संविधान



उर्मिलेश जी का आलेख :

पता चला, सत्ताधारी दल के OBC सांसदों ने राहुल गांधी के खिलाफ संसद परिसर में धरना दिया. लोकतंत्र में अपनी बात कहने और धरना-प्रदर्शन का हर किसी को अधिकार प्राप्त है. इसलिए भाजपा के OBC सांसदों के धरना देने पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. लेकिन उनके धरने के मुद्दे या विषय पर जरूर सवाल उठना चाहिए.
इस बारे में एक पत्रकार के तौर पर आज मैने विभिन्न हिंदी-भाषी राज्यों के कुछ प्रमुख OBC नेताओं-कार्यकर्ताओं -प्रतिनिधियों की राय जानने की कोशिश की. इनमें ज्यादातर ने भाजपा के OBC सांसदों के धरने के मुद्दे पर विस्मय प्रकट किया. उनमें कइयों ने भाजपा के ओबीसी सांसदों के धरना पर सवाल उठाते हुए कहा कि काश, ये सांसद आम ओबीसी लोगों के मुद्दों पर कुछ करते, ये नीरव मोदी और ललित मोदी जैसे अरबपतियों में ओबीसी की खोज क्यों कर रहे हैं?
भाजपा के सांसद इन दिनों 'OBC हित' और 'OBC अपमान' आदि को लेकर काफी मुखर हैं. धरना तक देने आ गये हैं. शायद पहली बार भाजपा के OBC सांसद धरना पर गये हैं. अचरज की बात कि वे OBC समाज की किसी मांग या चिंता को वे नहीं मुखरित कर रहे हैं. वे तो अपनी पार्टी यानी भाजपा के राजनीतिक मुद्दे पर धरना दे रहे हैं!
अगर BJP के सांसदों को सचमुच OBC के मुद्दों की चिंता है तो वे मौजूदा दौर में भारत के OBC समाज की पांच सबसे बड़ी मांगों के पक्ष में धरना क्यों नहीं देते? OBC समाज के लोगों से बातचीत के आधार पर हमने उन पांच प्रमुख मांगों को यहां दर्ज किया है.
पहली मांग:
राष्ट्रीय जनगणना में मोदी जी की भाजपा सरकार पहले ही काफी देर कर चुकी है. अब देर किये बगैर वह अविलंब 2023 में ही जातिवार जनगणना(Caste wise Census) की अधिसूचना जारी करे. इसके लिए भाजपा की केंद्र सरकार को विपक्षी दलों का भी समर्थन मिलेगा. कोई दल जातिवार जनगणना का विरोध नहीं कर रहा है. सिर्फ RSS-BJP ही विरोध में हैं. भाजपा के OBC सांसद इस मुद्दे पर संसद परिसर में धरना देंगे तो शायद RSS-BJP अपनी जिद छोड़कर जनगणना के लिए तैयार हो जायेंगे.
दूसरी मांग:
दलित-आदिवासी-ओबीसी आरक्षण को बेमतलब बनाने वाली भाजपा सरकार की 'लेटरल इंट्री' नीति फौरन खत्म की जाय! मोदी सरकार 'लेटरल इंट्री' के तहत आमतौर पर अमीर समुदाय के लोगों को ही नियुक्त करती आ रही है. अग्निवीर योजना भी फौरन रद्द हो. सरकारी उपक्रमों का निजीकरण/विनिवेशीकरण बंद किया जाय क्योंकि इससे आरक्षण के प्रावधान अप्रासंगिक हो जा रहे हैं. ओबीसी समाज इन मुद्दों पर आज हर क्षेत्र में आवाज उठा रहा है.
तीसरी मांग:
यूपी सहित भाजपा-शासित ज्यादातर राज्यों में शैक्षिक संस्थानों और अन्य सरकारी उपक्रमों में ओबीसी के 27 फीसद आरक्षण के नियम का पालन नहीं कर रही है. OBC के लिए निर्धारित सीटों पर Not found suitable की टिप्पणी दर्ज कर नियुक्ति छोड़ दी जा रही है. कुछ समय बाद उन स्थानों पर अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को नियुक्त कर लिया जा रहा है. अगर इस मामले में किसी को कन्फ्यूजन है तो केंद्र की मोदी सरकार इस पूरे प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवारत न्यायधीश की निगरानी में अपने 'ओबीसी कमीशन' द्वारा ही जांच कराकर 'श्वेत पत्र' लाया जाय!
चौथी मांग:
केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों के जरिये विभिन्न राज्यों में सक्रिय ओबीसी पृष्ठभूमि के विपक्षी नेताओं को सताने और झूठे मामले में फंसाने की आदत से बाज आये. इस बारे में लोगों ने बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को फंसाने की ताजा कोशिशों की खास तौर पर चर्चा की..इससे पहले यूपी, बिहार, झारखंड, बंगाल, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ सहित कई राज्यों के OBC पृष्ठभूमि के नेताओं को तरह-तरह के मामलों में फंसाने की कोशिश की गयी है.
पांचवीं मांग:
दलित आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को निजी क्षेत्र के उपक्रमों में आरक्षण मिले.

साभार उर्मिलेश जी के पेज से ;
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