बुधवार, 25 दिसंबर 2019

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कोरोना काले :
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कोरोना: मोदी सरकार ने बिना प्लान के लागू किया लॉकडाउन- नज़रिया

  • 1 घंटा पहले
प्रोफ़ेस स्टीव हैंकी                                            






स्टीव हैंकी अमरीका के जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में एप्लाइड अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर और जॉन्स हॉपकिंस इंस्टीट्यूट फ़ॉर एप्लाइड अर्थशास्त्र, ग्लोबल हेल्थ और बिज़नेस एंटरप्राइज़ अध्ययन के संस्थापक और सह-निदेशक हैं.
वो दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री हैं. भारत और दक्षिण एशिया के देशों पर उनकी गहरी नज़र है. बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने भारत में जारी लॉकडाउन और मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के अलावा कई दूसरे मुद्दों पर बातें कीं.

बीबीसी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में प्रोफ़ेसर स्टीव हैंकी ने क्या कहा, विस्तार से पढ़िए    

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर स्टीव हैंकी कहते हैं कि भारत सरकार कोरोना संकट से लड़ने के लिए पहले से तैयार नहीं थी. उन्होंने कहा, "मोदी पहले से तैयार नहीं थे और भारत के पास पर्याप्त उपकरण नहीं हैं."
प्रोफ़सर स्टीव हैंकी कहते हैं, "मोदी के लॉकडाउन के साथ समस्या यह है कि इसे बिना पहले से प्लान के लागू कर दिया गया. वास्तव में मुझे लगता है कि मोदी यह जानते ही नहीं हैं कि 'योजना' का मतलब क्या होता है."
प्रोफ़ेसर हैंकी कहते हैं कि लॉकडाउन संपूर्ण नहीं स्मार्ट होना चाहिए. उन्होंने कहा कि जिन भी देशों ने कोरोना वायरस से अपने यहां बड़े नुक़सान होने से रोके हैं उन्होंने अपने यहां कड़े उपाय लागू नहीं किए थे. इन देशों ने अपने यहां सटीक, सर्जिकल एप्रोच का सहारा लिया.
हालांकि बीजेपी के महासचिव राम माधव का मानना है कि कोरोना महामारी से निपटने में पीएम मोदी ने दुनिया के सामने मिसाल पेश की है. यहां पढ़ें राम माधव का नज़रिया.
अमरीकी अर्थशास्त्री एकतरफ़ा लॉकडाउन के पक्ष में नहीं हैं. वो कहते हैं, "मैं यह साफ़ कर दूं कि मैं कभी एकतरफ़ा लॉकडाउन का समर्थक नहीं रहा हूँ. मैंने हमेशा से स्मार्ट और टारगेटेड एप्रोच की वकालत की है. जैसा कि दक्षिण कोरिया, स्वीडन और यहां तक कि यूएई में किया गया. इसी वजह से मैंने खेल आयोजनों और धार्मिक कार्यक्रमों को रद्द करने की बात की है."
कोरोना संक्रमण के फैलाव से बचने के लिए 24 मार्च की आधी रात को चार घंटे की नोटिस पर 21 दिनों का संपूर्ण लॉकडाउन देश भर में लागू कर दिया गया जिसे अब तीन मई तक बढ़ा दिया गया है. इसके दो दिन पहले यानी 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में जनता कर्फ्यू लागू करने की अपील की थी जो सफल रहा था.    
भारत में मोदी सरकार की लॉकडाउन नीतियों पर अधिक सवाल नहीं उठाए गए हैं. उल्टा उस समय देश में जश्न का माहौल था जब प्रधानमंत्री ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 24 फ़रवरी को अहमदाबाद में लोगों से भरे एक स्टेडियम में स्वागत किया.
जबकि उस समय चीन, जापान और इटली जैसे देशों के कुछ इलाक़ों में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. भारत में कोरोना वायरस का पहला केस 30 जनवरी को सामने आया था. 
भारत में लॉकडाउन                                                  इमेज कॉपीरइटGetty Images

