बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

कहाँ हैं बहुजन समाज पार्टी के पुराने दिग्गज ?

रामदत्त त्रिपाठी
बीबीसी संवाददाता, लखनऊ
बुधवार, 15 फ़रवरी, 2012 को 04:55 IST तक के समाचार

राजबहादुर मायावती ही की तरह बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री मायावती इस समय विधान सभा चुनाव में एक कड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना कर रही हैं, क्योंकि ‘बहुजन से सर्वजन की राजनीति’ में उनके बहुत से साथी पीछे छूट गए हैं.

इनमे से कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने पार्टी की स्थापना और उसे आगे बढ़ाने में कांशी राम के साथ मिलकर काम किया था.

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चुनाव आयोग का फ़ैसला ग़लत: बसपा
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राज बहादुर उन चुनिंदा दलित नेताओं में से हैं, जो कांशी राम द्वारा स्थापित पिछड़े, अल्पसंख्यक और दलित कर्मचारियों के संगठन बामसेफ में रहे और इसके बाद 1984 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी डीएस फोर से जुड़े. डीएस फोर ही ने बाद में बहुजन समाज पार्टी की शक्ल ले ली.

राज बहादुर उत्तर प्रदेश बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष भी बने. वर्ष 1994 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की साझा सरकार बनी तो राज बहादुर कैबिनेट मंत्री बने.

'बसपा भटकी'
राज बहादुर का कहना है कि जब 1995 में मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के लिए भारतीय जनता पार्टी से समझौता किया तो उन्होंने इसे बीएसपी सिद्धांतों के खिलाफ समझते हुए बगावत कर दी.

"वास्तव में जब बहुजन समाज पार्टी अपनी दिशा से बहक गयी तब हमने बसपा को छोड़ा है, क्योंकि जब दिशा गलत होती है तो दशा की और दुर्दशा होती है"
राज बहादुर
राज बहादुर कहते हैं, “वास्तव में जब बहुजन समाज पार्टी अपनी दिशा से बहक गई, तब हमने बसपा को छोड़ा है, क्योंकि जब दिशा ग़लत होती है तो दशा की और दुर्दशा होती है. जब बसपा ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन चुनाव लड़ने का या राजपाट बनाने काम शुरू किया तो उसी समय मैं तुरंत बसपा से अलग हो गया था और हमारे साथ कई विधायक भी अलग हुए थे.”

राज बहादुर अकेले नेता नहीं हैं, जिन्होंने बीएसपी छोड़ी या निकाले गए. उनके अलावा आरके चौधरी, डॉक्टर मसूद, शाकिर अली, राशिद अल्वी, जंग बहादुर पटेल, बरखू राम वर्मा, सोने लाल पटेल, राम लखन वर्मा, भगवत पाल, राजाराम पाल, राम खेलावन पासी, कालीचरण सोनकर आदि अनेकों ऐसे नेता हैं जिन्हें बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया गया.

इनमें आरके चौधरी, काली चरण सोनकर अपनी पार्टी चला रहें हैं. सोने लाल पटेल ने भी अपनी पार्टी बनाई थी, जिसे उनकी मौत के बात उनकी पत्नी चला रही हैं.

लेकिन ज्यादा तादाद ऐसे लोगों की है जो कांग्रेस या समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

पूर्व मंत्री शाकिर अली इस समय समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहें हैं, जबकि डॉक्टर मसूद, बलिहारी बाबू, रामाधीन, मेवा लाल बागी और राम खेलावन पासी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहें हैं. कई पुराने बीएसपी नेता इस समय कांग्रेस से सांसद हैं.

'कांग्रेस बेहतर'

राज बहादुर का कहना है कि अम्बेडकरवादी कांग्रेस को अपना करीबी मानते हैं क्योंकि कांग्रेस ने डाक्टर अम्बेडकर को कानून मंत्री बनाया था और उनके विचारों का प्रचार प्रसार किया.

