गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

ब्राह्मणवादी व्यवस्था ; एक विश्लेषण

  • पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना और 'महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी' जैसे समाचार से कोई भी व्यक्ति बाध्य हो एकता है कि मंदिर या कोई भी धर्मालय केवल भगवान का निवास स्थान है या इसका अन्य सामाजिक और राजनितिक प्रभाव है इसी सन्दर्भ में मंदिर के बारे में एक विश्लेषण -  
  •  
  • मंदिर : ब्राह्मणवादी शासन की राजनैतिक–आर्थिक इकाई

    अंदर मूरत पर चढें घी, पूरी, मिष्ठान, मंदिर के बाहर खड़ा, इश्वर मांगे दान     (निदा फाजली)

    धर्म मानव जीवन का एक अभिन्न पहलु है जो मानवीय जीवन को किसी न किसी रूप से प्रभावित करता है 
    धर्म को मानव को इश्वर से जोड़ने वाला माध्यम के रूप में स्थापित किया गया है और मानव किसी न किसी रूप में धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करता है परन्तु यदि इस मान्यता पर विश्वास न किया जाय फिर भी धर्म द्वारा आत्म-नियंत्रण और अच्छे चरित्र के निर्माण में सहायक के सकारात्मक पहलु से इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु धर्म के नाम पे होने वाले धार्मिक व्यापार, कर्मकांड, अन्धविश्वाश और धर्म के आधार पर अनपढ़ और गरीब का शोषण इसके नकारात्मक पहलु भी है 

    मंदिर एक धार्मिक संस्था के रूप में समाज की धार्मिक गतिविधियों को संचालित नियमित और नियंत्रित करता है, इसी संस्था के द्वारा धार्मिक नियम बनाए जाते है और उसका पालन भी कराये जाते है पर मंदिर का “ब्राह्मणवादी शासन और राजनीति” से क्या सम्बन्ध है को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि किसी देश का शासन चलाने के लिए क्या आवश्यक है ? किसी देश का शासन चलाने के लिए आवश्यक तत्व है – 1. व्यक्तियों का समूह, 2. धन और सम्पत्ति, 3. सूचना तंत्र –4. प्रशिक्षित मानवीय संसाधन 

    व्यक्तियों का समूह – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है समूह, संगठन या संस्था जो मानवीय शक्ति को अपने अनुसार प्रशिक्षित और उपयोग कर सके
    मंदिर को व्यक्तियों के समूह या संगठन की इकाई के रूप में देखा जा सकता है एक मंदिर में पांच से लेकर २०० से अधिक व्यक्ति कार्य करते है यह मंदिर के आकार और प्रसिद्धि पर निर्भर करता है मंदिर से ऊपर मठ होता है जो मंदिर की गतिविधियों को नियंत्रित और निर्देशित करता है, इससे ऊपर पीठ का निर्माण किया गया है जो मंदिर और मठों को निर्देशित करने के साथ साथ ब्राह्मणवादी एजेंडे का निर्माण करते है पीठ सर्वोच्च धार्मिक संस्था है जिसका सम्बन्ध विभिन्न गैर राजनितिक धार्मिक संगठनों जैसे राष्ट्रीय सेवक संघ, रामसेना, शिवसेना, बजरंगदल से है जो दबाव समूह के रूप में कार्य करतें है और सबसे ऊपर राजनैतिक पार्टिया जो धर्म को अपना प्रमुख एजेंडा बनाती है और जो साम्प्रदायिकता को बढावा देती है या अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टिया जो अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मणवाद पर कार्य करती है और मंदिर से उत्पन्न आर्थिक और प्रशिक्षित मानवीय (जैसे बड़े नेता, प्रवक्ता, नौकरशाह, मीडिया जिनका सम्बन्ध कहीं न कहीं धार्मिक संगठनो से होता है) संसाधनों का प्रयोग करती है
    इस प्रकार एक कड़ी मंदिर से शुरू होकर शासन और प्रशासन तक जाता है 

    धन और सम्पत्ति – राज्य संचालन के लिए सबसे प्रमुख तत्व है धन और सम्पत्ति जो आवश्यक अध्:संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक हों प्रत्येक मंदिर में पूजा, चढावा, दान और पुजारी को दिया गया धन और संपत्ति (जो अधिकांशत: पिछड़े समाज का होता है) का गमन और संचयन नीचे से उपर (मंदिर, मठ, पीठ, संगठन और अंतत: पार्टियों) की ओर होता है इस प्रकार इन संगठनों एवं पार्टियों को चुनाव प्रचार, सूचनातंत्र के निर्माण के लिए धन इकठ्ठा करने की कोई समस्या नहीं होती है जो पिछड़े समाज से सम्बंधित पार्टियों के लिए हो/ अब देश में इतने मंदिर है यदि इनका केवल लेखा जोखा रखा जाय तो मंदिर के अर्थशास्त्र के बारे में सही विश्लेषण किया जा सकता है /
    • सूचना तंत्र - किसी भी राज्य का शासन करने के लिए मजबूत सूचनातंत्र का होना अतिआवश्यक है कोई भी शासकवर्ग तब तक शासन नहीं कर सकता जब तक सूचना पर उसका अधिकार न हो इस सुचनातंत्र के माध्यम से ही शासकवर्ग अपना एजेंडा और रणनीति जनता तक पहुचता है और जनता के अंदर चल रही गतिविधियों और कार्यकलापों को जानता और समझता है  मंदिर में पुजारी ब्राह्मण जाति से होते है और सामान्यत: ब्राह्मण ही अधिकांशत: भिक्षावृति भी करते है जो सूचनाओं का आदान-प्रदान का माध्यम भी होते है अत: बिना संचार माध्यम के होते हुए भी सुचना एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुच जाती है और वर्तमान में तो कार्य और सरल हो गया है मंदिर में कार्य करने वाला पुजारी शिक्षित एवं समाज के सबसे प्रतिष्ठित वर्ग के व्यक्ति होते है इनकी बातो या सुचनाओं पर गाव का सीधा साधा एवं अशिक्षित जनता उसी प्रकार विश्वास करती है जिस प्रकार शहरों का शिक्षित समुदाय ब्राह्मणवादी मीडिया की सूचनाओं पर बिना सत्य का खोज किये विश्वास करता है अत: भिक्षा मागने वाले ब्राह्मण से लेकर, मठाधिकारी तथा विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी से लेकर सदस्य भी सूचना के आदान-प्रदान में लगे रहते है इस प्रकार मंदिर को गाव का सुचना केन्द्र के रूप में उपयोग किया जाता है  
    • प्रशिक्षित मानवीय संसाधन – राष्ट्रीय सेवक संघ के द्वारा स्थापित विभिन्न सरस्वती शिशु मंदिर में एक बच्चे को बाल्यावस्था से ही ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अनुसार शिक्षा दी जाती है फिर मंदिर से लेकर मठ, विभिन्न पीठ, धार्मिक संगठन नई पीढ़ी को अपने संगठनों में सम्मिलित कर उनका ब्रेनवास करके धार्मिक रूप से प्रशिक्षित करते है जो ब्राह्मणवादी मिशन को आगे बढाते है और शासन चलाने में सहायक होते है विभिन्न संगठन ऐसे प्रशिक्षित मानवीय संसाधनों को पुजारी, व्यवस्थापक या ट्रस्टी के रूप में नियुक्त करते है इस प्रकार मंदिर से सभी प्रकार के आवाश्यकताओं की पूर्ति होती है जो एक राष्ट का शासन चलाने के लिए आवश्यक होता है चुकि मंदिर पर केवल ब्राह्मण वर्ग का कब्जा और स्वामित्व है इसलिए भारत में एक सुनियोजित, ब्राह्मणवादी शासन राज कर रहा है                              For more detail read...  (http://www.facebook.com/note.php?note_id=166728076688383).  
    • साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने का उपाय – 
      (१) मंदिर से संगृहीत धन को सरकारी सम्पत्ति माना जाय एवं उसका लेखा-जोखा तैयार किया जाय 
      इस धन का उपयोग समाज के गरीब वर्ग के उत्थान में लगाया जाय 