भारत की अंडरग्राउंड इकनॉमी को कम करना ज़रूरी

प्रोफ़ेसर हैंकी का मानना था कि लॉकडाउन के कड़े उपाए से कमज़ोर तबक़े का अधिक नुक़सान हुआ है. वे कहते हैं, "मोदी के कड़े उपाय देश की बड़ी आबादी के सबसे ज़्यादा जोख़िम वाले तबक़ों में पैनिक फैलाने वाले रहे हैं. भारत के 81 फ़ीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. भारत की बड़ी अंडरग्राउंड इकनॉमी की वजह यह है कि यहां सरकार के ग़ैर-ज़रूरी और प्रताड़ित करने वाले रेगुलेशंस मौजूद हैं, क़ानून का राज बेहद कमज़ोर है और साथ ही यहां संपत्ति के अधिकारों में अनिश्चितता है."
तो इसे संगठित करने के लिए क्या करना चाहिए, प्रोफ़सर स्टीव हैंकी का नुस्ख़ा ये है- अर्धव्यवस्था में सुधार, क़ानून का राज क़ायम करना, दाग़दार और भ्रष्ट नौकरशाही और न्यायिक व्यवस्थाओं में सुधार ही असंगठित अर्थव्यवस्था को कम करने का एकमात्र तरीक़ा है.
उनका कहना था कि भारतीय वर्कर्स को एक मॉडर्न और औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाने का तरीक़ा ग़लत तरीक़े से लागू की गई नोटबंदी जैसा क़दम नहीं हो सकता.

देश का ख़राब हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर

प्रोफ़ेसर हैंकी कहते हैं, "भारत कोरोना की महामारी के लिए तैयार नहीं था. साथ ही देश में टेस्टिंग या इलाज की भी सुविधाएं बेहद कम हैं. भारत में हर 1,000 लोगों पर महज़ 0.7 बेड हैं. देश में हर एक हज़ार लोगों पर केवल 0.8 डॉक्टर हैं. देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कितना लचर है इसकी एक मिसाल यह है कि महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में केवल 450 वेंटिलेटर और 502 आईसीयू बेड हैं. इतने कम संसाधनों पर राज्य के 12.6 करोड़ लोग टिके हैं."
उनका कहना था, "कोरोना वायरस के साथ दिक़्क़त यह है कि इसके बिना लक्षण वाले कैरियर्स किसी को जानकारी हुए बग़ैर इस बीमारी को लोगों में फैला सकते हैं. इस वायरस से प्रभावी तौर पर लड़ने का एकमात्र तरीक़ा टेस्ट और ट्रेस प्रोग्राम चलाना है. जैसा सिंगापुर में हुआ. लेकिन, इंडिया में इस तरह के प्रोग्राम चलाने की बेहद सीमित क्षमता है."