जानकारों का कहना है कि मायावती अपने को ऐसे नेताओं से असुरक्षित समझती थीं जो सीधे कांशी राम से बात करते थे. इसलिए उन्होंने उन सभी लोगों को बीएसपी से बाहर किया जो उनके नेतृत्व को चुनौती दे सकते थे.

पत्रकार राज बहादुर सिंह के अनुसार कांशी राम ने कभी कहा था कि वह किसी कुर्मी नेता को मुख्यमंत्री बनाएंगे, इसलिए कुर्मी नेता विशेषकर मायावती की महत्वाकांक्षा का शिकार हुए.

'मूल समीकरण टूटे'

भारतीय जनता पार्टी का साथ लेने के बाद मायावती ने सवर्ण और ब्राह्मण नेताओं को ज्यादा महत्त्व देना शुरू किया, क्योंकि उनसे उन्हें अपने नेतृत्व को खतरा नही लगता. सवर्ण समुदाय का साथ मिलने से 2007 में मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बन सकीं.

लेकिन इस प्रक्रिया में कांशीराम द्वारा बनाया गया 15 बनाम 85 फीसदी का बहुजन सामाजिक समीकरण टूट गया.

धीरे-धीरे करके पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय की भागीदारी बहुजन समाज पार्टी में कम हो गयी. प्रेक्षकों का कहना है कि हाल ही में बाबू सिंह कुशवाहा का निष्कासन भी बहुजन समाज पार्टी को राजनीतिक नुकसान पहुंचाएगा.

बहुजन समाज पार्टी में इस विषय पर बात करने के लिए कोई नेता उपलब्ध नही था, क्योंकि मायावती ने अपने नेताओं को मीडिया से बात करने से मना कर रखा है.

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बहन जी में सेवा भावना कि कोई नई प्रक्रिया का सूत्र ही नहीं है केवल और केवल सत्ता के शीर्ष पर आसीन होने के,मुलायम सिंह यादव इससे भिन्न रहे पर अमर सिंह के आगमन से 'कुछ' विकृतियाँ उनमे आयीं जिससे उनका 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' स्वरुप प्रभावित हुआ, पर अमर सिंह के जाने के बाद 'नेता जी के पास से बहुत सारे शुक्र -शनि रुपी सारे लूटेरे लगभग अपनी दूकान समेट कर जा चुके हैं)
"बहन जी कि मजबूरी ये है कि वो सदियों कि सारी दौलत जिससे दलित महरूम रहा है, उसे वह इकठ्ठा कर लेना चाहती हैं, यही कारण है कि आँखें मूदकर दोनों हाथों दौलत लूटती रही हैं, निश्चित रूप से दलित पुरे देश के निर्माण में अपना श्रम दिया है, उसे उसका हक मिलना चाहिए पर उन सबका हक 'बहन' जी अपनी मूर्तियों में लगाएं यह कोई बदलाव का स्वरुप नहीं है''
बदलाव के लिए "दलित समाज शास्त्रियों का मत, दलित चिंतकों का मत, दलित साहित्यकारों, कलाकारों,स्त्रियों का मत, जो समय समय पर बहन जी के तमाम कामों से भिन्न हुआ है उस पर विचार न कर 'मायावती जी कि निरंकुशता' ने सारी बदलाव की संभावनाओं को धूमिल किया है, यह समय इसी तथ्य को मजबूती से साबित करने जा रहा है. 
नीतिगत बदलाव न करके 'द्विजात्मक' संसाधनों के तहत व्यक्ति पूजा को ही प्रधानता दी हैं.
सामाजिक न्याय की शक्तियाँ इनके इस दुस्साहस से दुखी हैं.
क्योंकि मूर्तियां और प्रेरणा स्थल महापुरूषों या महिषियों के बनाते हैं,माया वतियों के नहीं , "बहन मायावती ने सबसे ज्यादा प्रचलित हिरण्यकश्यप की कथा के अनुरूप है, जिसमें वह अपने पुत्र प्रहलाद को जलाने के लि‌ए बहन होलिका को बुलाता है। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठती हैं तो वह जल जाती है और भक्त प्रहलाद जीवित रह जाता है। तब से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा है। 
कल क्या होगा, कहीं कुछ कथा का स्वरुप ऐसा न हो जाए .

