मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

प्रो.ईश्वरी प्रसाद जी का पूरा वैचारिक आधार बहुजन उत्थान का रहा है.

 


प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से सेवानिवृत्त हुए हैं विश्वविद्यालय में रहते हुए उन्होंने जितना संघर्ष किया वह "द्विज और शूद्र" की एक महत्वपूर्ण कथा है। स्वाभाविक है जे एन यू एक ऐसा केंद्र रहा है जहाँ से देश को अपनी दिशा तय करनी थी। यह अलग बात है की जवाहर लाल नेहरू ने इसके स्थापना के साथ जो सपना देखा होगा उसे निश्चित तौर पर वामपंथी "द्विजों" ने अपने हिसाब से आगे बढ़ाया होगा। नेहरू जी संघ के प्रति कितने नरम रहे होंगे इसका लेखा जोखा तो मौजूदा सत्ता में बैठे लोग आये दिन नेहरू नेहरू करके बताते रहते हैं.

प्रो ईश्वरी प्रसाद जी का पूरा वैचारिक आधार बहुजन उत्थान का रहा है यही कारन है की उन्हें अपने जीवन में द्विज वामपंथियों और कांग्रेसियों ने बहुत परेशां किया और अनेक षडयंत्र किये होंगे। यही कारन रहा होगा की वह अपने जीवन में सामाजिक न्याय को बहुत ही तकनिकी तौर पर लडे, जबकि बहुतों ने चापलूसी करके सुविधा और सोहरत हासिल की। सामाजिक न्याय की लड़ाई को एक ऊंचाई तक पहुंचाया यहां तक कि देश के तमाम समाजवादियों से उनके बहुत अच्छे रिश्ते रहे और पूरी जिंदगी कांग्रेश के खिलाफ लड़ते रहे. और उनका अपना सपना है कि कांग्रेश नस्त नाबूत हो जाय क्योंकि वः एक परिवार की पार्टी है. उनके अनुसार कांग्रेस का खत्म होना जरूरी है ?
इसी विषय पर उनसे कल बातचीत होनी शुरू हुई लेकिन वह यह मानने को तैयार नहीं हैं की कांग्रेस को रुकना चाहिए कांग्रेस को तो खत्म ही हो जाना चाहिए। लेकिन जिस तरह से कांग्रेश के खिलाफ जो लोग देश की सत्ता पर काबिज हो गए हैं उनसे देश और संविधान कितना सुरक्षित है इस पर वह चुप हो जाते हैं और वह संघ के क्रियाकलाप को बिल्कुल नहीं जानते ! उनकी यह उद्घोषणा बिल्कुल हिंदुत्व के करीब ले जाती है उनका मानना है कि वह रामायण तो पढ़ते हैं राम के चरित्र से आनंद लेते हैं लेकिन तुलसीदास उन्हें बिल्कुल नहीं सुहाते क्योंकि तुलसीदास ने पूरी रामायण में ब्राह्मणों की अखंड महिमा की है।

कविताएं अपनी पहचान बनाए रखती हैं यदि उनमें समकालीन समस्याओं का भी उल्लेख हो और यही कारण है कि सौंदर्य और भक्ति भाव का गुड़गान तमाम बड़े साहित्यकारों ने किया है।
डॉ शास्त्री इतने सरल ढंग से अपनी कविताओं के माध्यम से हमारे समाज में फैले चरित्रों पर जो कविताएं लिखी हैं वह नीचे पोस्टर के रूप में संलग्न कर रहा हूं जो उनके फेसबुक पेज से ली गई है और बहुजन भारत के उनके पेज पर इन्हें लगाया गया है वहां से भी इसे जा करके देखा जा सकता है।
उनकी कविताएं इतनी रोचक थी कि उस पर मुझे भी कविता के रूप में एक टिप्पणी करनी पड़ी जिसे यहां लगा रहा हूं, यह हमारी समाज का बहुमुखी विकास।
*****
न वो समझे हैं
न समझेंगे !
क्योंकि वह मानसिक रोगी है।
जो अपने को मान बैठे हैं
बहुत समझदार
और अपनी समझदारी का
अपविश्ट फैलाते रहते हैं
समाज के उस हर व्यक्ति पर
जो उनके लिए
सरल भी है, तरल भी है
पर वह चाहते हैं
उनके लिए गरल हो
और उन्हें चाकर समझता हो
यही तो सदियों का है
अभिशाप।
और अभिशप्त है पूरा समाज।
चाहे वह किसी भी विधा में हो
दुविधा ही पैदा करता है।
अपनी मानसिकता
और अपनी कुंठा की वजह से।
मानसिक रोगी की तरह
अचेतन अवस्था में
पशुवत आचरण करता है
अब ऐसे का इलाज क्या है
वह वर्तमान सरकार।
करने की योजना बना चुकी है।
और ऐसे लोगों का इलाज
समाज तो कर नहीं सकता।
इन्हें मनुस्मृति के विधान के तहत।
संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर।
पशु की श्रेणी में डाल कर
कहीं ना कहीं।
बांधकर।
भोकने के लिए भी नहीं छोड़ा जाएगा।
तभी तो मैंने लिखा है
कुछ मानसिक रूप से
बीमार लोग।

- डॉ लाल रत्नाकर




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