संकट के वक्त सरकारों की प्रतिक्रिया

दुनिया भर में सरकारों की इस बात पर आलोचना हो रही है कि संक्रमण को रोकने के लिए देर से क़दम उठाए गए.
इस पर प्रोफ़ेसर हैंकी कहते हैं, "कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के साथ ही दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े संकट से जंग लड़ने में जुट गई है. कोई भी संकट चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, उनमें हमेशा यही मांग होती है कि सरकारें इनसे निबटने के लिए कोशिशें करें."
"इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि क्या सरकार की नीतियों या क़दमों के चलते कोई संकट पैदा हुआ है, या फिर सरकार किसी संकट के दौरान हुए नुक़सानों को रोकने और इस संकट को टालने में नाकाम साबित हुई है."
वो कहते हैं, "दोनों ही मामलों में प्रतिक्रिया एक ही होती है. हमें सरकार के स्कोप और स्केल को बढ़ाने की ज़रूरत होती है. इसके कई रूप हो सकते हैं, लेकिन इन सभी का नतीजा समाज और अर्थव्यवस्था पर सरकार की ताक़त के ज़्यादा इस्तेमाल के तौर पर दिखाई देता है. सत्ता पर यह पकड़ संकट के गुज़र जाने के बाद भी लंबे वक़्त तक जारी रहती है."
प्रोफ़ेसर स्टीव हैंकी के मुताबिक़ पहले विश्व युद्ध के बाद आए हर संकट में हमने देखा है कि कैसे हमारे जीवन में राजनीतिकरण का ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है. इनमें हर तरह के सवालों को राजनीतिक सवाल में तब्दील करने का रुझान होता है. सभी मसले राजनीतिक मसले माने जाते हैं. सभी वैल्यूज़ राजनीतिक वैल्यूज़ माने जाते हैं और सभी फ़ैसले राजनीतिक फ़ैसले होते हैं.
उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार हासिल कर चुके इकनॉमिस्ट फ्रेडरिक हायेक नई विश्व व्यवस्था के साथ आने वाली लंबे वक़्त की समस्याओं की ओर इशारा करते हैं. हायेक के मुताबिक़ आकस्मिक स्थितियां हमेशा से व्यक्तिगत आज़ादी को सुनिश्चित करने वाले उपायों को कमज़ोर करने की वजह रही हैं.






राष्ट्रपति ट्रंप की नाकामी

अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में भी कहा जा रहा है कि उन्हें संक्रमण से जूझने के लिए फ़रवरी से ही क़दम उठाने चाहिए थे, इस पर स्टीव हैंकी ने कहा, "किसी भी संकट में वक़्त आपका दुश्मन होता है. अधिकतम प्रभावी होने के लिए हमें तेज़ी से, बोल्ड और स्पष्ट फ़ैसले लेने होते हैं."
"राष्ट्रपति ट्रंप ऐसा करने में नाकाम रहे हैं. लेकिन, वह ऐसे अकेले राजनेता नहीं हैं. कई सरकारें तो और ज़्यादा सुस्ती का शिकार रही हैं. इसकी एक वजह यह है कि चीन ने लंबे समय तक पूरी दुनिया से यह छिपाए रखा कि वुहान में क्या हो रहा है. डब्ल्यूएचओ ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पापों पर पर्दा डाले रखा. यहां तक कि अभी भी चीन अपनी टेस्टिंग के डेटा साझा नहीं कर रहा है."
कोरोना वायरस                                                  इमेज कॉपीरइटNOELEILLIEN

डब्ल्यूएचओ की लचर भूमिका

अमरीकी राष्ट्रपति की तरफ़ से डब्ल्यूएचओ की आलोचना पर उन्होंने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना वायरस के फैलने के लिए डब्ल्यूएचओ को पूरी तरह से ज़िम्मेदार नहीं ठहराया है. उनकी पोज़िशन यह है कि डब्ल्यूएचओ ने इस महामारी को ग़लत तरीक़े से हैंडल किया है.
ट्रंप के मुताबिक़, डब्ल्यूएचओ ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के माउथपीस के तौर पर काम किया है.
प्रोफ़ेसर हैंकी कहते हैं, ''यह स्पष्ट है कि डब्ल्यूएचओ के चीफ़ डॉ. टेड्रोस और डब्ल्यूएचओ अपने तय पब्लिक हेल्थ मिशन के उलट चीन में कम्युनिस्टों को ख़ुश करने में लगे हैं. डब्ल्यूएचओ बाक़ियों की तरह से ही राजनीति का शिकार है. डब्ल्यूएचओ को काफ़ी पहले ही म्यूज़ियम में सजा देना चाहिए था.''