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

पांच साल का हिसाब

पांच साल की 'माया'नगरी
 शनिवार, 4 फ़रवरी, 2012 को 18:26 IST तक के समाचार
मायावती ने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी
वर्षों पहले नरसिंह राव के इस बयान में न सिर्फ़ महिला सशक्तिकरण की बात थी, बल्कि दलित वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने को लेकर चल रहे बदलाव की ओर भी इशारा था.
एक दलित परिवार में पैदा हुईं मायावती का राजनीतिक सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा है. एक समय दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली मायावती देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री बनीं.
मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस बताते हैं कि वर्ष 1977 में कांशीराम मायावती से मिलने पहुँचे, उस समय मायावती सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी.
उन्होंने मायावती से कहा था- मैं एक दिन तुम्हे इतना बड़ा नेता बना दूँगा कि एक आईएएस अधिकारी नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में आईएएस अधिकारी तुम्हारे आदेश के लिए खड़े रहेंगे.
और ये बात सच भी हुई जब 1995 में 39 साल की उम्र में मायावती ने देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा मुख्यमंत्री बनीं.

वापसी के लिए संघर्ष

दलितों की मसीहा और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरीं मायावती आज अपने राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं.
पिछले पाँच वर्षों के दौरान उन पर आरोपों की झड़ी लगी और भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें 21 मंत्रियों को हटाना पड़ा. पार्कों में अपनी मूर्तियाँ लगवाने को लेकर सवाल उठे, तो सरकारी धन के दुरुपयोग पर भी विपक्ष ने उनको घेरा.
लेकिन इन सब आरोपों के बीच उत्तर प्रदेश चुनाव में मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी को ख़ारिज करना इतना आसान नहीं. दलितों के बीच पार्टी की ज़बरदस्त पैठ है और इन पाँच वर्षों में गिनाने के लिए कई उपलब्धियाँ भी.
लेकिन, क्या इन पाँच वर्षों में एक राजनेता के रूप में मायावती परिपक्व हुई हैं.
"मायावती परिपक्व ज़रूर हुई हैं, लेकिन उन्होंने अपने वोटरों और क़रीबी लोगों से दूरी बना ली है. हालांकि ये दूरी नौकरशाही ने बनाई हुई है."
उदय सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार उदय सिन्हा कहते हैं, "मायावती परिपक्व ज़रूर हुई हैं, लेकिन उन्होंने अपने वोटरों और क़रीबी लोगों से दूरी बना ली है. हालांकि ये दूरी नौकरशाही ने बनाई हुई है."
शायद मायावती को इस दूरी का सबसे बड़ी ख़ामियाज़ा वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा था. मायावती को इस चुनाव में तगड़ा झटका लगा था.
मायावती की जीवनी लिखने वाले पत्रकार अजय बोस का मानना है कि मायावती ने 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद अपने वोटरों को जोड़ने की भरपूर कोशिश की और काफ़ी हद तक सफल रहीं.
अजय बोस कहते हैं, "मायावती ने एक बड़ा काम ज़रूर किया, जो दलित वोट उनसे बिछड़ने वाला था, उन्होंने उसे वापस जोड़ा. इसलिए इस चुनाव में भी मायावती की अनदेखी नहीं की जा सकती है. सर्वजन समाज को लेकर चलने के मुद्दे पर भी उनका संतुलन क़ायम है."
"मायावती ने एक बड़ा काम ज़रूर किया, जो दलित वोट उनसे बिछड़ने वाला था, उन्होंने उसे वापस जोड़ा. इसलिए इस चुनाव में भी मायावती की अनदेखी नहीं की जा सकती है."
अजय बोस, मायावती के जीवनीकार
अजय बोस की बात से पत्रकार उदय सिन्हा सहमत नहीं हैं. उदय सिन्हा का कहना है कि मायावती ने वोटरों से दूरी के मुद्दे पर कुछ ख़ास नहीं किया और सर्वजन समाज के लोगों का भी कोई ख़ास कल्याण नहीं हुआ.
उदय सिन्हा ने कहा, "मायावती ने अपने आप को लोगों से काट दिया. वो पहले फ़ीडबैक लेती थी, उससे भी वे अलग हो गईं. ये राजनीतिक दृष्टि से उनका बहुत ख़राब फ़ैसला रहा है और इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ा. उन्होंने सर्वजन समाज की एक जाति को छोड़कर बाक़ियों का कुछ ख़ास ख़्याल नहीं रखा."