      (२) बड़े-२ मंदिर जो सार्वजनिक हो, उनमे विभिन्न समुदाय के लोगों को नियुक्त किया जाय तथा उसमें होने वाली गतिविधियों की निगरानी की जाय तथा नियंत्रित किया जाय 

      बहुजन (OBC/SC/ST) समाज के लोग जितनी संख्या में ब्राह्मणवादी कर्मकांड एवं पूजापाठ को त्यागकर समतामूलक समाज बनाने वाले नायको के विचारों से अवगत होगे ब्राह्मणवाद वैसे-२ कमजोर होगा, फिर भी यदि इश्वर में आस्था ही है तो मंदिर में केवल इश्वर की आराधना करे, न कि इश्वर के नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे, यदि दान ही देना हो तो किसी गरीब और जरूरतमंद को दे जैसा कि बौद्ध. इस्लाम, सिक्ख या इसाई जैसे मानवतावादी धर्म में कहा गया है 
नोट - १ - पद्मनाभ मंदिर में 5 लाख करोड़ का खजाना (http://www.bhaskar.com/article/NAT-rs5-lakh-crore-treasure-belongs-to-lord-vishnu-2242419.html)
         २. महालक्ष्मी मंदिर में पूजन के लिए 25 करोड़ की संपत्ति रखी (http://hindi.webdunia.com/webdunia-city-madhyapradesh-ratlam/1111025025_1.htm) २५ अक्टूबर 

शनिवार, 9 जुलाई 2011

दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी कोटा पूरी तरह लागू करो

आज कल नियम तो बनाते हैं पर उनका अनुपालन नहीं होता जिसका सबसे बड़ा खामियाजा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए ओ बी सी के छात्रों के साथ किया जा रहा है. इसी के लिए एक प्रदर्शन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिनांक ११ जुलाई २०११ को करने जा रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में. जिसमें उनकी प्रमुख मांगें होंगी-
  • दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी कोटा पूरी तरह लागू करो
  • दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओबीसी सीटों को सवर्ण सीट में कनवर्ट करना बंद करो
  • ओबीसी का दुश्मन ब्राह्मणवादी वीसी दिनोश सिंह मुर्दाबाद
  • 27% संवैधानिक OBC कोटा लागू करो
  • ओबीसी के खिलाफ सरकारी पैसे से मुकदमा लड़ने वाला ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह शर्म करो
  • अपनी जाति दिखाने वाला ओबीसी विरोधी ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह मुर्दाबाद
  • ओबीसी का 27% कोटा चाहिए, इसी साल चाहिए, अभी चाहिए
  • ब्राह्मणवादी वीसी दिनेश सिंह मुर्दाबाद









सोमवार, 4 जुलाई 2011

जाट राजनीति को गरमाने की कोशिश


जाट राजनीति को गरमाने की कोशिश

(दैनिक जागरण से साभार)
Jul 04, 09:44 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण के मुद्दे पर जाट राजनीति को एक बार फिर गरमाने की कोशिश शुरू कर दी गई है। आरक्षण आंदोलन की आगामी रणनीति बनाने के लिए सोमवार को आयोजित बैठक में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह और कांग्रेस के सांसद शीश राम ओला भी पहुंचे। बैठक में सभी ने एकजुटता की बात दोहराई, लेकिन बैठक से आरक्षण संघर्ष समिति का दूसरा गुट नदारद रहा।
बैठक का आयोजन संयुक्त जाट संघर्ष समिति ने किया था, जिसके अध्यक्ष एचपी सिंह परिहार हैं। जबकि यशपाल मलिक के नेतृत्व वाले अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता इस बैठक से दूर रहे। गुटबाजी की शिकार संघर्ष समिति के नेता राजनीतिक दलों से दूरी बनाए रखने और एकजुटता की अपील करते रहे। तभी रालोद नेता अजित सिंह ने कहा कि आंदोलन की सफलता के लिए एकजुटता जरूरी है।
जाट आरक्षण के लिए संघर्ष की प्रभावी रणनीति बनाने के लिए जिन बड़े नेताओं को मंच पर बुलाया गया था, वे बहुत जल्दी में थे। राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह सबसे पहले बोले और यह कहकर चले गए कि उन्हें तेलंगाना के लोगों के कार्यक्रम में जाना है। हालांकि वह जाट नेताओं को यह जरूर बता गए कि आंदोलन के लिए राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल होनी चाहिए जो इस समय हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नेताओं के मुकाबले जनता का दबाब ज्यादा कारगर होता है।
अजित सिंह ने आंदोलन चलाने वाले नेताओं को चेताया भी कि आंदोलन की एक हद होती है, जिसके भीतर रहकर ही सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है। इसे पार करने से आंदोलन बेकाबू हो जाता है और दूसरे समाज के लोग आपके खिलाफ हो जाते हैं। इससे समस्या और जटिल हो जाती है।
कांग्रेस के सांसद शीश राम ओला ने कहा कि इच्छा शक्ति, प्रतिबद्धता और विश्वास के साथ आंदोलन करेंगे तो सफलता मिलेगी। लेकिन आपको यह सोचना होगा कि कौन आरक्षण दिला सकता है और कौन आरक्षण दे सकता है। राजस्थान में आरक्षण से पूर्व कोई जाट भारतीय प्रशासनिक सेवा में नहीं था, लेकिन आरक्षण के बाद से 140 जाट युवक आईएएस और आईपीएस बन चुके हैं।

शुक्रवार, 17 जून 2011

संपन्न वर्ग (क्रीमी लेयर)