5 पी का सबक़

प्रोफ़सर स्टीव हैंकी के अनुसार, "किसी भी संकट के वक़्त पहले से की गई तैयारी बाद में राहत का सबब बनती है, लेकिन ऐसा देखा गया है कि सरकारें ऐसे संकटों का इस्तेमाल सत्ता पर अपनी पकड़ को मज़बूत करने में करती हैं. मेरी सलाह राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की काउंसिल ऑफ़ इकनॉमिक एडवाइज़र्स (आर्थिक सलाहकार परिषद) में दी गई अपने सेवाओं से मिले सबक़ पर आधारित हैं. उस वक़्त जिम बेकर व्हाइट हाउस के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ थे."
उन्होंने आगे बताया- बेकर ने 5 पी पर जोर दिया. ये थे- प्रायर प्रिपेरेशन प्रीवेंट्स पुअर परफ़ॉर्मेंस. इसका मतलब है कि पहले से की गई तैयारी आपको बाद की दिक़्क़तों से बचाती है. चाहे कारोबार हो या सरकार हो, इन 5 पी से एक अनिश्चितता और उथल-पुथल भरी दुनिया में ख़ुद को ज़िंदा रखा जा सकता है.
सटीक तौर पर कहा जाए तो हमें ऐसे संस्थान तैयार करने चाहिए जो टिकाऊ हों और जिनमें खपा लेने की ताक़त हो. इससे हमें अनिश्चितता और संकट के वक़्त पर संभावित गिरावट और नकारात्मक दुष्परिणामों से निबटने में मदद मिलती है. ये संस्थान इसलिए भी तैयार किए जाने चाहिए ताकि ये अनिश्चताओं और संकटों को भांप सकें और उन पर तभी प्रभावी क़दम उठाए जा सकें.
भारत में लॉकडाउन                                                  इमेज कॉपीरइटGetty Images

सिंगापुर ने ख़ुद को कैसे बदला?

सिंगापुर में संक्रमण के दोबारा फैलने का ख़तरा फिर से बन गया है लेकिन अब तक इसका रिकॉर्ड सराहनीय रहा है.
प्रोफ़ेसर स्टीव हैंकी का कहना था, "मेरे दिमाग़ में फ़िलहाल सिंगापुर का उदाहरण आता है. 1965 में अपने गठन के समय सिंगापुर एक बेसहारा और मलेरिया से बुरी तरह प्रभावित मुल्क था. लेकिन, तब से इसने ख़ुद को दुनिया के और एक फाइनेंशियल सुपरपावर के तौर पर तब्दील करने में सफलता हासिल की."
उन्होंने आगे कहा, "इसका क्रेडिट ली कुआन यू की छोटी सी सरकार को जाता है जिन्होंने मुक्त बाज़ार के अपने विज़न और 5 पी को अपनाकर इसे अंजाम दिया. आज सिंगापुर दुनिया के टॉप मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में से है. यहां एक छोटी, भ्रष्टाचार मुक्त और प्रभावी सरकार है. इसी वजह से इस बात में किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि क्यों आज सिंगापुर कोरोना वायरस से ज़्यादातर देशों के मुक़ाबले कहीं बेहतर तरीक़े से निबटने में सफल रहा है."

टेस्टिंग का दायरा बढ़ाना ही उपाय

कोरोना के लिए टेस्टिंग की संख्या बढ़ाने पर हर मुल्क पर ज़ोर दिया जा रहा है.
प्रोफ़सर हैंकी कहते हैं, ''जो देश अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं वे वही देश हैं जो 5 पी का पालन करते हैं. ये दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हांगकांग, स्वीडन और जर्मनी जैसे मज़बूत, मुक्त-बाज़ार वाली इकनॉमीज़ हैं. इन देशों को आज कम दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है.
इन देशों ने कोरोना से निबटने के लिए जल्दी उपाय करने शुरू कर दिए थे. इन देशों ने तेज़ी से टेस्टिंग का दायरा बढ़ाया. अब जर्मनी की इकनॉमी खुलना शुरू हो गई है.
स्वीडन का उदाहरण भी दिया जा सकता है. स्वीडन ने कभी भी कड़े उपायों का सहारा नहीं लिया. इसकी बजाय स्वीडन में स्कूल और ज़्यादातर इंडस्ट्रीज खुली ही रहीं.
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बीबीसी न्यूज़ मेकर्स

