मंगलवार, 21 जुलाई 2020

अशोक गहलोअशोक गहलोत सरकार के इन फैसलों से सशंकित हैं सवर्ण ???

अशोक गहलोत सरकार के इन फैसलों से सशंकित हैं
सवर्ण ???

मृत्यु भोज पर पाबंदी: हाल ही में सरकार ने कई क्रांतिकारी निर्णय लिये हैं, जिनमें मृत्युभोज पर पूर्णत: पाबंदी जैसा कदम भी है, जो ब्राह्मणवाद को खुली चुनौती देने वाला है। इसकी दक्षिणपंथी ख़ेमे ने कटु आलोचना की है। संघ विचारधारा के लोगों ने सोशल मीडिया पर इसकी निंदा करते हुए यहां तक लिखा कि गहलोत सरकार ने राजस्थान में श्राद्ध भोज पर चर्च के दबाव में प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि इस तरह के बयानों का बहुजन वर्ग के युवाओं ने जमकर विरोध किया और गहलोत के निर्णय की सराहना की है।

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एक और क्रन्तिकारी फैसला लेते हुए राजस्थान सरकार ने फुले दम्पत्ति के नाम से विद्यालय खोलने, उनकी तस्वीरें लगाने और सावित्री बाई फुले के जन्मदिन को शिक्षिका दिवस के रूप में मनाने का आदेश जारी किया है। सरकार के इस फैसले की चारों तरफ़ वाहवाही हो रही है। इस निर्णय की ओबीसी की जातियों में काफ़ी प्रशंसा हुई है।

इतना ही नहीं, हाल ही में गहलोत सरकार ने राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में डॉ. जे. पी. यादव की नियुक्ति करके भी पिछड़े वर्ग को संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार को पिछड़ों की भागीदारी की परवाह है। यादव राजस्थान विश्वविद्यालय में ही पढ़े हैं और विगत 33 सालों से अध्यापन कर रहे हैं। उनकी नियुक्ति ने प्रदेश के बहुजन समाज को बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण इदारों पर पिछड़ों की आमद पर भी मनुवादी ताकतों की भौहें टेढ़ी होती नजर आई हैं।
इसके अलावा क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला एक और फैसला यह है कि राजस्थान सरकार ने दलितों आदिवासियों की भूमि पर अवैध क़ब्ज़े हटवाने के लिए राजस्थानी काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 83 में आंशिक बदलाव करके तहसीलदारों को अधिकृत कर दिया है और इस हेतु कोर्ट फ़ीस महज़ दो रुपए तय की है। इससे दलित, पिछड़े, आदिवासी, घुमंतू जातियों-जनजातियों के लोगों को राहत मिलेगी और उन पर चोट होगी जो जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं।
इसके अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गत 19 जून, 2020 को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर घोषणा की कि सरकार, राज्य में अनुसूचित जाति व जनजाति की जनसंख्या के आधार पर बजट का आवंटन व व्यय हेतु क़ानून बनाने जा रही है, जो कि बेहद महत्वपूर्ण फ़ैसला है। इससे 18 प्रतिशत दलित और 13 प्रतिशत आदिवासी आबादी को फ़ायदा होने वाला है।
वहीं मुख्यमंत्री गहलोत ने स्वच्छताकर्मियों के सीवरेज में उतरने पर भी पाबंदी लगा कर जबरदस्त सन्देश दिया है। यह सफ़ाई कर्मचारी समुदाय के लिए बड़ा तोहफ़ा है। इस निर्णय की भी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई है। कोरोना वॉरियर्स की सूची में सबसे पहले सफाईकर्मियों को शामिल करते हुए उनकी मौत होने पर 50 लाख रुपए देने की घोषणा भी गहलोत ने ही की थी।
इस कोविड संक्रमण काल में गहलोत सरकार ने दलित ,आदिवासी व घुमंतू समुदाय के ग़रीबों के लिए जिस तरह से राहत सामग्री पहुँचाने के बंदोबस्त हुए हैं, उससे भी गहलोत सरकार की छवि बहुजन हितैषी सरकार के रूप के मज़बूत होती जा रही है।
इस प्रकार गहलोत इस कार्यकाल के एससी, एसटी और ओबीसी के हितकारी निर्णय लेने में सक्रियता दिखाई हैं। वहीं मृत्यु भोज रोकने और लॉकडाउन के दौरान मंदिरों व धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से रोक दिये जाने से भी मनुवादी ताक़तें बहुत असहज महसूस करने लगी हैं। इसलिए भी वे गहलोत सरकार की जल्दी से जल्दी विदाई को इच्छुक दिखाई दे रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष के बजट में गहलोत सरकार द्वारा प्रत्येक ब्लॉक मुख्यालय पर दस लाख रुपए की लागत से आंबेडकर भवनों के निर्माण का निर्णय लिया गया है और अब सरकारी पुस्तकालयों के बहुजन महापुरुषों के साहित्य की ख़रीद की जा रही है। ये सभी कदम अशोक़ गहलोत को दलित, पिछड़े वर्ग का बड़ा चेहरा बना रहे हैं और राजनीति में सवर्ण वर्चस्व को भी बड़ी चुनौती दे रहे है।
राजनीति के जादूगर गहलोत .

- जितेंद्र कुमार 
Jai Mulniwashi sangh . Jai Bhim Namö Budhåy
Jai Constitutions

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