(से साभार)
आरक्षण से अपवर्जित वे व्यक्ति/वर्ग जो समाज में संपन्न वर्ग हैं
संपन्न वर्ग (क्रीमी लेयर)
श्रेणी का विवरणजिन पर अपवर्जन का नियम लागू होगा
सांविधानिक पदनिम्नलिखित के पुत्र और पुत्रियां
क) भारत के राष्ट्रपति
ख) भारत के उप-राष्ट्रपति
ग) उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश
घ) संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
ड.)वे व्यक्ति जो इसी प्रकार के सांविधानिक पदों पर हैं ।
॥ सेवा की श्रेणी
क) अखिल भारतीय केंद्रीय और राज्य सेवाओं के ग्रुप क/श्रेणी । के अधिकारी
(सीधी भर्ती)
निम्नलिखित के पुत्र और पुत्रियां
क) जिनके माता-पिता, दोनों श्रेणी-। के अधिकारी हों
ख) जिनके माता-पिता में से कोई भी श्रेणी-1 का अधिकारी हो
ग) जिनके माता-पिता दोनों श्रेणी-। के अधिकारी हों परंतु उनमें से किसी की भी मृत्यु हो जाए या वह स्थायी रुप से अशक्त हो जाए
घ) जिनके माता-पिता में से कोई भी श्रेणी-। का अधिकारी हो और माता-पिता की मृत्यु हो जाए या स्थायी रुप से अशक्त हो जाए तथा मृत्यु से या ऐसी अशक्तता से पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ (यू एन) अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ), विश्व बैंक आदि जैसे किसी अंर्तराष्ट्रीय संगठन मे ं कम से कम 5 वर्ष की सेवा की हो
ड.) जिनके माता-पिता दोनों श्रेणी-। के अधिकारी हैं एवं उनकी मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रुप से अशक्त हो जाते हैं और इस प्रकार मृत्यु या अशक्तता से पूर्व दोनो ं में या किसी भी एक ने किसी अंर्तराष्ट्रीय संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि में कम से कम 5 वर्ष की सेवा की हो
परंतु निम्नलिखित मामलों में अपवर्जन का नियम लागू नहीं होगा:-
क) उस माता-पिता के पुत्र और पुत्रियां जिनमें से कोई एक या दोनों श्रेणी-। के अधिकारी हैं और उनके माता या पिता की मृत्यु या दोनों की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रुप से अशक्त हो/हों
ख) अन्य पिछड़े वर्ग की श्रेणी की कोई भी महिला जिसका विवाह श्रेणी-। के अधिकारी से हुआ हो और वह स्वयं नौकरी के लिए आवेदन करना चाहती हो ।
ख) केंद्र और राज्य सेवाओं के ग्रुप ख/श्रेणी-॥ के अधिकारी (सीधी भर्ती)निम्नलिखित के पुत्र(पुत्रों) और पुत्री (पुत्रियों) पर -
क) जिनके माता-पिता, दोनों श्रेणी-॥ के अधिकारी हों,
ख) जिनके माता-पिता में से केवल पिता श्रेणी-॥ का अधिकारी हो और 40 वर्ष की आयु का होने पर या इससे पूर्व श्रेणी-। का अधिकारी हो
ग) जिनके माता-पिता दोनों श्रेणी-॥ के अधिकारी हों और उनमें से किसी की भी मृत्यु हो जाए या वह स्थायी रुप से अशक्त हो जाए और उनमें से किसी ने भी मृत्यु से या अशक्तता से पूर्व अंर्तराष्ट्रीय संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि में कम से कम 5 वर्ष की सेवा की हो
घ) माता-पिता में से पिता श्रेणी-। का अधिकारी हो (40 वर्ष की आयु से पूर्व सीधी भर्ती से पदोन्नत हुआ हो) और पत्नी श्रेणी-॥ की अधिकारी हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो या स्थायी रुप से अशक्त हो जाए और
ड) जिनके माता-पिता मे से माता प्रथम श्रेणी अधिकारी हो (सीधी भर्ती अथवा 40 वर्ष की उम्र से पहले पदोन्नत) और पिता द्वितीय श्रेणी का अधिकारी हो और पिता की मृत्यु हो जाए अथवा स्थायी रुप से अशक्त हो जाए ।
किंतु अपवर्जन का नियम निम्नलिखित मामलों में लागू नहीं होगा:-
उन माता-पिता के पुत्र व पुत्रियां:-
(क) जिनके माता-पिता दोनो द्वितीय श्रेणी अधिकारी हों और उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाए अथवा स्थायी रुप से अशक्त हो जाए ।
(ख) जिनके माता-पिता, दोनो द्वितीय श्रेणी अधिकारी हों और दोनों कीद्न मृत्यु हो जाए अथवा स्थायी रुप से अशक्त हो जाए किंतु उनमे से कोई एक ऐसी मृत्यु या अशक्तता से पहले कम से कम 5 वर्ष की अवधि के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि जैसे किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में नियोजित रहे ।
(ग) सार्वजनिक क्षेत्र के उपकमों के कर्मचारीइस श्रेणी में उपर्युक्त ' क ' और ' ख ' में उल्लिखित मानदंड आवश्यक परिवर्तनों के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपकमों, बैंकों, बीमा संगठनों, विश्व विद्यालयों आदि में समतुल्य अथवा समकक्ष पदों पर कार्यरत अधिकारियों और निजी क्षेत्र में समतुल्य अथवा समकक्ष पदों पर कार्यरत अधिकारियों पर भी लागू होंगे । इन संस्थानों में समतुल्य अथवा समकक्ष पदों का मूल्यांकन होने तक उक्त संस्थान के अधिकारियों पर नीचे उल्लिखित वर्ग VI में विनिर्दिष्ट मानदंड लागू होंगे ।
