प्रमोशन में यह आरक्षण कांग्रेस की सरकार ने समाप्त कर दिया। फिलहाल यह संभव तो नहीं है कि उ0प्र0 सरकार दलितों का आरक्षण खत्म करे और ओ0बी0सी0 को प्रमोशन में आरक्षण दे, लेकिन अब इस मुददे पर ओबीसी संगठन बौखला गए हंै। 27 मई को लखनऊ में आल इंडिया बैकवर्ड इंपलाइज फेडरेशन (आइबेफ) इस मुददे पर एक अधिवेशन करने जा रहा है।

समाजवाद के जनक लोहिया जब ‘‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावैं सौ में साठ’’ नारा देते थे तब वो निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की वकालत करते थे। दूरदर्शी लोहिया जानते थे कि वक्त बीतने के साथ नौकरियां केवल सरकार के भरोसे नहीं रहेगी। यह भी कम मजे की बात नहीं कि जिस कांग्रेस को मजबूरी में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करनी पड़ी उसी ने देश में उदारीकरण की शुरूआत की। उदारीकरण के फलस्वरूप बहुत कम नौकरियां सरकार के पास बची और निजी क्षेत्र में आरक्षण देना कांग्रेस की कोई मजबूरी नहीं थी। बसपा सरकार ठेकों में भी दलितों को आरक्षण देती थी। सपा सरकार आसानी से यह व्यवस्था पिछड़े वर्ग के लिए कर सकती है।

अखिलेश जी ने बयान दिया है कि उनकी सरकार में न तो कोई स्मारक बनेगा और न ही कोई मूर्ति लगेगी। लेकिन प्रदेश में एक भी पिछड़ा वर्ग शोध केन्द्र नहीं है। जहां पर पिछड़े वर्ग की योजनाओं, जनसंख्या, कर्मचारियों का प्रतिशत, आरक्षण की प्रगति, दूसरे प्रदेशों में चल रही पिछड़े वर्ग की योजनायें, संसद और अन्य राज्यों में पिछड़े वर्ग के सांसदों और विधायकों की स्थिति की नवीनतम जानकारी रखी जा सकी।

उ0प्र0 में गैर सरकारी स्तर पर पिछड़ा वर्ग आंदोलन मृत प्राय है। कभी यहां अर्जक संघ का जीवंत आंदोलन था। रामस्वरूप वर्मा, ललई सिंह यादव और महाराज सिंह भारती इसके प्रेरणापुंज थे। लेकिन अर्जक आंदोलन उ0प्र0 में उसी तरह मर गया जैसे बिहार में त्रिवेणी संघ। मा0 कांशीराम गैर राजनैतिक आंदोलन की महत्ता बखूबी समझते थे। वो कहते थे कि ‘‘कोई समाज राजनीति में कितना आगे जायेगा, यह इस पर निर्भर करता है कि उसकी गैर राजनैतिक अर्थात सामाजिक जड़े कितनी मजबूत है?’’ देखना होगा कि उ0प्र0 सरकार ऐसे गैर राजनैतिक आंदोलनों को अपने लिए सहायक मानती है कि खतरा ?

पिछड़े वर्ग के पास पत्रिका आंदोलन का भी अभाव है। दरअसल पिछड़ा वर्ग जिन मार्शल जातियों से मिलकर बनता है, वहां चिंतन की गुंजाइश बहुत कम होती है। इसलिए पिछड़े वर्ग के नेतृत्व में जहां-जहां सरकारें बनती है, वो अपने दड़बे से बाहर नहीं निकल पाती और असमय काल-कवलित हो जाती हंै। दलित आंदोलन लघु पत्रिका आंदोलन की उपज था। 2 रुपये से लेकर 20 रुपये तक की दलित पत्रिकायें निकालना दलितों के बीच एक फैशन बन गया था। भले ही ये दस पेज की रही हांे या इनकी प्रसार संख्या पांच सौ से भी कम रही हो, लेकिन अपने प्रभाव क्षेत्र में इन्होंने दलितों में जबरदस्त जनजागरण पैदा किया। इस समय उ0प्र0 में पिछड़े वर्ग की एक मात्र पत्रिका है सोशल ब्रेनवाश। देखना है उ0प्र0 सरकार इसे कैसे प्रोत्साहित करती है।

सपा के सत्ता में आने के बाद अति पिछड़े वर्ग के लोग उफान पर है। ये अपने लिए अलग कोटा और एक अलग आयोग की मांग कर रहे है। दरअसल अति पिछड़े वर्ग का आक्रोश समझने में गैर सपा राजनैतिक दल ज्यादा सफल रहे हंै। राजनाथ सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में आरक्षण को पिछड़ा/अति पिछड़ा में बांटा तो बसपा सरकार अतिपिछड़े वर्ग की कुछ जातियों को थोक के भाव अपने साथ ले गई। इसी प्रकार पिछड़े वर्ग के मुसलमानों यानी पसमांदा मुसलमानों पर सपा अपना स्टैंड क्लीयर नहीं कर पा रही है। उसने समस्त मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग की है। जिसका पसमांदा मुसलमानों की कई तंजीमों ने विरोध किया है। यदि अति पिछड़े वर्ग के साथ पसमांदा मुसलमानों को सपा अपने पाले में खींच ले गई तो यह उसका सबसे बड़ा बेस वोट बैंक होगा।