उपलब्धियां

लेकिन मायावती ने क्या इन पाँच वर्षों में कुछ किया ही नहीं. अंबेडकर ग्राम में अभूतपूर्व विकास को बहुजन समाज पार्टी बड़ी उपलब्धि मान रही है. और तो और पार्कों के निर्माण को भी कहीं न कहीं दलित अपने सम्मान से जोड़कर देखता है.
अजय बोस कहते हैं, "पार्क और मूर्तियाँ मायावती का पागलपन नहीं, इसके पीछे उनकी एक राजनीतिक सोच है और दलित इसे अच्छा काम मानता है."
जानकारों की मानें, तो लब्बोलुआब ये है कि मायावती ने अपने मौजूदा कार्यकाल की शुरुआत से ही उन लोगों से किनारा करना शुरू कर दिया, जो उनके क़रीबी रहे थे और जो उनके समर्पित मतदाता थे.
लेकिन बाद में ही सही मायावती को ये सच समझ में आ गया और दलितों के पास भी मायावती के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं. सवाल ये भी है कि मायावती पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद क्या उनका दलित वोटबैंक खिसकेगा.
उदय सिन्हा इसे पूरी तरह ख़ारिज करते हैं. कहते हैं, "ड्राइंग रूप में चलने वाले विचार-विमर्श में तो इसका असर पड़ सकता है, लेकिन मतदान केंद्रों पर इसका असर नहीं पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में मायावती के समर्पित वोटर 11 प्रतिशत हैं. ये 11 प्रतिशत वोट मायावती के अलावा कहीं और नहीं जाएगा. मायावती के समर्पित वोटरों में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है."
"राजनीति करने वाले राजनीति तो करेगा ही. वैश्य वोटबैंक भाजपा का है, जाट वोटबैंक अजित सिंह का है, दलित वोटबैंक मूल रूप से मायावती का है, तो पिछड़ा वर्ग और यादव मुलायम सिंह का वोटबैंक है"
उदितराज, दलित नेता
जब मैंने यही सवाल उदित राज के सामने रखा, तो उन्होंने कहा कि वोट बैंक के रूप में तो सभी इस्तेमाल होते हैं. दलितों के मायावती से जुड़े रहने के बारे में वे कहते हैं कि दलितों के पास विकल्प नहीं है. मायावती ने उनके लिए अगर कुछ ख़ास नहीं किया, तो अन्य लोगों ने क्या कर दिया....
उदित राज कहते हैं, "वोट बैंक तो सभी है. इस शब्द का इस्तेमाल मुझे समझ नहीं आता है. राजनीति करने वाले राजनीति तो करेगा ही. वैश्य वोटबैंक भाजपा का है, जाट वोटबैंक अजित सिंह का है, दलित वोटबैंक मूल रूप से मायावती का है, तो पिछड़ा वर्ग और यादव मुलायम सिंह का वोटबैंक है."
अपने पाँच साल के कार्यकाल में मायावती ने भले ही कई ग़लतियाँ की हों, लेकिन एक परिपक्व राजनेता के तौर पर उन्होंने कम से कम अपने समर्पित मतदाताओं को फिर से अपने ख़ेमे में वापस लेने की कोशिश की है.
लेकिन जब तक उत्तर प्रदेश का मतदाता एक बेहतर प्रशासक के रूप में मायावती को सबसे बेहतर विकल्प नहीं मानेगा, मायावती को मुश्किल पेश आ सकती है. लेकिन ये कहना कि मायावती सत्ता के संघर्ष में काफ़ी पिछड़ गई है, फ़िलहाल उचित नहीं होगा

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न निति है और न राजनीती .