III. अर्ध-सैनिक बलों सहित सस्त्र बल (इसमें सिविल पदधारी व्यक्ति शामिल नहीं हैं)ऐसे माता-पिता के पुत्र और पुत्री (पुत्रियां) जिनमें से कोई एक या दोनों सेना में कर्नल या उससे उच्च रैंक में हैं और नौसेना और वायु सेना और अर्ध-सैनिक बलों में समतुल्य पदों पर हैं, किंतु:-
(i) यदि किसी शस्त्र बल के अधिकारी की पत्नी सशस्त्र बल में कार्यरत है(अर्थात विचाराधीन वर्ग में) तो उस पर अपवर्जन का नियम केवल तब लागू होगा जब वह कर्नल रैंक में आएगा ।
(ii) पति और पत्नी के सेवा रैंक यदि कर्नल से नीचे का हो तो उन्हें आपस में जोडा नहीं जाएगा ।
(iii) यदि सशस्त्र बल में कार्यरत किसी अधिकारी की पत्नी सिविल सेवा में हो तो अपवर्जन का नियम लागू करने के लिए इस तब तक शामिल नहीं किया जाएगा जब तक वह मद संख्या II में उल्लिखित सेवा वर्ग में नहीं आती है और इस स्थिति में उस पर स्वतंत्र रुप से उसमें उल्लिखित मानदंड और शर्र्ते लागू होंगी ।
(IV) व्यावसायिक श्रेणी,
व्यापार और उद्योग में कार्यरत व्यक्ति, डाक्टर,वकील, चार्टर्ड अकाउन्टेंट, आयकर परामर्शदाता वित्त या प्रबंध परामर्शदाता, दंत सर्जन,इंजीनियर,वास्तुकार, कंप्यूटर विशेषज्ञ, फिल्म कलाकार और अन्य फिल्म व्यवसायों , लेखक,पटकथा लेखक, खेलकूद से संबंधित व्यवसायी, मीडिया व्यवसायी के रुप में कार्यरत व्यक्ति या इसी प्रकार की हैसियत के किसी अन्य व्यवसाय में लगे व्यक्ति व्यापार,कारबार और उद्योग में कार्यरत व्यक्ति
श्रेणी- VI के सामने दर्शाया गया मानदंड लागू होगा ।
स्पष्टीकरण
I )जहां पति किसी व्यवसाय में है और पत्नी श्रेणी-॥ या निचले ग्रेड में नियोजित है तो आयकर पति की आय के आधार पर ही लगेगा ।
॥) यदि पत्नी किसी व्यवसाय में है और पति श्रेणी-॥ या निचले ग्रेड में नियोजिति है, तब आय/धन का मानदंड पत्नी के आय के आधार पर लागू होगी और पति की आय को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा ।
सम्पत्ति के स्वामी
क) जोत क्षेत्र
निम्नलिखित का स्वामित्व रखने वाले परिवार (पिता, माता और अवयस्क बच्चे) से संबंधित व्यक्तियो के पुत्र और पुत्री (पुत्रियां)-
क) केवल सिंचित भूमि जो सांविधिक उच्चतम सीमा क्षेत्र के बराबर है या 85 % से अधिक है, या
ख) सिंचित और गैर सिंचित दोनो प्रकार की भूमि, इस प्रकार है :-
1) अपवर्जन का नियम वहां लागू होगा जहां पूर्व शर्त हो कि सिंचित क्षेत्र (डीनोमिनेटर) जो कि एक ही व्यक्ति के नाम मे हो 40 % या सांविधिक उच्चतम सीमा से अधिक सिंचित क्षेत्र (गैर सिंचित हिस्से को हटाकर इसकी गणना की जाती है ) हो यदि 40 % तक की पूर्व-शर्त हो तब केवल गैर-सिंचित क्षेत्र की गणना की जाएगी । ऐसा विद्यमान परिवर्तन फार्मूले के आधार पर गैर सिंचित भूमि को सिंचित प्रकार की भूमि मे परिवर्तित करके किया जाएगा । गैर-सिंचित भूमि से इस प्रकार परिकलित सिंचित क्षेत्र, सिंचित भूमि के वास्तविक क्षेत्र में जोडा जाएगा और यदि बाद में इस प्रकार जोड देने पर सिंचित भूमि का कुल क्षेत्र 85 % है या सिंचित भूमि के लिए सांविधिक उच्चतम सीमा से अधिक है तब अपवर्जन नियम लागू होगा और अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा
2) अपवर्जन यदि परिवार का खेत पूर्णतया असिंचित है तो नियम लागू नहीं होगा ।
ख) बगान
1) कॉफी, चाय, रबर आदि
2) आम, सिट्रस (नींबू आदि), सेब के बागान आदि
नीचे श्रेणी- v । मे दी गई आय/धन का मानदंड लागू नहीं होइन्हे जोत क्षेत्र माना जाता है इसलिए
इस श्रेणी के अधीन उपर्युक्त ' क ' में दिया मानदंड लागू होगा । नीचे श्रेणी ख-1 में दिया मानदंड लागू होगा
ग) नगर बस्तियो में खाली भूमि और/या भवनस्पष्टीकरण:- भवनों का आवासीय, औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजन या इसी प्रकार के दो या अधिक ऐसे प्रयोजनो के लिए उपयोग किया जाए ।
VI आय/धन करपुत्र, पुत्री (पुत्रियां)
क) जिन व्यक्तियों की सकल वार्षिक आय 2 5 लाख रुपए है या इससे अधिक है या जिनके पास लगातार तीन वर्ष से धन कर अधिनियम मे यथा निर्धारित छूट सीमा से अधिक धन है ।
ख) श्रेणी I, II, III और V- क से संबंधित व्यक्ति जिन्हे आरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं किया गया है परंतु जिनकी आय का कोई अन्य स्त्रोत है जो उपर्युक्त उल्लिखित (क) मे दिए गए आय के मानदंड मे आएंगे ।
स्पष्टीकरण:-
1) वेतन या कृषि योग्य भूमि से प्राप्त आय को मिलाया नही जाएगा ।
2) रुपए के संबंध में आय का मानदंड प्रत्येक तीन वर्ष मे इसके मूल्य मे ं परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए आशोधित किया जाएगा । परंतु यदि स्थिति के अनुसार ऐसी मांग हो तो अंतराल को कम किया जा सकता है ।
स्पष्टीकरण:-
इसमें जहां भी स्थायी अशक्तता शब्द आया है वहां इसका अभिप्राय उस अशक्तता से है जिसके परिणामस्वरुप अधिकारी को सेवा से निकाला जा सकता है ।
उत्तर प्रदेश की पिछड़ी जातियां -

