बुधवार, 3 जून 2020

श्री अखिलेश यादव जी। विश्व साइकिल दिवस की अशेष शुभकामनाएं !

श्री अखिलेश यादव जी। विश्व साइकिल दिवस की अशेष शुभकामनाएं !
(श्री अखिलेश यादव के फेसबुक पेज पर लिखा गया मेरा कमेंट) बहुत अच्छा दिन है जिस दिन आपसे कुछ बात की जा सकती है आपके इस पेज से। हमारा ख्याल है कि राजनीति में दोस्त और दुश्मन की पहचान बहुत मुश्किल होती है यदि यही पहचान हो जाए तो फिर राजनीति में व्यक्ति हमेशा हमेशा मौजूद रहे यहां तक कि उसकी राजनीति केवल राजनीति ना होकर सत्ता की बागडोर बन जाए। यदि इसका उदाहरण देखना हो तो हमें मौजूदा राजनीति में देखना चाहिए। मेरा मानना है कि राजनीत केवल सत्ता की बागडोर नहीं है बल्कि राष्ट्र निर्माण की एक कड़ी है और इस कड़ी को जन जन तक पहुंचाने में बहुत जरूरी है कि दोस्त और दुश्मन का ध्यान बना रहना चाहिए। मैं हजारों ऐसे लोगों को जानता हूं जो राजनीति को व्यापार लूट और भ्रष्टाचार का अड्डा बना करके अपनी अपनी जागीर खड़ी करने में कामयाब हुए हैं। मैं यहां यह लिखना इसलिए जरूरी समझता हूं कि देश की आजादी और लोकतंत्र का जिंदा रहना अच्छे और बुरे सभी तरह के राजनीतिज्ञों को मौका देता है लेकिन आज देश किस तरफ बढ़ गया है वहां पर लोकतंत्र सुरक्षित है यह कहीं से भी दिखाई नहीं देता। लोकतंत्र जब लोक से निकल जाता है तब वह लोकतंत्र नहीं होता वह जुगाड़ तंत्र होता है और आज हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि जुगाड़ तंत्र लोकतंत्र को लगभग समाप्त कर चुका है। जुगाड़ कहने का मतलब केवल जुगाड़ नहीं है इसके पीछे जो प्रोडक्ट है वह नियोजित संसाधन है जो लोकतंत्र को लोकतंत्र ना रहने देने के लिए जिम्मेदार है। निश्चित तौर पर लोकतंत्र का जो मुख्य हथियार है वह है लोक का मताधिकार। जब मत देने के अधिकार पर मशीन का नियंत्रण हो तो ! साइकल में तो बहुत कम कम पुर्जे हैं लेकिन यही साइकिल जब यंत्रवत कर दी जाती है तब जनता के लिए चलना मुश्किल हो जाता जिसके लिए हमेश एक मकैनिक की जरुरत पड़ा जाती है उससे जनता का विश्वास औरअधिकार उस मकैनिक पर चले जाते हैं यानि समाप्त हो जाते हैं। जैसा कि देखने में आया है कि बहुत सारे ऐसे क्षेत्र जहां पर अमुक दल के लोग हार रहे थे वे यकायक परिणाम आने पर बहुत अधिक मतों से विजई हुए जो वहां के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों के बिल्कुल विपरीत था। इसलिए इस वैश्विक साइकल दिवस पर हम यह चिंता जाहिर कर रहे हैं कि कहीं ना कहीं हेरा फेरी का खेल किसी की ताकत की पीछे मौजूद है। और इस खेल से जीतने का एकमात्र तरीका है जन आंदोलन जब तक लोकतंत्र बचाने का जन आंदोलन नहीं होगा तब तक यंत्रवत तंत्र राजनीति में किसी को भी जीतने नहीं देगी। मैंने आज के दिन यह बात इसलिए लिखी है कि शायद यह पढ़ा जाए और इस पर वाजिब चिंतन मनन हो। साभार डॉ लाल रत्नाकर 03 जून 2020

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