वाह बहिन जी मामला फसता देख बिफर पड़ीं 'कुशवाहा आपको भ्रष्टाचारी ' नज़र आने लगा और आपका भाई और  मिश्र जी का भांजा "अंतु मिश्र" तथा अनेक जिसने सरे आम प्रदेश को लूटा और आज खुल्लम खुल्ला लूट रहे हैं, उनकी यद् आपको नहीं आ रही है |
ये बसपा पार्टी है या लूटेरों का अड्डा जिसमे न  निति है और न राजनीती है.

बाबू सिंह कुशवाहा बसपा से निष्कासित

लखनऊ/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Tuesday, November 29, 2011    1:22 AM
Babu Singh Kushwaha expelled from BSP
बसपा प्रमुख मायावती ने कभी अपने विश्वासपात्र रहे बाबू सिंह कुशवाहा को आखिरकार पार्टी से निकाल ही दिया। पूर्व मंत्री और एमएलसी कुशवाहा को पार्टी नेतृत्व के खास लोगों पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगा कर बगावती तेवर अपनाना महंगा पड़ा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने अनुशासनहीनता व पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में कुशवाहा के आजीवन निष्कासन का ऐलान किया।

उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया
प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच से बचने के लिए कांग्रेस पार्टी के लगातार संपर्क में हैं। कुशवाहा ने परिवार कल्याण मंत्री रहते अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। इस कारण उनके मंत्री रहते हुए ही विभाग में तीन सीएमओ की हत्या हुई। कुशवाहा के मंत्री रहने के दौरान इस तरह की घटना होने पर ही सरकार व पार्टी की छवि खराब होते देख उनसे मंत्री पद से त्यागपत्र लिया गया था।

सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया
मौर्य ने कहा कि मामले की जांच सीबीआई को दिए जाने के बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए और बसपा को लगातार नुकसान पहुंचाने का काम करते रहे। उन्होंने अपने समाज के लोगों को बसपा के खिलाफ काम करने के लिए उकसाया। उन्होंने राज्य सरकार के बारे में असत्य व भ्रामक बयानबाजी की। यह सभी काम निजी फायदे के लिए किए। बकौल मौर्य, कुशवाहा ने विधान परिषद् के हाल में बुलाए सत्र में भाग नहीं लिया और विपक्षी पार्टियों को सदन में हंगामा करने के लिए उकसाया। गौरतलब है कि कुशवाहा और अनंत मिश्र अंटू से इसी साल 7 अप्रैल को मुख्यमंत्री ने दो सीएमओ की हत्याओं को बाद इस्तीफा ले लिया था। तब बसपा ने कहा था कि दोनों मंत्रियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया है।

टर्निंग प्वांइट
यूं तो कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले व सीएमओ हत्याकांड की सीबीआई जांच की जद में आने के कारण पहले ही हाशिए पर आ गए थे। लेकिन, जब सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और दो प्रमुख अफसरों पर अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप लगाते हुए सीएम व पीएम को पत्र भेजा, तब ही उनका हश्र नजर आने लगा था। बसपा प्रदेशाध्यक्ष ने सवाल किया कि कुशवाहा को मंत्री रहते इन लोगों से अपनी जान का खतरा क्यों नजर नहीं आया।