क्रीमीलेयर को लेकर पिछड़े वर्ग के चिंतक अपना विरोध जताते रहे हंै। अभी सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में दलितों का आरक्षण समाप्त किया तो इस निर्णय को निष्प्रभावी करनेके लिए संसद में विशेष प्रस्ताव पारित करने की तैयारी चल रही है। पिछड़े वर्ग को आरक्षण में क्रीमीलेयर भी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है। किन्तु उसे हटाने की कोई मुहिम अभी तक नहीं की गई। उ0प्र0 के सपा सांसद क्रीमीलेयर को हटाने के लिए विधान सभा से एक प्रस्ताव पारित करा सकते है या ससंद के किसी भी सदन में इस आशय का एक प्रस्ताव रख सकते है।
अभी उ0प्र0 का जो मंत्रिमंडल है उसमें पिछड़े वर्ग का चेहरा नहीं झलक रहा है। सपा के पितृ-पुरूष चैधरी चरण सिंह का अजगर (अजीर-जाट-गूजर-राजपूत) फार्मूला भी इसमें गायब है। मंडल आयोग लागू होने के बावजूद केन्द्र सरकार की नौकरियों में पिछड़े वर्ग की भागीदारी केवल 6 प्रतिशत है। उ0प्र0 में भी पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है, लेकिन यहां भी उसे 10 प्रतिशत ही प्रतिनिधित्व प्राप्त है। आरक्षण मिलने के बवजूद पिछड़े वर्ग के साथ केन्द्र और राज्य स्तर पर यह अन्याय क्यों है रहा है, इस पर सपा सरकार को जमकर स्टैंड लेना होगा। ओबीसी के जो पद रिक्त पड़े हैं, उसे लेकर सपा को जबरदस्त भर्ती अभियान चलाना पड़ेगा तभी पिछड़े वर्ग को आरक्षण के अनुपात में नौकरियां मिल सकेगी।
उ0प्र0 में ओबीसी के छा़त्रों के लिए छात्रावास की अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। जिले में यदि 200 छात्रों के लिए भी एक छात्रावास बना दिया जाये तोा ये पिछड़ा वर्ग आंदोलन के एक चेतना केन्द्र हो सकते हैं और साथ ही पिछड़ा वर्ग का एक कैडर तैयार हो सकेगा। दलित छात्रों के लिए शोध हेतु केन्द्र सरकार राजीव गांधी फेलोशिप देती है। उ0प्र0सरकार को ऐसी ही एक योजना ओबीसी छात्रों के लिए शुरू करनी चाहिये।

चूंकि उ0प्र0 सरकार पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, अतः दलित स्मारकों को लेकर उसका स्टैंड प्रदेश में दलितों-पिछड़ों के रिश्ते तय करेगा। यह गौरतलब है कि इस बार सपा ने अनुसूचित जाति के सुरक्षित 89 सीटों में 54 सीटे जीती है। यह सपा पर दलितों का नया एतबार है। सपा के आदर्श लोहिया खुद अंबेडकर के बहुत बड़े प्रशंसक थे। जब उन्होंने बिहार के रामलखन चंदापुरी के साथ मिलकर पिछड़े वर्ग को गोलबंद किया तो पिछड़े वर्ग के साथ दलितों के गठबंधन का सपना देखा। यह सपना लिये लोहिया अंबेडकर के पास पहुंचे और एक सार्वजनिक बयान दिया कि ‘‘गांधी के निधन के बाद यदि कोई महान है तो अंबेडकर है और जाति विनाश अभियान की आशा के केन्द्र है।’’ इसके बाद लोहिया और अंबेडकर की मुलाकातें बढ़ चलीं लेकिन बाबा साहब अंबेडकर का इसी समय असमय निधन हो गया और लोहिया का दलित-पिछड़ा गठबंधन का स्वप्न अधूरा रह गया।

आज का जो सामाजिक परिदृश्य है और देश जिस प्रकार जाति मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है, उसमें जातीय और वर्गीय आंदालनों की गुंजाइश बहुत कम रह गई हंै। इसीलिए मंडल के प्रोडक्ट नीतीश कुमार को मंडल की राजनीति छोड़कर विकास और सुशासन का लबादा ओढ़ना पड़ता है, उ0प्र0 में बहन जी को बहुजन से सर्वजन की यात्रा करनी पड़ती है, गुजरात में महानतम संघी नरेन्द्र मोदी को सदभावना यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन चतुर राजनेता वही है जो सब कुछ करते हुए, सबको खुश रखते हुए अपना बेस वोट बैंक मजबूत रख सके। इसी बिंदु पर अखिलेश जी की भी कड़ी अग्नि परीक्षा होगी। 
अंत में एक बात और। हो सकता है कि अखिलेश जी अपने को पिछड़े वर्ग का नेता न मानते हों, लेकिन पिछड़ा वर्ग उनसे उम्मीद जरूर करता है।

परिचयः 
लेखक आॅल इंडिया बैकवर्ड इंपलाइज फेडरेशन के राष्ट््रीय अध्यक्ष हैं। 
पता हैः टी-6,महादेवपुरम,मंडावर रोड,बिजनौर,उ0प्र0

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...