अन्य पिछड्ा वर्ग की केन्द्रीय सूची
     
क्रम सं0 जातियों/उप-जातियों तथा संबंधित वर्गों के नाम    
केन्द्रीय सूची मंे प्रविश्ट संख्या
 
उत्तर प्रदेष
1  अहेरिया/अहोरिया 68
2  अहिर, यादव  1
3  अरख, अरकवंषीय 2
4  आतिषबाज, दारूगर 61
5  बैरागी 33
6  बंजारा, कुकेरी, रांकी, मेकरानी 30
7  बरहई, बधई, विष्वकर्मा, रामगढि़या 31
8  बारी 32
9  बिंद 34
10  बियार 35
11  भांड  64
12  भर 36
13  भटियारा 38
14  भुरजी, भड़भूजा, भड़भूंजा, भूज, कंडु 37
15
बोट (बोटिया के अलावा जो उत्तर प्रदेष में अनुसूचित जनजाति में पहले से ही
षामिल हैं)
69
16  छिपी, छिपे 18
17  चिकवा, कस्साब (कुरैषी) कसाई/कास्साई चाक 17
18  दफाली 21
19  दर्जी 24
20  धीवर,धीवेर 25
21
धेबी (उनको छोड़कर जो पहले ही उत्तर प्रदेष की अनुसूचित जातियों की सूची
में षामिल हैं)
55
22  दोहर  72
23  फकीर 29
24  गडेरिया 14
25  गद्दी, घोसी 15
26  गिरी 16
27  गोसांई 12
28  गूजर 13 29  हज्जाम (नाई) सलमानी, नाई, सैन (नाई) 53
30  हलालखोर, हेला, लालबेगी (जो अनुसूचित जाति में हैं, उनको छोड़कर) 54
31  हलवाई  52
32  झोजा 20
33  जोगी 19
34  काछी, काच्छी-कुषवाहा, षाक्या 3
35  कहार, तंवर सिंघारिया 4
36  कलाल, कलवार, कलार 71
37  कासगर  10
38  कसेरा, ठठेरा, ताम्राकर, कलईकर 73
39  केवट या मल्लाह 5
40  खुम्रा, संगतराष, हंसिरी 59
41  किसान 6
42  कोईरी/कोइरी 7
43  कोष्ता/कोष्ती 58
44  कुम्हार, प्रजापति 8
45  कुंजड़ा या रायीन 11
46  कुर्मी , कुर्मी-सैंथवार/कुर्मी-माल्ल 9
47  कुथालिया बोरा अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ बागेष्वर या नैनीताल जिलों से संबंधित 70
48  लोध, लोधा, लोध्ी, लोध्ी-राजपूत 48
49  लोहार, लुहार, सैफी 49
50  लोनिया, नोनिया, लुनिया, गोले ठाकुर, नुनेरे 50
51  मदारी 62
52  माली, सैनी, बागबान  39
53
मनिहार, काचेर, लखेड़ा (टिहरी गढ़वाल क्षेत्र की लखेड़ा ब्राहमण उपजाति को
छोड़कर), चूड़ीहार
40
54  मारछा  46
55  मेवाती, मेव 56
56  मिरासी 43
57
मोची जो उत्तर प्रदेष की अनुसूचित जातियों की सूची में षामिल हैं, उनको
छोड़कर)
65
58  मोमिन (अंसार, अंसारी), जुलाह 42
59  मुराव-या मुराई मौर्य 41
60  मुस्लिम कायस्थ 44
61  नद्दफ (धुनिया), मंसूरी, बेहना, कंडेरे, कडेरे, पिंजारा 45
62  नालबंद, सैस 63 63  नक्काल 26
64  नायक 28
65  नट (जो अनुसूचित जातियों की सूची में षामिल है, उनको छोड़कर) 27
66
पटवा, पटुआ, पाथर (अग्रवाल देवबंसी, खरेवाल या खंडेलवाल जो बनिया
उपजातियां हैं, इसमें षामिल नहीं है और खारवार जो राजपूत जाति है, भी इसमें
षामिल नहीं है), ततवा
60
67  रा-सिक्ख (महातम) 74
68  राज (मेमार) 66
69  रंगरेज, रंगवा 47
70  सक्का-भिष्ती, भिष्ती-अब्बासी 57
71  षेख सरवारी (पिराई), पिराही 67
72  सोनार, सुनार  51
73  तमोंली, बरई, चैरसिया 22
74  तेली, समानी, रोगनगर, तेली-मलिक (मुस्लिम), तेली, साहू, तेली राठौर
      स्पश्टीकरणः उन जातियों को जिन्हें धर्म के नाम के विषेश उल्लेख्,ा के साथ
      प्रविश्ट किया गया है, को छोड़कर उत्तर प्रदेष की उपर्युक्त सूची में परंपरागत
      पुष्तैनी धंधों से संबंधित सभी जातियों को षामिल किया गया है, चाहे उनसे
      संबंकिधत व्यक्ति हिंदू, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म के अनुयायी हों ।
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75  उनायी साहु  75

रविवार, 15 मई 2011

बिहार पर रणवीर सेना की सामाजिक शक्तियों का कब्‍जा है.................


सत्ता का सामंजस्य 
(प्रेम कुमार मणि  जी को मैं सुना था पढ़ा आज हूँ, इन्होने श्री नितीश जी के 'सोच विन्यास में दलित और पिछड़ों की जगह का खुलासा किया है. जो सार आपके लेख में (नितीश के नाम पत्र) में है कमोबेश सभी दलित और पिछड़े शासकों में है. उत्तर प्रदेश हो गुजरात हो बिहार हो राजस्थान हो या देश का कोई राज्य जहाँ ये पिछड़ी जाति के लोग शासन कर रहे हों लगभग एसा ही है, शायद हम इनकी मज़बूरियों से नावाकिफ हैं ये जान गए हैं कि ये पिछड़ों दलितों के दम पर राज्य नहीं कर सकते  - डॉ.लाल रत्नाकर )
(सौजन्य - मोहल्ला लाइव से-)
हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और जदयू से बिहार विधान परिषद के सदस्य प्रेमकुमार मणि के पटना स्थित आवास पर 5 मई, 2011 की सुबह तीन बजे जानलेवा हमला किया गया। सत्ता द्वारा पोषित गुंडे प्रेमकुमार मणि के घर में खिड़की उखाड़ कर घुस गये। संयोग से मणि उस सुबह उस कमरे में नहीं सोये थे, जिसमें रोजाना सोते थे। गौरतलब है कि प्रेमकुमार मणि ने पिछले दिनों सवर्ण आयोग के मुद्दे पर नीतीश कुमार का विरोध किया था। मणि कई बार सार्वजनिक मंचों से अपनी हत्या की आशंका जता चुके हैं। मजदूर दिवस पर 1 मई को जेएनयू (माही), नयी दिल्ली में आयोजित जनसभा में भी उन्होंने कहा था कि उनके विचारों के कारण उनकी हत्या की जा सकती है लेकिन वे झुकेंगे नहीं। ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम और यूनाइटेड दलित स्टूडेंट्स फोरम दलित-पिछड़ों के प्रमुख चिंतक प्रेमकुमार मणि पर हमले की निंदा करता है। हम यहां मणि द्वारा 25 अप्रैल, 2009 को बिहार के मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र जारी कर रहे हैं। यह पत्र अब तक अप्रकाशित है : 
प्रमोद रंजन

सेवा में,

श्री नीतीश कुमार

माननीय मुख्यमंत्री, बिहार

पटना, 25 अप्रैल, 2009
आदरणीय भाई,

हुत दु:ख के साथ और तकरीबन तीन महीने की ऊहापोह के बाद यह पत्र लिख रहा हूं। जब आदमी सत्ता में होता है, तब उसका चाल-चरित्र सब बदल जाता है। आपके व्यवहार से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई।