पूर्व मंत्री कुशवाहा बर्खास्त

 सोमवार, 28 नवंबर, 2011 को 15:19 IST तक के समाचार

एक समय में कुशवाहा मायावती के पसंदीदा लोगों में से थे
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी और पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
कुशवाहा ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी.
कुछ समय पहले तक कुशवाहा बीएसपी में मायावती के सबसे विश्वासपात्र लोगों में गिने जाते थे.
उन्हें कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री निवास के बगल में बँगला मिला था और वह लगभग हमेशा मुख्यमंत्री निवास में रहते थे.
बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि कुशवाहा को " अनुशासनहीनता एवं पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण" हमेशा के लिए बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.
मौर्य ने आरोप लगाया कि कुशवाहा के परिवार कल्याण मंत्री रहते इस विभाग में दो सीएमओ की ह्त्या हुई तथा एक और की जेल में मृत्यु हुई.
इन हत्याओं के चलते मुख्यमंत्री ने कुशवाहा को मंत्री पद से हटा दिया था.
बाद में अदालत ने इस ह्त्या और परिवार कल्याण विभाग में कथित घोटालों की जांच सीबीआई को सौंप दी.
विपक्ष का आरोप था कि इन घोटालों के तार मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े हैं , क्योंकि रिश्वत का पैसा ऊपर तक जाता था.
कुशवाहा ने हाल ही में राज्यपाल, राष्ट्रपति एवं अन्य लोगों को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी , कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और गृह सचिव कुंवर फ़तेह बहादुर से अपनी जान को ख़तरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी.
माया सरकार ने इन आरोपण का खंडन किया और कुशवाहा को मिली सुरक्षा कम कर दी गयी.
अब प्रदेश बीएसपी अध्यक्ष मौर्य ने आरोप लगाया है कि कुशवाहा सीबीआई जांच से अपने को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी से लगातार संपर्क में हैं.
मौर्य ने यह भी आरोप लगाया है कि कुशवाहा विपक्षी नेताओं से मिलकर सरकार एवं पार्टी के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं.
कुशवाहा इन दिनों अज्ञात वास में हैं और उनसे संपर्क संभव नही हो सका.

बाबू सिंह कुशवाहा को माया ने पार्टी से निकाला

Nov 28, 02:11 pm
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की सोमवार को बसपा से विदाई हो गई। पार्टी ने उन्हें लखनऊ में दो सीएमओ की हत्या और जेल में डिप्टी सीएमओ की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। आरोप लगाया है कि वह खुद को एनआरएचएम घोटाले से बचाने के लिए कांग्रेस के संपर्क में हैं। दूसरे विपक्षी दलों के साथ मिलकर पार्टी के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से जारी लिखित बयान में यह जानकारी दी गई है।
मौर्य ने कहा है कि कुशवाहा ने परिवार कल्याण विभाग यह कह कर मांगा था कि वह इसके जरिए दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की सेवा कर सकेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। कुशवाहा के मंत्री रहते हुए ही दो सीएमओ की हत्या और एक डिप्टी सीएमओ की जिला कारागार में मौत हुई। सरकार और पार्टी की छवि खराब होती देख उनसे मंत्री पद से त्याग पत्र लिया गया था। कुशवाहा जब कानूनी शिकंजे में फंस रहे हैं, तो उन्हें कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव और प्रमुख सचिव गृह से अपनी जान का खतरा दिखने लगा है।
मौर्य ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा परिवार कल्याण विभाग में हुई हत्याओं और डिप्टी सीएमओ की जेल में मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इसके बाद कुशवाहा ने जो कुछ किया, वह किसी से छिपा नहीं है। वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए। उन्होंने बसपा से जुड़े अपने समाज के लोगों को पार्टी के खिलाफ काम करने के लिए भी उकसाया। विधान परिषद की बैठकों में भी शामिल नहीं हुए। इसके अलावा उन्होंने विपक्षी पार्टियों के सदस्यों को सरकार के विरुद्ध हंगामा करने के लिए भी भड़काया।

रविवार, 27 नवंबर 2011

मायावती की पहल - पिछड़ों और दलितों को जोड़ने की


(सारी क्रीम ब्राह्मणों को खिलाकर अब लाली पाप की कवायद पिछड़ों के लिए)