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आजकल श्री अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल के कराये गए कामों को भाजपा की सरकार नाम बदलकर फिर से उद्घाटन करा रही है जिससे अखिलेश यादव जी बहुत चिंतित हैं।
यह तो लखनऊ का हाल है जनाब !
आइए गाजियाबाद जहां आपकी सरकार के/में शुरू कराए गए कार्यों को जो आपके वक़्त में पूरे होने और आपसे उद्घाटित होने थे जिन्हें इस काम को अंजाम देना था और जिन्होंने शुरू किया था जरा याद करिए आपकी तुगलकी नीतियों ने उस अफसर को स्थानांतरित करके मुख्यमंत्री और सरकारी अभिमान ने आनेवाली सरकार को परोश दिया था।
आपको ही नहीं देश के लोगों को पता था आपके काबिल अफसर के देखरेख में यह सब हो रहा था । लेकिन आपके अहंकार ने ऐसा होने दिया ? क्योंकि आपके टुच्चे चमचों और निकम्मी नौकरशाही ने पानी फेर दिया था उस पूरी योजना पर।
मान्यवर ऐसे ही बहुत सारी बातें हैं जिन्हें आपके काबिल नेतृत्व में होने की उम्मीद थी लेकिन मैं बहुत स्पष्ट रूप से यह कह सकता हूं आपके चारों तरफ जिस तरह के चमचों की फौज घेरे हुए है उससे बहुत सारी बातें रुक जाती जिन्हें आप तक पहुंचना चाहिए । "निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय" ! आपके राज्य में यही चूक हुई थी क्योंकि आपके करीब निंदक नहीं थी बल्कि आपके दुश्मन थे केइयों को तो मैं स्वयं जानता हूं। हो सकता है आपको ना लगता हो लेकिन जो इस पूरे मूवमेंट में संघर्ष किए हैं वे जानते हैं कि समाजवादी और पूंजीवादी रास्ते क्या है और राजनीतिक विमर्श क्या है क्या आपको पता है आज प्रदेश से राजनीतिक विमर्श गायब हो गया है। और पूरे देश में जिस विमर्श की आपसे संभावना थी वह आपने शुरू ही नहीं की। नहीं तो एक म ठ के पुजारी और हजारों व्यापारियों की जो फौज आप के इर्द गिर्द थी उसी में से निकले देश की राजनीति पर काबिज लोगों से परास्त होने का कोई मतलब नहीं था।
याद करिए उस कहानी को जो भले ही एक शहर की हो पर उस शहर के इतिहास में दर्ज होने से आपने स्वयं को रोक लिया था। मेट्रो एलिवेटेड रोड सिटी फारेस्ट और भी बहुत कुछ.......
बातें बहुत हैं सार्वजनिक प्लेटफार्म पर उन्हें लिखा जाना उचित भी नहीं है लेकिन शुरुआत तो करनी होगी कहीं से भी यदि कोई आपका शुभचिंतक इसे पढ़ें और आपको पढ़ाई तो मुझे खुशी होगी क्योंकि आपके उत्कर्ष से हम सबों को प्रसन्नता होती है लेकिन जो आपका अपकर्ष चाहते हैं आप उनसे खुश रहते हैं मैं स्वयं तमाम ऐसे लोगों को जानता हूं जो आपकी ईद गिर्द रहकर पूरे सिस्टम का लाभ लेते हैं और पीछे से आपके विनाश की कामना करते हैं।
डॉ लाल रत्नाकर
(ताकि सनद रहे.....)

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