यह पत्र कोई व्यक्तिगत आकांक्षा से प्रेरित हो, यह बात नहीं। मैं बस आपको याद दिलाना चाहता हूं कि जब आप मुख्यमंत्री हुए थे और पहली दफा सचिवालय वाले आपके दफ्तर में बैठा था, और केवल हम दोनों थे, तब मैंने आत्मीयता से कहा था कि आप सबॉल्टर्न नेहरू बनने की कोशिश करें। मेरी दूसरी बात थी कि बिहार को प्रयोगशाला बनाना है और राष्‍ट्रीय राजनीति पर नजर रखनी है।
आज जब देखता हूं, तब उदास होकर रह जाता हूं। ऐसे वक्त में जब चारों ओर आपकी वाहवाही हो रही है और विकास-पुरुष का विरुद्ध अपने गले में डाल कर आप चहक रहे हैं – मेरे आलोचनात्मक स्वर आपको परेशान कर सकते हैं। लेकिन हकीकत यही है कि बिहार की राजनीति को आपने सवर्णों-सामंतों की गोद में डाल दिया है।
दरअसल बिहार में रणवीर सेना-भूमि सेना की सामाजिक शक्तियां राज कर रही हैं। इनके हवाले ही बिहार में इनफ्रास्‍ट्रक्चर का विकास है। एक प्रच्छन्न तानाशाही और गुंडाराज अशराफ अफसरों के नेतृत्व में चल रहा है और आप उसके मुखिया बने हैं।
कभी आप कर्पूरी ठाकुर की परंपरा की बात करते थे। आज आत्मसमीक्षा करके देखिए कि आप किस परंपरा में हैं। बिहार के गैर-कांग्रेसी राजनीति में दो परंपराएं हैं। एक परंपरा कर्पूरी जी की है, दूसरी भोला पासवान और रामसुंदरदास की। व्याख्या की जरूरत मैं नहीं समझता। आपने रामसुंदर दास की परंपरा अपनायी, कर्पूरी परंपरा को लात मार दी। ऊंची जातियों को आपका यही रूप प्रिय लगता है। वे आपके कसीदे गढ़ रहे हैं। मेरे जैसे लोग अभी इंतजार कर रहे हैं, आपको दुरुस्त होने का अवसर देना चाहते हैं। इसलिए अति पिछड़ी जातियों और दलितों के एक हिस्से में फिलहाल आपका कुछ चल जा रहा है। इन तबकों के लोग जब हकीकत जानेंगे, तब आप कहां होंगे, आप सोचें।
तीन साल की राजनीतिक उपलब्धि आपकी क्या रही? गांधी ने नेहरू जैसा काबिल उत्तराधिकारी चुना। कर्पूरी जी ने जो राजनीतिक जमीन तैयार की, उसमें लालू प्रसाद और नीतीश कुमार खिले। लेकिन आपने जो राजनीतिक जमीन तैयार की, उसमें कौन खिला? और आप कहते हैं कि बिहार विकास के रास्ते पर जा रहा है। हमने जर्मनी का इतिहास पढ़ा है। हिटलर ने भी विकास किया था। जैसे आपको बिहार की अस्मिता की चिंता है, वैसे ही हिटलर को भी जर्मनी के अस्मिता की चिंता थी। लेकिन हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी आखिर कहां गया?
इसलिए मेरे जैसे लोग आपकी सड़कों को देखकर अभिभूत नहीं होते। इसकी ठीकेदारी किनके पास है? इसमें कितने पिछड़े-अतिपिछड़े, दलित-महादलित लगे हैं। आप बताएंगे? लेकिन आप बिहार के विकास में लगी राशि का ब्योरा दीजिए। मैं दो मिनट में बता दूंगा कि इसकी कितनी राशि रणवीर सेना-भूमि सेना के पेट में गयी है। तो आप जान लीजिए, आप कहां पहुंच गये हैं? किस जमीन पर खड़े हैं?
आपके निर्माण में मेरी भी थोड़ी भूमिका रही है। जैसे कुम्हार मूर्ति गढ़ता है, ठीक उसी तरह हमारे जैसे लोगों ने आपको गढ़ा है। नया बिहार नीतीश कुमार का नारा था। हर किसी ने कुछ न कुछ अर्घ्‍य दिया था। हृदय पर हाथ रख कर कहिए अति पिछड़ों, महादलितों और अकलियतों के कार्यक्रमों को किसने डिजाइन किया था? मैंने इन सवालों की ओर आपका ध्यान खींचा और आपका शुक्रिया कि आपने इन्हें राजनीतिक आस्था का हिस्सा बनाया।
लेकिन दु:खद है ऊंची जातियों के दबाव में इन कार्यक्रमों का बधियाकरण कर दिया गया। सरकारी दुष्‍प्रचार से इन तबकों में थोड़ा उत्साह जरूर है लेकिन जब ये हकीकत जानते हैं, तो उदास हो जाते हैं। क्या आप केवल एक सवाल का जवाब दे सकते हैं कि किन परिस्थितियों में एकलव्य पुरस्कार को बदलकर दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार कर दिया गया? दीनदयाल जी का खेलों से भला क्या वास्ता था?
मनुष्‍य रोटी और इज्जत की लड़ाई साथ-साथ लड़ते हैं। रोटी और इज्जत में चुनना होता है, तो मनुष्‍य इज्जत का चुनाव करते हैं। रोटी के लिए पसीना बहाते हैं, इज्जत के लिए खून। और आपने दलितों-पिछड़ों की इज्जत, उनकी पहचान को ही खाक में मिला दिया।
आज आपकी सरकार को किसकी सरकार कहा जाता है? आप ही बताइए न! सामंतों के दबाव में आकर भूमि सुधार आयोग और समान स्कूल शिक्षा प्रणाली आयोग की सिफारिशों को आपने गतालखाने में डाल दिया जिसे, डी मुखोपाध्याय और मुचकुंद दुबे ने बहुत मिहनत से तैयार किया था और जिसके लागू होने से गरीबों-भूमिहीनों की किस्मत बदलने वाली थी। आपने यह नहीं होने दिया।
तो आदरणीय भाई नीतीश जी, बहुत प्यार से, बहुत आदर से आपसे गुजारिश है कि आप बदलिए। अपने चारों ओर ऊंची जाति के लंपट नेताओं और स्वार्थी मीडियाकर्मियों का आपने जो वलय बना रखा है उसमें आप जितने खूबसूरत दिखें, पिछड़े-दलितों के लिए खलनायक बन गये हैं।
कर्पूरी जी मुख्यमंत्री से हटाये गये, तो जननायक बने थे। समाजवादी नेता से उनका रूपांतरण पिछड़ावादी नेता में हुआ था। लेकिन आपका रूपांतरण कैसे नेता में हुआ है? आप नरेंद्र मोदी की तरह ‘लोकप्रिय` और रामसुंदर दास की तरह ‘भद्र` दिख रहे हैं। बहुत संभव है, आप नरेंद्र मोदी की तरह चुनाव जीत जाएं। लेकिन इतिहास में – पिछड़ों के सामाजिक इतिहास में – आप एक खलनायक की तरह ही चस्पां हो गये हैं। चुनाव जीतने से कोई नेता नहीं होता। जगजीवन राम और बाबा साहेब आंबेडकर के उदाहरण सामने हैं। आंबेडकर एक भी चुनाव जीते नहीं और जगजीवन राम एक भी चुनाव हारे नहीं। लेकिन इतिहास आंबेडकरों ने बनाया है, जगजीवन रामों ने नहीं।
और अब आपके सुशासन पर; सवर्ण समाज रामराज की बहुत चर्चा करता है…
दैहिक दैविक भौतिक तापा