माया का चुनाव के लिए ऐलान-ए-जंग

लखनऊ।
Story Update : Monday, November 28, 2011    1:45 AM
Maya decided to attack on bjp congress sp
प्रदेश की सीएम मायावती ने विधानसभा चुनाव के लिए जंग का ऐलान करते हुए जनता को चेताया कि कांग्रेस को जिताया तो यूपी पांच साल में कंगाल नंबर वन हो जाएगा। उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए उनके दावों और आरोपों को हवाहवाई बताया। रमाबाई अंबेडकर मैदान में रविवार को आयोजित दलित-पिछड़ा वर्ग भाईचारा कार्यकर्ता महासम्मेलन के करीब डेढ़ घंटे के भाषण में मायावती ने कांग्रेस और केंद्र पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बसपा को मिल रहे अपार समर्थन से कांग्रेस घबराई हुई है। मायावती ने आशंका जताई कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे के प्रस्ताव को विरोधी दल मिलकर रोक सकते हैं। यह भी कहा कि केंद्र उनसे बदला लेने को उनके भाई आनंद सिंह को फर्जी मामले में फंसा सकती है।

बसपा ने अभियान शुरू कर दिया
मुख्यमंत्री ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल गांधी संसद छोड़कर यूपी में आकर नाटकबाजी कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि विस चुनाव के लिए बसपा ने अभियान शुरू कर दिया है। अगर उनकी केंद्र में सरकार बनती है तो वह मनरेगा के तहत सौ दिन के बजाए पूरे साल भर रोजगार देंगी। प्रदेश में चल रही सामाजिक कल्याण की तमाम योजनाओं को भी देश भर में लागू किया जाएगा।

क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी
उन्होंने भाजपा पर सांप्रदायिकता बढ़ाने और सपा पर गुंडागर्दी का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि विरोधी पार्टियां अगर दलित सीएम या पीएम बनाती हैं तब भी वह किसी काम के नहीं होंगे, क्योंकि उनकी लगाम दूसरों के हाथों में होगी। उन्होंने कहा कि अपने मां-बाप और भाई-बहन से उनका संबंध तभी तक है जब तक वे बसपा मूवमेंट से जुड़े रहेंगे। जैसे ही उनके मन में सांसद, मंत्री बनने का ख्याल आएगा वह उनसे संबंध तोड़ लेंगी। उन्होेंने दावा किया कि चुनाव में बसपा इस नारे को हकीकत में बदल देगी कि ‘चलेगा हाथी, उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल और न रहेगी साइकिल’।

राहुल गांधी पर भी साधा निशाना
मायावती ने कहा कि कांग्रेस को हमेशा बसपा का भय रहता है। कांग्रेसियों को सपने में भी बसपा का हाथी रौंदता दिखाई देता होगा। कांग्रेसी नेता जो अनापशनाप बोलते रहते हैं, उस पर मैं तो संज्ञान नहीं लेती, पर प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को जरूर गुस्सा आता है। माया ने कहा कि बसपा के जनाधार से घबराए राहुल संसद छोड़ यूपी में नाटकबाजी कर रहे हैं। यूपी के लोगों को भिखारी कहने पर उन्होंने कहा कि उन 40 वर्षों में यूपी के लोगों ने ज्यादा पलायन किया जब यहां कांग्रेस का राज था। लोगों के पलायन को कांग्रेस जिम्मेदार है ।

कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस ने कहा कि मायावती राहुल फोबिया से ग्रसित हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि मायावती को अब लगने लगा है कि कांग्रेस उनकी सरकार को उखाड़ फेंकेगी। पूरे भाषण में उनका यही डर झलक रहा था।

जिस तरह से मायावती ने राहुल गांधी पर प्रहार किया उससे साफ है कि उन्हें लगने लगा है कि उनकी जमीन खिसक रही है और कांग्रेस मजबूत हो रही है। मायावती की घबराहट कांग्रेस के लिए संतोष की बात है। यह इस बात का भी संकेत है कि हमारी जमीन मजबूत हो रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी 

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...