मंगलवार, 18 मई 2021

सकारात्मकता

 सकारात्मकता

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हालांकी इससे पहले मैंने सकारात्मकता पर काफी कुछ लिखा है, लेकिन सकारात्मकता है कि समझ में नहीं आती। क्या सचमुच इस सरकार ने सकारात्मक होने की मनसा बना ली है और अगर बना ली है तो उसके प्रति व्यक्ति ईमानदार है. यह बात नीचे संलग्न उर्मिलेश जी की चंद लाइनों में स्पष्ट हो जाता है।
"अपने जैसे देश में लोक-तंत्र भी क्या चीज़ है! बेचारा 'लोक' समझ भी नहीं पाता कि उसके नाम से चलने वाले 'तंत्र' को कुछ मुट्ठी भर लोग चलाते हैं! अपना सारा इंतजाम राजाओं जैसा करते हैं और लोक(की हर श्रेणियां) की मेहनत 'लोक' के काम भी नहीं आती! बेमौत मरने को मुक्ति कह दिया जाता है।

संविधान के सुंदर अनुच्छेद 'तंत्र' की समयबद्ध शोभायात्रा निकालते हैं! असमानता के आकाश से पुष्प-वर्षा होती है. 'तंत्र' के सारे निकाय अपने अपने निर्देशित-काम में लग जाते हैं. 'लोक' ढोल पीटता है और 'तंत्र' निहाल हो जाता है!
डाक्टर बी आर अम्बेडकर की सारी आशंकाएं(25 नवम्बर, 1949) सही साबित हो रही हैं."

जैसे अब तक आपदा में अवसर, क्रूरता में करुणा और आत्मनिर्भर भारत के चलते माननीय मौजूदा प्रधान सेवक के बेबाक जुमलों ने किस तरह से देश को खोखला किया है, भक्तों के सिवा सबको पता है, शायद अब भक्तों को भी पता हो ही गया होगा। ऐसी धूर्तता जब किसी राष्ट्र का प्रमुख व्यक्ति करता है तो निश्चित तौर पर बाबा साहब अंबेडकर की चिंता की आशंका जायज रही होगी कि यह संविधान किसके हाथों संचालित और संरक्षित होगा या रहेगा । आज उनकी कही गई बातों को हमारे मौजूदा शासकों ने प्रमाणित करके दिखा दिया है।

संविधान की मूलभूत अवधारणाओं को बदल कर के पूंजीवादी और तानाशाही तंत्र स्थापित करके यह जो कुछ करना चाह रहे थे उसके लिए आज इनको सकारात्मक होने की सुधि आई है। जिसे यह पिछले 7 सालों से पूरी नकारात्मकता के साथ क्रियान्वित कर रहे थे ? क्या सचमुच इनके मन में कोई सकारात्मक भाव उत्पन्न हुआ है या केवल अपनी नकारात्मकता को छुपाने के लिए सकारात्मकता का स्लोगन लेकर के आ रहे हैं। जैसा की आपदा में अवसर का नारा दिया और जितनी मनमानी करनी थी वह सब कर डाले। क्रूरता से करुणा का परिचय तो इन्होंने आते ही देना शुरू कर दिया था मॉब लिंचिंग, दलित उत्पीड़न, साहित्यकारों, बुद्धिजीविओं और कलाकारों को जेल में डालना यह सब काम इन्होंने बखूबी अपनी नकारात्मक सोच की वजह से संपन्न किया। फिर आया इनका नारा आत्मनिर्भर भारत ? अब आत्मनिर्भर बनाने के चक्कर में इन्होंने नए सिरे से भारतीय लोगों की पहचान करनी शुरू की। उसके लिए कानून लाए। जिसके खिलाफ बड़ा आंदोलन चला और इसके बाद इन्होंने दिल्ली में एक संप्रदाय और जाति विशेष के लोगों को जानबूझकर के मरवाया। और अपने अपराधियों को बचाया ? निरपराध लोगों को जेल में घुसाया/डलवाया । यह सब चल ही रहा था कि कोरोना का कहर आ गया और अब तक की इनकी सारी नकारात्मकता को पाखंड के सहारे लोगों में छुपाने का एक और खेल आरम्भ किया।


पाखंड का नाटक वायरस के खिलाफ इन्होंने हल्ला बोला जिसमें ताली पिटवाकर, थाली पीटवाकर, घंटे बजवाकर और शंख बजाकर मोमबत्ती और दिया जलाकर, समय से अँधेरा कराकर जो पाखंड रचा था उसी समय लग गया था की बड़ा अनर्थ होने वाला है । परंतु वायरस था कि जाने का नाम नहीं लिया। तब्लिगिओं और कुछ मुश्लिम संस्थानो को इंगित करते हुए इन्होंने पूरी दुनिया में हल्ला किया की इनकी वजह से कोरोना आया। जिसकी दुनिया भर में निंदा हुई। जब इसके लिए वैक्सीन बनाने की बात आई तो खुद जा जा करके वैक्सीन का निरीक्षण करने लगे और इनका फोटो चारों तरफ कोरोना वायरस की गति से तेज, तेजी से बढ़ने लगा। अब इनकी वैक्सीन बन गई। जिसका श्रेय यहाँ के वैज्ञानिकों को जाना चाहिए था जनाब खुद लूटने लगे ! पर हुआ क्या ? वैक्सीन हिंदुस्तान के लोगों को लगाने की बजाय उसका भी व्यापार करने पर उतर आए। आज के हालात यह हैं की वैक्सीन उत्सव का आयोजन किया गया और वैक्सीन ही नहीं है ?यह अपनी नकारात्मकता छुपाने के लिए सकारात्मकता का एक नया जुमला लेकर अवतरित हुए हैं। कहीं मुहँ नहीं दिख रहा है इनका चरों तरफ लाशें ही लाशें नज़र आ रही हैं और न जाने कितनी हस्तियां चली जा रही हैं आम आदमी की तो छोड़िये।

इनके वैचारिक मुखिया का विचार चारों तरफ प्रसारित हो रहा है कि "जो चले गए वह मुक्त हो गए"। प्रभुवर यदि आप चले जाते तो देश मुक्त हो जाता। यह विचार सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से फैल रहा है।
सकारात्मकता लगे पप्पू यादव के साथ इन्होंने क्या किया है उस के संदर्भ में सकारात्मकता का मतलब समझा जाना चाहिए।

...... डा लाल रत्नाकर

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डा मनराज शास्त्री जी के विचार :




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