राम राज कहुहि नहीं व्यापा

तुलसीदास ने ऐसा कहकर उसे रेखांकित किया है। लेकिन राम राज अपने मूल में कितना प्रतिगामी था, आप भी जानते होंगे। वहां शंबूकों की हत्या होती थी और सीता को घर से निकाला दिया जाता था। आपके राम राज का चारण कौन है, आप जानें-विचारें। मैं तो बस दलितों-पिछड़ों और सीताओं के नजरिये से इसे देखना चाहूंगा। मैं बार-बार कहता रहा हूं, हर राम राज (आधुनिक युग के सुशासन) में दलितों-पिछड़ों के लिए दो विकल्प होते हैं। एक यह कि चुप रहो, पूंछ डुलाओ, चरणों में बैठो – हनुमान की तरह। चौराहे पर मूर्ति और लड्डू का इंतजाम पुख्ता रहेगा।
दूसरा है शंबूक का विकल्प। यदि जो अपने सम्मान और समानाधिकार की बात की तो सिर कलम कर दिया जाएगा। मूर्तियों और लड्डुओं का विकल्प मैं ठुकराता हूं। मैं शंबूक बनना पसंद करूंगा। मुझे अपना सिर कलम करवाने का शौक है।
आपकी पुलिस या आपके गुंडे मुझे गोली मार दें। मैं इंकलाब बोलने के लिए अभिशप्त हूं।
आपका,

प्रेमकुमार मणि

2, सूर्य विहार, आशियाना नगर, पटना


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Rajeev Ranjan said:
नीतीश कुमार की कारस्तानियों के बारे में जबरदस्त रिपोर्ट २००८ में छपी थी. यहाँ कापी पेस्ट कर रहा हूँ. इसे पढ़िए तब बात करेंगे. rejeev
प्रतिक्रांति के तीन साल
- विनोद कुंतल
अगर आपके विरोधी आपकी तारीफ करते हैं तो समझिए कि आप गलत रास्ते पर हैं-लेनिन
चारों ओर से वाह, वाह का शोर है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वाहवाही के समंदर में उब-डूब कर रहे हैं. कोई विकास पुरुष कह रहा है, कोई सर्वश्रेष्‍ठ मुख्यमंत्री तो कोई भावी प्रधानमंत्री. इन प्रशंसकों ने उनके आसपास भव्य और गुरुगंभीर महौल सृजित करने की भी भरपूर कोशिश की है. कोसी की बाढ़ ने रंग में भंग जरूर डाला है लेकिन राग मल्हार अब भी जारी है.
कौन हैं ये प्रशंसक? क्या ये समाजवाद के समर्थक हैं? सामाजिक न्याय के हिमायती हैं? अगर नहीं, तो ये समाजवादी नेता नीतीश कुमार की प्रशंसा में कसीदे क्यों काढ़ रहे हैं? जाहिर है, नीतीश के आसपास आरक्षण विरोधियों का जमावड़ा अनायास तो नहीं ही है.
इसे समझने के लिए राजग के वोट समीकरण व नीतीशकुमार की मानसिक बुनावट को समझना होगा. राजग ‘नया बिहार-नीतीश कुमार’ के नारे के साथ सत्ता में आया है. अगर नीतीश कुमार का नाम न होता तो राजग को अति पिछड़ी जातियों, पसमांदा मुसलमानों का समर्थन नहीं मिलता. मार्च, २००५ में हुए विधान सभा चुनाव में भी माना जा रहा था कि राजग सत्ता में आया तो नीतीश मुख्यमंत्री बन सकते हैं लेकिन गठबंधन के स्तर पर इसकी साफ तौर पर घोषणा नहीं की गयी थी. उस चुनाव में अपेक्षा से कम वोट मिलने के बाद राजग (भाजपा) को महसूस हुआ कि किसी पिछड़े नेता के नाम के बिना उसकी नैया पार नहीं हो सकती. इसलिए राष्‍ट्रपि‍त शासन के बाद फिर चुनाव हुआ तो भाजपा ने नीतीश को बतौर मुख्यमंत्री घोषित करते हुए- ‘नया बिहार-नीतीश कुमार’ का स्लोगन बनाया. इस स्लोगन के अपेक्षित परिणाम आये. नीतीश कुमार को फेन्स पर खड़े पिछड़े तबके ने दिल खोलकर वोट दिया. दरअसल, वे लालू को किसी अपर कास्ट नेता से पदच्यूत कराना नहीं चाहते थे. इस तरह नीतीश कुमार ने बाजी जीती. लेकिन नीतीश कुमार को हमेशा यही विश्‍वास रहा कि उनकी जीत उंची जातियों के सहयोग के कारण हुई है. पिछड़ी जातियों के सहयोग को उन्होंने नजरअंदाज किया.
दरअसल नीतीश को दो तरह के वोट मिले थे. एक तो सामंतों का वोट था दूसरा पिछड़ों का. सामंतों का वोट बहुप्रचारित ‘पिछड़ा राज’ हटाने के लिए था. पिछड़ों का वोट विकास के लिए था.लेकिन सत्ता में आने के साथ ही सामंती ताकतों ने उन्हें अपने घेरे में लेना शुरू कर दिया. सत्ता के शुरूआती दिनों में नीतीश ने इसका प्रतिरोध किया लेकिन पांच-छह महीने में ही वह इन्हीं ताकतों की गोद में जा बैठे. उनके इस आत्मसमर्पण के साथ ही बिहार में के प्रतिक्रांति दौर की शुरूआत हो गयी. लंबे संघर्ष से बिहार के पिछड़े तबकों को जो आत्मसम्मान हासिल हुआ था, उसे अचानक ध्वस्त किया जाने लगा. पंचायत से लेकर विधानमंडल तक के जनप्रतिनिधियों पर द्विज नौकरशाही का शिकंजा कस दिया गया. रणवीर सेना जैसे संगठन का तो जैसे राज्य-सत्ता में विलय ही हो गया. दूसरी ओर माओवाद को खत्म करने के नाम बड़े पैमाने पर पिछड़े तबके के युवकों को मरवाया गया तथा नक्सल संगठनों के लगभग सभी नेताओं को चौतरफा घेराबंदी कर जेलों में ठूंस दिया गया है. इन संगठनों से वैचारिक असहमति रखने के बावजूद, शायद ही कोई इससे असहमत होगा कि दूर-दराज के गांवों में शक्ति-संतुलन कायम रखने में इन्होंने बड़ी भूमिका निभायी है. इनकी गैरमौजूदगी ने कई ईलाकों में सामंती ताकतों का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है. रही-सही कसर द्विज नौकरशाही पूरी कर रही है. गांव-गांव में ‘बाभन राज’ वापस आ जाने की घोषणाएं की जा रही हैं. पिछड़े-दलित तबकों के सामने अपमान और विश्‍वासघात के इन घूंटों को पीने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.
शुरू के पांच-छह महीने में नीतीश सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा पर अमल करते हुए सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूत करने वाले अनेक फैसले किये थे. इनमें अत्यंत पिछड़ों के लिए पंचायत चुनाव में २० फीसदी तथा महिलाओं के लिए ५० फीसदी आरक्षण सबसे महत्वपूर्ण था. महिलाओं के लिए ५० फीसदी आरक्षण का फैसला बाद में हुई शिक्षक नियुक्ति में भी बरकरार रखा गया. यह ऐसे फैसले थे जो बिहारी समाज को आतंरिक रूप से बदलने की क्षमता रखते थे. शुरूआती महीनों में सत्ता में पिछड़ी जातियों के नेताओं की सशक्‍त हिस्सेदारी के भी संकेत दिखते रहे. लेकिन जल्दी ही सब कुछ बदलने लगा. पंचायत चुनाव में मिला आरक्षण अत्यंत पिछड़ों के लिए ‘काल’ बन गया. इस आरक्षण के कारण जो द्विज तथा गैर द्विज दबंग जातियां पंचायत चुनाव न लड़ सकीं थीं उन्होंने नौकरशाही के साथ गठबंधन कर, चुनाव जीत कर आए पंचायत प्रतिनिधियों को घेरना शुरू किया. अतिपिछड़ी जातियों के सैकड़ों मुखिया व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों पर विभिन्न आरोपों में मुकदमे दर्ज किये गये. इनमें कइयों को गैर जमानतीय धाराओं में जेलों में डाला गया.
इन सबके साथ-साथ जनता दल (यू) के शीर्ष पर भी यह परिवर्तन साफ दिखने लगा. सामंत-द्विज तबके के लोग पार्टी तथा राज्य सरकार में हावी होने लगे. चुनाव के दरम्यान विजेंद्र प्रसाद यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. उपेंद्र कुशवाहा की बड़ी हैसियत थी. विजेंद्र-उपेंद्र की जोड़ी का जिक्र खुद नीतीश कुमार शान से करते थे. प्रेमकुमार मणि जैसे चिंतक-लेखक तब नीतीश कुमार के खासम-खास थे, जिनसे हर बात में सलाह ली जाती थी. लेकिन राज पाट आते ही प्राथमिकताएं बदल गयीं. पिछड़े वर्गों से आने वाले नेता धकिया दिये गये. ‘विजेंद्र-उपेंद्र की जोड़ी की जगह ‘ललन-प्रभुनाथ’ की जोड़ी हावी हो गयी. प्रेमकुमार मणि की जगह शिवानंद तिवारी लाये गये. नीतीश कुमार ने प्रयास करके पिछड़ा राज वाली छवि को खत्म किया. सामंती ताकतों को विश्‍वास में लेने के लिए शीर्षासन करने से भी नहीं चूके. जिन श्‍ाक्तियों ने बिहार में सामाजिक न्याय का आंदोलन पुख्ता किया था, उन सबको नीतीश कुमार ने एक-एक कर अपमानित किया. कोशशि की गयी कि अतिपिछड़ों और मुसलमानों को रणवीर सेना-भूमि सेना का पिछलग्गू बनाया जाए. अतिपिछड़ों की राजनीतिक शक्ति को सामाजिक परिवर्तन के बजाए द्विजवाद के विस्तार में लगाया गया. भागलपुर में एक अशराफ मुसलमान और विमगंज में एक अशराफ महिला को इसी ताकत पर लोकसभा भेजा गया.
सत्ता में आने के बाद जदयू में पार्टी स्तर पर नीतीश कुमार की तानाशाही भी बढ़ती गयी है. जार्ज फर्नांडिस को हाशिये पर धकेलने के बाद अब उनके निशाने पर शरद यादव हैं. शरद को किनारे करने के लिए भी ‘उपेक्षा’ की वही तकनीक लागू की जा रही है जो जार्ज के लिए की गयी थी. कुल मिलाकर यह कि पिछले तीन सालों में बिहार की सत्ताधारी पार्टी रणवीर सेना-भूमिसेना के साझा संगठन में तब्दील होती गयी है. इसे सत्ता में लाने वाली जातियों को हाशिये पर धकेल दिया गया है.
नीतीश कुमार की जकड़बंदी करने वाली सामंती ताकतें यही चाहती थीं. प्रशंसा की जो दुदुभियां बजायी जा रही हैं, उनका राज भी यही है. इस ‘रास्ते’ पर आगे बढ़ रहे नीतीश को उमा भारती और कल्याण सिंह जैसे पिछड़े नेताओं का हश्र जरूर याद रखना चाहिए.



Increase fees 5-fold, make IITs independent, says govt panel

Increase fees 5-fold, make IITs independent, says govt panel


A panel of experts appointed by the government has recommended that the Indian Institutes of Technology (IITs) be allowed to raise fees five-fold, so they are not dependent on state funds and, therefore, have greater autonomy.
“IITs (should) be made independent of non-plan (operational) support from the government for their operational expenditure while at the same time seeking greater plan (capital) support to enhance research in a comprehensive manner,” the committee, headed by nuclear scientist Anil Kakodkar, said in its 278-page report to the HRD ministry.
Tuition fees should be raised from the current Rs 50,000 per year to about Rs 2 lakh-2.5 lakh annually, so the full operational cost of education — roughly 30 per cent of the total — is covered, the committee has said.
“This would be reasonable considering the high demand for IIT graduates and the salary that an IIT B.Tech is expected to get,” says the report. A “hassle-free bank loan scheme” without collateral should be devised for IIT students.

The ministry should pay fully for fees and living expenses of both undergraduate and research (PG) students from society’s weaker sections, says the report. Every student whose parents’s annual income is less than Rs 4.5 lakh should be offered a scholarship to cover fees, plus a monthly stipend. The parental income limit should be revised periodically.
“Most US universities charge overheads to the tune of 50 per cent¿” the panel has argued, adding that industrial consultancy and royalty, alumni and industrial grants/donations and continuing education programmes, including executive M.Tech programmes, could boost IITs’ finances.
... contd.

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन

प्रोफ. ईश्वरी प्रसाद जी का निधन  दिनांक 28 दिसम्बर 2023 (पटना) अभी-अभी सूचना मिली है कि प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी का निधन कल 28 दिसंबर 2023 ...